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सुदर्शिनीटीका अ० ३ सू० ६ सङ्ग्रामवर्णनम
२८५ प्रक्षुभिताः क्षोभमापन्नाश्च ये कातरा जनास्तेषां विपुल: विशालः घोषो धनिर्यस्मिन् स तथा तस्मिन् ' हयगयरहजोहतुरियपसरियरयुद्धयतमंधयारबहुले' हयगजरथयोधत्वरितपसृतरजउद्धततमाऽन्धकारबहुले-तत्र हयाः = अश्वाः, गजाःपसिद्धाः, रथाः-स्यन्दनाः, योधाः-सुभटास्तेषां पादाभिघातेन त्वरित-शीघ्र प्रसृत-विस्तारमुपगतं रजः-धूलो, तद् उद्धततमम्-अतिशयेनोद्धृतमुड्डीयमानं तेनाऽन्धकावबहुले । तथा “कायरनरनयणहिययवाउलकरे " कातरनयनहृदयव्याकुलकरे, तत्र = कातरा:-अधीराः युद्धे पलायनस्वभावा ये नरास्तेषां नयनहृदययोः व्याकुळकरे क्षोभजनके तथा 'बिलुलियउक्कडवरमउडकिरिडकुंडलोडुदामाडोविए ' विलुलितोत्कटवरमुकुटकिरिटकुण्डलोडुदामाटोपिते तत्र विलुलितानि इतस्ततश्चलितानि उत्कटवराणि उत्तमप्रकृष्टानि यानि मुकुटानिप्रसिद्धानि किरीटानि-त्रिशिखरशिरोभूषणानि कुण्डलानि-कर्णाभरणानि उडदामानि-नक्षत्रमालाकारभूषणानि च तैराटोपितः विस्तारितो यः स तथा तस्मिन् वीरों के एवं ( पक्खुभिय ) क्षुभित हुए कायर जनों के (विउलघोसे) विपुल घोषों से व्याप्त हो रहा है, तथा ( हयगयरहजोहतुरियपसरियरययुद्धयतमंधयारबहुले) (हय) घोड़ों के, (गय ) गजों के, ( रह) रथों के, ( जोह) योद्धाओं के, ( उद्धयतम ) पैरों के अत्यन्त आघात से उडकर (तुरियपसरिय ) शीघ्र फैली हुई ( रय ) धूली से जहां पर (अंधयारबहुले) अंधकार ही अंधकार हो रहा है (कायरनरनयणहिययवाउलकरे) कायरजनों के नयन और हृद्यको जो व्याकुल बनारहा है । (विलुलिय ) इधर उधर लटकते हुए ( उक्कडवर ) उत्तमोत्तम ऐसे ( मउड ) मुकुटों से, (किरीड ) किरीटों से-तीनशिखर वाले शिरो भूषणों से ( कुंडल ) कुण्डलों से, ( उडुदाम ) नक्षत्र मालाकार भूषणों नाही, " गंदीय" मानहित मनेसा alan वाशना भने “पक्खुभिय" साल पाभेटी आय२ बनाना “ विउलघोसे" विथुस मावास्या व्यास ४ गयु छ. तथा . हयगयरहजोहतुरियपसरियरयुद्धयतमंधयारबहुले " " हय " घाना, “गय" हाथीसोना, "रह" २थान “ जोह" योद्धामना "उद्धयतम" ५ना मत्यात मावातथी जीने "तुरियपसरिय" ५थी सायली " रय" धूणी arti अंधयारबहुले” भतिशय म५४।२ ५६ गयो छ, “ कायरनरनयण. हिययवाउलकरे " ५५२ सोनi नयन भने यने में व्या ४२॥ २३छ, "विलुलिय" म त aexu “ उक्कडवर " उत्तमोत्तम " मउड ” भुटोथी, "किरीड" 1ि2tथी- शिम शिरोभूषणेथी, “कुडल' गाथा “उडुदाम" नक्षत्र भातार भूषणोथी, “ आडोविए" रे माम२ युवत मन छे. "पगड"
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