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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० १६ कीदृशाश्चौराः किदृशंफलं लभन्ते ? ३४३ गुणवध्यदूताविद्धमाल्यदामानः, तत्र सुरक्तैः कणवीरैः-पुष्पविशेषैः प्रथितं= गुम्फितं विमुकुलं-विकासितं कण्ठे गुण इव-कण्ठमूत्रमिव तथा वध सूचकत्वात् वध्यदतः वधचिन्हम् ,-आविद्धं-परिहितं माल्यदाम=पुष्पमाल्यं येषां ते तथा, 'मरणभयुप्पण्णसेयआयतणेहुत्तप्पिय किलिण्णगत्ता' मरणभयोत्पन्नस्वेदायतस्नेहोत्तपितक्लिनगात्राः, तत्र मरणभयादुत्पन्नेन स्वेदेन अस्वेदेन आयतः सर्वाङ्गे व्याप्तो यः स्नेहः= आर्द्रता तेनोत्तपितानि सन्तप्तानि क्लिनानि आर्टीकृतानि च गात्राणि-शरीराणि येषां ते तथा, मरणभयोत्पन्नप्रस्वेदार्टीभूतशरीरा इत्यर्थः, 'चुण्णगुंडियसरीरा' चूर्णगुण्डितशरीराः = ' चूना' इति भाषाप्रसिद्धचूर्णद्रव्यावगुण्ठितसर्वाङ्गाः, ' रयरेणुभरियकेसा' रजो रेणुभस्तिकेशाः रजोरेणुभिः धृलिभिर्भरिताः संभृताः केशा येषां ते तथा, 'कुसंभगुकिण्णमुद्धया' कुसम्भमल्लदामा ) ( सुरत्तकणवीरगहिय) कनेर के लालफूलों से गूंथी हुई (विमुकुल ) विकसित कंठे गुणकंठसूत्र तथा ( वज्झदूर ) वधसूचक होने से वध्यदूत-वधचिह्न स्वरूप ऐसी (आविद्धमल्लदामा ) फूलमाल जिनको पहिनाई जाती है (मरणभयुप्पण्णसेयआयतणेहु त्तप्पिय किलिण्णगत्ता ) (मरणभयुप्पण्णसेय ) मरण के भय से उत्पन्न हुए स्वेदपसीने से (आयतणेह ) इनके अंग गीले हो जाते हैं इससे इनका शरीर ( उत्तप्पिय ) जलने लगता है जिससे (किलिण्णगत्ता) इनका सब शरीर पसीने से झरता रहता है( चुण्णगुंडियसरीरा) इनके शरीर पर चूना लपेट दिया जाता है जिससे अधिक जलन होती है। तथा (रयरेणुभरियकेसा ) इनके केशों पर बाहर की धूलि उड़कर भर जाती है। कारण उनके पास उस समय ऐसे साधन नहीं होते हैं जिससे ज्झदूयाविद्धमल्लदामा " " सुरत्तकणवीरगहिय " रेनो सास सोमाथा थेदी “ विमुकुल" मा हेमा म२६५ २वी, “ वज्झदूय" ५५ सूय: पाथी-वध्यतयथित वी " आविद्ध मल्लदामा " दूसमा भने पडेशवामां आवे छे. " मरणभयुप्पण्णसेयआयतणेहुत्तप्पियकिलिण्णगत्ता " "मरणभयुप्पण्णसेय " भ२ना अयथी उत्पन्न थये। पसीनाथी “ आयतणेह " तभनi A1 Alli थाय छे, अयथी तमना शरी२ " उत्तप्पिय" ni सागे छ, भने ते रणे " किलिण्णगत्ता" तेभर्नु मामु शरीर ताण याय छ. “चुण्णगुंडिय सरीरा" तेभनय शरीर ५२ यूनो यो५७यो साय छ, था शरीरभ पधारे मात थाय छ, तथा " रयरेणुभरियकेसा " तेमना पाणमा બહારની ધૂળ ઉડીને ભરાય છે, કારણ કે તે સમયે વાળ ઓળવાનાં સાધન तभनी पासे खातi नथी. :" कुसुमगुक्किण्णमुद्धया " " कुसुमग" औसुभा
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