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सुदर्शिनी टीका अ.२ सू० १५ मृषावादिनां नरकादिप्राप्तिरूपफलनिरूपणम् २५१ 'क्लिश्यन्तः सन्तप्यमाना अतएव 'अच्चंतविउलदुक्खसयसंपलित्ता' अत्यन्त विपुलदुःखशतसंप्रदीप्ताः अत्यन्तं विपुलानि विशालानि यानि दुःखशतानि तैः सम्प्रदीप्ताः-प्रतप्ताः=' उवलभंति' उपलभन्ते-माप्नुवन्ति 'वसुहं ' नैवसुखं 'नेवनिव्वुई ' नैवनिर्वृति-मनः स्वास्थ्य, किन्तु दुःखमेवानुभवन्तीति भावः । एवं मृषावादफलमुक्तम् । मू० १५ ॥ उठाते हुए ( अचंतविउलदुक्खसयसंपलित्ता ) वहुत अधिक कठिन से कठिन सैकड़ों दुःखों से सन्तप्त बने हुए ये लोग (.नेवसुह) न तो कभी सुख पाते हैं और ( नेवनिव्वुई ) न कभी निवृति-मनः स्वास्थ्य-शांति को ( उवलभंति ) पाते हैं अर्थात् रातदिन दुःख भोगा करते हैं । इस प्रकार यह मृषावाद का फल कहा है।
भावार्थ-मृषावाद का फल स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं किमृषवादीजन कभी भी अपने जीवन में सच्ची सुखशांति नहीं पा सकते हैं । ये मृषावाद से उपार्जित पापकर्म के उदय से भरकर तिर्यच एवं नरकगतिके अत्यंत कठिन दुःखोंको भोगा करते हैं । तिर्यंच योनिमें रहने वाले जीवों की आयु उत्कृष्ट तीन पल्य की वनस्पति की अपेक्षा अनंतकाल की और नरक में रहने वाले जीवों की उत्कृष्ट तेतीस सागर प्रमाण है। इतने काल तक वहां रहकर कष्ट परम्पराओं का अनुभव वे करते रहते हैं । फिर भी जो पाप कर्म भोगने से अवशिष्ट रहता है उसे वे वहां से निकलकर किसी तरह भी मिली हुई मनुष्य पर्याय में भोगते हैं । यहां जो इन्हें मनुष्य पर्याय प्राप्त होती है वह बिलकुल जघस्संता” भने ४ो सन. ४२ता “ अच्चंतविउलदुक्खसयसंपलिता" धाgive qधारे २५॥४२॥मा २४ से हुयी हुमी मनेहा ते सो। "नेवसंह" ही पा सुप प्रास ४२i नथी " नेव निव्वुइं" ही पा निवृत्ति भननी शन्ति “ उचलभंति" अनुभव नथी. मेटले हिनशत लोगવ્યા કરે છે, આ પ્રકારનું મૃષાવાદનું ફળ કહેલ છે.
ભાવાર્થ-મૃષાવાદનું ફળ બતાવતા સૂત્રકાર કહે છે કે--મૃષાવાદી વ્યક્તિ પિતાના જીવનમાં કદી પણ સાચાં સુખ શાંતિ પામી શકતા નથી. તેઓ મૃષાવાદથી ઉપાર્જિત પાપકર્મોના ઉદયથી મરીને તિર્યંચ અને નરકગતિનાં અત્યંત કઠિન છે ભગવ્યાં કરે છે. તિર્યંચ નિમાં જન્મ પામતા જીનું આયુષ્ય ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ પદ્યનું અને વનસ્પતિની અપેક્ષાએ અનંતકાળનું અને નરકની અપેક્ષાએ ઉત્કૃષ્ટ તેત્રીસ સાગર પ્રમાણનું હોય છે. એટલે સમય ત્યાં રહીને તેઓ કષ્ટ પરંપરાઓને સહન કરે છે, ત્યાર પછી પણ જે પાપકર્મો ભેગવવાનાં
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