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सुदर्शिनी टीका अ० २ सू० ५ नास्तिकवादिमतनिरूपणम्
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क्वाणरवि नत्थि ' प्रत्याख्यानं सावध कर्मनिवृत्तिलक्षणमपि नास्ति धर्मस्याभावे तत्साधनस्य प्रत्याख्यानस्याप्यभावः । अस्य मृषावं, सर्वज्ञ वचनविरोधात् । 'न वि अस्थि' नापि च स्तः ' कालमच्चू ' कालमृत्यू = कालः = भूतभविष्यद् वर्तमान लक्षणः कालः मृत्युः=मरणं च । अथवा नापि चास्ति कालमृत्युः = काले=मायुव्यकर्मदलिकक्षयाऽवसरे मृत्युर्मरणम्। 'अरिहंता' तथा अर्हन्तस्तीर्थकरा: 'चक्कट्टी' चक्रवर्तिनः बलदेवा वासुदेवा वा न सन्ति प्रमाणाभावात् । नापि सन्ति ' के ' astu - गौतमादयः, 'रिसओ' ऋषयः = शमदमसंयमाद्यनुष्ठानपरायणाः ऋषयो तरह कीटक में प्रसिद्ध पुरुषार्थ का अपलाप कर केवल प्रमाणातीत Profare स्वीकारा कैसे हो सकता है। पुरुषार्थ का त्यागकर इसकी स्वीकृति से तो मृषावादिता ही इसमें आती है । (पच्चकखाणमवि for ) araana से निवृत्ति होनी इसका नाम प्रत्याख्यान है । यह कहना कि धर्म के अभाव में धर्म के साधनभूत प्रत्याख्यान का भी अभाव है ! सो यह कथन भी मृषावादरूप इसलिये है कि इसमें सर्वज्ञ के वचन से विरोध आता है | तथा ( न वि अस्थि कालमच्चू य ) इस प्रकारकी मान्यता कि-भूत, भविष्यत् और वर्तमानकाल नहीं है, मरण भी नहीं है, अथवा आयुकर्म के दलिंकों के क्षय होने के अवसर में भी मरण नहीं होता है, (अरिहंता चक्कवट्टी, बलदेवा वासुदेवा नत्थि ) अर्हन्त - तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव ये सब प्रमाण के अभाव से कोई भी नहीं हुए हैं और ( नेवत्थि के इरिसओ) न गौतम आदि ऋषि ही हुए हैं, क्यों कि शम, दम, संयम आदि अनुष्ठानों में पराय
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પણ પ્રસિદ્ધ પુરૂષાથનું આરોપણ કર્યાં પછી પ્રમાણાતીત નિયતિવાદ કેવી રીતે સ્વીકાર્ય ખની શકે ? પુરૂષાના ત્યાગ કરીને તેની સ્વીકૃતિ કરવામાં તે મૃષાवाहिता ४ रडेल छे. “ पञ्चकखाणमवि नत्थि " सावध - पायाभेोथी निवृत्त થવું તેનું નામ પ્રત્યાખ્યાન છે. એમ કહેવું કે ધર્મના અભાવે ધમના સાધ નરૂપ પ્રત્યાખ્યાનના પણ અભાવ છે. એવું કથન પણ તે કારણે મૃષાવાદરૂપ છે કે તેમાં સર્વજ્ઞનાં વચનાના વિરોધ થાય છે તથા न वि अस्थि काल મલ્લૂ ચ'' આ પ્રકારની માન્યતા કે ભૂત, ભવિષ્ય અને વર્તમાનકાળ નથી, મરણુ પશુ નથી, અથવા આયુ કર્માંના સમૂહના ક્ષય થવાના અવસર આવે તેા પણ મરણ થતું નથી, " अरिहंता चक्कट्टी, बलदेवा वासुदेवा नत्थि " प्रभाणुना अलावे, अर्हन्त-तीर्थं५२, यम्वर्ती मजहेव, वासुदेव वगेरे हे पशु थयां नथी अने“ नेवत्थि के इरिसओ " गौतम याहि ऋषि थयां नथी, डार }શમ, દમ સંયમ આદિ અનુષ્ઠાનેામાં પરાયણ ડાય તે જ વ્યક્તિને ઋષિ
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