________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
-
-
२३६
प्रश्नव्याकरसूत्रे उपसंहरन्नाह-एवं ते' इत्यादि।
मूलम्-एवं ते दुक्खसयसंपलित्ता नरगाओ आगया इहं सावसेसकम्मा तिरिक्खपंचिदिएसु पार्वति पावकारी कम्माइं, पमायरागदोसबहुसंचियाइं अइव असायक: कसाई ॥ सू० ४०॥
टीका-एवम्-उक्तप्रकारैः ते = जीवा प्राणातिपातकारकाः 'दुक्खसयसंपलित्ता' दुःखशतसम्प्रदीप्ता दुःखशतैः सम्प्रदीप्ताःसन्तप्ताः 'नरगाओ' नरकात् -इह-तिर्यग्लोके 'आगया 'आगताः उत्पन्नाः 'सावसेसकम्मा' सावशेषकमणिः अवशिष्टपापकर्माणः ‘पावकारी' पापकारिणः 'तिरिक्वपंचिदिएसु' तिर्यक् पञ्चेन्द्रियेषु 'पमाय-रागदोसबहुसंचियाई' प्रमादरांगद्वेषवहुसश्चितानिपमादः विषयाघभिष्वङ्गलक्षणः, रागःमायालोभलक्षणः, द्वेषःक्रोधमानलक्षणः, तः बहूनि सश्चितानि=उपार्जितानि 'अईव' अतीव-अत्यन्तम् 'असायकक्कसाई' अशातकर्कशानि = अशातेषु अशातवेदनीयकर्मोदयप्रभवेषु दुःखेषु कर्कशानि कठोराणि 'कम्माणि' कर्माणि-कर्मजन्यानि दुःखानि 'पाति' प्राप्नुवन्ति,
अब उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं-' एवं ते ' इत्यादि। टीकार्थ-(एवं इस प्रकार से (ते) वे प्राणातिपातकारक जीव (दुक्खस यसंपलित्ता) सैकड़ों दुःखों से सन्तप्त होकर (नरगाओ) नरक से (इह ) इस तिर्यग्लोक में (आगया ) उत्पन्न होते हैं और ( सावसेसकम्मा ) पापकर्म उनका अवशेष रहने के कारण वे (तिरिक्ख पंचिदिएसु) तिर्यश्च पंचेन्द्रियों में (पमाय - रागदोसबहुसंचियाई ) विषया यभिष्वरूप प्रभाद से मायालोभरूप राग से और क्रोधमानरूप द्वेष से उपार्जित किये गये (अईच असाय कक्कसाई कम्माइं) अशात कर्कश कर्मों
वे ५५२ ४२i सूत्रा२ ४ छ-" एवं ते" त्याहि
टी -“एवं" मा प्रमाणे "ते" ते प्राशुवध ४२ना२ ० "दुक्खसयसपलित्ता" से हुमाथी भी थने " नरगाओ" नमाथी " इह " ॥ तिय भi “आगया" उत्पन्न थाय छ भने “सावसेसकम्मा" तेभना ।५४म माडी २स डावाथी ते “तिरिक्खपंचिदिएसु" तिय य पश्यन्द्रियोभा “पमाय रागदोसबहुसंचियाई " विषयाहिनी मलिदा ३५ प्रमाथी, भाया बोल ३५ राथी, भने ओधमान ३५ द्वेषयी Gilad रे " अईत्र असाय कक्कसाई कम्माई " All ४४ भनि माता वहनीय हयने २णे पारित
For Private And Personal Use Only