________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ११ तस्करकार्यनिरूपणम्
३०९ तापसनिवासः, निगमः वणिग्जननिवासः जनपदोदेशस्तान ‘धणसमिद्धे ' धनसमृद्धान्-धनधान्यसम्पन्नान् ‘हणंति ' नन्ति=विनाशयन्ति तथा 'थिरहियया' स्थिरहृदया अदत्तादाने निश्चलचित्ताः छिन्नलज्जाः जातिकुलादिलज्जावर्जिताः 'बंदिग्गहगोग्गहा य' वन्दिग्रहगोग्रहांश्च = वन्दिनः स्तुतिपाठोपजीविनस्तेषां ग्रहः ग्रहणं गवां च ग्रहणं चोरणमित्यर्थः, 'गेण्हंति' गृह्णन्ति=कुर्वन्ति तथा 'दारुणमई ' दारुणमतयः घोरकर्माचरणबुद्धयः 'निक्कि वा' निष्कृपाः निर्दयाश्च 'णियं' निजं = स्वजनमपि ' हणंति 'नन्ति = नाशयन्ति तथा गेहसन्धि गृहभित्विं छिदंति' छिन्दन्ति । ततश्च 'जणवयकुलाणं' जनपदकुलानां 'निक्खि स्थान होता है उसका नाम पत्तन है। तापस लोगों का जो निवास स्थान होता है उसका नाम आश्रम है । वणिग्जन, जिसमें रहते हों उसका नाम निगम, एवं देश का नाम जनपद है । इन स्थानों को लूटने वाले तथा-नष्ट भ्रष्ट करने वाले ये जन (थिरहियया) अदत्तादान करने में निश्चलचित्त रहते हैं ( छिन्नलज्जा ) इन्हें जाति, कुल आदि की लज्जा कुछ भी नहीं होती है । (बंदिग्गहगोग्गहा य ) ये स्तुति पाठकों को लूट लिया करते है और गायों को भी चुरा लिया करते हैं । (दारुणमई) इनकी मति बडी दारुण (भयंकर) होती है-भयंकरसे भयंकर कर्म करने में भी उन्हें संकोच नहीं होता है । (निक्किवा) ये सदा दया से रहित होते हैं । (णियं हणंति ) अपने निजजन को भी ये जान से मार डालते हैं (गेहसंधि ) घरों की भित्तियों तक को भी ये (छिंदंति ) तोड़ डालते हैं । ( जणवयकुलाणं ) दूसरों की रक्खी हुई-धरोहररूप में स्थापित की
સ્થાનને પત્તન કહે છે. તાપસ લેકનાં નિવાસસ્થાનને આશ્રમ કહે છે. વણિક લેકે જ્યાં રહે છે તે નિગમ અને દેશને જનપદ કહે છે. તે સ્થાનોને લૂટना। तथा नष्टभ्रष्ट ४२॥२॥ ते सो “ थिरहियया ” महत्ताहान-यारी पाने भाट १८ निश्चया डाय छे. " छिन्नलज्जा" तेभने ति. ७ महिना सडे पए सा. हाती नथी. " बंदिग्गहगोग्गहाय" तेयो स्तुति ४२नाराने ५
से छ, भने याने ५ यारी तय छ “ दारुणमई " तेमनी नति અતિ દારુણ હોય છે-ભયંકરમાં ભયંકર કૃત્ય કરતાં પણ તેમને સંકોચ થત नथी “निकिया" ते सहा याडीन डाय छ, “णियं हति" पोताना स्वानाने ५५ तेसो भारी नामे छ, “गेहसंधि " धनी हिवान प] ते। " छिदति " धनी हिवासोने पर तेम। “छिंदति " तोडी पाई छ. " जणवयकुलाणं " la-मे अनामत थाप तरी भूस “धणधण्णव्व
For Private And Personal Use Only