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हरिवंशपुराणे सोमन्तकस्य विस्तारो योजनानां मतं ततः। विद्वद्भिः प्रमितो लक्षाश्चत्वारिंशच्च पञ्च च ॥१७॥ चत्वारिंशञ्चतस्रश्च लक्षाः साष्टसहस्रिकाः । त्रिशती च त्रयस्त्रिंशत् सत्र्यंशो नारकस्य सः॥१७२।। त्रिचत्वारिंशदिष्टास्ताः सहस्राणि च षोडश । षट्शतानि च षट्षष्टिद्वौ व्यंशी रौरवस्य च ॥१७३॥ द्विचत्वारिंशदुक्तास्ताः सहस्राणि च विंशति । पञ्चोत्तराणि विस्तारो भ्रान्तस्यापि समन्ततः ॥१४॥ चत्वारिंशच्च लक्षा सैकोभ्रान्तस्य शतत्रयम् । त्रयस्त्रिंशत् सहस्राणि त्रयस्त्रिंशत्तु भागवान् ॥१७५॥ चत्वारिंशत्स संभ्रान्ते तत: षट्षष्टि षट्शती । चत्वारिंशत् सहस्राणि सैकानि द्वौ त्रिभागकौ ॥१७६॥ ताश्चत्वारिंशदेकोना असंभ्रान्तस्य विस्तृतिः । पञ्चाशञ्च सहस्राणि योजनानां समन्ततः ॥१७॥ अष्टात्रिंशत् स विभ्रान्ते ताः पञ्चाशत् सहस्रकैः । सह त्र्यंशस्त्रयस्त्रिंशत् त्रिशताष्टसहस्रकः ॥१७॥ सप्तत्रिंशदतो कक्षा सषट्षष्टिसहस्रिकाः । शतानि षट् त्रिभागो द्वौ षटषष्टिस्त्रस्तनामनि ॥१७॥ षट्त्रिंशच तथा लक्षाः सहस्राणि च सप्ततिः । पञ्चोत्तराणि विस्तारस्त्रसितस्य परिस्फुटः ॥८॥ पञ्चत्रिंशदतो लक्षा वक्रान्तस्य त्रिभागवान् । व्यशीतिश्च सहस्राणि यत्रिंशच्छतत्रयम् ॥१८१॥ चतुस्त्रिशदतो लक्षा नवत्येकसहस्रिका । षट्क्षष्टिः षट्शती व्यंशाववक्रान्तस्य सर्वतः ॥१८॥ चतुस्त्रिशत्ततो लक्षा योजनानामवस्थिताः । विक्रान्तस्यापि विस्तारः समस्तो विस्तरेरितः ॥१८॥ स्तरकस्य नास्त्रिशत् लक्षाः साष्ट सहस्रिकाः । शतानि त्रीणि सभ्यंशः त्रिंशच त्रीणि विस्तृतिः ॥१८॥ स्तनकस्य तु विस्तारो लक्षा द्वात्रिंशदंशको । षोडशापि सहस्राणि षट्पष्टिः षट्शती मता ॥१८५।। मनकस्यापि विस्तारो त्रिशल्लक्षा सहककाः । योजनानां सहस्राणि पञ्चविंशतिरेव च ॥१८॥ ___अब सातों पृथिवियोंके उनचास इन्द्रक विलोंका विस्तार कहते हैं-उनमेंसे प्रथम पृथिवीके सीमन्तक इन्द्रकका विस्तार पैंतालीस लाख योजन है ॥१७१।। दूसरे नारक इन्द्रकका विस्तार चवालीस लाख आठ हजार तीन सौ तैंतीस योजन तथा एक योजनके तीन भागोंमें से एक भाग प्रमाण है ॥१७२।। तीसरे रौरव इन्द्रकका विस्तार तैंतालीस लाख सोलह हजार छह सौ सड़सठ योजन और एक योजनके तीन भागों में दो भाग प्रमाण है ॥१७३।। चौथे भ्रान्त नामक इन्द्रकका विस्तार सब ओरसे बयालीस लाख पच्चीस हजार योजन है ॥१७४|| पांचवें उद्भ्रान्त नामक इन्द्रकका विस्तार इकतालीस लाख तैंतीस हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोमे-से एक भाग प्रमाण है ॥१७५|| छठवें सम्भ्रान्त नामक इन्द्रकका विस्तार चालीस लाख इकतालीस हजार छह सौ छियासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण है ॥१७६।। सातवें असम्भ्रान्त इन्द्रकका विस्तार सब ओरसे उनतालीस लाख पचास हजार योजन है ।।१७७|| आठवें विभ्रान्त नामक इन्द्रकका विस्तार अड़तीस लाख अठावन हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें से एक भाग प्रमाण है ॥१७८|| नौवें त्रस्त नामक इन्द्रकका विस्तार सैंतीस लाख छियासठ हजार छह सौ छियासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण है ||१७|| दशवें त्रसित नामक इन्द्रकका विस्तार छत्तीस लाख हजार योजन है ॥१८०|| ग्यारहवें वक्रान्त नामक इन्द्रकका विस्तार पैंतीस लाख तेरासी हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजन के तीन भागोंमें-से एक भाग प्रमाण है ॥१८१।। बारहवें अवक्रान्त नामक इन्द्रकका विस्तार सब ओरसे चौंतीस लाख एकानबे हजार छह सौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमें-से दो भाग प्रमाण है ।।१८२।। और तेरहवें विक्रान्त नामक इन्द्रकका विस्तार चौंतीस लाख योजन है ।। १८३।। १. द्वितीय पृथिवीके पहले स्तरक नामक इन्द्रकका विस्तार तैंतीस लाख आठ हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमें-से एक भाग प्रमाण है ।।१८४।। दूसरे स्तनक नामक इन्द्रकका विस्तार बत्तीस लाख सोलह हजार छह सौ छियासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमें दो भाग है ।।१८५।। तीसरे मनक इन्द्रकका विस्तार इकतीस लाख पच्चीस हजार योजन है
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