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प्रश्नव्याकणसूत्रे 'तसपाणे' असप्राणान-द्वीन्द्रियादीन् जीवान् ‘थावरे य' स्थावरांश्च पृथिवीकायादीन हिंसन्ति-घ्नन्ति ।मु०१९॥ उक्तार्थमेव विशदयन्नाह–'मंदबुद्धिया' इत्यादि ।
मूलम्-मंदबुद्धिया सहसा हणंति, अवसा हणंति, सवसा अवसा दुहओ हणंति, अट्ठा हणंति, अणट्ठा हणांति, अट्ठा अणट्टादुहओ हणंति, हस्सा हणंति, वेरा हणंति, रती हणंति हस्सा वेरारती हणंति। कुद्धाहणंति,लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति, कुद्धालुद्धा मुद्धा हणंति, अत्था हणति, धम्माहणंति, कामा हर्णति, अत्था धम्मा कामा हणंति ॥ सू० २० ॥
टीका-' मंदबुद्धिया' मन्दबुद्धिका:-मिथ्यात्वोदयात्तत्वाऽतत्वविवेकरहितमतयः, 'सवसा' स्ववशास्वतन्त्राः सन्तः, स्वेच्छया 'हणंति' घ्नन्ति, 'अवसा' अवशाः पराधीनाः सन्तः प्रन्ति, 'सवसा अवसा' स्ववशा अवशा 'दुहओ' उभयतो अनर्थ-विना प्रयोजन के लिये (तसपाणे ) द्वीन्द्रियादिक त्रस प्राणियों की एवं (थावरे य) पृथिवीकोयादिक एकेन्द्रिय स्थावर प्राणियों की (हिंसति ) हिंसा करते हैं। सू० १९॥ __इसी उक्त अर्थ को विस्तार से समजाने के लिये पुनः सूत्रकार कहते हैं-' मंद बुद्धिया सवसा हणंति' इत्यादि।
टीकर्थ-(मंदधुद्धिया) मिथ्यात्व के उदय से तत्व और अतत्त्व के विवेक से जिनकी बुद्धि शून्य हो रही है ऐसे प्राणी (सवसा) स्वतंत्र बनकर अपनी इच्छानुसार त्रस स्थावर जीवों की ( हणंति ) हिंसा करते हैं। इसी तरह जो प्राणी (अवसा हणंति ) नौकरी आदि के कारण पराधीन मात२ मथवा "अणढाए” बिना प्रयोरने "तसपाणे" मीन्द्रिय मा सोना भने “ थावरे य" पृथिवीय माहि मे डेन्द्रिय स्था१२ योनी " हिंसंति" डिसा ४२ छ. ॥ सू. १८॥
એ જ ઉપરોક્ત અર્થને સવિસ્તર સમજાવવાને માટે સૂત્રકાર કહે છે“मंदबुद्धिया सवसा हणंति" त्या.
At-" मंदबुद्धिया" मिथ्यात्वना यथारेमनी मुद्धि तत्व सने मतत्वना विवेयी २डित 45 गई छ वा छवो “सवसा" स्वतत्र छापा छतi पy पोतानी छानुसार स स्था१२ वानी " हणंति" हिंसा ४२ छ. यो । प्रभार से भारत “ अवसा हति" नारी पोरेने ॥२२ पराधीन छ तेरा
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