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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
ततस्तेषां यथा भवति तथा प्रतिपादयन्नाह - ' पु०त्रकम्मो० ' इत्यादि ।
मूलम् - पुत्रकम्मोदयोवगया पच्छाणुस एणडज्झमाणा निंदता पुरेकडाई कम्माई पावगाई तहिं तहिं तारिसाणि ओसण्णं चिक्कणाई दुक्खाई अणुभवित्ता तओ यआउक्खएणं उवट्टिया समाणा बहवे गच्छति तिरिय वसहिं दुक्खुतारं सुदारुणं जम्मण मरण जरा वाहि परियहणारहद्वं जल थल खहचरपरोप्परविहिंसणपचं ॥ सू० ३७ ॥
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टीका - 'पुत्रकम्मो यो गया' पूर्वकर्मोदयोपगताः कृतानां पूर्वेषां कर्मणामुदयेन उपगताः तिर्यगादिकुयोनिषु गमनोन्मुखास्ते नारकाः ' पच्छाणुसपण ' पश्रादनुशयेन = पश्चात्तापेन ' डज्झमाणा ' दह्यमानाः = सन्तप्यमानाः ' पुरेकडाई' पुराकतानि = पूर्वाचरितानि 'पावगाई' पापकानि प्राणातिपातादीनि 'णिदंता ' निन्दन्तः = मिथ्यात्वाज्ञानमोहान्धेन महारम्भमहापरिग्रहसमासक्तेन मया पूर्वभवे कुशा
इसके बाद उन नरकों की जो स्थिति होती है- विचार धारा बंधती है, सूत्रकार अब उसका प्रतिपादन करते हैं-' पुव्वकम्मोदयोवगया ' इत्यादि ।
टीकार्थ - (पुच्चकम्मोदयोवगया) कृत पूर्वकर्मों के उदय से तिर्यग् आदि कुयोनियों में गमन के सन्मुख बने हुए वे नारक (पच्छाणुस एण) पश्चात्ताप से (ज्झमाणा ) सन्तप्यमान होकर अपने ( पुरेकडाई ) पूर्वांचरित ( पावगाई) प्राणातिपातादिक ( कम्माई ) पापकर्मों की ( जिंदता) इस प्रकार निंदा करने लगते हैं-" मिध्यात्व, अज्ञान तथा मोह से अन्ध बने हुए मैंने महा आरंभ और महा परिग्रह में आसक्त होकर पूर्वभव
ત્યાર ખાદ તે નારકી જીવેાની જે વિચારધારા ચાલે છે તેનું હવે સૂત્ર
२ प्रतिपादन छे - " पुव्वकम्मोदयोवगया ” इत्यादि.
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टीअर्थ - " पच्छाणुसपण " पूर्वे यांना उदयथी तियंशू आदि योनियोमां ગમન કરવાની પરિસ્થિતિમાં મૂકાયેલ તે નારકી જીવેા “ पच्छाणुसपण " पश्चात्तापथी " " संतस ने पोते " पुरेकडाई ” पूर्वाथरित “ पावउज्झमाणा गाई " आशातियातादि “ कम्माई ” पाय भनी “दिता " या प्रमाणे निहा કરવા માંડે છે-“ મિથ્યાત્વ, અજ્ઞાન તથા મેહુથી અધ બનેલા એવા મે' મહા આરંભ અને મહાપરિપ્રતુમાં આસક્ત થઈને, પૂર્વભવમાં દની અણી પર
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