________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११२
प्रश्नव्याकरणसूत्रे
,
'हं' इति वाक्यालङ्कारे तेषां ' वयणंसि ' वदने मुखे 'छुभंति' क्षिपन्ति = पाययन्तीत्यर्थः ।। ० २९ ॥
' इत्यादि ।
ततो नारकाः किं कुर्वन्ति ? तदाह - 'तेण दुड्ढा मूलम् - तेण दड्ढा संतो रसंति य भीमाई विस्सराई रुवंति कलुगाई परिवगा इव एवं पलविय विलाव कलुणो कांदय - बहुरुन्न रुइय सो परिदेविय रुद्धबद्धय नारगारव संकुलो णीसिट्टो || सू० ३० ॥
1
टीका – 'तेज' तेन=मुख निक्षिप्तेन तप्तेन त्रपुणा ' दङ्कासंती' दग्धाः सन्तः ' भीमाई' भीमान् भयानकान् = हृदयक्षोभजनकान् 'विस्सराई 'विस्वरान् =आर्तनादान् 'हा ! हा!' ' हतावयम् ' इत्यादिरूपान् 'रसंति' रसन्ति = कुर्वन्ति । सूत्रे प्राकृतत्वान्नपुंसकम् । तथा 'पारेवयगाइव' पारावतकाइव = कपोता इव ' कलुगाई' करुणानि हृदयद्रावकाणि रुवंति रुदन्ति । एवं ' ' पलालहं ) कलकलाते उस अत्यंत गरम सीसे को ( वयसि ) मुख में (छुभंति) डाल देते हैं, अर्थात् उन नारकियों को पिला देते हैं । सू.२९ ॥ इसके बाद वे नारकी क्या करते हैं अय सूत्रकार इस विषय को स्पष्ट करते हैं-' तेण दड्रा संतो ' इत्यादि ।
टीकार्य (तेण दड्ढा संतो) मुख में जबर्दस्ती फाड़कर डाले गये उस तस सीसेसे दग्ध हुए वे नारकी (भीमाई) हृदय को क्षोभ पहुँचाने वाले ऐसे ( विसराई ) आर्तनादों को (रसंति) करते हैं- “ हाय ! हाय ! मार डाला " इस प्रकार से चिल्लाते हैं । तथा ( पारेवयगा इव ) कनू - तरों की तरह ( लुगाई ) हृदय को द्रवीभूत करने वाला आक्रंदन
"
हडामोथी “ विद्दाडेउ' ” पडणां उरीने तेमां "कलकलह " उणणता ते अत्यंत गरम सीसाने ' वयणंसि" भुजनां " छुमति " रेडी हे छे. भेटले ते नारडीमने भीवरावे छे. 11 सू. २८ ॥
ત્યારબાદ તે નારકી જીવા શું કરે છે, વિષયને હવે સૂત્રકાર સ્પષ્ટ કરે " तेण दड्ढा संतो " इत्यादि.
टीअर्थ - " तेण दड्ढा संतो " लेर सभथी भोटु डोरीने रेडवामां यावेस ते गरम सीसाथी हाञेसा ते नारडी वो "भीमाई” हृहयने क्षेोल पभाडे तेवा “विस्तराई" भर्त्तनाहो “रसंति” रे छे - “ हाय ! हाय ! भारी नाच्या " 241 4312 alâù 413 &; dai ‘'qitaanışa” syakıl du “agon' हृदय द्राव आ "वंति " उरे छे, " एवं " था अारना तेभना “पलविय
For Private And Personal Use Only