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प्रश्नव्याकरणसूत्रे पीड़िता, अथवा--अमुहृदः मित्रादिहीनाः ‘फुडियच्छवी ' स्फुटितच्छवया कुष्ठादिभिर्गलितत्वचः 'वीमच्छविवण्णा' वीभत्सविवर्णाः बीभत्सः-चित्तोद्वेगगजनको विरूपो वर्णो येषां ते तथा गलितकुष्ठादिभिघृणाजनकशरीरवन्तः, 'खर फरुसविरत्तज्झामझुसिरा' खरस्पर्शविरक्तव्यामशुषिराः खरः कठोरः स्पर्शा येषां ते खरस्पर्शाः, तथा विरक्ताः चिन्ताऽक्रान्ताः ध्यामाः = कान्तिहीनाः शुपिराः निस्सारशरीरवन्तश्चेति ते तथा 'निच्छाया' नि छायाः = गतममाः 'लल्लविफलवाया' लल्लविफलबाचा लल्ला: अस्पष्टा:-देशीशब्दोयं अस्पष्टार्थवाचकः, अत एव विफलाः निष्फलावाचो येषां ते तथा व्यक्तवचनरहिता इत्यर्थः, 'असक्कयमसकया' असंस्कृताऽसंस्कृताः नास्ति संस्कृतं संस्कारो येषां तेऽसंस्कृता स्तेष्वप्यसंस्कृताः अत्यन्तसंस्काररहिता अतिमलिनशरीरा इत्यर्थः, अत एव अगंधाः -दुर्गन्धा दुर्गन्धदेहाः इत्यर्थः ' अचेयणा' अचेतनाः = विशिष्टचेतनाशून्याः की संस्कृत छाया " असुहृदः " ऐसी भी हो सकती है, इसलिये इसका तात्पर्य मित्रादिकों से वे हीन होते हैं ऐसा भी हो जाता है । ( फुडि. यच्छवी ) कुष्टादिक रोग से इनके शरीर की त्वचा गलित हो जाती है । (वीभच्छविवण्णा ) इनका विरूपवर्ण चित्त को उद्वेगकारी होता है, तथा गलित कुष्ठादिसे इनका शरीर घृणित होता है (खरफरुसविरत्तज्झाम. ज्झुसिरा ) इनका शरीर कठोर स्पर्श वाला होता है । ये सदा चिन्ताओं से रातदिन घिरे रहते हैं । कान्ति से हीन होते हैं । तथा इनके शरीर में कुछ भी सार-बल-नहीं होता है । (निच्छाया ) प्रभा इनकी चली जाती है (लल्लविफलवाया ) ये व्यक्त वचन रहित और निम्फल वचन वाले होते हैं ( असक्कयमसकया) मलिनों से भी ये ओर अधिक मलिन होते हैं ( अगंधा ) इसी कारण इनके शरीर में दुगंध आया करती है પણ થઈ શકે છે, તેથી તેને અર્થ એ પણ ઘટાવી શકાય કે તેઓ મિત્રાદિ विनाना हाय छ, “ फुडियच्छवी " आदि रोगाथा तेमना शरीरनी त्वया आनित us onय छ, “बिभच्छविवण्णा" तमना मे मा शित्तने ઉદ્વેગકારી થાય છે, તથા ગલિત મેઢ આદિથી તેમનાં શરીર પ્રત્યે લેકે ઘણાની न१२ मे छ. " खरफरुसविरत्तज्झामझुसिरा" तेमन शरीरन। २५० કઠોર હોય છે, તેઓ સદા ચિન્તાઓથી ઘેરાયેલા રહે છે, સૌર્ય રહિત હોય छ, तथा तेभनो शरीरमा मिस तत ती नथी, " निच्छाया" तेभर्नु ते यायुं तय छ, “ लल्लविफलवाया" ते! व्यत-२५ण्ट क्य- २डित भने नि वयन हाय . “ असकयमसक्कया" ते मसिनो ४२तां
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