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विकृतिविज्ञान जलसन्धि आंत्रिक ज्वरजन्य उपसर्ग के कारण वंक्षणसन्धि ( hip joint ) में देखी जाती है । पूयसन्धि पूयजनक गोलाणुओं के उपसर्गों के कारण मिलती है। उपसर्ग का कारण सन्धि के ऊपर की त्वचा या सन्धि के समीप की अस्थि में व्रण का होना भी हो सकता है तथा अन्य किसी पूतिकेन्द्र ( septic focus ) से रक्त के द्वारा भी हो सकता है।
उपसर्ग के कारण सन्धि की श्लेष्मधरकला में तीव्र पाक प्रारम्भ हो जाता है तथा सन्धाथी कास्थि का व्रणीभवन एवं कणात्मक ऊति द्वारा अपरदन ( erosion) प्रारम्भ हो जाता है । सन्धि पूय से पूर्ण हो जाती है, उसके अन्दर की स्नायुएँ मृदुल हो जाती एवं मृतप्राय हो जाती हैं। सन्धि के ऊपरी भाग की रचनाएँ भी सपाक ( inflammed ) एवं मृदु ( softened ) हो जाती हैं।
उपरोक्त सम्पूर्ण क्रिया यह प्रगट करती है कि सन्धि में विद्रधि बन गई । विद्रधि फूटने के लिए स्थान ढूँढा करती है और काल पाकर त्वचा को विदीर्ण करके फूट सकती है। पर कई सन्धिपाकों में उत्स्यन्द भीतर ही भीतर प्रचूषित हो जाता है और विद्रधि रूप नहीं बनता तथा सन्धि पूर्ववत् पूर्णतः स्वस्थ हो जाती है।।
आयुर्वेद में घोर सन्धिपाक का स्पष्ट वर्णन हमें आमवात प्रकरण में मिलता है:स कष्टः सर्व रोगाणां यदा प्रकुपितो भवेत् । हस्तपादशिरोगुल्फत्रिकजानूरुसन्धिषु ॥ करोति सरुजं शोथं यत्र दोषः प्रपद्यते । स देशो रुज्यतेऽत्यर्थं व्याविद्ध श्व वृश्चिकैः॥
(मा. नि. आ. नि. २५) सन्धिपाक का दूसरा वर्णन हमें सन्धिगत वात के प्रकरण में मिलता है:
___ हन्ति सन्धिगतः सन्धीन् शूलाटोपौ करोति च । (मा.नि. वा. नि. २२). वातपूर्णदृतिस्पर्शः शोथः सन्धिगतेऽनिले । प्रसारणाकुञ्चनयोः सन्धिवृत्तिश्च वेदना ॥
(च.चि. अ. २८) सन्धिपाक का तीसरा वर्णन हमें वातरक्त के प्रकरण में मिलता हैजानुजङ्घोरुकटयंसहस्तपादाङ्गसन्धिषु । निस्तोदः स्फुरणं भेदो गुरुत्वं सुप्तिरेव च ।। अर्वाचीन वैद्यकशास्त्र की दृष्टि से निम्न प्रकार के सन्धिपाक मिलते हैं१. आघातजन्य संधिपाक २. रोगाणुजन्य सन्धिपाक
इसके भी दो भेद होते हैं-एक पूयजनक जीवाणुओं द्वारा जिसमें मालागोलाणु, पुंजगोलाणु, प्रमेहाणु (gonococci ), फुफ्फुस गोलाणु ( pneumococci ), आन्त्रवेत्राणु ( B. coli ), आन्त्रिक जीवाणु, अतीसारजनक जीवाणु पाक के कारण होते हैं, और दूसरा विशिष्ट कणार्बुदों ( specific granulomata ) द्वारा जिनमें यमा और फिरंग आते हैं।
३. वैषिक सन्धिपाक
इसमें आमवात, वातरक्त और लसी अन्तःनिक्षेपजन्य पाक ( serum arthritis) आते हैं।
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