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विकृतिविज्ञान ___अस्थिशिर कास्थि की स्थिति का ज्ञान परमावश्यक होता है कि उसका आटोपिकीय स्नायु के बन्धनों से कैसा सम्बन्ध है क्योंकि कहीं कहीं यह अस्थिशिररेखा (epi. physeal line ) सन्धि की आटोपिका के भीतर पड़ती है। प्रायशः अस्थि का उपसर्ग पोषणी धमनी में होकर जब जाता है तो वह अस्थिशिर के समीप से ही गुजरता है। यदि अस्थिशिर का भाग सन्धिगुहा में ही पड़ेगा तो उपसर्ग सन्धि में अतिशीघ्र प्रवेश कर सकता है इसीलिए अस्थिशिर की स्थिति का ज्ञान परमावश्यक है।
सन्धियों को वातनाडियों की प्राप्ति समीपस्थ पेशियों और उनकी कण्डराओं से होती है। ये वातनाडीसूत्र श्लेष्मधरकला तथा सन्धिकास्थि दोनों को इन्हीं से पहुँचते हैं । इन नाडीसूत्रों में से कुछ वेदना के लिए, कुछ सन्धि की क्रियाओं के लिए तथा कुछ स्थितिबोधक होते हैं। प्रायः एक ही नाडीस्कन्ध ( nerve trunk ) से कई कई सन्धियों को वातनाडी सूत्र जाते हैं अतः एक में हुए कष्ट को दूसरी सन्धि में भी पाया जा सकता है। इसलिए इसका ध्यान रखना चाहिए नहीं तो रोग किसी सन्धि में होगा और इलाज किसी दूसरे का ही चलता रहेगा।
सन्धियों में जो गतियाँ होती हैं उनका कारण विभिन्न पेशीसमूहों की समन्वयता (co-ordination ) है । ये पेशियाँ एक ही सुषुम्ना की वातनाडी द्वारा पुष्ट होती हैं। एक गति के विरुद्ध दूसरी गति करने के लिए दूसरा पेशीसमूह रहता है उसकी वातनाडियाँ भी उसी सुषुम्ना खण्ड से निकलती है जिसमें से पहले पेशीसमूह के लिए सुषुम्ना की वातनाडी आई थी, इसके द्वारा यथामात्रा प्रत्येक गति और उसके नियन्त्रण का प्रबन्ध हो जाता है। यह नियन्त्रण सुषुम्ना के ही केन्द्र कर लेते हैं और इनका पता तक नहीं लगने पाता। इन तथ्यों का ज्ञान कण्डराओं के प्रतिरोपण के समय आवश्यक है जो अंगघात के समय शल्यविद् किया करता है। ___ यह भी स्मरण रहना चाहिए कि श्लेष्मधरकला की रक्तपूर्ति तथा सन्धिगुहा में श्लेष्मा का संवहन समीपस्थ पेशियों की क्रियाशीलता पर अधिकांशतः निर्भर करता है अतः जहाँ सन्धि के तरलाधिक्य को प्रचूषित करना हो या वहाँ के रक्तसंवहन को तीव्र करना हो तो पेशीबल और पेशीगतियों का संधारण परमावश्यक है। यही कारण है कि पेशियों की गतियों, अभ्यंग, उष्णसेकादि का प्रयोग चिकित्सार्थ विशेष चलता है। __ क्योंकि पेशियों से वातनाडीसूत्र, सन्धियों में जाते हैं अतः जब कोई व्रणशोथ सन्धि में होता है तो नाडीपेशीय विघ्न (neuromuscular disturbances ) साथ साथ मिला करते है। इसके कारण सर्वप्रथम पेशीबल ( tone ) की कमी पहले ही प्रकट हो जाती है तथा उस क्षेत्र की सारी पेशियाँ श्लथ ( flabby ) हो जाती हैं। उनमें अंगग्रह (spasm) भी पाया जाता है। आगे चलकर सन्धि की कुछ पेशियों में क्षय होने से सन्धि पतली पड़ जाती है ( wasting of the
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