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प्रश्नव्याकरणसूत्रे घाती 'पावकम्मकारी ' पापकर्मकारी दुष्कर्माचरणशील: ' अकम्मकारी' अकर्मकारीअनुचितकर्मकारी — अगम्मगामी ' अगम्मगामी भगिन्यादिगमनकारी, चास्ति । अयं 'दुरप्पा' दुरात्मा-दुष्टात्मा ‘बहुएसु य' बहुकैः च = अनेकैः 'पातगेसु' पातकेपु-भापकर्मसु 'जुत्तो' युक्तः संलग्न इति । एवं 'भदगे' भद्रके निर्दोषे ‘मच्छरी' मत्सरिणः = परगुणद्वेपिणः 'जंपंति' जल्पन्ति= ब्रुवन्ति । कीदृशास्ते मृपावादिनः ? इलाह-' गुणकित्तिनेहपरलोगनिप्पिवासा' गुणकीर्तिस्नेहपरलोकनिष्पिपासाः गुणाः = विनयार्जवादयः, कीर्तिः= यशः स्नेहा भूतेषु प्रीतिः, परलोकः-जन्मान्तरं तेषु निष्पिपासाः निराकाङ्क्षाः एवमुक्तप्रकारेण एते 'अलियवयणदखा' अलीकवचनदक्षाः मृपाभापणनिपुणाः, ' परदोसुष्पायणसंप्सत्ता' परदोषोत्पादनसंसक्ताः = परदोषाविष्करणतत्पराः यह ( विस्संभघायओ) विश्वासघाती है ( पावकम्मकारी ) पापकर्मकारी है, ( अम्मकारी ) अनुचित कामों को करता रहता है, तथा (अगम्मगामी) अगम्यगामी है-भगिनी आदिका सेवन करने वाला है । (अयं. दुरप्पा ) यह दुरात्मा ( बहुएस य पातगेसु जुत्तो ) अनेक पापकर्मों में लगा रहता है । ( भद्दगे ) निर्दोष पुरुष में (मच्छरी) दूसरों के गुणों से द्वेष करने वाले, तथा (गुणकित्तिनेहपरलोगनिपिवासा) विनय आर्जव आदि गुणों में, कीर्ति में तथा स्नेह-जीवों के ऊपर प्रीति रखने में और परलोक में आकांक्षा विहीन पुरुष ( एवं पंजंति ) इस प्रकार बोलते हैं। इन्हें अपने परलोकके सुधार की भी कोई चिंता नहीं होती है। ( एवं एए) इस प्रकार ये ( अलियवयणदक्स्वा ) असत्य बोलने में बड़े चतुर, तथा ( परदोसुप्पायणसंसत्ता) दूसरों के दोषों को प्रकट वि विस्संभघायओ" ते विश्वासघाती छ, “ पावकम्मकारी " पापकृत्यो रे छ, “ अम्मकारी " मनुथित कृत्ये। ४२॥३॥ , “अगम्मगाभी '' २५भ्याभी छ-मागिनी माहिन सेवन ४२नार छ, “ अयं दुरप्पा" २॥ दुरात्मा " बहुएसु य पातगेसु जुत्तो” भने ५।५४मा सीन २ छ" " भदगे" निषिधुरुबानो मच्छरी" तथा अन्यना गुणाना द्वेष ४२॥२, तथा " गुणकित्ति नेह परलोग निस्पिवासा" विनय मार्ग माहि गुणाथी २डित, प्रीति तथा स्नेहथी २डित, मने ५११४ी 24ial २हित “ एवं जपति ” उ५२ प्रभारी मोसे छे. तेने पाताने ५२वो सुधारवानी ५ चिन्ता हाती नथी. “एवं एए" AL शते ते " अलियवयणदक्खा" असत्य मालवामा धणे! Cि.Yए, तथा “ परदोसुप्पायणसंसत्ता” मन्यना होषाने २ ४२वामi or eीन मेयो ते भृषा.
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