________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टीका अ०२ सू०१५ मृषावादिनां नरकादिप्राप्तिरूपफलनिरूपणम् २१७ 'दुब्भगा दुर्भगा भाग्यहीनाः तथा 'अकंता' अकान्ता=अमनोज्ञाः ' काकस्सरा' काकस्वराः काकस्य स्वर इव कठोरः स्वरो येषां ते काकस्वराः नीरसवचनाः ' हीणभिन्नघोसा' हीनभिन्नघोषाः हीनः हस्वः भिन्नः गर्दभवत् त्रुटितः घोषः-स्वरो येषां ते तथा मन्दघुघुरितस्वराः 'विहिंसा' विहिस्याः जनस्ताडनतर्जनादिभिर्विशेषेण हिंस्यन्ते ये ते विहिंसकाः 'जडबहिरमूया' जडबधिरमूकाः
जडा:-ज्ञानशून्या वधिराश्च श्रवणशक्तिविकलाः 'मम्मणा' मन्मना: अव्यक्तवचनाः ' अतविकयकरणा ' अकान्तविकृतकरणाः अकान्तानि-अमनोज्ञानि विकृतानि-विरूपाणि च करणानि इन्द्रियाणि चक्षुरादीनि येषां ते तथा विकृतेन्द्रिया इत्यर्थः, ' णीया' नीचाः नीचजातिकुलगोत्रादिभिरधमाः, ‘णीय जण( अचेयणा ) इनकी चेतना शक्ति विशिष्ट चेतना शक्ति से रहित होती है ( दुभगा ) ये भाग्य हीन होते हैं ( अकंता ) मनोज्ञ नहीं होते हैं ( काकस्सरा ) काक के स्वर जैसा कठोर-अरुचिकारक-इनका स्वर होता है और वे ( हीणभिन्नघोसा ) हीन हस्व, भिन्न-गधे के स्वर की तरह बीच २ में त्रुटित स्वरवाले होते हैं ( विहिंसा ) मनुष्य इनसे पीछे पड़कर इन्हें ताडन-तर्जन आदि द्वारा विशेषरूप से दुःखित करते रहते हैं ( जडबहिरमूया ) ये जड-ज्ञानशून्य, बधिर-अवण शक्ति विकल और गूंगे होते हैं (मम्मणा) इनके वचन स्पष्टरूप में मुख से नहीं निकलते हैं अर्थात्-बोलते समय तुतलाते अथवा हलकाते हैं । ( अकंतविकयकरणा) इनकी चक्षुरादिक इन्द्रियां अमनोज्ञ एवं विकृत रूप रहा करती हैं (णीया ) इनकी जाति, कुल एवं गोत्र आदि सब अधम होते हैं, ५९५ धारे भासिन डाय छ, “अगंधा ” मे २६ तेमन शरीरमा हु यावती साय छ; “ अचेयणा" तेमनी येतना शहित विशिष्ट येतना शतिथी २हित डाय छ, “ दुब्भगो" ते मनसाय राय छ, “ अकंता” भना। डाता नथी, " काकस्सरा" 11111 पापा । ४ तेमनी माचार डाय छे. मने तेस। “हीणभिन्नघोसा" हीन-स्व, भिन्न-गधेडाना स्वनी
म १२ये पच्ये त्रुटित २१२१। डाय छ, “ विहिंसा" भास तेमनी પાછળ પડીને તેમને માર, કોધભર્યા શબ્દ આદિ દ્વારા વધારે દુઃખી કર્યા કરે छ. “ जडबहिरमूया" तेसो ४४-ज्ञानशून्य. १२॥ अने भू डाय छ, " मम्मणा" तेगाना शह! २५ष्ट खाता नथी मेटले ते मारती वमते तेथे। तोतय छ । मी मीन माले छ. “ अतविकयकरणा" तेमनी यक्षु माहिन्द्रियो भनाश भने विकृत राय छे, " णीया" तेमनी गति, गुण
For Private And Personal Use Only