Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] [37 विवेचन-संसारसमापन-जीवप्रज्ञापना के पांच प्रकार-संसारी जीवों की प्रज्ञापना के एकेन्द्रियादि पांच प्रकार क्रमशः इस सूत्र (सू. 18) में प्रतिपादित किये गए हैं। संसारी जीवों के पांच मुख्य प्रकारों की व्याख्या-(१) एकेन्द्रिय-पृथ्वीकायादि स्पर्शनेन्द्रिय वाले जीव एकेन्द्रिय कहलाते हैं / (2) द्वोन्द्रिय-जिन जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय, ये दो इन्द्रियां होती हैं, वे द्वीन्द्रिय होते हैं। जैसे-शंख, सीप, लट, गिडीला आदि / (3) त्रीन्द्रिय-जिन जीवों के स्पर्शन, रसन और घ्राणेन्द्रिय हों, वे श्रीन्द्रिय कहलाते हैं / जैसे---जू, खटमल, चींटी आदि / (4) चतुरिन्द्रिय-जिन जीवों के स्पर्शन, रसन, घ्राण और चक्षुरिन्द्रिय हों, वे चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं / जैसे-टिड्डी, पतंगा, मक्खी, मच्छर आदि। (5) पंचेन्द्रिय-जिनके स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र, ये पांचों इन्द्रियां हों, वे पंचेन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे-नारक, तिर्यञ्च (मत्स्य, गाय, हंस, सर्प), मनुष्य और देव / इन्द्रियां दो प्रकार की हैं-द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। द्रव्येन्द्रिय के दो रूपनिवत्तिरूप और उपकरण रूप / इन्द्रियों की रचना को निर्वत्ति-इन्द्रिय कहते हैं और निर्वृत्ति-इन्द्रिय की शक्तिविशेष को उपकरणे न्द्रिय कहते हैं। भावेन्द्रिय लब्धि (क्षयोपशम) तथा उपयोग रूप है / एकेन्द्रिय जीवों में भी क्षयोपशम एवं उपयोगरूप भावेन्द्रिय पांचों ही सम्भव हैं; क्योंकि उनमें से कई एकेन्द्रिय जीवों में उनका कार्य दिखाई देता है। जैसे-जीवविज्ञानविशेषज्ञ डॉ. जगदीशचन्द्र बोस ने एकेन्द्रिय वनस्पति में भी निन्दा-प्रशंसा आदि भावों को समझने की शक्ति (लब्धि = क्षयोपशम) सिद्ध करके बताई है। एकेन्द्रिय संसारी जीवों की प्रज्ञापना 16. से कि तं एगेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? एर्गेदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता / तं जहा—पुढविकाइया 1 प्राउकाइया 2 तेउकाइया 3 वाउकाइया 4 वणस्सइकाइया 5 / [19 प्र.] वह (पूर्वोक्त) एकेन्द्रिय-संसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ? [16 उ.] एकेन्द्रिय-संसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना पांच प्रकार की कही गई है / वह इस प्रकार है-१-पृथ्वीकायिक, २-अप्कायिक, ३-तेजस्कायिक, ४-वायुकायिक और ५-बनस्पतिकायिक / विवेचन-एकेन्द्रियसंसारी जीवों को प्रज्ञापना-प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वीकायिक आदि पांच प्रकार के एकेन्द्रियजीवों को प्ररूपणा की गई है। एकेन्द्रिय जीवों के प्रकार अोर लक्षण-(१) पश्चोकायिक—पृथ्वी ही जिनका काय =शरीर है, वे पृथ्वीकाय या पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। (2) प्रकायिक-अप्-प्रसिद्ध जल ही जिनका काय = शरीर है, वे अप्काय या प्रकायिक कहलाते हैं / (3) तेजस्कायिक-तेज यानी अग्नि ही जिनका काय = शरीर है, वे तेजस्काय या तेजस्कायिक कहलाते हैं / (4) वायुकायिक-वायु = हवा ही जिनका काय-शरीर है, वे वायुकाय या वायुकायिक हैं। (5) वनस्पतिकायिक--लतादिरूप वनस्पति ही जिनका शरीर (काय) है, वे वनस्पतिकाय या वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। 1. प्रज्ञापना० मलय० वृत्ति, पत्रांक 23-24 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org