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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ८ सङ्ग्रामवर्णनम् पूर्वोदितमेव संक्षेपेण प्रतिपादयन्नाह-वसु' इत्यादि ।
मूलम् ---वसुवसुहविकंपियव्य-पच्चक्खापिउवणं परमरुद्दवहिणगं दुप्पवेसतरंग-अभिवडिंति-संगामसंकडं, परधणं महंता । अवरे पाइक्कचोरसंघा सेणावइचोरवंद-पागडियाय अडविदेसदुग्गवासी काल-हरिय-रत्त पीय सुकिल्ल-अणेगसयचिंधपट्टबंधा परविसए अभिहणंति लुद्धा धणस्स कब्जे ॥ सू० ८॥ ___टीका- वसुवमुद्दविकंपियव्य ' वसुवसुधाविकम्पिता इव-तत्र वसवः देवा वसुधा पृथ्वी च विकम्पिताः-त्रासिता यैस्ते तथा तथैवापरे राजानः 'परधणं' परधनं ' महंता' काङ्क्षन्तः परद्रव्यलुब्धा सन्तः ‘पच्चक्खपिउवणं' प्रत्यक्षपितृवनं साक्षात् श्मशानमिव 'परमरुद्दवीहणगं' परमरुद्रभयानकं अत्यन्तप्रचण्डभयजनकं दुप्पवेसतरगं' दुष्प्रवेशतरकं अत्यन्तदुर्गमं वीराणामपि, का कथा कातराणामित्येवंविधमपि 'संगामसंकडं' संग्रामसंकटंगहनयुद्ध · अभिवडंति' अभिपतन्ति प्रविशन्ति । तथा ' अवरे ' अपरे ‘पाइकचोरसंघा' पदातिकचौर
फिर इसी बात को संक्षेप से कहते हैं-'वसुवसुह ' इत्यादि। टीकार्थ-(वसुवहविकंपियव्य) जिन्होंने देवोंको एवं पृथ्वीमंडलको भी कंपित जैसा करदिया है ऐसे और भी अनेक राजा (परधणंमहंता)दूसरों के धनमें लुब्ध होकर (पच्चक्खपिउवणं) साक्षात् पितृवन जैसे-प्रत्यक्ष में श्मशान सरीखे प्रतीत होने वाले तथा ( परमरुद्दयीहणगं) जो अत्यंत प्रचंड एवं भयजनक हो रहा हो, तथा ( दुप्पवेसतरग) वीरों के लिये भी जो अत्यंत दुर्गम बना हुआ हो ऐसे ( संगामसंकडं ) गहनयुद्ध में ( अभिवडंति ) प्रवेश कर जाते हैं । तथा (अवरे ) दूसरे भी ( पाइक
वे को २४ पातने साक्षितमा - " वसुवसुह" त्या
10-" वसुवसुहविकंपियव्व" भाणे देवाने तथा पृथ्वीमने ५५ तो पायभान ४२ हीधा छ सेवi olor ५ अने: २० " परधणं महतो" wllodit धनमा यु०५ थने “ पञ्चक्खपिउवणं " प्रत्यक्ष पितृपन - प्रत्यक्ष श्मशान 24t lndi, तथा “परमरुद्दबीहणग" 2 सत्यत प्रय भने नय४२ लासतुं छाय, तथा “दुप्पवेसतरगं" पाशने भाटे ५ से अतिशय दुर्गम डाय मेव “संगामसंकड" इन युद्धमा “ अभिवडति" प्रवेश ४२ छ. तथा “ अवरे" ilon my " पाइकचोरसंघा" पहाति३५
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