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प्रश्नम्याकरणसूत्रे एवं प्रकारैः 'बहुहिं ' बहुभिः कारणसएहिं ' कारणशतैः-प्रयोजनशतैः 'भणिए' भणितान् उक्तान् 'अभणिए य' अभणितांश्च अनुक्तांश्च, एवमादीनुक्तप्रकारान् 'तरुगणे' तरुगगान् बनस्पतिसमूहान् हितंति' विनाशयन्ति ॥०१८ ।
कीदृशान् जीवान् कीदृशा हिंसकाः किमर्थं घ्नन्ति ? इत्याह-'सत्ते' इत्यादि। ___ मूलम्-सत्ते सत्तपरिवजिए उवहणंति दढमूढा दारुणमई कोहा माणा माया लोभा हासा रती अरती सोय वेदस्थ जीय धम्मत्थ कामहेऊ सवसा अवसाअट्ठाए अणहाए य तस. पाणे थावरे य हिंसंति ॥ सू० १९ ॥
टीका-'दहमूढा' दृढमूढाः सातिशयविवेकविकलाः, 'दारुणमई' दारुणमतया राशयाः जनाः, 'सत्तपरिवज्जिए' सत्त्वपरिवर्जितान् बलहीनान्
और भी इनसे अतिरिक्त (बहुहिं कारणसएहिं) अनेक प्रयोजनों के लिये (भणिए अभणिए य) जो यहां पर कहे गये और जो नहीं कहे गये हैं, (एवमाई) उन सब तरुगण वनस्पति समूहकी हिंसा करते हैं। संसारी अबुधजन इन पूर्वोक्त वस्तुओं के निर्माण के लिये वृक्षों को काटते हैं। वृक्षों को काटना ही वनस्पति जीवों की हिंसा करना है। इन उपर्युक्त वस्तुओं का निर्माण वृक्षों के काष्ठ से होता है । ॥ सू० १८ ॥ .. अस स्थावर जीवों को कैसे २ भावों से युक्त होकर हिंसक जन मारते हैं सूत्रकार इस सूत्र द्वारा स्पष्ट करते है-'चत्ते सत्तपरिवजिए' इत्यादि।
टीकार्थ-(ढमूला) जो सातिशय विवेक से विकल हैं-जिनके विवेक “अण्णेहिं एवमाइएहिं" ते सिवायना “ बहुहिं कारणसएहि " uflor पए अने प्रयानाने भाट “भणिए अभणिए य" माही उपाय छ । नयी ४ वायां एवमाई " ते ४५! तर वनस्पति सभूनी या हिंसा કરે છે. સંસારી અબુધ કે પૂર્વોક્ત વસ્તુઓ બનાવવાને નિમિત્તે વૃક્ષોને કાપે છે. વૃક્ષોને કાપવા એ જ વનસ્પતિ છની હિંસા છે ઉપર કહેલી વસ્તુઓ सानों ४माथी थाय छे. ॥ सू. १८॥
ત્રણ સ્થાવર ને કેવા કેવા ભાવથી યુક્ત થઈને હિંસકજન મારે છે तेनुं या सूत्रा२. सूत्र॥२ २५४४२९४ ४२ छ–“सत्ते सत्तपरिवजिए" त्या. ... -"ठमूला" २ अतिशय विवेथ विस छे. भनां वि३४३५ अनुमो
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