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प्रश्नव्याफरणसूत्रे प्रयोगकर्तार इत्यर्थः । 'उत्तणवल्लरदवग्गिणिदयपलीवगा' उत्तृणवल्लरदवाग्निनिर्दयप्रदीपकाः-उत्तृणानांवर्धिततृणानां वनानां, वल्लराणां गहनवनानामरण्यक्षेत्राणां वा, दवाग्निना-दावानलेन निर्दयं दयारहितं यथास्यात्तथा प्रदीपकाः प्रज्वालकाः, 'कूरकम्मकारी' क्रूरकर्मकारिणा कठोरकर्मकर्तारः घातकाः घ्नन्ति= प्राणवधं कुर्वन्तीति पूर्वेग सम्बन्धः ॥०२१॥ तानेव जातिनिर्देशपूर्वकं वर्णयति-'इमेय बहवे' इत्यादि ।
मूलम्-इमेय बहवे मिलक्खुजाईया, के ते ?, सक-जवणसबर-बब्बर-काय-मरुंडो-द-भडग-तित्तिय पकणिय-कुलक्ख-गोडसिंहल-पारस-कोचंध-दविल-विल्लल पुलिंद-अरोस-डोंव-पकण-गंध हारग-बहलिय-जल्ल-रोम-मास-बउस मलया-चुचुया-य चूलियगकोंकणग-कणग-लेय-मेया-पण्हव-मालव-महुर-आभासिय-अणक्ख चीण-लासिय-खस-खासिया-नेहुर-मरहट्र-मुट्ठिअ-आरब-डोबिलग कुहण-केकय-गुण-रोमग-रुरु-मस्या-चिलायविसयवासी य पावमइणो ॥ सू० २२ ॥ ___टीका-'इमेय' इमे च-अनुपदं वक्ष्यमाणाः 'वहवे' बहवः 'मिलक्खुजाईया' म्लेच्छजातीयाः अनार्याः सन्ति । 'किं ते?' के ते ? इत्याह- सके ' त्यादि। विष, इन्हें जो जीवों को मारने के अभिप्राय देते है वे, तथा ( उत्तणवल्लर-दवग्गि-णिय-पलीवगा ) जो निर्दय होकर उत्तणों को-वर्धिततृणवाले वनों को वल्लरों को गहनवनों को अथवा अरण्य के खेतों को दावानल से जला देते हैं वे सब (कूरकम्मकारी) क्रूरकर्मकारी माने गये हैं और ऐसे प्राणी ही प्राणवध के करनेवाले होते हैं ।सू०२१॥
सूत्रकार इन्हीं प्राणियों को जाति निर्देश पूर्वक वर्णन करते हैंनामवाने माटोमा भने अपरावे छे तमो तथा · उत्तण-बल्लर, दवग्गि, णिय पलीवगा" को निय ने उत्तशाने पधित तृणु पनाने, १६દેિને,–ગહન વનેને, અથવા વનનાં ક્ષેત્રને દાવાનળ લગાડીને સળગાવે છે તે मधाने "कूरकम्मकारी" २४ ४२२भानपामा मा छ भने ते वो પ્રાણવધ કરનાર છેસૂ. ૨૧
सत्र प्रामोनु तिना निश सहित वन ४२ छ “ इमेय
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