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प्रश्नव्याकरणसूत्रे त्माप्तं तदपि स्वल्पमात्रं कृत आहारो यस्तै तथा 'उविग्गा 'उद्विग्नाः उद्वेगयुक्ता अशान्तचित्ता इत्यर्थः, ' उप्पुया' उत्प्लुताः चापलाः ‘असरणा' अशरणाः= त्राणरहिताः गृहवनिता वा 'अडवीवासं ' अटवीवास-अरण्यवासं 'बालसयसंकणीयं ' व्यालशतशङ्कनीयं = व्यालानां सर्पादिदुष्टश्वापदानां शतैः शङ्कनीयं भुजङ्गादिभिर्भयङ्करम् ' उर्वति ' उपयन्ति प्राप्नुवन्ति ॥ मू० ११॥ पुनस्ते कीदृशा भवन्ति ? इत्याह-'अयसकरा' इत्यादि
मूलम्-अयसकरातकरा भयंकरा कस्सहरामोत्ति अजव्वं इति समामंतणं करेंति गुझं, बहुयस्स जणस्त कज्जकरणेसु विग्धकरामत्तप्पमत्तपसुत्तवीसत्थछिद्दघाती वसणभुदएसु हरणबुद्धी विगठवरुहिरमहिया परेंति नरवईमज्जायमतिकता सज्जणजणदुगंछिया सकम्मेहिं पावकम्मकारी असुभपरिणया य दुक्खभागी निच्चाउलदुहमनिव्वुइमणा इहलोगे चेव किलिस्संता परदव्वहरा नरा वसणसयमावण्णा ॥सू०१२॥
चाहे कंदमूल आदि हो सो भी वह भापेट नहीं मिलता स्वल्पमात्रा में ही मिलता है, उसे ये खालिया करते हैं, ( उबिग्गा ) इनका चित्त सदा अशान्त रहता हैं । ( उप्पुया ) ये बड़े भारी चपल होते हैं। (असरणा ) इनका एक जगह स्थिर वास नहीं होता इसलिये ये त्राण रहित होकर इधर से उधर भागते रहते हैं और ( अडवीवासं ) जंगल में ही बसेरा करते हैं । ( वालसयसंकणीयं ) सर्पादि सैकड़ों दुष्ट जानवरों के भय से शंका शील ऐसे स्थानों को ये ( उति ) प्राप्त करते हैं ॥०११॥
५ तेमणे घराने मा0 माती नथी, 231 प्रभामा १ भणे छ. " उविग्गा" तमनु थित्त सहा मशान्त २ छे. “ उप्पुया" तो घ१ २५ डाय थे. " असरणा" तेभर्नु २५ अयम से या खातुं नथी, तथा तया मशरनी भ भामतेम भभ्या ४२ छ. " अडवीवासं " Twi " वालसयसंकणीय" साह से भय ४२ वोना भयथी व्या स्थानीय "उति" तसा पास 3रे छे ॥ सू० ११ ॥
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