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चतुर्थः सर्गः वनकस्यापि विस्तारः त्रिंशल्लक्षाः शतत्रयम् । त्रयस्त्रिंशत्सहस्राणि त्रयस्त्रिंशस्त्रिभागवान् ॥१८॥ घाटस्य विशतिर्लक्षा नव पट्पष्टिश्च पटशतम् । चत्वारिंशत्सहस्राणि सैकानि व्यंशको हि सः ॥१८॥ अष्टाविंशतिलक्षास्तु विस्तारः परिकीर्तितः । स पञ्चाशत् सहस्राणि संघाटस्य निरन्तरः॥१८९॥ सप्तविंशतिलक्षाः स त्रयस्त्रिंशं शतत्रयम् । पञ्चाशच्च सहस्राणि साष्टौ जिह्वस्त्रिभागवान् ॥१९॥ लक्षाः पड्विंशतिःोक्ताः सपटप प्टिपहसिकाः। पटक्षष्टिः षट्शती ध्यंशौ विस्तारो जिबिकाश्रयः॥१९॥ पञ्चविंशतिलक्षास्तु लोलस्य परिकीर्तितः । सहस्राणि च विस्तारः समस्तः पञ्चपप्ततिः ॥१९॥ चतुर्विशतिलक्षाश्च लोलुपस्य विभागान् । ज्यशोतिश्च सहस्राणि त्रिशती त्रिंशता ब्रयम् ।।१९३॥ त्रयोविंशतिलक्षास्तु विस्तारः स्तनलोलुपे । सहस्रायेकनवतित्यंशौ षट्षष्टि षट्शतम् ॥१४॥ त्रयोविंशतिलक्षास्तु तप्ते द्वाविंशतिः परे । त्रिभागोऽष्टौ सहस्राणि त्रयस्त्रिंशच्छतत्रयम् ॥१९५॥ एकविंशतिलक्षा वै सहस्राणि च पोडश । तपनस्य त्रिभागौ च षट्षष्टिः षट्शती च सः ॥१९६।। लक्षाः विंशतिरुद्दिष्टा मुनिमिः पञ्चविंशतिः । सहस्राणि च विस्तारस्तापनस्यापि सर्वतः ॥१९७॥ एकोनविंशतिर्लक्षा निदाघस्य शतत्रयम् । त्रयस्त्रिंशत्वहस्राणि त्रिभागस्त्रिंशता अयम् ॥१९८॥ स चाष्टादश लक्षास्ताः घट्पष्टिः षोडशात्मकम् । शतं प्रज्वलितस्यासौ चत्वारिंशत्सहस्रकैः ।।१९९॥ लक्षाः सप्तदश प्रोक्ता विस्तारस्तत्वदर्शिमिः । सहैवोज्ज्वलितस्यासौ चत्वारिंशसहस्रकैः ॥२०॥ लक्षाः षोडश विस्तारो ह्यष्टापञ्चाशदप्यतः । सहस्राणि त्रिंशत्यंशशित्संज्वलिते त्रिमिः ॥२०॥
लक्षाः पञ्चदश व्यंशो पटषष्टिः पटशती च सः । सहस्राणि च षट्षष्टिः संप्रज्वलितनामनि ॥२०२।। ॥१८६।। चौथे वनक इन्द्रकका विस्तार तीस लाख तैंतीस हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण है ॥१८७।। पाँचवें घाट नामक इन्द्रकका विस्तार उनतीस लाख इकतालीस हजार छ: सौ छियासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण है ।।१८८।। छठवें संघाट नामक इन्द्रकका विस्तार अट्ठाईस लाख पचास हजार योजन है ॥१८९|| सातवें जिह्व नामक इन्द्रकका विस्तार सत्ताईस लाख अंठावन हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण है ।।१९०॥ आठवें जिबिक इन्द्रकका विस्तार छब्बीस लाख छियासठ हजार छह सौ छियासठ योजन और एक योजनके तीन भागों में दो भाग प्रमाण है ॥१९१।। नौवें लोल इन्द्रकका विस्तार पच्चीस लाख पचहत्तर हजार योजन है ।।१९२॥ दसवें लोलप नामक इन्द्रकका विस्तार चौबीस लाख तेरासी हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण है ॥१९३॥ और ग्यारहवें स्तनलोलुप इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख एकानबे हजार छह सौ छियासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण है ।।१९४||
तीसरी पृथिवीके पहले तप्त नामक इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख योजन है। दूसरे तपित इन्द्रकका विस्तार बाईस लाख आठ हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण है ॥१९५। तीसरे तपन इन्द्रकका विस्तार एक्कीस लाख सोलह हजार छह सौ छियासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण है ।।१९६।। चौथे तापन नामक इन्द्रकका विस्तार मुनियोंने सब ओर बीस लाख पच्चीस हजार योजन कहा है ॥१९७।। पांचवें निदाघ नामक इन्द्रकका विस्तार उन्नीस लाख तैंतीस हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण है ।।१२८॥ छठवें प्रज्वलित इन्द्रकका विस्तार अठारह लाख इकतालीस हजार छह सौ छियासठ योजन है ॥१९९।। सातवें उज्ज्वलित इन्द्रकका विस्तार तत्त्वदर्शी आचार्योंने सत्रह लाख चालीस हजार योजन बतलाया है ॥२००॥ आठवें संज्वलित इन्द्रकका विस्तार सोलह लाख अंठावन हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण है ।।२०१॥ और नौवें संप्रज्वलित इन्द्रकका विस्तार पन्द्रह लाख
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