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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव ४५ muscle )। इसी कारण सन्धि के रोगों में बल का ह्रास, पेशियों की श्लथता, उनका अंगग्रह और क्षय नामक लक्षण देखे जाते हैं। ___ सन्धियों के सम्बन्ध में थोड़ा सा परिचय देने के पश्चात् अब हम अपने मुख्य विषय (व्रणशोथ का अस्थियों पर परिणाम) पर आते हैं। जिस प्रकार अन्य ऊतियों पर व्रणशोथ का परिणाम होता है ठीक उसी प्रकार सन्धियों अर्थात् उनकी आटोपिका, श्लेष्मधरकला, सन्धायीकास्थि तथा अस्थि के शिरों पर भी वैसा ही प्रभाव पड़ता और परिणाम होता है।
पर क्योंकि सन्धायीकास्थि ( articular cartilage ) अशोणितीय ( avas. cular ) होती है इस कारण व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया कोई विशेष यहाँ पर नहीं देखी जाती। साथ ही जब तक अस्थि के साथ इसका सम्बन्ध पूर्ववत् और स्वाभाविक रूप में रहता है तब तक इसमें उपसर्ग का भी प्रवेश नहीं हो पाता । परन्तु ज्यों ही इसका सम्बन्ध अस्थि के द्वारा होने वाले इसके पोषण से समाप्त हो जाता है क्यों ही यह नष्ट प्रायः हो जाता है तथा छिलके की तरह छूट पड़ती है। कणात्मक ऊति भी इसे फिर शीघ्र विनष्ट कर देती है। छूटी हुई कास्थि के श्वेत खण्ड सन्धिगुहा में इतस्ततः मिल सकते हैं। मसृण स्थान पर कणमय और अशित (granulating and carious ) उसका धरातल देखा जाता है। किनारों पर जहाँ सन्धायीकास्थि का सम्बन्ध श्लेष्मधरकला के साथ आता है वहाँ या तो इस कला से कणन क्रिया होने लगती है (जैसे यचमा में ) अथवा यह कास्थि ही कला तक फैल जाती है। (जैसे आस्थिक सन्धिपाक में)। ___ सन्धियों के पाक में सन्धिगुहा में जिस शीघ्रता से तरल एकत्र होता है उसी गति से उसका प्रचूषण नहीं हो पाता इस कारण सन्धिपाक होते ही सन्धि का भरा और सूजा होना प्रकट होने लगता है । यह उसका उत्स्यन्दन ( effusion ) कहलाता है। यह उत्स्यन्दन जब सरक्त ( blood stained ) होता है तो उसे शोणसन्धिता ( hamearthrus ) कहते हैं । यह आघात अथवा अधिरक्तस्राव ( hemophilia) से प्रायशः देखी जाती है। जब उत्स्यन्द सपूय होता है तो उसे सन्धि की अन्तः पूयता ( empyema of the joint) कहते हैं । जब उत्स्यन्द लस्य ( serous) होता है जैसा कि जीर्ण उपसर्गों, वातनाड़ीजन्य रोगों ( neuropathic diseases), सन्धिगत अबद्धपिण्डों ( loose bodies ) तथा घोर वैषिक उपसर्गों में देखा जाता है तब उन अवस्थाओं को जलसन्धि (hydrops articuli या hydrarthrosis) अथवा जीर्ण लस्य सन्धिकलापाक ( chronic serous synovitis ) कहते हैं ।
घोर सन्धिपाक ( Acute Arthritis ) सन्धि में सूजन, लाली, उष्णता तथा शूल ये व्रणशोथ के चारों चिह्न स्पष्ट हो जाते हैं, तरल का उत्स्यन्द भी प्रारम्भ हो जाता है जो यदि लस्य हुआ तो जलसन्धि और यदि सपूय हुआ तो पूयसन्धि (pyarthrosis ) नाम का कारण होता है।
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