________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदशिनी टीका भ० १ सू० ४२ तिन्द्रियद्वीन्द्रियदुःखनिरूपणम् ॥ कादिकेषु-कुन्थुः क्षुद्रजन्तुविशेषः, पिपीलिका प्रसिद्धा, 'उद्देहिया' उपदेहिका =' उदेही' इति भाषा प्रसिद्धा, इत्यादिकेषु ' तेइंदियाण' त्रीन्द्रिगणां, ' अणूणगेहिं ' अन्यून केषु-पूर्णेषु ' अहिं' अष्टसु 'जाइकुलकोडिसयसहस्सेहि' जातिकुलकोटिशतसहस्रेषु-जातौ त्रीन्द्रियजाती यानि कुलानि = कुन्थुपिपीलिकायाकाराणि, तेषां कोटयः-विभागाः अन्तर्भेदाः, तेषां शतसहस्रेषु लक्षेषु परिपूर्णाष्टलक्षत्रीन्द्रिय जातिकुलकोटिषु-इत्यर्थः, 'तहिं तहिं चेव' तत्र तत्रैब त्रीन्द्रियेषु ' जम्मणमरणाणि' जन्ममरणानि ‘अणुहवंता' अनुभवन्तः, नेरइयसमा णतिव्वदुक्खा' नैरयिकसमानतीव्रदुःखा-नरकसदृशदुःखयुक्ताः ‘फरिस-रसणघाण-संपउत्ता' स्पर्श रसनघ्राणसम्प्रयुक्ता-स्पर्शादिभिस्त्रिभिरिन्द्रियैर्युक्ताः 'संखेज्जग ' संख्यातक=संख्यातवर्षसहस्रं कालं यावत् 'भमंति' भ्रमन्ति ।मु०४२॥ करते हैं-' तहेव ' इत्यादि।
टीकार्थ-(तहेव) जिस तरह पापी जीव चतुरिन्द्रिय जीवों में जन्म मरण करके दुःखों को भोगते हैं उसी तरह वे ( कुंथु पिवीलिया उद्देहियाइएस) कुंथु, पिपीलिका, उदेही आदिक त्रीन्द्रिय जीवों में कि जिन (तेइंदियाण ) तेन्द्रिय जीवों की (अणूणगेहिं अहिं जाइकुलकोटिसयसह. स्सेहि ) उन पूर्ण आठ लाख जातिकुल कोटियों में (तहिं तहिं चेव जम्ममरणाणि अणुहवंता) बार बार वहीं पर जन्म मरणों को करते हुए ( नेरइयसमाणतिव्वदुक्खा ) नरकगति जैसे असह्य दुःखो को भोगते हुए इनके (फरिस-रसण-घाण संपउत्ता ) स्पर्शन, रसना और प्राण इन तीन इन्द्रिय युक्त हुए ये तेन्द्रिय जीव (संखेज्ज कालं ) संख्यात हजार वर्षों तक (भमंति ) उसी पर्याय में परिभ्रमण करते हैं ।सू०४२॥ 2-"तहेब" प्रत्या.
टी -"तहेव" २५ ५५ वो यतुरिन्द्र म म भ२९ पाभीन मो नागवे छ तेम तेम। "कुंथुपिवीलियाउद्देहियाइएसु" इथु, 1.3., SEE ALL त्रिन्द्रिय वोमा म से छे. भने ' तेइंदियाण" तेन्द्रिय वानी "अणूणगेहि अट्टहिं जाइकुलकोटिसयसहस्से हिं" -304 ५२नी. तियोनिमा “ तहिं तहि चेव जम्ममरणाणि अणुहवंता" पावा२ ०४म भरण अनुभवतi "नेरहयसमाणतिव्वदुक्खा " न२४ गति असर हुमो माग छ भने "फरिस-रसण-घाण संपउत्ता' २५०°न, २सना भने प्राए थे अ न्द्रियो। डाय छ. मेवा ते तेन्द्रिय ७यो “ संखेज्जकालं " Avथात १२ वर्षा सुधा "भमंति" ते ॥ योनिमा परिभ्रम ४ा ४२ छ॥ २-४२ ।।
For Private And Personal Use Only