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प्रश्नव्याकरणसूत्र पारलौकिका नरकाद्यपेक्षया 'अप्पसुहो' अल्पसुखः सुखवर्जितः 'बहुदुक्खो' दुःश्वबहलः 'महब्भओ' महाभय: महाभयजनकः 'बहुरयप्पगाढो' बहरजः प्रगाढः प्रचुरकमरजोभिः सम्भृतः दारुणः भीषणः 'ककसो' कर्कशः कठोरः 'असाओ' अशातः असुखोऽशातकर्मवेदनीयस्वरूपः इत्येवंविधः फलविपाकः 'वाससहस्सेहिं ' वर्षसहस्र-पल्योपमसागरोपमप्रमाणकालैः 'मुच्चइ' मुच्यते क्षीयते । तदेवव्यतिरेकमुखेनाह-णय' न च तं फलविपाकम् 'अवेदयित्ता' अवेदयित्वा-अनुपभुज्य उपभोगं विनेत्यर्थः, 'हु'निश्चयेन मोक्खो' मोक्षः 'अत्थि' अस्ति ति ' इति शब्द : समाप्तिसूचक : । एतस्यार्थस्य साक्षात्पमाणभूतपरमात्मप्रतिपादितत्वेन प्रमाण्यनिरूपणाय प्रमाणयन्नाह-' एवमाहंसु ' इत्यादि, एवम् अपेक्षासे परलोक संबंधी फलरूप विपाक कहा गया है, उससे यह अच्छी तरह ज्ञात हो जाता है कि यह (अप्पसुहो) सुखवर्जित एवं (बहुदुक्खो) दुःख बहुल है । ( महन्भओ) महाभयजनक, और ( बहुरयपगाढो) प्रचुर कर्मरूपी रज से भरा हुआ है । ( दारुणो) दारुण तथा ( ककसो) कठोर है । और ( असाओ) असाता वेदनीय कर्म स्वरूप है । ( वाससहस्सेहिं मुच्चइ ) यह फलविपाक जीव पल्योपम एवं सागरोपमप्रमाण कालतक भोगा करता है तभी जाकर उससे यहछूटकारापाता है, अर्थात् चह फलरूप विपाक नष्ट हो पाता है। (णय अवेदयित्ता हु मोक्यो अस्थि त्ति ) भोगे विना जीव इससे मुक्त नहीं होता है । यहां (त्ति) यह समाप्ति अर्थ का सूचक है। ____ अब सूत्रकार इस अर्थ में साक्षात् प्रमाणभूत परमात्मा द्वारा प्रतिपादित होने के कारण प्रमाणभूतता प्रकट करने के लिये कहते हैं-( एव३५ विया मतापाममाव्यो छे तेनाथी ते सारी रीत deya। भणे छे ते 'अप्प. सहो” सुभपति भने "बदुहुक्खो" मयत दुमय छ. “महन्मओ" भाडा लयन, मने “बहुरयप्पगाढो" प्रयू२ ४३५२०४थी भरपूर छे. " दारुणो" हा२५१ तथा “ककसो" २ छ. मने " असाओ" साता येहनीय भ ११३५ छ. " वाससहस्सेहिं मुच्चद" ते सवि५४ ५८यापम भने सागरायम પ્રમાણ કાળ સુધી જીવ ભગવ્યા કરે છે, ત્યારે જ તે તેમાંથી છૂટી શકે છે, मट ते ५३५ विपा मेटसा ein समये नष्ट थाय छे. “णय अवेदयित्ता ह मोक्खो अस्थि त्ति" ते विमा सोगव्या विना ५ तेनाथी भुत २४ शत नथी. मी “त्ति" ते समाप्ति अथनी सूय छे.
હવે સૂવાર આ અર્થમાં પ્રત્યક્ષ પ્રમાણભૂત પરમાત્મા દ્વારા પ્રતિપાદિત डावाने ॥२0, प्रमाणभूतता विधाने भाट छ-" एवमाइस" मा पूर्वस्ति शते ती ४२ मा वामे तथा " नायकुलन दणो महप्पा जिणो वीरवर
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