________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११४
प्रश्नव्याकरणसूत्रे स कीदृशो निर्घोषः ? इत्याह- रसिये ' त्यादि।
मूलम्-रसिय-भणिय-कुविय-उक्कूइय-निरयपालतजियंगेण्ह कम पहर छिंद भिंद उपाडेहुक्म्यणाहि कत्ताहि विकत्ताहि यभंजहण विहण विच्छुभोच्छुब्भ आकड्डू विकड्ड किं णजपसि? सराहि पावकम्माइं कियाइं दुकयाइं एवं वयणमहप्पगम्भो संपडि सुयसहसंकुलो उत्तासओ सया निरयगोयराण महाणगरडझमाणसरिसो निग्घोसो सुव्वए अणिट्ठो तहियं नेरइयाणं जाइज्जंताणं जायणाहिं ॥ सू०३१ ॥
टीका-'रसिय-भणिय - कूइय - उक्कूइयनिरयपालतज्जियं ' रसितभणित-कुपितोत्कूजित-नरकपाल-तर्जितं-तत्र-'रसिय ' रसिताः शूकरवद् घोरशब्दकारकाः, 'भणिय' 'भणिताः उच्चैः शब्दकारकाः, 'कूइय' कूजिताः अव्यक्तचनिकारकाः, 'उक्कूइय' उस्कूजिता भयजनकाव्यक्तशब्दकारकाः ये 'निरय(णीसिद्वो ) प्रबल दुःखजनित महा शब्द वहां ' सुना जाता है। (यह आगे से सम्बन्ध है ) ॥ सू. ३० ॥
उस समय परमाधार्मिक परस्पर में किस प्रकार की बातचीत करते है ? यह सूत्रकार कहते हैं-' रसिय-भणिय' इत्यादि।
टीकार्थ-नरकों में नारकियों को हरएक प्रकारसे व्यथा पहुँचानेवाले वे परमाधार्मिक नारकियों को फिर अधिक कष्ट पहुँचाने के अभिप्रायसे (रसिय-भणिय-कूइय-उकूइय-निरयपालतज्जियं) (रसिय) सूअरके जैसे भयंकर घोर शब्दों को (भणिय ) उच्चस्वर से करते हैं ! उस में वे (कूझ्य ) अव्यक्त ध्वनि करते हैं ( उकूइय ) इस से नारकियों को और पामा मावे छे. मने ते॥ vatथी. व्यास मेवे ' णीसिटो" अ - જનિત ચિત્કાર ત્યાં સંભળાય છે' (આ પ્રમાણે આગળના શબ્દો સાથે समय छे.) ॥ सू. ३०॥
તે સમયે પરમધાર્મિક પ્રસ્પર કેવી વાત કરે છે તે સૂત્રકાર બતાવે - "रमिय-भजिय" त्यादि.
ટીકા-નરકમાં નારકીઓને દરેક રીતે વ્યથા પોંચાડનાર તે પરમધામિકે, नाहीयमाने पर पधारे प्रष्ट भावाने भाट "रसिय-भणिय-कूइय, उक्कूइय -निरयपालतज्जियं" " रसिय " सूचना | लय ४२ घोर पनि " भणिय" ६२ परे अरे छ. तेमा " कूइय" भव्यत पनि अरे छ. "उक य"
For Private And Personal Use Only