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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
मनुष्य क्षेत्रवहिर्भाविपक्षिणः = ' खयदर विहाणकर य एवमाई' खचर विधानाः कृताः, तानेवमादीमुक्तमकारान्। तथा 'जलथलखचारिणो य-पंचिदिए पगणे' जलस्थलखचारिणश्च पञ्चेन्द्रियान पशुगणान् 'त्रियतिय चउरिदिए' द्वित्रिचतुरिन्द्रियान् 'विवि जीवे' विविधान् जीवशन् 'पियजीविए' प्रियजीवितान् ' मरणदुक्खपडिकूले' मरणदुःखप्रतिकूलान् 'वराए' वराकान=दीनान् 'बहुसंकिलद्वकम्मा' बहुसंक्लिष्टकर्माणः समधिकदुष्टाचरणाः जनाः 'हणंति' घ्नन्ति = मारयन्ति ॥ सू०१० ॥ एवं प्राणिवधस्य प्रकाराण्यभिधाय सम्प्रति तत्प्रयोजनप्रकाराण्याह'इमेद्दि' इत्यादि ।
मूलम् - इमेहिं विविहिं कारणेहिं, किं ते? 'चम्म वसा-मंसमेय सोणिय जग - फिफिस - मत्थुलिंग हिय--अंत-पित्त- फोफस दंतट्ठा - अट्ठिी - मिंज - नह- नयण- कण्ण-पहारुणि--नक्क-- धर्माणि-लिंगदाढि पिच्छ - विस-विसाण - बालहेउं ॥ सू० ११ ॥
विहाणाकए य) ये मनुष्य से बाहिर रहने वाले पक्षी । ये सब खेचर जातिके प्रकार हैं । इन्हें तथा ( एवमाई ) और भी इनसे भिन्न ओ (जलथल खचारिणो य पंचिदिए पसुगणे) जलचर, स्थलचर, एवं खेचर पञ्चेन्द्रिय पशु हैं उनको इसी प्रकार ( वियति
उरिदिए य) द्वीन्द्रिय, तेन्द्रिय, और चतुरिन्द्रिय ऐसे (विविहे जीवे) नानाप्रकार के जीवों को कि जिन्हें (पियजीविए) अपने प्राण प्रिय हैं और ( मरण दुक्खपडिकूले ) सरण जन्य दुःखों से जो सदा डरते रहे हैं, ये दुःख जिन्हें प्रतिकूल हैं, एवं जो (बराए ) दीन हैं उन्हें (बहुसंकि लिट्टकम्मा) अत्यन्त दुष्ट ओचरण वाले मनुष्य ( हणंति) मारते हैं । सू १० ॥
खयर, विहाणाकए य" ते मनुष्यथी हर रहेनार पक्षी छे से मघा मेयर भतिना अक्षरो छे, तेभने तथा “पत्रमाई” ते सिवायना जीन याशु ने " जलभल खचारिणो य पचिदिए पशुगणे " ४२, स्थणयर अने पेयर ययेन्द्रिय पशु छे तेभने तथा येन प्रमाणे " बियतिय चरिदिए य " द्वीन्द्रिय, त्रिन्द्रिय, यतुरिन्द्रिय मेवां " विविद्दे जीवे " विविध प्रानां भवा के भने “ पियजीबिए " पोताना आशु प्रिय छे भने “मरण दुक्खपडिकूले" भरगुन्नन्य दुःपोथी ने सहा उरतां रहे छे, ते हुःयो भेभने प्रतिपूज छे, भने ? “वराए" डीन छे तेभने “ बहुस 'किलिट्ठकम्मा” अत्यंत दुष्ट आभरण वाजा मनुष्यो "हणंति" से छे ॥ सू. - १०॥
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