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प्रश्नव्याकरणेस्त्र णाणि' शाल्मलि तोक्ष्गाग्रलोहकण्टकाभिसारणापसारणानि शाल्मलि:=' सेमल' इति - ख्यातो वृक्षविशेषस्तस्य ये तीक्ष्णाग्रा लोहकण्टका इव कण्टकाः, तेषु अभिसारणापसारणानि च = कर्षगापकर्षणानि ' फालगविदारणाणि ' फालनानि-वस्त्रवत्स्काटनानि, विदारणानि-क्राचादिना काष्ठवद् द्वैधीकरणानि ' अवकोडगबंधणाणि' अवकोटकबन्धनानिधीवाया इस्तयोश्च पश्चाद्भागानयनेनबन्धनानि, ' लट्ठिसयताळणाणि ' यष्टिशतताड़नानि यष्टिशतैस्ताड़नानि, 'गलगबलुल्लंबणाणि ' 'गलकवलोल्लम्बनानि-गल एव गलकः कण्ठः, तस्मिन् बलात् बलपूर्वकम् उल्लम्बनानिक्षशाखादौ उद्घन्धनानि, ' मूलग्ग भेयणाणि य' शूलाग्रभेदनानि च शूलाग्रेग-शूलाग्रभागेन भेदनानि, शूलारोपणानि वा, 'आएस पवंचणाणि ' आदेशप्रवचनानि-आदेशेन-आज्ञया असत्यवस्तु विषयया उनका वह शरीर अर्पित किया जाता है, (सामलितिक्खग्गा-लोहकंटग अभिसारणा-पसारणाणि ) सेमर वृक्ष के लोहकण्टक के समान नुकीले कांटा के ऊपर उनका कर्षणापकर्षण किया जाता है उन्हें आगे पीछे खेंचा जाता है, (फालग विदारणाणि य) फालन-वस्त्र के समान फाड़ना
और करोति आदि के द्वारा काष्ठ को तरह चोरना भी उनका वहां किया जाता है । ( अवकोडगयंधणाणि ) उनको ग्रीवा और दोनों हाथ पीछे के भाग की तरफ करके बांधे जाते हैं । ( लट्ठिमयताडणाणि य ) सैकडों लाठियों की उन पर वहां मार पडती है । (गलगवललंबणाणि य) जबर्दस्ती उनके गलों को वृक्ष की शाखा पर बांधकर लटकाया जाता है। (मूलग्गभेयणाणि य ) शूल के अग्रभाग से उनके शरीर का भेदन किया जाता है । अथवा शूली के ऊपर उन्हें लटकाया जाता है। (आए. तमना ते शरी२ मा ४२।५ छ. “सामलितिक्खग्गलोहकंटग-अभिसारणा -पसारणाणि य" सेभर वृक्षना सोना समान २०७२ ४iटा ५२ તેમનું કણાપકર્ષણ કરાય છે તેમને આગળ પાછળ ખેંચવામાં આવે છે. " फालणविदारणाणि य” त्या तेभने पनी म वाम मावे छ भने કરવત આદિ દ્વારા જેમ લાકડાને ચીરવામાં આવે છે તેમ તેમને પણ ચીરपाम भार छ “ अवकोडगबंधणाणि" तेभनी 1४ भने भने । पाछाना लामा २मावाने riyाम मावे छ. : लट्टिसयताडणाणि य" त्यां तेभने से सामान भार ५ छ. “गलगबललुबणाणि य” ने२ सभथी तमनi mi माधान वृक्षानी जियो ५२ तेमने सामने पाये छ," सूलगा भैयणाणि य" शूगनी भाषा तेभनi शरीर लेन ४२पामा भावे छे मथवा
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