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मुदर्शिनी टीका अ० २ सू० ३ येन भावनालीक वदन्ति तन्निरूपणम् १७७ 'खंडरक्खा' खण्डरक्षा शुल्कपालाः-राजग्राह्यद्रव्यसंग्राहका इत्यर्थः, 'जियजयकरा' जितगतकराः तत्र जिताः प्रतिस्पर्द्विगतकरैः पराजयं प्राप्ताः, घूतकराः= द्यूतक्रीडकाः 'गहियगहणा' गृहीतग्रहणाः = गृहीतानि स्थापितानि ग्रहणानि = बन्धक द्रव्याणि यैस्ते 'कक्कगुरुगकारगा' कल्कगुरुककारका = कल्कगुरुकं -माया संभारसंभृतं वाक्यं तत्कारकाःऋपटिन इत्यर्थः, कुलिंगी' कुलिङ्गिना कुत्सिता लिङ्गिनः कुलिङ्गिनः=कुतीथिकाः ‘उवहिया' औपधिका-मायाचारिणः कपटिन इत्यर्थः ‘वाणियगा' वाणिजका व्यापारकारिणः, ' कूडतुलकूडमाणी' कूटतुलाकूटमानिनः क्रूटा-कपटयुक्ता-न्यूनाधिका तुला येषां ते कूटतुलाः कूटमानिन: कूटं वैषम्ययुक्तं यन्मानंतोलनं तदस्ति येषां ते तथा 'कूडकाहावणोव जीवया ' कूटकार्षापणोपजीविताः-कूटकार्षापणेन उपनीवन्ति ये ते तथा-कूटमुद्रोपजीविनः इत्यर्थः, 'पडकारगा' पटकारकाः-तन्तुवायाः-वस्त्रनिर्मापका इत्यर्थः, इसी तरह ( चारभडा ) जो चार गुप्तचर-सी. आई. डी होते हैं, भटयोधा होते हैं, ( खंडरक्खा ) खंडरक्ष-राजनाथद्रव्य के संग्राहक होते हे, (जियजयकरा ) जितद्यूतकर-प्रतिस्पर्धी जुआरियों द्वारा पराजित हुए जुआरी होते हैं, (गहियगहणा) गृहीतग्रहण-गहना रखकर जो दूसरों को व्याज पर रूपया देने वाले होते हैं ( कक्कगुरुगकारगा) कल्क गुरुक कारक-मायाचारी से भरे हुए वचनों को बोलने वाले होते हैं, अर्थात् कपटी होते हैं, ( कुलिंगी ) कुतीथिक होते हैं, ( उवहिया ) औपधिक-मायाचारी होते हैं, ( वाणियगा) वाणिजनक-व्यापारी होते हैं, असत्यभाषण करते हैं । (कूडतूलतूलमाणी) जो न्यूनाधिक तराजू रखते हैं, नापने तौलने के बांट कमती बढती रहते हैं ( कूडकोहावणोवजीविया) बनावटी रूपया पैसा बनाकर जो अपना निर्वाह करते हैं, मे प्रमाणे "चारभडा" २ शुतय।-सी. भा. 30 डाय छ, १४-योद्धा डाय छ, २ "खंडरक्खा" २१४-२NGrय माना द्रव्यना सब ४२ना२ डाय छ,२ “जियजयकरा" तित:२-प्रति२५धि कुमारी ॥२॥ ५२लित थयेस गारी हाय छ, “ गहियगहणा" 2डीत अडए- भान रे मागत आने व्यारे नji पी२॥२ डाय छ, “ ककगुरुगकारगा" ४६४ शुरु १२४२ भायाचारी क्यने। मासना। डाय छ-340 हाय छ, “ वाणियगा" २ व्यापारी खाय छ, रे " कुलिंगी" तीथि४. डाय छ, “ उवहिया" गोपधि:भायायारी हाय छ, त मसत्य मोसे छ. " कूडतूलतूलमाणी "२ मोटा ત્રાજવાં રાખે છે, માપવા તથા જોખવાનાં માપ વધારે કે ઓછા રાખે છે, "कूडकाहावणोवजीविया " नी ३१ीमा, पैसा मा मनावीन रे ? प्र०२३
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