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सुदर्शिनो टीका अ०२सू०१४ मृषावादिनां नरकादिप्राप्तिरूपफलनिरूपणम् २५५ प्राप्नुवन्त्यपिचेत् तर्हि हीनदीनतुच्छजातिकुलादिभिः अधन्या एव वक्ष्यमाणरूपेण दुःखबहुलशरीरं प्राप्ता दृश्यन्ते । कथंभूताः ? इत्याह- दुग्गया' दुर्गताः दुरवस्थां प्राप्ताः सर्वधा दरिद्रा-इत्यर्थः, दुरन्ताः दुःखेन अन्तः जीवनस्यावसानं येषां ते तथा 'परवसा' परवशाः पराधीनाः ‘अत्यभोगपरिवज्जिया' अर्थ भोगपरिवर्जिताः अर्था:-धनानि भोगाश्च-शब्दादयो विषयास्तैः परिवर्जिताःरहिताः । तथा ' अयुहिया' असुखिताः सुखरहिता - निरन्तरमाधिव्याध्यादि को प्राप्त हुए दृष्टिाय होते हैं। तात्पर्य इसका यही है कि मृपावादी जन नरक तिर्यच योनिमें जन्मते हैं। यदि वे किसी तरह नरकादिसे निकल कर मनुष्य भव को प्राप्त कर भी लेवें तो भी वहां वे हीन, दीन, तुच्छ जाति कुल आदि में ही जन्म धारण करते हैं और अधन्य होकर दुःख बहुल शरीर को धारण करते हुए दिखलाई देते हैं । यही बात सूत्रकार (दुग्गया) इत्यादि पदों द्वारा प्रकट कर रहे हैं, वे कहते हैं कि यदि वे किसी प्रकार मनुष्य पर्याय धारण भी कर लेवे तो भी वहां उनकी परिस्थिति ठीक नहीं रहती है-वे सदा ( दुग्गया ) दारिद्रयदुःख से सन्तप्त रहते हैं ( दुरंता) उनके जीवन का अन्त दुःखों से होता है ( परवसा) जीवन भर वे पराधीन बने रहते हैं। (अत्यभोगपरिव. ज्जिया ) अर्थ संपत्ति एवं शब्दादिक भोग पनसे, रहित होते हैं। ( असुहिया ) निरन्तर आधि, व्याधि, उपाधियों से पीडित रहने के कारण उन्हें सुख का अंश भी प्राप्त नहीं होता है । अथवा "अमुहिया" ઉત્પન્ન થાય છે તે પણ અત્યંત દુઃખયુક્ત સ્થિતિમાં નજરે પડે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે મૃષાવાદી લેકે નરક તિર્યંચ નિમાં જન્મ લે છે, પણ તેઓ કોઈ પણ પ્રકારે નરકાદિમાંથી બહાર નીકળીને મનુષ્યભવને પ્રાપ્ત કરે તે પણ ત્યાં તેઓ હીન, દીન, તુચ્છ જાતિ કુળ આદિમાં જ જન્મ પામે છે અને અન્ય-તિરસ્કૃત થઈને અત્યંત દુઃખયુક્ત દશામાં મનુષ્ય જીવન વ્યતીત ४२ छ. २१ पात सूत्र.२ " दुग्गया" त्याहि हो द्वारा प्रगट ४२ छे. તેઓ કહે છે કે તેઓ કોઈ પણ પ્રકારે મનુષ્ય નિમાં જન્મ લે છે તે ત્યાં तेमनी (सत सारी खाती नथी-तेमा सहा “ दुग्गयो " हारिद्रयना मेथी पाडाय छ, ' दुरंता" तेमना नना मतमोथी । भावे छे, " परवसा ” मापन तेथे! ५२॥धीन शाग छ, “ अत्थभोगपरिवज्जिया" A-Aपत्ति तथा Availa थी तसा २डित डाय छे, " असुहिया" नि२. તર આધિ, વ્યાધિ અને ઉપાધિથી પીડાયા કરે છે અને તે કારણે તેમને સુખને म ५७ पास थ नथी, 424 “ असुहिया " नी सकृत छाया "असुहृदः "
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