________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रश्नव्याकरणसूत्रे शब्दायमानं हसितं हसनं तेन भीषणकं भयानकमतएव निरभिरामम् असुन्दरं यत्तत्तथा तत्र, तथा — अइदुन्भिगंधे' अतिदुरभिगन्धे-शटितमृतककलेवरदुर्गन्ध युक्ते, 'बीभच्छदरिसणिज्जे ' बीभत्सदर्शनीये वीभत्सं-अस्थिमृतककलेवरादियुक्तलाज्जुगुप्सोत्पादक दर्शनीय-दर्शनं यस्य तत् तस्मिन् ' मुसाणे' श्मशाने 'वणे' वने-अरण्ये च तथा 'सुण्णघरलेणअंतरावणगिरिकंदरेसु' शून्यगृहलय नाऽन्तराऽऽपणगिरिकन्दरेषु शून्यानि गृहाणि अन्तरापणा: अन्तरा=ग्रामादीनामर्द्धपथे विश्रामार्थ निर्मिता आपणा: गृहा: ग्रामाद्वाह्याः गिरिकन्दराणि च% गिरिगह्वराणि, तेषु, तथा-'विसमसावयसमाउलामु' विषमैः श्वापदैः हिस्रपाणिभिः समाकुलाः व्याप्ताः तास्वेवं विधासु 'वसहिसु' वसतिषु-वासस्थानेषु 'किलिस्संता' क्लिश्यन्ता दुःखानि माप्नुवन्तः, 'सीयायवसोसियसरीरा' शीतातपशोषितशरीराः = शीतैरातपैश्च शोषितानि शरीराणि येषां ते तथा 'ददृच्छवी' लिये इस विशुद्ध कह कह ध्वनि संयुक्त पिशाचों के हास्यसे जो (बीहणग ) भयप्रद और (निरभिरामे ) असुन्दर बने हुए हैं (अहदुन्भिगंधे) अतिदुरभिगंध-सड़े हुए मृतकों के कलेवरों की दुर्गन्ध से जो युक्त हो रहा है (बीभच्छदरिमणिज्जे ) तथा जो हाड़ मृतक कलेवर आदि से युक्त होने के कारण घृणोत्पादक दिखलाई पड़ते हैं ऐसे (सुसाणे) उन श्मशानों में (सुण्णघर ) शून्य गृहों में, (लेण ) लयनों में-पर्वतो के निकटवर्ती पाषाणगृहों में, (अंतरावण ) ग्राम आदिकों के आधे मार्ग में विश्राम निमित्त बने हुए घरों में, (गिरिकंदरेसु) पर्वत की गुफाओं में, तथा (विसमसावयसमाउलासु ) हिंसक प्राणियों से युक्त ( वसहिस्सु ) वसतियों में-वासस्थानों में, (किलिस्संता) नाना प्रकार के दुःखों को सहन किया करते हैं । तथा ( सीया य वसोसियसरीरा) शीत और आतप से इनके शरीर शोषित-सूके हुए रहते हैं। (दडમુખમાંથી નીકળતું હોય છે, તેથી પિશાનાં તે વિશુદ્ધ કહેકહ વનિ યુક્ત खास्यथी ने “बीहणग" लय'४२ भने " निरभिरामे" असु४२ मनेर छे, " अइदुन्भिगधे " सदां भृत देवरानी अतिशय दुर्गन्धथी रे युत छ, " वीभच्छदरिसणिज्जे" तथा रे 313i, भुत माहिया युक्त पाने ॥२० धुलानन माय छ, मेवi "सुसाणे" श्यशानामा, “वणे " पनामा, "सुण्णघर" शून्यधरोमां, “लेण" स्यामा पानी सभीपनi पाषाणामा " गिरिकंदरेसु" पतनी शुमामा, तथा " विसमसावयसमाउलासु " डिस प्राणी माथी यु। “ वसहिसु" निवास स्थानामi, "किलिस्संता” विविध मान सहन ४२ छ. तथा " सीया य वसोसियसरीरा" शीत भने ताथी तमनां शरी२ सू २ छ. “दड्ढच्छवी " तमना शरीरनी
For Private And Personal Use Only