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प्रश्नव्याकरणसूत्रे दस्य 'क्य नोगस्स ' वचनयोगस्य 'अणेगाई' अनेकानि' तीसं ' त्रिंशत् ' नामधेज्जाणि' नामधेयानि नामानि ' होति ' भवन्ति ।। सू० २॥
एवं ' यन्नामे 'तिद्वारमुक्त्वा यथाकृतं येन मन्दतीबादि परिणामेन अलीके वदन्ति ये च जना वदन्ति इति तृतीयपश्चममन्तरद्वयमाह-तं चे 'त्यादिना
मूलम्-तं च पुण वदंति केइ अलियं पावा असंजया,अविरया, कवडकुडिल कडुय चटुल भावा कुद्धा लुद्धा भयाय हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजयकरा य गहिय गहणा कक गुरुग कारगा कुलिगी उवहिया वाणियगा य कूडतूल-कूडमाणी कुडकाहा वणोवजीविया पडगारका कलाया कारुइजा वंचणपरा चारियचाटुयार नगर गोत्तिय परियारगा दुइवाइसूयक अणबलभणिया य पुवकालिय वयण दच्छा साहसिया लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहि चित्ता उच्चच्छंदा अणिगाहा अणियता छंदेण मुकवाया भवति ॥ सू. ३॥
टीका-तं च तच्च 'पुण' पुनः 'अलिय' अलोकं 'केह' केऽपि 'पाया' पापा: पापिनो वदन्ति न तु साधवस्तेषामलीकवचननिष्टत्तत्वात् । तरह के ( सावजस्स ) पापसहित इस (अलियस वयजोगस्स ) अलीकमृषावाद-वचनयोगके ( अणेगाइं) अनेक नाम भी (होंति) हैं ॥सू-२॥
इस प्रकार से द्वितीय द्वार द्वारा इसका कथन कर अब सूत्रकार " जयकओ-यथाकृत : "जैसे यह किया गया है इस तृतीय द्वार का, तथा "जेवि य करेंति पावा-येऽपि च कुर्वन्ति पापा:" जो पापीजन इसे करते हैं, इस पंचम द्वार का प्रतिपादन करते हैं-'तं च पुण वदति ' इत्यादि। युत मा “ अलियरस वयजोगस्स" मी-भूषावाह-वयनयान “ अणेगाई" मने नाम ५५] होंति" छे ॥ २-२ ॥ ___ प्रभारी थी R 4 तेनु थन रीने वे सूत्र४२ " जहयकओ -यथाकृतः " यो रीत ते ४२॥या छे ते त्री द्वा२नु, तथा “ जेविय करें'ति पावा-येऽपि च कुर्वन्ति पापाः" ४या पायी ७३ तेनु सेवन २ छ, पायमों सरनु प्रतिपादन रे --" तं च पुण वदंति" त्याहि.
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