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[इतिदाय बदबाचा
मन्म) क्याही सरशब्जहै-यह जैन बगीचा देखा। हरे सजर नुरका-दिखलाताहै जलवादेखो, ५ जैनश्वेतांबरो बुल्बुलकी तरहसे तुमभी, जांफिदा करके जरा-इसका तमाशा देखो, २ एकसो आठ तीर्थोकी-जोलिखीहै तपसील, शौखसे उसको पढो-याके सुनो यादेखो, ३ किसकदर इसके मुसन्निफको बनाया कामील, आत्मारामजी महाराजकी किरपा देखो, ४
काबिलेहम्द-वे- तीर्थकर निरंजन-व-निराकारहै जिनकाज्ञान कुल्लदुनियामें आशकारहै, अब-में-इसकिताबके मजमुनपर आताई, सायकीन-व-नाजरीनको खुशखबरी सुनाताहुं, मुद्दतौका इरादा आज कामयाबहुवा, शुक्रहै आज यहकिताब छपकर नाजरीनोंकी नजरोंके सामने आगइ, इसकिताबमें सूत्रआवश्यक-उत्तराध्ययनकल्पसूत्र-विविधतीर्थकल्प-प्रबंधकोश-प्रभाविकचरित-परिशिष्टपर्व
धचितामणि वगेरा जैनकिताबोंसें मजमुन अकजकरके लिखागता, और कइ तवारिखोंसे पुरानीबातें इंतिखाबकरके दर्जकिइहै, रेलवे गाइडोंसे टेशनोंका-हाल-और किराया बतलायागयाहै, मगर किराया कभीकभी कमीबेसीमी होजासकाताहै, नाजरीन बरवात तलाशकरलेकि-किरायारेलका यहांसें वहांतक क्यालगेगा, ?
अगर कोइश्रावक जैनतीर्थकी जियारत मानाचाहै इसकितावकों १-दरख्त, २-ग्रंथकरता,
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दिवाचा. पासरखें-ताकि-बख्तन फवख्तनागाही होतीरहेगी, औरइसबातकी मालुमीयतहोसकेगीकि-फलां जैनतीर्थइसजगहपरहै,और इसकारास्तायु-है, पुरानेजैनतीर्थोका हाल सुनोतो जिसजिसतीर्थमें मंदिरमुर्तिपर कोइदेवता निगाहबान बनारहताहै, वह बहुत अर्सतक बनीरहती है,
और जिसमंदिरमुर्तिपर देवता निगाहबान नहीरहता वह थोडेअर्सेतक रहकर बरबाद होजाती है, जैनमजहबमें १-शत्रुजय, २-अष्टापद, ३-समेतशिखर, ४-गिरनार, और-५-आबु-ये-पांच बडेजैनतीर्थ मानेगये है, जिसमें तीर्थशत्रुजय निहायतपुराना और मुत्तवरिकहै, तीर्थकर रिषभदेवमहाराज यहांकइदफे तशरीफ लायेथे,जमानेतीर्थकर रिषभदेवके राजाभरतचक्रवर्तीने पहाडअष्टापदपर बडेआलिशानजैनमं. दिर तामीरकरवायेथे, जब तीर्थकर रिषभदेव महाराजने वहांपर मुक्तिपाइ, वहजैनतीर्थ कहलाया, करीब अढाइ हजारवर्स पेस्तर तीर्थकर महावीरके बडेचेले गौतमगणधर इसतीर्थकी जियारतको गयेथे सूत्रआवश्यक अवल अध्ययनकी टीकामें इसका बयान दर्जहै, .. जमाने सगरचक्रवर्तीके तीर्थअष्टापदकी इर्दगिर्द खाइ बनादिइगइ और समुंदरका पानी उसमें शरीककरदियागया जिससे आजकल वहां कोइ-जा-नहीसकता, गौतमगणधर जो गयेथे अपनी तपोलन्धि से गयेथे, तीर्थअष्टापद-भारत मध्यखंडकी उत्तर और वैताढय पर्वतकी दखनमें है जैसा जानना, पहाड हिमालयकों किसीसुरत अष्टापदनहीकहसकते, पहाड समेतशिखरपर तीर्थकर अजितनाथ महाराजने मुक्तिपाइ वह जैनतीर्थ कहलाया इसीतरह चौइसतीर्थकरोके कल्याणिक जहांजहां हुवे-वे-सब जैनतीर्थ कहलातेगये, तीर्थउसका नामहै जहांजाकर जीव संसारसमुद्रसे तीरे मगरशर्त यहहैकि-दिलकी सफाइ होनाचाहिये-तीर्थ तीनतरहसे मानेगयेहै, १-तीर्थंकरोकी
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दिवाचा.
(५) कल्याणिक भूमि, २-मुनिमहाराजोकी निर्वाण भूमि और ३-अतिशय युक्तक्षेत्र, ___कइ जैनतीर्थ जमानेहालमें कमजोरहोगयेहै, उनकी मरम्मतहोना दरकारहै, कहपुराने जैनतीर्थोके नाम निशानभी नजर नहींआते, ज्ञानियोका फरमानाहैकि-किसीचीजकी हालत हमेशां एकसरखी नहीरहती तीर्थकर रिषभदेवसे लगाकर महावीरस्वामी तकका इतिहास देखोतो कल्पसूत्र और त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरितमें मिलेगा, सूत्रआवश्यक-नियुक्तिमे लिखाहैकि-पुरिमताल नगर जोकि-अयोध्याका शाखानगरथा, एक-वग्गुरनामके श्रावकने वहांपर तीर्थकर मल्लिनाथजीका मंदिर तामीर करवायाथा, जमाने अखीर तीर्थंकर महावीरस्वामीके राजा श्रेणिक राजगृहीके तख्तपर अमलदारी करताथा, वह पेस्तर जैननहीथा, मगरपीछे तीर्थकर महावीरकी धर्मतालीमसे जैनमजहबपर पावंदहुवाथा, श्रेणिकका बेटा जिसकानाम कौणिक-वा-अजातशत्रुथा, वह-जैनथा, और उसने अपनीराजधानी चंपानगरीमें कायम किइथी, कोणिकका बेटा उदायीहुवा, यहभी जैनमजहबपर साबीतकदम था, और इसने अपनी राजधानी शहर पटनेमें कायम किइथी, उदायोके तख्तपर नंदनामका राजाहुवा उसकी राजधानीभी पटनाहीरही, बादउसके आठराजे नंदनामकेही पटनाके तख्तपर होतेरहे, भुपावली ग्रंथमें लिखाहैकि-नवनंदोनेपटनेकेतख्तपर ( १५५) वसंतक राज्यकिया, नवमें नंदको चंद्रगुतने शिकस्त दिइ, ओर पटनेके तख्तार अपना अमल दरामदकिया वह मौर्यवंशके खानदानका था, बंगालहातेके प्रांत उडीसामे करीब शहर कटकके उदयगिरिपर कईपुरानी गुफाहै, इनसबमें हाथीगुफानामको एकबडीगुफाहै जिसमे सतरां पंक्तियोका एकबडा शिलालेख चैत्रवंशके कलिंगराजा खारवेलका मोजूदहै, इस गुफामें दुस
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(६)
दिवाचा. राकोइ एसानिशान नहीपाया जाताकि-कोनसे मजहबवालोकी यह गुफाहै. मगर दोतीनसवुत एसेमिलते है जिससे मालूमहोताहैकियहगुफा जैनोकीथी, उपरलिखेहुवे शिलालेखकी शुरुआतमें नमोअरिहंताणं एसापाठलिखाहै, और बारहमी पंक्तिमें नंदराजनितस अगजिनस-एसा पाठभी मौजूदहै, इससे मालूम होताहै नंदराजाने लायाहुवा अग-या-अरनाथजिनका कुछहालहै, मगरअपसोसहैकि आगेका लेख टुटगया है, चौदहमी पंक्तिमें लिखाहैकि-कुमारी पवते अरहतोपनिवासे-निषिद्यां-एसालिखाहै, इसमें अरहदउपनिवासका वयानहै, इनसबुतोंसें पायाजाताहैकि-यह गुफा पेस्तर जैनोकीथी, मोर्यराज्यके संवत् (१६५) में यहलेख लिखागयाहै, इससे मालूम होताहैकि-खारवेलराजा इस्वीसनके (१५७ ) वर्स पेस्तर मौजूद था, अरहंतपसादानंकलिंगानंसमनानं-एसापाठहै, इससे मालूमहोता है, यहगुफा कलिंगमें रहनेवाले जैनश्रमणोके लिये बनाइ गइथी,चंद्रगुप्तकाबेटा बिंदुसारहुवा,यहभी जैनथा, बिंदुसारका बेटा अशोक हुवा, यहबौधथा, राजामियदर्शी अशोकके-शिलालेख-जो हिंदमें बौध धर्मफेबारेमें कइजगह देखतेहो, इसी अशोकके समजिये, अशोकका बेटा कुणालहुवा, और कुणालका बेटा राजासंपतिहुवा, तीर्थकर महावीरस्वामीकेबाद (२९०) वर्स पीछे राजासंपति मौजूदथा, और उसकी राजधानी शहर उजेनमें कायमथी, और यह जैनमजहबपर पावंदथा, जैनाचार्य आर्यमुहस्ती महाराजकी धर्मतालीमसें इसकों इसकदर दिलजमाइ होगइथीकि-दुनियामें आलादर्जेकी चीजधर्म है, इसने वहुतसे जैन मंदिर और जैनमूर्तिये तामीरकरवाइ, तीर्थशत्रुजय गिरनारपर अबभी उसकेबनायेहुवे-जैनमंदिर-मौजूदहै, तीर्थंकरमहावीरके निर्वाणवाद (४७०) वर्स पीछे, उज्जेनके तख्तपर विक्रमादित्यहवा, जिसका संवत् अबतक जारीहै, संवत् (१०८) में मुल्क
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दिवाचा.
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काश्मिरके सोदागिर जावदशाहशेठने तीर्थशत्रुजयपर बडेआलिशान जैन मंदिर तामीर करवाये, जावडशाहशेठ बडे खुशनसीब और इकबालमंद हुवे,___ महाराज कनिष्क इस्वीसनके पहले सेकडेमें हुवा, यहबात इतिहासिक किताबोंसें साबीतहै, महाराज हुविष्क-महाराज वासुष्क ये दोनों-महाराज कनिष्कके बादहुवे, कइजैनशिलालेख इनकेजमानेके हिंदमें मिलते है, मगर-ये-खुद जैन नहीथे,-सर एलेकझंडर कनिंगहेमके आरकीओलोजिकल सर्वेरिपोर्ट में कइ जैनलेख छपेहुवेहै एपिग्राफिया इंडिका अखबारमें प्रोफेसर ज्योर्जबुलरके छपवाये हुवे कद जैनलेख मौजुदहै,-इंडियन आंटीकवेरी अखबारमेंभी-कइ जैनलेख छपेहुवेहै,-तीर्थपावापुरी जो-पूरवमें एकमशहुर जैनतीर्थहै, वहांपर बीचतालावके तीर्थकर महावीरस्वामीका मंदिर पुरानाहै,गांवमें जो बीच धर्मशालाके तीर्थकर महावीरस्वामीका मंदिरहै, तीर्थ कर महावीरस्वामीकी मूर्ति संवत् (४४४) की प्रतिष्टित उसमें जाये। नशीनहै, संवत् ( ८०२) के अर्सेमें जैनाचार्य बप्पभटमूरिकी धर्मतालिमसें गोपाचलके आमपाल राजाने गोपाचल दुर्गमें एकबडाजैन मंदिर बनवायाथा, यहवात चतुर्विंशति प्रबंधमें लिखी है,- .
किताव प्राचीनशिलालेखमाला-जो-निर्णयसागर-प्रेस-बंबइमें छपीहे कितनेक जैनलेख उस्मेभी दर्ज है गवरमेंट सेंटलप्रेस बंबइमें जो-आर्कीओलोजिकल सर्वेरिपोर्ट सन ( १९०४ ) से लेकर ( १९०९ ) तकके छपेहै, उनमेभी कितनेक जैनलेखोंका मतलब छपाहै, जिनकों तबारिखपढनेका शौखहै देखनेसे बखूबी मालूमहोगा, ___ भावनगर प्राचीन शोधसंग्रह भाग पहला-जोकि-भावनगर दरबारी प्रेसमें छपाहै, उसके पृष्ट (९३) पर नाडलाइके जैनमंदिरका लेख संवत् (९६४) के अर्सेका छपाहै, विमलशाहशेठ-जो
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(८)
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दिवाचा. कि-राजा-भीमदेवके दिवानथे, संवत् (१०८८) के अर्सेमें उनोने आबुपहाडपर बडे खूबसुरत जैनमंदिर बनवाये, संवत् (१९८३) के अर्सेमें महाराज सिद्धराजजयसिंहने शहरपाटन-मुल्कगुजरातमें तीर्थकर रिषभदेवमहाराजका मंदिर निहायत उमदा बनवाया, और उसमें बडी आलिशान मूर्ति तीर्थकर रिषभदेवजीकी तख्तनशीन किइ, जैनाचार्य-श्रीदेवमूरि महाराजकी हयातीमें नाहडमंत्रीने कोरंटक वगेरा नगरमें बहुतसें जैनमंदिर तामीर करवाये, गुर्जरदेशभूपावली ग्रंथके (४१) के श्लोकमें बयानहै कि-संवत् (११९९) में राजाकुमारपाल हुवा, जो जैनमजहबपर निहायत साबीतकदमथा, उसकी सलतनतका तख्त अणहिल्लपुरपट्टन मुल्कगुजरातमेंथा, गुरुहेमचंद्राचार्यकी धर्मतालीमसें उसके दिलकी तसल्ली होगइथी कि-मुकाविले धर्मके दुनियामें कोइचीज नही, इसीसबब जैनग्रंथोमें परमार्हत कुमारपालभूपाल कहकर इसको लिखाहै, इसने शहर अणहिल्लपुरपटनमें त्रिभुवनविहार नामका मंदिर बडीलागतका तामीर करवायाथा. हेमचंद्राचार्य संवत् (१२२९) में देहांतहुचे, और उनकी उमर (८४) वर्सकीथी, राजाकुमारपाल गुरु हैमचंद्राचार्य के फरमानपर इसकदर पावंदयाकि-जो-कुछ-वे-कहतेथे मंजूर करताथा, चुनाचे ! एकदफा राजाकुमारपालने तीर्थतारंगापर बहुत उंचा जैनमंदिर बनवाना शुरु किया, कितनाक बनभी गयाथा, इत्तिफाकन ! गुरु हैमचंद्राचार्यभी-वहां-तशरीफलाये, और मंदिरकों देखकर कहनेलगेकि-बहुतऊंचे मंदिरकी उमर कमहोती है, मुनासिब है अब इसकों ज्यादहउंचा नही बनाना, राजाकुमारपालने उसीवख्त जितना बनायाथा उतनाही कायमरखा, और उसपर शिखर बनादिया, देखो गुरुके फरमानपर राजाकुमारपाल किसकदर पावंदथा ?
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दिवाचा.
संवत् (१२९८) के अर्सेमें राजावीरधवलके दिवान वस्तुपाल तेजपालने तीर्थआबुपर बडे खूबसुरत जैनमंदिर तामीरकरवाये, जो अबवक मौजूदहै, ये दोनों भाइ-आसराजके बेटे और इनकी वाल्दाका नाम कुमारदेवीथा, वस्तुपाल तेजपालने अठरांवर्स तक दि. वानगिरि किइ, और तेरहदफे तीर्थयात्राके लिये संघ निकाले, इस कितावके पृष्ट (१२५) पर तवारिख आबुके बयानमें-जो-शकुनिका विहारका लेखछपगयाहै पढनेवाले महाशय इसको आरासण तीर्थका लेख समजे, क्योंकि-शकुनिका विहारका आकार आबुपहाडपर तेजपालके बनायेहुवे मंदिरकी परकम्मामेंभी है, और आरासणतीर्थके नेमनाथजीके मंदिरके गुढमंडपमेंभी है, राजाओके तामीर करवायेहुवे मंदिरोमें दिवारोंपर पेस्तर गजथर-पा-अश्वथर जरूर लगाये जातेथे. देखो ! आरासण तीर्थमें तीर्थकर नेमिनाथजीके मेंदिरमें गजथर लगाहुवाहै,___ अयोध्या-राजगृही-चंपा-हस्तिनागपुर वगेरा नगरीये-जोजैनशास्त्रोमें लिखी है, जमाने हालमेंभी वही है, दुसरी नही, अलबत्ते ! पेस्तर वडीथी, अबछोटी रहगइ, औरभी कइनगर जैसे हैजो-पेस्तर बडेथे, अब छोटेरहगये, जो-लोगकहते है-ये उपरलिखी नगरीयां दुसरीजगह होनाचाहिये, तो किसजगहपर है उसका सबुत पेश करे, भाषांतर राजतरंगिणी-जो-संवत् (१९५४)में बंबइ गुजराती प्रिंटिंग प्रेसमें छपाहै, पृष्ट (१८) पर फुटनोटकी जगह बतलाया है कि-पेस्तर जमाने अशोकके मुल्क काश्मिरकी राजधानी श्रीनगरमें छलाख मनुष्य आवादथे, गंगासिंधुनदीकी लंबाइचौडाइ पेस्तर ज्यादहथी अब कमरहगइ, इसीतरह कइ बडेबडे शहर छोटे होगये है, लंकानगरी जमाने रावनके बडी रवन्नकपरथी, आजकलबो-रवन्नक नहीं रही, इसीतरह उपर लिखीहुइ बातमी समजना
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(१०)
दिवाचा. चाहिये, कोई महाशय इससे ज्यादह खुलासा देवे-तो-उसको मंजूर करना चाहिये, क्योंकि-दुनियामें-एकसेएक ज्यादह अकलमंद मौजूदहै, इस किताबके पढनेसे गोया मुल्कोंकी सफर घरवेठे हासिल होसकेगी, मुंजे इसके लिये वहुत अर्सेतक सफर करनापडा, और बहुतसी किताबोंका मजमून अकजकरके इसमे लिखनेका इत्तिफाक
। श्रीयुत-श्रावक-हवसीलालजी-पानाचंदजी साकीन बालापुर मुल्क वराडने इसकिताबको छपवाकर जाहिरकिइहै, और कुल्लखर्चा उनीदियाहै, उनकी तस्बीरभी इसकितावमें दिइगइहै, आलीहिम्मत श्रावकहो-तो-ऐसेहो, जो-धर्मके काममें इसकदर खयाल रखतेहै, नकशा हिंदुस्थानकाभी इसकितावकी अवीरमें दर्जकरदियाहै, ताकि तमामशहर-व-शहर बखुबी मालूम होसकेगे वाद चंदउमदा लतिफे निसकानाम गुलदस्तेजराफत देखोगे, पढकर दिल खुशहोगा, राग रागिनीके भेद और कुछ स्तवनभी अछे कवियोंके बनाये हुवे इसमे दर्जकियेहै अलहासिल ! ज्यादह लिखनेकी चंदाजरुरत नही. जब किताब नाजरीनोकी पाकनजरोंसें गुजरेगी. उमीदहै जरुर पसंददीदा होगी, जोजो महाशय इस कितायके अबलसे ग्राहक हुवेहै उनके मुबारिक नामभी अखीर में दर्ज करदियेहै, ___मुल्कोंकी सफरकरनेसे आदमीको चतराइ हासिल होती है, तीर्थभूमिमें जानेसे दिलीतकलीफ रफाहोकर धर्मपर एतकात बढताहै, जिसजगहपर तीर्थकरोन और मुनिमहाराजोने ध्यान कियाहै वहांपर जानेसे धर्मपर दिल रजुहोताहै, न-मालूम-जींदगी किसरीज दगादेजायगी, और इस चोलेका गीरना किसजगह होगा, इसपर खयालकरतेहै-तो-दिलपर जरुरधर्मका असरहोताहै, कोइशख्श नया मंदिर तामीर करवाताहै. कोइ-मुत्ति-बनवाताहै, में-जैनतीयाकी
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दिवाचा.
(११)
तपसीलवार हकीकत लिखकर आमजैनोके सामने रखताई,-ताकिहरेकश्रावककों तीर्थयात्राकोलिये ख्वाहेस पैदाहो, तीर्थों में तरहतरह के मंदिर-मुत्तिये-चरनपादुका-उंचेउंचे शिखर-कारिगीरि-गुफानदी-और-पुराने शिलालेख देखकर दिलपर जरुरअसर-होगा, इरादा शुभहोगा, और शुभइरादेसे पुन्यानुबंधिपुन्य हासिलहोगा, यही सबबहै, इसकितावके बनानेका, किताब-जैनतीर्थगाइडका लि. खाण मैने अंदाज आठवर्स पेस्तरसें तयारकियाथा, मगर मुल्कोंकी सफरमें कितनाक जातारहा, जिसकी वजहसे दुलारा तीयोंमें जाकर तलाश करनापडी, इसलिये इसकिताबके छपनेमें इतनीदेरी हो आमलोग इसकिताबकों पढकर फायदा हासिलकरे,-...
F ब-कल्म-विद्यासागर-न्यायरत्नं
मुनि-शांतिविजय- ....
[मुनिमहाराजोकि तारीफपर.]
(सवैया,-) धातन कलधौतबडा-रत्नोंबिच भाषतहै वरहीरा,. . कुंजरमांही कहे हरिकोंइभ-केशरीसिंहमहाबलबीरा, फुलनमें अरविंदवडा-नगकंबलसें नही दिसतचीरा, त्यूं सबसंघविषे श्रुतचारित-धारमुनीश्वर शोभतधीरा,...
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(१२)
तालीम-धर्मशाख.
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( अनुष्टुप्-वृत्तम् ,) स्वस्तुतिं परनिंदां वा-कालोकः पदेपदे, परस्तुति स्वनिंदां वा-कर्ता कोपि न दृश्यते, उत्तमस्य क्षणं क्रोधो-द्वियामं मध्यमस्य तु, अधमस्य त्वहोरात्रं-चिरक्रोधोधमाधमः, उत्तमपत्तं साहू-मझिमपत्तं च सावया भणिया, अविरय मम्मदिठी-जहन्नपत्तं मुणेयव्वं, मिथ्यादृष्टिसहस्रेषु-वरमेको ह्यणुव्रती, अणुव्रति सहस्रेषु-वरमेको महाव्रती, महाव्रतिसहस्रेषु-वरमेको हि तात्विक, तत्तात्विकसमं पात्रं-नभूतं न भविष्यति, साधूनां दर्शनं पुण्यं-तीर्थभूता हि साधकः, तीर्थ फलति कालेन-सयः साधुसमागमः अन्नं पानं च वस्त्रं च-आलयः शयनाशनं, शुश्रूषा-वंदनं-तुष्टिः-पुण्यं नवविधं स्मृतं, पंचैतानि पवित्राणि-सर्वेषां धर्मचारिणां, अहिंसा सत्यमस्तेयं-त्यागो मैथुनवर्जनं,
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फेहरिस्त-जैनतीर्थगाइड, (१३) [ फेहरिस्त-जैनतीर्थ गाइड,] ..
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विषय, १ इबादत जिनस्तुति सवैया, २ शुरुआत किताब. ३ हिदायत-उल-आम, ४ कानुन रैलवे, ५ तालीम धर्मशास्त्र, ६ बयान शकुनशास्त्र, ७ दरबयान अष्टांग निमित्त, ८ तवारिख शहर बंबइ, ९ बयान शहर सुरत, १० तवारिख अश्वावबोध और शकुनिका विहार, ११ बयान शहर बडोदा, १२ दरवयान शहर खंभात, १३ बीच बयान शहर अहमदाबाद, १४ बयान विरमगांव-चढवाण-और-लीमडी, १५ तबारिख तीर्थशत्रुजय, १६ बयान शिहोर-भावनगर और गोधा, १७ तवारिख तीर्थगिरनार, १८ बयान पोरबंदर और द्वारिका, १९ बयान राजकोट और जामनगर, २० बीचबयान भद्रेश्वर और घ्रतकल्लोल, . २१ ववारिख तीर्थ शंखेश्वर, । २२ तवारिख तीर्थ भोयणी,
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( १४) फेहरिस्त-जैनतीर्थगाइड, २३ तवारिख तीर्थ तारंगा २४ तवारिख तीर्थ आरासण, २५ तवारिख तीर्थ आबु, २६ तवारिख तीर्थ बंभणवाड, २७ तवारिख पंचतीर्थी (वरकाणा-नाडोल-नाइलाइ-घाणे
राय-और-रानकपुर,) २८ दरवयान पाली और जोधपुर, २९ तवारिख ओशियानगरी, ३० बयान शहर अजमेर और चितोडगढ, ३१ बयान शहर उदयपुर,
१५९ ३२ तवारिख तीर्थ केशरिया, ३३ तवारिख तीर्थ फलौदी ( मेरटा,) ३४ बयान शहर नागोर और विकानेर,
१७१ ३५ दरवयान शहर जयपुर और अलवर, ३६ बयान शहर देहली, ३७ तवारिख तीर्थ हस्तिनापुर,
१८० ३८ बयान शहर अंबाला, लुधिहाना और जालंधर, ३९ दरवयान शहर अमृतसर, ४० तवारिख तीर्थ कांगडा, (किंगढ, ).....
१८९ ४१ बयान शहर लाहोर और गुजरानवाल, (मुलतान) १९० ४२ तवारिख तीर्थ वीतभयपत्तम. ४३ बयान शहर जंबू और मुल्क काश्मिर, १९४ ४४ तवारिख तीर्थ कंपिलपुर, ४५ तवारिख तीर्थ मथुरा, ४६ बयान शहर आगम
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फेहरिस्त-जैनतीर्थगाइड, ४७ तवारिख तीर्थ शौरीपुर, ४८ दरबयान कानपुर, (लखनउ,) ४९ तवारिख तीर्थ कौशांबी, ५० दरबयान शहर इलाहाबाद और फैजाबाद, ५१ तवारिख तीर्थ रत्नपुरी, .२ तवारिख तीर्थ अयोध्या, ५३ तवारिख तीर्थ सावथ्थी, ५४ बयान मुल्क नयपाल, और पहाड हिमालय, ५५ तवारिख तीर्थ बनारस, ५६ तवारिख तीर्थ सिंहपुरी, ५७ तवारिख तीर्थ चंद्रावती, ५८ तवारिख तीर्थ भद्दीलपुर, ५९ तवारिख तीर्थ राजगृही, ६० तवारिख तीर्थ कुंडलपुर और सुबेविहार, ६१ तवारिख पावापुरी और गुणशिलवन उद्यान, ६२ तवारिख तीर्थ पटना, ६३ तवारिख तीर्थ मिथिला, ६४ तवारिख तीर्थ काकंदी, ६५ तवारिख तीर्थ क्षत्रीयकुंड गांव, ६६ तवारिख तीर्थ चंपापुरी, ६७ तवारिख तीर्थ समेतशिखर ६८ तबारिख तीर्थ वर्द्धमान, ६९ तवारिख शहर-कलकत्ता, * ७० तवारिख मुल्क आसाम और ढाका, । ७१ तवारिख शहर मुर्शिदाबाद,
२३५
२४५
२४७
२५५
२६२ २६६
२६७
२६९
२७२
२९४ २९५ २९९
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(१६) फेहरिस्त क्षेत्रतीर्थगाइड, ७२ परिसह तीर्थंकर महावीरस्वामीके, ७३ बयान शहर बिलासपुर, ७४ चयान शहर रायपुर, ७५ दरबयान शहर नागपुर, ७६ बयान शहर उमरावती, ७७ बयान आकोला और बालापुर, ७८ तवारिख तीर्थ अंतरिक्षजी, मुकाम सीरपुर, मुल्क वराड, ३१२ ७९ बयान भुसावल-बुहानपुर और-खंडवा, ८० तवारिख तीर्थ मांडवगढ,
३१६ ८१ बयान शहर इंदोर, ८२ तवारिख तीर्थ उज्जेन, ८३ तवारिख तीर्थ मकसीजी, ४४ बयान शहर रतलाम,
३२१ ८५ बयान शहर मंदसोर,
३२२ ८६. बयान जलगांव-पांचोरा-और-मनमाड, ८७ बयान शहर औरंगाबाद और जालना, ८८ दरबयान शहर हैदराबाद, (दखन.) ८९ तवारिख तीर्थ कुल्पाकजी, ९० बयान शहर बेजवाडा, ९१ दरवयान शहर मद्रास, ९२ बीचबयान शहर त्रिचिनापल्ली और मदुरा, ९३ सवारिख तुतीकोरीन, ९४ ववारिख लंका, ९५ बयान इरोड, ९६. दरवयान कोचीन,
२
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३४७ ३४७ ३४९.
३५० ३५१
फेहरिस्त-जैनतीर्थगाइड, ९७ बीचबयान कलिकोट, ९८ बयान शहर बेंगलोर, ९९ दरवयान शहर बल्लारी और किष्कंधा, १०० बीचबयान गदक और हुबली धारवाड, १०१ वयान बेलगांव, १०२ बयान गोकाक, १०३ दरबयान सितारा, १०४ तवारिख शहर पुना, १०५ बयान शहर अहमदनगर, १०६ बयान शहर एवला, १०७ तवारिख तीर्थ नाशिक, १०८ तवारिख तीर्थ थाना, १०९ बयान विरान और नामांतर होगयेहुवे तीर्थोका, ११० जैनचेत्यस्तव, १११ नसिहत-उल-आम,
[ गुलदस्ते-जराफत.] १ एक कंजुसशेठ और शेठानीका लतिफा, २ एक मालिक और नोकरका किस्सा, ३. एक कमअकल लडकेका लतिफा, ४ एक शुस्त आदमीका जिक्र, ५ एक कंजूसका किस्सा, ६ एक साहुकार और धोबीकी तकरीर, ७ बेटेके लिये वापकी हिदायत, ८ एक पंडित और बेसमज विद्यार्थी, ९ वालिद और लडकेकी गुफतगू,
३५२. ३५३ ३५७
३६०
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३७५ ३७५ ३७६ ३७७ ३७८ ३७९
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( १८ )
फेहरिस्त - जैनतीर्थगाइड,
१० हिकायत एक गुरुजी और श्रावककी, ११. नवजवान और बुढेकी गप्प, १२ एक हकीम और मरीजकी तकरीर,
१३. एक कर्जुसका जवाब,
१४ एक हकीम और मरीजका बयान, १५ औरत मर्दका मलाइकेलिये झगडा,
१६. एक नोकरकी फिजहूल बडाइ, १७ एक दिवानेका किस्सा, १८. एक मुसाफिरका लतिफा,
१०. फुलकी बडाइ, २० एक बुढेकी चालाकी, २१ दोस्तोंकी बातचित,
२२ एक घोडसवारका मजाक,
२३ दुनियाकी हिसका किस्सा,
२४ एक कंजुसका लतिफा, २५ एक शेर और सुअरका मुकाबिला,
२६ दोस्तोंकी बातचित,
२७. जरबुल अमसाल, २८. अफीमचीका किस्सा,
२९. एक अकलमंद मुसाफिर और भालुका लतिफा,
३०. एक बाबुसाहबकी मुलाकात,
३१. चौरीका नतीजा.
३२. एक चौरकी रहमदिली, २३. हिदायत गुरुजीकी चेलेकों, ३४. एक वापबेटेपर दुनियाकी जवान,
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फेहरिस्त-जैनतीर्थगाइड, ३५ एक मालिक और नोकरका किस्सा, ३६ तकदीरका तकाजा, ३७ गुरुजीसे चेलेका सवाल, ३८ रास्तेकी तलाशीपर किसानकी हाजिर जवाबी, ३९ एक नजुमी पंडितकी चालाकी, ४० एक मश्करेकी गुस्ताखी, ४१ बापकेशाथ वेटेकी ३अदवी, ४२ एक वजीरकी उमदा तकरीर, ४३ एक हकीम और मरीजका मजाक, ४४ मुताबिक धर्मशास्त्रके चारचिजोकी तलाश, ४५ दो मुसाफिरकों एक किसानका माकूल जवाब, ४६ मौसिम कौनसा अछा, ४७ जैनधर्मकी चंदवाते, ४८ दोस्तकसाथ दोस्तकी चालाकी, ४९ सवाल बादशाह अखबरका दरवारी मुसाहिबोंसे, ५० एक अकलमंद मुन्शी, ५१ एक अनपढ राजेका जिक्र, ५२ एक जजसाहब और मुमरीम, ५३ एक हाजिर जवाब लडका, ५४ संस्क्रत इल्मकी तरक्की, ५५ एक कंजुसका मजाक, ५६ एक जाहिल नोकरका लतिफा, ५७ चार दामादोंका किस्सा, ५८ एक मालिक और गुस्ताख नोकर, ५९ दरियावकी सफर,
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( २० )
फेहरिस्त - सवाने अमरी
६०. बादशाहका सवाल और अकलमंदका जवाब, ६१ एक उस्ताद और बेअदब लडका,
.६२ एक बेवफा लडका, ६३ सांप और चुहेकी नकल,
६४ एक शेठके घर चोरोंका आना,
६५ गुरुजीकी नसिहतपर चेलोकी गुस्ताखी,
६६ भाइ और बहेनका किस्सा,
६७ एक उस्ताद केसाथ शागिर्दकी गुस्ताखी, ६८ एक हकीम साबका नाडी देखने जाना,
६९ चारपंडितोंका लतिफा,
७० उंठके कानपर मछरकी अवाज, ७१ जिनगुणस्तवन और उपदेशिक पद, ७२ जैन तीर्थगाइड के ग्राहकोका लिष्ट,
१ शुरुआत सवाने उमरी,
२ कायदे जैन मुनियो,
३. चक्र दीक्षालग्नका,
४ बयान दीक्षालग्नका,
५ हस्तरेखा और दिगरइशारे जिस्मके,
६ चौमासा शहर होशियारपुर, मुल्क पंजाब,
७ चौमासा शहर अमृतसर, मुल्क पंजाब, ८ - चौमासा शहर लुधिहाना, मुल्क पंजाब,
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[फेहरिस्त - सवाने उमरी, ]
जनाब - फेजमा - मग्जनेइल्म - मोअले - उल -- अल्काब जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा - विद्यासागर - न्यायरत्न - महाराज शांतिविजयजीकी सवाने उमरी, ( जीवन चरित - )
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फेहरिस्त - सवानेउमरी,
( २१ )
९ संस्कृत वाक्य, जिसकों हिब्जकरनेसे बखूबी संस्कृत बो
लसकोगे,
१० चौमासा शहर होशियारपुर मुल्क पंजाब, ११ चौमासा शहर विकानेर मुल्क मारवाड,
१७
२२
२२
२४
१२ चौमासा शहर अहमदाबाद, मुल्क गुजरात,, १३ चौमासा शहर सुरत, मुल्क गुजरात,
२५
१४ चौमासा शहर पालिताना, जिले काठियावाड, मुल्कसौराष्ट्र, २७
१५ चौमासा शहर राधनपुर, मुल्क गुजरात,
२९
१६ चौमासा शहर अहमदाबाद, मुल्क गुजरात,
३०
३१
३६
३८
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१७ जैन मंतव्यप्रकाश
१८ चौमासा शहर जयपुर, राजपुताना, १९ चौमासा शहर देहली,
२० चौमासा शहर लशकर गवालियर, २१ व्याख्यान धर्मशास्त्र के तेरहकानुन, २२ व्याख्यान मूर्तिपूजाका,
२३ चौमासा शहर लशकर गवालियर, २४ व्याख्यान सबुती कर्मपर, २५ चौमासा शहर लशकर गवालियर,
२६ व्याख्यान जग्तकर्त्ता के बारेमें, २७ चौमासा शहर लशकर गवालियर,
२८ पृथ्वी फिरती है - या - चांदसूर्य, २९ चौमासा शहर भोपाल,
३० चौमासा शहर इंदोर, मुल्क मालवा,
४०
४२
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४९
५२
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५५
५५
५६
५६
३१ चौमासा शहर रतलाम. मुल्क मालवा, ३२ कवि मोहनलालजी साकीन कुशलगढके बनायेहुवे गुरुभ
क्तिपर दोहे और कवित,
५७
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( २२) फेहरिस्त-सवानेउमरी, ३३ चौमासा शहर मंदसोर मुल्क मालवा, ३४ चौमासा शहर लखनउ-अवधप्रदेश, ३५ शुरुआत रैलविहार, ३६ चौमासा शहर मुर्शिदाबाद मुल्क बंगाल, ३७ चौमासा शहर कलकत्ता, मुल्क बंगाल, ३८ चौमासा शहर मंदसोर, मुल्क मालवा, ३९ चौमासा शहर आकोला, मुल्क वराड, ४० चौमासा शहर जबलपुर, मध्यप्रदेश, ४१ कवि सुरजमलजीके बनायेहुवे गुरुभक्तिपर दोहे औरशेयर,७३ ४२ चौमासा शहर धुलिया, खानदेश, ४३ चौमासा शहर पुना मुल्क महाराष्ट्र, ४४ चौमासा शहर आकोला, वराड, ४५ कवि सुरजमलजीके बनायेहुवे गुरुभक्तिपर कवित्त दोहे
और पद, ४६ चौमासा शहर हैदराबाद. दखन, ४७ महाराजका हमेशांका वर्ताव, ४८ गुरुभक्तिपर लावनी, ४९ लावनी अष्टपदी, ५० महाराजकी बनाइहुइ पांच गुहली, ५१ सोभागचंद्रजीमुणोतका बनायाहुवा गुरुभक्तिपर पद, ९४ ५२ तीर्थकर महावीरस्वामीके जन्मपर सिद्धार्थ राजाकेघर खु
शीकी निशानी,
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This book is published by Hawsilaljee. -Panachandjee. Balapur Dist Akola. (Berrár)
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LS [सवान-उमरी,
The Life and Times of
Mooni Shantivijejee,जनाब फेजमाब-मग्जनेइल्म-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टाविद्यासागर-न्यायरत्न-महाराज-शांतिविजयजीकी
सवाने उमरी-(यानी,) जीवन-चरित.)
महाराजका जन्म संवत् (१९१७ ) में शहरभावनगर--जिले काठियावाड मुल्क गुजरातमें हुवा, उनकेवालिदका नाम मानकचंदजी-और वाल्दाकानाम रलियातकवरथा, दोनों जैनमजहवपर साबीतकदम और पके एतकातवालेथे. जब उनकेघर बेटा पैदाहुवा बडीखुशी हासिलहुइ, और नाम उनका हठीसिंहरखा, जब उनकी उमर करीब आठसालकी हुइ इनकेवालिदने इनकों इल्म हासिल करनेकेलिये मदर्सेको भेजे, और इनकी छोटीउमरमें अकल इतनी तेजयीकि-किसीशख्शसे एक मरतबा कोइ बात सुनलेतेथे फौरन . याद होजातीधी. और लोग इनकीअकलकी तारीफकरतेथे. दश वर्षकी उमरमें इनकेवालिदका इंतकालहोगया और इनकेचचासाहब शेठ मूलचंदजी इनकी परवरीश करनेलगे. हमेशां अपने भतीजेकों
जैनमजहबकी बहुतसी हिकायते और किस्से कहानी कहाकरतेथे, 'पस ! इनकों बहुतसीहिकायते बडेबडे आलिम फाजिलमुनिओंकी मुहजवानी याद होगइ, और-ये-इसकदर छोटी उमरमेंभी देव. पूजन करतेये,
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(२)
सवाने-उमरी. जब इनकी उमर बारांसालकी हुइ वाल्दाका इंतकाल हुवा. सीर्फ ! चचासाहब-और-चचीसाहिबा इनकीपरवरीशकेलिये मौजूदथे. और उनोने इनकों दिलोजानसें परपरीशकिआ चौदहवर्षकी उमरमेंइनोने सातगुजराती किताबेंपढकर इल्मअंग्रेजीपढना शुरु किया. और दोसालमें अंग्रेजीकी तीनकिताबें पढली. शहरभावनगरमें जो जैनमजहबीमदर्सा जारीथा वहांभी जाकरमजहबी इल्मपढतेथे. अछीअछी नजीरे अपनेमजहबकी जो-आलिमफाजिलोंकी बनाइ हुइथी-जबानी-याद करतेथे, जबकभी दोस्तोकेशाथ-हवाखोरीकों या-खेलकरनेकोंजातेथे यहीकहाकरतेथेकि-दुनिआमें धर्म एक-आलादर्जेकीचीजहै. और दुनयवीकारोबार उसकेपीछे है, एक सुखी एक दुखी-एक अमीर-और-एक गरीब-यहसब पूरवजनमके किये हुवे पुन्यपापका फल है. दोस्तलोग इसवातकों सुनकरहसतेथे और कहतेथेकि-अगर-एसेहीधर्मपावंद बनतेहो-तो-हवाखोरीकों-क्यों आये ? साधु होजानावहेतरहै.-उनके जवाबमें--यही-फरमातेथेकब-बहदिन आवे, और-में-साधु बनु.
अठारहवर्षकी उमरमें पंचप्रतिक्रमणे-पूजन-जिवविचार--नवतत्व-दंडक-कर्मग्रंथ-क्षेत्रसमान-और-स्वरोदयज्ञान वगेरा जबानी हासिल करलियेथे,-अकसर जब शहरभावनगरमें कइ जैनमुनिमहाराज आयाकरतेथे तब-ये-उनकी खिदमतमें मशगुलरहतेथे, और शहरकेआदमी इनकोलिये अकसर कहाकरतेथेकि-क्या ! आपभी साधु होजाओगे. ?-एक वख्तका जिक्रहै जब महाराजश्री वृद्धिचंदजीसाहब-जो-बडे आलिमफाजिल जैनमुनिथे शहर भावनगरमें तशरीफ लाये और उनोने जबव्याख्यान धर्मशास्त्रका वाजकियायेभी-उनके व्याख्यान सुननेकोंगये, और उनोनेजब यहव्याख्यान दियाकि-जो-शख्श-रातकेवख्त खानेपीनेसे परहेजकरेगे बहदुर्ग
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सवाने-उमरी. तिकी सफर-न-करेगें, इनोने यहबात सुनकर उसीतारिखसे हमेशांकेलिये अपना खानापीना रातकेवख्तका कतइ छोडदिया.
संवत् ( १९३२ ) में जब महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजी-जो-बडे आलिमफाजिल-और-जैनमजहबके बडेपावंद थे-भावनगरमें-तशरीफलाये औरचारमहिने उनोनेअय्याम वारीश कयामकिया उसवख्त-येभी-वास्तेमजहबी वहेससुननेके जायाकरतेथे, चारमहिनेतक हरहमेश व्याख्यानसुनतेरहे, और इनका एतकात धर्मपरवढा. और यहभीदिलमें मुसम्मीमइरादा करलियाकि-दुनयवी-कारोबारछोडकर दीक्षालेना बहेत्तरहै, बादवारीशके जब महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीसाहब-करीबएक हजारभावकलोगोकेशाथ तीर्थगिरनारकी जियारतकों-पांवपैदल जानेपरआमादाहुवे इनके चचासाहब मूलचंदजीने अपनेरिस्तेदारोकेशाथ इनकोंभी तीर्थगिरनारकी जियारतकेलिये भेजदिये, भावनगरसेरवानाहोकर शत्रुजय-तलाजा-महुवा-दीव-वेरावलपटनमांगरोल-धोरांजीहोतेहुवे तीर्थगिरनारकों पहुचे. औरवहांकी जियारतकिइ, बादचंदरौजके जबतीर्थ गिरनारसे रवानाहोकर शहर जामनगरकों गयेऔर वहांकीभी जियारतकिइ, वहांसे महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीसाहब-मुल्कपंजाबकों जानेकलिये तयारहुवे, और भावनगरके श्रावकलोग अपनेवतनकों लोटनेलगे. उसवख्त इनोने दोकोशपर एकधुवावनामकेगांवमें जाकरदीक्षा इख्तियारकिइ, दुसररोज रिस्तेदारोनेतलाशकिइ और इनकोअपनीसोबतमें नहींदेखे-तो-मालूमहुवाकि-इनानेदीक्षा इख्तियारकर लिइहै, रिस्तेदारलोग इनकेपास आयेऔर इनकासाधुपनेका वेष | अलगकरदिया, झोलीपात्रेखोसकर इनको वापिसजामनगरमैलाये. ', और अपनेशाथ भावनगरकोलेचले, औरजब-ये-भावनगरमें आये
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( ४ )
सवाने-उमरी. इनकेचचासाहब मूलचंदजी दसकोशतक सामनेगये, और इसअंदेशेसे अपनेभतीजेको कुछभी सख्तवातनही किइकि-इनकादिल नाराज-न-होजाय. मगरजब भावनगरमें आयेइनकी बहुतहांसी हुइ, ख्याह-दोस्त-या-रिस्तेदारलोग-औरउनकी औरतेंभीइनसे तानाजनी करनेलगीकि-वाह ! वाह ! ! आपतो साधुहोगयेथे, अब क्यौं वापिस दुनियादारीकेकामोमें आये, ? महाराज बेशक ! उस वख्तबहुतशर्मीदेहुवे. मगर अमरलाचारी चचासाहब और दिगर रिस्तेदारोंके दो-सालतक-दुनियादारीकी हालतमेरहे, और अपने मुसम्मीमइरादेकों नहीछोडा, इसअर्से में महाराजश्री आत्मारामजीआनंदविजयजीसाहब-और-महाराजश्री लक्ष्मीविजयजीके खत इनकेपास आयाजायाकरतेथे और-येभी-उनकों बराबर जवाबदेतेरहतेथे, जाहिरातमें तो ये-दुनियादारीकेकामोमें मशगुलथे-मगर अंदरुनी इरादाइनका उसीतर्फलगाहुवाथा. और अकसरलोगऐसा कहाकरतेथेकि-ये-फिरसाधुहोजायगें, और इनकोंरातदिन यही ख्यालरहताथाकि-में-इनदुनियादारीके कामोंसे छुटकरकब अपने असलीइरादेकों पुराकरु, हमेशां देवपूजन--सामायिकप्रतिक्रमणचौदहनियम-और-परमेष्टिमहामंत्रका जाप कियाकरतेथे. इनकों पापके कामोंसें अजहदपरहेजथा.
इनके चचासाहबने इनकीसादीकेलिये बहुतकोशिशकिइ-मगर ये-उनकों-साफजवाबदेतेथेकि-में-सादी नहीकरनाचाहता. क्यौंकि-मेरारहना इसदुनिया में चंदरौजकाहै. इनके चचासाहबके कोइ लडका नहीथा इसलिये उनका स्नेह अपनेभतीजेपर ज्यादाहोना एकस्वाभाविकबातथी. हमारेचरितनाकको-स्वरोदयज्ञानसे वर्ताव करना लडकपनसेही स्वभावया. चंदस्वरमपानी-दुध-वगेरापीतेथे. और सूर्यस्वरमें खानाखातेथे. और अकसरअपने दोस्त और रि
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सवाने-उमरी.
( ५ ) स्तेदारोंकेशाथ दुनियादारीकेकामोंमें मशगुलरहतेथे, मगर दिल इनका अपनेअसलीइरादेपरथा, जबकभी दोस्तलोगोकेशाथ मजहवीवातपर बहेसहोतीथी-ये-फौरन ! उनकों जवाबदेतेथे धर्मसच्चा है. और सुख दुखमिलना अपनेअपने कियेहुवे कर्मों का फलहै, असलमें इनकीदलीले आलादर्जेकी तेजथी. कभीकभी ऐसामौकाभी आनपडताथाकि-रातकेबख्त--इनकेदोस्त किसीमकानमें अलायधा जमाहोतेथे-और-जब रात्रीभोजनकरने-न-करनेकेवारेमें वहेसहो. तीथी-तब-ये-जवावदेतेथेकि-जैनशास्त्रोमें रातकारखाना मनाहै, दोस्तलोग कहतेथे जिसचीजमें दिनमें जीवनही है-तो-रातको कहांसेआगये ? जवाबमें फरमातेथे-कितीशख्शने समझो रातकेवख्त एकलोटेमें पानीभरकरपिया, उसलोटेमें सेंकडोचीटीयां बसबबठंडकके फिररहीथी, पानीकेशाथ पीनेवालेशख्शकेपेटमें-वे-सेंकडोचीटीयां चलीगइ. बतलाना चाहिये रातकेवख्त खानपानकरनेसे अपनाऔर दुसरेजीवोंका विगाडहै-या-नही, ?-सबुतहुवा रातके वख्त खानपानकरना-खौफ-व-खतरसेमराहै. इसीलिये जैनशास्त्रोमें रात्रीभोजन करना मनाफरमाया, जैसेमकानमें हमेशांचोरीका होनासंभव-नहीहोता, मगर-तोभी-हरेकशख्श अपनामकान बंद करके सोताहै इसीतरह-धर्मकों चाहनेवालाशख्श रातकोंखानापीना बंदरखे इसीमेउसकाभलाहै, ऐसीऐसीदलीले हमेशांहोतीरहतीथी, कभीकभी जब दौलतकेबारेमें बहेस होतीथीतबभी-यही जवाबदेतेथेकि-दौलतभी मुकाबिले धर्मकेकोइ चीजनही,
इसतरह इनोने दुनियादारीके काममें तीनवर्षगुजारे. औरजब इनके चचासाहब-शहर-भावनगरसें-तीर्थ शत्रुजयकी जियारतको गये इनोनेकिसीसे जाहिर-न-करके संवत् (१९३५) फाल्गुनसुदी पंचमीकेरौज मुल्कपंजावतर्फ जानेकेलिये घरसें रवानाहुवे, क्योंकि महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीसाहब-और महाराजश्री
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सवान-उमरी. सवान-उमरा.
लक्ष्मीविजयजीसाहव-उसवख्त मुल्कपंजाबकी सफरमेथे. जिनके पास इनोने पेस्तर दीक्षाइख्तियार किइथी, शहरभावनगरसे रवाना होकर शामकों गोघाबंदरपहुचे, जोकि-सातकोशके फासलेपर वाकेथा. दुसरेरौज वहांसे जहाजमें सवार होकर मुरतगये. सुरतसे ब-जरीये रैलके-बंबइ-और-चंबइसे भुसावल-खंडवा-हरदा-जबलपुर-इलाहाबाद-गाजियाबाद-मेरट-अंबाला-लुधिहाना-होतेहुवे मुल्क पंजाबमें जालंधर टेशन पहुचे. और वहांसे (१८) कोशके फासलेपर जो होशियारपुरशहरथा-जहां महाराजश्री आत्मारामजी आनंदविजयजी-साहब ठहरेहुवेथे उनसेजाकर फाल्गुनसुदीतेरसकी शामकों मिले. और एकमहिना उनकी खिदमतमें रहे, जब-मलेरकोटके श्रावकोने गुरुजीकों अरिजा भेजाकि-आप-हमारे शहरमें तशरीफ लावे और इनको चेलाबनावे, गुरुजीकेशाय-ये-मलेरकोट गये और वहांकेलोगोने बडी शानसौकतसे इनका जलसा किया, *संवत् (१९३६) वैशाखसुदी (१०) गुरुवारकेरौज-दिनके दस बजे-मिथुनलग्नमें गुरुजीने इनकों दीक्षा दिइ, और इनका नामशांतिविजयजी-रखा, यह दीक्षा इनकी दोबारा समझीये,EF [जैनमुनियोंके कायदे निचे बतलायेजाते है,
किसी रुहकों कतल नहि करना-(यानी) चीटीसेलेकर हाथीतक किसीकों मारनानही. जूठकभी बोलनानही, किसीकिसमकी चौरी नहिकरना. इश्कबाजी नहिकरना, किसीतरहका लालच नहि करना. रातको नहिखाना, शराब और गोस्तसे परहेजकरना. और किसीतरहका नसाभी नहीकरना, गांजा-भंग-अफीम-माजुम वगे
*चैतसुदी एकमसे संवत्की शुरुआतमाननेसे संवत् (१९३६)मे महाराजने दीक्षा लिइ ऐसा जानना.
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. सवाने-उमरी.
(७) राभी खानापीना नहि. मुल्कोमें फिरकर धर्मकी वाजकरना. और एकजगह मुकीमहोकर नहीरहना. अगर कोई अपनेकों इजापहुचावे तो गुस्सेकी एवज में रहमकरना. शिवाय परमेश्वरके दुसरेकी परवाह नहीरखना. किसीको गाली नही देना, तोहमत नहीलगाना. किसीको धोखा नहींदेना. चुगली नहीं खाना--और-किसीकेशाथ लडना-झघडना नही, मगर धर्मके अवर्णवाद बोलनेवालोकेशाथ बहेसकरते वख्त सख्त-वात कहनापडे तो उसकी मना नही है. हमेशां भिक्षामांगकर अपनी सीकमपरवरीश करना और वख्तपर जोकुछ मिलजाय उसपर शबकरना, सोनेचांदीके जेवर-वा-जवाहिरात वगेरा नहीपहनना, और हमेशां सिर खुला रखना,
8 ( जैनमुनियोंके कायदे खतमहुवे,-) । दुनियाछोडकर दीक्षाइख्तियारकरना सहजबातनहीं है, जवानीमें एशआरामकोछोडना और धर्मपरपावंदहोना बडेबहादूरशख्शोका कामहै-उमदापुशाक और उमदाखाना छोडकर साधुपने का वेशपहनना और घरघर भिक्षामांगना-अगरधर्म प्यारा-न-हो तो ऐसाकोनकरसकताहै, ? महाराजकी तकदीरहम आलादर्जेकी समझते है जिनोनेजवानी में घरछोडकर जंगलकीराहलिइ. ऐसेइकबालमंद और वहादुरशख्शकी सवानेउमरीलिखना यहभी एकअछीतकदीरके ताल्लुकहै, आपलोगोने अकसर कइजीवनचरित देखे होगे-मगर-जिसमे यथार्थवात दर्जकिइगइहो-वही-चरित लाइक तारीफके होताहै,-इसदुनियामें जोकुछफायदाधर्मका-गुरुलोग-पहुचासकते है रिस्तेदारऔर कुटुंबकेलोगनही पहुचासकते, इसीसबवसे हमने इससवानेउमरीको लिखनेकेलिये कलमउठाइहै. महाराजकी सवानेउमरी ऐसीहैकि-अगर इसकोबांचकर कोइ उसपर अमलकरतो निहायतफायदा उठासकेगा, जबकोइखुशनशीब और
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(८)
सवाने-उमरी. इकवालमंदशख्स दुनिया होते है-तो अंदाजकियाजाताहैकि-इनकेऐसेहोनेका सबब पूर्वजन्मका संस्कारहै, और-है-भी-ठीककि-विना पूर्वजन्मके संस्कारके ऐसाहोना दुसवारहै, इसदुनियामें एकसेएकआलादर्जेके शख्स होगये और आगेकोभी होयगे. इसमेंकोइशक नही, जन्मलेनाभी उनहीकासफलहै-जिनकेशरीरसे-कुल-जातिगांव-नगर-औरमुल्कको धर्मकाफायदा पहुचाहो, इनहीखुशनसीव
और-इकबालमंद-महापुरुषोंकी गिनतीमें हमारेचरितनायक-महाराज-शांतिविजयजीभी है--दुनिया मोहरुपी जंजीरसे जडीहुइहै. जहांआराम वहांतकलीफलगी है, युवानी बुढापेसेघीरीहै, सुखदुखकाचक्र हरचीजपरचलरहाहै, दुनियामें उमदाचीजहै-तो-धर्म है, जिनकों धर्मप्यारा होताहै-वेही-दुनियाको छोडकरदीक्षा इख्तियारकरते है,
संवत् (१९३६)-शाके-(१८०१ )-वसंतरुतु वैशाखसुदी१० गुरुवारघटी-४२-५७-मघानक्षत्रघटी-१७-४७-ध्रुवयोगघटी ५०-३६-तैतलकर्ण-एव पंचांगशुद्धिः-दिनमानघटी-३३-४-दिनार्द्ध-१६-३२-रात्रीम.न-२६-५६-उभयघटी-६०-पूर्ण, सूर्योदयसे इष्टघटी-१०-४० ( लग्नघटी) २-२३-९-२० सूर्यघटी ०-१८-२७-५२-महाराजकी दीक्षाका वख्तहै,
॥ दीक्षा लग्नका चक्र ॥
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10.
Jan
मा
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०२०
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संवाने-उमरी. (९) __ महाराजके दीक्षालग्नमें लग्नकामालिक बुधकेंद्र पडाहै इसलिये ज्ञानदर्शन चारित्रका फायदा हासिल होतारहेगा, और धर्मके काममें फतेहमंद रहेगे, आफताबका सितारा ग्यारहमें खानेमें पडाहै इसलिये किसी चीजकी कमी-न-रहेगी, अकल तेज रहेगी. और बडीबडी सभाओमें इज्जित पायगे. चमकताहुवा मंगलका सितारा नवखानेमें वेठाहै इसलिये यह बड़ा फायदेमंद होगा, चंद्रमानवमे खानेकों अपनी माकुल नजरसें देखताहै, वृहस्पति उसी नवमेखानेमें बेठाहै, और शुक्र-उस-नवमेंखानेकों एक नजरसे देखताहै, इसलिये इनका धर्मभुवन बहुत सुधराहुवाहै, धर्मपर बहुत पुख्ता एतकात बनारहेगा, कइ ग्रंथ धर्मकेबारेमें बनायगें. और इनकी लिखीहुइ बातकों बहुतलोग पसंद करेंगे. बुध और शनिके सितारे केंद्र होनेसे और मंगल-वृहस्पति त्रिकोणमेहोनेकी वजहसे हमेशा अपने साधुपनेमें खुश रहेगें, बारहमेंखानेमें शुक्रका सितारा अपने घरका मालिकहोकर बेठाहै इसलिये धर्मके कामोमे और मजहबी बहेसमें हमेशां फतेह पातेरहेगे. और इनकेआगे एकनिशान बतौर धजापताकाके चलेगा, जिसशख्शके लग्नका मालिक भाग्यके मालिकको-और-भाग्यका मालिक लग्नकेमालिकको पुरीतौरसे देखताहो-उसको दीक्षा जरुर हासिलहो, महाराजके दीक्षालग्नमें वही योग पडाहै इसलिये दीक्षा हासिलहुइ. और हमेशां इनका दिल धर्मपरपावंद रहेगा. मगर मंगलका सितारा नवमेंखानेमें पडनेसें इ. नकों अपने गुरुभाइयोसे नाइत्तिफाकी बनीरहेगी. जिस शख्शके लग्नमे नवमेंखानेका मालिक दसमेंखानेमेंपडाहो-और-दसमेखानेका मालिक नवमेखानेमे पडाहो-उसकों हमेशां राजयोग बनारहे. महाराजके दीक्षालग्नमें देखलो ! वैसाही योग पडाहै, जिसकीवदौलत महाराज अपने साधुपनेमें बतौर राजर्षिक बनेरहेगें, और-बडेबडे
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(१०)
सवाने-उमरी. खिताब पायगें, तीसरे भुवनमें चंद्रमा मित्रक्षेत्री होकर पडाहै और धर्मभुवनकों पुरीतौरसे देखताहै इसलिये दिनपरदिन इनके पराक्रमकी तेजीरहेगी. और धर्मकों तरकी देयगे, दुसरे भुवनमें केतुपडा है इसलिये हमेशां सफर करते रहेगे. एकजगह कयाम-न-करेगे. छठे भुवनका मालिक मंगल-नवमे भुवनमें बेठाहै इसलिये बीमारी और दुश्मनोसे मेहफुज रहेगे-यानी-बचेरहेगे. मिथुनलग्नमें दीक्षा लेनेवाला शख्श आलादर्जेका साधुमहात्मा होताहै, महाराजका दीक्षालग्न मिथुनसिरसोदयी होनेसे जोकाम अपनेदिलमे करनासोचेगे उसकों पुराकरके छोडेगे. ख्वाह मुश्किलहो-या-आसानहो, राहुका सितारा आठवे खानेमेपडाहै इसलिये एक मरतबा महाराज बडे इकबालमंद होगे.-आठमेखानेका मालिक शनि-केंद्रमे बेठाहै, बुध सितारा आफताबका दोस्तहै, और आफताब-बुधका अजहददोस्त है इसलिये महाराजकी उमर लंबीहोगी,
( दीक्षा लग्नका बयान खतम हुवा.) [ अब हस्तरेखा-और--दिगरइशारे जिस्मके
बतलायेजाते है.] जिस शख्शकी अवाज पंचमस्वरमें हो-वह-हरजगह इज्जित पातारहे. महाराजकी अवाज पंचमस्वरमें है, जोशख्श हिंमतबहादूर हो-अकसर-बडानसीबेवाला होताहै, और वह शिवाय परमेश्वरके किसीकी परवाह नहीं करता, महाराजकी हिंमत आलादर्जेकी है. जिसशख्शके हाथ इसकदर लंबेहोकि-जब-वह-खडाहो-तो-गोडेतक ब-खूबी पहुचजाय, वह आलादर्जेका इकबालमंद और आलिमफाजिल होताहै. महाराजके हाथभी गोडेतक पहुचते है. जिस शख्शका निलाड उंचा-और-बडाहो-वह नसीवेवर होताहै, महा
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सवाने-उमरी. (११) राजका निलाड उंचा और बडाहै, जिसशख्शके पुरेवत्तीस दांतहोवह-खुशनसीबहोताहै, महाराजकेभी पुरे बत्तीसदांतहै. हरेक शख्शके हाथमें जो तीनरेखा होती है उनमें एकउमरकी-दुसरी दौलतकी-और तीसरीइजितकी होतीहै. अगर-ये-तीनोरेखा लंबी
और पुरीहो-वह-उमरमें-दौलतम-और-इजितमें पुरा कामयाब होताहै. महाराजकी-ये-तीनोंरेखा-व-मुजब मजकुर तेहरीरके है, जिसशख्शके हाथमें धजाका निशानहो-वह-हमेशां इजितपातारहे, यही निशान महाराजके हाथमेंभी है,
जिसशख्शकेहाथमें धनुष्यका निशानहो-उसकी-मुलाकातके लिये बहुतलोग ख्वाहेसमंद बनेरहे, मगरमुलाकातहोना दुसवारहो, महाराजके दाहनेहाथमें धनुष्यका निशानसाफ मौजूदहै, जिसके हाथमें पदमकानिशानहो-वह-अकलमंद-और-शतावधानकरनेवाला होताहै, महाराजके हाथमें पदमका निशानमौजूदहै, जिसके हाथमें त्रिशूलका निशानहो-उसकेआगे धर्मकीवजापताका चले, महाराजकेहाथमे यहभी निशानसाफहै, जिसकेदाहनेहाथकी तीसरीअंगुलीपर चक्रहो-तो-वह-धर्मात्माशख्श होताहै. महाराजके दाहनेहाथकी तीसरीअंगुलीपर हुबहुचक्रहै, जिसशख्शके दोनोहाथोंकी अंगुली-और अंगुठोंमें दाहनेमें दाहनीतर्फ झुकते-और-बायेमेंबायीतर्फ झुफतेहुवे शंखहो-वह-शख्श धर्मात्मा औरदुनियामें मशहूरहोताहै, महाराजकी अंगुलीयोमें शिवाय एकअंगुलीके जो उपरवतलादिइ गइहैऐसेही शंखकेनिशानहै. जिसकेहाथकी-उद्धरेखा-कलाइसेलेकर छोटीअंगुलीतक चलीगइहो-वह-हिम्मतबहादर
और मशहूरशख्शहोताहै, महाराजके हाथमेवहीरेखा मौजूद है. जि. सकेदाहनेहाथके अंगुठे जवकानिशानहो-मशहूर-और-अकलमंद
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( १२ )
सवाने-उमरी. शख्शहोताहै, महाराजके दोनोंहाथोंके अंगुठोमें जवका निशान मौजूद है.
जिसशख्शकी ऊंचाइअपनी अंगुलीयोके नापसे (१०८) अंगुलीहो वहशख्श खुशनसीबहोताहै, महाराजकेशरीरकी ऊंचाइ (१०२) अंगुलकी है, ( यानी) पेस्तर एकरसीसे अपनेशरीरकों खडेहोकर नापे-और फिरवहीशख्श अपनेहाथकी अंगुलीयोके बीचकेमुकामसे-नापे-अगर (१०८) अंगुलकी ऊंचाइ हो-तो-जानना दौलतमंद और खुशनसीब शख्शहोगा. अगर (९६) अंगुलतक ऊंचाइहो-तोभी-उमदाहै. और अगर ( ८२ ) अंगुलतक ऊंचाइहोतो-मामुलीदर्जेका आदमीजानना. और इससे कमहोतो-कमनसीव-जानना, जिसशख्शक दाहने-या-बायेपांवके तलवोंमें नवअंगुललंबी उर्द्धरेखा होवे-वह-राजा-या-महात्माहोताहै, महाराजके दोनोपहरोंके तलवोमें नवनवअंगुलकी उर्द्धरेखा मौजूद है, जिसकेपांवके अंगुठेकेनीचे तलवेमें चक्रनिशानहो-वहशख्श हमेशां मुल्कोंकी सफरकरनेवालाहो-येभी-निशानमहाराजके दोंनोंपेरकेतलवोमें मौजूदहै, जिसशख्शकी नाभि गहरी (यानी) उंडी हो वहशख्श हमेशां खानपानसे सुखीरहे, अगर गहरी-न-हो
और उसकाकुछहिस्सा बहारनिकलाहुवाहो-वह-खानपानसे मोहताजरहेगा, ख्वाह मर्दहो-या-औरतहो, महाराजकी नामि बहुत गहरी है, जिसशख्शके मस्तकपर तिलहो-वह-हमेशां इज्जतपातारहे, महाराजकेमस्तकपर तिलकानिशान मौजूदहै, जिसशख्शके दाहनेहाथपर तिलहोवे-वह-शख्शअपनेहाथकी कमाइ दौलतभोगे,
और हमेशां फतेहमंदरहे, महाराजकेदाहने हाथपर उमदातिलहै, जिसशख्शके दाहनेहाथके पंजेपर लहसन-या-तिलहो, तो-वहशख्शबडासखीहोताहै, महाराजके दाहनेहाथकेपंजेपर लालरंगका
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सवाने-उमरी.
(१३) लहसन मौजूदहै. जिसशख्शके दोनोंपेरोमें किसीपेरपर तिल-यालहसनहोवे वहहमेशां मुल्कोंकीसफर करतारहे. महाराजके बायेपावके उपरकेकनारेपर लालरंगका लहसन मौजूद है -
( हस्तरेखा और दिगरइशारे जिस्मके खतम हुवे,-)
दिक्षा इख्तियार करनेकेबाद महाराजने सिद्धांतचंद्रिका व्याकरण पढना शुरुकिया, और जेठमहिनेमें अपने गुरुजीकेशाथ मलेरकोटसे रवानाहोकर लुधिहाना-जालंधर होतेहुवे-होशियारपुरगये, और संवत् ( १९३६) की वारीश मुकाममजकुरपर गुजारी. मोसमवारीशमें जैनमुनिकों सफर करना मनाहै. इनदिनोमें शहर भावनगरसे महाराजके चचासाहबकेकइखतआये, उनमेंलिखाथाकि तुम-वगेरकहेसुने यहांसे चलेगये-और साधु होगये-हमको बडारंज हुवाहै, वे-दिन-बहुतखुशीके जातेथे जबकि-तुमको हम अपने घरमें देखतेथे, होनहारकेआगे किसीकाकुछबस नहीचलता, हमारी बुद्धिपर पर्दापडगयाकि-हम-तुमकों अकेले घर छोड़कर चलेगये. जबहम घरआये तो-मालूम हुवा-हमारे घरके बहुमुल्यरत्न-हमारे नेत्रोके सितारे-और-हमारे दिल बहलानेके खिलौने-तुम-घरछोडकर चलेगये, तुमकों ऐसाकरना हर्गिज ! मुनासिवनहीथा. तुमारे चलेजानेकारंज हमारेदिलपर इसकदर जमगयाहैकि-जिसकाबयान हमकुछ लिख नहीसकते, हमकों दुनिया सुनसान दिखाइदेती है, हमारादिल अजहद तकलीफपाताहै, हमको उमेदथीकि-थोडेरौजमें तुम घरकाकाम संभाललोगे. लेकिन ! हमारीउमेद खाखमें मिलगइ, आदमीके इरादे कभी पुरे नहीहोते. जिस चीजकों-न-चाहो वह पास आतीजाती है और जिस चीजकी चाहना करो वह दूर दूर चलीजाती है, असलमें इसवख्त तरहतरहकी फिकर हमारेदिलपर
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(१४) सवाने-उमरी. फैलगइहै, आरामकेपीछे तकलीफ और संपदाकोपिछे विपदा आपसे आप आकर सवार होजाती है. हमारे दिलकीवात दिलमे रहगइ, तुम दिनरात हमारी आंखोकेसामने फिरतेहो. हम अपने दिलकों बहुतेरा समझते है मगर किसीमुरत चैन नहीमिलता, अगर सोचाजायतो धर्मकरना हमेशांकेलिये अछाहै, दुनिया छोडकर दिक्षा इख्तियारकरनेका वख्त हमाराथा, तुमारा नहीथा, हम इसवातपर खयाल करते हैकि-तुमसे दीक्षाकाभार कैसे उठसकेगा, हमकों अपनी जींदगीमें इतनाफिक्र कभी-नहींहुवाथा. जैसे तुमारे चलेजानेसे हुवाहै, रातकोनींद नहींआती, खानपान अछा नहीलगता
और धंदेरोजगारमें दिल नही जमता. हम क्या ! अपने रिस्तेदार लोग सबकहते हैकि-तुमकों ऐसाकरना बिल्कुल मुनासिब नहीथा. महाराजने उनखतोको पढकर एकखत इस मजमूनका लिखाकिबेशक ! आपको जहुवाहोगा, में-आपको वगेर जाहिरकिये इसलिये चलाआयाकि-सायत ! आप मुजे आने-नहीदेते, मेराइरादा धर्मपरथा. इसलिये अबआप खुशहोकर लिखेकि-तेरी-दीक्षा फतेहमंदहो, उनोने महाराजकेखतको पढकर अपनेदिलकों थांभलिया और-समझलियाकि-उनका दुनयवीकारोबारसे इतनाही संबंधथा, जोकुछ ज्ञानिदृष्टभाव होताहै, हर्गिज ! गलत नहींहोता, ऐसासोच कर जवाब लिखाकि-हम-अब-और-क्या ! कहे ! ! जोकुछहुवा अछा है, हमसे इस दुनियामें आकर कुछ धर्म नहीं बना, तुमारी दीक्षा फतेहमंदहो-और-तुमारी अछीगति हो,-महाराजकों इल्म पढनेकी ख्वाहेस हरवख्त बनीरहतीथी, गुरुमीकी खिदमत करनेमें मुताबिक अपनीताकातके कमी-नही-करतेथे, और-काम-क्रोधलोभ-मत्सर अभिमान और दंभ इनसे हमेशां परहेज रखतेथे.
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सवाने-उमरी.
(१५)
[ संवत् १९३७ का-चौमासा शहर अमृतसर,]
बादवारीशके होशियारपुरसे रवानाहोकर-जालंधर-निकोदर जिरा-पटी-अमृतसर-नारोवाल-सनखतरा-गुजरानवाल-रामनगर-और-लाहोरकीसफर करतेहुवे वापिस अमृतसर आये, और संवत् (१९३७ ) की वारीश वहांपरगुजारी, सिद्धांतचंद्रिका व्या. करण जोगइसालमें पढना शुरुकियाथा-जिसमेकरीव तीनहजार श्लोककेदर्ज है मुहजबानीयादकरके खतमकरलिया, औरफिर अमरकोशपढना शुरुकिया, मूत्रदशवैकालिक-और-उत्तराध्ययन-बाचे, कभीकभी लोगोकों तालीमधर्मकी देतेथेऔर आपसमे तकदीर तदबीरकेबारेमे बहेसभी होतीथी, महाराज फरमातेथे तकदीर और तदबीर दोनों अपनीअपनीजगहपर बेशक ! ठीकहै, मगर तदबीरसे तकदीर बडीचीजहै. तदबीरकभी खालीभी जाती है, तकदीर खाली नहीजाती, अगर तकदीर उल्टीहोतो-तदबीर चाहेजितनीकरो कुछ-कारआमदनही होसकती, ख्याल करो ? अगर तकदीरके फेरनेका कोइउपावहोता-तो-रामचंद्रजी-और-पांचपांडव वनवासकों क्योजाते ? आराम और तकलीफका होना बेशक ! अपनी तकदीरके ताल्लुकहै, जबतकदीर उल्टीआती है-तो-धुद्धिभी वैसीही होजाती है, जंगल में पडे हुवेकों अगर तकदीर अछीहो-तो-उसका कोइकुछनहीकरसकता. और अगर तकदीरबुरीहो-तो-महेलमेबेठे हुवेकोभी-तकलीफआनपडती है, एकशख्श फायदेकेलिये तदवीर करताहै-मगर-उसको फायदा नहीमिलता, एकशख्श हलखेडता है और राज्यपानेकी कोइकोशिशनहींकरता, मगरउसकीतकदीर अछीहो-तो-उसकों-किसीनकिसीसुरत राज्य मिलजाताहै, एक दफे दो-शख्श-एक बादशाहके पास नौकरीके लिये गये, उसमें एक कहताथा तकदीर वडी है, और एककहताथा तदवीर बडी है,
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( १६) सवाने-उमरी. बादशाहने कहा तुमारेदोनोंका इम्तिहानलेकर नौकरीकी जगहढुंगा, आजरातकों तुम दोनो एककोठरीमें बंदरहो, गरजकि-बादशाहने दोनोकों रातकेवख्त एककोठरीमें बंदरखे. जब आधीरात होगइ तद- . वीरको बडीकहनेवाला बोला देख ! में !! तदवीरकरताहु और कोठरीके तमामआलोंमें हाथफेरताहुं अगर कोइचीज मिलगइतो अछाहै. तकदीरबडीकहनेवालाबोला, खुशीकेशाथ अपनीतदबीर चला,मुजेइससेकोइनाराजीनही, बादशाहने-दो-लडु-जिसमें एकमेंसोनामहोररखीहुइथी-एकखालीथा-अवलसे-एकआलेमें रखवादियेथे, तदवीर वालेने अंधेरेमें इधरउधर हाथफेरा-तो-उसको-एक आलेमेसे-दो लड्ड मिले, उनकोलेकर तकदीरवालेके पासआया और कहनेलगा देख ! मेने कोशिशकिइ तो मुजे दो-लड्डु-मिले है, ले ! एक तुजे देताहूं. एक-में-खाताहुं, ऐसाकहकर एक उसकों दिया एक आप खाया, तकदीरवालेके-लड्डमें-सोनामहोर निकली, तदवीरवालेके लड्डमें-कुछ नहीनिकला, अखीरमें तदबीर वडीमाननेवाला बोला, तदवीर कैसी बडीचीजहै ? अगर तकदीरके भरुसे बेठेरहतेतो-लड्ड कहांसे मिलते ?-जवाबमें तकदीरवाला बोला. मैने-कौनसीतदबीर किइथी ? जो-मुजे-सोनामहोर-और-लड्डु-मिला ? इस बातकों मुनकरतदबीरवाला चुपहोगया-और-अपनेदिलमें कहनेलगा बेशक तकदीर वडीचीजहै.-इसतरह एकएक बातपर बहेस हुवाकरतीथी,
[संवत् १९३८ का-चौमासा शहर लुधिहाना, !
वादवारीशके अमृतसरसे रवानाहोकर-पटी-जिरा-और फिरोजपुरकी सफरकरतेहुवे फरीदकोट गये. और वहांसे फिरदुवारा जिरा-आनकर निकोदर-जालंधरकी सफर करतेहुवे शहर लुधिहाना आये-और-संवत् ( १९३८ ) की वारीश वहांपर गुजारी,
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सवाने-उमरी. अमरकोश जोगये चौमासेमें पढना शुरुकियाथा, जिसकी (१५००) के करीब श्लोकसंख्याहै मुहजबानी याद करलिया, कुमारसंभवमेघदूत-और-काव्यदीपिका यहां मुहजबानी यादकिइ, और संस्कृतमें उमदा तौरसे बोलनेलगे,-कितनेक संस्कृत वाक्य यहांभी बतलाते है,
कुत्रवासः ? किमभिधानं श्रीमतां, ?
कान्यक्षराणि अलंकृतानि स्वनाम्ना ? यूयं परीक्षायां उत्तीनाः किं ?
काशंका अत्र ? सएवायं किं न पश्यथ, ? किमधीतं शब्दशास्त्रे तर्कशास्त्रे वा ? येन शब्दशास्त्रं नाधीतं सभांतरे किं वक्ता सः ? परिज्ञातं मया युष्मद्रहस्य-अवगतं वा श्रीमतां स्वातं, अमृतवादिनां सत्यमपि मृषायते,
युष्मान् प्रति-मया प्रत्यनीकं वचउक्तंचेत् मुहुःक्षतव्यं क्षमासा.. गरा यूयं
उद्योगं कुर्वन्नपि फलं-न-लभ्यते अतःकर्मणां एव प्राधान्यं, पुन्यबलात् नानाविधं सुखं लभंते जनाः, . अहो महतां महत्वं-ये-विपत्तिकालेपि धर्म-न-त्यनंति, न-विनापरापवादेन-रमते दुर्जनः, खलानां प्रतिक्रिया दूरात् पलायनं, पण्यवीथिकायां गंतुकामा वयं, कार्यचेत् वक्तव्यं, धर्मकर्मणि अनुत्साह एव प्रमादः, शक्तौ सत्यां-या-उपेक्षा-सैव दुखमूला, प्रांणांतेपि प्रेक्षावता धर्ममालिन्यं-न-कार्य,
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( १८) सवाने-उमरी.
येषां चेतसि मोहप्राचुर्यता भावमालिन्यं तत्र, स्वबुद्धि कल्पना निर्मितं तत्वं-न-संमतं,
जिनबिंबकारिणे शिल्पकाराय-येन-अल्पमूल्यं दत्तं तेन परमार्थनीत्या भगवति अप्रीतिरुत्पादिता,
देवमंदिरे सायुधै-न-गंतव्यं, धर्मविरहितानां पदेपदे दुखसंपदः-स्वमांतरेपि नास्तिकल्याणं, शुभाशुभ कर्म कर्ता भोक्ताच आत्मैव, कर्मक्षयेण आत्मनः स्वस्वरुपावस्थितिर्मोक्षः, देवाः कतिरुपाणि विकुति, ? कतिविधा वेदना नारकाणां, ? कति द्वीपसमुद्राः किंसंस्थानाः ? जंबूद्वीपः किंसंस्थान:-तत्र कतिनद्यः- ? संसारसमापन्ना जीवाः कतिविधाः ? अवसर्पिण्या षष्टारकः किटग् दुखकृत् ? तत्रनराः किदृशाः ? तेषां किमायुः किंदेहमानं, ? जीवाः कथं गुरुत्वं लघुत्वं लभंते, जीवः कस्मिन् समये अनाहारकः-आहरको वा, कतिदेवलोकाः कतिनरकावासाः ? दुर्जनवागुरासु पतितः कः मुखं प्रपन्नः, सविस्मयं सभयंच निवेदितं तेन, . सचमत्कारं समंतात् अवलोक्य शनैः शनैरपससार आकाशे कर्ण दत्वा देववाणी श्रुता. नूपुराणां रवेण अनुमीयते योषिदागमनं, तलतिरुपकं रुपं नाद्यापि दृग्गोचरीभूतं,
जन्मजरामरण संकुलं संसारवासं संसरन् जीवो भवाद् भवांतरं उपैति,
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सवाने-उमरी. अयमात्मा-अप्राप्ताहद्धर्मः कष्ट परंपरां लेभे, स्वकर्मदोषेण समीहितं-न-लभतेजीवः-थैवदोषंददात्यन्येभ्यः आदित्याद्या ग्रहाः शुभाशुभस्य द्योतका:नतु स्वयं कस्यापि अनीष्टं कुर्वति.
विबुधजनसंकीर्णायां इदृग्विधायां सभायां किंचिद्वक्तुकामो ह-श्रूयतां तावत्,
इह जगति लघुरपि जन:-महतांसंसर्गेण-महिमानं कलयति. अज्ञातपारंपर्य वाक्यं जने उपहासाय जायते. प्रमदासु अतिप्रसंगो-न-कार्यः जलेन अखिलदेहस्य यत्स्नान-तद्वाह्यस्नानं-परमार्थदशायां सैत्र स्नातकः-यः-पुन कर्मपंकन-न-लिप्यते, यो मुक्तिं गत्वा पुनःसंसारमभ्युपैति स कथं मुक्तः,
धर्मद्वेषिणा मूढेनसह-यो-वादः सः शुष्कवादः अयं सर्वथा त्याज्यः
प्रमुप्तस्प पुरःशास्त्रार्थकथनं हास्याय-न-बोधाय. न-अज्ञानात्-परःशत्रुः संस्नपितः पुमान् यदि स्वयं पंके निमज्जति कस्यदोषोत्र,
जीवो अनादिकर्मभाक्-यदनेन-पूर्वजन्मनि-प्रकृतिस्थिति रसप्रदेशैः-आश्रववृत्त्या कर्म बद्धं-तबंधोदयदीरणासत्ताभिः परिभुनक्ति,
दीर्घायुरारोपंच पुन्येनैव संभवति, गुप्तवृत्त्या कृतमपि पापं ज्ञानिनां प्रत्यक्ष, शब्दरुपरसगंध स्पर्शादि विषयैर्जीवो दुर्गतौ नीयते, को-न-वांछति स्वकीयमभ्युदयं,
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(२०) सवाने-उमरी.
संज्वलन-प्रत्याख्यान-अप्रत्याख्यान-अनंतानुबंधिभिः क्रोधाहकार छदमलोभैर्जीवः संसारबंधनं ग्रामोति.
जैनमते रागद्वेषादि दोषै विनिमुक्तो जिनेंद्रो देवः, भो ! नेत्रे ! ! अधुना जिनेन्द्रदर्शने प्रमादो-न-विधेयः, स्वर्गिभि निधानानि सुरांगनाश्च पुन्येनैव कर्मणा लब्धाः, वन्हिजल भूमयो विधिनोपसविता एव सौख्यावहाः,
भानौ-अभ्युदयपि-उलूकानां-अप्रमोदो विभाव्यता अत्र कस्प दोषः
सुरुपां प्रियवादिनां भार्यालब्ध्वा वृक्षमूलमपि गृहंमन्यतेकामिनः यत्र इमाअपि दृष्टिपथं नायांति मशकानां तु का कथा, ? गर्दभा वाजिधुरं-न-वहंति,
श्रृणुत भो ! पौरा ! ! अयं शृंगारमुदरीघातकः-वधस्थंभं नीयतेतत् यदीदृशं कर्म-अन्योपि करिष्पति-एतादृश-एव-दंडलप्स्यते,
पण्यवीथिकायां जिगमिषा-अस्ति-किं, ? पर्वतिथौ व्रतं गृन्हंति धार्मिकाः, इह जगति ज्ञानं परं भूषणं, व्याख्यानं तदेव रम्यं यत्र श्रोतारो-न मुह्यंति, एतत्तु-अस्माभिरपि स्वीक्रियते, कपाटं पिधेहि-अंतद्वारे शत्रंकेन निहितं, ? उपानहः कुत्रसंति, पैतृकं द्रव्यं मया-न-लब्धं, वयं-तु-अकिंचनाः स्म, मम-अखिलं कार्य संवृतमधुना, येन जातेन वंशः समुन्नति-न-माप्तः तेन सूनुना किं, ?
श्रीमद हेमचंद्रसूरेः बौदिं वाक्यरचनां दृष्ट्वा विस्मयस्मेरानना विबुधजनसमूहाः
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सवाने - उमरी.
तेषां महांतं उपकारभारं मेनिरे जनाः स्वकुशलोदंतमयं पत्रं लघु प्रेक्षणीयं, पत्रवाचनविरतौ उद्गतरोमांचकंचुकोहं किं लिखामि युष्माकं कला कौशल्यं.
3
( २१ )
युष्मामु दत्तसेवांजलिरहं किंचित् विज्ञपयामि, जीवानां सुखं दुखं वा मातुं कोपि - न - प्रभुः श्रमणोपासकैः पंचदशकर्मादाननिवृत्तिः कार्या हिस्वस्य वलविकलतामाकलय्य बलीयसः प्रभोः शरणाश्रयणं दोषपोषाय,
अहं तु विद्यां कामये - न- योषितं,
अंतर्पटे सति खीणां धर्मकर्मणि महानंतरायः
ततः - ते - विबुधाः स्वकीयं स्वकीयं मंदिरं जग्मुः संजातभयः सः मत्पुरा बद्धांजलि र्विज्ञपयति, अमूकं सुतं सुलक्षणं जानामि,
अमूक सुतां लक्ष्मी जाने.
इछानुरुषो विभवः कस्यापि - न - संजात:- अतोमूर्छा त्यक्त्वा
धर्मकर्मणि यत्नोविधेयः,
लुब्धोजनः सर्वत्र पराभवं प्राप्नोति, गुणप्रकर्षादेव-जनाः पूज्यंते, असत्यवादिनां यशो-न-जायते. दुर्जन संसर्गात् पदेपदे मानहानिः
तीर्थानां अवलोकनं - आश्चर्याणां निरीक्षणं- देशाटनेनएवजायते. अटन - सन् - साधवः पूज्यंते,
वाम्पारुष्यं महद् दुखाय जायते जनानां, यत्र - अनिशं - क्लेशोत्पत्तिस्तत्स्थानं दूरतः परिवर्जयेत्,
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सवाने - उमरी.
सूर्योदयेपि निद्रामवलंबते चेत् महद्दारिद्रयं
देहे आरोग्यं चेत्- महदैश्वर्य,
( २२ )
यः कांतासु - कनकेषु - न - लुब्धस्तस्य - अखिल सिद्धयः, सत्वावलंबनां नास्ति कातरत्वं,
[ संवत् १९३९ का - चौमासा - शहर होशियारपुर. ]
बादवारीशके लुधिहानसे रवानाहोकर जीरा - मलेरकोट-जिग्रामा- फिल्लोर - फगवाडा - और - जालंधर की सफर करते हुवे शहर होशिआरपुर गये, और संवत् (१९३९ ) की बारीश वहां गुजारी, इसचौमासेमें न्यायमुक्तावली ग्रंथ पढा, और उसमेंसे अनुमानखंड मुहजबानी याद किया, इनदिनों में महाराज नयेनये काव्य संस्कृत में बनाने लगे, चीठीपत्री लिखतेथे तो नये श्लोक बनाबनाकर लिखतेथे, जितने बडे पुरुषोके जीवनचरित लिखेजाते है उनसे ऐसी ऐसी बातें सीखने में आती है- जो हरेकशख्श के जीवनभर में काम आती है। और उनका जीवनचरित दुसरोकों इल्मकी तरक्की देता है, पेस्तरके चालचलन - और रीतरवाजकों सिखलाता है. स्मर्णशक्ति और हैर्यकों देता है. और तरहतरहके फायदेकों पहुचाता है, जिनकाजीवन नही लिखा गया उनकों कौइ जानता भी नही होगाकि - क्या थेऔर क्या होगये. इसलिखनेका मतलब यह हैकि - इन्सान अपने थोडे जीवनकों ऐसेकाममें लगावे जिससे अपनेकों और दुसरोकों फायदा पहुचे,
[ संवत् १९४० का - चौमासा शहर विकानेर, ] बादवारीशके होशियारपुर से रवाना होकर - जालंधर - लुधिहाना अंबाला - सरहिंद - बनौली - वगेराकी सफरकरते देहली आये, और
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सवाने-उमरी. ( २३ ) कुछरौज ठहरकर गाजियाबाद-मेरट होते तीर्थ हस्तिनापुरकी जियारतकों गये. यह तीर्थ बडापुराना है वहांकी जियारत किइऔर फिर वहांसे देहली होतेहुवे मुल्क मारवाडकी सफरकों चले,-इन दिनोमें देहलीसे रवानाहोकर कुतुबमेहरोली फिरोजपुर-अलवर होतेहुवे शहर जयपुर आये, और एकमहिना वहांपर कयामकिया, जयपुरसे रवानाहोकर तीर्थफलौदी पार्श्वनाथकी जियारतको गये
और वहांकी जियारतकिइ. वहांसे रवानाहोकर मेरटा-नागोरहोते शहर विकानेर जाते हुवे रास्तेमें-नोखेगांवमें-जव रातकों सोतेथे आधी रातकेवरुत एक सांपने आनकर महाराजके दाहने हाथके पंजेपर डंखमारा, उसवख्त दो-मुनिमहाराज-औरभी शाथथे जो दीक्षामें और उमरमेबडेथे, जबजहरने ज्यादहजोरदिया महाराजकी आंख खुली. और कहा मेरे दाहनेहाथमें बहुतदर्द होताहै,-न-मालूम क्याहुवा ? जिसश्रावकके मकानमें महाराज ठहरेथे-वह-और दोतीन शख्श और मिलकर लालटेनलेकर इधर उधर देखनेलगेतो-मालूमहुवा एक बडा लंबा सांप-एकवीलमें घुसरहाथा, इससे साफ जाहिरहुवाकि-महाराजकों-सांपने काटाहै. और दाहनेहाथके पंजेको देखातो खून मालूमहुवा. महाराजको यकीनहोगया मेरेदाहनेहाथके पंजेपर सर्पने डंकमाराहै. खुद सर्पका मंत्रजानतेथे पढना शुरु किया, और कुछदेरकेबाद सांपका जहरउतरा, पिछलीरात कुछ नींद आइ और आरामभी मालूमहुवा, शुभहहोते आगेकों रखानाहुवे और देसणुक-भीनासर होतेहुवे तीसरेरौज विकानेर पहुचे, संवत् (१९४०) की वारीश वहांपर गुजारी, और नयमदीपग्रंथ जवानीयादकरना शुरुकिया, जिसमें द्रव्य-गुण-पर्याय-नैयम -संग्रह-व्यवहार-शब्द-समभिरुढ-और-एवंभूतनयवगेरावयान है चौमासेकी अखीरतक मुहजवानी यादकरलिया, भगवतीमूत्रभी यहां
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( २४ ) सवाने-उमरी. वाचा, और यहांके पुस्तकालयोसे कइपुरानीपुस्तके देखी. जब वारीश खतमहुइ तो मुल्कगुजरातकों जानेकेलिये रवाना हुवे.
[संवत् १९४१ का-चौमासा-शहरअहमदाबाद, ]
विकानेरसे रवानाहोकर नागोर-जोधपुर-और-पाली होतेहुवे पंचतीर्थीकी जियारतकों गये.१-वरकाणा, २-नाडोल, ३-नाडलाइ, ४-घाणेराय, और-५-रानकपुर इनपांचगांवोकी जो-पंचतीर्थी कहलातीहै, जियारत किइ, और रानकपुरसे आगे पहाडकी घाटीकों पारकरके शहर उदयपुरकों तशरीफ लेगये, और वहांपर एकमहिना कयामकिया, चैतमहिनेमें वहांसेरवानाहोकर तीर्थकेशरीयाजीकी जियारतकों गये. जो वहांसे (१८) कोशके फासलेपर वाकेहै, जियारतकरके वापिस उदयपुर आये, और उदयपुरसें रवाना होकर शिरोही अनादराकी-सफर करते तीर्थआबुजीकों गये. आबुके जैनमंदिर ऐसेखूबसुरत शंगमर्मरपर उमदा और बेंमीशालकारिगिरिसे तामीरकियेहैकि-जिसकी-तारीफ-तवारिखोमें मशहूर है, वहांकी जियारतकिइ, और चंदरौज वहांपर ठहरे, बादइसके आबुसे रवानाहोकर पालनपुर-सिद्धपुर-ऊंझा-मेहसानाकी सफर करते शहरअहमदावादमें तशरीफ लाये, और संवत् (१९४१) की वारीश-वहांपर गुजारी, महाराजने योगवहनकरके इसचौमासेमे बडीदीक्षा इख्तियारकिइ. वैयाकरणभूषग-और-कुवलयानंदअलंकार मुहजबानीयादकिये,-कादंबरी-विक्रमोर्वशी-और-शकुंतलाना क-बांचा, अछीतरह संस्कृत जबानमें बोलनेलगे, और हरेकविषयपर शास्त्रार्थकरनेकी ताकात हासिलहुइ.
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सवाने-उमरी.
( २५ )
[संवत् १९४२ का-चौमासा-शहरसुरत,
बाद वारीशके शहरअहमदाबादसे रवानाहोकर-धंधुका-बोटाद--उमराला--चावडी--होते तीर्थ--शत्रुजयकी जियारतकों गये, एक महिना वहां कयामकिया. और वहांसे शिहोर-वरतेज बगेराकी सफर करते शहरभावनगरमें पहुचे, जब अपने चचाके घर भिक्षाकों गये तब महाराजकी चाचीनेकहाकि-जिसरौजसे-तुमनेदीक्षा इख्तियारकइ उसके छमहिनेकेबाद तुमारेचाचेका इंतकालहोगया, कोइदिन एसा-नही-गुजरताथाकि-उनोने तुमकों यादन-कियेहो. तुमकों ऐसामुनासिब नहीथाकि-तुम-बिना कहेचले गये, और साधु होगये, घरमे कोइ आदमी नहीरहा, जब तुमारी यादआती है बिल्कुल रंजीदा हो जातीहु, महाराजने उनको धीरज दिइ और कहाकि-तुम-खुद समझदारहो, शब करो और तीर्थकरदेवोंकी इबादतकरो जिससे सब अछा होगा, एसा कह कर भिक्षालेके अपनेमकानकों आये, और एक महिनेतक शहर भावनगरमें ठहरे, एकरौज महाराजकी चाचीने कहा अगर तुम व्याख्यान धर्मशास्त्रका बाचना सिखेहो--तो--हमकों सुनाओ, दुसरेरौज महाराजने व्याख्यानसभामे बैठकर सबलोगोकों व्याख्यान धर्मशास्त्रकामुनाया, लोग खुशहुवे और तारीफकरनेलगकि दीक्षा लेना ऐसेही शख्शोका कामहै-जो-धर्मशास्त्रके माहितगार होकर आमलोगोकों धर्मका फायदा पहुचावे, ____एक महिनेकेबादभावनगरसे रवानाहोकर गोघाबंदरकों गये,
और घनौघमंडनपारसनाथकी जियारतकिइ, गोघावंदरसें वरतेज गांव होतेहुवे वल्लभीनगरी जिसकों जमानेहालमें-वलागांव बोलते है आये, महाराजकी माता इसी वल्लभीनगरीकीथी, और उनके खानदानमें सिर्फ : एकहीभाइ लक्ष्मीचंदजी रहगयेथे, जो महाराजके
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सवाने-उमरी. मामा-होतेथे. जबउनोने सुनाकि-हमारा-भानजा-जो साधुहोगया है आजरोज यहां आनेवाला है, चारकोशतक सामनेगये और वाद मुलाकातके उनोने महाराजसेकहा-तुम-अपने वालिदकेघर एकही बेटेथे और साधु होगये यह तुमकों लाजिम नहीथा, महाराजने कहा-आप-बखूबी जानते हैकि-दुनियामें-बडेबडे राजेमहाराजे होगये जिनोने अपना राजपाट छोडकर दीक्षा इख्तियारकिइ-तोमालूम होताहै धर्मकुछ बडीचीजहै, महाराजने वहांभी आमलोगोको व्याख्यान धर्मशास्त्रका सुनाया. और सबलोग खुशहुवे. फिर महाराजके मामानेकहा-जोकुछ हुवा अछाहुवा, चलो ! अब घरसे भिक्षा लेआओ, महाराज उनकेघर भिक्षाकों गये। वहां उनकी मामीनेभी वहीकलामकहे जो इनके मामाने कहेथे, और यहभीकहा कि-मैने-तुमकों लडकपनमें पालाथा, और अब साधुकेवेषमें देखतीहु-तो-बडारंज मा वूम होताहै, घरमे बेठकर क्या! धर्म नहि होताथा. ? महाराजने कहा बेशक ! होसकताथा मगर जैसा साधुपनेमें होसकताहै दुनियादारीकी हालतमें नही होसकता, औरभी महाराजने धर्मकी बातें सुनाइ, और भिक्षालेकर अपने मकानकों वापिस आये, करीब (१५) रोज वहां मुकीमरहे, फिर वल्लभीसे रवानाहोकर बोटाद-लीमडी-चढवान-और-धोलेराकी सफर करतेहुवे खंभातशहरकोंगये, वहांपरतीर्थस्थंभन पार्श्वनाथकीजियारत किइ. खंभातसें रवानाहोकर भडौचकों गये, वहांकी जियारत किइ, अश्वावबोध-और-शकुनिका विहारतीर्थकी तवारिख अपनी नोटबुकमे यहां लिखी, भडौचसे रवानाहोकर सुरतबंदरकों गये, और संवत् ( १९४२ ) की वारीश वहां गुजारी. आचारांग-अनुयोगद्वार-और ज्ञातासूत्र यहां बांचे. तत्वार्थसूत्रके दस अध्याय मूलपाठ और-प्रमाणनयतत्वलोकालंकार इसचौमासेमें हिब्ज याद किया,
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सवाने - उमरी .
( २७ ) ( यानी ) कंठाग्रकिये. ये-दोनां किताबे जैनमुत्रोकी - और - जैनन्यायकी एक कुंजी है, जोशख्श इसको समझकर हिब्ज यादकरेगा जैनतत्व - और - स्याद्वादन्यायमें होशियार होजायगा.
[ संवत् १९४३ का - चौमासा - शहरपालिताना, ]
बादवारीशके सुरतसे रवानाहोकर भडौचकेरास्ते से शहरबडोदा आये, इनदिनों में स्थानांगसूत्र बाचा. बडोदेसें रवानाहोकर शहर अहमदाबाद- वढवान -लींमडी -- बोटाद - और -- वल्लभीनगरीकी दोवारासफर करते हुवे वारीशके मौकेपर - शत्रुंजयतीर्थकी तराइमेंशहरपालितानेकों गये, जिसका बयान पेस्तर लिख भी चुके है, संवत् ( १९४३ ) की - वारीश - वहांपर गुजारी, इसअर्से में महाराज -बआज - खांसी - मुन्तीलारहे, करीबतीन महिनेके कोइइल्म नही पढागया,
www.
धर्माख्याने श्मशाने च रोगिणां या मतिर्भवेत्, यदि सा निश्चला बुद्धि: - को-न- मुच्येत बंधनात्. १
धर्मकीबाते सुनतेवरुत - मसानमें - और - बीमारीकी हालत में आदमीकी बुद्धि जैसी धर्मपरपावंद रहती है अगर वैसी हमेशांनी रहेतो - कौनऐसा शख्श है - जो - संसारके बंधन मे-न-छुटसके, ? aarthी हालत में महाराज हमेशां पंचपरमेष्टिका जापकरतेथे, अपथ्य खानपानसें परहेजरखतेथे, और किताबवगेरा वाचते रहते थे. महाराजकी बीमारी सख्त - नहीथी, सख्तबीमारी वह होती है जिसमे अनाजखाना बंदहोजाय - रातकों-नींद-न-आवे, चहेरेकी रवन्नक बिल्कुल बदलजाय, आदमीको पहिचान सकेनही, शर्म बिल्कुल छुटजाय, अस्थि-मांस - और - खून - बिल्कुल सुकजाय, रातकेवख्त
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(२८) सवाने-उमरी. आस्मानमें-उत्तरदिशातर्फ-जो-ध्रुवका-तारा उदयहोताहै-वहसख्त बीमारीवालेको अपनीनजरसें-न-दिखाइदे, कानमें अंगुली लगाकर देखनेसे जो अंदर घोरशब्द होताहै-सुनाइ-न-दे, अपनी आंखोंसे अपनेनाककी शिखा-न-दिखाइदे, अपनीजबान मुंहसे बहारनिकाले-तोभी अपनी आंखोसे-न-दिखाइदे, ये-सबसख्त बीमारीके निशानहै, वीमारशख्शकों हरवख्त साफहवामें रखना चाहिये, बिछौना-और-कपडेभी साफरखना अछाहै, बीमारशख्शकों अकेला छोडना-या-बहुतआदमी जमाहोकर उसकेपास बैठेरहना अछानही, अगर बीमारी बढतीजाय-या-सख्तहोजायतोभी-बीमारशख्शके सामने ऐसा-नहीकहनाकि-तुम-इसबीमारीमें मरजाओगे, बल्कि ! ऐसाकहनाकि-तुम-जल्दी अछेहोजाओगे, बीमारशख्शके-सामने हमेशां धर्मशास्त्रकी बातें कहतेरहना अछाहै, उसके सामनेबेठकर रौना-नही, बीमारकों बहुतदिनतक एकही मकानमें रखनाअछानही, दिनमेसीना-रातकोजागना, न. साकरना, मैथुनसेवना, ज्यादा बोलना, ज्यादागर्मीमे-या-ठंडमें बैठेरहना, या-पैशाव-पाखाना-रोकना बीमारकोलिये बिल्कुलअ. छानही, महाराजकी बीमारी सख्त नहीथी. उमर लंबीथी, इस लिये आरामहुवा, इसअर्समें-महाराजकी बहेन मौजा-अमरेलीसे आइ, और कहनेलगी, आपकी तकदीरमें दीक्षालिखीथी, खेर ! मुजकों दर्शनहुवे यहीगनीमतहै, चंदरौज वहांठहरी, और महाराकेमुखसे धर्मकीहिकायते सुनतीरही, चौमासेकी अखीरमें महाराज कर्मग्रंथकीटीका बांचतेरहे, कातिकसुदी पौर्णमाकेरौज पहाडशत्रुजयपर जाकर तीर्थकी जियारतकिइ, और पुराने मंदिरमूर्ति शिलालेखोंकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ,
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सवाने - उमरी.
( २९ )
[ संवत् १९४४ का - चौमासा शहर राधनपुर, ]
बादवारिशके महाराज पालितानेसें रवाना होकर - महुआ-तलाजा - गोधा की सफरकरते दोवारा भावनगरकों गये, और करीब देढमहिनेके वहां कयाम किया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशांदेते थे, और हरवख्त धर्मकेबारेमें बहेसहोतीथी, भावनगरसें रवानाहोकर बल्लभी -लींमडी - वढवान - और - धांगधराकी सफर करतेहुवे पाटन शहरकों गये. वहांपर राजाकुमारपालके वख्तका एकमशहूर कुतुबखाना - (यानी ) जैन पुस्तकालय देखा, और एकमहिना वहां कयामकिया, पाटनसें रवानाहोकर रियासत राधनपुरकों गये, और संवत् ( १९४४ ) की वारीश वहां पर गुजारी, आर्यदेशदर्पण किताब - महाराजने यहां बनाई, जोकि - उसीसालमें छपकर जाहिर हो चुकी है. इसमें मुताबिक जैनशास्त्र के फरमानसें आर्य-अनार्य देशोका खुलासा दियाहै, पंचाकसूत्र और टीका महाराजने यहांबांची, स्याद्वादमंजरी जोकि - जैनमजहबका एकतर्क ग्रंथहै यहां पढा. और उसका मूलपाठ हिब्ज याद किया, इनदिनोंमें महाराज बौध मजहबके पुस्तकोंका मुलाहजा करते रहे, उसमेंसे कुछबातें बौधमreast siपर बतलाते है,
-
-
कइलोग कहते है जैन और बौधमजहब एकहै, और करकहते है - एक-दुसरेकी शाखा है, मगर जैन-बौध - किसीसुरत एकनही, न - एकदुसरेकी शाखा है, जैनमजहब तीर्थकर रिषभदेवके वख्तसे जारी है, बौधमजहब पीछेसे जारी हुवा है, - राजा शुद्धोदनके पुत्र-गौतमबुद्धका जन्म - नयपालकी तराइमें सुंसमार पर्वतकेपास कपिल वस्तुग्राममें हुवा, जैनमजहबके और बौधमजहबके उसूलमें बहुत फर्क है, जैनमजहब में तमामवस्तु उत्पात - व्यय - और -धौव्ययुक्त
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( 30 )
सवाने - उमरी.
मानी है, बौधमजहबमें तमामवस्तु क्षणिकमानी है, गौतमबुधकेखेलों में- मोदगलायन - शौरीपुत्र - और - आनंद-ये-बडे चेलेथे, विनपीठिकासूत्र - महावग्गसूत्र - कुलवग्गसूत्र-- परिवारपाठसूत्र - दिग्निकायसूत्र - परिनिवाणसूत्र - मध्यमनिकायसूत्र - विमानवथ्थुसूत्र - पेयवथ्थुसूत्र - थिरगाथा - निदीश पीठिका - पाटीसंविदा--कथावथ्थु - वगेरा बौधमजबके पुस्तकों के नाम है, -
जैन के अखीरके तीर्थंकर महावीरस्वामी जब हयातथे गौतमबुधभी उसवख्त मौजूदथे, गौतमनामसे चारशख्श दुनियामेंमशहूर हुवे, तीर्थंकर महावीरस्वामीके बडे चेले गौतमगणधर जैनथे, गौतमबुध - बौधमजहबके - नामी - शख्श थे, गौतमरिषि - वैदिकमजहबके रिषिथे, नैयायिक मजहबके गौतमरिषि अलग हुवे, बौधमजहब के शास्त्रोसें मालूम होता है कि - गौतमबुध के वख्तमें - यागी - वैरागी - यति मौनी - निर्ग्रथ वगेरा बहुतसे मतके साधु मौजूद थे, बौद्धमजहबके साधुभी - चौमासेमें सफर नहीकरते, अंतरवसन - मध्यवसन - उत्तरीय - कटिबंध - भिक्षापात्र - जलछाननेकापात्र - ये - बौधमजहबके साधुओके उपकरण कहे जाते है, - राजा कनिष्क केवख्तसें बौधमजहबमें दो - शाखा हुई. - इसवख्त हिंदमें बौघमजहबकेलोग थोडे है, मगर मुल्क चीन - जापान वर्मा - और - टिब्बट तर्फ बहुत है, -
[ संवत् १९४५ का - चौमासा - शहर - अहमदाबाद. ]
बादवारीशके राधनपुर से रवानाहोकर तीर्थ शंखेश्वरकी जियातकों गये, जोकरीब (१८) कोसके फासलेपरवाके है, उसकी जियारत कर, और उसकीतवारिख अपनी नोटबुकमें दर्जकर लिड, तीर्थ शंखेश्वरसे रवाना होकर कस्बे मांडलको आये और वहांपर
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सवाने-उमरी. महाराजने अपने गुरुजीसे सूरिमंत्र-और-वर्द्धमान विद्या पढी, छेदग्रंथ-महानिशीथभी इसीअर्सेमें बाचा, मांडलसे रवाना होकर शहर अहमदाबादकों आये, और संवत् (१९४५) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे और सभा अछी भरतीथी, हैमकोश-यहां महाराजने हिन्ज यादाकिया, और यहांके पुस्तकालयोंसे-कइ पुस्तक देखे. वसुदेवहिडिग्रंथ यहांबाचा, कइमरतबे बहीबडी सभा भरकर एक एक बातपर घंटोतक वाज करतेरहे, एक रौज जैनमंतव्यपर वाज किया उसकामतलब इस
छ [जैनमंतव्य-प्रकाश,] १-रागद्वेष-कामक्रोध वगेरा दुश्मनोसे जिनोने फतेहपाइ है उनकों जैनशास्त्रोंमें जिनकहते है, और उनका बयान कियाहुवा-जो मतहै-उसकों जैनमत कहते है, जिसको हमेशांसे लोग मानतेआये, मानते है, और मानेगे, इसलिये इसकों सनातनधर्मभी कहागयाहै,
२-जैनोके कायदे ऐसे है जिसका विरोधी बनना नहींहोसकता, अगर कोइ झुठी दलील करके विरोधी बनजाय तो उसकी मर• जीकी बात है. मगर सची दलीलसे विरोध नहीं आ सकता,
३-रागद्वेष कामक्रोध वगेरा (१८) दोषोसेरहित जिनेंद्रदेवको जैनमें इश्वरपरमात्मा मानेगये है, अर्हन्-वीतराग-सर्वज्ञ-ये-सब इनहीके नाम है, ..४-साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका-इन चारोंकों जैनमें संघ कहते है,
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(३२) सवाने-उमरी.
५-जैनमजहबमें-जगत्-अनादि है,-सबजीव अपनेअपने कियेहुवे कर्मोकों खुद भोगते है, इश्वर उसका फलदेवे, ऐसा जैनलोग नहीमानते. रागद्वेष वगेरा दोषोसें रहित इश्वर-फलदेनेके-झगडेमें क्यों पडे ? जो शख्श जैसा कर्म करेगा वैसा फल खुद पायगा, जैसे शराब पीनेवाला नशेके जोरसे खुद गाफिल होजाताहै, वैसे हरेक जीव अपनेकियेहुवे पापकर्मसें गाफिल होताहै,
६-जिसकेपास हथियारहै, जिसकेपास औरतहै. जिसकेपास जपमालाहै, और-जो-दुश्मनको मारनेकी तयारीमें खडे है, उनकों जैनमें देवनही मानेगये,
७-पंचमहायतकों इख्तियार करनेवाले-भिक्षा मांगकर सीकमपरवरीश करनेवाले-और-सत्यधर्मके उपदेष्टा-जैनमें-मुनिमानेजातेहै,
-जिनेंद्रदेवोके फरमायेहुवे-जैनागमको-जैनमजहबमें-सत्शासमाने है, जिसमें पूर्वापर विरोध-और-इन्साफसे खिलाफ बात नहींहोती,
९-पक्षपातरहित-और-दुर्गतिसे अछीगतिको पहुचानेवालाजैनमे-धर्म-मानागयाहै,
१०-जैनशास्त्रमें स्वर्ग मनुष्य तिर्यंच और-नरक-ये-चारगति मानीगइहै, स्वर्गगति वहहै-जो-आस्मानमें चांदसूर्य वगेराके विमान देखतेहो, उसमें देवतेलोग रहते है, और-वे-खुद उसकों चलाते है. जोलोग कहते है, विद्वानोंकों देव मानना अविद्वानोकोंअसुर,-पापियोंको राक्षस, और अनाचारियोंकों पिशाच मानना
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सवाने-उमरी. चाहिये. जैन-इसवातसें-खिलाफहै. विद्वान्-अविद्वान्-पापीऔर-अनाचारी अलगहै, और-देव-असुर-राक्षस-और-पिशाच अलगहै,
११-मनुष्यगतिमें-जितने-मनुष्यहै सब आगये, जोलोग कहते है दुनिया में सुखी है-वह-देव-और दुखी है-वह-नारकी है, जैनलोग इसबातसे खिलाफहै, जैनलोग-स्वर्ग-नरक-अलगचीज मानते है. मनुष्यगति अलग मानते है.
१२-तिर्यंचगतिमें जितने-पशु-पक्षी-हाथीघोडे-मोर-तोतेचिडिया वगेराहै सब आगये,
१३-नरकगति पृथवीके नीचे है, जो अजहद पाप करता है ऊसगतिकों पाताहै, जहांकि-शिवाय तकलीफ-और-रंजके दुसरी चीज-नामनीशानकोंभी नहि है,
१४-मूर्तिपूजा-और-तीर्थ-जैनलोग मानते है, और तीर्थोकी जियारतकों जानापुन्य समझते है,
१५-अर्हन्-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-साधु-श्रद्धा-ज्ञानचारित्र-और-तप-ये-नवपद जैन मजहबमें-आलादर्जेके पाक समझेगये है,
१६-तकदीर-और-तदबीरमें तकदीर बडी-और-तदबीर छोटी समझी गइहै.-तकदीर बुरीहो-तो-तदबीर चाहे जितनीकरलो फायदा-न-होगा.
१७-जैनलोग-तमाम बस्तुकों-स्वस्वरुपसे अस्ति, और परस्वरुपसे नास्ति मानते है, और इसीकों-स्याद्वाद न्याय कहते है,
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( ३४ ) . सवाने-उमरी.
(अनुष्टुप-वृत्तं,) सर्वमस्ति स्वरूपेण-पररुपेण नास्तिच,
अन्यथा सर्वभावानां-एकत्वं संप्रसज्यते, १ ... १८-त्यक्ष-और-परोक्ष-ये-दो-माग जैनमें मानेगये है,
१९-जैनमें चेतना लागयुकको जीव मानाहै, और चेतनारहितकों अजीब-गुभकर्मके पुइगठकों पुन्य-और अशुभकर्मके पुदलको पाप मानाहै, भलेपुरे परि गामोसे जोर शुभाशुभकर्म बांधता है. और उदय आनेसें भोक्ताहै,
(शार्दूलविक्रीडितं.] २०-तत्वानि व्रतधर्मसंयमगतिज्ञानानि सद्भावना,
प्रत्याख्यानपरिसहेंद्रियमध्यानानि रत्नत्रयं, लेश्यावश्यककाययोगसमितिमाणाः प्रमादस्तपः संज्ञाकर्मकषाय गुस्पतिशयाज्ञेयासुधिभिः सदा ॥१॥
[स्रग्धरावृत्तम् , ] त्रैकाल्यं द्रव्यषदकं नवपदसहितं जीवषट्कायलेझ्याः पंचान्येचास्तिकाया व्रतसमितिगतिज्ञानवारित्रभेदाः इत्येतन्मोक्षमलं त्रिभुवननहितैः प्रोक्तमहद्भिरिशैः प्रत्येतिश्रद्धाति स्पृशतिचमतिमान् यस्यवैशुद्धदृष्टिः ॥२॥ _नवतल-पंचमहाव्रत-द्विविधधर्म -सतराहभेदी संयम-चारगति पंचज्ञान-बारांभावना-दस प्रत्याख्यान-बाइस परिसह-पांचइंद्रिय आठ मद-चार ध्यान-तीनरत्न-छलेश्या-पट्आवश्यक-छकायतीनयोग-पांचसमिति-दसमाण-पांचप्रमाद-बारांभेदीतप-चारसंज्ञा आठकर्म-चारकषाय-तीनगुप्ति-चौतीसअतिशय-तीनकाल-छद्रव्य
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सवाने-उमरी. और नवपद-इनकों अछीतरह समझना और इनके भेदोको पहिचानना यह शास्त्रोका सार है.
२१-जैनमें गर्भाधान-जन्म-उपनयन-विद्यारंभ-विवाह-बतारोप-और-अंत्यकर्म वगेरा (१६) संस्कार माने है,
२२-पुनर्लग्न करना जैनमें मनाहै, जिसमें नुकशान ज्यादह और फायदा कमहै, उसकामको करना क्या जरूरत, ?
२३-जैनलोग-पृथवीको स्थिर-और--चांदसूर्यकों फिरते मानते है,
२४-जीवका-एक गतिसें दुसरी गति-और-इसतरह जन्मजन्मांतरकों जाना आना-जैन-मानते है, जब सब कर्मोंसे रहित होगा, उसकी मुक्ति होगी और फिर वहांसें कभी-न-लोटेगा.
(जैनमंतव्य-प्रकाश-खतम हुवा,) एकरौन कलंकीराजाके बारेभीवाज-किया, उसरोज बडी सभाभरीथी, जोजोलोग कहते कि-कलंकीराजा-संवत् (१९१४) मे होगया, मगर यहबात गलतो. जे नागम महानिशीथमूत्रके पंचमे अध्ययनमें साफवयानहकि-कलंकीराजा श्रीपभणगारकी हयातीम होगा. युगप्रधानयंत्रमें लिवाहे श्रीप्रभअणगार आठमें उदयके पहिले युगपधान होगे, पांचमे पारेक एकीसहजार वर्ष तेइसदफें जैनधर्मका उदय और तेइसके अनहोगा. उसमें जब आठमा उदय आयगा कलंकीराना-उसख्तहोगा, जमाने हालमें तीसरा उदय चाहे, श्रीभगगार युगपधान अबतकहुवे नही, फिर कैसे कहानासमताहेकि-कलंकोराजा होगया, ? युगमधान यंत्रकी गिनतोस यहभी मा महोताहे कि-आठमाउदय पांचमेआरेके. दस
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( ३६ )
सवाने - उमरी.
हजारवर्ष बतीतहोनेके बाद आयगा, दीपमालाकल्प - और पांचमेआरेकी - सझाय-महानिशीथसूत्रसे वडीनही, इनवातोंसें सबुतहुवाकि - कलंकीराजा - अबतक नही हुवा है, उसरौज और भी बहुतकुछबहेस हुथी, मगर यहां उसबातकों थोडेमें लिखदिइदैकि- लिखाण ज्यादा बढेनही और लोगोकों फायदा पहुचे,
( संवत् १९४६ का - चौमासा - शहर जयपुर, )
-
बादवारीशके शहर अहमदाबादसँ रवानाहोकर पेथापुर -माणसा - विजापुर- वडनगर - विशनगर - और - मौजे खेरालु होते हुवे तीर्थ तारंगाकी जियारत कोंगये, उसकी जियारत कर, और -अपनी नोटबुक में तमाम वजुहात उसतीर्थकी दर्जकिर तीर्थ तारंगासे रवाना होकर पालनपुर होते तीर्थआबुक गये. वहांकी जियारत कि, और पुराने शिलालेखों की नकल अपनी नोटबुकमें दर्ज किड़, आबुसे रवाना होकर - पाली - नयाशहर - अजमेर - किसनगढकी सफर करते जयपुर गये, और संवत् (१९४६) की - वारीश - वहां पर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे इनदिनोंमें वाग्भट्टालंकार और - अलंकारचूडामणि हिब्ज याद किये, ये दोंनो अलंकारग्रंथ है, अनीतिग्रंथ इसचौमासेमें पढा. पिछले दिनोंमें त्रैलोक्यप्रकाश ग्रंथ - जिसमें - नजुमका क्यानदर्ज है- हिब्ज याद किया. चंद्रप्रज्ञप्तिसूर्यप्रज्ञप्ति - ज्योतिषकरंडक - आरंभसिद्धि-जन्मांभोधि-और-नारचंद्र वगेरा जैननजुमग्रंथ वाचे, - समरसार- और - नरपतिजयचर्या - अन्य मतके नजुमग्रंथ - इसलिये - मुलाहजा किये कि इनमें नजुम किसतरह बयान किया है,
रिग्वेद - यजुर्वेद - सामवेद - अथर्ववेद - मनुस्मृति - याज्ञवल्कस्मृति भारत - भागवत - और - गीता - वगेरा वैदिकमजहबके शाख-गुरुसे
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सवाने - उमरी.
( ३७ ) अखीरतक इसगरजसे वांचेकि- इनमें - धर्मके बारेमें किसतरहबयान किया है, अकलमंदोंका कौलहैकि - हरमजहबकी किताबोंका मुलाहजा करे, और उनको पहिचाने. इन दिनोंमें महाराजने संगीतकलाका इल्मभी हासिल किया, सातस्वर - तीन ग्राम- एकीस मूर्छना-औरउनंचासवान - इनको जाननेवाला शख्श संगीतकलाका इल्म उमदा aौरसे पासकता है. भैरव - मालकोश - दीपक - हिंडोल-मल्हारऔर-श्री-ये-छ- रागके नामहै, पेस्तर के जमानेमें घांणीके सामने बैठकर भैरवराग गानेसे बिना बैलके घांणी चलजातीथी, पथरकी शिलाके सामने बैठकर मालकोश राग गानेसे पथर - पानी होजाताथा, दीयेके सामने बैठकर - दीपक राग गानेसे - विना दियासलाइ दीपक जलजाताथा. हिंडोलेके सामनेवेठकर हिंडोल राग गानेसेवह झुलने लगताथा, और श्री रागके गानेसे गवैयेको दौलतकी तंगी नहि रहती थी, आजकल रागमे वैसी ताहसीर नहीरही, नवैसे गानेवालेरहे, जैसा जमाना है वैसीचीजे मौजूद है. वीणा-सितार - दिलरुबा -- मुरशिंगार - सरोद - सरंगी - ताउस - हारमोनियमबेला- अलगोजा - बंशरी - और - जलतरंग वगेरा - बाजे - गानेवालेके कंठको मदद पहुचा सकते है, जब तीर्थंकरदेव - मालकोशरागमें तालीमधर्मकी देतेथे इंद्रदेवते दिव्यवाजोसे स्वर पुरतेथे, आजकलभी अगर कोई मुनि - रागरागिनीमें तालीम धर्मकी देवे - तो कोई हर्ज नहिहै, रागरागनी निहायत उमदाचीज है, अगर तालस्वरसें परमात्माकीइबादत किइजाय तो अशुभ कर्मकी निर्जरा और औरपुन्यानुबंधि- पुन्यमाप्तिका हेतु है. जिसकों संगीतकलाका इल्म नही है. वे कहते है रागरागनी कुछ चीज नही. मगर उनके कहने से संगीतकला कमजोर नही होसकती, जैनागम-स्थानांग -और-अनुयोगद्वारसूत्रमें स्वरोका क्यान उमदा तौरसें दर्ज है, जिनकों शकst
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NAMAN
(३८)
सवान-उमरी. ब-खूबीदेखे, गानेवालेके स्वरकी नकलकरना सरंगीकाही कामहै, दुसरे बाजे-गत-तोडे-और-आलाप वेशक ! देसकते है, मगर गलेकी नकल करना सरंगीकोही याद है. महाराज सरगम-तराना ध्रुपद-भैरवी-कालिंगडा--जोगिया--आसाउरी-वेलावल-सारंगजीला झींझोटी-कमाच-पीलु-धनासीरी-कल्याण--सोरठ-विहाग -और-जेजेवंतीवोरारागरागनी अछीतरह गानेलगे, और धर्मशास्त्रके व्याख्यानमेंभी रागरागनीसें तालीम धर्मकी देतेरहे,
(संवत् १९४७ का-चौमासा-शहर देहली, )
बादवारीशके जयपुरसे रवानाहोकर सांगानेर गये, चंदरौन वहांठहरकर वापिस जयपुरआये, और मुकाम मजकुरपर कयामकिया, इसअर्सेमें महाराजके गुरुसाहबभी-जोकि-जोधपुरमें-वारीशके अय्याममें मुकीमथे, मुनिमंडलके शाथ बडेशान-व-सौकतसें जयपुरमें तशरीफलाये, और महाराजभी गुरुजीकी पेशवाइमें गये, जयपुरमें करीब (२०) रौजतक शाथठहरे, इसअर्सेमें गुरुजीकाऔर-महाराजका आपसमें कुछतकरार होगया, और महाराज नाराजहोकर गुरुजीसें जुदेहोगये, चैतवैशाखके दिनोमें अलवर होतेहुवे शहरदेहलीकों तशरीफलेगये, और संवत् ( १९४७) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशांकरतेथे, और सुननेवाले लोग कसरतसे जमाहोतेथे, आचार्यसिद्धसेन दिवाकरकी बनाइहुइ द्वात्रिंशका-आचार्य हरिभद्रमूरिका बनायाहुवा लोकतत्वनिर्णय और षड्दर्शन समुचय मूलपाठ हिब्ज यादकिया, एक रोज महाराज देहलीकी चारोंतर्फ पुरानेमकान-पंढहेर-और-नामीग्रामी इमारतें देखनेकों गये, और कहपुराने मकानात देखकर खयालआयाकि-क्याक्या ! ! इमारते दौलतमंदोने बनाइथी और
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सवाने - उमरी.
( ३९ )
अब किसहालमें पडी है, जिनजिन होजोमें गुलाब-और-वेदमुश्कभराजाताथा - उनमें अब काइजम रही है. जहां मखमल - और कमख्वाबके फर्शपर मोतियोंकी झालरके शामियानेखडे कियेजाते थेवहां अवको झाडुभी नहीदेता, जिनकी अर्दली में सेंकडों सवार दोडतेथे - और - जो तमाम हिंदुस्थानमें नहीसमाते थे - थोडीसीजमीनमें सोयेपडे हैं, होनहारके सामने किसीका जोरनही चलता, उदय अस्त सबकों लगा है, हुकमहोदा - अमल्दारी और खजाना छोड़कर इस दुनियाफानीसराय से एकरौज जरुर विदाहोना है, पुरानी चीजोंकों देखकर आदमीकों एकतरहका असर होता है, और यहभी खयालपैदा होता है कि - सारस्तु धर्म है. जींदगीका कोइभरुसा नहीं. जहांanaने धर्मकरनाचाहिये. -
( संवत् १९४८ का - चौमासा - शहर लशकरगवालियर, )
बादariah देहली से रवाना होकर कुतुब- मेहरोली- गुडगांव होतेहुवे कस्बे फरुखनगर गये और करीब ( ४ ) महिने वहांउ - हरे, यहां पर महाराजने अपनेलिये ( टाइम-टेबल) कायम किया, ( यानी ) शुभहसे लेकर शामतक- और - शामसेलेकर शुभहतक किसकिसवख्त क्याक्या कामकरना - उसका वख्त - मुकररकिया, शुभहके ( ६ ) बजेसे ( ७ ) बजेतक प्रतिलेखना - और - स्थंडिलभूमि जाना, (७) बजेसें ( ८ ) बजेतक योगाभ्यास चितवन करना (८) बजेतक व्याख्यानसभा में बेठकर धर्मोपदेश देना, (९|| ) जेसे (१०) बजेतक विश्राम, (१०) वजेसें ( १२ ) तक आहारपानी लेना, ( १२ ) बजेसे ( ४ ) बजेतक - आयेगये गृहस्थोhare धर्मचर्चा के बारेमें बहेसकरना - ग्रंथवनाना-लिखना-पढनाया - ज्ञानचर्चा करना, ( ४ ) बजेसे ( ५ ) बजेतक प्रतिलेखना
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( ४० )
सवाने -उमरी.
करना, और स्थंडिलभूमि जाना, (५) बजेसे (६) बजेतक आहारपानी लेना, सूर्य अस्त होनेकेबाद ( ८ ) बजेतक प्रतिक्रमण वगेरा करना, (८) बजेसे (१०) बजेतक ज्ञानचर्चा - और योगाभ्यास चितवन, (१०) बजेसे शुभहके ( ५ ) बजेतक शयन करना, ( ५ ) बजेसें ( ६ ) बजेतक सूरिमंत्रका जाप - और -प्रतिक्रमण करना, इसतरह हमेशांकेलिये अपना टाइमटेबल कायमकिया, -
फरुकनगरसे रवाना होकर - होडल- पल्वल-मथरावृंदावन - होते हुवे - शहर आगरा गये, और (८) रौज वहां पर कयाम किया, वहांसे रवानाहोकर धोलपुर होते लशकर - गवालियर पहुचे, और - संवत् (१९४८) की वारीश वहांपर गुजारी, दर्मियान सराफाबजार जैन मंदिर के पास पंचायती उपाश्रयमें कयामकिया, व्याख्यानसभामें सूत्र आवश्यकवृत्ति - और - वासुपूज्यचरित बाचतेथे, व्याकरण चंद्रप्रभाइसचौमासेमें आधा - हिब्ज-यादकिया और स्याद्वादरत्नाकरावतारिका पुरी बांची, एकरौजकेलिये छावनी- मुरार - जोकि - तीनकोशकेफासलेपरवाकेहै गये, और वहांपर मूर्त्तिपूजापर व्याख्यानदिया. जहांजहां पर महाराजजाते हैं - और व्याख्यान देते है वहां धर्मशास्त्र के (१३) कानुन एकसाइनबोर्डपर लिखकर या छपवाकर मकानकी दिवारपर इसलिये लगा दियेजातेहैकि - मुननेवाले उनकों - बाचकर अमल करे, उसकी नकल यहांपरभी देते है, इसमें व्याख्यानसुननेका सबमतलबदर्ज है, बखूबी देखलो, 1
( व्याख्यान धर्मशास्त्रके (१३) कानुन, )
१ - अवलकानुन व्याख्यानसुनते वख्त कोइ शौरगुल-न-करे, चुपचापहो करमुने, व्याख्यानका टाइम साढेआउसे साढेनवतक
सवेरका है,
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सवाने-उमरी. २-दुसराकानुन व्याख्यानसभामे कोइ सामायिक-न-करे, ३-तीसराकानुन व्याख्यानमुनते वख्त कोई माला-न-फेरे,
४-चोथाकानुन व्याख्यानसभामें शौरगुलकरे एसे छोटेलडकेको-न-लावे,
५-पांचवाकानुन चलतेव्याख्यानमें कोइ उठे नही. खतमहोवे जब उठे,
६-छठाकानुन-व्याख्यानसुननेवालेको कोइ बुलानेआवे तो मुंहसें जवाब-न-देवे, इशारेसे समझावे,
७-सातमाकानुन शोगसंतापवालोकों परभावना लेनेमे कोई दर्ज नही.
८-आठवाकानुन धर्मशास्त्रसुनने आनेमें शोगरखनानही,
९-नवमाकानुन व्याख्यानसभामें जहां जगहदेखे वहां बेठजाय, चाहे गरीबहो-या-अमीर, पेस्तरआवे वह आगेबेठे, पीछेआनकर आगे आनेका इरादा-न-करे,
१०-दसमाकानुन चलते व्याख्यानमे फक्त सीरझुकाकर 4दनकरे, व्याख्यान खतम होनेपर-या-पेस्तर तीनक्षमाश्रमण देनेमें कोइहर्ज नही.
११-ग्याहरमाकानुन चलते व्याख्यानमें कोइ-प्रत्याख्यानन-मांगे,
१२-बारहमा कानुन शोगसंतापवाले अगर परभावना बांटनाचाहे-तो-ब-जरीये दुसरेके चीजमंगवाकर बांटदेवे,
१३-तेरहमाकानुन व्याख्यानमें जिसकिसीकों-जो-कुछपुछ
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(४२) सवाने-उमरी. नाहो खुशीसे पुछे, मगर शर्तयह है व्याख्यानमें जोबातचलीहोउसीमजमूनको पुछे, विनासंबंधकी बात-न-पुछे, और अगर तुमारी भूलपर गुरु-सख्तसुस्त बातकहे-तो-उसकाबुरा-न-माने, बल्कि ! हकसमझे,
(सूचना,) तीर्थकरदेव समवसरणमे बेठकर मालकोशरागमें तालीमधर्मकी देतेथे, जमानेहालमेंभी कोइ-मुनि-रागरागनीमें व्याख्यानदेवे-तो-कोइहर्ज नहीं है.
(व्याख्यान धर्मशास्त्रके (१३) कानुन खतमहुवे,)
F[छावनी मुरारमें मूर्तिपूजापर दियाहुवा व्याख्यान,
दुनियामें मूर्तिपूजा कदीमसे चलीआइ, मूर्तिपूजाके निषेधक पुरुष कइहुवे मगर मूर्तिपूजा हमेशांकेलिये कायमही रही, गरजकि -विनामूर्तिके किसीकाकाम नहीचला, मूर्ति-प्रतिमा-चैत्य-बिंब प्रतिकृति-अक्स-औरतस्वीर-ये-सवमूर्तिहीके नाम है, अगरकोइ कहे, मूर्ति-जीवहै-या-अजीव ?-(जवाब) शास्त्र जीवहै-या-अजीव, ? अगर अजीवहै-तो-वतलाइये !-अजीव पदार्थकों क्यों मानागया, ? अगर कहाजाय-शास्त्रके देखनेसें-ज्ञानपैदा होताहै-तो मूर्ति देखनेसेभी उसदेवके स्वरुपका ज्ञान पैदाहोताहै-ऐसा-माननेमें क्याहर्ज है, ? ____ भगवतीसूत्रके मूलपाठमें ब्राहमीलिपिकों नमस्कार कियाहै, सोचो ! ब्राहमीलिपि ज्ञानकी स्थापनाहै-या-नहीं ? अगरहै-तोस्थापना निक्षेपा मानना मंजूरहुवा, आवश्यमूत्रकी नियुक्तिमें भस्त चक्रवर्तिने अष्टापदपर्वतपर जैनमंदिर बनवाये ऐसाखुलापाठहै,
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सवाने-उमरी. [नियुक्ति आवश्यकसूत्र-अध्ययन पहिला, ] थुभसयभाउगाणं-चउवीसं जिणघरे कासि
सव्वजिणं पडिमा-वन्नपमाणेहिं नियएहिं, ? इसपाठसे साफजाहिरहैकि-भरतचक्रवर्तिने चौइस जैनमंदिर बनवाकर उसमें चौइसमूर्ति तीर्थकरोकी रखी, जैसाकि उनका रुपरंगथा, अगरकोइ तेहरीरकरेकि-हम नियुक्ति नहीमानते--तोउनकों मालूमकरना चाहिये भगवतीसूत्रमें क्यालिखाहै, ? उसमे लिखाहै-नियुक्तिकों मानना चाहिये, अगर इसबातपर किसीकों शकहो-तो-भगवतीसूत्रकों खोलकरदेखलेवे. भगवतीसूत्रकों दुढिये मजहबवालेभी मानते है, उसमें मूर्तिकामानना साफजाहिरहै,
(भगवतीसूत्रका पाठ-शतक (२५) मा-उद्देशातीसरा,) सुतथ्थो खलु पढमो-बीयो निज्जुत्तिमिसओ भणियो, तइयो निरवसेसो-एस विहिहोइ अणुयोगो,
देखलो ! इसपाठमें साफलिखाहैकि-नियुक्ति-मानना, फिर कौन कहसकताहैकि-हम-नियुक्ति नहीमानते, सबुतहुवाकि-बत्तीससूत्रके मूलपाठमें-नियुक्ति मानना लिखाहै, जोलोग इनकारकरतेहै गलतीपरखडे है, उवाइसूत्रके-मूलपाठमे तीर्थकर महावीस्वामीके . रुबरु अंबडश्रावकने अरिहंतकी प्रतिमाकों वंदना-नमस्कारकरना कुबुल किया, सबुत उसका इसपाठसे साफजाहिर है, देखलो ! उवाइसूत्रका पाठ.
अंबडस्सणं परिवायस्स नोकप्पड अन्नउथिएवा-अनउथियदेवयाइं वा-अन्नउथ्थियपरिग्गहियाई अरिहंतचेइयाई वा-वंदित्तएवा-नमंसित्तएवा-नन्नथ्य-अरिहंतेवा अरिहंतचेइयाणिवा,
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(४४) सवाने-उमरी.
माइने इसपाठके-ये-हैकि-मुजे गेरमजहबीकों-उनके देवोको और गेरमजहबवाले लोगोने अरिहंतकी मूर्तिको लेकर अपने देव. रुप करलिइहो-उसकों वंदना-नमस्कार करना मुनासिबनही, मगर जिस अरिहंतकी मूर्तिकों गेरमजहबके लोगोने लेकर अपने देवरुप-न-बनालिइहो-और-मुताविक फरमान जैनशास्त्रके होउसकों-वंदनानमस्कार करना मुजे मंजूरहै. देखिये ! यह सबुत किसकदर सच्चा और-पावंदहैकि-जिसपर कोइकिसी तरहकी हुज्जत-या-तकरीर नहीकरसकता. इंढियेलोग चैत्यशब्दका माइना-साधु-करते है, मगर चैत्यशब्दका-माइना साधु नहीं है. बल्कि ! हैमकोशमें चैत्यशब्दका माइना जिनमंदिर और जैनप्रतिमा लिखाहै
· चैत्यं जिनोकस्तबिंबं, इतिहैमः,___ आनंद श्रावकके पाठसेभी साफ जाहिरहैकि-वह-तीर्थकर महावीरके सामने गया, और उसनेभी वही नियम इख्तियारकिया जो उपर लिखागयाहै, अगर इसका कोइ सबुत तलब करनाचाहे तो-इसआगे लिखे पाठकों देखकर मालूम करले, उपाशक दशांगसूत्रका पाठ बतलाते है, देखलेवे,
नो-खलु-मे-भंते ! कप्पद अज्जपभिइंचणं--अन्न उथिवा-अन्न उस्थियदेवयाणिवा-अन्नउथियए-परिग्गहियावा-अरिहंतचेहयाइंवा-वंदितएवा-नमंसितएवा,--
माइने इसपाठके और दिगरपाठ जो उपर अंबडजीश्रावकका लिखचुके-दोनोंके-एक होते है, देखिये ! अंबड-और-आनंदश्रावककी पावंदी धर्ममें कैसीथीकि-जिनोने इतनी सख्ती इख्तियार
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सवाने-उमरी. किइ. महानिशीथसूत्रके पाठसे यहभी साबीतहैकि-जो शख्श जैन मंदिर बनवायगा और मुताबिकशास्त्र फरमानके दानपुन्य करेगा उसकों बारहमें स्वर्गकीगति हासिलहोगी, और वह पाठभी यहां बतलादिया जाताहै, अकलमंद गौर करलेवे कुल्लहाल मुफस्सिल मालूम होगा,
(महानिशीथमत्रका मूलपाट,) काउंपि जिणायणेहि-मंडिया सव्वमेयणिवर्ट, दाणा चउक्कयेण-सढोगछेज्जचुयं जाव, ॥ १॥
देखलो ! इसपाटमें जैनमंदिर बनवानेवालेकों बारहमें स्वर्गकी गति होना साफ बयानहै. अगर कोई कहेकि-हम-महानिशीथमूत्रकों नही मानते-तो-जवाबमें मालूमकरे नंदीसूत्रमें महानिशीथमू
का माननालिखाहै-या-नही ? अगर कहोगे लिखाहै-तो-महानिशीयसूत्रकोभी मानो और मंदिरमूर्तिभी कुबुलकरो, असुरकुमार देवता जब उपरकेस्वर्गकों जाताहै-वगेर-अरिहंत-अरिहंतकीमूर्तिसाधुमहाराजके सरनेके नहीजासकता, वहबात इसआगे बतलायेहुवे पाठसे साबीवहै. व-गौर देखे,
(भगवतीसूत्रका पाठ, ... नन्नथ्य-अरिहंतेवा-अरिहंतचेझ्याणिवा-भाविअप्प. णो अणगारस्सवा-णिस्साए-उढं-उप्पयंति जावसोहम्मो कप्पो,
इस पाठका मतलब उपर आचुकाहै, अगर अरिहंतकी मूर्ति जैनमजहबमें मानना मंजुर-न-होतीतो एसा पाठ क्यों होता ? दशवकालिकमूत्रके मूलपाठमें लिखा हैकि-अगर कोइ तस्बीर और
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(४६ ) सवान-उमरी. तकी किसीमकानमें उतारीहुइ मौजूदहो-तो-वहांपें जैनमुनिकों ठहरना नहि चाहिये, उसका पाठ बतलायाजाता है देखिये !
(अध्ययन ८ मा-सूत्रदशवैकालिक, ) चित्तभित्तं-न-णिझाए-नारेवासुअलंकियं, भखरं पिव ठुणं-दिठी पडिसमाहरे,
इसका मतलब यहहैकि-जिसदिवारपर औरतका चित्रहोउसको मुनि-न-देखे. जैसेसूर्यकों देखकर अपनीनिगाह पीछीखेंचलिइजातीहै औरतके चित्रकों देखकर अपनीनजरकों खेंचलेवे. किसवास्तकि-उसतस्वीरकों देखकर असलीऔरतकी यादीआजाती है, सवालपैदाहोनेकीजगहहैकि-जिसहालतमें एक नाचीजऔरतकों देखकर खासऔरत याद आजावे, तो कया! तीर्थकरोकी मूर्ति देखकर खासतीर्थकरोंकी यादी-न-जायगी, ? इसमें कोइशकनही कि-तस्वीरदेखकर जोकि-खासशख्शहो-वह-जरुरयाद आजाता है, अगर कहाजाय मूर्तिपूजा करनेसें जीवोंकी हिंसाहोती है-तोक्या स्थानक बनानेमें हिंसा नहींहोती, मुनिमहाराज एकशहरसे दुसरेशहर जाते रास्तेमे किसीनदीमें होकर पारहोते है-तो-क्या पानीकेजीव नहीमरते है ? भिक्षाकेलिये जानेमेंभी हवाकेजीव अपने शरीरसे मरतेहै, जबकभी किसीकों दीक्षादिइ जाती है तो जलसा कियाजाता है उसवख्त सेंकडो आदमीयोंकी भीडभाडसें रास्तेमें सूक्ष्मजीवोंका नाशहोताहै इसकों क्या जीवहिंसा नहीसमझते ? सिर्फ मूर्तिपूजाहीकों जीवहिंसा समजतेहो, ? अनुयोगद्वारसूत्रमें चार निक्षेपे बयानफरमाये उसमें स्थापना निक्षेपा मूर्तिको सबुती देताहै,
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सवान-उमरी. (४७) अगर कोई सवाल करेकि-मूर्तिपूजा-अछी है-तो-साधुमहाराज पूजा क्यों नहींकरते ? (जवाब.) साधुमहाराज जिनप्रतिमाके दर्शनकों जाते है, तीर्थयात्राकों जाते है और भावपूजा करते है, जैनशास्त्रोमें साधु-साधवी-श्रावक-श्राविका-पुस्तक-प्रतिमा-और मंदिर-ये-सातक्षेत्र बयान फरमाये. अगर मंदिर-मूर्तिमानना जैनमें मनाहोता तो सातक्षेत्र क्यौं फरमाते ? मूर्तिपूजामें पूजकका इरादा पाक होनेसे भावहिंसा नही. ओर विनाभावहिंसाके पाप नहीं. बल्कि ! अशुभकर्मोकी निर्जरा और पुन्यानुबंधि पुन्यप्राप्तिका हेतुहै. अगर कोई सवालकरेकि-मूर्तिपूजा करनेवाले पथ्थरकों पूजते है ( जवाब. ) पथ्थर नहीं पूजते, बल्कि ! वितरागदेवका आकार देखकर उसमें वीतरागभावकी यादीलाकर पूजते है, और इबादतकरते हैकि-हे ! वीतराग-अरिहंत-सर्वज्ञ-परमात्मा-निरंजन निराकार इस हमारीइबादतसे हमारे कर्म-दरहोकर हमकों मुक्ति मिले, अगर पथ्थर पूजतेहोतेतो ऐसा कहतकि-हे ! पथ्थर !! तुं बडा अछाहै, फलानी खानमेसें निकलाहुवाहै. और तुं ! दश रुपयेगजके मोलकाहै, मगर नहीं, पूजकपुरुषतो मूर्तिकेजरीये वितरागहीकी पूजा करताहै. अगर कोई सवालकरोकि-मूर्तिकी जो इबादत किइजाती है-क्या-वह सुनती है, ? ( जवाब. ) जिस देवकी मूर्तिहै-वह-वेशक ! अपने ज्ञानमें जानते हैकि-फलांशख्श इबादत कररहाहै. अगर कोइ कहे, हम-मानसीमूर्तिको मानते है, पथ्थरकी मूर्तिको नहीं मानते, ( जवाव.) फिर मानसीक ज्ञानकोही मानलो, कागज स्याहीकेबनेहुवे पुस्तककों क्यों मानतेहो, ? अगर कोई सवालकरे मूर्ति पथ्थरकी है-उसको पांव लगादेवे तो क्याहर्ज है ? ( जवाब.) पुस्तक कागज स्याहीके है-उसकों पांव लगानेमें क्या हर्ज है, ? अगर कहोगे हर्ज है, तो इसीतरह मूर्तिके
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(४८) सवाने-उमरी. बारेमेंभी समझलो हर्ज है. इस व्याख्यानसे यह दिखलानाथाकी दुनियामें मूर्तिका पूजना कदीमसें चलाआता है, और उसकेविना किसीका काम नहीं चलता, कोइ पहाडको-कोइ मकानको-कोइ शाखको-चित्रकों-और-कोइ मूर्तिकों मानता पूजताहै असल पुछो यहसब मूर्तिपूजाहीके भेद है.
( व्याख्यान मूर्तिपूजाका खतमहुवा,) छावनी-मुरारसे-उसीरौज वापिसलशकर आये, संगीतकलाका इल्म इस चौमासेमें भी हासिल करतेरहे, व्याख्यान धर्मशासका हमेशां वाचतेथे, और सभा अछी भरतीथी,
संवत् १९४९का-चौमासा-शहर लशकरगवालियर,
बादवारीश खतम होनेके लशकरसे रवाना होकर गवालिय. रकों तशरीफ लेगये, जोकरीव ( २ ) कोशके फासलेपर वाके है,
और किलाभी देखा उसमें पुराने शिलालेखथे-उनकी-नकल किइ, और वहांसे छावनी मुरारकों गये, और वहां चंदरौजठहरे, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे, और धर्मचर्चाके बारेमें हमेशां बहेसहोतीथी, छावनी मुरारसे फिर लशकर आये, और जब वहांसे दुसरे मुकामकों जानेका इरादा किया, वहांके श्रावकोने वास्तेठहरने अय्याम वारीशके बहुत आमिन्नत किइ, जिससे महाराज वहांठहरे, और संवत् (१९४९) की-वारीश-वहांपर गुजारी, व्याख्यानमें समवायांगमूत्र-और-विविधतीर्थकल्प बाचे, चंद्रप्रभा व्याकरण जो गइसालमें हिन्ज यादकरना शुरुकियाथा इसचौमासेमें पुरा किया. और-सम्मतितर्क-जो-आलादर्जेका जैनतर्क ग्रंथहै पढनाशुरुकिया, उपाशकदशांग-अंतकृतमूत्र-अनुत्तरो
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सवान-उमरी. पपातिका-प्रश्न व्याकरणमूत्र-और-विपाकसूत्र इनदिनो में वाचे. कइदफे बडीवडी सभाये हुइ. और धर्मचर्चा के बारेमें बहेस होतीरही,
ॐ [कर्मपर-व्याख्यान, ] ___ एकरौज-महाराजन-कर्मपर-व्याख्यानदिया. तकदीरकहोकर्मकहो-या-नसीवकहो-बातएकही है, जैनशास्त्रोमें कर्म आठतरहके बयानफरमाये, १-ज्ञानावरणीय, २-दर्शनावरणीय, ३वेदनी, ४-मोहकर्म,--५-नामकर्म, ६-गोत्रकर्म, ७-आयुकर्म, ८-और अंतरायकर्म, खयालकरो ! एकशख्श बादशाहहै और हिराजवाहिरातलगे तख्तपर बेठताहै एक-मुल्क-ब-मुल्क फिरता है और रोटीयोसें मौताजहै, बतलाओ ! इसकी क्यावजह ? एक शख्श अकलमंदहै और एक-बेवकुफहै-तो-सोचो ! यह अकलमंद क्योंहुवा ? और दुसरा बेवकुफक्यौं ? एकमदर्सेमें दो-लडकेएक उस्तादसें (२०) वर्षतक इल्मपढतेरहे, उसमेसें एक-पासहुवा, दुसरा फेलहुवा, बतलाओ ! इसकी क्यावजह ? एकशख्श अपनेधर्मपर ऐसा मुस्तकीम हैकि--किसीके बहकानेमें नहींआता. दुसरा ऐसा वेबकुफहैकि-उसकों बारांवर्षतक धर्मशास्त्र सुनाओ. मगर उसका एतकात धर्मपर नहीजमता, खयालकरो! इसकी क्या ! वजह ? एकशख्श ताबेउमर तंदुरस्तरहा, और एक ऐसा बीमाररहाकि-तमाम उमर उसकी वीमारीमें गुजरी, कहिये ! उसकी क्या ! वजह ? एकशख्शको अपनीऔलाद और दौलतसे इतनी मोहब्बतहैकि-शिवाय इनके धर्मकों फिजहुल समझताहै, और एकशख्श धर्मकों उमदा औलाद और दौलतकों कुछनहीसमजता, सोचो ! इसकोक्यावजह, ? एकशख्श ऐसा हसीन और खूबसुरत हैकि-जिसकीसानी दुसरामिलना दुसवारहै. और एक ऐसाबदसु
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(५०) सवाने-उमरी. रत-बदशिकल हैकि-कोइउसके शाथ बातकरनाभी नहीचाहता. कहो ! इसकी क्यावजह ? एकशख्श ऐसापैदाहुवाकि-उसकों नवाबी और राजमिला, दुसरा ऐसीजगह पैदाहुवाकि-बुरीजगह शाडदेता फिरताहै, खयालकरो ! इसकी क्यावजह, ? एकमहोलेमें दो-लडके एकहीदिन पैदाहुवे, एक जन्मतेही मरगया, और दुसरा साठवर्षतक जीतारहा. सोचो ! इसका क्यासबब, ? दो-शख्शतिजारत करनेलगे, उसमें एकशख्शकों इसकदर फायदा हासिल हुवाकि-लखपति-करोडपतिबना, और दुसरेकों इसकदर टोटा पडाकि-घरकीपुंजी खोकर दुसरेसे कर्जालेनापडा, बतलाओ ! इसकी क्यावजह, ? अगरकहाजाय इश्वरने ऐसाकियातो-सोचो ! इश्वरको ऐसाकरनेकी क्याजरुरत ? क्योकि-इश्वर रागद्वेषसे निहायत पाकहै, असलमे यहसब-अपनीअपनी-तकदीरके ताल्लुकहै, पूर्वजन्ममें जैसा जिसजीवने कियाथा-बैसा उसके आगेआया.
जोशख्श इश्कबाजी करताहै, जीवोकों कतलकरता है, रहम बिल्कुल नहि. दगाबाज पुरा, घमंड बहुत, शोगसंताप बहुत. और जिसकों देवगुरु धर्मपर एतकात नहीं, ऐसा शख्श अछीगति नही पासा, जोशख्श तप करताहै, व्रत नियम पालताहै, दान देता है, देवगुरु धर्मपर एतकात रखताहै, शास्त्रके फरमानकों मंजुर करताहै
और दिलका साफहै वह स्वर्गगतिको पाताहै, जोशख्श वातकहकर मुकरजाय, मतलबहुवाकि--दुश्मन-बनजाय, धर्ममेंभी नर्ददगाकी खेले, वह दुर्गतिको पाताहै. जोशख्श रहमदिलहो, इन्साफकीवात बोलनेवालाहो, और देवगुरु धर्मपर पुरा एतकात रखताहो-वहअछीगतिको पाताहै. जोशख्श जीवोकी कतलबाजी-न-करे, हरवख्त जीवोंकों बचातारहे-वह-अगले जन्ममें लंबी उमर पाता है, जिसने पूर्वभवमें दानपुन्य नहीकिया, वह-इस भवमें एशआरामसे
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मवाने-उमरी.
(५१):
वंचित रहताहै, जिसने पूर्वजन्ममें दानपुन्य बहुतकिया है-वह-इस जन्ममें आरामतलब है, जिसने पूर्वजन्ममें देवगुरु धर्मकी खिदमत किइहै वह इसजन्ममें दौलतमंद होताहै, जिसने पूर्वजन्ममें देवगुरु धर्मकी बेअदवी किइहै-रुपये पैसे होतेहुवेभी धर्ममे खर्च नहीकिया है-वह-इसजन्ममें दरिद्री होता है, जिसने पूर्वजन्ममें इल्म पढाथा दुसरोकों तालीम देकर धर्मात्मा बनायेथे-वह-इसजन्ममें विद्वान्
और धर्मज्ञ होताहै, जिसशख्शने पूर्वजन्ममें तोते-मुटु-कबुतर-चिढिया-तीतरवगेराकों-पीजरेमें-केदकियेथे, वह-इसजन्ममें दुसरोंका ताबेदारहोकर तकलीफपाताहै, और केदभी पाताहै. जिसने पूर्व भवमें किली जीवकों तकलीफ नहीदिइ, बल्कि ! तकलीफसें छोडाये है-वह इसजन्ममें किसीका ताबेदार नहीबनता, बल्कि ! खुद मालिक होताहै, जोशख्श अपने गुरुसे-या-उस्तादसे नर्द दगाकी खेलताहै उसका इल्मकारआमद नहीहोता, जोशख्श दानपुन्यकरके पीछे रंजीदा होताहै वह--अगले जन्ममें-नफा-नहीपाता, जोशख्श दुसरोंके लडका-लडकीका-वियोग करादेताहै-वह-अगले जन्ममें औलाद नहीपाता. जोशख्श अपनी जातिका घमंड करताहै वह अगले जन्ममें नीचकुल पाताहै. जोशख्श दुसरोके हाथ पांव तोडडालताहै अगले जन्ममें-बह-लुला-लंगडा होताहै, जिस शख्शने पूर्वजन्ममें जीवोपर रहेम किइहै, वह इस जन्ममें खूबसुरत-कमालहुस्न-और-चहेरेपर मुबारकबादी पाताहै.
जोशख्श लोगोकों कहताहै धर्मकरनेसे कुछ फायदा नही. परलोक किसने देखा ? ऐसा उपदेश देनेवाला शख्श अगलेजन्ममें धर्म-नही-पाता, जोशख्श दुसरोंकों गला घोटकर मारताहै-वहअगले जन्ममें बुरीमोतसे मरताहै, जोशख्श दुसरेसे अपना मतलब लेताहै मगर उसको खानेकेलिये रोटीभी नाहिदेता-वह-अगले ज
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(५२) सवाने-उमरी. न्ममें रोटीयोसे मोहताजहोकर मांगताफिरेगा, जोशख्श तीर्थभूमिम दंगाफिसाद करताहै, देवद्रव्यको बरवाद करताहै, और मंदिरम्र्तियोंके सामने अनाचार सेवनकरताहै-उसकी अगलेजन्ममें अछी गति नहींहोती, जोशख्श धर्मशास्त्र पहानही और दुसरोके सामने कहताहै-में-बहुतशास्त्र पढाई-बह-अगले जन्ममें विद्याहीन होताहै, जोशख्श आप बदकाम करताहै और दुसरेके माथे तोहमत चढाता है-वह-अगलेजन्ममें अछीगति नहीपाता, जोशख्श तीर्थकर-गणधर-आचार्य-उपाध्याय-और साधुमहाराजके अवर्णवाद बोलताहै महामोहकर्म बांधताहै जिसने पूर्वभवमें गुप्तदानदियाहै वह अगले जन्ममें दुसरेके घर गोद आताहै और दौलत पाताहै. ___ अगर धर्मशास्त्रकी राहपरचलो तो हरेकजीवपर रहेमकरो, आइंदे सुमारा भलाहोगा. धर्मशास्त्र फरमाते है-जो-शख्श-जैसा कर्म करेगा-वैसाफल पायगा, यह एकसिधीसडकहै.
(कर्मपर व्याख्यान-ग्वतमहुवा,-)
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[संवत् १९५० का-चौमासा शहर लशकर गवालियर,]
बादवारीशके लशकरसे रवानाहोकर महाराज छावनी-मुरारको-गये, और शीतरुतुमें वहां कयामकिया, व्याख्यानमें रायपसेणी-जीवाभिगम-और-पाडवचरित बाचा, छावनी मुरारसें रवानाहोकर गवालियर गये, और फिरजब जहाँसीतर्फ जानेका इरादाकिया, लशकरके श्रावकलोग वहांआये और अर्जकरने लगेकि-आप-जहांजायगे फायदाधर्मका पहुचायगे, बराये महेरवानी हमारेही शहरमें इससाल और कयामकिजिये, और हमकों धर्म सुनाइये,-महाराजने उनकी अर्ज कुबुलकिइ, गवालियरसे लशकर
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सवाने-उमरी.
( ५३ ) आये, और संवत् (१९५०) की वारीश वहांपर गुजारी; व्याख्यान हमेशांकरतेथे और सुननेवालेलोग कसरतसें जमाहोतेथे, संगीतकला इल्म इनदिनोभी हासिल करतेरहे, धर्मचर्चाकलिये कइशख्श आतेजातेथे. और माकुल जवाबपाकर खुशहोतेथे.-लशकरके श्रावकोने महाराजकी बहुतकदर-व-इज्जतकिइ, धर्मकेबारेमें जोजोबात महाराज फरमातेथे फौरन ! उसपर अमलकरतेथे,-इस चौमासेमें सम्मतितर्कग्रंथ तीनहिस्सा वांचा एकहिस्सा बाकीरहा, एकरौज व्याख्यान जगत्कर्ता के बारेमेदिया,
[व्याख्यान-जगत्क के बारेमे, ] अगर लीलाकरके दुनियाको इश्वरने-बनाइ मानेतो-सोचो ! लीलाकाहोना रागवानकों होताहै, और इश्वर रागद्वेषसें निहायत पाकहै, अगरकहाजाय रहमदिलहोकर दुनिया बनाइहै-तो-एकको आराम और तकलीफ क्यौं, ? अगरकहाजाय आराम तकलीफ अपनी अपनी तकदीरके ताल्लुकहै-तो-फिर कहनाचाहिये तकदीरही सबसेतेजरही. अगर इश्वरने अपनीशक्तिसें दुनिया बनाइहै ऐसा माने-तो-सोचो ! जीवोंकों पेस्तर निर्मलबनायेथे-या मलीन ? अगर निर्मलबनायेथे--तो-फिर धर्मशास्त्र किसको निर्मलकरनेकेलिये बनायेगये ? अगर मलीनबनायेथे-तो क्यासबबहै उनकों पापरुप मलीनता दिइगइ, ? असल में दुनिया अनादिहै. एकजन्मसे दुसरेजन्ममें जाना उसकानाम मृत्युहै, जोकुछ सुखदुख यहां मिलाहै पूर्वकृतकर्मके उदयानुसारहै, और आगेकों जोकुछ मिलेगा यहांके कियेहुवे कर्मानुसार मिलेगा. अगर ऐसा-न-मानेतो एक मुखी-और-एकदुखी क्यौं ?
जीव-जब-दुसरे जन्ममे जाताहै उसकेशाथ पुन्यपाप-औरतैजस-कार्मण सूक्ष्म शरीरशाथ जाताहै, बिनावीज वृक्ष नही और
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( ५४ )
सवाने-उमरी. विना वृक्ष बीज नही, अगर कहाजाय जड-चेतनरुप-मसाला पेस्तरसेथा, तो-सवाल पैदा होता है कि वह--मसाला किसने बनायाथा ? वगेरा बहुतसी दलीलें दिइगइथी, यहां थोडेमें लिखा है,
(संवत् १९५१ का चौमासा शहर लशकर गवालियर.)
बादवारीशके लशकरसे रवानाहोकर गवालियरकों गये, गवालियरसे छावनी-मुरार गये, और वहांपर मोशम शर्दीका खतम किया. व्याख्यान हमेशां बांचतेथे. फाल्गुनमहिनेमें वहांसें विहार करनेकी तयारीकिड लशकरके श्रावकलोग वहां आये, और एक चौमासा औरभी लशकरमें ठहरनेकी अर्जकिइ, महाराजने देखाकि वास्तेधर्मके-ये-लोग इतनी अर्जकरते है-तो-मुनासिबहै अबका चौमासा फिर लशकरमें करे, छावनी-मुरारसे-फिर लशकर आये.
और संवत् ( १९५१ ) की-वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यानमें प्रज्ञापनासूत्र और आचारदिनकर ग्रंथ बाचा, सम्मतितर्कका चोया हिसा इस चौमासेमें पुरा किया, हिसा इस चामासम पुरा किया,
अंगं स्वप्नःस्वरश्चैव-भौमं व्यंजन लक्षणे, उत्पातमंतरिक्षंच-निमित्तं स्मृतमष्टधा ॥१॥
अष्टांगनिमित्तका इल्म इनदिनोमें हासिलकिया, नंदीसूत्र-दशाश्रुतस्कंध-व्यवहारसूत्र-और-निशीथसूत्र-इनदिनोमें बांचे, संगीतकलाका इल्मभी इसअर्सेमें हासिल करतेरहे, क्योंकि-यहशहरभी इसहुनरकेलिये मशहूरहै, कइदफे बडी बडी सभा हुइ. एकरौज पृथवी फिरती है-या-चांदसूर्य, ? इसपर व्याख्यानदिया,
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सवाने - उमरी.
( पृथ्वी फिरती है - या - चांदसूर्य - )
अगर पृथ्वी फिरती है- एसामाने तो एकगांव दूसरे गांवसे जिस दिशा में है उसदिशासें वदलजाना चाहिये. वारीशके दिनों में समझो दो घंटेतक एकजगह वारीश होती रही, और इधर जमीन दो घंटे में फिरतीहुइ आगेकों चलीगइ फिर तालाव - पानी से कैसे भरसकेंगें ? एक द्रख्तके मालेसें निकलकर एक पक्षी समझो आस्मानमें उड़ा, और वह आधघंटेतक आस्मानमें उडतारहा, इधर पृथ्वीकेशाथ लगा हुवा द्रख्त-आगे चलागया, सोचो! फिर वह पक्षी अपने मालेको कैसे पासकेगा, ? अगर कहाजाय कि - चांदसूर्य स्थिर और पृथ्वी फिरती है तो अमावास्याके रौज-चांदसूर्य एक राशिपर और पौर्णिमा के रौज - एक दुसरेके सामने क्यौं आजाते है ? एक राशिपर जो अनेक ग्रहोंका मिलना - और - जुदा होजाना नजरके सामने दिखाइ देरहा है वह क्योंकर सबुत होगा ? अगर पृथ्वी फिरती है-तो-- यहभी सवाल पैदा होगा कि वह - गाडीके पैयेकीतरह उर्द्ध - अधः फिरती है ? या कुंभकारके चक्रकीतरह तिर्यग फिरती है ? अगर उर्द्ध - अधः फिरती है-तो- उर्द्धस्थित पदार्थ अधः आने से गिरनेकी संभावना है. अगर कुंभकारके चकी तरह तिर्यग फिरती है तो कहीए ! किसके आधाररहकर फिरती है-, ? बहुतसी बातें बयान किड्गथी, यहां थोडे में - मतलब कहदिया है.
[ संवत् १९५२ का चौमासा शहर भोपाल, बादवारीशके लशकरसे रवाना होकर दतिया - जहांसी - ललि तपुर- वासोदाहोते भिलसागये, और (१५) रौज वहांपर कयाम किया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशांदेतथे एकरोज भिलसाके पडोसमें बौधस्तूपोंकों देखनेगये, भिलसा बौधस्तूपोके लिये मशहूर
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( ५५ )
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(५६) सवाने-उमरी. जगहहै. भिलसा टेशनसे (५) मील सांची टेशनकेपास कइ बौधस्तूप बनेहुवेहै, भिलसासे रवानाहोकर शहरभोपाल आये, और संवत् (१९५२) की वारीश यहांपर गुजारी, सूत्रअनुयोगद्वार और नेमिनाथचरित व्याख्यानमें वाचा, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति इनदिनो बाचतेरहे, महाराजके उपदेशसे एक-जैनधेतांबर पाठशाळा यहां खोलीगइ, जिसमें जैनश्वेतांबर श्रावकोंके लडके मजहबीइल्म हासिलकियाकरे,
[संवत् १९५३ का चौमासा शहर इंदोर,-]
बादवारीशके भोपालसे रवानाहोकर छावनी सिहोर-नरसिंहगढ-सारंगपुर-साजापुर होतेहुवे तीर्थ मकसीकी जियारतकों गये, जो उज्जेनकेपास मुल्कमालवेमें वाके है, वहांकी जियारतकिइ
और जोजो वजुहात पुरानी तवारिखकेदेखे अपनी नोटबुकमें दर्ज किये, तीर्थमकसीसे रवानाहोकर कस्बा देवासहोते शहरइंदोरकों आये. और संवत् ( १९५३) की वारीश वहांपर गुजारी, गलीमोरसलीमें नये मंदिरकेपास-मकानमे ठहरे. व्याख्यानमें सूत्रआवश्यकत्ति-और-चासुपूज्यचरित बांचना शुरुकिया, सुननेवाले कसरतसें जमाहोतेथे. प्राकृतव्याकरण-यहांपर-हिज यादकिया, सूत्र अंगचुलिका-और-बंगलिका यहां बाचे, और मानवधर्मसंहिता ग्रंथ बनाना शुरुकिया,
(संवत् १९९४ का चौमासा शहर रतलाम, )
वादवारीशके इंदोरसे रवानाहोकर दोबारा तीर्थमकसीकी जियारतकों गये, और वहां करीब (८) रौनठहरे, उसअर्सेमें मुल्कमालवेके बहुतसे जैनश्वेतांवरयात्री-वास्ते जियारतकों वहांपर आयेथे. शहर उज्जेनके जैनश्वेतांवर श्रावकोने महाराजसें बहुतअ
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सवान-उमरी. (५७) जमारुज किइकी-आपहमारे शहरमें तशरीफलावे, महाराजने उनकीअर्ज कुबुलकिइ और तीर्थमकसीसे रवानाहोकर मुल्कमालवेके नामीग्रामी शहर उज्जेनकों गये, उज्जेन पुरानाशहरहै, और यहांपर अवंतीपार्श्वनाथका तीर्थ है जियारतकिइ, मोशमशा वहांपरगुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे. सभा अछीभरतीथी, उज्जेनके श्रावकोने महाराजकी बहुतकदर और खिदमत किइ, उज्जेनसे रवानाहोकर कस्बे वडनगरकों गये, और वहां करीब (१) महिनेके कयामकिया, श्रीयुत-मोहनलालजी लक्ष्मीचंदजी-कुशलगढवाले-यहांपर मिले, और धर्मचर्चाके बारेमें बहुतसे सवालपुछे, महाराजने उनका माकुल जवाबदिया, और उनोने दोहे-कवित्त बनाकर महाराजकी इसतरह तारीफकिइ,
(दोहा.-) नामशांति गुनशांतहै-शांतिमुनि अनगार, अशुभकर्मकृतविनको-शांतिकरन दातार, चिंतामनिसम शांतिमुनि-रंगे अधिक वैराग, पंचममे परगट भये-भविजनकेरे भाग्य.
(कवित्त.) महावीरशासनके उन्नतिकरनहार-धर्मके धुरंधर ऐसे मुनिराजहै, कुमतिमद हस्तिनके कुंभस्थलफोरवेंको-पंचाननराजसमजिनकेशिरताज है ज्ञानजलदाता उलसाताभविवारिजके-अचलदृढरंगमयजिनका समाजहै मोहनमनमाने-तीनलोकमें-नछाने-ऐसेसुगुरुसयानविजयशांतिमहाराजहै, ___ वडनगरसे रवानाहोकर महाराज-शहर-रतलामकों तशरीफ लेगये, और संवत् (१९५४)की वारीश वहांपर गुजारी, जैनश्वेतावर श्रावकोकी आबादी यहांपर ज्यादहहै, व्याख्यान सभा अछी
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(५८) सवाने-उमरी. भरतीथी, और मुननेवाले लोग कसरतसे जमाहोतेथे, धर्मचर्चाके लिये कइमहाशय आतेजातेथे और माकुलजवाब सुनकर खुशहोते थे, इनदिनोंमें महाराजने-इस्तिहार--छपवाकर शहरमें इसलिये बांट दियकि-आमलोग-धर्मचर्चाका फायदा हासिल करे,
पyषणपर्वकी अखीरकेरौज जैनोमें-जो-चैत्यपरिपाटिका जकसा निकलताहै चारस्तुति-त्रिस्तुति-माननेवालोका आपसमें वादानुवाद हुवा और उसबातका फैसला रतलामराज्यसे यहहुवाकि चारस्तुति माननेवालोका जलसा पेस्तर निकले, उस वख्त बडा जलसा हुवाथा, रतलामके जैनश्वेतांबर-चारस्तुति माननेवाले श्रावकोने-महाराजकी बहुत कदर किइ, और एक-खितावरेशमी कपडेपर सुनहरी हर्कोसे लिखकर बतौर जैनपताकाके भेट दिया, उसमें लिखाथा-विद्यासागर-न्यायरत्न-महाराज-शांतिविजयजित्मसादात्-जैनधेतांबर धर्मोजयति,-इसकेशाथ एक-मा नपत्रभी-इसमजमूनका दियाकि-जैनधेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर न्यायरत्न-महाराजश्री शांतिविजयजीकी खिदमतमे-हम-रतलामका-जैनधेतांबरसंघ-यह-मानपत्र और जैनपताका भेट करते है, बराये महरबानी मंजुरकरेगे, सभी जैनश्वेतांबरधर्मावलंबीकों मालूम होकि-महाराज-शांतिविजयजी-जैनमूत्रसिद्धांतके पठित-औरषड्दर्शनके जानकारहै, जिनोने पंजाब-मारवाड-मेवाड-गुजरात राजपुताना-मालवा-वगेरा मुल्कोकी सफरकरके जैनधर्मकों तरकी दिइ, आम जैनश्वेतांबरसंघ इनकेनामसे वाकिफहै, इनके लेख कइ गुजराती-शास्त्री-जैनमासिकपत्रोमें छपेहुवे मौजूदहै, ये-मुनिमहा. राज हमारे शहर में तशरीफ लाये, और संवत् ( १९५४ ) का चौमासा यहांकिया, हमारे रतलामशहरमें करीब (७००) घर जैन तापरोके है, हमलोगोकी अछी तकदीरथीकि-महाराजका पधा
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सवाने - उमरी.
( ५९ ) रना यहां हुवा. और जैनधर्मकी निहायत तरक्की हुई, जिन जिन श्रावकों का खयाल धर्मकेबारेमें डावाडोल होगयाथा महाराजने शास्त्र सबुतदेकर धर्मपर पावंदकिये, अवहम आपकी खिदमतमें यह मानपत्र - और - जैनपताका भेट करते हैं, और परमात्मासे इबादत करते है कि - आपकी - विजय - हमेशां बनीरहे, इसमानपत्र में (८२ ) आगेवान श्रावकोकेशाथ - समस्त - जैन श्वेतांबर संघकी सही मौजूद है, यहां कहांतकलिखे, जिनको देखनाहो- सन ( १८९९ ) मार्च एप्रिलके - जैनदिवाकर - मासिकपत्र - अहमदाबाद - पुस्तक - १४- अंक ५-६ - में देखे, यहांभी उसीसे उतारा लियागया है. - महाराजने ज्योतिष्करंडक - और - आरंभसिद्धिग्रंथ इस चौमासेमें पढे, समवायांग और जीवाभिगमसूत्र बाचे, संगीतकलाका इल्म यहांभी हासिल करते रहे.
( संवत् १९५५ का चौमासा शहर मंदसोर, )
Ararian रतलामसें रवानाहोकर मुकाम जावरा गये, और asiपर पनiह रौजतक कयामकिया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देते थे, जावरेसे खानाहोकर खाचरोदहोते कस्बे बडनगरकों गये, मोशमशर्मा वहांपरगुजारी, बडनगरसे रवानाहोकर शहर मंदसोर आये एकमहिना वहां पर कयामाकिया, मंदसोरसे परतापगढ गये, और ariat aia एकमहिना ठहरे, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देते थे. और आयेगये गृहस्थोकेशाथ धर्मके बारेमे बहस हो - तीथी, परतापगढसे वापिस मंदसोर आये, और संवत् (१९५५) की - बारीश वहां परगुजारी . व्याख्यानमें विविधतीर्थकल्प-औरसमरादित्यचरित बाचा. मानवधर्मसंहिता किताब छपकर तयारहुइ और जिन जिन महाशयोने मंगवाइथी उनकों भेजीगर, इनदिनोंमें महाराजका इरादाहुबाकि जैनतीर्थगाइड किताब - बनाकर जाहिर
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(६०) सवाने-उमरी. किइजाय-ताकि-आम जैनश्वेतांबरसंघको फायदा पहुचे. मगरयह बात सब जैन तीर्थोकों वगेर देखे भाले नही होसकती, इसलिये इरादाकियाकि-मुल्कपूरवके जैनतीर्थोकी जियारतकों चले, महाराज सबमजहबोंकी पुस्तके हमेशां शाथरखते है ताकि-जिसजिस मजहबवालोंकों जवाबदेनाहो फोरन दियाजाय, दुसरेशहरोके श्रावक जब-महाराजसे-धर्मकेबारेमें सवालपुछते है-तो-उनकाजवाब ब-जरीये अखबारके ब-खूबीदेते है. इसलिये बहुतसी जैनपुस्तकेभी शायरखना पडती है, महाराजकी व्याख्यानसभामें कोइ अगर शोरगुलकरतो उसकों अपनीसभासे रुकसत करवादेते है इस बातसे कइश्रावक एतराज करते है मगर जो अकलमंदहै-वे-इस बातकी तारीफ करते हैकि-साधुहो-तो-ऐसेहो-जो गरीब और अमीरकों एकसा समझे, व्याख्यानसभामें जब भावनाअधिकारका बननचलताहै-भैरवी-कालिंगडा वगेरा रागरागनीसे व्याख्यान बांचतेहै. और कभीकभी हारमोनियम बजानेवाले शख्श सभामें बेठकर स्वरपुरते है, यहांपर कइदफे महाराजने इसतरह व्याख्यान दियाथा,
[संवत् १९५६ का-चौमासा शहर लखनउ,]
बादवारीशके शहरमंदोरसे रवाना होकर तीर्थमकसीजीकों तीसरी मरतबागये, और जियारतकिइ, तीर्थमकसीसे रवानाहोकर सारंगपुर-बियावरा-गुणा-सीपरी--जहांसी-काल्पी-कानपुर--उभावकी सफर करतेहुवे शहर लखनउ गये, और संवत् (१९५६) की-बारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशा बांधतेथे और सभा अछीभरतीथी, मुल्फ पूरवका खानपान-बोलचाल और-पुशाफ अछा और श्रावकलोग विनयवान देखेगये, निर्यावलीसूत्र और दस प्रकीर्णकशास्त्र यहांपर बांचे, ...,
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सवाने - उमरी.
( ६१ )
लखनउसे महाराजने तीर्थसमेतशिखरकी जियारतकेलिये तयारीक, रास्ते में श्रावकोकी आबादी कमहोनेसे पैदलजानेका इरादा मोकुफ रखा, और द्रव्यक्षेत्रकालभाव देखकर रैलमे सवारी करना दुरुस्त समझा, इरादे धर्मके जव जैनमुनि - मुल्क-व-मुmeat सफर करे और रास्तेमें नदी - या - दरयाव आजायतो नावमें बेठकर पारहोवे ऐसा हुकम है, अगर कोइमुनि - शौखसे- या - आरामकेलिये रैलसवारीकरे तो बेशक! पापहै, और उसकी मुमानियतभी है, क्योंकी उसका इरादा धर्मपर नही रहा, आजकल श्रावक लोग व सवव रैलके अपना वतनछोडकर हजारों कोसोपर जा से है, जहांकि - धर्मका नामनिशानभी नहीपाता और वहांकोइ जैनमुनि उनकों धर्मका रास्ता बतलानेवाले नहीमिलते, ऊसहाल
को जैनमुनि राधर्मके रैलमें सवार होकर वहांजावे और तालीमधर्म की देवे-तो- धर्मका फायदा है, जमाने हालमें कितनेक जैनमुनि जव समेतशिखर वगेरा बडेतिर्थकी जियारतकों जाते हैया जहां श्रावको की आबादी कमहो वैसी जगह - विहारकरते है, तो उनकेशाथ श्रावक-श्राविका - बेलगाडी -- नोकरचाकर शाथचलते है, मुनिलोग खुदजानते हैकि - यहकार्य - हमारे निमित्तसे होता है, अगर कहाजायकि इसमें - इरादे धर्मके भावहिंसा नही और बिना भावहिंसा के पापनही - तो इसीतरह यहबात रैलसवारीमेभी क्योंन - समझीजाय ? जोजो जैनमुनि श्रावकों की - या - नोकरचाकरोंकी
-
नामदद अकेले पैदल विहारकरते है-वे- बेशक! अछे है, मुल्क गुजरात में जहांकि गांवगांवमें जैन श्वेतांवर श्रावकोकी आबादी है, वहां पैदल विहारकरना ज्यादह मुश्किलनही, मगर तमाम हिंदुस्थानमें जहांकि श्रावकोकी आबादी नहीं है वहां जैनमुनिकों वगेर दूसरोंकी मदद - या - रेलके जानाआना मुश्किलहै, ऐसासमझकर महाराजने रैलमें, सफर करना मुनासिब समझा,
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(६२) सवाने-उमरी.
(संवत् १९५७ का चौमासा शहर मुर्शिदाबाद,-) - लखनउसे रैलमें सवारहोकर महाराम तीर्थअयोध्याकों गये, यह शहर तीर्थंकर-रिषभदेवमहाराजकी-जन्मभूमिहै, उसकी जियारत किड, और वहांकी जोजो मशहुरवातेथी अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, अयोध्यासे रत्नपुरी जो सातकोशके फासलेपरवाके है,
और तीर्थकर धर्मनाथकी जन्मभूमि है वहांजाकर उसकी जियारत किइ, और वहांकी तवारिख अपनीनोटबुकमें दर्जकिइ, रत्नपुरीसे रवानाहोकर वापिस अयोध्या आये. और अयोध्यासें बनारसकों गये, तीर्थकर सुपार्धनाथ-और-पार्धनाथकी जन्मभूमि बनारस पुराना जैनतीर्थ है, उसकी जियारतकिइ, वहांके पुराने शिलालेख
और तवारिखकीबाते अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, बनारससे तीन कोषके फासळेपर मौजा-सिंहपुरी-तीर्थकर श्रेयांसनाथकी जन्मभूमि-और-सिंहपुरीसे सातकोशके फासलेपर चंद्रावती-जो-तीर्थकर चंदापभुकी जन्मभूमि है, वहांजाकर जियारत किइ, और जो जो अजुबा वाकातदेखे अपनी नोटबुकमें दर्जकिये. बनारससे र. वानाहोकर मोगलसराय जंकशन होतेहुवे-गयालाइनसे नवादाटेअन गये. और वहांसे पंचती की जियारतकोलिये रवानाहुवे, यह पंचतीयों खुश्कीरास्तेका मुकामहै, और करीब बीशकोशके घेरेमें है, नवादेसे रवानाहोकर अवल राजगृहीकों गये, वहांपर वैभारगिरि वगेरा पांचपहाडोके मंदिरोंकी जियारत किइ, और वहाँके शिलालेखोकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ. राजगृहीसे सुबे. विहार-सुबेविहारसे कुंडलपुर-और--कुंडलपुरसें पावापुरी-जोतीर्थकर महावीरस्वामीकी निर्वाणभूमि है, कमलसरोवरमें जहां निहायत उमदा मंदिर और-तीर्थंकर महावीरस्वामीकी चरणपादुका तख्तनशीनहै. जियारतकिड, तवारिख पावापुरी और शिकार
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सवाने-उमरी.
(६३) लेखोंकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ. पावापुरीकी जियारत करके गुणशिलवनउद्यान गये, और वहांसें-वापिसनवादाटेशनकों आये, और नवादेसे रैलमे सवारहोकर लखीसराय-मधुपुर होते हुवे गिरिडीटेशनको गये, और गिरिडी टेशनसे खुश्कीरास्ते तीर्यसमेतशिखरजानेकेलिये रवानाहुवे, जोकरीब नवकोशके फासलेपरवाके है. चारकोशजानेपर वराकडगांव-जहांपर-रिजुवालुका नदीकेकनारे शाल-नामके दरुतकेनीचे-तीर्थंकर महावीरस्वामीकों केवलज्ञान पैदा हुवाथा जियारत किइ, और वहांसे रवानाहोकर रिजुवालुका नदीको पारकरतेहुवे समेतशिखर पहाडकीतराहमें मधुन्गये, जैनश्वेतांबर धर्मशालामें कयामकिया, वहांपर (१०) मंदिर बडेबडे आलिशान बनेहुवे है जियारतकिइ और तमाम शिलालेखोकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ.
दुसररोज समेतशिखर पहाडपर गये, तमाम टॉकोंकी और मंदिकी जियारतकिइ, और वहांकेशिलालेखोकी नकल अपनी नोटबुकमें दकिइ, शामको पहाड समेतशिखरसे वापिस आये. चंदरौज मधुबनमें ठहरे और वापिस उसीरास्ते गिरिडी टेशनको आये और रैलमें सवारहोकर मधुपुर-लखीसराय-होतेहुवे शहर भागलपुर गये, दुसरेरौन खुश्कीरास्ते चंपापुरीकों रवानाहुवे जो दोकोशके फासलेपरवाके है, तीर्थकर वासुपूज्यस्वामीके--पांधकल्याणिक यहांहुवे, उसकी जियारत किड, वहांके शिलालेखोकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, चंपापुरीसे वापिस भागलपुरकों आये, भागलपुरसें रैलमें सवारहोकर नलहटी जंकशनहोते शहर मुर्शिदाबादगये, और संवत् ( १९५७ ) की वारीश वहाँपर गुजारी, व्याख्यानमें मूत्रआवश्यकत्ति-और--नेमिनाथचरितबाचा एकरौन विधिवाद-चरितानुवाद-और-यथास्थितवादपर व्या
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सवाने-उमरी. ख्यानादिया, विधिवाद उसको कहते है-जो-तीर्थकरगणधरोका हुकमहो, चरितानुवाद उसको कहते है जिसमें कथा--कहानी-चरितवगेरा बयान कियागयाहो, यथास्थितवाद उसका नामहै जैसे द्वीप-समुद्र-नरक-स्वर्ग-गांव-नगर-कोट-किला वगेरा जो चीज जैसी है उसका बयानकियाहो, विधिवाद काविलमंसुर करनेके है, चरितानुवादमे-जोजो-बातें मुताविक विधिवादक है-मंजुर करना चाहिये, और जोजोबातें खिलाफहै छोडदेना चाहिये, यथास्थितवाद-काविल जाननेके है, जोशख्श जैनशास्त्रोके मतलबको पहिचाननाचाहे इनको--व-गौर समझे,
पर्युषणपर्वकी अखीरमें चैत्यपरिपाटीका जलसा अछा हुवा, और धर्मकी-तरक्की लाइकतारीफके हुइ, निशिथमत्र--और-यहकल्पसूत्र-इनदिनोमें-बाचे, कइ महाशयोके शाथ-मजहबकेबारेमेंबहेस होतीरही,
[संवत १९५८का चौमासा शहर कलकत्ता,
पोष महिनेमें मुर्शिदाबादसे रवाना होकर दोबारा समेतशिखरजीकी जियारतकों गये, मुर्शिदाबादके कितनेक श्रावक-श्राविका शाथ-आयेथे, मधुबनमे पोषवदी (१०) मीके रौज रथयात्राका जलसा कियागया, दुसरेरौज पहाडपरजाकर जियारतकिइ, चंदरौज ठहरे और फिर गिरिडी टेशनको वापिसआये, मुर्शिदाबादके श्रावक-श्राविका-अपने वतनकों गये और महाराज-लखीसराय अंकशन आये. और वहां खुश्कीरास्ते करीब (६) कोसके फासलेपर-जो-काकंदी नगरी है जियारतकों गये, तीर्थकरमुविधिनाथकी जन्मभूमि यही काकंदी नगरी है, उसकी जियारतकिइ और वहांकि तबारिख अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ. काकंदीसे रवानाहो.
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सवाने - उमरी.
( ६५ ) कर क्षत्रीयकुंडगांव गये, जो वहांसे -नव कोशके फासलेपर तीर्थकरमहावीरस्वामी की जन्मभूमि है, यहांपर एक- जैन श्वेतांबर मंदिर गांव मे दो- तलहटी में और एक पहाडपर बना हुवा है, वहांजाकर जियातकिड़ और तवारिख वहांकी अपनी नोटबुकमें दर्ज किइ, पहाइसे वापिस आतेवत - शामके चारबजे तलहटीके मंदिरपास (५०) कदमके फासलेपर एकवडा - शैर-जाता हुवा दिखलाइदिया, -मंदि - रके पूजारी - धारीलालने शेरकों देखकर मंदिरका दरवजा बंदकर लिया, जिस- डोलीम - महाराज सवारथे, डोलीवालोने डोली जमीनपर रखदिर, महाराजने पुछा ढोली क्यों रखदिइ ? - वे - खौफ की वजहसें जवाब - न-देसके, महाराजने जब इधरउधर देखा तो करीब (५०) कदमके फासलेपर एक शेर - नजर आया, मगर व दौलत - देवगुरुधर्म - और - प्रभावतीर्थ भूमिके - वो- सामने - नहिआया, और कुदताहुवा डावीतर्फकी एक-टेकरी - लाघता चलागया, पूजारी धारीलाल - जोकि -- डरगयाथा - मंदिरका दरवजा खोला, और कहने लगा शुक्र है, आज ! हमारी जान बची, यहां तो अकसर एसाही माजरा हुवाकरता है, महाराजने वहांकी जियारत कर, और शामके पांचव क्षत्रीयकुंड गांवकों वापिस आये, तीसरेरौज क्षत्रीयकुंड गांव रवानाहोकर लखीसराय टेशनकों आये, और रैलमें सवार होकर शहरपटना पहुचे, वाडेकीगली में जैन श्वेतांबर मंदिरकेपास - मकान में कयामकिया और तीर्थकी जियारत कर, शहरसे दो मील के फासलेपर - कमलद्रहपर जाकर - स्थूलभद्र महाराजके चरणोकी छत्री - और सुदर्शनशेठकी शुलीका - सिंहासन - होगयाथा वह - जगह देखी, शिलालेखोकी नकल और तवारिख पटना-अपनी नोटबुक में दर्जfer पटनेसे खानाहोकर बखतीयारपुर होते सुबेविहारकों पहुचे, मोशमसर्मा वहांपर-गुजारी, चैत महिने में तीर्थ
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(६६)
सवाने-उमरी. पावापुरीकी जियारतकों गये, और करीब देढमहिनेके वहांपर कयामकिया. पावापुरीसे रवानाहोकर भागलपुर होतेहुवे चंपापुरी गये और दुसरीमरतबे जियारतकिइ.-चंपापुरीसे भागलपुरआकर शहर कलकत्तेकों गये. और संवत् (१९५८) की-वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे, और सभा अछी भरतीथी, पhषणपर्वकी अखीरमें चैत्यपरिपाटीका जलसा उमदा हुवा, अखबार भारतमित्र और हिंदीवंगवासी-जो-कलकत्तेके ना मीग्रामी अखबारहै उसमें महाराजकी इसतरह तारीफ छपीथी, (अखबार भारतमित्र कलकत्ता, तारिख २८ सितंबरशनिवार सन १९०१ इस्वी संवत् १९५८ भाद्रपद
शुक्ल १५-) श्वेतांबर जैनोके गुरु विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजी चारमहिनेसे कलकत्तेमें है, गतमंगलवारसे पर्दूषणपर्व आरंभहुवा, जाख्यानके समय (६००) जहोरी जमाहोतेथे, जहोरीलोगोने बडीधूमसे जलसाकिया, भाद्रपदसुदी (४) मंगलवारको . सब जैनश्वेतांबर श्रावकोने मिलकर उक्तमहाराजको बडे जुलुससे दर्शन करानेकों लेगये, ऐसा जलसा कभी नहीहुवाथा, जैसा इस सालहुवा, आप बडे पंडितहै, आपके आनेसे यहां जैनोमें वडा धर्मोत्साह फैलाहै, आपकी बनाइ मानवधर्मसंहिता किताव जैनोके पढनेके काबिल है,
( अखबार हिंदीबंगवासी-कलकत्ता, तारिख १८ नवेंबर सन १९०१ इस्वी संवत् १९५८ कातिक सुदी ७ सोमवार,).
" कलकत्तेमे गुरु "यहांपर अनेक जहोरी जैनीहै, विद्यासागर-न्यायरत्नमहाराज
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( ६७ ) शांतिविजयजी इन जैनी जहोरीयोंके गुरुहै, आप चारमहिनेसे कलकत्तेमें है, यहां गुरुजीका निवास वडतल्लाष्ट्रीट (५८) नंबरवाले मकानमें हुवाहै, आपके आनेसे श्वेतांवरलोगोमे उनके धर्मका वडा उत्साह हुवा है.
इसतरह कइ अखबारोमें महाराजकी तारीफ छपीहुइ है, बडे बडे शहरोमें जहाँजहां महाराज तशरीफ लेजाते है उनका बयान अखबारोमें छपताहै,
करौज महाराजने इसबातपर व्याख्यानदियाकि-जिसजिस बातका तीर्थकर-गणधरोने धर्मशास्त्रमें हुकम फरमाया है, सबब आनपडनेसे मनाभी फरमाइ है, और जिसवातकी मनाफरमाइ है उसका हुकमभी फरमायाहै एसा जानो, मगर वो-सबब-इरादे धर्मके होनाचाहिये. जैसेकि-चौमासेकेदिनोमें जैनमुनिकों एकजगह रहना फरमाया, मगर सबब वीमारीका आनपडे तो-चौमासेमेंभी विहार करजाना हुकम है, जैनमुनिकों वनास्पति खाना-या-स्पर्श करना मनाहै, मगर जब किसी-कुवेमें-या-खड्डेमें गिरपडे तो-उस हाल में किसी दस्तकीशाखा-या-लता-वेलडीकों पकडकर बहार आजाना हुकमहै, अगर किसीमुनिकों-सांप काटजाय तो उसके जहरको रदकरनेकेलिये नींवके पत्ते चचाजानाभी हुकमहै, जैनमुनिकों क्रोधकरना-या-किसीकों सख्त जवान कहना हुकम नही, मगर जबकोइ धर्मकों हानि पहुचाताहो-या-कुतर्क करके धर्मका खंडन करताहो-उसहालतमें-उसको सख्तजवान कहनाभी हुकमहै, क्योंकि-इरादा धर्मकाहै, जैनमुनिकों भिक्षामांगकर सीकमपरवरीश करना शास्त्रहुकमहै, मगर जब खुद बीमारपडजाय तो कोइ गृहस्थ आहारपानी मकांनपर लादेवे-तोभी-लेलेना हुकमहै. क्योंकि उस
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(६८) सवाने-उमरी. वख्त अमरलाचारी है, हां! अगर विनासबब ऐसाकरेतो बेशक ! मनाहै, इश्कबाजी-चोरी-और-कुव्यसनकेलिये बिल्कुल मना है. किसीको समझो शराबपीनेकी कसमहै, और दुसरेन उसको पकडकर जोराजोरी शराब पीलादिइ, उसका इरादा नहीथा-तोउसकों कसम तोडनेका पाप नहीं, इसतरह और चीजोकेलियेभी समझना. वगेरा बहुतसा वयान कियागयाथा, यहां थोडे में लिखा है, कइ महाशय मजहबीबहेसको आतेथे और मजहबकेबारेमें बहेस करतेथे, व्यवहारसूत्र-पंचकल्पमूत्र-और दशाश्रुतस्कंधशास्त्र महाराजने यहांपर बाचे
(संवत् १९५: का-चौमासा शहर मंदसोर,) बादवारीशके-मगसीर-और-पोपतक कलकत्तेहीमें कयामकिया, और माघसुदीमे रवानाहोकर वर्द्धमान-आसनसोल-मधुपुर-और गिरिडी होतेहुवे तीर्थ समेतशिखरकों तीसरीमरतबागये, जियारत किइ, और पहाडपर दसमीटोंककी संवत् ( १९५८ ) माघसुदी (१०) मीके रौज प्रतिष्टा किइ जोकि-बसबव-विजली गिरजानेके तीवारा मरम्मत किइगइथी, चंदरौज मधुवनमें कयामकिया, और वहांसे रवानाहोकर वापिस गिरिडी टेशन आये, गिरिडीसे रैलमें सवारहोकर आसनसोल-चक्रधरपुर-रायपुर-विलासपुरहोते शहर नागपुर-आये, जो मध्यप्रदेशका सदरमुकाम और गुलजारशहरहै, पेठ-आदितवारमे कयाम-किया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशा देतेये, और सुननेवालेलोग कसरतसें जमा होतेथे, चैत वैशाख जेठतक वहां कयामकिया, अषाढवदीमें शहर-मंदसोरके श्रावकोका तार आयाकि-आप यहां बरायेमहेरवानी कदमरंजा फरमाये, और वारीशका मुकाम करे, महाराजने उनकी अर्ज कुबुलकिइ और ना. गपुरसे रवानाहोकर भुसावल-खंडवा-और इंदोर टेशनपर होते
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सवाने - उमरी.
( ६९ ) शहर रतलामगये, रतलाम के श्रावक - टेशनपर - हाजिरथे, उनोने दो - रौजकेलिये- ठहरनेकी अर्जकि, महाराज वहांपर ( २ ) रौज ठहरे, और व्याख्यान धर्मशास्त्रका वाजकिया, तीसरेरोज रतलामसे रवानाहोकर शहरमंदसौर आये, और संवत् ( १९५९ ) की वारीश वहां पर गुजारी. पेस्तर भी महाराज यहां वारीश गुजार चुके है, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे, किताब - रिसाला - मजहब इंढिये - यहांपर बनाइ. जोकि - जैन श्वेतांवर श्रावकान-मंदसोरनेवास्ते फायदे खास आमके छपवाकर जाहिर किइहै. दुसरी किताब - गुलदस्ता - जैन - और - इशाइभी यहांपर महाराजने तयारकर, संगीत कलाका इल्म इनदिनों भी हासिल करते रहे. सूर्यप्रज्ञप्ति - और - पिंडनियुक्तिशास्त्र - यहांपर महाराजने वाचे और वारीश खतम करके तीर्थ ही पार्श्वनाथकी जियारतकों गये, जो करीब ( ५ ) कोसके फासलेपरवाके है. यात्रीयोंका वहां मेला - हुवाथा, और जलसा कियागयाथा, महाराज वहांपर दोरौज ठहरे, और वीर्थकी जियारत करके वापिस - मंदसोर - आये, --
[ संवत् १९६० का - चौमामा - शहर आकोला, ]
बादवारीशके मंदसोरसे रवाना होकर निमच होतेहुवे चितो - डगढकी जियारतकों गये, पहाडपर जाकर पुराने मंदिरोंकी जिarrass, और वहांकी तवारिख अपनी नोटबुक में दर्जकर, चितोडगढ कंपिलपुरकी जियारतकेलिये रवानाहुवे, रास्ते में अ जमेर - जयपुर-बांदीकुड़-भरतपुर- अचनेरा-मथुरा-और-हाथरस टेशनपर होतेहुवे कायमगंजटेशन उतरे, और वहांसे खुश्की रास्ते कंपीलपुर - जो- तीनकोसके फासलेपर वाकेहै गये, तीर्थकर विमकनाथजी की जन्मभूमी यही शहर है, जियारत कर, और वहांके
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(७०)
सवान-उमरी. अजुवात अपनी नोटबुकमें दर्जकिये, वहांसे वापिस कायमगंज आये, और तीर्थ शौरीपुरकी जियारतकेलिये जानेकों रैलपर सवारहुवे, और सिकोहाबाद देशनपर उतरे, वहांसे शौरीपुरतीर्थ खुश्कीरास्ते करीब सातकोसके फासलेपर जमनाकनारे मौजूदहै, जोकि-जमानेहालमे बटेश्वरकेनामसे मशहूरहै, वहांजाकर तीर्थ शौरीपुरकी जियारतकिइ और उसकी तवारिख अपनीनोटबुकमें दर्ज किइ, शौरीपुरसे वापिस सिकोहाबाद आये और सिकोहाबादसे रैलमे सवारहोकर इलाहाबादगये, यहांका पुरानाकिला देखा, जो गंगा-जमनाके-संगमपर बनाहुवाहै, इलाहाबादसे रैलमे सवारहो. कर कौशांबी नगरीकी जियारतकों गये, भरवारी टेशन उतरकर कौशांबी तीर्थकेलिये रवानाहुवे रास्तेमें एक-हिरन-हिंसक लोगोसे छुडवाया, और उनको धर्मोपदेशदिया, भरवारी देशनसे कौशांबी-सातकोशके फासलेपरवाके है, और आजकल इसकों को. संबपाली बोलते है, तीर्थकर पदमप्रभुकी जन्मभूमि यहीशहरहै, आ. जकल-यहां-न-कोइजैनश्वेतांबरमंदिरहै-न-श्रावकहै, सीर्फ ! उस जगहकी कदमघोसीकरके वापिस भरवारीटेशन आये, और रैलमे सवारहोकर कानपुर-लखनउके टेशनहोते अयोध्याकों गये, और वहांकी दोबारा जियारत किइ. अयोध्यासें सरयूनदीका पुल पारकरके टेशन लकडा मंडीपर गये, और रैलमें सवार होकर बलरामपुर टेशन उतरे, बलरामपुरसे सातकोसके फासलेपर सावथ्थी नगरी जिसकों आजकल फिला-सहेटमेट-बोलतेहै गये, यहांपर आजकल कोइ जैनश्वेतांबर श्रावक नही, सीर्फ ! एक मंदिर बनाहुवा खाली पडाहै, वहांकी जियारत किइ, और तवारिख सावध्थीकी अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, सावथ्थीके रास्तेमें कइ-नयपालीलोग-मिले, और उनसे धर्मकी बातेहुइ, सावथ्थीसे बलराम
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सवाने-उमरी.
(७१) पुर होते अयोध्यागये, अयोध्यासे रवाना होकर बनारस मुगलसराय-होते गया टेशनपर उतरे, और वहांसे खुश्की रास्ते (१८) कोसके फासलेपर तीर्थ भदीलपुरकी जियारतको गये, वहांपरपहाडकी दामनमे-एक-बहुत छोटा-हटवरीया-नामकागांवहै, पेस्तर यहां भदीलपुर शहर आवादथा, तीर्थकर शीतल नाथकी जन्मभूमि यही भदीलपुरहै, आज विल्कुल विरान होगया, यहापर एकपहाड
और-उसपर एक-जैनश्वेतांबर मंदिर बनाइवा-बगेरमूर्त्तिके खाली पडाहै, वहांकी जियारत किइ, भदीलपुरमे उसी रास्ते वापिस गया टेशनकों आये, एकरोज गयाटेशनसें ( ६ ) मील दखनकों बोध गयागांव देखनेकों गये, जहांपर वोध देवका मंदिरहै उसकों देखा, यहांपर नयपाल-वर्मा-शिलोन-जापान-और-चीनके बौध यात्री वास्ते जियारतकों आते जातेहै-बौध मजहबके एकसाधु-यहांपर मिले, और उनसे जैन-और बौध मजहबके बारेमें वातहुइ बोधगयासे वापिस गया टेशन आये और रैलमें सवार होकर पटना होते मुकामा जंकशन उतरे, गंगा नदी पार होकर सेमरया घाट टेशनसे रैलमें सवार होकर शहर दरभंगा होते-सीतामढी टेशन गये, पेस्तर यह नगरी मिथिलाकेनामसे मशहूरथी. तीर्थकर मल्लिनाथ-और-नमिनाथकी जन्मभूमी यही नगरी है, क्षेत्रस्पर्शना किइ, और यहांकी तवारिख अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, सीतामढी टेशनसें वापिस उसीरास्ते मुकामा-जंकशन आये, और रैलमे सवारहोकर-आसनसोल-चक्रधरपुर-विलासपुर-रायपुर-और-नागपुरटेशन होते आकोला देशनपर उतरे, और वहांसे तीर्थ अंतरिक्षजीकी जियारतकों गये, जोकि-(२०) कोशके फासलेपर वाके है, जियारत किइ, और वहांकी तवारिख अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, अंतरिक्षजीसे रवाना
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सवाने-उमरी. होकर बालापुर गये. और गर्मीयोंके दिनोमें वहांपर कयामकिया, आषाढसुदी पंचमीकेरौज बालापुरसे रवानाहोकर आकोला आये, और संवत् (१९६०) की वारीश वहांपर गुजारी. व्याख्यान धमशास्त्रका हमेशां करतेथे,-किताव जैनसंस्कारविधि-यहां-बनाइ.
औरवास्ते छपनेको भेजी, अंगविद्या-और-प्रवचनसारोद्धार यहां बाचे, संगीतकलाका इल्म यहांभी हासिल करतेरहे, इनदिनो जैन एशोशिएशन-औफ-इंडिया-ओफिस बंबइसे महाराजके नामपर एक-खत-आया, उसमे लिखाथाकि-मुल्क-अमरिकासे एक विद्वान् लिखतहै-“ Jainsm ” आर्टिकल करीब दोहजार शब्दोमें
और-" Life of Tirthanker Mahavir " आर्टिकल करीब एक हजार शब्दोमें लिखभेजे-तो-हम-अपनी बनाइहुइ किताबमेंउसकों जैनमजहबके बयानमें दर्ज करेगे, इसलिये आप दोंनो आर्टिकल आठ रौजमें लिखभेजे तो बडी महरबानी होगी, महाराजने दोनो-आर्टिकल आठरौजमें तयारकरके जैन-एशोशिएशन ओफ-इंडिया ओफिस बंबइकों यहांसे भेजे.
[संवत् १९६१ का-चौमासा-शहर-जबलपुर,]
बादवरीशके आकोलेसे रवाना होकर बुरानपुर गये, और करीब दो-महिनेके-वहांपर कयाम किया, वहांसे खंडवाला लाइन होकर तीर्थ मांडव गढकी जियारतके लिये महुकी-छावनी गये,
और वहांसे खुश्की रास्ते (१८) कोसके फासलेपर मुकाम-मांडवगढ जाकर जियारतकिइ और तवारिख वहांकी अपनी नोटबुकमें दर्जकीइ मांडवगढसें वापिस आकर महुकी छावनीसे रैलमें सवार होकर रतलाम-गोधरा-लाइनके रास्ते अहमदाबाद टेसन होतेहुवे आबुरोड टेसन उतरे, आबु पहाडपर जाकर वहांकी जियारत किइ,
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सवाने - उमरी,
( ७३ ) और फिर आरोsसे रैलमें सवार होकर रोहिडा टेशनपर उतरे, वहांसे खुश्की रास्ते तीर्थ वंभणवाड जाकर जियारत कि, और वापिस रोहिडाटेशन आकर नाणा टेशन उतरे, वहांकी जियारत fer, नाणाटेशनसे सवार होकर रानीटेशन गये, और रानकपुर बगेरा पंचतीर्थी की जियारत कि, और वहांकी तवारिख अपनी नोटबुक में दर्जक, फिर रानीटेशन वापिस आये और रैलमें सवार होकर - अजमेर - लाइनसे चितोडगढ टेशन होते उदयपुर गये, और तीर्थकेशरीयाजीकी जियारतके लिये रवाना हुवे, जो (१८) कोसके फासलेपर वाकेहै, वहांकी जियारत कि, और शिलालेखों की नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिर, तीर्थ केशरीयाजी से रवाना होकर चेतमुदी उठके रोज वापिस उदयपुर आये और बहार बगीचे में कयाम किया, उदयपुरके श्रावकों कों मालूमहुवाकिमहाराज यहां तशरीफ लायेंह, सबलोग वहां आये. मूर्त्ति पूजापर व्याखान दिया, और करीब आठरौज बगीचेंमें ठेहरे, खाना होतेवख्त कवि सूरजमलजीने - गुरुभक्तिपर कइदोहे-और-शेयर बनाकर सुनाये, -
( दोहा . ) चैतसुदी छके दिवस - आये मुनिवर आप, दर्शन दे कृतार्थ किये गये जन्म के पाप, वैशाखबद एकम सुदिन - करके आप विचार, विहार करनेकी मुनिजी-लिनी चितमे धार, श्रावकों की विनती करजो आप कुबुल, हिरदेमेसे आप मुनिवर-जाजो मत अबभुल, मुनिमहाराज शांतिविजयजी - आपगुनोंकी खान, चोमासो किजो अठे-दर्शन दिजो आन.
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( ७४ )
सवाने - उमरी.
सुरजमल्लकी विनयभक्ति-मुनिवर वारंवार, हाथ जोडकर मानजो-करजो आप उपकार, ( शेयर, - )
विहार करनेकी मुनिजी - आपकी सुनके खबर. बहोत दिल मसमसाता - और होता है फिकर, कब सुनेगे ज्ञानचर्चा- आपके मुखसें जिकर, श्रावकों की विनति है - चरन में मस्तकको घर. प्रयाण किजो उदयपुरमें- दयाकी करके नजर, वो दिन उदय कब आयगा दर्शन दियोगे आनकर, ३
H
उदयपुर से चितोडगढ - अजमेर - फुलेरा होते मेरटारोड टेशन उतरे, तीर्थ - फलोदी - पार्श्वनाथकी जियारत कि, और वहांकी तवारिख अपनी नोटबुक में दर्ज कि, मेरटारोडसे रैलमें सवार होकर फुलेरा आये, और रेवाडी लाइनमें देहलीटेशन होते मेरटटेशन गये, वहां से खुश्की रास्ते (१८) कोशके फासलेपर जो तीर्थ हस्तिनापुरहैजियारतको गये, तीर्थकर शांतिनाथ - कुंथुनाथ - और - अरनाथ महाराजकी जन्मभूमि यही शहर है, जियारत किड़ और वहांकी तवारिख अपनी नोटबुक में दर्ज किइ, हस्तिनापुर से वापिस मेरट आये और गाजियाबाद होते सिकंदराबाद गये. आठरौज वहांपर कयाम किया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे, सिकंदरबादसे रेलमें सवार होकर अलीगढ - आगरा - गवालीयर लशकर - जहांसी भोपाल - खंडवा होते - बुरानपुर आये, यहां पर करीब एकमहिनेके कयाम किया. किताव जैन संस्कारविधि छपकर यहां आगर, और जिन जिन महाशयोने मंगवाइथी भेजीगर, इसमें जन्मसंस्कार से लेकर सोलह संस्कारोंका वयान दर्ज है, इनदिनोंमें जबलपुरके
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सवाने-उमरी. ( ७५ ) श्रावकोका खत आयाकि-आप-बराये महरबानी हमारे शहरमें तशरीफ लावे, और हमलोगोंको तालीम धर्मकी देवे. महाराजने उनकी अर्ज मंजुर किड और बुरान पुरसे रवाना होकर जेठदुसरे वदी तीनके रोज ब-सवारीरैल जबलपुर पहुचे, और संवत् (१९६१ ) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे, कड मजहबके लोग-वास्ते मजहबी बहेसकों आते जातेथे, और धर्मचर्चाका फायदा हासिल करतेथे.-उपमितिभव प्रपंच-और-मेघमहोदधि-ग्रंथ-यहांपर वाचे,
( संवत् १९६२ का-चौमासा-शहर धुलिया,)
बादवाशिके जवलपुरमें रवानाहोकर-कटनी-विलासपुरचक्रधरपुर-और-आसनसोल होते वर्द्धमान टेशनको गये, कल्पसूत्रमें-जो-अस्थिक ग्रामका जिक्रदर्ज है-जहांकि-तीर्थकर महावीरस्वामीने-अवल चौमासा कियाथा-चो यही वर्द्धमान-(अस्थिकग्राम ) हैं, आजकल यहां कोई जैनश्वेतांवर मंदिर नही, सिर्फ ! जियारतका मुकामहै, वहांकी क्षेत्रस्पर्शनाकरके आसनसोल आये,
और बंगाल-नागपुर रैलमें--भुसावल जंकशनहोते पाचोरा टेशन उतरे, मोशमशर्मा वहां गुजारी. व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशांकरतेथे. पाचोरेसे रवानाहोकर बालापुर गये. और करीब तीन महिनके वहां ठहरे, व्याख्यानमें आवश्यकमूत्रवृत्ति-और-समरादित्यचरित बाचा, आषाढमहिनमे बालापुरसे रवानाहोकर शहरधुलिया आये और संवत् (१९६२) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान हमेशा करतेथे, किताव अजायब-हालात-जैन-और
आर्यसमाज, यहां बनाइ. अनेकांतजयपताका-योगशास्त्र-अध्यात्मविंदु-योगविंदु-और-योगदृष्टिसमुच्चयग्रंथ यहां वाचे, बादवारीशके मोशमशर्माभी वहां गुजारी, इनदिनोमें इरादा कियाकि-एक
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सवाने-उमरी. मरतबा-शिखरजीकी-जियारत फिर करे, मामुलीकारोबार तो ऐसेही होतेरहेगे, जोकुछ काम धर्मका करलिया वही वहेत्तरहोगा,
[संवत् १९६३ का-चौमासा-शहर पुना, ]
संवत् ( १९६३ ) की-चैतसुदी एकमकेरौज शहर धुलियेसें रवानाहोकर जब पाचोराटेशन पहुचे-तो-वहांके श्रावकोने दोरोजकोलिये-ठहरालिये, पाचोरेसे भुसावलहोते जब बुरानपुर पहुचे टेशनपर श्रावकलोग आयेहुवेथे शहरमें लेगये, और पनराह रौजकेलिये वहां कयामकरवाया, वहांसे रवानाहोकर खंडवा-इटारसी होते जबलपुर-गये-तो वहांके श्रावकोने दोरौजकेलिये ठहराये, जबलपुरसे रवानाहोकर इलाहाबाद गये. और इलाहाबादसे परतापगढलाइनमें फैजाबाद होते तीर्थ रत्नपुरीकी जियारतकों गये, वहांकी जियारतकरके वापिस फैजाबाद आये, और फैजाबादसें रैलमें सवारहोकर बनारस पहुचे, टेशनपर श्रावकलोग आयेहुवेथे शहरमें लेगये, वहांपर करीब (२०) रौजके कयामकिया, वैशाख सुदी तीजकेरौज-यशोविजयजी-जैनश्वेतांबर-पाठशालाके विद्याथियोंका इम्तिहानलिया, एकरौज-तीर्थ-सिंहपुरी-और चंद्रावतीकी जियारत किइ, एक रोज सारनाथके पास-जो-पौधस्तूप है देखने गये, असलमें यह बौधलोगोका देहगोप (यानी) पूजाकी जगहहै, बनारससे रवानाहोकर शहर-पटना गये, वहांकी जियारत किइ, वहांसे मुबेविहार-और-मुवेविहारसे-पावापुरी- कुंडलपुर-राजगृही
और-गुणशिलबनउद्यान-वगेरा पंचतीर्थीकी जियारतकिइ, वहांसे नवादाटेशन जाकर रैलमे सवार हुवे और मधुपुर होते गिरिडी टेशन उतरे, गिरिडीसे शिखरजीकी जियारतकों गये, और चोथी मरतबा जियारतकिइ, शिखरजीसें रवानाहोकर गिरिडी आये,
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सवान-उमरी. ( ७७ ) और रैलमें सवारहोकर-मधुपुर-पटना-मोगलसराय जंकशन होते मिर्जापुर गये, वहांके जैनमंदिरोंकी जियारत किइ, दुसरेरौज मि.
र्जापुरसे रवानाहोकर-इलाहाबाद--कटनी-विलासपुर--नागपुरके टेशनोपर होते पारसटेशन उतरे, और बालापुर-जो-तीनकोसके फासलेपर खुश्कीराम्तेवाके है गये, करीब पनरां रोज वहां ठहरे, आषाढमुदीमें बालापुरसे रवानाहोकर-भुसावल-पाचोरा-मनमाड और-कल्यानकेरास्ते शहर-पुना-गये, और संवत् (१९६३) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे, और सुननेवाले कसरतसें जमाहोतेथे, आसोजके महिनेमें जब-प्लेगवीमारी जोरशोरसे चलने लगी,-और लोग इधरउधर बहारगांव चलेगये, महाराजने मुताबिक जैनशास्त्रके देखाकि-अगर किसी किसमकी-आफत-आजावे-तो--चौमासेमेंभी-मुनि-उसजगहकों छोडदेवे, कल्पसूत्रकी मिशालहै कि
___ ( अनुष्टुप-वृत्तम् ) 5 अशिवे भोजनाप्राप्तौ-राजरोग पराभवे,
चातुर्मासिक मध्येपि-विहाँ कल्पतेन्यतः .
बीमारीका सबबहो-भिक्षा-न-मिलतीहो-या-राज्यकी तर्फसे कुछ पराभवहो-तो-वारीशके दिनोभी-मूनि-एक जगहसे दुसरी जगह चलेजाय, महाराज शहर पुनासे रवाना होकर-लुनीगांवगये, जो पांचकोसके फासलेपर वाकेहै, करीब एक महिनेके वहां कयाम किया, और जब बीमारी प्लेग-कमहुइ-शहर पुनामें वापिस आये. मूरिमंत्रकल्प-वर्द्धमान विद्याकल्प-भक्तामरकल्प-औरशक्रस्तवकल्प वगेरा शास्त्र इनदिनोमें बाचे, और मोशमशर्मा शहर
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( ७८ ) सवाने-उमरी. पुनम गुजारी, माघवदीमें महाराजकी चाची-शहर भावनगरसेवास्ते दर्शनोको शहर पुना आये, कुछदिन महाराजके मुखसे शास्त्र मुना, और-तारीफ करने लगेकि- हमारे--खानदानमें--सापुत्र पैदाहुवा जिसने परमेश्वरके नामपर अपनी जिंदगी जायाकिइ, पुत्रहो-तो-औसाहो, आजतक जैसे-तुम-अपने धर्मपर पावंदरहे आईदेभी रहना, एक मरतबा अपने वतनकोंभी चलना. और सब कुटुंबके लोगोकों तालीम धर्मकी देना, तुम थोडे अर्सेसे-जो-रैलमें बेठतेहो-इससे तुमको-कोइ-नहीमानेगे जैसा खयाल मतकरना, तुमकों-तो-सबमानेगें, महाराजने कहा ! नहीं ! ! जैसा खयाल नहीहै, बल्कि ! मुजे मुल्क गुजरातके कइ श्रावकोंने अर्ज गुजारीश किइहैकि-आप-इधरके मुल्कमें पधारे, मगर मुल्क गुजरातमें-मुनि महाराज अकसर ज्यादह सफर करतेहै, और इधरके मुल्कम-कमआते जातेहै इसलिये इधरके मुल्कमें सफर करना ज्यादह फायदे मंदहै,
और जब ज्ञानिदृष्ट भावहोगा उधरभी आना बन सकेगा, अठारां रोज महाराजकी चाची-शहर पुनेमें रहे और फिर अपने बतनकों गये,
[ संवत् १९६४ का चौमासा शहर आकोला. ]
माघसुदी (१०) मीके रौज महाराज पुनेसे रवाना होकरकल्यान-मनमाड-होतेहुवे शहर धुलियाकों गये, और करीब देढमहिना वहांपर कयाम किया, किताव त्रिस्तुति परामर्श छपकर यहांपर आगइ और जिन जिन महाशयोने मगवाइथी, भेजीगइ, इस अर्सेमें शहर-मुलतान-मुल्क पंजाबके जैनश्वेतांबर श्रावकोंने बजरीये-खतके अर्जकिइकि आपहमारे शहरमें कदमरंजा फरमावे और हमकों तालीम धर्मकी देवे,महाराजने उनकी अर्जकुबुल किइ, और संवत्(१९६४)के चैतसुदी एकमके रौज धुलियासे खानाहोकर ब-मुकाम-पाचोरा गये. और वहांपर करीब एकमहिना कयामकिया, पाचोरेसे वैशाखमुदी
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सवाने-उमरी. ( ७९ ) तीजकेरौज खानाहोकर-देहलीके रास्ते-अंबाला-लुधिहानाजालंधर-अमृतसर-लाहोर-हातेहुवे-गुजरानवाल-टेशनगये टेशनसे करीब आधमीलके फासलेपर-जो-महाराजके गुरुजीकी चरनपादुका-और-छत्री वनीहुइहै-वहांपर जाकर चरनपादुकाके सामने मरिमंत्र-और-वर्द्धमानविद्या पढी. और सामको टेशनपर वापिसआये, गुजरानवालके श्रावकलोगोने मुनाकि-महाराज-शांतिविजयजीसाहब यहांपरतशरीफ लाये है, उनकी मुलाकातकों जानाचाहिये, कितनेक श्रावकलोग शामकेलबजे टेशनपर वास्ते मुलाकातको आय, और कहनेलगे आप शहरमें चलिये, महाराजने कहा-में-इसवरहन-सफर हुं-और--शहर पुलतान जानेकेलिये इधर आयाहूं. इसलिये फिरकभी देखाजायगा, शहरगुजरानवाल टेशनसें रैलमें सवारहोकर-लाहोर-राविंड-और-खानावल जंकशन होते दुसरेरौज शहर-सुलतान-पहुचे, टेशनपर श्रावकलोग वास्ते पेशवाइकों आयेथे शहरमें लेगय. असलमें मुलतानके श्रावकोने महाराजको इसलिये बुलायेथेकि-चतांवर-दिगंवर श्रावकोंकी आपसमें धर्मचर्चाकेवाग्में हमेशा वहेसहुवा करतीथी. महाराजने वहांजाकर जाहिरकियाकि-जिकिसी श्रावकको धर्मच के बामें-जो-कुछ पु टनाहो- छपवाकर पुट, जबाव भी उसका छपवाकर दियाजायगा, ताकि-काइकिसमकी रदबदल-न-होसके, महाराजने करीब दोमहिनके शहरमुलतानमें कयामाकिया, किसी श्रावकने कोड सवाल धर्मके वाग्में छपवाकर नही पुरे, व्याख्यान धर्मशालका हमेशां करतेथे, इनदिनोंमें पनरांनजीर लिखकर महाराजने मुलतानके जैन श्वेतांवर मंदिर की दिवारपर आइनमें जडवाकर लगवादिइ, और श्वेतांवर श्रावकोसे यह बात कहीकि-अगर कोइ तुम लोगोंस जैनवतांवर मजहबके बाग्मे कुछ पुल-नो इसको
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(८०)
सवाने-उमरी. देखकर जवाबदियाकरो, मुलतानके जैनश्वेतांबर श्रावकोने महाराजसे-वास्ते चौमासेके-बहुत आजीजीकिइ, मगर महाराजने मुल्क दखनके श्रावकोंकी अर्ज-पेस्तर-कुबुल करलिइथी-इसलिये-आपाहवदी तेरसकेरौज शहर मुलतानसे रवानाहोकर-लाहोर-आये,
और खयालकियाकि-इतनी दुर आयेहै-तो-पेशावरभी होतेचले जैनतीर्थ गाइडकेलिये-जो-कोइ पुराने लेख मिलेगें अपनी नोटबुकमें दर्जभी करतेचलेगे, गरजकि-महाराज-लाहोरसे पेशावरगये, और वहांसे लोटकर लालामुसा जंकशन होते तीर्थ-भैराकी-जियारतकों गये, वहांकी तवारिख अपनी नोटबुकमें लिखलिइ, बीतभयपतननगर इसी भेराका नामहै, वहांसे लाहोरआये, और लाहोरसे-देहली-आगरा-भुसावल-मनमाड--कल्यान होते पुना टेशन उतरे, और वहांसे खुश्कीरास्ते-जुन्नेर-जानेकेलिये रवानाहुवे रास्ते वारीश खूब होनेकी वजहसें नदी-नाले-चढगयेथे मुकाम मजकुरकों-न-जासके, वापिस लोटकर खिडकी टेंशनसे रैलमें सवारहुवे, और कल्पान-भुसावलहोते-आकोला गये, और संवत् ( १९६४ ) की वारीश वहांपर गुजारी. व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे, पयूषणपर्व-उमदा तौरसे खतमहुवे, इनदिनोंमें ललितविस्तरा-द्वात्रिंशका सिद्धसेनदिवाकर-अष्टक हरिभद्रमरि-अंगुलसितरी-कालसप्तति--और-युगप्रधानयंत्र वगेरा ग्रंथ बांचे, आसोजमहिनेकी शुरुआतमें जब प्लेगबीमारी जोरशौरसे चलनेलगी और श्रावकलोग बहारगांव चलेगये, महाराज-कस्बे बालापुरकों तशरीफ लेगये, और आधीवारीश वहांपर खतमकिइ, इनदिनोमेंकवि-सुरजमलजी-शहर-उदयपुर मुल्कमेवाडसें महाराजके दर्शनोको बालापुर आये, और गुरुभक्तिपर-कवित्त-दोहे वगेरा बनाकर सभामें सुनाये.
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सवाने-उमरी. (८१)
3 ( कवित्त,-] विद्यासागर और न्यायके रत्नआप, मुनिश्रीशांतिविजय तपधारीहै, मायासेविरक्त प्रभुनामके सयुक्त, दिनकरसो प्रकाशसदातिमिरनाशकारीहै जिनमतको दिपावे मूत्रसारकोवतावे,दयाकेनिधान मुनिज्ञानकभंडारीहै, जैसेहैमुनिराजभविजनकेसारेकाज, जिनकेआचारीजिनकोवंदनाहमारीहै
ॐ ( दोहा, ) भारतवर्षके वीचमें,-धन्यहै ये अनगार, सुरजमल्लभी वंदना,-करता वारंवार,
[ गुरुभक्ति पर पद,-]
(रागिनी-भैरवी, ) मुनिजी ! जिनमतमें परवीन, न्यायरत्न अरू विद्यासागर, उपमा जगने दीन, मुनिजी, १ पंचमहावत धारक प्रभुके,-चरन सरनमें लीन, मुनिजी, २ शांतिविजयजी साधु संवेगी,-मोहरिपु कियाछीन, मुनिजी ३ परमकिया उपकार महामुनि,-तीनतत्वमें लीन, मुनिजी, ४ बारबारहै वंदना मेरी,-जानतहो गुन तीन, मुनिजी, ५
इनदिनाम द्वादशारनयचक्र-धर्मबिंदु--ज्ञानबिंदु-और--पाचनाथचरित ग्रंथ महाराजने वांचे, और वारीश खतम किइ.-.. [संवत् १९६५ का-चौमासा-शहर दखन-हैदराबाद.
बादवारीशके पोषवदी दुजकेरौज बालापुरसे ओशियानगरीकी जियारतकों जानेका इरादाकिया और पारसटेशनसे रैलमेंसवार होकर-भुसावल-खंडवा-अजमेर-फुलेरा-और-मेरटारोड होतेहुवे जोधपुरटेशनपर उतरे, मुकाम जोधपुरसे (१८) कोसके फासले
११
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( ८२ )
सवाने - उमरी.
पर - जो — ओशिया नगरीवाकेहै गये, जियारत कर, और वहांके शिलालेखोकी नकल अपनी नोटबुक में दर्जकिs, जमाने पेस्तरमें यह - उपकेशनगरीके नामसे मशहूरथी, ओशियानगर से खानाहो - कर वापिस जोधपुर आये, और रैलमें सवार होकर - पाली - मारवाडजंकशन होते आबुरोडटेशन उतरे, वहांसे खुश्कीरास्ते तीर्थकुंभारीयाजीकी - जियारतकों गये, जो ( १२ ) कोशके फासलेपर
है, पेस्तर इसका नाम आरासणनगरथा, वहांके आलीशानमंदिरोंकी जियारafts, और शिलालेखोकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकर, तीर्थ - कुमारियासें रवानाहोकर आबुरोडटेशन आये, और रैलमेसवार होकर - अजमेर- खंडवा - भुसावल होते माघसुदी दुजकेरौज बालापुरगये, श्रावकोंने अर्जकिड़ कि - आप- हमकों मूत्र अनुयोगद्वार - सुनावे वडीमहरबानी होगी, महाराजने अनुयोगद्वार सूत्र - व्याख्यानमें सुनाया, इनदिनोंमें Description of Parasnath Hills, - " बयान - पारसनाथ - पहाड किताब " - बनाइ, जो छपकर जाहिरहो चुकी है, और हिंदके बडेबडे शहरोमे श्रावकोके पास पहुचचुकी है, दर - वयान - संवत् ( १९६५ ) - की - सालका ब - जरीये नजुमके इसीमें जाहिर कियाथा, नजुम सचाहै मगर शर्त यह है कि - उसको जाननेवाला चतरहोनाचाहिये, नजुमशास्त्रकों अच्छीतौर से देखागयातो इम्तिहान के मैदान में सचापाया, तीर्थकर गणधरोकी - यह - कमाल महेरवानी समझोकि-नजुमकों - वे - शास्त्रोंमें बयानफरमा गये, खयालकरोकि-नजुम - अगरसचा-न- होतातो नजुमी लोग - जमीनपर बेठकर आस्मानके सितारोका हाल बयान कैसेकरसकते ? आफताब - और - चांदकों - कब - और - किसरौज ग्रह
लगेगा कैसे बतला सकते, ? तीर्थकर - गणधर - और - पूवाचार्य आलादर्जेके नजुमीहुवे, चंद्रप्रज्ञप्ति - सूर्यप्रज्ञप्ति - भद्रबाहु संहिता - ज्योति -
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सवाने-उमरी.
( ८३ )
करंडक - आरंभसिद्धि - जन्मांभोधि - यंत्रराज --- त्रैलोक्यप्रकाश-मा नसागरीपद्धति - मेघमाला - गणिविज्जापयन्ना -- मेघमहोदधि-- भुवन - प्रदीप - और -नारचंद्र – ये - जैनमजहबके नजुमग्रंथ है, जैमनिसूत्रपारासरसूत्र - अगस्तिमूत्र - वाराहसंहिता - लंपाक - नीलकंठ - टोडरानंद - बृहदजातक - पारिजातरत्नाकर - सूर्यसिद्धांत — कमलाकर - और आर्यभटसिद्धांत - वगेरा दूसरेमजहबके नजुमग्रंथ है, जैनमजहबमें द्वादशारचक्रमय-कालचक्र - मानाजाताहै, और वैदिकमजहब स त्य- द्वापर - त्रैना और कलियुग यहचारयुग मानेजाते है, चांदसूर्य ग्रह - किसीका भलाबुरा नहीकरते, जोकुछ करनेवाले है- अपने अपने पूर्वसंचित कर्म है, चांदसूर्य वगेराग्रह - उसके सूचक और योतकहे, ऐसाजानना.
ज्येष्टवदी में बालापुरसे रवाना होकर महाराज-भुसावल -मनमाड- औरंगाबाद होते शहर जालना गये, और तीनहफते वहांपर कयाम किया. जालनेसे रवाना होकर पर्वणी - निझामाबाद - होत हैदराबाद गये और संवत् ( १९६५ ) की -वारीश वहांपर गुजारी व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे और सभा अछी भरतीयी, जलसा - पर्युषण पर्वका - उमदा तौरसे हुवा, - आसोज सुदी तीजके रोज मुसानदी की तुगयानी बडी जोरसे हुइ, - ( यानी ) - मुसानदीमें पानीका तोफान हुवा, - मगर बदौलत देवगुरू धर्मके चार aara तर्फ किसी किसकी आफत नही गुजरी, जहांकि महाराज - ठहरे हुवे थे, - इनदिनोंमें हिंदके बहुतसे शहरोसे महाराजके नाम कइ - तार और चीठीयां इस मजमूनकी - आइकि- आपकी खेरीयतका हाल इरशाल फरमावे, महाराजने उनका जवाब लिखा कि-में- बदौलत देवगुरुधर्मके खुशहुं, बादवारीशके - हैदराबादसे पोष बदी नवमीके रौज महाराज तीर्थ - कुल्पाकजीकी जियारतकों गये,
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( ८४ ) सवाने-उमरी. जो करीव ( ५० ) मीलके फासलेपर आलेर टेशनसें जायाजाताहै
और दो-कोश-खुश्की रास्ते जानेसे मिलताहै, पोषवदी दशमीके रौज वहां यात्रीयोंका मेला भराथा और रथयात्राका जलसा हुवाथा, तीर्थ-कुल्पाकका मंदिर बहुत पुराना होगयाथा महाराजके उपदेशसे उसकी मरम्मत होना शुरुहुइ, पांचरोज वहांपर ठहरे, और वापिस हैदराबाद आये,... (१)-महाराजको लेखलिखनेका-और-ग्रंथ वनानेका अजहद शौखहै, वरवख्त महाराजकी कलम चलती रहती है, और लिखने पढनमें मशगुल रहतेहै. जैन-सप्ताहिक-पाक्षिक-मासिक वगेरा अखबारोमे महाराज धर्मके बारेमें लेखदेते रहतेहै, दिगर मजहब वाले जब जैन मजहबपर दलील करतेहै-तो-उसका फौरन ! जवाब देतेहै, महाराजके तमाम लेख-जोकि-जैन अखबारोमें-छपचुकेहैअगर-उनको इकठेकरके छपायेजाय-तो-एकबडा ग्रंथ बनजाय, (२) महाराज आपने हमरा सब मजहबोकी पुस्तके हमेशां. रख तेहै-ताकि-जिसमजहबवालोंकों जवाब देनाहो-सबुतकशाथ दिदियाजावे, (३) महाराजकी व्याख्यान सभामें शोर गुल करनाया-बातचित करना सख्त मुमानियतहै. और यहबात ठीकभीहै कि-शोर गुलहोनेसे-सुननेवालोकों शास्त्र सुननेमें खलल पडताहै व्याख्यान सभा-सादर-नादर-कोइ किसी किसमका शौर गुलकरे-तो-उसकों रुकसत करवा देतहै, इससे कइ श्रावक. नाराज. रहतेहै, और कहतेहै विद्वान् अछेहै मगर मिजाजके बडे सख्तहै, मगर अकलमंद. लोग तारीफ करतेहै कि-साधुहो-तो-सेहो, जो गरीब--और--अमीरकों एकसा समझे, ( ४ ) जैसे. समवसरणमें तीर्थकर महाराज मालकोश-और-भीमपलासी-रागरागनीमें-तालीम धर्मकी देतेथे-और-इंद्रदेवते-बाजोंसे स्वरपुरतेथे, ब-मुजब-अपनी
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सवाने-उमरी.
(८५) ताकातके महाराज व्याख्यान सभामें-जब-भावना-अधिकारका वर्नन चलताहै-भैरवी कालिंगडा वगेरा रागरागनीसे व्याख्यान वांचते है और कभीकभी हारमोनियम बजानेवाले शख्श व्याख्यान सभामें बेठकर स्वर पुरतेहै, (५) महाराज जहां जहां तशरीफ लेजातेहै, वहांपर श्रावकलोग मय बैंडबाजा-वगेरा-जुलुसके पेशवाइ करके शहरमें लेजातेहै, कहीं मौका-साभी-होजाताहै कि-बाजे बगेराका इंतजाम नहींहो-वहां-श्रावक लोग जुलुसके शाथ पेशवाइ नही करसकते, महाराजकों इनवातोंसें-न-रंजहै न-खुशीहै, महाराज-न-किसीकों फरमातेहै कि-तुम मेरेलिये पैसाकरौ, जिसकी जैसी मरजीहो-वैसा-करतेहै, (६) महाराजके लेखमें जैसाज्ञानका असरहै, वैसा व्याख्यानमेंभी भारीअसर है, मुननेवाले तारीफ करते है कि-ज्ञानकी-खूबझडी बरसातेहै, देवद्रव्यके-तीर्थोके-और-ज्ञानपुस्तकोंके बारेमे लेख लिखकर श्रावकोंकों होशियार करना इन्हीका साहसहै, साफसाफ बातकहनमें किसीकी परवाह नहीं करते, महाराजका एतकात धर्मपर पुख्ताहै, (७) महाराज मुल्कोंकी सफरकरना ज्यादह पसंद करतेहै, गुजरात-मारवाड-पंजाब-राजपुताना--बंगाल-मालवा-खानदेश-वराड-और-मुल्क दखनमें सफर करचुके है, मुनिजनोंकी फर्ज है कि-मुल्कोंकी सफर करके धर्मको तरक्की देना,ब-कल्म-भगुभाइ-फतेचंद-कारभारी,
एडीटर-जैन,-चौबे,
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( ८६ )
सवाने-उमरी. * [ गुरुभक्तिपर-लावनी, .
( सवाने-उमरी )
विद्यासागर न्यायरत्न श्री शांतिविजयजी-बडेअणगार, संयमलिनो आपने छोडयो कुटुंबसब धनघरवार, भावनगर गुजरातके माही-शहरबडा भारी उत्तम, धन्यहै धरणी वहांकी जहां मुनिजी लियो है जनम, धन्य पिता मानकचंदजीको-वो चलते जिनमतको धरम, थे सतवादी जिनके पुत्र कहलाये अनुपम, धन्यवाद रलियातकवरकों-माता बुद्धिकी थी अगम, संस्कारसे आप आजन्मे उदयभये निजपूरवकरम, महाजन विशाओशवालथे-जूठवचन नही एक लगार, संयमलीनो आपने छोडयों-कुटुंबसबधनघरबार, विद्या, १ श्रीरी आत्माराममहाराज-निनोनेलिये आपको है पहिचान, दीक्षालिनी साल उन्नीस और छत्तीसपमान, वैशाखशुक्ल दसमी गुरुवारे-हुवेसंयमी चतुरसुजान, मलेरकोट पांचालमुल्कमें जानते है सब निखिलजहान, धर्मशास्त्रको पढे मुनिश्वर-व्याकरणकोशकों भारीज्ञान, सर्वशास्त्रकों आपने पृथक् पृथक् लिने सबजान, पंजाब पूरव मारवाड-गुजरात मालवाको दियोतार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधनघरबार, विद्या, २ दखनमेंगये आप मुनिजी-जिनमत खूबदिपायाहै, देशदेशमें आपका सुजश बहोतसा छायाहै, मानवधर्मसंहिता एकपुस्तक-बहोतखूब फरमायाहै,
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सवाने-उमरी.
( ८७ )
प्रश्नपांचको खंडनकरके मजहब रिसाला बनायाहै, तीनथुइका परामर्श एक-तीनथुइपें रचायाहै, विधि जैनसंस्कार बनाकर तनपरयश उपजायाहै, गृहस्थापनमें नाम हठीसिंह-जन्मलग्नमें विदितविचार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधन घरवार, विद्या, ३, उन्नीसवर्षकी उमरआपकी-जबसे यह संयम धार्यो, धन्यमुनिजी आपने कामक्रोध रिपुकों मार्यो, सकल कामना तजी जग्तकी-लोभपाप पावकनार्यो, धन्यहो स्वामीआपने निजआतम कारजसाया, विद्यासागर न्यायरत्नमुनि-धर्मधुरंधर पदधार्यो, देशदेश और नगरगांवमें मुजश आपने विस्तार्यो, सुरजमल्लकी हाथजोडकर-मुनिजीवंदना वारंवार, सयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधन घरवार, विद्या, ४
( इति गुरुभक्तिपर लावनी.)
Gram
[ लावनी-अष्टपदी.-] [ जगतमें नवपदजयकारी-सेवतां पापटले भारी, ]
(इसचालपर-) मुनिश्री शांतिविजयजी आप-कर्मके मेटदिये संताप, मुखसंसारसे मुखमोडयो-कुटुंबसें सब नातो तोडयो, ध्यान निज जिनप्रभुसे जोडयो-लोभ और मोहकाम छोडयो, (दोहा.) पंचमहाव्रतधारके-करतेहो उपकार,
छकायाके जीववचाते-मुनिजी वारंवार, भुलकर नहीकरते संताप-कर्मके मेटदिये सब पाप, मुनिश्री, १
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( ८८ )
सवाने - उमरी.
कामना छोडी सारीको - तरसना मारी भारीको, - धन्य ऐसे आचारीको - नमन है दृढव्रतधारीको, (दोहा) पुदगल परिचय छोडियो - भव्यजीवनके काज, विचरतो सबजरतमें स्वामी - धर्मध्यानके जहाज, अनुकंपा रही दिलमें व्याप-कर्मके मेटदिये संताप, मुनिश्री, २ दोष कर्मनको टार्यो - गरव तनमनसे सब गार्यो, धर्म जिनवरों विसतार्यो - अन्यमत चितमें नही धार्यो, (दोहा) मिथ्यामतकों खंडन किनो - जिनमतमंडन कीन, श्रीजिनके चरनसर में रहते है लयलीन, दुष्टजन गये आपसे कांप-कर्मके मेटदिये संताप, मुनिश्री, ३ इंद्रियां पांचोकों मारी- आपने तजे कनक नारी, धर्म ग्रंथ रचे भारी - वचन सब माने संसारी, (दोहा) कहांतलक बर्ननकरुं मुनिजी परमदयाल,
सुरजमल्लकी हाथजोडकर - वंदना ल्यो प्रतिपाल, प्रभुका नित उठकरते जाप - कर्मके मेटदिये संताप, मुनिश्री, ४
( इति - अष्टपदी लावनी समाप्त. )
-
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( १ )
गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद
( गहूली पहली )
( जगतगुरु जिनवर जयकारी,) इस चालपर,
श्रोतारे सुनो गुरुगुणना रागी-जानोरे तुम भाग्यदशा जागी, श्रोतारे सुनो गुणना रागी, जंबुमाहि भरतभलूं मुनिये-देशगुर्जर राजनगर गणिये, शोभारे तेह शहरतणी मुनिये-श्रोतारे, शोभे जिनमंदिर जयकारी-के-शत उपर अठ निरधारी, नमेरे जहां नितनित नरनारी-श्रोतारे, करमदल कापवा बलवंता-साधु जिनशासनमें रमता, एतोरे पांचो इंद्रियने दमता-श्रोतारे, आव्या गुरु देशविदेश फिरी-भूमी राजनगरनी पवित्रकरी, श्रोतारे मन शंसय दूर हरी-श्रोतारे, संवत् ओगणीस चालीस विषे-गुरु गिरुवा एकविस शिष्ये, रही राजनगरमें कर्म पीसे-श्रोतारे, तृष्णा तरुणीथी मन तांणी-विरतिरमणी करी पटराणी, जेह उभयलोकमां गुणखाणी-श्रोतारे, विवेकने मंत्रीपद ताजा-संवेगकुवर किया युवराजा, संवर रहे हाजर दरवाजा-श्रोतारे, आर्जवपटहस्ती महाभारी-विनयरूप घोडा सिणधारी, मुनि आतमराज करे भारी-श्रोतारे, रथ संयमशिलतणा भरिया-मुभट शमदमथी अलंकरीया, मुनि समतारसना दरिया-श्रोतारे, के समकितमहेल मनोहारी-संतोषसिंहासन गुणकारी,
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( २ ) गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद. बेठारे जहां मुनिमुद्रा धारी-श्रोतारे, चामर जहा धर्मशुकल करता-किरतिजशछत्र जहां फिरता, कर्यारे जेणे मोहरिपु डरता-श्रोतारे, अलिकद्रव्यराज कर्यु अलगुं-भलुरे भावराजमां मन वलगुं, दुरितवन शिध्र जेथी सलगुं, आतमरुप लक्ष्मी रुडी लेवा-सदा करे शांतिविजय सेवा, मीळेरे जेथी मुक्तितणा मेवा,
( गहूली दूसरी, ) (भवी तुमे मुणजोरे-भगवतीसूत्रनी वाणी, ) इस चालपर भवीतुम मुणजोरे-गुरुमुखमधुरी वांणी, दिलमां धरजोरे-समतारसगुणखाणी, पंजाबदेशमां जन्मलिया गुरु-बालपणे व्रत लीधा, व्याकरणालंकार भणीने-दुर्मत दुरे किधा, भवीतुम. १ नामसमानगुणे शोभंता-मुमतिगुप्तिना धारी, आतमनिजपद ध्यानमा लिना-भिना जिनगुणक्यारी, भवीतुम. २ आगम अनुसारी किरियामां-अप्रमत गुरुराया, तृष्णातरुणीथी मन तांणी-संयम तान लगाया, भवीतुम.३ गांमनगरपुर देसविदेसे-विचरंता व्रतधारी, बहुजनने प्रतिबोध दइने-दुरमति दुर निवारी, भवीतुम. ४ शंसयशत्रु दुर निवारी-भयथी निर्भय कीधा, खटमततत्व स्वरुप बतावी-लोचन अमने दीधा, भवीतुम. ५ कुमतवादलां दुर निवारी-कीधो हम सुपसाय, जलहलदिवडा जिनवाणीना-कटाया गुरुराय, भवीतुम. ६ ए उपकार तुमारो कहो गुरु-विसार्यो किम जाय,
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गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद. (३) स्मर्णकरी उपकारीतणां सहु-गुणगातां दुख जाय, भवीतुम. ७ ज्ञानवघे ज्ञानीगुणगातां-ज्ञानी गुणथी भरिया, शांतिविजयकहे गुरुगुणदरिया-कम तराये तरिया, भवीतुम. ८
( गहली तीसरी.)
(इसमें महाराजश्री आत्मारामजीका-जीवनचरित-दर्ज है,-) (साभलजोरे मुनि-संयमरागी, उपशमश्रेणी चढीयारे,)
ए देशी, आजनगरमें सुगुरु पधार्या-जिनआगमना दरियारे, शानतरंगे लहेरो लेता-ध्यानपवनथी भरियारे, आजनगरमें, १ आजकालमां जे जिनआगम-दृष्टिपथमा आवेरे, गहनगहन तेहना जे अर्थो-प्रकटकरीने बतावरे, आजनगरमें, २ शतिनही पण भक्तितणे वश-गुणगावा उलसावुरे, कर्णामृत गुरु चरित मुणावी-आनंद अधिक बढावुरे, आज० ३ दक्षिणदिशि जंबूद्वीपमाही-येही भरतमझाररे, उत्तरदिशि पंजाबदेस जहां-लहेरा गांव मनोहाररे. आज०४ क्षत्रीयवंश गणेशचंदघर-जन्मलिया सुखधामरे, रुपदेवी कुक्षी सुक्तिमां-मुक्ताफल उपमानरे, आज०५ लघुवयमां पण लक्षणयी बहु-दीपंता गुरुरायारे, संगतथी मिली डुंढकजनने-मुंढकपंथ धरायारे, आज०६ संवत ओगणीसे दसमांही-उज्वल कार्तिक मासेरे, पंचमीने दिवसे लिये दीक्षा-जीवणराम गुरुपासेरे, आज० ७ ज्ञानभण्या वली देस फिर्या बहु-जुनां शास्त्र विलोकीरे,
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( ४ ) गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद, शंसयपडिया गुरुने पुछे-प्रतिमा केम उवेखीरे, आज०८ उत्तर न मिला जब गुरुजीने-ज्ञानकला घट जागीरे, मुमतासखी घट आन वसी जब-हुंढपंथ दिया त्यागीरे, आ० ९ धर्मशिरोमणि देसमनोहर-गूर्जरभूमि रसालीरे, जहां आवी सुविहितगुरुपासे-मनशंका सहु टालीरे, आ० १० परमकर्यो उपकार तुमे बहु-श्रीगुरु आतमरायारे, जयवंता वर्तो आभरते-दिनदिन तेज सवायारे, आ० ११ दुषमकालसमे गुरुजी तुमे-वचनदीवडा दीधारे, शांतिविजय कहे जेथी हमारा-विषमकाम पण सिधारे आ० १२
आ०१
(गट्टली चतुर्थी.) ( इसमेंभी उक्तमहाराजका जीवनचरित-शेष है.) आजनगरमें सुगुरु पधार्या-रत्नत्रयीना धारीरे, ज्ञान अपूरवदान दइने-जडता दूर निवारीरे, संवत ओगणीसे बत्तीसे-राजनगर मोझाररे, संयमलिया सुविहितगुरुपासे-सोलह शिष्य परिवाररे, आ० २ चरणकरण गुणधार अनुपम-श्रीगुरु आतमरामरे, जिनशासन शिंगार महामुनि-तत्वरमणनां धामरे, आ० ३ नयगम भंग प्रमाण करीने-जीवादिकनुं स्वरुपरे, ध्रुव उत्पात नाशथी गुरुने-जाण्यु निखिल अनुपरे, आ०४ जाण्या द्रव्यगुणपर्याय-धर्माधर्म आकाशरे, पुदगलकाल अने वली चेतन-नित्यानित्य प्रकाशरे, आ०५ परम कर्यो उपकार तुमे गुरु-दुर्मत दुर नसायारे, जयजयकार थयो जिनशासन-आनंद अधिक सवायारे, आ०६
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गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद.
( ५ )
आ०७
जो न होत आ वखत तुमारा-वचन दीवडा रुडारे, तो दुषम अंधारी राते-लेत अमे मत कुडारे, विद्यानी वधती करवामां-जेहना विविध विचाररे, ये गुरुना उपकार कहो किम-भूले आ संसाररे, देस बहु विचरो गुरुराया-क्रोडकरो शुभ कामरे, . अंतरघटमां शांतिविजय-पण राखेछे दृढहामरे,
आ०८
आ०९
[ गहली-पांचवी, ]
( भवीतुमे अष्टमीतिथि सेवोरे-इसचालपर.)
रहोगुरु राजनगर चोमासुरे-गुणनिधि गुण तुमारा गास्युं-रहोगुरु, तुमे रागथी नही रंगायारे-नही द्वेषरिपुथी बंधायारे, महामोहयी नाही रंगाया-रहोगुरु. धनमाल अने राजधानीर-महासंकट आकर जानीरे, तुमे छोडी दुनिया दिवानी-रहोगुरु. पांच इंद्री सुभटयी सुरारे-आलसविकथाथी दुरारे, चार चौर किया चकचुरा-रहोगुरु. शानदोरीथी मनकपि बांध्युरे-तीर तत्व रमणतामां साध्युरे, जेथी समाकित अदभूत लाव्यु-रहोगुरु. गुरु विद्यावेलडीये विटायारे-जेनी कल्पतरुसम कायारे, एतो समता जलथी सिंचाया-रहोगुरु, तुमे शास्त्रसुधारस पिधोरे-महामोहरिपु वश किधोरे, तुमे अनुभव पालो पिधो-रहोगुरु. तुमे ज्ञानरतनमंडाररे-करवा हमपर उपकाररे,
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( ६ ) गुरुभक्तिपर - गहूली - पद-और-छंद.
याजो नोधाराना आधार - रहो गुरु. तुम आणा सदा शिर धरस्युंरे-तपनियमविशेषे करस्युंरे, कहे शांतिविजय अनुसरस्युं - रहो गुरु.
( गुरुभक्तिपर - पद - झीझोंटीकी ठुमरी, )
विद्यासागर - न्यायरत्नश्री - शांतिविजय महाराज मुनि है, वि, मिथ्यामतज्वर दूर करनकों - बानी अमृतरसमधुर ध्वनि है, वि, १ भविजनके हितकारक तारक- तुम कीर्त्ति विख्यात सुनिहै वि, २ दशपुरनगरमध्य चौमासो - भाग्य भलो और शुभकरनी है, वि, ३ नरनारी मिल चरनकमलयुग - सेवो ये गुरु ज्ञानगुनी है, वि, ४ सोभाचंदवंदित प्रमुदितचित - मेरे तो अब आप धनी है, वि, ५
( तीर्थंकर महावीरस्वामी के जन्महोनेपर - ) ( सिद्धार्थराजाकेघर खुशीकी निशानी, )
[ हरिगीत छंद. ]
श्रीवर्द्धमान जिनेंद्र जन्में - हर्षवाढों अतिमही, सिद्धार्थराजाके भुवनमें-न्यात सब भेली भइ, परिवार के सब पुरुषनारी - मुदितमन तहां आइयां, सिद्धार्थराजा स्वतः उनकों - थाल भरभर लाइयां, सब न्यात मिल भोजन करे - आनंदभर धन ते घडी, बहु कुलवधुमिल धवलमंगल - गीतगान करे खडी, शुभ नालियरकी गिरी केला- दाख नारंगी भली,
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१,
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( ७ )
गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद. अंगूर जामन जामफल-दाडम अलूचा आमली, लोकाट आम अनार आडु-सेव सरदा फालसा, केमर कसेरु नासपाती-बीह कमरस कलरसा, नींबु खजूर अंजीर खिन्नी-सुरस पौंहा आमला, चकतर सरीफा वौर आदिक-हरितमेंवा मन रला, बादाम पिस्ते दाख खारक-वेल चारोली मली, अखरोट खुरमा खोपरा-चिलगोजिया मुंगीफली, इत्यादि बहुविध खुश्कमेवा-अवसुनो भोजन सही, अतिमिष्ट मोतीचूर लाडु-मगद मोदक मूंगही, मोदकमनोहर सिंहकेशरी-सरस नुक्ती पाकके, तिलके सकरके केल मोदक-आम्ररस अरु दाखके, बर्फी जलेबी मूत्रफेणी-शकरपारा इमरती, पेडा गिंदोडा लालजामन-कलाकंद भला अति खजला मुहाल खजूर मठडी-बालूसाही रेवडी, लौजात मोहनभोग सीरा-ल्हापसी मीठी बडी, पूरी कचौरी दालबाटी-चेंढवी खस्ता लुची, मांडे परोठे दालचावल-खीरपूर्वा मनरुची, चीले पकोडे गुलगुले-माखन मलीदा चूरमा, मीठी कढी अरु चर्चरी-इत्यादि भोजन सब जमा, पापड चणेकीदाल भुंजी-सेंव खटरस पापरी, बहुविध चवीणा दहीं ताजी-नमक जीरासें भरी, परवाल चौले मुहजने-सांगरवगेराकी फली, मटरा करेला बाकली-कचरी कचारेकी कली, खीरा करोंदा आल कोला-खेलरा ककडी तुरी, मिरची हरी मेंथी खरी-भिंडी वगेरा बहुहरी,
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(८) गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद. नींबूके रसयुत बहुपक्षस्थ-बड़े नानादालके, चौले चनेकी मुंगकी-पीठीके नानाचालके, कर्पूर अगर इलायची-इत्यादि मिश्रितजल सरस, .. मिश्रीमें मिश्रितकेवडा-अरु दुग्ध उपजे मनहरस, तंबोल पानइलायची-बादाममिश्रित छालिया, केशर जवत्री जायफल-कपूर लवंग कथा लिया, धर वर्क सोनेमें लपेटे-हाथ सबकेमें दिया, चंपा चमेली जुही मेंहदी-केवडा नीका लिया, गैंदा गुलाब सिंगार मरवा-मदनसर शुभ मोगरा, नानाप्रकार सुगंध ले-सन्मान बहुजनका करा, सेले दुपट्टे रेशमी-पघडी कलाबतूनकी, जरके बनाये वस्त्र बहु-और-कोर साची उनकी, सब नारियोंकों जरी साडी-कांचली अरु औढना, बहुमूल्य वस्त्रदिये-किया सत्कार आदर बहुघना, सिद्धार्थनृप महावीरस्वामीके-पिता जग यश लिया, शांतिविजय कहे विवुध पुरजन-सबनकों राजी किया, १२,
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[-जिनाय नमः-]
[जैन-तीर्थ-गाइड,
( उर्दू,) (जैन-जियारत-गाह.)
[इबादत,] (जिनगुण-स्तुति-सवैया-अष्टकौनपदाकार
दुमलछंद.) करुनाकर दिनदयालप्रभु-तुमरे पदपंकजका सरना, सरनागतराखनहारविभु-गुनसिंधु अपारकहा बरना, वरनागरइंद्रकरेमहिमा-मुनिध्यायभवांबुधिको तरना, तरना भवसागर चाहतहुं-हमरायहकाज तुमे करना, __[बीचबयान-तारीफ-मुनिमहाराजोंकी, ] जिनके धरध्यान सुजानभये-सुखदेखत लोचनको मनकों, जिनके सुनबैन सुचैनबधे-परमानकिये प्रभुता जिनकों, जिनके पग लाग सुभागभये-बलीरुपसुपुष्ट करे तनकों, तिनसाधु-यति-मुनिकोंप्रणमुं-गुनगायलहु धिखणाधनकों,
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( २ )
इबादत.
चाहत जीवसभी जगजीवन - देहसमान कछु नहीप्यारो, संयमवंत मुनीश्वरकों उपसर्गपडे तन नासन हारो, त्युं चितवें हम आत्मराम - अखंड अबाधत ज्ञान हमारो, देह अचेतन सो हम तो नही - सत्यचिदानंदरूप हमारो. ( रहम करना जीवोंपर, )
करना जिनशासन मूलकही - सबहि गुन आय मिले टुरके, मिल संघ बनी शिवराहचले-मगमांहि घने पुरहै सुरके, जिनकेतक शहरमें पुरमें - शिवजे पहुचे - न-चले मुरके, सुरते पुर फेरल शिवकों - इसभातसु बैन सुने गुरुके, ( दोहा . )
धर्म करत संसार सुख-धर्म करत निर्वान, धर्म पंथ साधन विना-नर तिरियंच समान,
(शुरुआत - किताब. )
तीर्थों मेंफिरने से आदमी के इरादे पाकहोते है. और अशुभ कमी निर्जराहोती है, आदमीका चौला पाकर जो शख्श तीर्थोंकी 'जियारतकों नही जाते है - वे - धर्मकेबडे हिस्से से अबतक खारिज है ऐसा कहना कोsहर्जनही. बहुतरौजसें हमाराइरादाथाकि- जैन श्वेतांबर तीर्थों को किताव ऐसीतयारकरे जिसकेजरीये आमजैन श्वेतांबर फिरकेकों फायदा पहुचे. दुनिया में जहारीलोग जवाहिरातकों बेचते है और सोनहार - गेहने - जेवरको - कोइ शालदुशा लेकों और कोइ
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हिदायत-उल-आम. (३) खासेमलमलकों-कोइवादामपीस्ते-औरकोइ इतरफुलेलकोंबेचरहेहै. हम सीर्फ बत्तीसहकॊके मसालोंसें अपनाकामचलातेहै, शिवायवत्तीसहकॊके हमारेपास दूसराकुछनही. गोया ! बत्तीसहर्फ हमारा एकमेगजीनहै, अगर तुम मुल्कोंकी सफर और जैन श्वेतांवरतीर्थोकी जियारतकरनाचाहतेहो-तो-एकदफे इसकितावको पढलो, और वन पटेनो शाथरखलो.
[हिदायत-उल-आम.] सफरकरना दोतरहसेंहोसकताहै, एकतिजारतकेलिये दूसरातीmकीजियारतकेलिये, जोशख्श दुनियाकेधंदोसे छुटकर तीर्थोकीसफरकों जाताहै उसकी हजारहजारतारीफकरो, औरतुमभी तीर्थोकी सफरजानेकीकोशिशकरो, जिससें तुमारी जींदगीपाकहो. जब सफरकोंजाओ इतनीबातें वहांकी जरुर नोट करलिया करो, उसमुल्कमें कौनसाशहर मशहूरहै. ? अमलदारी किसकीहै ? इल्म कैसाहै ? मशहूरचीनें कौनकौनसीहै ? आवहवा वहांकीकैसी और आदमीयोंका दिल धर्मपर कितनारजुहै ? कोइपुरानाशिलालेख दिखपडे जरुरउसकीनकल करलो, नदी-तलाव-बागवगीचे-पुरानेदेवालयधर्मशाला-कोटकिला-बाजार और रोजगारकीतरक्कीकैसीहै, ? पतेवार उसका बयानलिखलो,-ये-सबबातें तुमकों सफरकरनेसें बखूबी मालूमहोसकेगी, कइमुल्कोंकी ताहसीरगर्म है, और कइयोंकी शर्द, कइमुल्कोंमें मेवेके गंमलगेहै, कइयोंमें नामनिशानभी नहीं. गांवकलोग शहरका रहना-और-शहरकेलोग गांवकारहना-नापसंद करेंगे-पहाडीलोग पहाडमें और जंगली जंगलमें खुशहै, कौनसाशहरवडाहै और कौनसाछोटाहै ? वहांके वाशिंदे कैसेहै, ? इनबातोंको असलीतोरसे जभी जानसकोगे जबतुम खुदसफरकों निकलोगे,
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( ४ ) हिदायत-उल-आम.
(दोहा.) सेतसेत सबएकसे-जहां कपूर कपास. ऐसे देश कुदेशमें-कबहु-न-क्जेि वास, १, कोकिल बायस एकसम-पंडित मूरख एक, इंद्रायन दाडिम विषय-जहां-न-नेक विवेक. २, बासेये ऐसे देश नहि-कनक वृष्टि जो होय, रहिये तो दुख पाइये-प्राण दिाजेये खोय, ३,
कइमुल्क ऐसेहै जहां बेशुमार पहाड और नदीयां है औरकइ ऐसेहै जहां पानीकेविदून लोगहमेशांतंगहै, कइमुल्कोंकेलोग अपनी
औरतोंको पर्दानसीनरखते है, औरकइ सरेबाजार शाथलेकर फिरतेहै, जोशख्श जिसमुल्कमरहता हो उसको उसीमुल्कका खाज अछामालूमदेगा, चाहे कोई कैसाही उमदाखाना और पुशाकसामने लावे. मगर जोशख्श जिसमुल्ककाहै उसको अपनेही मुल्कका खानपान और पुशाकउमदा मालूमदेगा.-कइमुल्कोंमें मुन्नाजवाहिरातकी खाने मौजूदहै कइयोमे-ये-चीजे-ख्वावमेंभी नहीदिखपडती. इसीसेकहाजाताहै विनासफर मुल्कोंकीकिये कुछभी मालूम नहीहो शकता. किसी होशियार शेयरवनानेवालोंने लिखाहै-" सफर कुंजी दौलतका है,-" ___दुनिया में पैदाहोकर जितनावनपडे धर्मकरो, औरइसको अपनाअसली दोस्त समझो ख्वाबमेंभी इसको मतभूलो, आदमीका चौला बारबार नहीमिलता, जब तुमारे मकानपर खुशीके नकारे बजेगें सबलोग हाजिररहेगें, औरजव रंज-और दिलगिरी नियामत होगी, कोइपासतक-न-आयगा, इसीसे कहाजाताहै दुनिया मता
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हिदायत-उल-आम.
लवकी गरजीहै, धनदौलत एकरोज छोडजानाहै जितनाधर्मकरोगे तुमारेशाथचलेगा, धर्मात्मा-रहमदिल-और खुशमिजाज आदमी हजारोमें एकमिलेगा. थोडीमुसाफरीकेलियेभी कितनाबंदोबस्तकरतेहो. वडीमुसाफरीका अलवंदोबस्त नहीं किया इसकी क्यावजहहै ? बदौलतधर्मकी यहांचैनपाया. औरआइंदेभी इसीकी बदौलतपाओगे. दौलत बहुतमिली-औरमिलेगी लाखहांरुपये आयेगये लेकिन ! खजानेमें कुछ-न-रहा, इसकासौच मतकरो, जितनेरुपये तुमारेधर्ममें खर्चकियेगये उसीकोंउमदासमझो, अपनेघरकाभेद औरदिलकाइरादा किसीकेसामने बयानमतकरो, आजकल दुनिया में जूठ-और-फरेब ज्यादह चलपडा है,
हिंदुस्थानमें इसवन्त अमलदारी अंग्रेजसरकारकी-और इसमें गुलजार रजवाडेकइहै. कइबहुतवडे औरकइ छोटेछोटेभी है, हैद्राबाद दखन-बडोदा-लशकर गवालियर-इंदोर-महीशूर-काश्मिर-कोलापुर-जोधपुर-विकानेर-जयपुर-उदयपुर--भोपाल-जामनगर-भरतपुर-भावनगर-पटियाला-झींद-नाभा--कपूरथला-वहावलपुर-फरीदकोट-शीरमौर-मलेरकोट-अलवर-रामपुर--जुनागढ वगेरा वगेरा, तुम कौनकौन मुल्ककी सफरकरना चाहतेहो ? रैल सवारीसे जाओगे-या-जहाजकेजरीये ? ब-जरीये रैलके जाना है तो-रास्तेमें कहांकहां रैलबदलेगी इसकीतलाश करलो, अगरअंग्रेजी इल्मजानतेहो-तो-टाइमटेबल किताब साथ रखलो, कौन कौनसी जगह जैनश्वेतांवरतीर्थ है-और-इसजमानेमें उनके क्याक्या नाम मशहूर है ? खानपानकी चीजें वहां मिलतीहै-या-नही. ? इनबातोंकी माहितीमिलालो, रास्तेका हाल मालूम-न-होनेपरकइतीर्थोकी जियारत रहनातीहै और घर आकर निहायतरंज उठानापडताहैकि -हमको फलाफलां तीर्थोकी जियारत-न हुइ, अगरइसकितावकों
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(६) हिदायत-उल-आम. शाथरखकर हरवख्तदेखतेरहोगे तो हम उमेदकरते है कोइमुकामात तीर्थोंकाबाकी-न-रहेगा.
जहांतकवने सफरमें ज्यादहअसबाब शाथ मतरखो. ज्यादहअसबाब शाथरखनेसें रैलमें चढतीउतरतीवख्त निहायततकलीफ होगी. इसलिये जरुरीचीजेंही शाथमेरखो. रास्तेमें ऐसेगांवभी मिलेगे जहां खानपानकी चीज बिलकुल-न-मीलसकेगी, अगरमिलेगी तोभी तबीयतसे मुखालिफ ! इसलिये रसोइ बनानेके हलकेहलके बर्तनभी शाथरखलो, भारी बर्तनोका बोझा कहांकहांउठाये फिरोगे? थाली-लोटा-गिलास-कटोरी-तवाह-कुछी-चमचा-चिमटा-कटोरदान-और-घीकेलिये सकडे मुंहका डिब्बा शाथलो ! ताकि-रास्तेमें -धी-गिरनेकी दिक्कत-नहो, हरजगहउमदा-धी-नहीमिलसकता, अगरपानखानेकी आदतहै-तो-पानदानभी शाथलेलो ! मुल्कपूरवके लोग पान जियादह खायाकरतेहै, गुजरातमे इसकारवाज कमहै, मगरजिनकों जिसबातकी आदतहै-कब-छोडसकतेहै, एकलालटेन -गोल-जरुरशाथरखलो-जो-बेलगाडीकीसफरमें-और-मकानमें रातकोजलानेकेलिये कामदेवे. ___ कागज-कल्म-दवात-कार्ड-लिफाफे-चीठीपत्रीकेलिये हरवख्तशाथरखो.-न-मालूम किसमौकेपरकाम-आवे, चक्कु-कतरनीऔर-एकताला इसलिये शाथरखोकि-जब-कहींठहरनापडे-तो-बहारजानेके वख्त मकानमें असबाब धरकर लगादियाजाय, पानी खंचनेकों डोरी खूब लंबी-और-मजबूत हलकेबजनकी पासरखो, बाजेबाजेकुवों में पानी बहुतनीचेरहताहै, पानीछाननेकेलिये छलनाभी शाथरखनाजरुरीहै, जोजोलोग जलछानकर नहीपीते उनकों तरहतरहकी बीमारी पैदाहोतीहै. जलमे बारीक जीवोकी हिंसाकाभी इससे बचावहोगा, रसोइमेभी जल छानकर लगानाचाहिये.
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हिदायत-उल-आम.
सफरमें आटा-दाल-चावल - निमक- मीरच - चीनीवगेराभरनेके लिये कुछ थेलियां भी शाथरखलो ! बाजेवरूत कामदेगी, रास्ते में मसाला कुटना साफकरना मुश्किलहोगा, इसलिये कुट-छानकर तयारकरके पासरखलो. मौकेपर वडाकामदेगा. मुसाफरीमे कचापका खानाभी खाना पडता है, इसलिये कुछचूरन और दस्तावर दवाइये सायलेलो, सर्दहवामें स्नान करनेसे सही होने का भी खौफरहता है,. इसलिये कुछ चाय जायफल - जवत्री - लौंग - सोंठ - पीपल-बदामदालचीनी - बगेराचीजें पासरखो, जिससेसदी रफाहोकर तबीयत दुरुस्त हो सकेगी. मुइडोराभी बाजेबख्त कपडेंसीडनेकों साथलेलो. कमसेकम चारपांचजोडेकपडों के जरुरपासरखना चाहिये, क्योंकि-शिवाडेशहरों के कपडा धुलवानेका मौका नही मिल सकेगा, मैलेकपडेबालोंकी इज्जत नही होती. तुमने सुनाभी होगा कि - "एकनूर आदमी हजारनूर कपडा " - शतरंज - गालिचे - या - दरीवगेराचीजें मुताबिकसीत केजरूर शाथलेनाचाहिये. जबकहीं ठहरने का मौकाहो - तो - उसको जमीनपरवीछाकर उसके उपर असवावरखाजाय और चलो जब उसमें विस्तरबांधलियाजाय, ताकि - विस्तरमैला - न - हो. विस्तरबांधनेकीरसीभी भूलना नही चाहिये, इसकेविन सबकामरुक जायगा. दोतीन जोडेमृतीमौजो कभी जरुरशाथरखलो, याते पहाड चढते उतरते पहन लियेजाय. जिससे पांवजलेनही, और कंकरपथ्थभी पांचों चुभेनही, नंगे पांव चलने से तलवों में छालेपड जाते है, और मजमे गम पहुचती है, दूसरेरौज मारतकलीफ केकहोगे हमसें यात्रा - न - होगी, इसलिये अवलसे होशियार रहना चाहिये.
( ७ )
हरमर्दकों - दो-या- तीन घोती और दो- दुपटेपाक रखनाचाहिये जो देवदर्शन - या - पूजन केवख्त कामटे, औरतकेलियेभी दो- लेहंगे साफरखनाजरूरी है, पूजन केवख्त पहननेकों कामदेगें, और
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(6)
हिदायत-उल-आम.
तके लिये जब रितुधर्म - अयाम आवे-तो- तीनरौज अलगरहे, दर्शनपूजन-न-करे, चौथेरौज पाकहोकर दूरसेंदर्शनकरे. अगर ठह रनेकेलिये फुरसतहो - तो - सातवेरोज पूजनभी होसकेगी पूजनके लिये छोटीछोटी रकाबियां - और - जापकरनेको मालाभीशाथरखो, केशर - कपूर - धूप - चावल - वर्क - - चांदीसौनेके और वढीयाइतरभी देवपूजनके लिये शाथ लेलो. अगरतुम किताव पढना जानते होतो- स्तोत्रपाठ - या - स्तवनावली वगेरा - या - जैन श्वेतांबर तीर्थगाइड- शाथमें- लेलो. तीर्थों में जाकर गप्पकरनेकानाम जियारतनही है. तीर्थों में ऐसे स्तोत्र औरस्तवनपढना चाहिये जिससे दिलपर देवगुरु धर्मकेलिये पदवढे, खेलतमाशेकी किताब - या - शतरंज - गंजीफा वगेराशाथरखना को जरुरतनहीं, तमाम उमर खेलतमासों में गुजरी, तीर्थ में जाकर देवदर्शन में और पूजनमें मशगुलर हो. खैलकोंबंदकरो, और तीर्थभ्रमिमेवेठकर ध्यानकरो. - अगर- ज्ञानचौसर खेलनाजानतेहोतो- बेशक! खैलो, क्योंकि उसमें कोइवात पापकर्म केवढाने की नही, बल्कि ! धर्मपाबंदी कीबात है, जितने दिन तीर्थयात्रामें लगे- सामायिक - प्रतिक्रमण हमेशां करतेरहो. अगरउक्तकार्य-न-वनशके, तो - नमस्कार मंत्र की एकदो - माला- जरूरफेरो, - गप्पकरना ठीकनही, कइवसों में जियारतकों चले और फिर उसमें भी वहीहालरखोगे तुमारीजियारत फिजहुलहोगी, देखिये ! पेस्तरके श्रावक पैदलचल कर - जियारतकरते थे, रास्ते में ब्रह्मचर्य पाळतेथे, दिनमें एकही फे खानाखातेथे. सचित्तचीजें नहीं खाते थे, - औरजमीनपरसोते थे, आज ERE रैलसवारीके इतनाभी बनजायतो गनीमत है,
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कुछदो अन्नी - चोअन्नी - और - पैसेवगेरा भीशाथ रखलो, जो तीर्थयात्रामें- अंधे - लुळे-लंगडे-और-रोटीयोके मोहताजोकों खैरात केलिये कामदेगा, तीर्थंकरदेवभी वार्षिकदान अनुकंपा से देते है, अनु
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हिदायत-उल-आम.
कंपादान तीर्थकरदेवोन किसीशास्त्रमें मनानहीफरमाया, जोलोगफरमाते है अनुकंपादानदेना ठीकनही उनकीभूलहै. दुरवीको देखकर जिसके दिल में रहमनहीआइ उसकोधर्मीकौनकहसकताहै. ? यात्रामें हरवख्त एक कडा-या-अंगुठीहाथमें-जरुरपहनलो. गेर मुल्कमें कभी अकेलेरहजानेके वख्त-या-चौरीहोजानेपर इसकों वेचनेसे कामचलेगा, वरना ! ऐसीहालतमें बडीतकलीफ उठानापडेगी, किसकिसकेपास मांगनेजाओगे. आजकल रुपये पैसे उद्धारदेना बहुतसेंलोग परहेजकरते है,-जियारत जानातोजहांतक वनपडे कुटुंबकों और रिस्तेदारोंकोंभी शाथलेनाचाहिये. अगर उतनीताकात-न-होतो अपनीऔरत-और-आपदोनोजाना मुनासिव है. अगर उतनीभी ताकान-न-होतो-अकेलेही चलेजानाठीकहै, मगर ऐसानहीकरना कि-आजसेंकल-और-कलसेंपरसो इसतरह मुस्तीम दिनगुजरतें जाय, कइलोग इसखयालमेंभी रहतेहैकि-हम-पेस्तर दोलतमंद थे और अब गरीबहोगये,-अगर विनानोकरचाकरके अकेले चलेजाय तो-हमारीइजत-न-रहेगी, तो-यह एक आलादर्जेकी भूलहै, इज्जत केलिये धर्मको खोनावहेत्तरनही. अकेलेही चलेजाना, मगरइज्जतकावहानालेकर तीर्थयात्राको छोडनाठीकनही. जो-कामधर्मकाकर लिया वहीअपनाहै, अगरतुम खुदकंजुस बनकर दौलतखर्चकरना नहीचाहते-उसकातो कोइइलाजही नहीं है,__मारवाड-और मुल्कपूरवके जैनश्वेतांवरश्रावक-जोकि-अपनी औरतोंको पर्दानसीनरखतेहै, यात्रामें नौकरचाकर दासदासीका ख_उठाना ताकातनही-और-उनकों पर्दैहीपमें उमरबतीतकरादेना कोइ अकलमंदीकीवातनही, तीर्थोंमें देवमंदिरों में ओर व्याख्यानसभामे पारखना गोया ! देवगुरुधर्मकी बेअदवीकरनाहै, देखो ! तीथैकगेके समवसरणमें वडेवडेछत्रपतिराजाओंकीरानीयेभीखडीरहती
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(१०) हिदायत-उल-आम. थी, तुमकिसगिनतीमेंहो ? देवमंदिरमें-रागरागनीकेशाथ पूजनहो रहीहै-और-औरतोकेलिये मंदिरमें कपडेकापर्दा लगाहुवाहै, कहिये ! यहकिसधर्मशास्त्रका पाठहै, ? व्याख्यानसभामें गुरुमहाराज धर्मशास्वमुनारहेहै और-औरतोकोलिये वहांभी आधेमकानमें कपडेकापर्दा लगाहुवाहै, बतलाइये ! यहकिसधर्मशास्त्रका हुकमहै, ? हरशख्शकों लाजिमहै तीर्थयात्रामें-देवमंदिरमें और व्याख्यानसभामें पर्दा-न-रखे, मर्द औरत यात्राकेलिये चलेजाय, किसीकीराह-न-देखे, वस्तआखीरी नजदीक चलाआताहै, तीनहिस्सा उमरवीतगइ, न-मालूम डेहरा किसवख्त कुचहोजायगा, मुस्तीरफाकरो और तीर्थयात्रामें चलनेकी तयारीकरो, असलमें जोलोग वखीलहै पैसाखर्चना आलादर्जे की तकलीफसमझतेहै उनकोंकोइ समझानहींसकता. दिलके दलेरहै-वे-अपना खर्चादेकर दुसरोंकोभी शाथलेजातेहै, यहांजिसपर एहसानकरो अगलेजन्ममें वह-तुमपर-एहसानकरेगा,
अगर तुम दौलतमंदहो-तो-रैलमे सेकंडक्लास-या-इंटरक्लासकी टिकीटलो, मगर मूमोकों इतना खर्च करना मुश्किलहोगा. बल्के ! कहेगे नाहक ! खर्चक्यौंकरना, ? रास्तेमें किसीअनजानशख्शके हाथका पान-या-खानामतखाओ, कइलोग अमीरों के लिवासमें बनेरहतेहे, और नसीलीज खिलाकर गाफिलकरदेते है, और फिरमजेमें उनके मालअसवावकों लेकर रफुचकरबनतेहै,-तुमने अबतक मुसाफरी किइनहीं, दुकानके गादीतकीयोंपरवेठकर पानवीडी खातेरहेहो, सफरमेवहुतहोशियारीरखनाचाहिये. अगरसफरमें तुमारेपास ज्यादहअसबाबहै-तो-उसका बंडलबनाकर तुलवालो, और टेशनपर पारसलबाबुकी सुपुर्दकरदो, अपना टीकीट उनकों दिखा कर तीसरेदर्जेका पनरासेर-ड्योढेदर्जेका वीससेर और सेकंडक्लासका चालीससेर बादकरके वाकीका किरायादेदो, और रसीद उनसे
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हिदायत-उल-आम. (११) लेलो, जहांजाकर उतरनाहो-वहां-वहरसीद दिग्वलाकर अपनाअसवाव, अगर ब्रीकमें दियाहो तो-गार्ड-या-टेशनमास्तरसे मिलकर छोडालो.-अगरशाथरवाहोतो कुलीकेपास उठवाकर मुसाफिरखानेमें लेजाओ, मगर कुलीका नंबर देवलियाकरो, याते चौरीजानेका खौफ-न-रहे,- अगर किसीशहरसे-या-रास्तेमें कुछअसबाबखरीदो -और-अगर-वहबहुतह-तो-एकसंदुकमे बंदकरके बजरीये रैलमालम--या-पारसलमें-जिसमें किराया कमलगे, घरकोंभेज दो. अगर थोडा भेजनाहो-तो-डाकखानेमें थोडामेहमूल लगताजानो डाककेजरीये पारसलबनाकर भेजदो. ताकि-रास्तेमें उठायेउठायेन-फिरनापडे,-न-बोयेजाने-या-टुटने फुटनेका खौफरहै, अगर किसीमुकामपर घरसे खबर मंगानाहो-तो-लिखभेजो, फलानेशहरके डाकखानेमें यहचीटी जमारहे, जवफलानेनामका शख्श फलानाशहरकारहनेवाला आवेतो उसे मिले. उसडाकखानेसें अपनानामवतलाकर अपनी चीठी मांगलो.
अगर तुमको गानेवजानेका शौख है-और-सितार-सारंगी-या हारमोनियम बजाना जानतेहो-तो-उसकोंभी शाथलेजाओ. तीर्थोमें जिनेंद्रोंकी तारीफकेपदगाना, और अपनेआत्माकों अनित्य-अशरणभावनासे भावितकरना-जिससेआइंदे अपनाभलाहो. अगर पहाइपरचढकर दूरदूरकेमकानोंकी औरकरनाचाहतेहो-तो-एकदूरबीन भी साथलेतेजाओ, अगर फोटोउतारना जानतेहोतो-फोटोकाकेमरा भीशाथलेलो. औरतीर्थोके फोटोउतारलेआओ. तीर्थभूमिमें कोश दो-कोश-या-जंगलमें कोइमंदिरहो-उसकेदर्शनभी जरुरकरलिया करो, थोडीदरके दर्शनछोडकर जबघरआओगे इसबातपर रंजहोगाकि-हमने थोडीसीजगहकेलिये तीर्थकेदर्शन नहींकिये. और घर चलेआये. तावेउमरघरही बैठेरहनाहै, तीर्थमेंजाकर जल्दीकरनाठीक
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हिदायत-उल-आम.
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नही. जियारत में धर्मकामकेलिये चलेहो किसीशहरमें जाकर इश्कबाजी में पडना, कितनेक ऐसे भी है कि - तीर्थयात्रामें जाकर ऐंशकरते है, और इबादतकों बरवादकरते है, तीर्थमेंजाकरभी इश्कशैतानीकों-न-छोडा तोक्याछोडा :- कितनेक ऐसेभी है- जो-तोथीम - औरदेव मंदिरोंमें दर्शन करतेहुवेभी औरतकेशाथ मोहब्बत की बातकरते रहते हैं, धर्मशाantaraje paaniसे तीर्थो में परहेजकरो, तीर्थयात्रामेंधर्मकों धर्मशास्त्र इनवातों खलल पहुचानेवाला कामकरनागोया! अपनी तकदीरकों हारजाना है, पहाडपर जियारतकेलिये पैदलजाना हद्दुल- मकदूर - बहुत बेह तरहै, अगर चलने की ताकात - न - होतो- डोली मेंवेटकर जानाभीकोइहर्जनही. मगरडोलिकेलिये इंतजाम पेस्तरसेंकर लेना चाहिये, याते चलनेकेवख्त देरी न हो, केशर - चंदन- धूप - फल - फुल - बादाम-सोपारी - चावल - मेवा-मिठाइ - - इतर - बर्क - सोनेचांदीक- औरकुछ रुपयेपैसे सबसामान पूजाकातयाररखो, यात्रा केरौज बहुत शुभहजल्दी सेउठो, और उमदाकपडे पहनकर दर्शनोंकोंजाओ. मेलेकपडे पहेनकर जाना देवकी बेअदबी करना है, नौकर-चाकरकों और अपने दोस्तकोंभी अगरबनपडेतो पूजन की सामग्री अपने पैसोसें खरीदकर केदो, पहाडपरजा वख्त रुपया - महोर- नोट वगेराजोकुछ जोखमकीचीज हो- अपनीकमरकों बांधकर शाथलेतेजाओ. ताकि - दिलको तसल्ली रहे, औरदेवदर्शन में फिक्रपेदा-न- हो. - कितने कए से भी शख्श है- जोकदीम सें बखील - बहेमी - और ख्वाव में भी रुपये पैसे याद करते रहते है. फिरइवादतमें कैसेमशगूल रहेगें पासरहनेसें बेफिक्री - औरतीर्थयात्रा बखूबीअदा होगी. इसीलिये हिदायत दिडगइ है कि - होशियाररहो, अगर किसी केवदनमें कम ताकात होने के सबब - मलमूत्रकीहाजत बनीरहती हो तो - दो चावलभर अफीम खाकर पहाडकोंचलो, रास्तेमेंमजे से चलसकोगे. मगर ऐसा मत करना कि - ज्याइहअफीम खाकर नशेमेंगा फिलवनजाओ, हां ! जो खुदअफीमची है उसकेलिये ज्याहखानाभी कोडहर्जनही,
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हिदायत-उल-आम.
(१३ )
जब जियारतकी जगह पहुचनाओ सिरझुकाकर सिजदा करो. और इबादतकरोकि-शुक्रहै आजकारोज जोमुजे कमनसीवकों इसती. र्थकी जियारत नियामतहुइ, तीर्थोकीमीटी सीरकोलगनेसें तुमारेबुरे काँकी रजअलगहोगी. तीथा में फिरनेसे तुमारा चौरासीलाखनीय योनिमें फिरना कमहोगा, औरमोक्षकाराला हासिलहोगा, पूजनगीत-गान-नाचसुजग जोतुमसेवने तीथा धर्मकेकामकरो. तीर्थयात्रामें पर्दामतरखो, दिलको बुरेइरादोसे वचाओ.-यहीअसलीप है, -मगरजोलोग दौलतकी गर्मीसे सरगर्महोरहेहै-के-इसबातकों करमानसकतेहै, ! तीर्थयात्रामें जो-दुखीदरिद्री-बैठेरहतेहै उनकोंभी कुछन-कुछ-देतेरहो, ऐसामतकरोकि-वे-तुमकों-अमीरसमझकरकुछसवालकरे, और तुमचुपहोकर मुंहमोडते चलेजाओ, तीर्थमेंजाकर कमसे कम दोतीनयात्रा जरुरकरो, ऐसायतकरोकि-एकही-यात्राकरके दु. सरेरौज घरकोंचल दिया. कइऐसेभीशग्है -जो-मंदिरोंगये-और दो -चावल के दाने फककर चलेआये.-न इबादतकिइ-न-ध्यानकिया, और-न-पूजनकिया. सीर्फ ! देवकेसामनेगये औरचलेआये. मंदिरोमेजाकर थुकनानहीचाहिये, इससेदेवकी बेअदबीहोतीहै, किसीमंदिरकी दिवारपरअपनानामभी मतलिखो, खुशनसीवोंने उमदामंदिर वनवाये और तुमने अपनानामलिग्वकर उसमंदिरकीदिवारको कालि करदिइ, क्याग्ववढंगहै, ? तीर्थों में पहाडोपर-या-चरणपादुकाकी जगह -सबजमीन-पाकसमझो. ऐसाशक मतलाओकि-क्या ! इसीजगह जहांकि-मंदिरवनाहै-तीर्थकरोंकानिर्वाणहुवाहोगा, गरजकि-तमामपहाड और तीर्थभूमि पूज्यभूमि समझो, लाखोंकराडोवर्सहोगये हमेशा वहीटोंक उसीजगहवनीरहीहै-ऐसाहठ-भतकरो, शजय-गिरनारआबु-समेतशिखरवगेरातीयाके नकशे-जो-छपेहुवेहोतेहै शाथरखो, ताकि-पहाडपरचढकर मालूमहोजायकि-यह-मंदिर इसतीर्थंकरमहाराजकार-यह अमक महाराजका-हे,
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( १४ )
कानुन - रेलवे.
[ कानुन-रैलवे, ]
रैलसवारीमे तीसरे दर्जे का किराया - पौन पैसे से एकपैसा फीमीलत कहै, इंटरक्लासका किराया एकपैसे से देढपैसा - फी-मील-सेकंडक्लासका किराया दो - पैसे से तीनपैसे मील-और-फर्स्टक्लासका किराया - एक आनेसे देढ आने मील तक है, - फर्स्ट-और-सेकंडक्लास के सोतेहुवे मुसाफिरकों रैलकाको अप्सर - या - नोकर जगा- नही सकता. तीन वर्ससें बारांवर्सतक के बच्चोंका किराया मआफहै, तीनवर्स बारांवर्सतकके बच्चोंका किराया आघालियाजाता है, बारांवर्सतकका लडका औरतकेशाथ जनानागाडीमै बेठसकता है, इससेज्यादहउमरका नहीवेंट सकता, रैलटेशन के भीतर प्लेटफोर्मपर गाडी आनेजानेकेवख्त कोइ जाना चाहे दो पैसे की टिकीटप्लेटफार्म लेकर भीतरजासकता है, रेलवेमुसाफिरोंकों इसबातपर जरुरखयाल रखना चाहिये कि जब टीकिट खरीदेतो- उसको पढलियाकरे. या - दूसरेसें पढालेवे, क्योंकि- टीकीटके जोदाम दिये होते है - टीकीटपर लिखे रहते है- उसकोंदेखलेना चाहिये कि - गलतीसे दुसरेटेशनका टीकीट - तो नही आ गया. - चलतीहुइ रैलकादरवाजाखौलनेवाला मुसाफिर कानुनीमुजरीमहोता है, और खुदकोंभी गिरजानेका खतरा है, जिसमुसाफिरने टीकीटखरीद लियाहो-औररैल में बेठने की जगह - न - मिलने की वजह से उसमें - जा न सकेतो- वह तीन ichitre टेशनमास्तरसे अपनाकिराया पीछा ले सकता है - या - उसके बाद जानेवालीगाडीमें जासकता है. जिसदर्जेका टीकीटखरीद कियाहो उसदर्जे में जगह-न- हो - और - वहमुसाफिर कमदर्जे में भेजाजावे - तो - बाकीकेदाम रैलवालोंसे वापीस मीलसकता है, अगरकमदर्जे का टीarratara बडेदर्जे में जानाचाहे तो बाकीके दाम देकर बडेदर्जेका नयाकीट लेकरजासकता है,
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कानुन-रलव. (१५) अगरकोइ मुसाफिर टीकीटखरीदकर सफरकरनेसें पेस्तर-बीमार होजाय-या-कोइ एसाअमरलाचारीहोकि--जिससेवहमुसाफरी-नकरसकेतो तुर्त-टेशनमास्तरको इतिलादेवे, और टेशनमास्तरकी तसल्लीकरदेनेपर टेशनमास्तर उसका किराया वापीसदेसकताहै. जिसटेशनकाटीकीटखरीदकर मुसाफिररेलसवारहो-और-अगरउसीगाडीमें आगेजानाचाहे-तो-जासकताहै, लेकिन ! मुकामीटेशनपहुचनेके पेस्तररास्तेकेटेशनपर गार्डकोंकहदेना चाहिये, जिससे गार्डउसकोआगे काटीकीटखरीददेगा, जिसदर्जेमकोइमुसाफिर चलाजारहाहै-अगररास्तेमें वडेदर्जेमेंजानाचाहे-तो-उससे उतरकरगार्डसेंइत्तिलादेवे, और बाकीकी सफरका वडेदजेके हिसाबसे दामदेवे-बडेदर्जेमेंजासकताहै, हरमुसाफिर (१००) मीलगयेबाद एकरौजरास्तेमें जहां-जी-चाहेठहरसकताहे, मसलन ! जिसने (२००) मीलतकका टीकीटलियाहो-वह-रास्ते वाद (१००) मीलजानेके-एकरौज किसीटेशनपर ठहर सकताहै, और उसीटीकीटसे मुकामी-टेशनतक-जाशकताहै, ऐसानहीकि-सोमीलगयेनही-और वीचमें एकदिनरहसके. इंटरकलासका मुसाफिर रैलमें जगहकी गुंजाशहोनेपर थोडेसेफासलेकेलिये डाकगा. डीभी जासकताहै,
तीसरे दर्जेका मुसाफिर अपनेशाथ अपनाविस्तर-या-असबाब कुल्ल (१५) सैर बजनतक लेजासकताहै. इंटरकलासका मुसाफिर (२०) सैर-असवाव और विस्तर लेजासकताहै, (यानी) बीससैर असबाब-और-अलावा इसके बिस्तर अलग लेजासकताहै, विस्तर उसका असवावकेवजनमें-नही-गिनाजाता, अनपढमुसाफिरको अपना टीकीट खुदलानाचाहिये, क्योंकि-वाजेटेशनपर कइठगलोगफिरतेरहते है-वे-कहेंगे ! लाओ !! हमतुमकों टीकीटलादेवे, इसइरादेसे उससेदाम-वसुलकरके थोडेफासलेका टीकीटलाकरदेतेहै, और बाकी
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( १६ )
कानुन-रैलवे. केदामआपलेकर चलदेतेहै, फिरअनपढमुसाफिरकों टीकीटचाककराते वख्त मुश्किलहोताहै, अगररैलका पुराकमरा-या-गाडीलेनाहो-और उसीलाइनकेटेशनकों जानाहो-तो-चोइसघंटेकेपेस्तर, और दूसरीलाइनकेटेशनकों जानाहोतो अडतालीसघंटेकेपेस्तर टेशनमास्तरकों अजिदेनेसेटीकीट मिलजाताहै, उसगाडीपर लेवलकागजपर लिखकर तख्तालगायाजाताहै, फिररास्तेमें उसकमरे-या-गाडीमें कोइगेरमुसा फिरनहीआशकेगा. ऐसाकरनेपर तीसरेदर्जे केकमरेका (८) मुसाफिर
और-इंटरकलासका (६) मुसाफिरोंका किराया-फी-कमरादेनाहोगा, तीसरेदर्जेकी पुरीगाडीकेलिये पांचकमरेवालीका (४०) छकमरेवाली का (४८) मुसाफिरोंका किरायादेनापडेगा. इंटरकलासकीगाडीका (२७) मुसाफिरोंका किरायादेनापडेगा, लेकिन ! जितनेमुसाफिरोका किरायादियागयाहोगा उतनेतकही मुसाफिर उसगाडीमें जासकेगें. ज्यादहबेठाओगे-तो-उसकाकिराया अलगदेनाहोगा, इष्टइंडियारैलवे यानी-कलकत्ता लाइन इंटरकलासके कमरेकेलिये (८) मुसाफिरोंका किरायालेतीहै-(६) का-नही. ___ अगरकोइ मुसाफिर पुरीगाडीलेकर उसको रास्तेमें ठहरानाचाहे -तो-ठहरासकताहै. ऐसीहालतमें जब पुरीगाडी लेनेकी अर्जिदिइ जायतो उसमे लिखनाचाहिये यहगाडीरास्तेमें फलानेफलाने टेशनपर इतनेइतने दिनया-घंटेतक ठहरीरहे, सो-वहगाडी-उनटेशनोपर काट कर ठहराइजायगी, और उसकी फीस जितने घंटे गाडी ठहराइजायगी आठआने घंटे देनापडेगा, गाडीरवानेहोनेके (१०) मीनीट पेस्तर टीकीटमीलना बंदहोजाताहै. इसलिये दसमीनीटके पेस्तरजाकर टीकीट लेनाचाहिये, कइजगह हरवख्तभी टीकीट मिलसकताहै, कइ जगह शहरोमेंभी टीकीटओफिस होतीहै, और वहांसे टीकीटमिलसकताहै. जिसटेशनका टीकीट लियाहो-और मुसाफिर सोजाय-या
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तालीम-धर्मशास्त्र. (१७ ) गलतीसेमुकामीटेशनसें अगलेटेशनचलाजाय तोजितनेटेशन आगेगया उसका महमूलदेनाहोगा. और शिवाय इसके दोआनेसें एकरुपयेतक जरीमानाभी देनापडेगा. जिसदर्जेका टीकीट लियाजाय-अगर उससे बडेदर्जेमें वेठकर सफरकरे तो वाकीका महसूलदेनापडेगा. अगर वगेर गार्डको इत्तिलादेनेके धोखेबाजीसें. ऐसाकरे तो शिवाय महसूलके औरभी जरीमाना देना होगा. उसकी हद (६) रुपयेतकहै,
अगर कोई मुसाफिर अपनेटीकीटका नंबर-तारिख-या-टेशनकानाम मलकर ऐसाकरदेवे जो-पढा--न--जासके, उसकेलिये जैसाटेशनमास्तरचाहे करसकताहै, जहांसे टीकीटोंका इम्तिहानहो कररैलचलतीहै वहांतकका किरायालेकर छोडसकताहै, अगरउसको यह मालूमहोजायकि-इसने रैलकोंधोखादेनेकेलिये ऐसा किया है-तो-उसकाचालानहोकर उसपर (१००) रुपयेतक जरीमाना हो सकताहै, कोइमुसाफिर औरतोंकी गाडीमें चढजावेतो वहकानुनी मुजरीमहै, उसकों सजादिइजायगी, अगर किसीटेशनपर खराव खानामिलताहो-या-पानी-न-मीलताहो-तो-मुसाफिर उस टेशन मास्तरकी रिपोर्ट-डिस्टीकट-ट्रफिक-सुपरिटेंडेंटको करसकताहै, रैलमें पार्सल लेनेदेनेका वख्त शिवाय इतवारके हमेशा सातवजे शुभहसे पांचवजे शामतक रहताहै.
[तालीम धर्मशास्त्र.] धर्मशास्त्रका फरमानाहै हरसाल एकनयेतीर्थकी जियारतकरे. नयेतीर्थकोंजाना-न-बनसके-तो-जिसकी जियारत अवलकिइहै दोवारा करे, लेकिन ! ऐसाकोइवर्ष-न-गुजरनेदेवेकि-जिसमेंएक तीर्थकीजियारत-न-किइजाय, जोशख्श तीर्थभूमिही रहताहो, उसकों चाहिये दूसरेतीर्थकी जियारतकरे,-तीर्थनामउसकाहै जहां
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(१८) तालीम-धर्मशास्त्र. जाकर जीव संसारसमुंदरसे तीरे, मगर जिसशख्शका इरादापाक नहींहै उसकों तीर्थभी-न-तारसकेगा, दौलत आजहै और कलनहोगी जोकुछधर्मकार्य करनाहो जल्दी करलो. दुनियाकेझगडोंका कभी-पार-नहीआता. जोकुछ धर्मकामकरलोगे वहीतुमाराहै, कइ शख्श मरतेवख्त कहतेजातेहै हमकों-फलाने दोकामकरना बाकी रहगये, लेकिन ! यहकोइ नहीकहताकि-हमकों फलानेतीर्थकी जियारतकरना बाकीरहगइ, तिजारतके लिये तुमऐसीजगहघूमे जहांकि-जानबचाना मुश्किलथा, लेकिन ! तीर्थयात्राकेलिये एकदफेभी नहीघूमे, कइलोग कहते है तीथोंकी जियारत हमारेतकदीरमेंनही. कैसेजाय, ? मगर यहनहीं सोचतेकि-हमने-घरसे एककदमभी नहीं उठाया और कहदिया हमारेतकदीरमेंनहीं, क्या ! खूवढंगहै, ? दौलतमिलानेकेलिये हरजगहजानेकी ततवीरकरना और तीर्थयात्राके लिये तकदीरका बहानालेना, वडेहोशियार हो. निश्चयनयकोंदिलमेंरखकर व्यवहारनयसें वर्तावकरना तमामशास्त्रोकासारहै.__ आजसें करीब (२५००) अढाइहजारवर्ष पेस्तर जवकि-तीर्थकरोंका जमानाथा विद्याधरलोग अपनीविद्याकी शक्तिसें आस्मानमें विमानचलातेथे, और उसकेजरीये लोग सफरकरतेथे, आजकल रैलकासाधन मौजुद है, फिरसुस्तीकरना और तकदीरकाबहानालेना-कोइअकलमंदीकी वातनही, करीब सो-सवासोवर्ष पेस्तर जबरैलनहींथी-लोग-खुश्कीरास्ते सफरकरतेधे, औरबहुतसाखर्च करनेपरभी उतनीजगह-नही जासकतेथे-जितनी आज थोडेखर्चसे जासकतेहो. जिनकोंधर्म प्याराहै-कभी-सुस्तीनहीकरते, तीर्थयात्राकोंजानेसे पेस्तर इसबातकों अवलसौचलोकि-तुमारेपास उतना खर्च है-या-नही, ? गेरमुल्कमें किसकिसकेपास मांगतेफिरोगे. ? जिसराजे-महाराजेकी अमल्दारीमें तीर्थकीजगहहो-उनकों-इसबा
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नालीम-धर्मशास्त्र. ( १५ ) तपर खुशहोनाचाहियेकि-तीर्थकेसवबसे हमारी अमल्दारीकी तरक्की
और रियासतकी आवादीहै, शहरकी रवन्नक-और-रोजगारकी तेजी, सौंचो ! इससे ज्यादह और क्याबातचाहतेहो, ?--हरखुशनसीव राजेमहाराजोकों चाहिये तीर्थयात्रीयोंका लिहाज रखे,-उनकोंहरवातसें मदद करे, और इसबानपर उनकी तारीफकरेकि-दुनियाका धंदाछोडकर-ये-तीर्थों की जियारतकों आयेहै. परमेश्वरकी भक्तिमें उनकादिल रजु-न-होतातो-तीर्थों में कैसेआते, ? तीर्थके मेनेजरोंका-और-पूजारीयोंकोभी मुनासिबहै उनकीखातिर करे, ब-दौलतयात्रीयोंहीके तीर्थोंका खजाना-तर-होताहै, जिस तीर्थमें यात्रीयोंकी आमदरफत कमहै-उसतीर्थमें रवन्नक नहीरहती. कइतीर्थों में पूजारीलोग ऐसेभी देखेगयेहैकि-यात्रीयोंकी नाकमेंदम लादेतेहै, अगर रुपया पैसा-न-देवे-तो-निंदाबोलनेलगते है. तीर्थोके मेनेजरोंको लाजिमहै ऐसे पजारीयोंकी तीयामेसे रुकसतकरे, और अगर गुस्ताखी करतो-उसको कानपकड कर उसीवग्टनमंदिरसे वहारकरदेवे, वे-लोगवडेवेंसमझहै-जो--यात्रीयोंके शाथ गुस्ताखी करतेहै-और-उनका लिहाज नहीरखते, यात्रीलोग थकेहुवे-और मंजीलकरकेआये है, उनको हवातसे आरामदो, जिसचीजकी उनकों दरकारहो--उन फेसामने हाजिरकरो, यात्राकरके लौटतेवख्त अगर यात्रीकेपास रुपयेपैसेकी गुंजाशहो-तो-जिसपूजारी-या-नोकरने तुमारी खिदमतकिइहै उसको कुछइनामदेना,-चुनाचे-वे-लोग मंदिरके खजानेसें तनख्वाह बेशक : पाते है-उनका-कोइहकनहीं कि-तुमको रोककर कुछलेवे, लेकिन ! तुमारी रहमदिलीहैकि-अगर गुंजाशहो-तो-उनकों बतौर धर्मकीराहपर कुछदेना. अगर तुमारे पास रुपयेपैसेकी कुछगुंजाश नहीं है-तो-कोइजरुरतनहीं, नोकरलोग-या-पूजारी ऐसाताना-तुमकोनहीदेसकतेकि-तुमनेहमकों कुछनहीदिया, दानपुन्यकरना अपनेदिलकी खुशीकेताल्लुकहै, और
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(२०) तालीम-धर्मशास्त्र. यहबातभी काबीलगौरकेहैकि-नोकरपूजारीयोंका तुमारेपरकुछहक नहीकि-जोरजूम करसके,-अगर कोई जोरजुर्म करेतो फौरन उसकों राज्यके जरीये शिक्षा दिलवाना.- तीर्थोकी देखरेख करनेवालोंकों-लाजिमहै जिसमजहबका जो तीर्थ-या-मंदिरहो-उसमें उसीमजहबकी मूर्ति रखनाचाहिये, जो तीर्थ-या-मंदिर जिसमजहबकाहै, खर्च-आमदनी-नौकर-चाकर
और-खजाना उसीमजहबवालोंकेपास रहनाचाहिये, अगरकोइकहे हम उसमेंदर्शनोंकों आते है इससेहमाराभी उसमेंहकहै-तो-इससे उनका हकउसतीर्थ--या-मंदिरमें नहींहोशकता, जिसमजहबकाजो-तीर्थ-या-मंदिरहै उसके बहीखाते उसीमजहबवालोंके आयेहुवे रुपयेपैसे जमाहोना चाहीये. अगरकोइ दूसरेमजहबवालेआनकर उसमें रुपयेपैसेदेवे-तो-वे-रुपयेपैसे उसतीर्थ-या--- दीरकी आमदनीके खातेमेजमाकरना, मगर उनकेनामसे जमानही करना, मजहबीमामले ऐसहैकि-कभी-मुकदमेंचलनेपर-वे-लोग-ऐसाकहेगेंकि-देखो ! तुमारे वहीखातेमें हमारेमजहबवालोंके-नामसे-रुपयेपैसेजमाहै-या-नही, ? जो-तीर्थ-या-मंदिर जिसमजहबवालोंकाहै, उसके कारखानेपर उसीमजहबवाला शख्श अधिकारीरखनाचाहिये, गेरमजहबवाला रखागयाहोगा-तो-वह-कुछ-न-कुछअपनेमजहबका पक्षजरुरकरेगा और अखीरमें तुमकों कुछ नुकशान पहुचानेकी कोशिश करेगा, जो-तीर्थ-या-मंदिर जिसमजहबवालोंकाहै-उसतीर्थ-और-उसमंदिरमें-उसीमजहबको माननेवाला शख्श-पूजारी-रखनाचाहिये,-अगर-गेरमजहबको माननेवालारखोगे कुछ-न-कुछ-वह-अपनेमजहबका पक्षकरेगा.-श्वेतांबरमजहबके तीर्थ और मंदिरमें श्वेतांबरमजहब माननेवाला पूजारी रहनाचाहिये, दिगंबरमजहबके तीर्थ और मंदिरमें दिगंबरमजहब माननेवाला पूजारी रहना चाहिये,--
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तालीम-धर्मशास्त्र. (२१) अगर कोइ तीर्थका-मेनेजर-या-मुखीया-उसतीर्थ-या-मंदिरका हिसाब-न-बतलावे-तो-राज्यकेजरीये उपावलेनाजरुरीहै, इतनेपरभी-वह-गुस्ताखीकरे तो उसको संघसें खारिजकरनाचाहिये. और-उसतीर्थ-या-मंदिरकी कुंचीयां ऊससे छीनलेनाचाहिये. कइयात्री असेभी-है-जो-आरतीका-या--पूजनका-धीबोलकर रुपयेपैसेदेतेनही, और चूपमारकर चलेजाते है, कइकहते है हम-उस-अमानतकी कोइचीजबनाकर मंदिरमंधरेगें, या-धर्मशालाबनवादेयगें, मगर शास्त्रफरमाताहै उसद्रव्यसे चीजबनवानेका-या-धर्मशाला तयारकरवानेका तुमकों क्याहकहै, ? यहतो जवसेतुम-आरती-या-पूजनवगेराकेलिये बोले तबसेही देवद्रव्य होचुका, कारखानेके सुपुर्दकरो, संघ-उसका-रक्षकहै, तुम-चीजया-धर्मशालाबनवानेवाले कोन, ? संघकी जोरायहोगी-वह-कामहोगा, कइकहतेहै हमने हमारीदुकानके बहीखातेमें देवकेनामसें जमाकरलिये है आठआनासेंकडे व्याजदेयगें, मगर उसकोजमाकरलेनेकाभी तुमकों कोइइख्तियार नही. संघ उसकों जैसामुनासिबसमझेगा वैसाकरेगा, श्रावकोकेघर देवद्रव्यरखनेका हुकमनही. हरजगह आनंदजी-कल्यानजीकेनामसे दुकानशुरुकरके मुनीमगुमास्तेरखना और कामचलाना, याते कोइएकश्रावक अपनीहकुमत उसपर चलासकेनही. देवद्रव्य घरमें रखनेसेकोइफायदा नही, जिनजिनाने देवद्रव्यघरमें रखा देखलो ! उनकों अखीरमें नुकशान हुवा, इसलिये सीधेहोकर उसदेवद्रव्यकों देदेना इसीमें तुमारीतारीफहै, मुनिमहाराजोकी फर्ज है देवद्रव्यकी हिफाजतकरवानेमे मुस्ती-न-करे, अगरकोइ इसदलीलकों पेंशकरेकि-मुनीमहाराजतो त्यागी है-उनकों देवद्रव्यकेकाममें बोलनेका क्या अधिकार है, ? जवाबमें मालूमहो, मुनिमहाराज पापकेकामके त्यागीहै, धर्मकामक-: रनेके त्यागीनही है, औरउनकों देवद्रव्यकेलिये बोलनेका अधिकार:
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वयान-शकुन-शास्त्र.
इसलिये हैकि-चतुर्विधसंघमें अबलदर्जा-उनकाहै,-श्रावक दुनियादारहै-और-एकदूसरेकी उसकों परवाहभी रहती है, इसलिये जोर देकर कैसाबोल सकेगा ? और मुनिमहाराजोकों किसीकीपरवाह नही, इसलिये जोरकेसाथ वोलसकतेहै, जो-श्रावक-जैसाकहता हैकि-आप मुनिहै आपको इसमें बोलनेकी कोइजरूरतनही, वह खुदकानुनधर्मके मुखालिफ और तीर्थकर-गणधरोंका गुनहगारहै,
ॐ [बयान-शकुनशास्त्र,] सफरकेवख्त अछेशकुन होनपर अछीसफरहोगी. यहभी शकुनशास्त्रका फरमानहै, शकुन-दो-तरहके, एक दृष्टशकुन, दूसरा शब्दशकुन, दृष्टशकुन-वहहे-जो-सफरकी शुरुआतमें नजरआवे, शब्दशकुन-वहहै-जो-अवाजके जरीये सुनाइदे, सफरकेवख्त रास्तेमें अगर जैनमुनी-उसगांवका राजा-हाथी-घोडा-मोर-बेलराजहंस-मर्दऔरतका-जोडलाघरआताहुवा-या-पदमनीऔरत मिलेतो जानना सफरअछीहोगी, जिनप्रतिमालेकर कोइआताहोऔर-सफरकेवख्त सामने मिलजायतो जानना सफरनिहायतअछी होगी, फल-फुल-गेहने आभूषन-धजा-पताका-छत्र-चवर-सोनाचांदी-रथ-पालखी-वाजा वीणा-सारंगी-तबले-सितार-मृदंग कुमारीकन्या-पक्कीरसोइकाथाल-विनाधुंएकीआग-गातीहुइसोहागन
औरतें-भैरी-शंख-आरिसा-भराहुवाघडालेकरमर्द-या-औरत-मल यागिरिचंदन-दुध-दही-घी-मीटी-गोरोचन-सहेत-मूरमा-कमलपदमनीऔरत-झारी-हथियार-पंखा-सिंहासन-जवाहिरात-अंकुश तांबा-चावल-सरसों-लडकेकोंगोदमें लेकर आतीहुइऔरत-पानबीडीहरीबनास्पति-मीठाई--धोये हुवेकपडेलेकरआताहुवाधोबी-इतरफुलेल-या-उमदावर्ण-गंध-रस-स्पर्शवाली-कोइचीजहो--सफरकेव
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बयान-शकुन-शास्त्र. (२३ ) ख्तसामनेमिलजाय तो-जानना सफरअछीहोगी, दिलकीमुराद हासिलहोगी-और-किसीतरहकी तकलीफ दरपेंश-न-होगी, कोइ किसीकाभलाबुरा नहीं करता, जितने उपरलिखे शकुनहै शुभाशुभके मूचक और घोतकहे, होना-न-होना अपनातकदीरके ताल्लुक ! सीर्फ! अच्छेशकुनहोनेसें अछा-और-बुरेहोनेसें बुराहोनेका अंदाज कियाजाताहे, अछेशकुनहोनेपर दिलको ताजगीमिलतीहै, आजकल कइलोग ऐसाकहेदेतहकि-यह-एकतरहका वहेमहै-औरहन इसवातकों वाहियान समजतेहै, मगर यह उनकी आलादर्जेकी गलतीहै, अविद्यानंदोके-न-माननेसे शकुन-ओर-निमित्त ज्ञान जूठे नही
होसकते,
___ गर्भवती-रजस्वला-और-विधवाऔरत सफरकेवख्त मीलेतो-ठीकनही. अगर माता विधवाहो और सामनेमिलजायतो कोइहर्ज नही, माता वेटेकेलिये हमेशां खैरख्वाहहै, उंठ-गधे-याभैसेपर चढाहुवाआदमी सामने मिलजाय तो बेशक ! बुराहै, शकुन उसकानाम है-जो घरसे रवानाहोतेवख्त-थोडीदूरपर मिले,तमामरास्ता देखतेरहना कोइजरुरत नही. कोइरोताहुवाआदमीया-नपुंसक सफरकेवख्त सामनेमिलजाय निहायतबुराहै, गांवमें घूसतेवख्त खुद हसनागाना मनाहै, पेशवाइमें आयेहुवे हसे-यागायनकरे कोइमनानही, लेकिन ! खुद गानाहसना मनाहै, सफरकेवख्त अपनेपीछे कोइमर्द-या-औरत खालीघडालेकर जलभरनेकों जातेहो निहायत उमदाहै, जैसेवह जलभरकर घरआयगा सफरकरनेवालाभी दौलतलेकर घरआयगा, सांप-किरकांटियापल्ली-और-गोह सफरजानेवालेको आडे उतरे-तो-बुराहै. सफरजानेवालेकी वायीतर्फ भमरा आनकर गुंजारकरे-या-फुलोंकारसलेता दिखाइदे अछाहै. सफरकेवख्त मुर्गेकी अवाजमुनाइदेना
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(२४ ) बयान-शकुन-शास्त्रं. या-उसका खुद नजरआजाना उमदाहै, सफरकरनेवाला जब कदमउठावे और अवलकदमकों ठोकरलगे-अटकजाय-कपडा फसजाय-धजा उसकीगिरजाय-या-उसका चपरासी गिरपडेतो बुरा है, सफर अछी-न-होगी, लुला-लंगडा-काणा-या-अंधाशख्स सामने मिलजायतोभी बुराहै, लकडीका भारालेकर कठिहारा सामनेमिलजाय-दंगाकरतीहुइ विल्ली दिखाइदे--या--बदबूवालीचीज सामनेमिले-किसीसुरत अछा नहीं,
__कौलसे-राख-हडी-विष्टा-तेल-गुड-चमडा-च:--वालीया-फुटाहुवावर्तन-नमक-मुकाघास--छाछ-कपास--अनाजकेछीलके-केश-काले रंगकीचीज-लोहा-दृरुतकीछाल-दवा--अर्गलालोहेकीसांकल-खरल-अकालवृष्टि-और-अशुभवर्णगंधरसस्पर्शवालीचीज सफरकेवख्त सामने मिलना अछानही. कोइमर्द-या
औरत हाथमेंफललेकर सामनेआतेहो-तो-जानना सफरअछीहोगी, सारसका जोडला चाहेकिसीतर्फ दिखाइदे-या-दोनों एकशाथअवाजकरे सफरमें जरुरफायदा होगा, एकीलासारस दिखाइदेना अछानही, सफरकेवख्त छातालियेहुवे तंबोलखाताहुवा कोइशख्स सामनेमिले तो अछाहै, जानना सफरअछीहोगी, रोतेहुवेलोग मुर्दालेजाते सामने मिलनाबुराहै, सारंगीतबलेशाथ गातेहुवेमुर्देकेशाथ जारहे है औरसफरकेवख्त सामनेमिलजाय अछाहै. सफरकेवख्त पीछाडी-या-दाहनी तर्फकीहवाचलतीहो अछाहै, घरआतेवख्तभी ऐसाही समझना, सामनेकी-या-वायीतर्फकीहवा सफरकेवख्तठीकनही. सफरकेवख्त नोलिया सामनेमिलजाय-या-दिखाइदे-याउसकी अवाजसुनाइदे-तो-अछाहै. तीतर-या-मुर्गा-दाहनेहाथकों-या-सामनेमिलना उमदाहै, गधा बायेहाथकों भोंके तो अछाहै.
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बयान-शकुन-शास्त्र.
(२५)
____ चंद्रस्वरचलते दखन-पश्चिमदिशातर्फ जाना अछा, पूरवउत्तरकों मूर्यस्वरमेजानाठीक, लडाइदंगेकेलिये-या-अदालतमें जानातो मूर्यस्वरमें ठीकहै, बाकीके कामकों चंद्रस्वरमें जानाअछा, चंद्रस्वर अमृतनाडी है, योगशास्त्र-विवेकमार्तडरहस्य-और-कपूरचंदजीकृतस्वरोदयज्ञान-किताब देखो, उसमेंसबहाल रौशनहै, जवचंद्रम्वर चलताहो बायीतर्फ जोजोशकुन होगें पूर्णफल देगे, और मूर्यस्वरमें दाहनीतर्फ जितनेशकुनहोगें अछाफलकरेगें, रिक्तस्वरमें अछेशकुन कमजोरहोजाते है और पूर्णस्वरमें कमजोरशकुनभी ताकतवरहोतेहै, घरसेचले और तुर्तहीअछेशकुनहुवे तो समझलो, तुतही फायदाहोगा, कोशदोशगयेबाद अछशकुनहुवेतो दैरसें फायदा होगा, शकुनशास्त्रका फरमानहै घर-या-गांवकेनजदीकके शकुन असलीशकुन है, सफरकेवख्त अगर बुरेशकुनहुवे-तोभी-ठहरजाना ठीकहै. तीसरीदफे बुरेशकुनहुवे-तो-सफरकों जाना अछानही, लौटजाना चाहिये. सज्जन-शकुन-और-निमित्तज्ञानी-मनाफरमा. वे उसवख्त सफरकरना फायदेमंद-न-होगा.
शब्दशकुन उसकों कहतेहै जोसफरके वख्त बजरीयेशब्दके मुनाइदे, जैसे कोइशख्श सफरकोचला और उसवख्त दुसरा बोलरहाहै फतेह होगी, समजलो! शब्दशकुनअछेहुवे, अगरऐसासुनाकि-तुमारी तकदीर फुटीहुइहै, डुबजाओगे-खतापाओगें-तोजाननाचाहियेशब्दशकुनअछेनही हुवे,-वारसें-तिथी-बलवान-तिथीसें-नक्षत्रबलवान्--नक्षत्रसेकर्ण-कर्णसेंलग्न-लग्नसेंनिमित्त-औरनिमितसें स्वरोदयज्ञान बलवानहै, जिसमुल्ककों-या-गांवकोजाना तुमारा दिल-नहीचाहता वहांजाना फायदेमंदनहीं, क्योंकि-दिलभीएकतरहकी पुख्तासबुतीहै,-सफरजानेवालेकों लाजिमहै देवगुरुकोनमस्कारकरके सफरकरे,-जिनमंदिर जाकर जिनप्रतिमाकेद
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( २६ ) दरवयान-अष्टांगनिमित्त. शनकरे-रुपया-महोर-जैसीताकातहो-भेटरखे. औरफिर उपाश्रयमें जाकर गुरुमहाराजके मुखले मंगलीकस्तोत्र मुने,-और उनके सामनेभी भेटरखे. गुरुलोगद्रव्यके त्यागीहोतेहै उसचढेहुवेद्रव्यकों अपनेकाममें-न-लेव. ज्ञानदृद्धिके काममेलगवादेवे. ___ -[ दरबयान-अष्टांगनिमित्त, ]
सफरकेवख्त मर्दका दाहनाअंग-ओर-औरतका वायाअंगफुरकना अछाहै, सफरजानेके पेस्तर ख्वावमें तीर्थंकरोंकीमूर्ति-निग्रंथमुनि-और-तीर्थभूमि दिखाइदे-तो-समझलो ! तीर्थयात्राजरुर होगी. सफरके-वख्त-पडज--रिषभ-गंधार-मध्यम--और-पंचम स्वरकी अवाज-मुनाइदे-तो-अछाहै, मगर स्वरकीअवाज पहिचानना-अकलकेताल्लुकहै. हरशख्शकों अपनीस्वाभाविकअवाज किस स्वरमें निकलती है इसकीपहिचान सीखनाचाहिये. सफरकेवख्त तोतेकीअवाज वायीतर्फसुनाइदेना फायदेमंदहै, घरकोआते दाहनी तर्फ सुनाइदे--तो--अछा, सफरकेवख्त तोताउडकर सामनेआवे निहायत उमदाहै, मगर रोतीअवाजकेशाथ सामने आनगिरनाअछा नही, सफरकेवख्त जिसकाघोडा हनहनाटकरे-या-दाहनेपावसे जमीनकोउकेरे अलाहै, सवारकी फतेहहोगी. सफरकेवख्त मौरकी
अवाजमुनाइदे-या-नाचताहुवा दिखाइदे-निहायतउमदाहै, सफरके . वख्त चकोरकी अवाजमुनाइटेना-या-खुद-चकोर नजरआजाना अछाहै,भारद्वाजपरीद-जिसकों लोग रुपारेलबोलतेहै उसकी अवाजमीचकोरकीतरहअछीहोतीहै, जिसमुल्कमें भूकंपहो-वहां-समझलो! एकतरहका उत्पातहोगा. जिसशहरकेदरवजेपर-या-देवमंदीरपर विजलीगिरे वहांटंटेझगडे फैलेगे. जहाँदेवमूर्ति हसतीहुइदिखाइदेवहां-आदमीयोंकोंकुछखौफहोगा. जहांदिवापरबनीहुइ चित्रामकी पुतली-हसतीहुइदिखाइदे-भूकुटीचबाकरगुस्साकरे-या-रोतीहुइदि
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तवारिख-शहर-बंबइ. (२७ ) खाइदे-वहां उजाड होगा, और लोगोंकों घरछोडकरभागनापडेगा. जहांदेवमंदिर-या-राजाके चवरसें विनाअग्नि-आगके अंगारे झरनेलगे वहां दंगेफिसाद होकर कइतरहकी तकलीफें दरशहोगी जिसमुल्को सिताराधम्रकेतु दिखाइदे-निहायतबुराहै, उसमुल्ककेरहनेवालोंकों-हरसुरतसें तकलीफहोगी, ___ अछेलक्षणवाले--खूबसुरत-मर्द औरत-जरुरदौलतमंद होतेहै, दुनियामें रुप-एकतरहका-वशीकरन है, जिसनेपूर्वभवमें धर्मकिया है-जीवोंपर-रहमाकिइहै और देवगुरुधर्मकी खिदमतकिइहै-वह-रुपवानहोताहै, जोशग्श हिंमतबहादृरहो-जरुरखुशनसीबहोगा, अनुयोगद्वारमूत्रवृत्तिमें फरमानहै-"सर्वसत्वेप्रतिष्टितं"-जहांसत्वहै वहांसबकुछहै.
तवारिख शहर बंबइ. भारतमें इसवख्न जैनमजहबके (१०८) नीर्थ मशहर है, इनसबकी तवारिख इसकितावमंदर्ज है, इसकी शुरुआतमें इरादाथाकिअयोध्या लिखनाशुरुकर, अयोध्या-जमानेतीर्थकर रिषभदेवके आवादहुइ और इसीसवबसे पुरानी है, फिरऐसाभी इरादाहुवाकिउज्जेनकों-अवलग्ग्वे, क्योंकि--उजेनहिंदके मध्यम है, मगरवंबइ कलकत्ता इसवख्त तरक्कीकेअवलमौरचेपर खडे है, इसलिये बंबइसेही सफरकीशुरुआतरवीगइ, बंबइसेंचलकर मुल्कगुजरात-सौराए-कछ-मारवाड-सिंध-पंजाव-काश्मिर-अवध--बंगाल-आसाम उडीसा-सेंट्रलइंडिया-राजपुताना-मालवा-वराड--खानदेश-दखन मद्रास-लंका-मलबार-महीशूर-कर्णाटक-और-मुल्ककोंकनकी सफरकरके बंबइआजायगे. अलावा इसकेऔरभी जोजोतीर्थ जैसेकि अफगानीस्थान-टिवेट-नयपाल-भोटान-और-वर्मा वगेरामथे उ
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( २८ )
तवारिख - शहर - नंबर.
नकेहालातभी इसमें दियेजायगें, किसकिस जगह कौन कौनसे तीर्थकर हुवे ? उनके पंचकल्याणिक कहांहुवे ? और कौन कौन सेमुनिकांपर मुक्तिपाये, अतिशयक्षेत्र कौन कौनसेंथे ? और किसकिसराजेमहाराजीवख्त उनकी तरक्कीहुइ ? वगेरावातें इस किताब में दर्ज कि गइहै, इसकिताबके बनाने में इतनी मेहनत हुई है कि - ताबेउमरकी मेहनत एकतर्फ - औरइसकी मेहनत एकतर्फ, जहांतकबना तमामजगहघूमकर जोजोहाल अपनी आंखों देखा इस किताब मेलिखा है, कुल तीर्थों की तलाशी में बहुतकुछ मेहनत हुई है, पुरानेतीर्थों की तवारिखजैनशास्खोसे - इतिहासिककिताबोंसे और शिलालेखोसे लिइगइहै, - इसको पढकर आमलोग फायदा हासिलकरे,
हिंदी अकलीममें दखन समुद्रकेकनारे बंबइ एक-नायाव - और- बेमिशालशहर है, जिन्नत - खूबसुरत हरएकचीजकेबसमे-औरउमदगी मकानात में बs - बहेत्तर - व - ज्यादहहै, मुंबादेवीकेनामसे शहरकानाम - बंबइ कहलाया, अंग्रेजी ज्वानमें इसकों Bombay बोंबे - बोलते है, करीब (१२५) वर्षपेस्तर बंबर बहुत छोटाशहरथा. दिनपरदिन इसकी तरक्की होतीगड़, सन ( १८१८) मँबबई बहुत बडामारुफ और मशहूरशहर कहलाया, औरदरियात्र के शहरोंमें बडीइज्जतपाइ, बंबइहातेकी चोडाईकम – मगरलंबाई उत्तरदखनकॉ करीब (१०००) मीलसेभी ज्यादहहै, इसहातेमें पहाडबहुतसमुंदरकनारे ज्यादेतर नारियल - सुपारी - और - ताडकेटरूतखडे है, खासफसल अनाजऔररुड़की - ज्यादह, कलकारखाने इतने है-जोदूसरेहातेमें हर्गिज ! - न - होगें, बंबइहातेमें मुल्कसिंघको छोडकर म हराठे - गुजराती और पारसी अपनेनामकों अबल और वालिद के नामकों पीछेबोलते है, औरवर्षकी शुरूआत कातिकसूदी एकमसें मानते
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तवारिख - शहर-वंबर.
( २९ )
है, उत्तरहिंदकेलोग - चैतमुदी एकमसे वर्षकी शुरुआत और वालि दुकानाम - अवल लिखते है.
कछोडकर इसहातेमे (२३) जिलें आबाद है, इनमें पुनाके पेसवा - और - बडोदेके गायकवाड ज्यादह मशहूर है, रैलसडक बंबइस - जी- आइ-पी-और- बी-बी-ऐंड-सी-आई- निकली, जी -- आह-- पी - मध्यहिंद मेहोकर इष्टइंडिया केशाथ मिली, और नागपुर से आगे बंगालनागपुरकोंभी जाकरमिली है ! बंबइमें रेलवे टेशन (१३) है, सबसेबडाटेशन बौरीबंदर- इसका दूसरा नाम विक्रटोरियाटमींनसभीबोलतेहै. हिंदमंदूसराकोइऐसाटेशननहीं- जैसाबोरीचंदरका टेशन है, सन (१८१८) में करीब (२७०००००) लाख रुपयोके खर्चेसे बनायागया. छतमें सुनहरी और मीनाकारीकाममारबलपथ्थरके खंभे खूबसुरत वेलबुढासेसजेहुब - और - एकगुंबज - पर वडाकींमती घंटाघरकि - जिसकी अवाज दूरदूरतकजाती है, देखकर ताज्जुब और हेरतकरोगे, खासबोरीबंदरटेशनकी जमीन (१५०० ) फुटलंबी, बहुतसे पासेंजर इसीटेशनपरजवरते है, जोकोइ मुसाफिर शहर में कदम रखे बोरीबंदरटेशन उतरे. शिवायइसके जहां जिसकसुभीताहो वहां भी उतर सकता है, इकावगी - हरवख्तमौजूदरहते है जहांको पहुचादेगा, समुंदरकनारे अपोलीवंदरकि- जहांपरविलायत जानेवाली टीमरेखडीरहती है, समुंदरकेकनारे पथ्थरोंकीतामीरकि हुइ बहुत डीदिवार मयसीढियोंके बनी हुइदेखकर ताज्जुबकरोगे, जिसकों समुंदरकापानी हरवख्तटकराता है, वाजेलोग टीमरोमेंकरसमुंदरकी सैरभी जायाकरते है बडीरवन्नककी जगह है. गोदीमें जहांकी - समुंदरका - जल - रुका हुवा है कइष्टीमरे हरवख्त यriपर खडीरहाकरती है. टीमर के आतेवख्त पुलखोलदियाजाता है, औरफिर ष्टीमरकेचलेजांनपर बंदकरदेते है, बगी-घोडे- आदमीयोंका
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( ३० )
तवारिख-शहर-वंबइ.
रास्ताभी बनाहुवाहै. वहुतसीष्टीमरे औरजहाज इसवंदरगाहसे लगते औरखुलते है, एकष्टीमर बंबइसेलंकाकों-एकद्वारिकाहोकर करांचीको-और-सबसेबडी टीमरऐडनहोकर विलायतकोजाती है. तरहतरहका मालअसवाब-यहां-चढायाऔर उताराजाताहै, बड़ी वडीआलिशानष्टीमरे औरसमुंदरका अथाहजल देखकर दिलनिहायतखुशहोगा,... वंबइसेंग्वुश्कीसडक-कल्याणी-नाशक--धुलिया-मर--इंदारफतेहाबाद-और-गवालियरको होतीहुइ आगरेकोंगइहै. दूसरी पैदलसडक-बीचहिंदुस्थानके होतीहुइ ग्यासकलकत्तेकोंभी गइहै, बंबइमें ट्रामवेकंपनी बडीतरक्कीपरहै, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीमें खास ! बंबइकी आबादी (८२१७६४) मनुष्योंकीथी. जिसमेंकरीब (२५२२५) जैनलोगहै, बंबइकमकान ऐसेउमदा औरखूबसुरतहैकिजिसपर लाखहांरुपये सर्पहुवे, बडीवडीआलिशानइमारतें इसकदर उमदा औरझलाझलबनी हैकि-देखकर आदमीकी अकलचकराजाती है, रंगरौशन बडेबडेआइने-तरहतरहके मेहराबदारखंभे औरसाइन बोर्ड हरमकानपर लगेहुवेहै. बंबइके बडेबडेमहोले कोट-और-बहारकोट-जिसमें पायधोनी-भीडीबाजार-कंबडीबाजार-नलवाजारकापडबाजार-भातबाजार-जहोरीबाजार-तांवाकाटा-मारकीट-चीडाबाजार-कालबादेवीरोड-मंबादेवीरोड-महालक्ष्मी-चरनीरोड जुमामशीद-गिरगांव-वालकेश्वर-मांडवीबंदर बोरीबंदर-भाइरवल्लापरेल-कुलाबा-और-ग्रांटगेडवगेराहै. बडेबडेबाजारोंमें दुतासंगीन
और-रंगरौशनकियेहुवेमकान देखकर मालूमहोता है किसीराजमहेलोंकी संरकररहे है. बगा-विकटोरया-जिसकंपैयोपररवरलगाहुवा हरजगह किरायोमलता है, रुपया-आठआने किरायादेकर तीनआदमी उसमेबखूबी-बैठसकते है, औरजहां सैरकरने जानाहोजासकते है,
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नवारिख-शहर-बंबइ. ( ३१ ) भींडीबाजारकीसडक जोकि-कुलाबेकों-गइहै-सबसेचौडी है, कुलाबेमेरुइकाबाजार ज्यादह-हरवख्तव्यापारीलोग आतेजातेहैं, बडीबडी आलिशानइमारतें-पासमेंसमुंदरका गहेराजल-और-तरहतरहकेजहाजदेखकर दिलखुशहोगा. बंबइशहर-इसवख्त हिंदका एकगुलजार वाग कहदो-कोइहर्जकी वातनही. तवारिखोमें पढाहोगा-बंगालऔरबंबइहाता-हिंदमें दो-गुलजारबागहै नजरकेसामने देखलो.
हरवाजारों मेवामीठाइ-पूरीकचौरी-औरगर्मध तयारमिलता है, बगी-घोडे-दाम-औरमोटार-हरजगह फिरतीदेखोगे. ट्रांममेंबेठकर जिसजगह दिलचाहो चलेजाओ. परेलसेंकुलावा-औरकुलावेसे ग्रांटरोडतक जानेसे बंबइकेबहुतसे हिस्सोंकी सैरहोसकती है, तरहतरहके रेशमी औरऊनीकपडे-सोनाचांदीजवाहिरात-बगेरामाल-असवाब-लाखहांरुपयोंका यहांपरमिलसकताहै, मगर खजाना-तरवा-ताजाचाहिये, विनातरखजानेके कुछचीज नहींमिलसकती, इग्लांड चीन-जापान-फ्रान्स-जर्मनी-रुस-इटाली-स्पेन-अमेरिका--नोर्वेस्वीडन-स्वीटझलीड-अरब-काबुल-आफ्रिका-एडन-जंजीवार-मोरसस-जिसमुल्ककीचीजचाहो यहांमिलसकती है, तरहतरहकी पुशाकपहनेहुवे मुल्कमुल्केमर्द-औरत-छोटेवडेइसकदर शौखसेचलरहे है जैसेकोइ अमीरउमरावदेखलो. उमदासे उमदाकपडा-और-गेहना यहां मिलसकताहै, वंवइकेलोग निहायत खूबसुरत-जिसनेपरवजन्ममें जिवोंपररहेमकिइहे, कतलबाजी-नहीकिइ-बह--कमालहुस्न-औरखूबसुरतरुप पाताहै, हरवख्त औरहरवाजारमें जैसीभीड-और-हजुम देखोगेकि-आदमीयोंका चलनाफिरनादुसवारहोगा. अंग्रेजलोग ज्यादहकरकेकोटमें औरकुलावेमें औरनेटीवकोट-बहारकोट-सबजगह आवादहैं, बंबइकी सफाइ उमदा-सडकेलंबीचौडी-मगरगलिये निहा
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( ३२ )
तवारिख - शहर - बंबइ.
यसतंग है, भाइखल्ला - चीचपोखली - परेल - और - कुलावेमें कपडेकेकारखाने और मीलॅबहुतसी बनी हुई है,
"कीदिवाली मुकनामी दूरदूरसेलोग इसजलसेक देखने के लिये आते है, चैतमेव संतकामेलाभी एकनामीग्रामी है, चौपाटीमें दरीयावकनारे हवाखोरीकलिये बेठनेको कुशी औरबांकडे बनेहुवे है, चाजहां बेजाओ को मुमानियतनही, जाडेकेदिनोंमें-न-सदी है-नगर्मी, वारिश के दिनो में करीब ( ७० ) इंचपानी यहां पर गिरता है, करीब मारकीटके धर्मशाला माधवदासजीकी मुसाफिरो केलिये आरामकी जगह है, विकटोरिया - गार्डन शहर के उत्तर में औरपरेल के पूरवकेकनारे 'astanaist काबिलदेखने की जगह है, और अजायबघर भी इसमें बना हुवा है,
बंबइकी पींजरापोल - बडी- और - इसमें जींदेहुवेजानवर जोकि - करीब - उल - मोहबहुत उमदातीरसेंउनकी हिफाजत किड़जाती है, लाखोरुपयेइनकी खिदमत में खर्च किये जाते है, नोकरचाकर सबइंतजाम अछा - और लाइकतारीफ के है. बंबइमें बडेघंटाघर (६) अवलबौरीबंदरपर दूसरा दाउदसासन स्कुलकेपास - तीसरा विकटोरिया गार्डनमें - चोथामारकीटकेदरवजेपर - पांचवाप्रिन्सस डोकपर--और-छठाराजाबाईटावरपर - इनकी अवाजदूरदूरतक पहुचती है, बंबइमें काबिल देखनेकी चीजें है मगर बोरीबंदर - विकटोरिया गार्डन - कुलाबा-राजावाइटावर - और -- गोदी-ये-नामीजगह है, हर जगहपानीकानलऔर - रौशनी ग्यास की जारी है, युरोपियनजनरल अस्पताल - टेलीग्राफ औफिसबडेकीमती मकान है, हाइकोर्टका मकान (५६०) फुटलंबा और पांचमंजीला बना हुवा - मेहराबदार खंभे - दोनों तर्फ ( १२० ) फुट ऊंटावर और उनपर इन्साफ औररहेमकी मूबनी हुइ-देखकरदि
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तवारिख-शहर-बंबइ. (३३ ) लकों ताज्जुब होगा. वंबइमे महराठी-गुजराती-और उर्दूजबान ज्यादहबोलीजातीहै. अठाइस-छपन-और असीरुपयेभरका सेर यहांपरचलताहै, सल्मे-सीतारेकाकाम बंबइमें-उमदा-युनीवरसीटीसीनेटहाउस--सरकारीमहेकमे-बडेबडेआमुदेलोगोके मकानपरलगा हुवा-टेलीफोन जिससे-घरवैठेतमामहालमालूमकरलो, एल्फीष्टोन सर्किल-कष्टमहाउस-टाउनहोल-टंकशाल-और-वंबइवेंक-वडेकीमती और काविलदेखनेके मकानहै. पश्चिमकीतर्फ कुलावे चर्च-औरविश्वविद्यालयवगेरा वडीइमारतेहै, कइजगह गुलजारचमन-रंगरौशनकियेहुवेमकान-पानी के फव्वारे नजरआतेहै गवर्नमेंटहाउस बडी लागतकामकानहे-सेकडोजगहकलकारखाने-और स्कुले बनीहुइजिनपर-वेंशुमार दौलतसर्फहुइहै, कहांतकवयानकरे,-चबइकी मुन्सीपालीटीमें असीलाखरुपयोंकी सालीयाना आमदनी और उतनाही खर्च है, लाइटहाउस--यानी-रौशनीघर बंबइमे तीन-जोकिवंवइसे (१०) मीलपर दखनपश्चिमकों वनेहुवे-अपोलोवंदरसे नावमेंवेटकरवहांपरजायाजाताहै. और अठारांमील दूरसें दिखपडतेहै. जहाजवाले इनकेजरीये जहाजको लेजाते और रोकतेहै, ___बंबइमे जैनश्वतांवरमंदिर कइहै, सबसेबडा तीर्थकर गोडीपा
वनाथजीका इसमें तीर्थकर गोडीपार्श्वनाथजीकी निहायतखूबसुरत मूर्ति तख्तनशीनहै. बाजारकेवीच इसकदरउमदा और तीमंजीला खूबसुरत बनावाकि-जिसकीतारीफ मीशालहै, मुनहरी और मीनाकारीकाम-तीयोंकनकशे.-तस्वीरे-झाडफनुस-और-फर्स-शंगे मर्मरकादेखकर दिलखुशहोगा, मंदिरकेदरवजेपर पीतलकेकठहरे दरसे नजरआते है, उमदारंगरौशन-और-कारीगरीदेखकर ताज्जुवक रोगे. शामकेवख्त हारमोनियम-सारंगी-तबले-और-सीतारवगेरा साजसे गवैयेलोग संगीत-और-नाचमुजराकरते है, दूसरामंदिरउ
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( ३४ ) तवारिख-शहर-वंबइ. सीकेकरीवमें तीर्थंकर महावीरस्वामीका इसमें तीर्थंकरमहावीरस्वामीकीमूर्ति जायेनशीनहै, कइतीर्थोकेनकशे और काम शंगेमर्मरपथरका लाइकतारीफके वनाहुवाहै, तीसरामंदिर रिषभदेवमहाराजका, इसमें तीर्थकर रिषभदेव-भगवान की मूर्ति-तख्तनशीनहै, मारवाडीश्रावकोंकी आमदरफत इसमेंज्यादह-और-ये-तीनोमंदिर एकलाइनमें बनेहुवे है, चौथामंदिर तीर्थकर शांतिनाथजीका भींडीवाजारके कौनेपर--शंगमर्मरपथरका निहायत उमदाकाम और तरहतरहके चित्र इसमेंकायम औरवरपाहै. पांचवा-मंदिर भीडीवाजारमें तीर्थंकर नेमनाथजीका-छठा-चिंतामनपार्श्वनाथजीका--सातमा शांतिनाथजीकाकोटमें, दोमंदिर मांडवीवंदरपर इनमें कछीश्रावकोंकाआनाजानाज्यादहहै, तीनवालकेश्वरमें, एकभाइखल्लेमें और कोलाबेमें, इसतरह बडीलागतकेवनेहुवे मंदिरमौजूदहै, हरजैनश्वेतांवर यात्रीकोलाजिमहै वंबइमेंकदमरखेंतो इनमंदिरों के दर्शनजरुरकरे, वंवइके जैनश्वेतांबरमंदिरोंकी कहांतकतारीफकरे ! एकसेएकवढकरहै, लालबागमें नयाउपाश्रय और एकमंदिर बतौरचैत्यालयके तामीर हुवाहै,__ जैनबुकसेलर-श्रावक-भीमसी-माणककी औफीस-मांडवीबंदर शाकगलीकेनाकेपर बनीहुइ जिसमेंतरहतरहके जैनपुस्तक वीक्रीसें मिलते है, सबसेबडाबुकसेलर हिंदमेंयहीनाम है, इनकेमकानपरउनके नामकासाइनबोर्ड लगाहुवा-जिनकों जैनपुस्तकोंकी दरकारहो-जा कर-लेआवे, जैनश्वेतांवरलाइब्रेरी--बोर्डिंगहाउस-और--स्कुलवाव पंनालालजी-पूरनचंदजी-जहोरीका-कीमतीमकानहै, तमामहिंदके जैनश्वेतांबरश्रावक बंवमेंआबादहै, पैदाशअछीहोनेसें सबलोगमुखी और-धर्मकेपायवंद, मगर मकानकीनिहायततंगी-छोटीछोटी कोठरीयोंमें लोगअपना गुजरकरतेहै, किरायाज्यादे औरजगहकीकोता
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वयान- सुरत.
( ३५ )
इहै, व सववपैदाशके लोगयहां रहना पसंद करते है, जहां पैदाशज्यादहहो - एशआरामकीचीजे भी वहां ज्यादहहोती है, -
कइतरहके डेली - सप्ताहिक - और -मंथली अखवार यहां से जारी होते है, हरमुल्ककेमुसाफिर यहां आते और जाते है. कोइरौजएसा - न होगा जिस रौज दसपन रांह हजारमुसाफिर बंबई में न आयेगयेहो, -दूसरेशहरमें कमदेखोगे, - राज्य अंग्रेजसरकारका - और - इन्साफीकानुन जारी है, - कोइकिसीकों तकलीफनहीदे सकता, अपने अपने मकान में सव लोगचैनकररहे है. जोशख्शवं इसे खानाहोकर हिंद जैनतीर्थोंकी जियारत करना चाहे इसरास्तेचलकरकरे. वइसे वी - बी-सी - आइ रैलके - जरीये - कुलावा - चर्चगेट- मरीनलाइन - चरनीरोड-प्रांटरोडमहालक्ष्मी - परेल- एलफीस्टन रोड- दादर- माटुंगा रोड-माहिम-बांद रा-शांताक्रुज - अंदेरी-गोरेगांव - मालाड - बोरविली-भायंदर-वसइरोड - नलसोपारा - वीरार - सोपाला - पालघर - बोइसर - वानगांव देहणुंरोड - घोलवड - वेवजी - संजान - भीलाइ दमणरोड - उदवाडा पारडी - वलसाड - डुंगरी - विल्लीमोरा - अमलसार-- बेडछा - नवसारी मरोली-और- सचीन होतेहुवे सुरतजाय, रैलकिराया दो -- रुपये - तीन आने
बयान सुरत,
कुलावाटेशनसें (१६७) मील उत्तर - और - भरुअछसे ( ३७ ) मीलखनकों तापीवायेकनारे समुंदरसे (१०) मीलपूरवजिलेका सदरमुकाम सुरतशहर एकगुलजारवस्ती है, सन (१८९१ ) की म दुमशुमारी केवख्त फौजीछावनीकों मिलाकर सुरतकी आबादी (१०९२२९) मनुष्यों की थी, टेशनकेपास एकसरकारीसराय वनी हुई जिसमें मुसाफिरलोग व खूबीकया मकरे. मकानवडे आलिशान और रंगरौशन कियेहुवे तापीकनारे सन (१५५० ) इस्वीकावना
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( ३६) वयान-मुरत. हुवा एकपुख्ताकिल्लाकि-जिसकीदिवार आठफूटचौडी और चारो तर्फ उमदागुंबज बनेहुवे है, विक्टोरियावाग एकदेखनेकीजगहहै, दिल्लीजानेकी सडककेनजदीक (८०) फूट उंचा घंटाघरसन (१८७१) का तामीरकियाहुवा-जिसकी-अवाजदूरदृरतकजाती है इसपरचढकरदेखोतो तमामसुरतशहर दिग्वपडताहै, हाइस्कुल-खेरातीअस्पताल-और-रुइकेकइकल-कारखानेवडेकींमतीवनेहुवे है, सडकोंपर रातकोंलालटेनोंमें झलाझलरौशनी, चंदनकीलकडीपर सुरतका नकासीकाम मुल्को मशहर-और (३६) रुपयेभरका सैर यहांपर जारी है. तापीनदीकापुल (१७) खंभोपर वनाहुवा निहायतपुख्ता, सतपुडेपहाडसे निकसकर नापीनदी ननदीकमुरतके (१४) मील पश्चिमकोंजाकर-ग्वंभातकीखाडीमें गीरी, मुरतजिलेके जंगलों में तंदुवे-भालु-मुअर-और-भंडिये वगेरा बहुतसेंजानवर रहाकरतेहै सन (१३४७) इस्वी महम्मदतुगलककी फौजने सुरतकों फतेहकिया, सन (१३७३) इस्वी में फिरोजशाह तुगलकने सुरतमें एककिल्ला तामीरकरवाया, उसवख्त तिजारतकी वडीतरक्कीथी. सन (१५७३) इस्त्रीमें बादशाह अखबरने सुरतकों फतेहकिया, जहांगीर और शाहजहांकी अमल्दारीकेवख्त सुरत अछीरवनकपररहा, पोर्तुगालवाले सुरतमें तिजारत करतेथे तवारिखोसे जाहिरहै, होलांडवालोकीकोठी सन (१६१६) इस्वीमें यहांपरवनी. सन (१६६८) में फ्रांसवालोकीभी कोठीवनी. सन (१८००) इस्वीके करीब सुरत और-कस्वा-रांदर अंग्रेजसरकारके इख्तियारमेंआया. सन [१८३७) इस्वी सुरतमें बडीमारीआगलगी, जिसमें कइमकानात जलगये, कहते है [१०] मीलतक आग उसवख्त फैलगइथी, तापीनदीकी बाढभी उसीसालम मुरतपर फिरगइ, जिससेबहुतनुकशान लोगोंकाहुवा, और कइसोदागिर उसवख्त मुरतकों छोडकर बंबइकों चलेगये,
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तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. ( ३७ )
जैनश्वेतांवर श्रावककरीब [४००] और-जैनश्वेतांबरमंदिर-बडाचौटा-नाणावट-गोपीपुरा-छापरियासेरी--हरिपुरा-नयापुरा वगेरामें बडीवडीलागतके बनेहुवे है, और उनमें-बडीवडीआलिशानमूः तख्तनशीनहै. कइजगह मिनाकारीकाम-और-उमदाचित्रकारी देखकरदिल तर-व-जाहोगा, मकान-साधुलोगोकेठहरने के बडे चौटमें-और-गोपीपुरा वगेरावनेहुवे है. धर्मशाला-शेठ--प्रेमचंद रायचंदकी जैनश्वेतांबर यात्रीयोंकेलिये आरामकी जगहहै, यात्रीलोगवहांकयामकरे. कोइमनानही, टेशनसे एक मिलके फासलेपर शहरकी आबादीशुरुहै, बाजार गुलजार और जिसचीजकी दरकारहो यहां मिलसकती है, सोना-चांदी-जवाहिरात-मेवामीठाइ-और-उमदा रेशमीकपडे जैसेचाहिये यहांपरमिलसकेगे. मुरतकीवी मुल्कोंमेंमशहूर है, सल्मेसितारेका काम यहां इसकदर उमदावनताहै जिसकीतारीफ वेंमीशलहै. तापीके सामने कनारे कस्वा-रांदेर-एक गुलजारवस्तीहै, मर्दुमशुमारी (१०९२६) मनुष्योंकी-दो-जैनश्वेतांवरमंदिर-और-कइ-जैनश्वेतांवरश्रावक यहॉपर आवादहै, हमने संवत् (१९४२) मे-सुरतशहर देखा-और -वहांचौमासाभी कियाहै. सूरतसें-अमरोली-सायन-कीम-कोसंबा -पानोली-और-अंकलेश्वर-होतेहूवे भरुच-जाना, रैल किराया आठ आने. [तवारिख-अश्वावबोधतीर्थ औरशकुनिकाविहार ]
भरुअछका दुसरानाम अश्वावबोध तीर्थहै, संस्कृतजवानमें घोडेकों अश्व-बोलतेहै. तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीने यहां एक-योडेको तालिमधर्मकी दिइथी-और-उसकों-ज्ञानहुवाथा-इसलिये इसका नाम अश्वाववोधतीर्थकहलाया. जमानेहालमें मनुष्यों को भी ज्ञानहोनादसवारहोगया- जानवरोंकों कैसे हो, ? पेस्तर जानवरों
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( ३८ ) तवारिख - अश्वावबोध - और - शकुनिकाविहार.
कभी - ज्ञानहो जाताथा - और - पूरवभवकी बात उनके ज्ञानमें दिखपडती थी. जिसघोडेकों तीर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामीने तालीमधर्मकीदिइथी - उसको - जातिस्मर्णज्ञानहुवा और वहअपनापुरवभव को देखलगा, ज्ञानियोंकी सोबतसें जानवरो कोंभी इतनीलियाकत होजातीहै, जमानेहाल में वैसेज्ञानी मौजूदनहीरहे- मगर - जैसे है उनकीभी सोवतकरनाचाहियें. जिस जसे घोडेकों ज्ञानहुवा - उमरभर उसने किसीजीवकों नहीसताया, जब उमरउसकी खतमहूइ मरकर - स्वर्गमं देवगतिको पाया, और जबवहां अपने अवधिज्ञान से देखनेलगा तो- उसको मालूमवाकि मुजे - जोस्वर्गमीला है बदलतीर्थकर - निसुव्रतस्वामीकी मीला है फौरन ! स्वर्ग भरुअल में आया, और जहांउसनेझान पायाथा - तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीका मंदिरतामीर करवाया समवसरणकी शिकलवनाइ, और उसकेसामने एक मूर्त्ति - घोडेकी तामीरकरवाइ तीर्थकरमुनिसुव्रतस्वामी - तालीम धर्मकी देरहे है - ऐसी शिकलभी बनायी, गरजकि- उसदेवने शहरभर अछ अश्वावबोधतीर्थकीनीवडाली उसरौजसे अश्वाववोधतीर्थ कहलाया
भरुअछका तीसरा नाम - शकुनिकाविहारभी - जैनकितावामेंमशहर है, सिंहलद्वीप में पेस्तर एक - श्रीपुरनामका शहर आवाद था, उसख्त वहां के राजाको सातलडके- और - एकलड़की जिसकानाम सुदर्शना था, निहायत खूबसुरत थी, वडीहोनेपर उसने इल्मपढा, और जब - लाइक उमरहुइ-तो- उसके वालिदकों इसवातका फिक्र - हुवा कि किसके शाथ इसकीसादीकरना चाहिये, एकरौजकी बात है सुदर्शनालडकी - अपने वालिद के पास बैठी थी शहरभरुअलका एकधनेश्वरनामका शाहुकार वहां उसके दरवार में आया, राजाको मुजरा किया - और - बाद उसके अपनीसफरकेबारेमें कुछवातें करने लगा, वातें होती थी कि अचानक उसको छींकआ, और मुंहसे
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नवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. ( ३९ ) नमो अरिहंताणं-पद बोला, मुदर्शनाको उसपढ़के सुनतेही मूर्छा आइ. और जमीनपर गिरपडी, लोगोन समझा बनिया कोइजादुगिर है, कुछ असरकिया मालूमदेता है, यहांतककि-कइलोग-उसकों मारनेपर आमादा हुवे. उधर सुदर्शनाको वादमूर्खाके जातिस्मर्णज्ञान पैदाढुवा, जातिस्मर्णज्ञान उसको कहतेहै-जिसकेजरीये अपना पूरवभव दिखाइ दे, मुदर्शना जब सचेतहुइ और देखतीहै-तो-उस वनियेपर सबलोग नाराजहोरहेहै, कहनेलगी क्यों इसकोंतंगकरते हो ? लोगोने कहा तुमपरइसने जादुकियाथा. सुदर्शना कहनेलगी सव-झूठेहो, यहवडानेकहै कि जिसकी निगाह धर्मपरइतनीवढीहुइहै, इसनेजो-नमोअरिहंताणंपदपढा, मुनतेही मुजेमूर्छा आइऔरज्ञान हुवा. इसवातकों मुनकरसवलोग उसकीतारीफकरनेलगे-औरकहने लगेकिवडानेक शख्श है,
राजानेमुदर्शनासे पुछाक्योक्या ! माजराहै, ? और किससबवसे तुं ! हेरानपरेशान है, ? उसनेकहा नमोअरिहंताणंपदमुननेसें मुजेज्ञानहुवा-और अव-मैं-अपनापूरवभवदेखतीहूं. नर्मदाकनारे भरुअछशहरके कोरंटवनमें-में-एक-शकुनिका-( यानी) आस्मानमें उडनेवाली चीलयी. औरवहांके एकपेंडपर-रहतीथी, वारीशकीमौसिमकेवख्त सातरौजतकवारीशहुइ. औरएकदमभरभी-नथंभी, मुजेइतनी भूग्वलगीकि-उसबख्न-मेराजिनादुसवार था, आठवेरौजपेंडसे उडकर-मैं-भरुअछशहरमेंगइ, और एकशिकारीके मकानपरदेखतीहुं-तो-मांसकाढेग्लगाहवादेखा, मैने उसमेसें मांसका एकटुकडाऊठाया. और उडकरकोरंटवनमेंअपने कयामीमकानपर आइ, शिकारीतीरकमानलेकर मेरेपीछे आया, औरनिशानालगाकर तीरमाराकी-मैं-जमीनपरगिरी, औरचिल्लाने लगी, एक-जैनाचार्य जोकि-उसरास्तेहोकर किसीतर्फको जातेथेमेरेरौनेकी अवाजमुनकर
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(४०) तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. पासआये. औमुजेपरमेष्टीमहामंत्रसुनाया. मैंनेउसमंत्रकों अछासमझा
औरदिलमेंयकीनलाइकि-दुनियामें-उमदाबस्तु धर्महै, तकलीफके मारे-मैं-वहां-मरगइ, औरआपकेघरआनकर लडकीपैदाहुइ, शिकारीमांसकाटुकडालेकर अपनेमकानकोंगया. राजाइसवातकोसुनकर ताज्जुवकरनेलगाकि-दुनियाज्ञानकीवरावर कोइचीजनही, मेरीलडकी निहायतखुशनसीबहैकि-जिसकोंपूरवभवकाज्ञान हुवा, मुदर्शनाकहनेलगी अपनेवालिदसें अवमुजे भरुअछशहरजानेदो, उ. सजमीनकोंदेखनेकी वडीउमेदहै, औरवहांजाकर उसतीर्थकी जियारतकरुंगी, राजानेअपनेदिवानकों हुकमदियाकि-बडीहिफाजत से इसकों भरुअछलेजाओ, धनेश्वरसाहुकारकोभी कहाइसकोअपनेसाथ लेतेजाना, समुंदरकेरास्तेकेलिये कइजहाजशाथदिये. नोकरचाकर चपरासी फौज तरहसरहकेहथियार-बाजा-नोवतखाना औरखानपानकी चीजेशाथदिइ.----
सुदर्शना वडीतयारीसे भरुअछआइ, शाथमें उसके बडीफौज सुनकर भरुअछके राजाने समझाकोइ गनीमआताहै, अपनीफौज तयाररखो, ऐसा-नहोकि-राज्य-छीनलेवे, दुनियामें सबको अपना फिक्रपडाहै, उसकाआना यात्राकेलियेथा, मगरराजासमझगया गनीमआताहै, सुदर्शनाकेजहाज समुंदरकनारे उतरे, और उसकादिवान नजरानालेकर जबराजाकेपास जानेलगा लोगोनेसमझलिया कोई गनीमनही, किसीराजेका दिवानहै, जवाह-मरुअछमें आया और नजराना सामनेरखा-तो-राजानिहायत खुशहोकर कहनेलगा कहांसे और किससबबकेलिये आनाहुवा, दिवाननेकहा ! मैं !!-सिंहलद्वीपकराजाका नौकरहुं-और उनकी लडकीकेशाथआपके शहरकी सफरकोंआयाई, सुदर्शनायहां एक जैनमंदिरतामीरकरवाना चाहती है, अगरआपका हुकमहोसवकाम ठीकहोगा, आपकेशहरका एक
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तवारिख-अश्वावोध-और-शकुनिकाविहार. (४१ ) शाहुकार जोकि-हमारेसिंहलद्वीपकों गयाथावहभी हमारेशाथहै, अगरआपका हुकमहो-तो-तमामफौज-लवाजमा-औरसुदर्शनाशहरमें आवे, राजानेकहा जल्दीआओ :-मैं-बहुतखुशहुं, मंदिरकेलिये जितनीजमीनचाहिये लेलो ! मैं चाहताहु-बडेजुलुससे मुदर्शनाकी पेंशवाइकिइजाय, औरशहरम कयामकरायाजाय, दिवाननेजाकर सब हाल मुदर्शनाकोंकहा. तयारीकिइ, औरभरुअछकेराजानेवडेजलसेके शाथ शहरमलाकर राजमहेलकेपास कयामकरवाया, मुदर्शनानेअश्वाववोध तीर्थकी जियारतकिइ. औरतीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीकी मूर्तिकी पूजाकरके उपवासव्रतकिया औरकहनेलगी शुक्रहैआजका रोज-जो-मुजेकमनसीबको इसतीर्थकीजियारत नियामतहुइ. जोजो शख्श तीर्थोकीजियारतकों जातेहैलाजिमहै-उनकों वहांजाकर कुछ व्रतनियमकरना,
मुदर्शनाने भरुअछमें जमीनमौललेकर जैनमंदिरखनवाना शुरु किया औरबहुतरौजतकवहारही, धर्मचुस्तआदमी तीर्थकी-जमीनको अपनेवरसें भी बढकरसमझतेहै, जिसजैनाचार्यने उससुदर्शनाके जीवकों शकुनिकाकेभवमें परमेष्टिमहामंत्र भुनायाथा-भरुअछमेंपधारे आमलोग और सुदर्शनाउनके दर्शनोंकॉगइ, और पुछाकि-महाराज ! मैनेपूरवभवमें क्यापपाकियाथाकि-जिससे-मैं-शकुनिकाहुइ ? और किससबबसे शिकारीने मैरीजानलिइ. आचार्य ज्ञानीथे उनोनेकहा तुं ! शकुनिकाकेभवसें पेस्तरकेभवमेंएक-शंखनामके राजाकीलडकीथी, जोकि-चैताढयपर्वतकी उत्तरलाइनमें सुरम्यानगरीकी अमल्दारीकरताथा, उसभवमेंतेरानाम विजयाकुमारीथा, एक रोजजयतुं ! अपने रिस्तेदारोंकेशाथ दखनलाइनको जातीथीरास्तेमें एक नदीकेकनारे अपनादिल बहलानेकेलियेइधरउधर घुमनेकोंगइ, वहांपर एकवडालंबा सांपनदीकनारे फिरतादेखा. तेनेउसको एक
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( ४२ ) तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. पथ्थरमारा और पीछेफिरफिरकर निहायततकलीफदिइ, उसतक लीफसे उसकामरना होगया, औरतुं ! वहांसेअपनेरिस्तेदारोंकेशाथ आगेकों रवानाहुइ, आगेजाकर दूसरेपडावमेंतेने एकजैनमंदिरदेखा, और उसमेंजाकर जिनेंद्रकी मूर्तिके दर्शनकिये और बडीभक्तिकेशाथ देवकीइबादतकिइ, जवरसोइजिमनेकी तयारीमथी-एक-साधवीवहांतेनेदेखी, उनकेपासजाकर धर्मकीवातेमुनी और खानपानकीची. जदेकरनिहायत खिदमतकिइ, वहांसेचलकर बहुतमुदततक तुं ! मुसाफरीकरतीरही, वैताब्यपर्वतकी दखनलाइनकोंजाकर वादकितने कअर्सेके फिरअपनेघरकोलोटी, फिरवहांसें मरकर इसीभरुअछके कोरंटबनमें शकुनीपरींदहुइ. जिससर्पको तेनेपथरसेंमाराथा-वह शिकारीहुवा, तेने उसकेघरसे मांसकाटुकडाउठाया, और उसनेतेरेको तीरसेंमारडाली. मैने--जोतुजकों परमेष्टिमहामंत्र मुनायाथा बदौलतउसकी-तुं ! सिंहलद्वीपमें राजकुमारीहुइ, जो तेनेपूरवभवमें जिनमंदिरकेदर्शन और साधवीकी खिदमतकिडथी बदौलतउसकीतेने-यहां जैनधर्मपाया,
मुदर्शना अपनापूरव भवमुनकर निहायतखुशहुइ, और कहने लगी आपकी-मैं-बहुतआसानमंदडं, और तारीफकरतीहूं आपके ज्ञानकीकि-ज्ञानीहो-तो-ऐसेहो, मुदर्शना उसरौजसे निहायतधर्म पावंदहुइ. और-जो-मंदिरबनवाना गुरुकियाथा पुराकिया. नर्मदा नदीकनारे कोरंटवन-शकुनीका-और-बोडवृक्षका-आकार, शिकारी उसकेतीरसे किसकदर अपनामरनाहुवा-जैनाचार्यने किसतरह प. रमेष्टीमहामंत्र मुनायाथा-वगेरा जोजोहाल अपनेपरगुजराथा-तमाम आकार शंगमर्मरपथरमे उकेरवाकरवनवाया. और अपनेपूरवभवके नामसे उसमंदिरकानाम शकुनिका विहाररखा, धर्मशाला--औरदानशाला वगेरावहांवनवाइ, और तीर्थकेखर्चेकेलिये बहुतदौलतदे
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तवारिख - अश्वावबोध - और - शकुनिकाविहार ( ४३ )
कर अपनेवतनकोंलोटी. शकुनिकाविहारतीर्थ उसरौजसें जारी हुवा, सुदर्शनावालिदने एकराजकुमारकेशाथ उसकी सादीकि, तावेउमरउसने सुखचेनपाया, धर्मकीतरक्कीकि, और उमरपुरी होनेपर मरकरस्वर्गकोगइ. –
,
•
आजकल कइलोग पूरवजन्मकों नहीमानते और इसवातपर हंसी उड़ाते है कि - पूरवजन्म किसनेदेखा ? मगरखयालकरो ! पूरव जन्म-न-होतातो-जन्मतेही एकमुखी-और- एकदुखी क्यों ? एक शख्श अपनाकामखराबकरता है मगर अपनेकों उसपर मोहब्बत पैदा होती है, औरएकशख्स अपनेको चाहता है, मगर उस पर अपनेकों मोहब्बतनही होती. बतलाओ ! इसकी क्या वजह है ? इसकीवजह यहहै कि-वह-तुमारेपूरवभवका दुश्मन है.
(सूत्र - आवश्यके अवलअध्ययनका फरमाना है कि - )
igradaiपः स्नेहवपरिहीयते, सविज्ञेयो मनुष्येण - एषमेपूर्ववैरिका, १, दृष्ट्वा वर्धतेस्नेहः - कोपश्चपरिहीयते, सविज्ञेयोमनृष्येण - एषमेपूर्वबांधवः,
सबुतहुवा पूर्वजन्मजरुर है, जिसकोदेखकर अपनेको क्रोध पैदा होता है जानना चाहिये यह अपनापूरवभवका कोइ दुश्मन है, और जिसकोंदेखकर मोहब्बतपैदा होती है - जानना चाहिये यह अपने पूरवभघका air खैरख्वाह है, अश्वाववोध - और - शकुनिका विहारतीर्थ मुनिम्
स्वामी शासनकालसें जारी हुवेथे. जिसको आज करीब ( ११८७४३३) वर्षगुजरे, जिसकोशकहो कल्पसूत्रखोलकर देखे, तीर्थकर मुनिसुव्रत स्वामी के पीछे तीर्थकरनमीनाथहुवे, नमिनाथजी के बाव-तीर्थकरनेमिनाथ और नेमिनाथ के बाद तीर्थंकर पार्श्वनाथहुने,
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(४४ ) तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. पार्श्वनाथजीकेपीछे-तीर्थकरमहावीरस्वामी और वादउनके निर्वाण होनेके (४७० ) पीछेविक्रमसंवत् जारीहुवा, बडेबडेखुशनसीवइस तीर्थकीतरकी और मरम्मतकरतेचलेआये. मंत्रविद्याके-चक्रवर्तीजैनाचार्य-श्रीमत्-रखपुटाचार्यमहाराज-जवभरुअछमें पधारेथेमंत्रबलसें बडेबडेचमत्कार उनोनेयहाँदिखलायेथे, आवश्यकमूत्रके अवल अध्ययनमें उनकावयानदर्ज है,-जमाने-राजा-कुमारपालके-जैनाचार्य-हेमचंद्राचार्यभी भरुअछमपधारेथे. उसवख्तएक-मिथ्यादृष्टिसैधवादेवी-जोकि-यात्रीको तकलीफदेतीथी, हेमचंद्रमूरिजीने मंत्र बलसे उसको हठादिइ. बडेबडे आश्चर्योकी भूमि-भरुअछतीर्थ-निहायतपुरानीजगहहै, कहांतकवयानकरे ! जिसकेवडेभाग्यहो-इसतीर्थकी जियारतकरे, कइदफेतुम भरुअछकेरास्ते बंबइगयेआये, मगर ताज्जुवकीवातहै भरुनछतीर्थकी जियारत-नहि-किइ, पुनासिबहै अगर मौकावनेतो जरुरइसतीर्थकी जियारतहासिलकरना. हमने इसतीर्थकी जियारतकिइहै. अश्वावबोध-और-शकुनिका विहारके पुरानेमंदिर अवनहीरहे, मगरतीर्थकर मुनिमुव्रतस्वामीका अतिशय युक्त-मंदिर अवभी मौजूद है. .
जमानेहालमें-वंबइकुलावाटशनसें (२०४) मील-उत्तर, और बडोदाटेशनसे (४४) मील-दरखन-नर्मदाकनारे जिलेकासदर मुकामभरुअछशहर अबभीरवन्नकलिये है. सन (१८९१) इस्वीकी मर्दुम-शुमारीकेवख्त-भरुअछकीमर्दुमशुमारी (४०१६८) मनुष्योंकीथी, भरुअछकीचारोतर्फ पेस्तरपुख्ताकोट वनाहुवाथा उसका कुछहिस्सा दखनकीतर्फअबभीमौजूदहै, करीब (१) मीललंबीऔर (३०) फुटऊंचीपथरकीदिवार अबभीमजबूतबनी हुइहै,-नर्मदाके पास-पहाडीपरएकपुरानाकिलाकि-जिसमें--अस्पताल-गिर्जाघरस्कुल-म्युनसीपलऔफिस-लाइन्नेरी--जिलेकीकचहरीयां-जैलखा
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तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. (४५), ना-और-होलांडवालोंकी पुरानीकोठीवनीहुइहै, नर्मदाकीचौडाइ भरुअछकेपासकरीब (१) मील-औरउसपरकींमतिपुलतामीर है, कइजगहकेपुल अपनीनजरसेदेखेगये भगरयहपुलभी-हिंदमें-एक नामीग्रामी है, अमरकंटकके पाससेनिकसकरनर्मदा मध्यहिंदमहोती हुइ (७२०) मील-बहकर-भरुअलसे (३०) मीलपश्चिमकों जाकरसमुंदरकोमिली,
सन (६०) इस्वीसे (२१० ) इस्वीतक भरुअछमें जैनराजोंकाराज्यथा, चीनामुसाफिर हवांक्तसांग-जोकि-सन (६२९) इस्वीसें (६४५) तकाहिंदौरहाथा अपनेसफरनामें बयानकियाहै मैने-भरुअछशहरकों देखा, उसवख्त बौधोकीभीवहां आबादीथी, और कड़बौधमंदिरथे, सन (७४६ ) इस्वीसें-सन (१२९७ ) इम्वीतक भरुअछ-अणहिल्लपुरपटनके राजपुतराजोके तावेमें रहा. वाद मुसल्मानोंकी अमल्दारीकेवख्त उनकीअमलदारीभी यहांहुइ, जमानेहाल सरकारअंग्रेजवहादूरकी अमल्दारी यहांपरजारीहै, वडे बडेमकान-और-बाजार-निहायतलंबा-तरहतरहकी दुकाने और जिसचीजकी दरकारहो-यहांपर-मिलसकती है, जैनोकी आबादी करीव ( ५०० ) मनुष्योंकी-और-महोले-श्रीमालीमें-तीर्थकरमुनि सुव्रतस्वामीका निहायतउमदा और शिखरवंदमंदिरतामीरहै, और तीर्थकरमुनि मुव्रतस्वामीकी-अतिशययुक्तमूर्ति-उसमें तख्तनशीन है. एकमंदिरपुरेमे और कइश्रावकवहांआवादहै, जैनश्वेतांबरयात्रीयोकेलिये एकधर्मशाला-श्रीमालीमहोलेमें बनीहुइहै, जोकोइजैनयात्री-इसतीर्थकी जियारतकरनाचाहे शौखसेकरे, कोइतकलीफ-नहोगी,-जिलेभरुअछमें इसवख्तजवान गुजरातीबोलीजातीहै,-कौशांवीकारहनेवाला धवलशेठ-पांचसोजहाज लेकरभरुअछसेसमुंदरके रास्ते मुकदखनकी मुसाफरीकोंगयाथा, बडेबडेआश्चर्योकी भूमि-भ
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(४६ ) बयान-शहर-बडोदा. रुअछ-शहरहै, कहांतकवयानकरे !!-जिनकेवडेभाग्यहो-इसतीर्थकी जियारतकरे. भरुअचसे-रवानाहोकर चमारगांव-पालेज-लकोदरा -मियागांव-काशीपुरा-इटोला-वरनामा-मकरपुरा-विश्वामित्रीहोते शहरवडोदेकों जाना, रेलकिराया नवआने.
के बयान-शहर-बडोदा.
बंबइसे (२४८ ) और-मुरतसे ( ८१) मीलउत्तरकोंबडोदा शहरएकउमदाजगहहै, सन (१८९१) इस्वीकी मर्दुमशुमारीकेवख्त फौजीछावनीकों मिलाकर बडोदेकी मर्दुमशुमारी ( ११६४२० ) मनुष्योंकीथी बडोदेराज्यमें (५११) स्कुल, वडोदेकेतख्तपर जमानेहालमे महाराज-सियाजीरावबहादूर-तख्तनशीनहै विद्या
और इल्मकीतरक्की-और-सबरिया-याचैनकररही है, बंबइ हातेमें चौथे नंबर शहर बडोदा-बडेबडे शरीफोंके–कमतीमकान बाजारबडागुलजार-जिसचीजकी दरकारहो-यहां मिलसकती है, इक्का-बगी-हरवख्तकिरायेपर तयारहै वेठकरजहां-जी-चाहेसैरकरआओ, रैलटेशनसे थोडीदूरपर (४००) फुटलंबी और (१२५ ) फुटचौडी-बडीकोलेजजिसमें-बी-ए-तकइल्मपढायाजाताहै बडीलागतकामकानहै, वडेवागमेंचीडियाखानाजिसमेंतरहतरहकेजानवररखेहुवे है. नजरबाग-एकगुलजारचमन जिसमें तरहतरहकीवनास्पति औरऐंडखडे है, एकमहेलमेंफर्समारबलपथरका-और-अजनवी-चीजेंरखीहुइ--देखकरदिलखुशहोगा, टेशनके पासदोधर्मशाला-वास्तेमुसाफिरोंके बनीहुइहैजिसमेंबडीधर्मशाला दिवानसाहबकी तामीरकरवाइहुइ निहायतपुख्ताहै, अजवा-झीलसें जलपानीकाशहरमें लायागयाहै, बडोदेमें- जैनोकीआवादीकरीब
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दरबयान-खंभात-आर-अहमदाबाद. (४७) (२०००) की-और-कइबडेआलिशान जैनश्वेतांवरमंदिर बनेहुवे है, दर्शनकरकेदिलखुशहोगा. घडियालीपोलमें-श्रावकोंकीआबादी ज्यादह,-और--जैनश्वेतांवरमुनिजनोकेलिये मकानभीइसीमहोलेमें है, बडोदेसें अगरडभोइकस्बेको जानाहोतोब्रांचलाइनमें वहांजाना, करीब (१४) मीलकेफासलेपर दखनकीतर्फडभोइकस्वा आबादहै, सन (१८९१ ) कीमर्दुमशुमारीकेवख्त-डभोइकीमर्दुमशुमारी (१४५३०.) मनुष्योंकी-जिसमेंकरीव ( ५००) जैनलोगहै. जैनश्वेतांवरमंदिरऔर-जैन उपाश्रय-वगेरावनेहुवे है, डभोइकमंदिरोके दर्शनकरकेवापीस बडोदेआना, औरवडोदेसेरवाना होकरवाजुवावासद-नावली-आनंदजकशन-आगास-पेटलाद-नार-तारापुरऔर-सयामाहोनेरखंभातजाना, रैलकिरायानवआना नवपाइ,
बयान-शहर-खंभात.] बंबइहातेमें समुंदरकनारे खंभातशहरपुरानीवस्ती है, सन (१२०० ) केकरीवखंभातशहर अणहिल्लपुरपटनके महाराजोकेतामेथा. सन (१२०.७) इस्वीमुसलमानो नजब अणहिल्लपुरपाटनकों फतेहकियाखंभात उसवख्ततरकीपरथा, सन (१६१३) के असेमें जवहिंदमें अंग्रेजीकी तरक्की होनेलगी-उसवख्त-पोर्चुगाल-और-होलाइवालोंकीकोठी खंभातमेंबनी इथी, बादजबमुरतकी तरकीहुइखंभातकीनिजारत कमहोनेलगी, सन (१८९१ ) की-मर्दुमशुमारीकेवख्त खंभातीमर्दम शुमारी-(३१३९० ) मनुष्योंकीथी, जैन श्वेतांबरश्रावकोकी आवादीऔर कइबडेबडेजैनमंदिर यहांपरमौजूद है. जिसमेंस्थंभन-पार्श्वनाथजीका-मंदिरनामी है, मुनिजनो कोठहरनेकेलिये मकान-और-जैनपुस्तकालय यहांबहुतवडाहै जोकि राजाकुमारपालका कायमकियाहुवा-ताडपत्रपरलिखेहुवे जेनग्रंथइसमें
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(४८) दरवयान-खंभात-और-अहमदाबाद. मौजूदहै खुशनसीबोंने किसकदरइल्मकी तरक्कीकिइथी ! आजउसकी हिफाजतहोनादुसवारहोगया,लकडीऔरपथरकाकामयहांकामुल्कोमें मशहूरहै. अमल्दारीयहांपर नवाबसाहबकी-शाहिमकान बडीलागतके बनहुवे बाजारवडीरवन्नकका-और-उसमें जिसचीजकीदरकारहो मिलसकती है, हमने शहरखंभातकों देखाहै, यात्रीयोंकों ठहरनेकेलिये धर्मशालाबनीहुइहै. कोइतकलीफ-नहोगी, खंभातसेंजहाजमें सवार होकर समुंदरकेरास्ते--कावी-गंधारतीर्थकोंजाय, जोकरीव--सात कोशकेफासलेपरहै, कावी-औरगंधार-दोनोंअलगअलग कस्बे है मगरवसवब तीर्थकएकहीनामसेमशहूरहै, दोनोमेंबडेबडे कीमतीमदिर बनेहुवे-एकमेंतीर्थकर रिषभदेव-और एकमतीर्थकर धर्मनाथजीकी मूर्ति-तख्तनशीनहै, गंधारमें अमीझरा-पार्श्वनाथजीकी मूर्ति निहायतखुबसुरत-दर्शनकरके दिलखुशहोगा, धर्मशाला दोनोजगह बनीहुइ-यात्री-इनमेंकयामकरे-और-तीर्थकी जियारतहासिलकरे, कावी-गंधारमें कोइजैनश्वेतांवरश्रावकनही. खंभातकेजैन श्वेतांवरश्रावक इसतीर्थकी निगरानीरखतेहै, कावी-गंधारसेंफिर उसीसमुंदरके रास्तेखंभातआवे और खंभातसें रैल सवार होकर-सयामा-तारापुर नार-पेटलाद-आगास-आनंद-बोरीआवी-नडियाद -महम्मदाबाद -और-बारजाहोतेहुवे शहर अहमदावादको जाय, रैलकिराया दश आने नव पाइ.
बयान-शहर--अहमदाबाद, बंबइहातेमें मुल्कगुजरातका शिरोताज साबरमतीके वायेकनारे अहमदाबाद एकगुलजारशहरहै,-वंबइके कुलावेटेशनसे ( ३१०) मील उत्तर-अहमदाबाद-जंकशन-वडीलागतका बनाहुवा-झलाझल दौलत-रंगरौशनकियेहुवेमकान-और-खूबसुरत-कमालहुस्न
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दरवयान-खंभात-और-अहमदावाद. ( ४९ ) मर्द-औरत-हरजगह नजरआते है, पेस्तर अहमदाबादमें (३६०) महोले आवादथे, औरवडीरवनकथी. अवभी किसीकदर कमनही. इक्का-बगी-हरजगह तयारमिलते है, किरायादेकर जहां-जी-चाहेसैर करआओ.-सन (१४११) इस्वी में सुलतान अहमदने-शहर-पनाह बनाया-अहमदाबादकी तरकीकिइ. सन (१४८६) में-महम्मुदशाह वेगडाने शहरपनाहकों दुरस्तकरवाया, सन (१५११) में अहमदाबादकी आवादी और तिजारतबही, सन (१५७३) में बादशाहअखबरने-अहमदावादको फतेहकिया, सन (१७३८) में महाराजदामाजी-गायकवाडने अहमदावादके तख्तपर अपनीअमलदारीकिइ, जमानेहालमें राज्यअंग्रेज सरकारकाजारी है. मुल्क गुजरातमें-सुरत भरुअछ-खेडा-पंचमहाल-और-अहमदाबाद-ये पांचअंग्रेजी-जिले है.-महीकांठा-रेवाकांठा-येभी-एजन्सी है, ___सावरमतीनदीकापट (६००) गजकाचौडा हरवख्त गहरापानी इसमेंभरारहताहै, अरवलीपहाडसें निकलकर दखन-पश्चिमकों(२००) मीलतक वहतीहुइ खंभातकेपास समुंदरकीखाडीको जामीली. शहरसे (३॥) मील पूर्वोत्तर फौजीछावनी बडीगुलजारजगहहै, अहमहाबादकी मर्दुमशुमारी फौजीछावनीको मिलाकर (१४८४१२) मनुष्योंकी, टेशनकेसामने वास्तेमुसाफिरोंके धर्मशालाबनी हुइहै, यात्रीइसमें कयामकरे, शहरकीसडकें लंबीचौडी-और-रातकोंउनपर लालटेनोंकी रौशनीहुवा करती है, मानकचौक-जहोरीवाडा-मांडवीपोल-तासापोल-दाणापीठ-वगेरावडेवडे महोले है. जैनश्वेतांवर मंदिरअंदाज (१२५) वडीलागतके और पुख्तावनेहुवे है, बतौर चैत्यालयके छोटे छोटेकइमंदिरहै, शहेरकीउत्तरतर्फ सडकसे (६००) गजदूर हठीभाइका तामीरकरवायाहुवा तीर्थकर धर्मनाथजीकावडा आलिशान-मंदिर-कावीलेदीदहै,सन (१८४८) मेंयह (१००००००)
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(५०) दरवयान - खंभात-और-अहमदाबाद:
लाखरुपयेकी लागतका तामीर कराया गया, (१३०) फुटलंबा और (१००) फुट चौडा - चातर्फ छोटेछोटे ( ५२ ) मंदिर और उनमें मूर्तियें जायेनशीन है, तीर्थकरधर्मनाथजीकी मूर्ति - निहायत खूबसुरत और इसके ललाट और खंधोपरमयजवाहिरात - सोनेकेपते लगेहुवे है, शहरमें जैन मुनियों को ठहरनेकेलिये कइमकान कइजैन पुस्तकालय - और पाठशाला यहां परवनी हुई है, चांदीका -रथ- पालखी और-देवभूतियों के गहने - उमदा उमदा यहांवनायेजाते है, सल्मे- सीतारेके चंदोए - रुमाल - जैन मुनियो केलिये-काष्टकेपात्र - तर्पणी और रजोहरणवगेरा जोजो चीजें जैनों कों - वास्तेधर्मोपकरणके दरकार होती है यहांना जाती है, कइलेखकलोग यहाँजैन पुस्तक लिखते है. -छापखानेभयहां कहै और उनमें उमदाकिताब छपती है.
अहमदाबादका कमख्वाब - एक मशहूर चीज है, अहमदावादी कागज निहायत पुख्ता - और - मुल्कोमैनामी है, - अहमदावादकीदस्तकारी - जिसनेदेखी हजारहजारतारीफ किड, बडेबडे उमदा कारीगर यहां मौजूद है, जैनबोर्डिंग-श्राविकाशाला-और-जैन अस्पताल - यहां बने हुवे है, व्याकरण - काव्य- कोस- न्याय और अलंकारके पढेवे आला दर्जे के विद्वान - और - निमित्त ज्ञानी पंडित - यहां के मुल्कों में नामी है.
अहमदाबाद से रवाना होकर साबरमती - आमलीरोड - सानंदछारोडी - जाखवाडाहोतेहुवे - टेशनविरमगांव-जाना, रैलकिरायादस आने, अहमदाबाद (४०) मीठपश्चिमकों विरमगांव एक डाकस्वा है, मर्दुमशुमारीवीरमगांवकी ( २३२०९) मनुष्यों की और करीब (२०००) जैन श्वेतांवरलोग यहां पर आबाद है, जैनश्वेतांबर मंदिर और मुनिलोगो को ठहरने के लिये मकानवनेहुवे है, टेशनकेपास सरकारी
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बीचवयान-वीरमगांव-वढवान-और-लींमडी. ( ५१ ) धर्मशालामौजूदहै, इसमेंमुसाफिरलोग व-खुबी कयामकरे, कोइमना नही, वीरमगांवकी चारोतर्फपुख्ताकोट-कपडेबनानेकीमील-अस्पताल-स्कुल-और-कचहरीवगेरा वडीलागतकेमकानहै, बाजारमें जिसचीजकीदरकारहो मिलसकेगी, वीरगांवसें सांवलीरोड-लीलापुररोड-लखतरहोतेहुवे धढवानजंकशनजाना, रैलकिरायाआठआने,
वीरमगांवसे (३९) मीलदखनऔर अहमदाबादसे (७९) मीलपश्चिमकों बढवानएकनामीशहरहै, छावनीऔर बीचशहरकेकरीब (४) मीलकाफासलाहोगा. जिलेकाठियावाडमें बढवानएकपुराना शहरहै, औरयहांसेकइ रैलवेलाइनगइहै, वढवानकी मर्दुमशुमारी (२४६०४ ) मनुष्योंकी-जिसमेंकरीव (२०००) दोहजार जैनश्धेतांवरश्रावक आवादहै, जैनश्वेतांबरमंदिर-औरयात्रीयोंकों ठहरनेके लिये धर्मशालायहांवनी इहै. वढवानकीचारोंतर्फ पथरकीदिवारदखनकीतर्फराज्यमहेल-और-रुइकीतिजारत यहांपरज्यादहहोती है, बाजारगुलजार औरजिसचीजकीदरकारहो यहांमिलसकेगी, सरकारीऔफिस-जैलखाना-अस्पताल-घडीकावुर्ज--धर्मशाला-औरस्कुलबडीलागतके मकानहै, वढवानराज्यमें (२०) स्कुले-औरउसमेंकरीव (१३००) लडकेइल्मपाते है, बढवानसें एकखुश्कीसडक राजकोटकोंगइहै; वढवानकेमहाराज-झालाराजपुतकहलाते है. और धर्मपरसावीतकदमहै, बढवानपमें एकजैनश्वेतांबरमंदिर औरधर्मशालावनीहुइहै, वढवानसेंआगे लींमडीकोजाना, रैलकिरायाचारआने, _धोलाजंकशनसे (५५) मीलउत्तर झालावाडमांतमें एकछोटी नदीकेउत्तरकनारे लींमडीकस्वा आबादहै, लींमडीकी मर्दुमशुमारी (१३४९७) मनुष्योंकी-जिसमेंकरीब (२०००) दोहजारजैनश्वे
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( ५२ ) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. . तांवरश्रावकलोग आबादहै, जैनश्वेतांवरमंदिर औरबहुतबडीआलिशानधर्मशाला एक-जैनश्वेतांवरश्राविका-श्रीमती-पुरीवाइकीतामीर किइहुइ यहांपरमौजूद है. यात्रीलोग इसमेंकयामकरे आरामकीजगह है,-लींमडीराज्य काठियावाडके दुसरेदरजेके राज्योंमेसें एकदेशीराज्यहै, महाराजलींमडी झालाराजपुतकहलातेहै उमदाराज्यमहेलअस्पताल-और-कच-हरीयहांपर बडीलागतकमकानहै, लींमडी राज्यकी जमीनसपाट-और एकछोटीनदी इसमेंवहतीहै, रुइ और अनाजकी पैदायशज्यादह और लोग मिलनसार है.
लींमडीसे रैलमेंसवारहोकर-चुडा-रानपुर-कुंडली-बोटाद-उजलवाव-धोलाजंकशन-और-सनोसरा होतेहुवे-सोनगढटेशनजाना रैलकिराया एकरुपया,-टेशनसोनगढपर जैनश्वेतांवर यात्रीयोकों ठहरनेकेलिये धर्मशालाबनीहुइ-ठहरनाहो-एकरात-यहांठहरे-यातीर्थशत्रुजयको जानेकेलियेआगेकों रवानाहोवे,-तीर्थशत्रुजय-यहांसें करीव (७) कोशकेफासलेपरहै, और इक्का-बगी-बेलगाडी वगेरा सवारी तयार मिलती है,
[तवारिख-तीर्थ शत्रुजय, ] (करीबशहेरपालीताना-जिले-काठियावाड-मुल्कसौराष्ट)
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मुल्क-सौराष्ट्र-पेस्तरवडेघेरेमें आवादथा. झालावाड-गोहलवाड-सौराष्ट्रप्रदेश और हालारइसीके भीतरहै,-सोनगढटेशनसे(७) कोशदूरपलिताना एकगुलजारशहरहै, तीर्थकरमहावीरस्वामीके निर्वाणहुवेवाद (४६७)-और-विक्रमसंवतके (३) वर्ष पेस्तरजैनधमके बडेआलिमः पादलिप्ताचार्य-यहांपधारेथे. जबसें शहरपालिताना
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. ( ५३ ) आवादहुवा, पेस्तरयहांआदि पुरशहरआवादथा, व-सबबतीर्थ भूमिकेयहां हरवख्तरवनक बनीरहती है, कोइदिनऐसा-नहोगा-जो-यहां यात्री-न-आयेहो. सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीकेवख्त पालितानेकी मर्दुमशुमारी (१०४४२) मनुष्योंकीथी. जैनश्वेतांवरश्रावकोके घरकरीव (५००) पैदाश-रुइ-और अनानकी ज्यादहहोती है, दिवानी-फौजदारी महकमे यहाँपर बनेहुवे है, पालितानेकेनीचे एकनदी हमेशांबहती है, शहरमें जैनश्वेतांवरमंदिर (३) सबसेबडा तीर्थकररिषभदेवभगवानका-दूसरा गोडीपार्श्वनाथजीका, नयेपुरेमे पासमोतीकडीयाकी धर्मशालाके और बहारशहरके तलहटीके रास्तेपर तीसरा बाबुमाधवलालजीजहोरी कलकत्तेवालोंका, तीनोमंदिर शिखरवंद बडीलागतकेवने हुवे है, दर्शनकरके दिलखुशहोगा, कारखाना आनंदनी कल्यानजी-जोकि-तीर्थ-शत्रुजयका एकखजानाहै, मुनीम-गुमास्ते-नोकर-चाकर--घंटा-घडियाल-चौकीपहरा-और--चपरासी वगेरा सवठाठ शाहानावनाहुवा, नोबतखाना यहांपरदिनमें चारदफे वजताहै. और हमेशां अमनचैनवनाहै, पालितानेका बडाबाजार राजमहेलसेंलेकर मांडवी-और आगेशजयदरवजेके बहारतकचला गया, खानपानकीचीजें-मेवा-मिठाइ-पुरी-कचौरी-आटा-दाल-घी दुध-जितनाचाहेलेलो ! सोना-चांदी-कपडा-फल-फुल-सबचीजें यहांपरमिलती है. जोकोइयात्री यहांआताहै आरम-और-चैनपाता है. धर्मशाला यहांपर कइवनी है,
१, सबसे बडीधर्मशाला शेठ मोतीशाहकी. २, दूसरी हेमामाइशेटकी. ३, तीसरी हठीभाइशेठकी. ४, चौथी मोतीकडियाकी, जोकिं-हेमामाइशेठका कारकुनथा, ५, पांचवी राधनपुरवाले मशालियाकी. ६, छठी मुरतवाले डाह्याभाइ-भूपणशाहकी.
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( ५४ ) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय,
७, सातवी भंडारीजीकी,
८, आठवी अहमदावादवाले, मुरजमलजीकी, - ९, नवमी अहमदावादवाले ललुभाइकी. १०, दसमी पटवा जोरावरमलजीकी, ११, ग्यारहमी जोधपुरवाले राजारामजी गडियाकी. १२, वारहमी शेठ नरसिंह नाथाकी. १३, तेरहमी शेठ नरसिंह केशवजीकी. १४, चौदहमी मोती सुखीयाकी. १५, पनराहमी गोधरावाले रतनचंद वीरचंदकी, १६, सोलहमी जामनगरवालोंकी, १७, सतराहमी बाबुधनपतसिंहजीकी. १८, अठारहमी सुरतवाले कस्तुरचंदजी परतापचंदजीकी. १९, उन्नीसमी बाबु पन्नालालजी पुनमचंदजीकी, २०, बीसमी कोटावाले मोतीचंदजी करमचंदजी, सकनाये
पाटन-मुल्क गुजरात, २१, एकीसमी भरुअछवाले रतनचंदजीकी, २२, बाइसमी कलकत्तावाले बाबु माधवलालजी जहोरीकी, २३, तेइसमी कछी देवजी पुनसीकी, २४, चोइसमी सुरतवाले नगीनदासजी कपुरचंदजीकी, २५, पचीसमी भावनगरवाले अमरचंद जशराजजी वहोराकी. २६, छवीसमी उज्जमवाइ अहमदाबादवालोंकी. २७, सताइसमी वडोदेवाले प्रेमचंद मोदीकी.
२८, अठाइसमी, गोघावालोंकी. __ औरभीकइ धर्मशाला यहां वनरही है, यात्रीइन धर्मशालामें . जहां दिलचाहे क्यामकरे, कोइमना नहीकरसकता,
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AAP
तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (५५) Re- [ तालीम-धर्मशास्त्र,-] तुम इसवख्त तीर्थमेआयहो धर्मपरसाबीतकदमरहो, गेरजगहकाकियाहुवापाप तीर्थमें छुटसकताहे, मगरतीर्थमेकियाहुवा निकाचितपापहर्गिज! नहीछुटसकता. तीर्थमानकरइश्क-और-मोहब्बतसे परहेजकरो, तायेउमर दुनियादारीके झगडोमें फसेरहे-अबमुस्तीरफाकरो. औरधर्मपर कोशिशकरो, जिससेतुमारा बेंडापार हो, तीर्थमें आनकर बुरेकामोंकी गुफतगु मतकरो जिससेतुमारीरुह दोजककी सफरकरे, शास्त्रोंकाफरमाना दुरुस्त औरसहीसमझो, इस परशक मतलाओ, खयालकरो ! दुनियाकेकामोंसें तुमकिसकदर हेरानपरेशानहुवे,---इसवख्ततीर्थमेंआयेहो-ऐसामतकरोकि-बेरंगरह जाओ. देवगुरु धर्मकाहमेशां एहसानमानो, बदौलतजिसकी तुमने मनुष्यका चौलापाया उसकोमतभुलो, हमउसको खुशनसीब समझते है-जो-धर्मकों तरकीदे. यहखूबयादरखोकि--धर्महीदुनियामें उमदाचीजहै, तकदीरउसीकी खूबसुरतहै-जो-धर्मकीवढवारीकरे, जवानीचलीगइ, मगरक्याकसुरहै उसका ? जवानीकिसीकी कदीमहोकरनहीरही. धर्महीतुमारा कदीमीदोस्तहै. तीर्थमेंआनकर रहमकरो, जिससेआईदे तुमाराभलाहो, तीर्थमेंआनकर पर्देकोरुकसतदो, तकसरऔर हुजतमतकरो, एकतोकडुआकरेला और दूसरानीबका असर, फिरतोक्याकहना ! हजारवातकीएकबात, तीर्थमेंआनकर नेकीकरो, और इसबातपर शुकरगुजारोकि-तीर्थकीजियारततुमकों नियामतहुइ. पूजाकरनेकाढंग तुमकोयाद-न-हो-तो-ब-जरीयेकिताबके अपना कामचलाओ, यादरखो ! जवानीजमाखर्चसे कुछकाम न-चलेगा, तबीयत नादुरस्तका बहानालेकर धर्मकोंमतछोडो,
जिसकोतुम अपनासमझतेहो-वहीं-गानाहै. गाफिलमलवनो, यादरहे ! किस्मतकी कमनसीवीपर किसीकामिजाज नहींचलता,
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( ५६ ) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. वेटावेटीकेविवाहमें हजारोरुपये बरबादकिये, धर्मपरएककोडीभीनही दिइगइ, क्या ! इसीपरघमंडकरतेहोकि-हमनेवहुतकुछधर्म करदिया. तीर्थमें आपसकाझगडा करनावेंकारहै. आफतकीभरीवात घरपरचलायाकरो, यहांतीर्थकीजगहहै इसमें आनकर इबादतकरो, खैरात दो ! गरीब और रोटीयोंके मोहताजोपर रहमकरो, तुमारेपासबहुत कुछरुपयेपैसे हानिरहै-फिर ! क्यों ! मुमबनतेहो ? क्या ! दौलत तुमारेशाथचलेगी ? देखलो ! किसकदर खुशनसीबोंने तीर्थों मेंआनकरदौलत सर्फकिइ है ? तुमकोपांचरुपयेदेते दर्दहोताहै, बडीशर्मकीबातहै. अछेखानदानहोकर दलेरनहीवनते, तीर्थों में आनकर कुछ दिनकयामकरो, औरजलदीमतकरो, तमाममंदिरोंकी और तीर्थीकी जियारतकरो, अगरतुमको यहांपर कोइवेंमुनासिव बातकहे उसपर गुस्सामतकरो, तुमतीर्थमेंआयहो, डूबतेकोंतिनखाभी सहारा ताहै नेकवक्षोकों चुपरहनाहीवेहत्तरहै, इबादतकीजगह तकरारकरना कोई जरुरतनहीं, जिसनेधर्मकीजगह वेइमानीकिइ उसनेआलादर्जे की गलतीकिइ, अपनेदहीको कोइखटानहीकहता, मगरतारीफहै उनकी जोअपनीभूलकों कुबुलकरे. तकदीरकेआगे ततबीरनहीचलती, मगर धर्मउसवख्तभी फायदेमंद होताहै, तीथभेजाकर अगरदंगाफिसाद कियातोजियारतका बदमजाकरदिया, आखरकारधर्महीका वेडापार है, अगरतुमने तीर्थमंजाकर लडाइलडीतो कुछनहीं किया, बल्कि ! जियारतकों पायमालकिइ, रुके उससेरुकिये--और--झुके उससेझुकिये, इसवातकों यादकरो ! जोअपनेसेनेकीकरे, उससे अकडमिजाज मत रहो. हमेशां खुशमिजाज होकर धर्मकरो, चाहेकोइकेसाही शैरआदमीहो-मगरजहांखर्चका कामआनपडे सियारवनजाताहै, औरकहताहै हमपरक्यासितमगुजरा, मगरयहखूबसमझोकि-दौलततकदीरकीदासी है, एकवागकेदोफल कहांइमली औरकहांआम ! एकआस्मानकेदो-सितारे-कहां मर्य-और चांद ! ! अगरतुमारी तकदीर
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (५७) तैजहै-तो-दौलतफिर आनकर मिलेगी, धर्ममेंबखीलहोना कोइजरुरतनहीं, जबदौलत झलाझलहै-तो-खर्चकेलिये क्यौंचुपरहजातेहो, इतबाररखो धर्मपर, हकीकतमें सवधर्महीकाफलहै. अंधेरकारीकी तरहसवकों एकभाव--न--समझो. दरयाफतकरलो दौलत और धर्म इसमें कौनबडाहै ? धर्मकोंभुलगये जभीतो यह तकलीफ हासिलहुइ खेर ! कोइमुझाखानही. आदमीकुछखोकरही सीखता है, मुमकीनहै कुछधर्मकीराहपरदेना, दौलतचंदरौजकी है और धर्म हमेशांकाशाथी है, अगरशुभहका सिताराआफताबके आगेचलेतो वह आफतावनहींहोसकता, रिस्तेदारोकी तकरारकानिवेडाकिया मगरअपनानिवेडा कवकरोगे? तीनहिस्साउमर बतीतहोगइ मगर परलोककारास्ता साफनहीकिया, जोकुछधर्मकामकरनाहो, पीछेमतरखो, न-मालूमकिसवख्त क्याहोजाय ? दौलतखाना-मकान
औरलडके तुमारेसामने तयारहुवे, बुजुर्गोका कहनाहै धर्मकरो! नसीहतकेवख्त हसदेतेहो यहएकगुनाहहै, दावतमेंसबलोग आतेथे मगरवीमारीकेवख्त कोइपासतकनहीआया, कोइआदावअर्ज कहनेवालेभी नहीआये, अवतीर्थमेंआयेहो पनाहलो ! देवगुरुधर्मकी और इबादतकरो तीर्थकर देवोंकीजिससे तुमारादुखसे निस्ताराहो, बाग बगीचे इतरफुलेल--उमदापुशाक और खर्चआमदनीका हिसाब मिलाते जिंदगीतयहुइ, जिसनेतुमारेशाथ नर्ददगाकीखेलीथी-भी-चलेगये, वफादारबेवफाहुवे, नोकरचाकर जवाबदेगये, अखबारपढनेका शौखथा-चहभी दौलतकीतंगीसे कमहुवा, कोइभीमुराद हासिलनहीहुइ, अबतो यकीन लाओ! धर्मपर, बडेबडेखुशनसीबधर्महीसे पारहुवे, खजानाखुश्कहुवा. जवानीपायमालहुइ, सलामतहै
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(५८)
तवारिख-तीर्थ शत्रुजय.
अवभीतुमाराधर्म-जोकि-तुमकोंजहुर देरहाहै. इसीलिये कहाजाताहै तीर्थमें आयेहो, वख्तगाफिलरहनेकानही, धर्मकरो,
दरबयान-पहाड-शत्रुजय, आमतीर्थीका शिरोताज शत्रुजयपहाड निहायतपुरानातीर्थ है, इसतीर्थकी बुजुर्गी सबसेज्यादह-जिसने इसतीर्थकी जियारतकिइ गोया ! दोजकसे अमन-वा-अमानहुवा, जैनमेंयहतीर्थ बहुतमशहूर और मारुफहै, जगहनिहायतपाक ! वल्कि पहाडक्याहै !! मानींदे बहिस्तका एकगुलजारबागहै. जमीनदिलकश खुशनुमाकाविलेदीदहै, तीर्थकर रिषभदेवमहाराज इसतीर्थपर पूरवननानुदफेआये, और यहांपर ध्यानसमाधिकिइ, इसीलिये ननानुयात्राकरनेका वाजयहां परनारीहुवा, भरतचक्रवर्ती जोकि-तमाममारतवर्षका बादशाहहुवा अयोध्यासें पैदल चलकर इसतीर्थकी जियारतकोंआयाथा, शाथमें बडेबडेराजेरहीस और लवाजमाथा. जवाहिरात-औरमोतीयोंके थालोसें उनोनेइसतीर्थका नसारकियाथा, (यानी) वधायाथा, और जियारतहासिलकिइथी. बडेबडेदौलतमंद और खुशनसीबयात्री यहांपरआचुके है, जैनोमेकाविल इसकेदुसरातीर्थनही. सिद्धाचल-विमलाचल-सिद्धक्षेत्र--तीर्थाधिराज--औरकंचनगिरी-येसबइसीतीर्थकेनामहै, पेस्तस्यहोपर पारसपथ्थर होताथाकि-जिसके लगानेसे सबधातमुन्ना होजातीथी. ऐसीऐसी जडीबूटीयां यहांपर पैदाहोतीथीकि-जिसकोघीसकरअगर बदनपरलगाइजायतो आदमी अदृश्यहोजाताथा. हरतालजैसे पीलेरंगके पथ्थरयांइसकिस्म के होतेथेजोधकेशाथ घीसकर बदनपरलगायेजाय तमामबीमारीयांरफा होजातीथी. ऐसीऐसीताकतवर बनास्पतियहांपर मौजूदथीकि
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (५९) जिसकेखानेसे आदमीवेशुमार ताकतवालाहोसकताथा, शैर-भालु तेंदुए-वगेराजानवर यहांहरवख्तरहाकरतेथे, अबभी चीतावगेरा यहांनजरआतेहै, जवाहिरात और मुन्नेकी-खानयहाँपर मौजूदी, मौर-तोते-कोयल-मेना-चीडियावगेरा तरह तरह के परीदयहां दख्तोंपरकलोले करतेरहतेहै, तरहतरहकीवनास्पति यहांपरखडी है, पानीकेहौज-वा-फुवारेयहांपर हमेशांतयार-च-पाकवनेरहते है, कहांतकवयानकरे मानींदेसेब-बहिस्तहै. ___ वडेवडेमहर्षियोंने यहांपर ध्यानसमाधिकिइ, पेस्तरके जमाने में पहाड बडालंबा चौडाथा-आजदिनपरदिन कमहोगया. मगरवारह कोशकेधैरमें अबभीहै, शत्रुजयनदी पहाडकी दामनमेंहमेशा वहती है. नमि-विनमिविद्याधर इसतीर्थपर मुक्तिपाये. तीर्थकरअजितनाथमहाराज इसतीर्थपर वारीशके चारमहिनेठहरे और धर्मकों रौशनकिया, दंडवीर्यराजा जोकि-भरतचक्रवर्तीकी आठमीगदीपर तख्तनशीनथा, इसतीर्थपर बडेबडेआलिशानमंदिर मूर्त्तवनवाइ,
और पुरानेमंदिरोंकी मरम्मतकरवाइ, सगरचक्रवर्तीने बडेसंगीन मंदिरऔर खूबसुरतमूर्तेयहांपरतख्तनशीनकिइ. जमानेतीर्थकरचंदाप्रभुकेचंद्रयशाराजाने यहांबडीलागतमंदिर तामीरकरवाये. और धर्मकी निहायततरकीकिइ. तीर्थकरशांतिनाथमहाराजने इसपहाडपरचारमहिनेगुजारे, औरधर्मकोरवनकदिइ, छत्रपतिचक्रायुधराजाने यहांबडेआलिशानमंदिर औरमूर्तेजसीमवनवाइ,-और पुरानेमदिरोंकोमरम्मतकिया, रामचंद्रजीऔरल छमनजी जोकि-अयोध्याकेतख्त परवडेमशहूर औरमारुफहुवेइसपहाडपर उनोनेबडीलागतके मंदिर बनवाये, औरजिनेंद्रोंकीमूर्त्ततामीरकिइ. पुरानेमंदिरोंकी मरम्मत औरवेंशुमार दौलतसर्फकिइ. चंदराजा-जोकि-आमापुरीकाछत्रपति राजाथा इसीपहाडपर सूरजकुंडकेजलसेंस्नानकरके तंदुरस्तहुवा. यु
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( ६० )
तवारिख - तीर्थ-शत्रुंजय.
धिष्टिर - अर्जून- भीमसेन - सहदेव - और - नकुल- ये पांचपांडवजोकि दुनियामॅबडेबहादुरहुवे इसपहाडपरबडेबडे - खूबसुरतमंदिर औरमूर्ते तामीरकरवाई. प्रद्युम्नकुमार औरशवकुमारइसीतीर्थपर आनकरमुक्तिकोंपाये, थावचाकुमार और शैलकराजर्षिने - यहां ध्यानसमाधि fariरमोक्षकोंगये, जाली - मयाली - उवयाली और देवकीजी के छल डकेइसी पहाडपर अनशनकरकेमुक्तिमें कायम - व - दायमहुवे, रामचंइजीकों-पांडवोंकों-औरकृष्नजीकों वैदिकमजहबत्राले - उनकेमजहबकेप्रवर्तक-व- नायबबतलाते है औरजैनकिताबों की रुसे- ये - महाशय जैनीथे, छत्रपतिसंप्रतिने इस पहाडपर बडे किमतीमंदिर और मू तामीरकरवाई. विक्रमसंवत् (१०८) में मुल्ककाश्मिरके व्यापारी जावडश(हने इसपहाडपर बडेआलिशानमंदिर औरमूर्त्तेबनवाई और पुराने मंदिरों की मरम्मत किर. छत्रपतिराजाकुमारपालके - दिवानबाहडमंत्रीने ( २५७००००० ) दोकरोडसतावनलाख रुपये खर्च करके इसपहाडपर वेंस किमती मंदिरतामीर करवाये और खूबसुरतमृर्त्तेतख्तनशीन कि. संवत् (१३७१ ) समराशाह ओशवाल जिसका सिताराबुलंदथा वडेवडेपुख्तामंदिर औरमूर्तेइसपहाडपर बनवा. संवत् ( १५७८ ) में कर्माशाहशेठ जिसका मुवारकनाम आजतकमशहुर है इस पहाडपरआनकर बुलंदशिखरवंदमंदिर औरतीर्थंकररिषभदेवभगवान्की आलिशानमूर्त्तिबनवाई और एककरोडसेंज्यादहरुपये खर्च किये, क्या ! उमदाकारिगरी - शिखर - और - गुंबजकाकाम - आलि शानचौक औरघेराव - देखकर मानींदो गर्दा आस्माननजर आता है, तमाम हिंदमें जितनी जैनमूर्त्ति है मगरइसकीसानी एकभी नहि. कर्माशाह शेठकी कहांत कतारी फकरे कि - जिनोने अपनेलियेदरवजा बहिस्तका खौल दिया, खुशनसीबहोतोऐसेहो. इसतीर्थपरवडेबडेसोलह उद्धार हुबे, अखीरका उद्धारही कर्माशाहशेठने करवाया.
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुनय. (६१) ऐसेपाकतीर्थकी हरवख्तइन्जितकरनाचाहिये. जिसनेइसकीअदबीकिइगोया ! उसनेअपनीतरक्कीकोखाखमेंमिलाइ. पांचवेआरेकीअखीरमें तमाम नतीर्थवरवादहोगें मगरउसवख्तभी इसतीर्थका रिषभकुटशिखर देवोकरकेपूजनीकरहेगा, बडेबडेगुनहार औरपापी इसतीर्थकी जियारतसेंपाकहुवेहै, जिसकेवडेभाग्यहो इसतीर्थकीजियारतकरे, मदिरमूर्तिबनवावे, औरचवरछत्रवगेराचीजें यहांपरभेट करे, जैनाचार्य भद्रबाहुस्वामी-वज्रस्वामी-और-पादलिप्ताचार्यने इसतीर्थकीतवारिखलिखी. मगरजमानेहालमें-वे-सबनेस्तनाबुदहुइ आचार्यधनेश्वरसूरिजीने जोतवारिखलिखीथीअवमौजूदहै, जिसका नामशत्रुजयमहात्म मशहूरहै,____ शहरपालितानेसे दखनकीतर्फ शत्रुजयपहाडएककोशकफासलेपरशुरुहोताहै, छोटेबडेतीनहजारजैनश्वेतांबरमंदिर इसपरबनेहुवेजिसनेइसतीर्थकी जियारतकिइमकसद दोंनोंजहानकापाया. शहरपालितानेसें शत्रुजयपहाडकीतराइतक सडकपक्कीबनीहुइ-दोंनोतर्फबडे बडेगुलजारपेंड औरटख्तलगेहुवेहै, सवारीइक्का-बगी-जोचाहोमिल सकेगी. पैदलजानेवालेपैदलजाय कोइतकलीफ-न-होगी. यात्रीयोंकाहरवख्तमेलायहांबनारहताहै. जिसमेंकातिकऔरचैतकीपुनमकों ज्यादहहोताहै. शहरपालितानेसे पहाडशत्रुजयकोंजाते-अवल पुरानीतलहटी-चौइसतीर्थंकरोके चरण-और--पकीवनीहुइ छत्री मिलेगी, इसकेदर्शनकरके आगेकोंचलनाचाहिये. थोडीदूरपर शेठ भूषणदास सुरतवालोकी बनाइहुइ निहायतखुशगवार पानीकी वावडीऔर चरणपादुकाकी एकछत्रीआती है, इसकोंरानावावडीभी बोलते है, आगेइसके पहाडकीदामनमें खासतलहटी-उमदाधर्मशाला-दोछत्रीयें-बगीचा-मीठेपानीकीवावडी--चारउमदा उमदाबेंठके-जिसपरकरीव पांचपांचसोआदमी-ब-खूबी-बेठसकते है, बडी रपत्रक जगह है,
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( ६२ ) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय.
। जिसकों खानपानकरनाहो इसजगहकरे, जंगलजानाहो यहां जावे, आगेपहाडके उपरव-सबवपाकी औरताजगीके जंगलजानान-होगा, क्योंकि-तमामपहाड जायेअदवकाहै, यहांतककि-पावमें जुताभीकोइ जैनीनहीपहनता. यात्रीलोग शुभहको पहाडपरजातेहै
और-जियारतकरकेशामकों पीछेलोटाते है, पहाडपर चढनेकेलियेम्याना-ब-डोलीवगेरातयारमिलती है. अगरकोइ पैदलजानाचाहै-तो-इख्तियारउसके है. शत्रुजयपहाड समुंदरकेपानीसें (१९८०) फूटऊंचा, पहाडपरचढनेकेलिये पथरोंकी बेंडोलसीढीय बनीहुइ है, कोइखुशनसीब यहांपरऊमदा सीढीयेबनानाचाहे बनसकती है, मगर खर्चकाकाम ज्यादहहै, पहाडकीशरुआतमें रास्तेकीदोंनों तर्फदोहाथी इंटचुनेकेबनेहुवे निहायतखूबसुरत गोया ! सचेहाथी यहांपर आनखडे देखलो, . इसपहाडकी इज्जतजैनोमें यहांतकमशहूरहैकि-अगरकोइयात्री पहाडपरजाय-ब-मुजबअपनी हेसीयतकेमोती-और-जवाहिरात नसारकरे, जवाहिरातकीताकात-न-हो-सुन्नेकेबनेहुवे फूलोंसें नसारकरे, जिसकीताकात उससेभीकमहो-तो-चांदीकेफुलोंसें--और अगर उसकीभी वसत-न-होतो-चावल-या-गुलाव-चमेलीके फुलोंसें-नसारकरे ( यानी) वधावे-औरफिरअगाडी कदमरखे,___ जहाँसेरास्ताशुरुहोताहै दोनोंतर्फदोबडेबडेदालान-अठाइसछोटीबडीछत्रीये जिसमेंसंगमर्मरपथरकाकाम औरइनमेंतीर्थकरोंकेचरन तख्तनसीनहै, यात्रीयहांताजीमकरे, औरफिरआगेकोंकदम उठावे. योडीदूरपरचढनसें-रायबहादुर धनपतसिंहजी-साकीनमुर्शिदाबादकातामीरकरायाहुवा खूबसुरतमंदिरमिलेगा.. इसकेसामनेपश्चिमकी तर्फचतदेवीकीएकगुफाबनीहुइ, आगेइसकेपौनकोशबढ़नेसे एकइछा
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-तारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (६३) कुंड (यामी ) पानीकाहौजमिलेगा. यहहौजसंवत् (१८३१ ) मुस्तवालशेठ इछामाइनेतामीरकरवाया. इसकेआगेपावकोश बढेतो छत्रपतिमहाराज कुमारपालकावनायाहुवा कुमारपालकुंड-और-आ गेइसके हिंगलाजकाहडा, दिलखुशनुमा-औरहवादारमकानहै, जिसकेदेखनेसेरुहकों ताजगीमिलतीहै. म्याने-या-डोलीमें जानेवाले यात्रीकोंभी यहांपरपचासकदमउतरनाहोगा. क्योंकि-चढाव-कठिन है, जगहनिहायत उमदा-और-यहांपरकलिकुंडपार्श्वनाथजीके चरन जायेनशीन है, आगेइसके छालाकुंड-मीठेजलकाभराहुवा-और-यहां परचारतीर्थकरोंके चरनोकोछत्रीवनी इहै, यहांसदो-रास्तेफटे है, दाहनीतर्फकारास्ता श्रीपूज्यनीकीटोंकका-जिसमें तपगछकेश्रीपूज्यों केचरन-और-गौतमगणधर-पदमावतीदेवी वगेराकीमूर्ति तख्तनशीनहै, बांयीतर्फकारास्ता मंदिरोंकीतर्फकोजाताहै, थोडीदूरपरअतिमुक्तकमुनीकीछत्री-द्राविड-वारिखिल्लकीछत्री-हीरावाइका कुंड और-इसकेआगे पांचपांडवोकी छत्रीकेदर्शनहै, आगेभूषणकुंड-भूषणशाहशेठसाकीनमुरतका तामीरकियाहुवा मीठेपानीसेलब्दतरऔर आगेइसकेशैलगराजर्षि शुकदेवजी-थावचामुनिकोछत्रीये बनी इहै, आगेइसके दोरास्तेफटेगें. एकरिषभदेवभगवान्की टोंकका दूसरा चौमुखाजीका-रिषभदेवभगवानकी टोकरास्तेपर-जालि-मयालि -उमयालिकीगुफा जिसमेंतीनोकी मूर्तिजायेनशीनहै.- .. ___आगेखासकिलेका जहांसेमंदिरोंकी शुरुआतहोती है रामपोल दरवजामिलेगा. इसमेंहोकरविमलवशीटोंकको जानाचाहिये. जोकि -खनकीतर्फ है, तीर्थकररिषभदेवभगवान् जहांखिरनीहस्तकेनिचे पूरवननानुदफेपधारेथे. इसटोंकमेंबडाआलिशानहख्त खडाहै. फाल्गुनसुदी (८) मीकेरौनतीर्थकररिषभदेवभगवान् यहांअवलआयेथे इसलिये फाल्गुनसुदीअष्टमीकी यात्राबडीपाकऔरउमदा समझीगइ,
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( ६४ )
तवारिख - तीर्थ - शत्रुंजय.
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रामपोलदरवजेके आगे दो - छोटे छोटेबगीचे - निहायत खूबसुरत तरवा - ताजेमिलेगे. इनकेफुलहमेशांदेवकों पूजनमें चढाये जाते है, मोतीशाह शेकटककारास्ताभी इधरकीतर्फसें है लेकीन ! अवलविमलवशीटोंaniजाकरवापिस आतेवख्तइसटोंककेदर्शनकरनाचाहिये. जबयात्री रामपोलदरवजेतकपहुचे म्याने- डोलीवाले यहांहीउहरजायगें. और यात्रीकों आगे पैदलजाना होगा. इसके आगे रिषभदेव भगवानकी टोंकका दूसरादरवजामिलेगा, इसमें होते हुवे जब आगे चलोगे तीसरादरवजा वाघनपोलकामिलेगा, जमानेपे स्तरके एक नहारनीयहां आनकर रहीथी, औरव - दौलततीर्थ के धर्मकीपायबंदहोकर उमदागतिकगड़थी, इससबब सदरबजेकानाम वाघनपोल मशहुरहुवा. वाघनकीएक मूर्तिकरिब दरवाजेकेबनी हुई है, आगेवानपोलदरवजेके तीर्थंकरशांतिनाथजीका निहायत उमदामंदिर शेठहीराचंदरायकरनसाकीनदमनकातामीर करवाया हुवा संवत् (१८६० ) काप्रतिष्टितकावीलेदीद मिलेगा, करीबइस मंदिर के एकमंदिर देवीचक्रेश्वरीका जोकि - संवत् ( १९७८) शेठ - करमाशा हनेतीर्थशत्रुंजयके उद्धारमैतामीरकरवाया था निहायत उमदावना है. मूर्त्तिचक्रेश्वरीदेवी की लाइकदीद औरदिदारकी है, देवीक्या है ! गोया !! आइनेमददगारशाथी है, आगेइसके एक मंदिर तीर्थकरनेमनाथजीका इसमें तीर्थकरनेमनाथजी की चवरीसमवसरणकाअकस - और - चौमुखाजी की मूर्ति तख्तनशीन है. आगे इसके मंदिर जगतशेठकातामीरकरवाया हुवा बहुतखुशनुमा और लाइकतारीफकेदेखोगे, जबहाथीपोलके दरवाजे पर पहुंचोगे दो -- बडे बडेहाथी दिवारपरबनेहुवे नजर में आयेंगें, गोया ! येअसली हाथी यहां आनकरखडे है, पेस्तरकेजमाने में दरवजेमंदिर के हाथी बनाने की रसम जारीथी. आजयहरसम कमहोतीजाती है.
छत्रपतिराजाकुमारपालका तामीरकरायाहुवा बडाआलिशान मंदिर सी हाथीपोलके सामनेखडा है. सुरजकुंडका रास्ताभी इसहा
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तवारिख-तीर्थ शत्रुजय.. (६५) थीपोल दरवजेकी दाहनीतर्फशुरुहैजोकि-पाक-और-सफेदपानीसें मानींदे बर्फ जमाहै. हाथीपोल दरवजेके आगे बहुतबडी सीढियां चढकर खास तीर्थकर रिषभदेव भगवान्के मंदिरकों जानाचाहिये. मंदिरक्याहै ? गोया ! शजयपहाडका एक जवाहिरातहै, संवत् ( १५८७ ) में शेठ करमाशाहनेइसकों तामीरकरवायाअवललिखचुकेहै, करमाशाहशेठ-जैसे-खुशनसीव-और-मुबारिकसितारे दुसरेकौनहोगें ? जिनोनेऐसे अजायब कामकिये. जोइनसानकी अकल से बाहरहै, कलमकी ताकातनहीकि-लिखकर बतलादे, जबानकी हेसीयतनहीकि-तकरीरकरसके. स्याहीइतनी मौजूदनहीकि-इसका बयान लिखे. दुनियामें एकसेएकनकासी और शिल्पकारी जाहिर है मगर उस्तादोने यहांआनकर उस्तादी खतमकिइ. बडेबडेकारिगरलोक इसमंदिरका नकसा उतारकरलेजाते है. मंदिरकेवहार वडा आलिशान चौक-शंगेमर्मरकाफर्स-और सेंकडो मंदिरोंकाघेराव दिलकों मोहेलेताहै, मंदिरोकेशिखर-सोनेकेकलश-धजापताका और झलाझलरौशनी देखकरआदमीकी नजरचकराजातीहै, शत्रुजयतीर्थका यह एकमूलमंदिरहै,-औरइसमें तीर्थकररिषभदेवभगवानकी बडी आलिशानमूर्ति काबीलेदीद और दिदारके वनीहुइ गोया ! खास तीर्थकररिषभदेवमहाराज यहां आनकर तख्तनशीनहै. इसमूर्तिकी तारीफ कहांतकलिखे जिसकीसानी दुनिया दुसरी-न-होगी. उचाइमें छहाथ बडी-आंखे स्फटिकरत्नकी और ललाटमें हीरालगा हुवाहै, दर्शनकरके दिल निहायतखुशहोगा, मंदिरकेभीतरी रंगमंडपमें शंगमर्मरपथरके वनेहुवे हाथीपर राजाभरतचक्रवर्ती औरमरुदेवीमाताकी खूबसुरतमति जायेनशीनहै, यहरचना उसवरुतकी है जबकि तीर्थकररिषभदेवमहाराजकों केवलज्ञान पैदाहुवाथा, भरतचक्री औरमरुदेवीमाता वास्ते तीर्थकररिषभदेव जीके दर्शनोंकों आयेथे,
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(६६) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. आगमी ३ खूबसुरतमूर्तिये इसमेंजायेनशीनहै. ओंकार और हूँकार खात दर जके दोनोतर्फ दिवारोंमें मयजिनमूर्तियों के बनेहुवेदेखलो! ___ मूलभंदिरकेसामने मंदिरपुंडरीकगणधरका बैंसकीमतीवनाहुवा है, तीर्थकररिषभदेवभगवान्के दर्शनकरकेयात्री इसमंदिरकेदर्शनकों जाते है. इसके दर्शन करके आम मंदिरोंकी परकम्मा-और-नसार करना चाहिये. ( यानी ) रुपये पैसे असर्फियोंसे ताकातहोतो मोतीयोसे तीर्थको वधाना चाहिये, तीर्थकर रिषभदेवमहाराजके पी. छाडी-जहां खिरनीकादृख्त खडाहै नीचे उसके तीर्थकररिषभदेवमहाराजकेचरन जायेनशीन, अंगुठे अंगुलियोंकेउपर सोनेके पत्तेजडे हुवेइसके दर्शनकरनाचाहिये, इसीजगह तीर्थकररिषभदेवमहाराज रायनवृक्षकेनीचे पधारेथेऔर ध्यानसमाधिकिथी. एकमंदिरनंदीश्वरदीपका इसमेंनंदीश्वरदीपका आबेहुबआकारवनाहुवादेखलो !एकमंदिरसहस्त्र कूटका-एकमेरुशिखरपहाडकी रचनाका-और-एकमदिरअष्टापद तीर्थकीरचनाका इसकदरउमदा औरसाफबनाहै जैसे वहोचीजेंलाकर यहारखीहै, एकमंदिरसमेतशिखरतीर्थकी रचनाका निहायतउमदा-जिसकीतारीफ भीशालहै, कहांतकवयानकरे ! जोदेखता है वहीजानसकताहै, हरसालकातिकशुक्ल पुनमकेरौज इसी विमलवशीटोंकमें रथयात्रा निकलतीहै, सोनेचांदीकरथ-पालखीऔर-तरहतरहकेबाजे वगेराजुलुलसे मूलमंदिरकीचारोंतर्फ परकम्मादिजातीहै. सोनेकेकलशे-धजापताका-चाजोंकी अवाजे-और यात्रीयोंकाठाठ-उसवख्तयहां जमाहोताहै, बडेबडेवजंत्री-सारंगीतबले-हारमोनियम-बेला-और-जलतरंगवगेरा साजसे गवैयेलोग यहांपर गायनकरते है, जिसशख्शने कातिकसुद पुनमकेरौज शत्रुजय तीर्थकीयात्राकिइगोया ! उसनेखास ! वहिस्तदेखलिया, और तीथंकरोके समवसरणमें खुदजावेठा, एकतर्फयात्रीयोंके स्नानकरनेकी
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (६७) जगह-केसरचंदनघीसनेवालेपूजारी-और--एकतर्फगुप्तभंडार बना हुवाहै. फूलवेचनेवालेमालीलोग तरहतरहकेफुललेकर यहां बैठेरहते है यात्रीकोंफुलकीदरकारहो पैसेदेकरशौखसेलेलेवे. दिवानवस्तुपाल-तेजपालकेबनाये कीमतीमंदिरइसीटोंकमें तामीरहै, विमलवशी टोंककेदर्शनकरके वापिसलौटतेवख्त वाघनपोलकोआना, शेठनरसिंह-केशवजीसाकीन मुल्ककछका बनायाहुवा बेशकीमतीमंदिर जोहालहीमें नयातामीरहुवाहै देखकरदिलखुशहोगा,___ [दूसरीटोंक मोतीशाहशेठकी.]
मोतीशाहशेठने यहटोंककिसकदर मेहनतसेवनवाइहैकि-जिसकीतारीफमीशालहै. पेस्तरयहांपर एककुंतासरनामका बडाभारी खडा--यानी-पहाडकी एकखांहथी. शेठमोतीशाहने इसकों ( ९५३००० ) रुपयेखर्चकरकेभरवाया. और उसपरयहटोंक तातीरकरवाइ. बडाभारीआलिशान मंदिरदेखकर दिलतर-वा-ताजा होताहै, संवत (१८९३) मेंइसकीप्रतिष्टाकिइगइ, खर्चाइसटोंकका अवतकमोतीशाहशेठकी पुस्तानपुस्तसेचलताहै, शाहअमरचंदखेमचंद साकीनदमन-जोकि-इसीमोतीशाहशाहशेठके-दिवानथेएकबडा भारीमंदिर इसीटोंकौउनोने तामीरकरवाया.-औरएकस्वस्तिक जिसमें नवरत्नलगेहुवे हैबनवाया. औरभीकइखुशनसीव ओरदौलतमंदलोगोने यहांमंदिरबनवाये है, इसटोंककीखूबसुरती कहांतकवयानकरे ! खास ! मोतीशाहशेठके मंदिरकीचारोंतर्फ इसकदर उमहा तौरसे परकम्मावनीहुइहैकि-जिसकोंदेखकर-आंखे-तरहोजाती है, मोतीशाह शेठफेबनायेहुवे मंदिरकेसामनेउनकी और उनकी आरतकीर्ति संगमर्मरपथरकीबनीहुइखडी है औरआजीजीकररहे हैकि हमने-कुछभीखर्चनही किया. जायेगौरहेकि-मोतीशाहशेठने इसटोंकके. बनानेमेंबेशुमारदौलतसर्फकिइ-मगरफिरभी यहीकहरहे हैकि-हमने
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( ६८ )
तवारिख - तीर्थ - शत्रुंजय.
कुछभीख नही किया. दौलतमंदहोतो ऐसेहो ! और धर्म केपायबंदहोतोऐसेहो ! हरखासोआमकोलाजिम है मोतीशाहशेठकीमिशालकोंयादमेंरखे. औरअपनेसें बनपडेउतना खर्चकरे, दुनियाचंदरौजकेलिये एकमुसाफिरखाना है, जोकुछ धर्म करोगे वही शाथी होगा, -
[तीसरी टोंक-बालाभाईशेठकी, ]
संवत् (१८९३ ) मे - यहटोंक - शेटवालाभाइने तामीरकरवाई, और बहुतसीदौलत खर्च कि. इसकानामवालावशीमशहुर है, इसमें तीर्थकर रिषभदेव भगवान्का बहुतवडा आलिशानमंदिर और निहायतखूबसुरतमूर्त्ति तख्तनशीन है, रंगमंडपइसकाकाबिलेदीद-आसपासकइछोटेबडेमंदिरबने हुवे - और - खर्चाइसका शत्रुंजयतीर्थ के खजानेसें चलता है, -
[ चोथी टोंक -प्रेमचंद मोदीकी, ]
बालावशीटोंक के आगे औरचाथीटोंककेबीच कुछउंचाइपरएक बडाआलिशानमंदिर अदभुदजीका - जो संवत् ( १६८६ ) में तामीरकियाहुवा निहायत पुख्ता और वडीलागतका है, मूर्त्तिसमंतीर्थ कररिषभदेव भगवान्की सातहाथउंचीवडी आलिशानतख्तनशीन है, असल मेंयहमूर्त्ति पहाडसंजुदीनही पहाडही में उकेरी हुइ - और - इसपर बहुत कम तिचीजोंकाले पहुवा है, चोथीटोंक प्रेमचंद्रमोदीकी बनाइहुइ और उंची जमीनपरतामीरहे तीर्थकर रिषभदेव भगवान्का वडाआलिशानमंदिर और उसमें निहायत खुबसुरत मूर्त्तितख्तनशीन है, सामने इसकेमंदिर पुंडरीकस्वामीका -- मंदिर सहस्रफणापार्श्वनाथजीका-मं दिर चौमुखाजीका तिमजिला - गोरानी-जेठानी के बनाये हुवे - दोआले -कइछोटेबडेमंदिर ओरमूर्त्तितामीर है. -
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तवारिख - तीर्थ - शत्रुंजय. पांचवी टोंक हेमाभाइशेठकी, ]
शेठ हेमाभावखतचंद्र रहीश अहमदाबाद साहुकारेकलानहुवे, उन संत (१८८२) में शुमार दौलतलगाकर यहटोंक तामीर करवाई, इसमें तीर्थकर अजितनाथजीकामंदिर और निहात खुबसुरत मूर्त्तिसंवत् ( १६८६ ) कीवनी हुइतख्तनशीन है, दाहनीतर्फमंदिर चौमुखाजीका - सामनेपुंडरीकस्वामीका - वगेरा कइ छोटेबडे मंदिरलाइकतारीफ केवनेहुवे है, झींझुकाकुंड - पाकस फेदमीस्ले बर्फ के बनाहुवाऔर एकबगीचा - गुलाब - चमेली - वा- मोरावगेरा हरकिस्मकेफूल इसमें मौजूद है और बरवख्तपूजनके यहीदेवकचढाये जाते है, -
-
छठी टोंक नंदीश्वरदीपकी, ]
यहटोंक उजमवाइनेवनवाइ - जोकि - निहायत धर्मपावंद और - शेट - हेमाभाइकी हकीकीबहेनथी. संवत् ( १८८३ ) में उस खुशनArabia तामीरकरवाई. इसमें छोटेछोटे ( ५२ ) मंदिर - और - नंदीश्वरद्वीपका अकस - निहायत उमदाबनाहुवा है, इसमेंकुल मू ( २२८ ) सख्तनशीन है, मंदिरकुंथुनाथस्वामीका - और - एक मंदिर परसनवाइका तामीरकरवायाहुवा काविलेदीदहै,
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( ६९ )
सातवीटोंक-साकरचंद प्रेमचंदकी, ]
साकरचंदप्रेमचंद साकीन अहमदाबादने संवत् ( १८९३ ) में यहटोंक बडीलागतसें तामीर करवाई, तीर्थकर चिंतामणिपार्श्वनाथकी धातुमय ( यानी ) सोना-चांदी - तांबावगेराधातुओंको मिलाकर एक आलिशान - व - नजीरमूर्ति वनवाइ औरतख्तनशीन कि. मंदि - स्पदमप्रभुका - और - मंदिरपार्श्वनाथस्वामीका – निहायत उमदा और कारिगरीका नमुना है, औरभीक छोटेबडेमंदिर इसटोंक में तामीर है.
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( ७० ) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. जिसकों-देखकरताज्जुबहोगा. देवीचक्रेश्वरीकीमूर्ति इसमेंकाविलेदीदऔर सुनीदकेबनीहुइहै,
[ आठवीटोंक-छीपावशीकी,-] साकरचंद प्रेमचंदकीटोंकसें पूर्वतर्फछीपावशी टौकसंवत् (१७९१ ) में-तामीरकिइगइ, इसमें तीर्थकर रिषभदेवस्वामीका शिखरबंदमंदिर और उनहीमहाराजकी मूर्त्तितख्तनशीनहै. एकह
ख्त-मुझयन-साफ-खिरनीकायहांखडाहै और नीचेइसकेतीर्थंकर रिषभदेवभगवान्के चरनजायेनशीनहै, तीर्थकरअजितनाथ-औरशांतिनाथजीकेदोमंदिर पासपासमेंबनेहुवे निहायतखूबसुरत और पुराने है,-एकमंदिर नेमनाथजीका-संवत् (१७१४) कावनाहुवा इसटोंकमें है. आगेइसके चौमुखाजीकीटोंककोजाते करीबखीडकीके मंदिरएक पांचपांडवोंका-जिसमें युधिष्टीर-अर्जुन-भीम-सहदेवनकुल-पांचोकीमूर्ति कायोत्सर्ग ध्यानमेंखडी है, इसमंदिरकेपिछाडी मंदिरएक-सहस्रकूटका-बहुतसाफ औरकीमती बनाहुवा संवत् (१८६० ) का-तामीरहै, जोकि-शेठ-खूबचंदमयाचंद सुरतवालोंका बनायाहुवाइसमें-चौदहरज्वात्मकलोकका-अकस-समवसरणकानमुना-सिद्धचक्रजीकानकशा-और-चौइस छोटीछोटीमूर्ते जायेनशीनहै, दर्शनकरके दिलखुशहोगा.--
___[ नवमीटोंक चौमुखाजीकी, ] यहटोंकअहमदाबादवाले सदासोमजीने बडीमेहनतसें तामीर करवाइ, और वेशुमारदौलत सर्फकिइ. यहटोंक संवत् (१६७५) में तयारहुइ. औरइसमें तीर्थकररिषभदेवभगवान्की चार बडीबडीमूर्ते चारोंतर्फ तख्तनशीन किइहुइ जोपांचपांचहाथकी बड़ी काबिलेदीद औरदिदारकेहै, कइमर्तेऔर चरनपादुका इसमेंतामीरहै, सामने इसके
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुजये. (७१) एकमंदिर गणधरपुंडरीकस्वामीका उसीसालका तामीरकियाहुवाऔर-आसपासइसके कइमंदिरछोटेबडेकायमहै. मंदिर शांतिनाथजीका-मंदिरसीमंधरस्वामीका-खिरनीकाटख्त--मंदिरमल्लिनाथजीकामंदिर अजितनाथजीका-मंदिरसंभवनाथजीका-मंदिरचंद्रप्रभुजीका
और एकमंदिर छत्रपतिसंप्रति राजाका-तामीरकरवायाहुवा-मंदिर तीर्थकरअभिनंदनस्वामीका-जिसकोंबनेआज (२१२६ ) वर्षहुवे बडा पुरानाहै. अवलनोलिखचुकेहैकि-राजासंपतिने शत्रुजयपरमंदिर बनवायासो-यही-मंदिरहै, तीर्थोमेयह कदीमीरवाजहै कि-एक मंदिरपुरानाहोकरगिरगया किसीखुशनसीबने फिरतामीर करवाया, इसीकानामजीर्णोद्वारकहते है, औरइसीतरह तीर्थकायम-वा-दायम बनारहताहै, यहटोंक-सवटोंकसेंऊंची औरबालाहै. सबबकि-पहा. डकेऊंचेसीरपरबनीहुइहै. पहाडशत्रुजयकी ऊंचाइयहांपर खतमहुइ, करीब (२५) कोशकीदूरसें जोशत्रुजयतीर्थका मंदिरनजरआताहैबह-यहीमंदिरहै,
तीनकोशकंधेरेमें नवटोंक-और-छोटेवडेतीनहजार मंदिरइसपहाडपर कायम-और-बरपाहै, इनमंदिरोंको औरटौंकोंकी चारोंतर्फ एकदिवारमानींद किलेकेबनीहुइ-नवटोंकोंके बडेबडेअठारांहफाटककइदरवजे-खीडकीयें-और-जानेआनेकेरास्ते-साफ और पाकवने हुवेहै. किसीयात्रीकों कोइतकलीफनही, हरटोंककेरास्तेरातकोंबंदकर दियेजातेहै, शत्रुजयपहाड जैनमंदिरोका-एकनायाबशहरहै, इतनेइफठेमंदिरएकजगहकहीनही देखोगे, मंदिरोंकेशिखर-धनाओंकाफरराना-घंटोंकी झनझनाट दिलको चकितकरदेती है, वडीबडीमर्तिके मस्तकपरहीरे-कंधे-हाथ-और घुटनोंपर मुन्नेकेपतेलगेहुवे निहायत खूबसुरती दिखलारहे है.-एकपहाडपर इतनेजैनश्वेतांबरमंदिरोंका जमावहफतेअकलीममें कहींनहीपाओगे. वैदिक और बौधलोगोकेइतने
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( ७२ )
तवारिख - तीर्थ शत्रुंजय.
कसरतकेमंदिर किसीतीर्थपरनही, महाराज छत्रपति - संप्रति-औरमहाराजकुमारपाल - ये दोनो जैन श्वेतांबर श्रावकथे, जिनके बनाये हुवे जैनमंदिर यहां पर मौजूद है, दिवानवस्तुपाल तेजपालभी जैनश्वेतांबरावकथे, जिनोने इसतीर्थपर जैनमंदिर बनवाये है, दौलत और कुमपाकर धर्मकरना ऐसे धर्मपादोका काम है,
[ अनुष्टुप - वृत्तम्. ]
श्रीयुगादिजिनादेशात् - पुंडरीको गणाधिपः, सपादलक्षप्रमितं - नानाथर्यकरंवितं, श्रीशत्रुंजयमहात्म्यं - सर्वतत्वसमन्वितं चकारपूर्व विश्वैक-हिताय महितं सुरैः,
शत्रुंजयतीर्थ की तारीफ जैनशास्त्रोंमें ज्यादहलिखी है तीर्थकर रिषभदेवमहाराजके अव्वल गणधर पुंडरीकस्वामीने इसकी तारीफ सवालाख लोकसे बयान कि थी, तीर्थंकर महावीरस्वामी के पांचमे गणधरसुधर्मास्वामीने चौइस हजार श्लोकसे तारीफ क्यानकि, बाद उनके श्रीमान्- धनेश्वरसूरिजीने - शत्रुंजय महात्मनामका ग्रंथ बनाकर तारिफकिर, जो अवभीमौजूद है, पेस्तर पहाडबहुत बडाथा, जमाने हालमें कमरहगया, पेस्तरयहां बडीबडी गुफाये और तरहतरहकी वनास्पति- अशोक - केवडा - मोरसली - मयूरशिखा - केतकी, चंपा, और चमेली वगेरा बहुतायत संथी,
[ अनुष्टुप - वृत्तम् ]
नास्त्यतऽपरमं तीर्थ - धर्मो नातः परोवर:
शत्रुंजये जिनध्यानं - यज्जगत्सौख्यकारणं, शत्रुंजयसमान दुसरातीर्थ नही, इसतीर्थमें आनकर ध्यान करनेसे पुन्यानुबंध पुन्यऔर अशुभकर्मकी निर्जराहोती है, मुल्क सौराष्ट्रका शिरोताज यही शत्रुंजयपर्वत है, -
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (७३ ) चौमुखाजीकीटोंककेहातेमें राजासंपतिका तामीरकरवायाहुवा मंदिरइसपहाडपर सबसेपुरानाशुमारकियाजाताहै,-तीर्थकरमहावीर स्वामीकी हयाती राजगृहीके तख्तपरराजाश्रेणिक अमलदारीकरताथा-औरवहजैनमजहवपर पावंदथा. श्रेणिककाबेटा कौणिकहुवा, उसकादुसरानामअजातशत्रुथा, औरयहभीजैनमजहवपर एतकातरखताथा. वालिदकेगुजरजानेपर उसनेराजगृहीकोंछोडकर अपनी अमलदारीचंपामें कायमकिइ, कौणिककाबेटाउदायीहुवा. यहभीजैनमजहवपर पावंदथा, औरउसनेचंपाकों छोडकरअपनीअमलदारी पटनेमेकायमकिइ. उदायीकेतख्तपर नंदनामकाराजाहुवा, नंदके तख्तपरआठपीढीतक नंदनामकेहीराजेहातेरहे, ये-जैनीनहीथे, इनकीअमलदारीभी पटनाहीरही, नवमेंनंदकोशिकस्तदेकर उसकीगदीपरचंद्रगुप्तराजाहुवा. यहजैनमजहबपर एतकातरखताथा. और उसकीअमलदारीभी पटनाहीरही.-चंद्रगुप्तकाबेटा-बिंदुसारहुवा. यहभीजैनमजहबपरपावंदथा. औरउसनेपटनाको छोडकरअपनीअमलदारी शहरउज्जेनमेंकायमकिइ. बिंदुसारकावेटा अशोकश्रीहुवा. इसनेवौधमजहबको इख्तियारकियाथा. राजा-प्रियदी-अशोकके जोशिलालेख हिंदमेंकहींकहीं मिलतेहेइसी अशोकके है, अशोकश्रीका बेटाकुणालहुवा. यहजैनथा. औरकुणालकावेटा-संप्रतिहुवा. इसकी अमलदारीभी शहरउज्जेनथी. औरजैनमजहवपरपावंदथा. इसने अपनेतमाममुल्कमें हजारोंजगह जैनमंदिरबनवाये-औरजैनमूर्तियें तख्तनशीनकिइ. कइजगहअबतकउनके बनायेमंदिरमौजूद है, तीर्थ शत्रुजयऔरगिरनारपर इसीकेबनायेहुवे मंदिरजोकि-पुराने-शुमार कियेजातेहैमौजूदहै, जमानेहालमें-जो-(३६०००) जैनश्वेतांवर मंदिर हिंदमेकायमहै उनमेंकइमंदिरइसीसंपतिराजाके तामीरकियेहु
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(७४) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. वे है. राजासंपतिकेगुरु-आर्य-सुहस्ती-जैनाचार्यबडेआलीम--फाजिलथे-और-वे-दशपूर्वज्ञानका इल्मरखतेथे. उनोनेराजासंप्रतिको खातिरजमा करवादिइथीकि-दौलत-और-जींदगी-दुनियामकोइ बडीचीजनहींहै. उमदाचीजएकधर्महीहै, औरवहीवडीचीजहै. हजा. रोंराजेरहीशहोगयेदेखलो ! कोइकायमनहीरहे, जोकुछकायमरहनेवालीचीजहै-वो-धर्म है. राजासंप्रतिनेउनकेफरमानपर पुराअमल कियाथा, औरहरवख्त धर्मपरसावीतकदमथा.
.. शत्रुजयपहाडकेमंदिरोकी कारीगिरी अजीवकिस्मकी देखोगे, हरजगह सफाइ-खूबसुरति-तरहतरहकी कतावनाकवनेहुवे मंदिरचौक-गुंबज-और होजदेखकरआंखेतरहोतीहै, बडेबडेमंदिरोकेशिखरपरचढकरदेखोतो चारोतर्फमानींदे स्वर्गविमानके नजरआताहै. विमलवशीटोकमें जोतीर्थकररिपभदेवभगवानका मंदिरकर्माशाहशेठनेसंवत् (१५७८ ) में तामीरकरवायाहै-वे-चितोडके दिवानथे,
औरउनकीइज्जित औरधर्मश्रद्धालाइकतारीफकेथी. जब-वे-शहर पालितानेमेंआयेथे उनकीमुबारिकवादीकेलिये बहुतजलसाहुवाथा, उनकेशाथमेहाथी-घोडे-म्याने--पालखी-रथ--सिपाही-नोकरचाकर-और-चर्च-चंग-वगेरातरहतरहकेवाजेथे, वडेवडेदानाऔरवहादूरशख्श उनकेशाथआयेथे. जव-वे-तीर्थकररिषभदेवभगवानके नयेबनायेहुवे मंदिरकीप्रतिष्टाको शत्रुजयपहाडपरगयेथे, जवाहिरात-और--सचेमोतियोके-थालोंसेंतीर्थका नसारकियाथा, औरअछेमुहुर्तमे प्रतिष्टाकिइथी, धर्मपावंदशख्श होतोऐ सेहो, उसवखतउनकी इज्जतइतनीथीकि-आजकलकेतमाम श्रावकोमें होनादुसवारहै,-.... .. . .... ....
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तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (७५) चौमुखाजीकमंदिरमें जोशिलालेखलगाहुवाहै उसमें लिखाहैसुलतान-नुरुदीनजहांगीरके जमानेमेंसवाइविजयराजा-सुलतानखुशरुऔरखुरमाके वख्तसंवत् (१६७५) वैशाखसुदी (१३) के रौजदेवराज-और-उनकेखानदानमें-सोमजीऔरउसकी औरतराजलदेवीने यहचौमुखाजीकामंदिर तामीरकरवाया, शहरपालितानेमें जैनश्वेतांवरकारखाना बडीलागतकावनाहुवा-मुनीम-गुमास्ते-नोकर-चाकर-पूनारी-चौकी-पहरा-हरवस्तमौजूद-वा-कायम रहता है, उनकाखर्च-खराजात-सवकारखानेशत्रुजयसे दियाजाताहै, और यहसबआमदनी औरखर्चजैनश्वेतांवरोंके तावेमेंहै, जैनमेंऔसातीर्थ किसीअक्लिममें-न-देखोगे. गिरनार-समेतशिखर-आवु-औरकेशरियाजीवगेरा कइजैनतीर्थ है मगरशत्रुजयतीर्थ-पायाशाश्वताहै इसलियेसवतीर्थो में इसतीर्थकोंबडामानागया. अगरकोइयात्री-शत्रुजयतीर्थकी एकरौजमे-दो-दफे-यात्राकरनाचाहे विमलवशी-और मोतीशाहशेठकीटोंककेपास-जोनीचेउतरनेका-रास्तावनाहै उतरकर आदिपुरगांवकोंजाय, सीढीयांवेंडोलपथरोंकी बनीहुइहै, वहांपरतीथैकरनेमनाथमहाराजकी छत्रीऔरचरनपादुका तख्तनशीनहै. उनके दर्शनकरे, औरफिरवहांसे वापीसचढकरउसीरास्ते विमलशीटोंककों आवे, विमलवशीटोंकके दर्शनकरकेफिर वापीसपालितानेकी तलहटीकोलौटजाय दो-यात्रा-होजायगी,____अगरकोइयात्री शत्रुजयपहाडके सबमंदिरोंकीचारोंतर्फ छकोशकी परकम्मादेनाचाहे दरवजेरामपोलके दाहनीतर्फसें शुरूआतकरे, अवल देवकीजीकेखटनंदनकी छत्रीकेदर्शनकरे, आगेइसके चंदनतलाइ-सिद्धशिला-और- तीर्थकरअजितनाथ-शांतिनाथजीके चरणोकी दोछत्रीयआयगी. उनकेदर्शनकरे, सिद्धशिलाकीचयानपर पेस्तरकइमुनि अनशनकरके मुक्तिकोंगयेहै, इसीसबबसें कइयात्री
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( ७६ )
तारिख - तीर्थ - शत्रुंजय.
•
यहांवेठकर ध्यानसमाधिकरते है, और इससबबसे इसकानामसिद्धशिला कहा गया, आगेइसके भाडवा का पहाडजहां कि - तीर्थकर अजीतनाथ - और - शांतिनाथजीने चौमासाकियाथा, दर्शनकरके अगाडीबढना और आगेइसके कुछनीचे उतरकरसिद्धवडको आना, - यहांपर एकवटवृक्ष खडा है, नीचेइसके कइमुनियोंनेध्यानसमाधि करकेमुक्ति पाइथी. इसीलियेइसकानाम सिद्धवडमसहरहुवा यहांपरदो- छत्रीये बनी हुइमौजूद है. बस ! सिद्धवडसेंशहरपालिताने पहुचनेका सिधारास्तावनाहुवा है चलेजाओ ! छकोशकी परकम्माखतमहुड़. -
अगरकोइ शत्रुंजयपहाडकी चारोंतर्फबारांकोशकी परकम्मादेनाचाहे - तो - यहपरकम्मा भी बनी हुइ है, चाहेकोइवेंलगाडीमे सवार होकर जाय - या पैदलजाय, यात्रीकोंइख्तियार है, शहरपालितानेसे रवानाहोकर अवल शत्रुंजयनदीकोंजाय वहां पर एकछोटासा मंदिर और उसमेंतीर्थकर रिषभदेव भगवानकेचरण जायेनशीन है, उनकेदर्शनक रके आगेबढे. चारकोशआगेएक-भंडारियागांव आयगा. औरभंडारिया गांव से आगेएक- कदंबगिरिपहाड - जिसपरकदंबगणधर अगले जमाने में मुक्तहुवे थे, उनकेचरनयहां पर बने हुवे है. औरनिहायत उमदा एकछत्री - उनके निशानपर तामीरहै, — उनकेदर्शन करके आगेवढेतो चौकगांवआयगा. वहां पर आराम करें. औरदुसरेरोजहस्त गिरिपहाडकी जियारत कोंजाय. इसपहाडपर हस्तीनाम के एकगणधरमोक्षहुवे थे उनकेचरन और छत्रीयहां परवनी हुई है, दर्शनकरकेनीचेआवे. और घेटीगांव-जो-दरमियानरास्तेके आता है होते हुवेशहरपालितानेकों वापिसलोटआवे. वारांकोशकी परकम्माखतमहुइ.
शत्रुंजय पहाडपर विमल शीटोंक में जो एकमंदिरपीछेंसेंबनाहुवा दिगंबरमजहब वालोंका है - पुराने औरमूलमंदिरोंके बादवना है,
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बयान शिहोर-भावनगर-और-गोधा. (७७) शहरपालितानेमें एकमंदिरजो दिगंवरलोगोकाहै थोडेवर्षोंसेवनाहै धर्मशालाभी-थोडेअर्सेसे बनीहुइहै जितनी पुरानीधर्मशाला-और पुरानेजैनमंदिर तीर्थशत्रुजय-या-शहरपालितानेमें है सवजैनश्वेतांबरोकीतर्फसे है. हमनेइसतीर्थकी कइदफेजियारतकि और मुनिहालतमेचौमासाभी यहांठहरेहै जीसनेइसतीर्थकी जियारत नहीकिइ उसनेजैनमंदिरोंकी झलाझलरौशनी नहीदेखीयहकहना कोइगलत नही,
pe [तवारिख तीर्थ-शत्रुजय खतमहुई.] यात्रीशQजयतीर्थकी जियारतकरकेवापिस सौनगढटेशनकोंआवे, और सौनगढदेशनसें पांचमीलपूरवकों-जो-शिहोरकस्वाहै ब-जरीयेरैलकेजाय, टेशनसें (१) मील-दखनकीवाजुशिहोरकस्बा-आवादहै, शिहोरकीमर्दुमशुमारी (१०००५) मनुष्योंकी-और-उसमेकरीव (५००) जैनश्वेतांबरश्रावक आवादहै, एकशिखरबंद-जैनश्वेतांबर मंदिर-और-यात्रीयोकोंव्हरनेकेलिये एकधर्मशाला यहांपरबनीहुइ है, यात्रीइसमेंकयामकरे कोइतकलीफ-न-होगी. शिहोरकीतमाखू
और-वर्तन-तांवापीतलके-मुल्कोमेमशहूरहै, असलमेंशिहोरकस्वापहाडकेघेरेआवादहै, औरपेस्तर यहांइतनाझाडी-झुखड-थाकि-कोशोतकरास्तापाना-दुसवारथा, मगरजमानेहालमें वहसब-साफ करादियागया. ब्रह्म-कुंड-और-गौतमकुंड यहांकाबिलदेखनेके है, बाजारमें निसचीजकीदरकारहो-मिलसकेगी.-पुरानेशिहोरमें पहाडोंकेउपरकइ मकानातबनेहुवे है, शिहोरसें रैलमेसवारहोकर वरतेज टेशनहोतेहुवेयात्री शहरभावनगरजाय, सोनगढटेशनसें भावनगर तकरैलकिराया चारआने,
शिहोरदेशनसे (१४) और-सौनगढटेशनसे (१९) मीलदूर भावनगरशहरएक-लकादेशनहै, सन (१७२३) इस्वीमें भाव
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( ७८ ) बयान शिहोर-भावनगर-और-गोघा. सिंहजीने इसकोआवादकिया. जिलेकाठियावाडके पूरवकनारेयही उमदाशहरहै, भावनगरके तख्तपरजनाब-राजासाहबबहादूर-तख्तसिंहजी-बडेधर्मात्मा-राजाहुवे. कइशख्शोंकोरहमदिलीसें दौलत देकरउनोने आरामतलव किये. जमानेहालमें उनही के पुत्र-महाराजभावसिंहजी-भावनगरकेतख्तपर अमलदारीकरतेहै, औरधर्मकेकाममें आमलोगोंकों मदददेते है, भावनगरकीमर्दुम-शुमारी (५७६५३) मनुष्योंकी-रुइ-अनाज-नमककीतिजारत यहांज्यादह, इसरान्यमें (११७) स्कुले और उनमें (६३००) लडके इल्मपाले है, खास ! भावनगरमेंजो-हाइसस्कुलहै उसकीगिनती अलगसमझो,-राजमहेल निहायतउमदा-कपडेबनानेकी मील-अस्पताल-छापखाने-स्कुल-और-दिवानी-फोजदारी-कचहरीयां-वडेवडेआलिशानमकानहै, समुंदरकनारे बडेवडेजहाज-और-टीमरें आती और छुटती है, और सुरत-वंबइ तक तिजारतहोती है, भावनगरकी चारोतर्फ पेस्तर पुराना कोट
और-चारदरवजे मौजूदथे, मगरजमानेहालमें आवादी बढनेके सबब-नयीनयीइमारते तामीरहोतीजाती है, और-खूबसुरति बढती है, बाजार गुलजार-और-सोना-चांदी-जवाहिरात-मेवा-मिठाइ जो चीजचाहिये यहांपर मिलसकती है, घंटाघरकि-जिसकीअवाज दूरदूरतक फैलती है बीचशहरके बडीलागतका बनाहुवा बडेबडेकीमती-जैनश्वेतांवरमंदिर-जिनमें दादावाडीका नयामंदिर जोहालहीमें तामीरहुवाहै काबिलेदीदहै, मुनिजनोकों ठहरनेकेलिये कइमकानवनेहुवे है, दुनियादारहालतमें-मेरा-रहना इसी भावनगरमेंथा. महोले छत्रीकुवेकेपास-जहां-चंदरौज--मार्कीट बनीथी वहांघरथा,
और लडकपनमें वहांही परवरीशहुवा, ज्ञातिओशवाल-और-जैन मजहब अपना कुलधर्मथा, व्याकरण-काव्य-कोश-न्याय-और
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वयान शिहोर-भावनगर-और-गोघा. ( ७९ ) अलंकारके पढेहुवे आलादर्जेके पंडितयहांपर आवादहै. बौरतालाव अथाहजलका भराहुवा एकअखूट खजानाहै जोदुकालके वख्तभी यहांपानीकीतंगी-नहींहोनेदेता, भावनगरमें जैनश्वेतांबरमंदिर (४) औरघरदेहरासर(३) है, जैनघुस्तकालय वडेमंदिरमें निहायतपुरानाहै जैनश्वेतांबरश्रावककरीव (४०००)-औरयात्रीयोंको ठहरनेकेलिये दादावाडी एकउमदाजगहहै, टेशनपर उतरकर यात्रीसीधे दादावाडी चलेजाय, इका-वी-वगेरासवारी तयारमिलती है. जैनबोर्डिंगभी इसीजगहतामीरहे--और-कइलडके--इसमे--हमेशाइल्मपाते है, जैन पाठशाला--और-कन्याशाला शहरमेंमौजूद है. अंग्रेजीपढनेलिये हाइस्कुलभी राज्यकीतर्फसवनीहुइ-वडीलागतका मकानहै. यात्रीभावनगरकेमंदिरोकी जियारतकरके-गोघा-बंदर-जोकरीव (६) कोसकेफासलेपर आवादहैजाय, औरघनोघमंडन-पार्श्वनाथतीर्थकीजियारतकरे,
समुंदरकेकनारे गोघावंदर-एक छोटासाकस्वाहै. शहरभावनरसें यहांतकसडकपकी बाहुइऔर-सवारीकलियेइका-वगीतयारमिलतीहै, जैनश्वेतांवरश्रावकोकी आवादीकरीव-( ५०० ) की-औरघनौघमंडन-पार्थनाधका-बडाआलिशानमंदिर यहांतामीरहै, जिसकों नवखंडापार्श्वनाथभीवोलतेहै, मूर्ति-शामरंग-करीबदो हाथवडीइसमेतख्तनशीनहै, दर्शनकरकेदिलखुशहोगा, दो-मंदिरऔरभी शिखरबंदयहांपरतामीरहै. जैनश्वेतांवरधर्मशाला यहांपरवनीहुइयात्री इसमेंकयामकरे, जिसचीजकीदरकारहो यहांमिलसकतीहै, समुंदरकनारेबडेबडेजहाजआतेजातेहै, औरमुरत-भरूच-बंबइतक-तिजारत होतिहै, गोघावंदरसे जहाजमेसवारहोकर चारकोशआगेजानेपरसमुंदरमें-अक-पीरम-नामकापुरानाटापुहै,-थोडेवरस पेस्तर-जमीन खोदनेपरयहांसें पुरानीजैनश्वेतांबर (१०) मूर्तिये-निकसीधी
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( ८० )
तवारिख - तीर्थ - गिरनार.
जोकि - अब - गोघे के नवखंडापार्श्वथजी के मंदिरमेंजायेनशीन है, हमने इसतीर्थ की जियारत दो दफे कि इहुइ औरतमा मजगह बखूबी देखी भाली है
गोधावंदर सेंफिरवापिस - भावनगर - आना, और रैलमेंसवारहो करधोलाजंकशनजाना. अगरफुरसतहोतो - यहांउतरकर (६) कोशखुश्कीरास्ते वल्लभीनगरीजोकि -- पुरानीनगरी है जाना, - तीर्थंकर महावीरस्वामी के निर्वाणहुवेबाद ( ९८० ) वर्षपीछे - दुपमांधकारतरणि- जैनाचार्य - देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण महाराजने यहां ताडपत्रोंपर जैन आगमलिखेथे, जैन श्वेतांमवरमंदिर- और - देवद्विगणिक्षमाश्रमण महाराजकी मूर्ति - यहां पर - जायेनशीन है. दर्शनकरके वापिसधोलाजंकशन आना, औरधोलासे - जालिया - धसा - लाठी- चीतल - लुनीघर - कुंकावाव - खाखरीया - वावडी - जेतपर - जेतलसरजंकशन - और वाडल होते हुवे - जुनागढजाना. रैलकिराया ९-१२-० पोनेदोरूपये.
तवारिख तीर्थ - गिरनार, )
( करिब शहर जूनागढ - जिले काठियावाड. )
A
जिले काठियावाड - मुल्क-सौराष्ट्रमें- जुनागढ एक अजनवी - और नाया शहर है, अमलदारीनवाब साहबकी - टेशन सेशहर बहुतकरीबऔर जाने आनेकेलिये सवारीइका - बगी - हरवख्त मिलती है, खास ! दरवजेकेनजदीक एकमुसाफिरखाना बना हुवा है, मगरजैन श्वेतांवर यात्री को शहर में हीजानामुफीद है, - बाजारवडेलंबे - और - ग्रीनचौकवडी गुलजारजगह है, जिसचीजकी दरकार होयहां मिल सकती है, राजमहेल बडे उमदा - रंगबेरंगेचित्र - मेहराबें-- झाडफनुस - तस्वीरे - बडेबडे आइने औरसोना चांदी की कुशियें - इसमें रखी हुई है, बाजारमोहब्बत-सर्किल में - हर किस्म की चीजें - यहां भी मिलती है, -
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तवारिख-तीर्थ-गिरनार. (८१) खास ! जुनागढकी मर्दुमशुमारी ( ३१६४०) मनुष्योकीअस्पताल-कचहरी-और-कइउमदाउमदा मकानात यहांपर तामीरहै रुइकी पैदाश ज्यादह-सकरबाग-और सिरदारबाग यहां देखनेकी जगहहै, उमदा मकानात-पानीकानाला-और-और-हिरन-वगैराजानवर इसमेंरखेहुवेहै, महोले उपरकोट-किला-रायखेंगारकेवख्तका-तालाव-पुरानीइमारतें--औरतलघर अजनवीवनेहुवे है, फाटककेउपरसन ( १४५० ) इस्वीकावनाहुवा एकशिलालेखदो-पुरानीतोपें-जुमामशजिद-दो-चावडीयें-और-कइगुफायें बनीहुइहै, जैनश्वेतांबरश्रावकोंकेघर जुनागढमेंकरीव ( १२५ )-महोले उपरकोटमें धर्मशालातीन-एक हेमाभाइशेठकी-दूसरी–बाबुकीतीसरीलीमडीवाली पुरीबाइकी-यात्रीकोइख्तियारहै दिलचाहेवहां ठहरेकोइमनानही, जैनश्वेतांवरमंदिर जुनागढमेंदो-एक शिखरबंद
और-दूसराछोटा-तामीरहै, खजानातीर्थ-गिरनारका-देवचंद-लक्ष्मीचंदकेनामसे-जुनागढमें नारी है. मुनीम-गुमास्ते-नोकरचाकरघंटाघडीयाल-चोकीपहरा-चपरासी-वगेरासवठाठराजसी, जमाने तीर्थकरनेमनाथजीके बडेबडेमहेलात-और-किले--यहांपरमोजूदथे, दशदशाखरवीरपुरपके बनायेहुवे वडेवडे आलिशान-मकानकिजिनपरवेंशुमार दोलतलगीहुइ-और-खजानेयहांपर मामूरयें, अ. बभीवहमकानात-औरखजाने जमीनसेनिकलते नजरआतेहै, पेस्तर यहाएकगढनामका किलापूरवदिशातर्फ मशहूरथा-और-उसकेतीन नामथे-उग्रसेनगढ-जीर्णगढ-औरखेंगारगढ-जिसमें-जीर्णगढकानाम जुनागढकहलाया, संस्कृतजवानमें जुनेकोंजीर्णकहते है, इसीलीयेलोग भाषामेंजुनागढनाम मशहूरहोगया, पेस्तर यहांपरतीर्थकररिषभदेवभगवानकाबडापुराना मंदिरथा. यादववंशीराजौने कइ-जैनमंदिरयहां तामीरकरवायेथे जोकि-व-सबबगर्दासजमानेके अबनहीरहे. बाद.
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( ८२ ) तवारिख - तीर्थ - गिरनार.
तीर्थकरनेमनाथजीके कइजैनधर्मावलंबीराजे यहांपरहुवे कहांतक कोई बयान लिखे, विविधतीर्थकल्प ग्रंथ में तहरीरहै कि - राजा - जयसिंहदेव ने खंगाररायको परास्त करके यहांपर अपना अमल दरामद किया और संवत् ( ११८५ ) में तीर्थकरनेमनाथजीका मंदिर फिरतामीर करवाया, जो अबतक मौजूद है, - संवत् ( १२२० ) में छत्रपतिराजा कुमारपाल के कोतवालदंडाधिपति ने गिरनारपहाडपर सीढियां बनवाई, जोकि - श्रीश्रीमालज्ञातिकाथा. सीढीकेदाहनेतर्फ लक्षारामनामकावागया, मगर वह अवगदीस जमानेकेवरावाद होगया. दिवानवस्तुपाल तेजपाल - जोकि - राजावीरधवलके वजीरथे. उनोनेकरीबगिरनारपहाshएक शहरतेजलपुरनामकायहां आवाद कियाथा. और उसमें अपने वालिदकेनाम से एक मंदिर तामीरकरवाकर तीर्थंकर पार्श्वनाथजीको मूर्तितख्तनशीन कि थी. और उसकानाम आसराजबीहार रखायावाल्दा कुमरदेवी के नाम से एक - कुमरसरोवरवनवायाथा, तेजलपुर और जुनागढ — दोनो बहुत करीबथे इसलियेदोनो एकनामसे जुनागढ मशहूर होगये, -
[ पहाड - गिरनार, ]
शहर जुनागढसे पूरवकोंगिरनारपहाड जैनोका एकवडा मशहूर तीर्थ है. शहर पहाडकी दामनतककरीव ( २ ) कोशका रास्ता होगा, इक्का - बगी - बैलगाडी - म्याना - पालखी - डोली - वगेरासवा - रो आसानीसें जासकती है, जिसकीखुशीहो सवारीमेंजाय - या - पांचपैदल जाय. बडेबडेदृरूत - और - तरहतरहके जंगली मेंवाजात कसरतसें खडे है. बंदरों के झुंडहरूतोंपर कलोलेकर तेरहत है, रास्ते में दाहनीतर्फ - - राजानियत - अशोकका - शिलालेख - एकतर्फदामोदरकुंड- तुवर्णरेखा नदी - पहाडकीतराइमें उमदातालाव - हख्तोंकेझुंड और जगह सुहावना है, खास ! पहाडकीदामनमें- तलहटी - और - दो
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तवारिख तीर्थ - गिरनार.
( ८३ )
जैन श्वेतांबरधर्मशाला बनी हुइ - जिनमें - एकशेठ - प्रेमचंदरायचंदजीकी दूसरी फुलचंदभाइ - लख्तरवालोंकी दोनों धर्मशाला में करीब (५००) यात्री - व - खूबीठ हरसकते है, यात्रीकों यहां पर अगरखानपानकरनाहो करे. हाजत - व - शरीरे फारकहोकर बदनसाफ करे. औरपहाड पर जानेकी शुरुआत करे, शुरुमेंएक आलिशान दरवजावनाहुवा उसमेंहोकर सीढीके उपर कदम रखे,
समुंदर के पानी गिरनारपहाड (३६७५ फुटऊंचा-औरइसका दुसरानाम रैवताचलभी है, तीर्थकर नेमनाथजीने इसीपहाडपर मुक्ति पाई. और उनके दिक्षा - केवलज्ञान-और-मुक्ति- ये तीन कल्याणकयहांहुवे. कृश्नवासुदेवने यहांपर तीर्थकरनेमनाथजीके बडे बड़े आलिशानमंदिर और मूर्त्तियें तख्तनशीन किवी, मगरतत्रदील जमाने की वजहसें - वे - मंदिर - और - मूर्तियें अब नही रही, कइराजेमहाराजकी सलतनतइस जमीनपरगुजरी जिनकानामनिशानभी पुरेपुरा नजर नही आता, कृश्नजीकेवडेभाइ बलभद्रजीका तामीर करवायाहुवा मंदिरभी इसपहाडपरथा, मगरवहभीनहीरहा, तीर्थंकरनेमनाथजीने इसीगिरनारपर सहस्राम्रवनमें दीक्षाइख्तियार किथी. वह जगह बडेबडेताज्जुब - और नायाबकी है, तरहतरह केमे वा जान - बनास्पति अनार - वा-नारंगी - यहां-व- कसरतके मौजूद है. परींदाजानवरमौर - तोते - चीडिया-मैना वगेरा हरकिस्म के हख्तापरक लोलेकर रहे है, चीस्मे - आब - मानदेबर्फ -सफेद और मीठा यहां पर जारी हैं,
•
गिरनारकी गुफायें मुल्कोंमेंमशहूर बडेबडे मुनिमहर्षियोंने यहां परध्यानसमाधिकि. सोने-चांदी - जवाहिरातकी खानें यहां परमौजूदथी. तरहतरहकी जडीबुटी औररसकुंपिका यहांपरकायमदायमथी मगर आजकल उनकेपहिचाननेवाले नही रहे,
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(८४)
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तवारिख-तीर्थ-गिरनार. [अनुष्टुप-वृत्तम् ]
न-स-वृक्षो-न-सा-वल्ली-न-तत्पुष्पं-न-तत्फलं, नेक्षतेत्राभियुक्तैर्यत्-इत्येतिह्यविदो विदुः,
ज्ञानशिला-छत्रशिला-और-अंजनशिला-वगेरा कइशिलाध्यानसमाधिकेलिये यहांपरमशहूरथी. मगरआजकल-वे-नामांतर होजानेकीवजहसे पहिचाननेमेंनहीआती. वेगवतीऔर ज्ञानशिलाके निचेऐसीमीटीहोतीथीकि-अगरतरकीबकेसाथ उसकोपकाइजाय-तो सोनाहोजाताथा, मगरजमानेहालमें वहतरकीब-और-उसमीटीकों पहिचाननेवाले नहीरहे, पेस्तरजो-किमियागिरिका इल्मथा-वहझुठानहीथा, वेशक ! आजकलइस इल्मकेजाननेवालेनहीरहे, गिरनारपहाड आजकलभी तरहतरहकी वनस्पति और चीस्मेआबसेतरब-तरहै, आवहवायहांकी साफऔरउमदा-गिरनारपहाडकी सीढियां-जोकि-राजाकुमारपालके कोतवालनेवनवाइथी पुरानीहोजानेकी वजहसे यात्रीकों चढनेकी तकलीफथी, जैनश्वेतांबर संघने करीब अढाइलाखरुपये सर्फकरके वास्ते आरामके नयी सीढिये बनवाइ. जिससेंयात्री इनदिनों में बहुतआसानीसे आतेजाते है,
गिरनारपहाड बडेबडेजैनमंदिरोसें मुझयन-औरकाबीलेदीद है. तीर्थकरनेमनाथजीने इसपहाडपर ध्यानसमाधि करके मुक्ति पाइ, इंद्रदेवते उनकीखिदमतमें हानिररहतेथे. पेस्तरकेजमानेमें कइजंघाचारण-विद्याचारणमुनि इसपहाडपर कदमरंजा फरमाचुकेहै जिसके बडेभाग्यहो इसतीर्थकी जियारतकरे, रास्तेमें कइजगह उमदाबेठके
और-तरहतरहकीखुशबु मेहकरही है, तलहटीसेंकरीब ( २ ) मील तीर्थकर नेमनाथजीकी टोंकहोगी, अवलटोंकइसीकोंकहते है, यात्री
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तवारिख-तीर्थ-गिरनार. (८५) यहांपरपहुंचकर तीर्थकरनेमनाथजीकी मूर्तिकेदर्शनकरे, बडेघेरे मेंदिरोंका जमावबनाहुवाहै, पूजारी-नोकर-चाकर सबइंतजामउमदा तौरसेंकायमहै, तीर्थकर नेमनाथजीकी टोकपरबडेबडेसोलहजैनमंदिर निहायतखूबसुरतिकेशाथ एकदूसरेसेंबढकर बेशुमारदौलत-और-पुख्तगीसेंबने है, देखकरदिलखुश औरताजाहोगा, (१४५ ) फुटलंबे और (१३० ) फुटचोडेअंगनमें तीर्थकरनेमनाथजीका शिखरबंदमंदिरबहुतखूबीकेशाथ तामीरहै, औरइसमेंतीर्थकरनेमनाथजीकी मूर्ति-शामरंग-और-हमेशां सोनेजवाहिरातोंसें सजीहुइतख्तनशीन है, दर्शनकरकेदिलखुशहोगा, सन (१२७८) इस्वीमेंइसकीमरम्मतहुइ, बडेबडेरंगमंडप-चरणपादुका-और शिलालेखयहांपरमौजूदहै, तीथैकरनेमनाथजीके मंदिरकी-चारोंतर्फउमदा ताजगीसें बनेहुवे छोटे छोटे (७०) मंदिरदेखकरदिलखुशहोगा, बायीतर्फबडेबडेआलिशान तीनमंदिर-एकमंदिरमें तीर्थकररिषभदेवभगवानकी मूर्त्तितख्तनशीन है, सामनेइसके पांचभाइयोंकामंदिर-पश्चिमकीतर्फबडा आलिशान पार्श्वनाथजीकामंदिर-और-इसके उत्तरकीतर्फ फिरएकमंदिरपार्थनाथजीका-इसकेउत्तर बगलकेपास-मंदिर-छत्रपतिराजाकुमारपाल का-और-नेमनाथजीकेमंदिरसे पिछाडीदिवान-वस्तुपाल-तेजपाल केबनायेहुवे तीनमंदिर-जोकि-सन ( ११९९ ) इस्वीकेअर्सेमेतामीर करायेगये है, बडीलागतके है,
छत्रपतिमहाराज संप्रतिकाबनायाहुवा शिखरबंदकीमतीमंदिर बडीलागतका औरपुरानाहै. उसकीशिल्पकारीगिरीपर आजबिल्कुल वेपरवाइहोरही है, औरउसपरचुनापुतवायाजाताहै. असलमेंऐसीकारिंगरीपर चुनापुतवानाकोइजरुरतनही. वगेरचुनेकेही-वे-निहायत खूबसुरतमालूमदेते है, देखोखुशनसीबोंने क्याक्या उमदा कारीगिरी किइथी जो ज़मानेहालमें होनादुसवारहै, पथरोपर नक्सकारी और
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( ८६ ) तवारिख-तीर्थ-गिरनार. तरहतरहकेचित्र जो अव्वलके कारीगिरीने अपनी चतराइसें कियेथे वैसेचित्रऔर नरूसकारीकाकाम. अबकहां है, किसकदर खुशनसीब
औरइकबालमंदोने यहांपर अपनीदौलत सकिइथी जिसकीवरावरी करना आजकलनहीहोसकता, खुशनसीब औरधर्मपावंद होतोऐसेहो अबभीमंदिरोंपरऔरदिवारोंमें जोजोकारिगिरी औरनक्षकारीकामहैअगरकोइखुशनसीब उसपरकोशिशकरे. औरमरम्मतकरावे क्याहीउ मदाबातहो! नयामंदिरबनानेसें पुरानेमंदिरोकी मरम्मतकराना जादह फायदेमंदहै, तीर्थकरनेमनाथजीकी टोंक-और-मेकरवशीकेबीच जोबडे बडेहर्कोके शिलालेख हैबेशक : इसवख्त उनपर लकडेकेढकनबनेहुवे है मगरघुप औरबारीशमें औरभीज्यादहहिफाजत होनाजरुरी है पुरानीची जोंकोंबरबाद-न-होनेदेना इसीकानामतीर्थकीसेवाहै. संवत् (१९३२) केअर्सेमेंगिरनारपहाडपर कइमंदिरोंकीमरम्मतकिइगइ. नेमनाथमहाराजमंदिरकी चोतर्फ-जो-किला-और परकम्माहैउसकीमरम्मतहुइ, मंदिरअदभुदजीका-पंचमेरुका-और-मेकरवशीका-मय परकम्माके जीर्णोद्धारकरायागया, मंदिरसंग्रामसोनीका-और उसकाचौक मरम्मतकियागया. मंदिरजोकि-ज्ञानवावडीके-ननदीकहै किलाउसका नयातामीरकरायागया मंदिरछत्रपतिमहाराजा--संपतिकाभी उसी अर्सेमेंमरम्मतकियागया. औरउसमेंनयेपथ्थरोका चौकनयावनवाया गया, करीब (३०) वर्षहुवेइसीचौकमेंसे (७१) मूर्ते-और-धातुका परिकरनिकलाथा. मंदिरवस्तुपाल-तेजपालकी चारोंतफनयाकिला धनवाया. औरचौकमेंनयेपथ्थरोंका फर्सलगाया. मंदिरसंभवनाथजीका-और-पानीकाकुंड उसीअर्सेमेंमरम्मतकरायागया. औरचारों तर्फनयाकिलातामीरकिया, राजुलगुफा-और-रथनेमिनीका-मंदिर जिर्णोद्धारकरवायागया. औरअवलदरवजेपर नयाबंगलाबना. यह सबकाम-शेठ-नरसिंह-केशवजीकीतर्फसें ( ४५००० ) हजाररुपयोंकेखर्चसेतामीरहुवाहै.
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तवारिख - तीर्थ - गिरनार.
( ८७ )
गिरनारकी गुफायें पेस्तरबडीथी, और उनमे बडेबडेमुनिमहर्षि ध्यान किया करते थे, अबभी कइगुफाये मौजूद है. जिनोनेइसतीर्थकी जियारत कि है उनको बखुबीमालुम होगा. जिनके बडेभाग्यहो इस तीर्थ की यात्रा करे, धर्मशाला- पानी के कुंड - कोठी - और - कारखानासबइंतजाम अछावना है. नेमनाथजी की टोंक से आगे दुसरीटोंकके दर्शनोंकों जाना चाहिये. रास्तेमें पानी के हौज - पकानात - औरराजुलगुफा वगेराआते है. दुसरीटों कसें आगे तीसरीटोंककोजाना सहस्राम्रवन जानेकारास्ता तीसरीटों कसें फटता है. सहस्राम्रवनसे आगे अगरकोइ यात्रीनीचे तलहटीकों जानाचाहतो जासकता है, रास्ता पगदंडीका बाहुवा है, सहस्राम्रवनमें तीर्थकर नेमनाथमहाराज के दीक्षाकल्याणि - ककी जगह - छत्री - और - चरन जायेनशीन है, दर्शनकरके जोकोइ यात्री पांचमी टोंकों जानाचाहे फिरवापिस आनकर चौथीटोंकको जावे, चोथीटों पर तीर्थकर नेमनाथजी की अधिष्ठात्री देवी अविकाका मंदिर बना हुवा है, चोथीटो कसे आगे पांचमी टोंकका रास्ता शुरु है, उस रास्ते - पांचवी टोंकक जाय. रास्ताअलवते ! कठिन है. असलमें पांचवीटोंक गिरनारपहाडके सीरेपर और पहाडकासीरा - आस्मानसें बिलकुल बराबरीकररहा है. यात्रीकों पाचवीटोंककोजाना दुसवार और हेरानी मालुम होती है, गोकि - जवान आदमी हो - बगेरेलकडी के जाना नहीहोसकता. इससववसेहरयात्री वहांपरजानेकेलिये बतौर सहारे के लकडीशाथ लेजाता है, जिसके बडेभाग्य हो इसतीर्थकी जियारत करें पांचवीठोंकपरतीर्थकर नेमनाथजीके चरणजायेनशीन है, और एक मूर्त्ति दिवा में उकेiss उसके दर्शन करे. - जगह सुहावनी- देखकर दिलखुशहोगा. - जिसवन्तइसटांकपर खडेहोकर नजरफेरेतो मालुम देताहैमानो ! आस्मानसें जमीनकी शैरकर रहे है, तरहतरहकी हरिया -
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(८) तवारिख-तिर्थ-गिरनार. ली-गांव-बगीचे-और-शहरजुनागढ सामनोदखपडताहै, इसटोंकके दर्शनकरके यात्री वापिस आनेका इरादाकरे. गजपदकुंड-सूर्यकुंडतरहतरहकी वनास्पति-और-जडीबूटीयें यहांपरखडीहै, कहांतक कोइबयानकरे. पांचवीटोंकसे चौथीटोंक-और-चौथीटोंकसें तीसरी, तीसरीसे-दुसरी-और दुसरीसे पहेली-इसतरह जिसरास्ते गयेथे उसीरास्तेहोकर नीचेतलहटीपरआजाय,-यहांपरकयामकरनाहो-बेशक ! करे-या शहरमेंजानाहो शहरमेंजाय, गिरनारपहाडकाचढाव तलहटीसें पांचमीटोंकतक (६) मील-आतेजाते (१२) मीलहुवे. शुभहकोंगयेहुवे यात्री शामकों ब-खूबीवीछे-लौटसकतेहै,- .
- छत्रपतिमहाराजसंपति-छत्रपतिमहाराज कुमारपाल-दिवान वस्तुपाल तेजपाल-और-संग्रामसोनी-जिनके तामीरकरवाये हुवे जैनमंदिर यहां मौजूदहै.-वे-सब जैनश्वेतांबर आम्नायके श्रावकथे,
सुरासुरा अप्यतुलप्रमाणं-नमंतिबद्धांजलयो यमुच्चैः, ध्यायंतियं योगविदोहृदंतः-तं नेमिनाथंप्रणतस्तवीमि,
अनुष्टुप-वृतम्] स्थानेदेशः सुराष्ट्राख्यो-विभर्ति भुवनेप्यसौ, यद्भूमिकामिनीभाले-गिरिरेषविशेषकः, सहस्राम्रवनं लक्ष्यारामोन्यपि वनवजाः, मयूर कोकिला गी-संगीतसुभगाइह,
नदीनिर्झरकुंडानां-खनीनां विरुधामपि, ... विदांकरोचात्रसंख्या-संख्यावानपिकःखलु, . . . रैवताद्रिमणिरत्न-किरणैर्धनवर्णकः,
अयत्नं चित्र निर्माण-मासीत्तत्रजिनालये,
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बयान-पौरबंदर-और-द्वारिका. (८९) सन (२१०) इस्वीकेपेस्तरसेंगिरनारतीर्थ जैनश्वेतांबरोंकेजियारतकी जगहमशहुरहै-ऐसा-इतिहासकारोंकाभी फरमानाहै,
( तवारिख-तीर्थ-गिरनारखतम-हुई,-) तीर्थगिरनारकी जियारतकरके जुनागढसेंअगरकोः पौग्दर तकरैलमें औरपोरबंदरसें ष्टीमर बैठकर समुंदरकेगन क . हुवे मुल्ककछको जानाचाहेतो जासकतेहै, अगरको ..... केरास्ते राजकोट-जामनगरहोकर-जाम मीना : रास्तेमुल्ककछकों जानाचाहेतोभी जासकतहै. जिनकाकछके जै:तीर्थजानेकी फुरसत-न-हो-और-जुनागढसे धोलाजंकशन होतेहुवे-वढवान-वीरमगांव-अहमदाबादके रास्ते-उतर-पूरव-या-दखनकों जानेकाइरादाहो-तोभी-जासकतेहै, कइगस्तेहै जिनकीजैसीमरजीहो-मुताविक उसकेसफरकरे,
( बयान-पोरबंदर-और द्वारिका. . . (जुनागढसे पोरबंदर द्वारिकाहोतेहुवे-)
(मुक्लकछ जानेका रास्ता.) *जुनागढसे-वडाल-जेतलसरहोकर धोरांजीजाय, यहांपर मैनश्वेतांबरमंदिर औरआवादीजैनश्वेतांबरश्रावकोंकी अछीहै, मर्दुमशुमारी ( २०४०६ ) मनुष्योंकी-और-जिसचीजकी दरकारहो
* जुनागढसें दखनमें वेरावल-पाटन-जैनोकी आबादीकेशहर और-उनमें बडेबडेआलिशान जैनमंदिरबनेहुवेहै, रैलकिराया -पनरह आने,
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( ९० )
बयान - पोरबंदर - और - द्वारिका.
यहां मिल सकेगी. जिलेकाठियावाडमें एकमशहूर तिजारतीकस्बा - और- चारोतर्फइसके पकी दिवारघिरी हुई है, धोराजीसेडपलेट-भायाबदर- जामजोधपुर-साखपुर - और - रानावाव - होते हुवे पोरबंदरटेशनजाय. रैलकिराया - सवारूपया. जुनागढसे ( ९५ ) मील - पश्चिमकी तर्फ - समुंदरकनारे देशी राज्यकीराज्यधानी - पौरबंदरशहरजिसको बहुत लोग - सुदामापुर बोलते है यहीं है, पौरवंदरकी मर्दुमशुमारी - ( १८८०५) मनुष्योंकी - जिनमेकरीव (१००० ) जैनश्वेतांबरश्रावकलोग आवाद है, कइजैन श्वेतांबर मंदिर - और - ठहरनेकेलिये मकानवने हुवे है यात्री - जाकर देवदर्शनकरे. पौरवंदरकी चारों तर्फ पकाकोट - - और -- बहुत से मकान यहांपथरोंके बने हुवे है, राणासाहवके महेल - कचहरी - स्कूल - अस्पताल - और - धर्मशाला-बडी लागत के मकान है. पौरवंदरकी - तिजारत समुंदर के रास्ते - सिंध - बलुचीस्तान - फारस की खाडी - अरबस्तान -और- आफ्रिका के बंदरगाहोत होती है, हिंदमें - मुरत - भरूच - नवसारी - बंबइ-को
--
कन-और- मलबारतक होती है, पौबंदरराज्य समुंदरकनारे बडीदूरतकलंवा फैलाहुवा मगर चोडाइमे (२४) मीलसें ज्यादहनही, जमीन - उपजाउ है. राज्यमेंतीन-चार - छोटी-छोटी - नदी बहती है औरलोग अमनचैनकररहे है, बंबइसे - जो-टीमर - वेरावल - मांगराल -पोरबंदर और - द्वारिका होती हुइ करांची जाती है उसीमें द्वारिकाजानेवालेयात्री पौरबंदर सें सवारहोवे. सेकंडक्लास पासेंजरकेलियेदोरूपये - और - थर्डकलासवालेकेलिये एकरूपया किराया लगेगा. ड्रीमरसे चढने उतरनेवाली जोछोटीनाव होती हैउसका किराया (४) आने अलगलगेंगे. -
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बयान-पोरबंदर-और-द्वारिका. (९१ )
ॐ तीर्थ द्वारिका. बंबइसे (३४२ ) मील-और-पोरबंदरसे (५६) मील-पश्चिमोत्तर द्वारिकानगरी-एकनिहायतपुरानीजगहहै, पौरबंदरसेद्वारिकातकखुश्किरास्ता बनाहुवाहै, जोलोगष्टीमरमें बेठना-नापसंद करतेहो उनकोखुश्कीरास्तेजानाही बेहत्तरहै, पेस्तरकेजमानमेंजवदश दशारवर वीर-पुरुष-समुद्रविजयजी-उग्रसेनजी-और वसुदेवजीयहोरहतेथे उसवख्तद्वारिका बडीरवनकपरथी, बडेवडे आलिशानजैन मंदिरयहां मौजूद थे, क्या ! उमदामहल--समुद्रविजयजीके -उग्रसेनजीके वसुदेवजीके-और--उनकीरानीयोंकेथे--जिसकी तारीफ बयानकरना अकलसेबइदहै. जमानेहालमेंजो द्वारिकामौजूदहै नयी आवादहुइहै--पेस्तर द्वारिकाकिसकदरझलाझल रौशनीलियेथी ? वहरौशनी-और--खूबसुरतीअबकहाहै ? बरायेनाम-एक छोटीसी पुरी-देखलो ! जमीनवेशक ! वहीहै-मगर-वे-खुशनशीब--और -दौलतमंदलोग अबनहीरहै, इसवख्तद्वारिकाकी मर्दुमशुमारीकुल्ल (५०००) मनुष्योंकी-आठ-दस-धर्मशाला-पांचसातस्कुले-काअस्पताल-पुलिस-और-जेलखाना-वगेरेमकान बनेहुवेहै, समुंदरकनारे-नमकबहुत औरइसीसबबसे शस्ताभीविकताहै, शिवायनमकके दूसरीचीजकी पैदाशयहांकमहोतीहै, गोमतीनामकी खाडीयहां बड़ी लंबीचलीगंइ-जोकि-पानीसे-हरहमेंश-तर-ब-तरबनीरहतीहै, कनारेइसके (९) घाट-बडीलागतके वनेहुवे-जिनकेनाम-संगमघाट-वसुदेवघाट-और-पांडवघाट-वगेरा, द्वारिकाकों वैदिकमजहब वालेभीतीर्थ मानतेहै, द्वारिकासें (१०) कोशआगे बेटद्वारिकाएकअलग--टापुहै, पेस्तरलिखआये द्वारिकानगरी-बहुनबडीथीअसलमे-ये-सब-उसीके अलगअलगाहस्से होगयेहै, जैसासमझो,
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( ९२ )
बगान - पोरबंदर- और - द्वारिका.
द्वारिका से बेटद्वारिका ( ७ ) कोशपर है, रास्ताखुश्की सडकका बना हुवा - सवारीकेलिये बैलगाडीमिलसकती है किरायाएकरूपया गाडीलगेगा. सारंडा - गांवतकवैलगाडी जायगी और आरंमडासे (३) कोशआगे समुंदर की खाडीमे - व - जरीयेनावके - जाना होगा. किराया नावका सीर्फ ! आआनाहै, द्वारिका - टापु - करीब ( ७ ) मीललंबाकड़धर्मशाला - तालाव - और - हरजगहपकेघाट बंधेहुवे है. जगह सोहावनी - और समुंदरकीतरंगे दिलकों मोहेलेती है, जैन श्वेतांबर मंदिरयहां तामिरहै, द्वारिकामें पेस्तर जैनतीर्थथा - तीर्थकर नेमनाथजीके हडेकीमति मंदिरथे, - मगरजमा नेहाल उनमेसें एकभीनही - सीर्फ ! सीमंदिर दर्शनकरके - तीर्थद्वारिकाकी जियारतहुइ समझे after द्वारिकाआनकर समुंदरकेरास्ते ष्टीमर में सवार होना और nisatiरजाना और आगेमुल्ककछके जैन - तीर्थ - घृतकल्लोलऔर-भद्रेश्वरकी - जियारत करना - जुनागढ से पौरबंदर- और - द्वारिकाकारास्ता खतमहुवा,
अगरकोइयात्री जुनागढसे पौरवंदर के रास्ते - न - जानाचा है औररैरास्ते जुनागढसे जामनगर और जामनगरसे खुश्कीरास्ते बैलगाडीमें द्वारिकाजावे तो भी जा सकते है, - मगरको जुनागढसेरेल रास्ते जागर जामनगर से समुंदररास्ते टीमरमेसवार होकर तुरहोते मुल्कों जाना चाहे तो नीचे बतलाये हुवे रास्ते जाय, -
जुनागढसे रैलमेसवार होकरवडाल - जेतलसर - नवागढ - वीरपुर-गोंडल - और - रिवडा -होते राजकोटजावे, रैलकिराया पनरां आने लगते है, पोलिटीकल एजंटका सदरमुकाम राजकोट - जिलेका -
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वयान-राजकोट-और-जामनगर. ( ९३ ) ठियावाडमें एकगुलजारवस्तीहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारिकेवख्त राजकोटकी मर्दुमशुमारी ( २९२४७ ) मनुष्योंकीथी. महाराजराजकोट जाडेजाराजपुत कहलातेहै राजकोटराजकी जमीन कहींचीकहीं नीचीऔर पथरीलीहै, औरअनाज-रूइ-इख ज्यादह पैदाहोतेहै, हाइस्कुल सन ( १८७५ ) इस्वीमें ( ७०००० ) रूपयोके खर्चसे तयारहुवा औरखुला. राजकुमार कालेजसन (१८७०) इस्वीमें तामीरहुवा औरखुला. राजकोटमें जैनश्वेतांबरमंदिर-और श्रावकोंकेघर आवादहै, जिलाकाठियावाड ( २२० ) मीललंबा और ( १६५ ) मीलचोडा-इसमेंमशहूर शहरभावनगर-जामनगरजुनागढ-राजकोट-गोंडल-मोरबी-बांकानेर-पोरबंदर-वढवांणलींमडी-और-पालितानाहै. रूइऔर अनाजकीतिजारत इसजीलेमें ज्यादहहोतीहै औरजवानअकसर गुजराती बोलीजातीहै, खास ! पोलीटीकल एजंट-मुकामराजकोटमें रहतेहै, जिलेकाठियावाडमें शचुंजय-गिरनार-मशहूरजैनतीर्थहै, यात्रीराजकोटसे रैलमेंसवारहोकर पडधरी-हडमतीया-वणथली-और-अलियावाडा टेशनहोतेजामनगजाय, रैलकिराया बाराआने लगतेहै.
राजकोटसें (५१) मील पश्चिमका जामनगर एकमशहूरव-मारूफशहरहै, और इसकादूसरानाम नयानगरभी बोलतेहै, सन (१५४०) इस्वीमें जामरावलजीनेइसकों आवादकिया, जामनगरकी मर्दुमशुमारी ( ४८५३० ) मनुष्योंकी, राजमहल बडेउमदा -और-शहरदिनपरदिनतरकीपरहै, अतराफशहरके पकाकोटघिराहुवा-इमारतें मजबुतपथरोंकी-शिवायजामनगरके दुसराकोइउमदा शहरहालारप्रांतमें नहीं, कारचोबीकाकाम--कमख्वाब-रेशम-दुपट्टे शैले-तिलककरनेका कुंकुम-मोतीका सूरमा-औरइतरयहां उमदाबनतेहै, जैनश्वेतांबरमंदिर जामनगरमें (९) औरश्वेतांवरश्रावकाके
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( ९४ ) बीचबयान-भद्रेश्वर-और-घृतकल्लोल.
घरअंदाज (१५०० ) केहै, जैनश्वेतांबरमुनियोंको ठहरनेके आठ नवमकान-बगीचादादाजीका-और-वंडा-अजरामरहरजीका-बडीलागतकाबनाहुवा-यात्रीइसमें कयामकरेऔर बखूबीजैनमंदिरोंके दर्शनकरे, जिलेजामनगरमें मारबलपथ्थर-तांबा-लोहा-रूइ-औरअनाजज्यादहहोताहै. पहाडीयोंमें पेस्तरशैरभी रहाकरतेथे, चीते
औरतेंदुएअबभी पायेजातेहै, जामनगरके राजवंशीजाडेजा राजपुतोंमेंसेंहै, जामनगरकीउत्तरतर्फ कछकारण-और-समुंदरकीरखाडीपूरवमेंमोरबी-राजकोट-औरगोंडलराज्य-दखनमेंसौराष्ट्र विभाग
और-पश्चिममेंऊखमंडल-मौजूदहै, यात्रीजामनगरसे रवानाहोकर मुल्ककछकोंजाय, अवल बेंडीबंदर जोकरीब (२॥) कोशकेफासलेपरहै इक्कमेंसवारहोकरजावे, बेडीवंदरसे आगेष्टीमरमें सवारहोकरदरियाइरास्ते-तुणावंदर-ऊतरे, रास्ताकरीव तीनघंटेका-और -किरायासीर्फ ! आठआनेफी-आदमीलगेगा, तुणावंदरसेआगे खुश्कीरास्ते-बैलगाडीमें-सवारहोकरतीर्थभद्रेश्वरजाय,
ve [ बीचबयान भद्रेश्वर और घृतकल्लोल. . मुल्ककछमें भद्रेश्वरतीर्थ निहायतपुरानाहै, गांवभद्रेश्वरबहुत बडानहीलेकीन ! तीर्थकीवजहसे मशहूरहै,-धर्मशालायहांपर बनीहुहुइहैयात्रीइसमें कयामकरेऔर तीर्थकीजियारत हासिलकरे, मंदिर शिखरबंद बावनजिनालयका-बडाआलिशान-बनाहुवाऔर इसमें तीर्थकरमहावीरस्वामीकी मूर्तितख्तनशीनहै, सालमेंदोदके यात्रीयोंकायहां मेलाभरताहै और ऊनदिनोंमेंबडी रवन्नकरहतीहै, कारखानातीर्थ भद्रेश्वरका वर्द्धमानकल्याणजीके नामसेजारीहै जोकुछरकमतीर्थ भद्रेश्वरके खजानेमेंदेनाहो-यात्री-यहांपरदेवे, औरभद्रे. श्वरसेरखानाहोकर शहरमांडवी बंदरकोंजाय, जो-करीब (१३)
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बीचबयान-भद्रेश्वर-और-घृतकलोल. (९५) फासलेपरहै. रास्ता बैलगाडीका और किराया अंदाज तीन रूपये लगेगे.
मांडवीबंदर कछके दखनकनारेएक बडाशहरहै, सन (१८९१) की-मर्दुमशुमारिकेवख्त-मांडवीकी मर्दुमशुमारी ( ३८१५५ ) मनुष्योंकीथी. मुल्ककछमें शिवायमांडवीके दूसराकोइ बडाशहरनही. महाराजकछकी अमलदारीकातख्त-बेशक ! भुजशहरहै, मगरआवादीमेंशहरमांडवी बडाहै, भुजशहरकीआवादी (२५४२१) मनुप्योंकी-औरमांडवीकी ऊपरबतलाचुकेहै देखलो ! ज्यादहहै. अतराफशहरमांडवीके पकीदिवारवनीहुइ औरबहारशहरके दो-सरायएकपुरानी औरएकनयी मौजूदहै जिनमेंमुसाफिरलोग ठहराकरतेहै. मगरजैनयात्रीको शहरमें जानामुफीदहोगा-जामनगरसे कइजहाज कछकीखाडीकेरास्ते मांडवीकों आतेजातेहै, हरसप्ताहमें जोएकष्टीमर शहरवंबइसे खुलकरकरांचीकों जातीहै वेरावल-पोरबंदरद्वारिका-और-मांडवीबंदरहोतीहुइजातीहै, और करांचीसेखुलकर जोष्टीमरबंबइकों रवानाहोतीहै-चोभी-मांडवीबंदर-द्वारिका-पौरबंदर-औरवेरावलहोतीहुइ जातीहै, मांडवीबंदरकेपास एकलाइटहाउस-( यानी) रौशनीघर बनाहुवाहै, रातकोंइसीके जरीये जहाजवाले अपनाकामलेतेहै, मांडवी जैनश्वेतांबरमंदिर (६)-और कइजैनश्वेतांबरश्रावकोंके घरआवादहै, यात्रीशहरमेंजाकर जैनमंदिरोकेदर्शन करे,
मांडवीसेरवानाहोकर आगेसुथरीकस्बेकोंजाय, जो (११) को शके फासलेपर वाकेहै,-किरायाबैलगाडीका करीव (३) रुपयेलगेगें,
सुथरीकस्वाबडाहै औरयहांपर घृतकल्लोलपार्श्वनाथजीका पुरानातीर्थ है. जैनश्वेतांबरश्रावकोकेयरकरीव (२२५) औरधर्मशाला
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( ९६ )
वीचवयान-भद्रेश्वर-और-घृतकलोल.
एकयहां बहुतबडीबनीहै यात्री इसमें कयामकरे औरतीर्थकीजियारतब - खुबी हासिलकरे, मंदिरवेशकीमती तामीरकिया हुवा - औरइसमें तीर्थंकरपार्श्वनाथमहाराजकी मूर्त्तितख्तनशीन है, हरसालका तिकसुदीपुनमकेरौज यात्रीयोकायहां मेलाभरता है खानपानकीची जेंजोचाहिये यहांमीलसकेगी. सुथरी सेंरवानाहोकर जिसरास्ते गयेथे बैलगाडीमांडवी आना. मांडवीसेंउसी रास्ते फिर भद्रेश्वरऔर भद्रेश्वरसेंअं - जारटेशन आना, जोकरीब ( ४ ) कोशकेफासलेपर है, कस्वाअंजार गुलजार और यहांपरहरचीज व आसानी दस्तयाबहोती है, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीकेवख्त अंजारकी मर्दुमशुमारी (१४४३३) मनुष्योंकीथी, अंजारसें रैलमेंसवारहोकर तुणावंदरकोआना, मुल्क कछकीसफर यहांखतमहोती है, इसमेंभद्रेश्वर और घृत कल्लोलयही (२) बडेजैन तीर्थ है, जिनकावयान उपरवतलाचुके, -
मुल्ककछ ( ८ ) कस्बे और ( ८८९) गांवआवाद है, जवान कछी - और -कुछलोग उर्दूभीवोलते है, कछकेराजासाहवक्षत्रीय खानदानके और उनका तख्तभुजशहर है, कछमेको इकदीमीनदीनही. अय्यामवारीशमें जवछोटे छोटेना लेवहते है उनही कोंनदीयांसमझलिजिये अनाजकी तिजारतयहां ज्यादहहोती है, मकान पुख्ता औरउमदाकारिगिरी केवनेदुबे, कछकामैदानमुल्कोंमें मशहुर - जिसके दो - हिस्सेकायमहै, अवलहिस्सा ( ७०० ) वर्गमीलका और दूसरा ( २०० ) काहै, कछइलाका के मशहुरशहर मांडवी - भुज- मुद्रा - और -अंजार है. सुथरी - कोठारा- नलिया - तेरा - जखौ - और कोडाय- ये भी अछेकस्वे है, और इन सबमें - जैन श्वेतांबर मंदिर - और - हर जगह श्रावकों की आवादी है, जीवोंकीजिबेकारी कछमै बहुत कम - और - लोग मिलनसार है, तुणावंदरसेंष्टीमर में बेठकर यात्रीवापिस जामनगरआवे, औरजामनगरसें रैलमें सवार होकर - अलियावाडा-वणाथली-हडमतीयापडधरी - राजकोट - खोराना -सिधावघर-- वांकानेर -- थान -- रामप
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तारिख - तीर्थ - शंखेश्वर.
( ९७ )
मूलीरोड - वढवांणकैंप- लखतर - लीला पुररोड - सांवलीरोड - विरमगांव - और - विरमगावसे खारागोढा लाइनमेंसवार होकर झुंडटेशन जाना, रैलकिराया करीब सवारुपया लगताहै,
[ तवारिख - तीर्थ - शंखेश्वर, ]
झुंडटेशनसे (१५) कोशकेफासलेपर खुश्कीरास्ते बैलगाडीमें सवार होकर तीर्थशंखेश्वर कोंजाना. शंखेश्वरगांव बहुतवडानही लेकी ! तीर्थकी वजह से मशहुर है, जैन श्वेतांबरश्रावको के घरयहांदश - बारां- और बडाआलिशान जैनश्वेतांबरमंदिर यहांमानींदे स्वर्गविमानकेखडाहै, परकम्मामंदिरकी बहुतबडी - रंगमंउप-निहाय उमदा - और - फर्सशंगेमर्मरका लगाहुवादेखकरदिलखुश होगा, तीर्थंकरपार्श्वनाथ महाराजकी सफेद मूर्ति-करीब सवादोहाथकेबडी - इसमें तख्तनशीन है, गत चविशी नवतीर्थंकरमहाराजके जमाने में एक- अषाढी नामकेश्रावकने यहतामीर करवाइथी. जबकि - जरासिंधुके शाथ - कृष्नवासुदेवजीकी लडाइहुइथी और उसनेजव जइफीहोनेका - बान - कृष्नवासुदेवजी की फौजपर छोडाथा, - तमामफौज उसवख्त कृष्नवासुदेवजी की जइफहोगइथी. कृष्नवासुदेवजी ने इस -तीकरपार्श्वनाथजी की मूर्तिकास्नानजल लेकर अपनीफौजपरछिकाथाकि - फौरन ! उनकी फौज - ब - दस्तुरपहेलेके होशियार होगइथी, यह मूर्त्ति - पेस्तर बहुत नियामत बक्षनेवालीथी जबकि बहुतसे आकील - और - दानालोग मौजूदथे, और उनका एतकात धर्मपर मुस्तकीमथा, इसवजहसे उनकोंफौरनपरचामिलताथा, आजकल - वोबात नही है जो पेस्तरथी. कोइकोइइसदलीलकों भी पेंशकरते है कि-शंवेश्वरपार्श्वनाथजीकी इतनी पुरानी मूर्ति - इतनेकालतक कैसे रहसकी ?
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priatio
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( ९८ )
तवारिख - तीर्थ - शंखेश्वर.
मगर इसबातपरखयाल नही करतेकि - अधिष्ठायकदेव – जिसमूर्त्तिके रक्षकहोजाय - वो- मूर्त्ति बहुतकालतकभी कायमरहसकती है,
धर्मशाला यहां बहुत बडी बनी हुइ है, मगरऊसकी मरम्मत होनादरकार है, तीर्थशंखेश्वरका कारोवारबतौर शाहाना - वनाहुवा मुनिम-गुमास्ते - नोकर-चाकर - घंटा - घडियाल - और नोबतखाना सबचीजें मौजूद है, पेस्तरइसतीर्थकी - जैरनिगरानी राधनपुरके श्रावकोंकीथी, मगरचंदसालसें शहर अहमदाबाद वालोंकी हो गई है, -यात्रीकों जोकुछरकम- खजानेशंखेश्वरजीके देनाहो यहांदेवे औरतीर्थ की जियारत हासिलकरके - व - जरीये बैलगाडी केवापिस झुंडटेशन आवे, वहांसेंरैलमें सवार होकर विरमगावजंकशन उतरे और विरमगांवसें भंकोडा-देतरोजहोते हुवेगेलडा - टेशनजाय. रैलकिरायातीनआनेनवपाइ, गेलडाटेशनसे तीर्थभोयणी - करीब पौनकोशके फा सलेपर है, ब- जरीयेवैलगाडी - या - पांव पैदलजाय, यहएक नयातीर्थ शुमार कियाजाताहै, औरइसकी दास्तानइसतरहहै, -
(तवारिख तीर्थ - भोयणी, - )
•
एकमरतबाका जिक्र है संवत् ( १९३० ) की सालमें एक किसानकेखेतमेजो कि- मौजेभोयणीका वाशिंदाथा. और जिसका नामकेवलपटेलथा, दुफेरकेवख्त उसकेनोकरकुवा खोदरहे थे, उसवख्तएक दमकुवेकेभीतर से बाजों की आवाज आनेलगी, लोगोनेताज्जुबकियाकि - यह - क्या - ! माजरा है, ? और अतराफकुवेके देखनेलगे कुछनही मालूमहुवा. जब अंदरकुवेके उतरेतोवहांसें औरभीज्यादह अवाजबाजोंकीआइ. लोगोने कहा ! यहांपरकुछ अजीब बात है, वे - फौरन ! कुवेकेबहार आये, औरदिलावर मर्ददो-चार - भीतरकु वेके उतरे देखते है – कुवेकी कुछ थोडीसीजमीन फटी और उसमेसें तीन मूर्ति
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तवारिख-तीर्थ-भोयणी. (९९) निकली. ऊनोनेउनमूर्तियोंकों बहारनिकाली. उसवख्त जैनश्वेतांबरश्रावक-त्रिभोवनदास-जोकि-कुंकवावगांवका वाशिंदा-अपनी-शिकमपरवरीशकोलिये मौजेभोयणीमें दुकानकरताथा तीनोंमूतियोंकोंदेखा, औरकहा ! येतोहमलोगोके मजहबकीहै, इनमेंजो पदमासनमूर्तिहै तीर्थंकरमल्लिनाथजीकीहै औरकायोत्सर्गध्यानमयजो
औरहै वेभीहमारेहीमजहबकीहै,-तीनोंमूर्तिये सफेदशंगमरमरकीबनीहुइ देखकरसवखुशहुवे, कडीगांववाले लोगकहनेलगेहम अपने गांवमेंलेजायगे, कुंकवावगांववालेबोले हमलेजायगे. भोयणीकठाकोरसाहबबोले हमअपने भोयणीगांवमें लेजायगें. क्योंकि-हमारेगांवके किसानखेतमें ये मूर्तियेनिकलीहै, औरइसलिये हमाराहकहै, गरजेकि-उसख्त तकरारहोनेका मौकाआगया, कुंकवावगांवके वाशिंदेत्रिभोनदासने कहाकि-जराठहरो ! ! अगरदेवसचेहै-तोसबकुछठीकहोजायगा. तकरारकरनेकी कोइजरूरतनही. एककामकरो बिनाबैलजोते एकगाडीलाओ. औरइनमूर्तियोको गाडीमेंसवारकरो, जिसतर्फगाडीकामुह-खुद-ब-खुदफिरजाय उसतर्फलेजाओ, लोगोनेवैसाहीकिया, और फौरन ! गाडीकामुह मौजेमोथणीतर्फ फिरगया, बस ! फिरक्यादेरथी ! ! भोयणीवाले खुद उसमूर्तिकों अपनेगांवमेंलेगये. भोयणीघांवके ठाकोरसाहबने पेंशवाइकिइ. औरगांवमेंलेजाकर केवलपटेलकेघर-एक-अलगमकानमें तीनोंमूर्तिजायेनशीनकिइ, शहर-ब-शहरसे यात्रीआनेलगे, पूजनका कारोबार बखूबीचलनेलगा. औरयात्रीकी आमदरफतसे खजाना दिनपरदिन बढतीपर होतागया, पेस्तरधर्मशालाबनी और बाद एकबडाआलिशान शिखरबंदमंदिरबनाकर संवत् ( १९४३) माघ वदी (१०) केरौज-प्रतिष्टाकिइगइ औरतीर्थकर मल्लिनाथमहाराज की मूर्तिउसमेंतख्तनशीनकिइ, कारखाना-मुनीम-गुमास्ते-नोकरचाकर-पूजारी-सवठाठबनाहवाहै, यात्रीजोकछरकम, तीर्यकेखन
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(१००) तवारिख-तीर्थ-तारंगा. जानेमे देनाचाहेखुशीकेशाथदेवे. औरजियारतकरके वापिसगेलडा टेशनआवे. औररैलमें सवारहोकर-कटोसन-जोटाणा-लीच-होते. हुवे-मेहसानाजंकशनजावे, रैलकिराया सवातीनआने लगतेहै, मेहशानेसेचारतर्फ रैलवेलाइनगइहै, एक-शहरपाटनकों-दुसरीखेरालुकों-तीसरीअहमदाबाद-और-चोथीआबुरोड होकरमुल्कमारवाड कों,-यात्री-मेहसानेसे खेरालुलाइनमें तीर्थ-तारंगाकी जियारतकों जावे-मगरकस्बे मेंहसानेमेंजाकर जैनश्वेतांवर मंदिरकेदर्शनभीकरे छोटेबडे (१०) जैनश्वेतांबरमंदिर-औरबहुतआवादी जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी यहांपरमौजूदहै, जैनपाठशालावगेरा सबइंतजाम-लाइक तारीफकेदेखोगे. यात्री-मंदिरोकेदर्शनकरके वापिसटेशनपर आवे,
औरखेरालुजानेवाली रैलमेंसवारहोकर-रानदाला-विशनगर-वडनगरहोतेहुवे खेरालुटेशन जावे. रैलकिराया सवापांचआनेलगतेहै,... [तवारिख-तीर्थ-तारंगा, ___ मौजाखेरालु एकअछीबस्ती है, जैनश्वेतांवर श्रावकोके घर (१५० ) औरमहोलेडेहरासेरी-दो-जैनश्वेतांवरमंदिरमौजूदहै, ध. मशालायहांपरवनीहुइहै, इसमेंकयामकरे औरतीर्थतारंगाजानेका ई. तजामकरे. जोखुश्कीरास्तफासले पांचकोशकेवाकेहै, सवारीकलिये बैलगाडीमिलसकेगी. खेरालुसेरवानाहोकर यात्रीतीर्थतारंगाकोजावे कोइतकलीफ-न-होगी. शाथआरामकेपहुचजाओगे, रास्तेमें एक भोडानामकागांवमिलेगा, यहांपरधर्मशालावनी इहै, औरपांचसाब दुकाने-साहुकारोंकीभीमौजूदहै, करीवतारंगापहाडकीदामनमें एक टीवागांवमिलेगा, रास्ताचढाइका-चढाव-दो-कोशका-और तमाम पहाडकाघिरावबारांकोशकाहै, घोडा-टटूभी-चढसकतेहै-और-पांव पेदलभी ब-आसानीजासकतेहो, लेकिन ! पहाडकाचढनाजरा मुश्किलकाहै, रास्तेमेंद्रख्तोकझुंड-आम-अमरुद-खीरनी-शरीफे-इ
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तवारिख-तीर्थ-तारंगा. (१०१ ) मली-नीम-बबुल बगेराहरूतखडेहै. कभीकभीइसजगह औरभीआजाताहै. जवपहाडकीचोटीपरपहुचोगे एकधर्मशालाऔरदुकानेवनीयोंकीमिलेगी,-हरेककिसमका सामान-वास्तगिजांक-जोकुछदरका रहो दस्तयाबहोसकेगा.
तारंगातीर्थकी तरक्कीबदौलत हेमचंद्राचार्यकहुइ, क्योंकि-ये--राजा--कुमारपालकेगुरुथे और कुमारपाल अठारादेशोका राजाथा, जबकुमारपालकों राज्यनहीमिलाथा हेमचंद्राचार्यजीनेउस केलक्षणदेखकर कहदियाथाकि-तुं ! आलादर्जेकाराजाहोगा, जबकुमारपाल-राजाहुवा हेमचंद्राचार्यकी कदमबोसीकोंआया, औरअपनेनगरमें बडीशान-सौकतसेलेगया, राजाकुमारपालकीसलतनवका खासमुकाम-शहरपाटन-जोकि-मुल्कगुजरातमें एकमशहुर-व-मारुफशहरहै जोकुछहुकमवगेरा सजिलो जारीहोताथा उसीपाटनसे निकलताथा. हेमचंद्राचार्य-बडेआलिमफाजिल-संस्कृतविद्याके आलादर्जेकेपंडितथे, जिनोनेअपनी अकल-और-इल्मसेअछेअछे धर्मशास्त्र-और-व्याकरण-काव्य-कोश-न्याय-अलंकारवगेरा बनाये है, जिनकोपढकर आलादर्जेकेपंडितलोगभी ताज्जुबकरते है राजा कुमारपाल हेमचंद्राचार्यके हुकमकोंसौरपररखताथा औरकभीडकम अदुलीनहींकरताथा, दुसरेमजहबवाले जोकि-बडेमंत्रवादीकहलातेथे राजाकुमारपालके दरबार आनकर अपनामंत्रबलबहुतसा बतलातेये मगरक्या ! मजालथीकि-कोइ उनकामुकाबिलाकरसके ! क्योंकिआचार्यहेमचंद्रजीको शासनदेवीसिद्धथी, हेमचंद्राचार्य-हमेशांआमलोगोको व्याख्यानधर्मशास्त्रकासुनातेथे, औरधर्मसभा जुडतीथी. राजाकुमारपाल हमेशांधर्मशास्त्र आमलोगोंकीबराबरीमें जमीनपरबे. ठकरमुनताथा, औरउतनीबंदगी गुरुकीकरताथाकि-किसीतरहउनके हुकमकों नहीटालताथा, राजाकुमारपालकी देवभक्तिभीऐसीथीकि
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( १०२ ) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. पाटनकजिनमंदिरमें हमेशांखडाहोकर वीतरागस्तवपढताथा, जबजब शहरमेंजिनमूर्तिकी रथयात्रावगेराका जलसा होताथा-राजाकुमारपाल-अपनेगुरु हेमचंद्राचार्यजीकेशाथ नंगेपांवचलताथा, औरशामके वख्त जिनमूर्तिकीआरती मंदिरमेंखुदजाकरउतारताथा, आजकल कितनेकश्रावक धर्मकोंयहांतक भूलगयेहैकि-जिनमंदिरमेंजानेकीभी उनकोंफुरसतनही. हेमचंद्राचार्यजैसे जैनश्वेतांवराचार्य गुरुऔर कमारपालजैसा जैनश्वेतांवरश्रावक-होनादुसवारहै, हेमचंद्राचार्यजीने राजाकुमारपालकों इसवातकीखातिरजमा करवादिइथीकि-दुनियामें-दौलत-हकुमत-माल असबाबऔर जींदगीकोइ उमदाचीजनही, उमदाचीज एक धर्मही है,
तारंगातीर्थकामंदिर इसी-राजाकुमारपालका तामीरकियाहुवाहै, इसकीपायदारी औरबनावट ऐसी उमदाहैकि--इसके बनानेमें जितने रुपयेसर्फहुवे बयाननही करसकते, रंगमंडपऔर खंभेइसकदर बडेहैकि-देखकरआदमीताज्जुब करनेलगताहै, चारोंतर्फउसकी परकम्मा औरबडासहनदेखकर तबीयतनहीचाहती यहांतेबहारचले जाय, बाहरकीदिवारमेंचारोतर्फगजथर औरअश्वथरलगा हुवा-हाथीघोडोंकीशकले--पथरमेंबनीहुइहै, अकसरशिल्पशास्त्रका कायदाहै कि-राजाओंके तामीरकरवाये हवे मंदिर में जरुरगजथर-अश्वथरलगायेजाय. राजाकुमारपा लका इरादाथाकि-इसमंदिरकों खुबउंचाबनाना, मगरहेमचंद्राचार्यजीने फरमायाज्यादह उंचामतबनाओ बहूत उंचेमंदिरकी उमरअकसरकमहोतीहै, राजाकुमारपालकों उनकेफरमानेपर कुछउजरनहीथा इसलियेउसनेउतनाही
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तवारिख-तीर्थ-तारंगा. ( १०३ ) उंचातिमंजिलारखा, रंगमंडपकीएकतर्फसें-उपरतिमंजिलेतकजानेकारास्ताबनाहुवाहै, मगरकचेदिलवालोंकी हिम्मतनहीहोतीकितीसरीमंजिलतकचलेजाय. अकसरवीचमेंसेंहीलोटआते है, इसमंदिर कीकारीगरीदेखकर बडेबडेशंगतरासहेरान परेशानहोजाते है और तारीफकरतेहैसायत ! यहमंदिरदेवताओंकाबनायाहुवाहोगा. राजा कुमारपालकी कहांतकतारीफकरे जिसनेऐसामंदिरतामीर कराकर अपनेलिये रास्तास्वर्गकाखोलदिया, तीर्थकरअजितनाथमहाराजकी पांचहाथवडीसफेदरंगमूर्ति इसमेंतख्तनशीनहै, पूजाकरनेवालेलोग सीढीपरचढकर मूर्तिकेमस्तकपरतीलककरसकते है, मूर्त्तिकेनिलाडपर सोनेकापत्र-और-उसमेंजवाहिरातजडीहुइहै, हाथपांवोपरभी सोनेके पत्रलगेहुवे-जिसवख्त मूर्तिकाशिंगारकियाजाताहै मालूमहोताहैसाक्षाततीर्थकर अजितनाथमहाराज यहांपरआगये है,___ अगरतुम अपनीहमराह सितार-हारमोनियम-या-सारंगी-तबलेलायेहो-तो-मंदिरमेंबेठकर ब-खुबीइबादतकरो, किसीकिसमकी रोकटोक यहांपरनहीहै, तमामऊमरदुनियाके कारोबारमें खतमकिइ
औरएशआराममें गायबरहे, अबचाहिये आकबतकाकुछ रास्तासुधारे, जिंदगीकाकोइभरोसानही यहमानींदबुलबुलेकेहै, दौलतआज है, कलनही, तीर्थकखजानेमें जोकुछरकम देनाहो-दो, ऐसामतकरनाकि-बखीलबनकर अपनेघरका रास्तालो, अगरतुमपरलोगमें कुछआरामचाहतेहो-बतौरधर्मकीराहपर देतेजाओ-यही-तुमारेशाथ चलेगा, मंदिरकेबहार एकबहुतउमदा बगीचाजिसमेआम-अनारसंतरे-जाम-औरकेलावगेराके द्रख्तखडेहै, गुलाब-चमेली-बेलामोतियावगेराके फुलभीकसरतसे यहांपदाहोतेहै औरहमेशादेवपुजनमें चढायेजातेहै, तारंगातीर्थका खजानाबहुतबडा और-वोआनंदजीकल्याणजीके नामसेमशहूरहै, मुनिम-गुमास्ते-नोकर-चा
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(१०४) तवारिख-तीर्थ-तारंगा. कर-सीपाहीघंटाघडीयाल-और नोबतखाना यहांपर मौजूदहै, इसकी जेरनिगरानी-जमानहालमें वडनगरके श्रावकोंके ताल्लुकहै, जोयहांसे करीब (१०) कोसके फासलेपरवाकेहै,__मंदिरकेबहार एकतालाव-बायेहाथकों कुंड-और-सामनेएक वावडीबनीहुइहै,-तालावकेआगे एकछोटापहाड-जिसकीचढाई करीब कोशकेहोगी इसपरएकछत्री औरउसमें तीर्थंकरोके कदमबने हुघेकुंडके आगेदुसराछोटापहाड जिसकीचढाइ करीब-आधाकोशके होगी इसपरभीछत्री-तीर्थंकरके-कदम-औरएकतर्फ कोटीशिला नामसें एकशिला मौजूदहै, यात्रीसबजगह जाकरजियारतकरे, यहमो-शिलानही-जिसकों वासुदेवउठातेहै, वहगेरमुल्कमेंहै तारंगापहाडपरएकतारणदेवीकाधामहै जहांअकसर गेरमजहबके लोगआया
करते है,
तारंगाका मंदिरकब तामीरकियागया इसपरगौरकियाजायतो हेमचंद्राचार्य-संवत्-(११६६) में मौजूदथे. संवत् (१२२९ ) मे उनकाइंतकालहुवा, राजाकुमारपालहेमचंद्राचार्यजीके बख्तहाजिरथा-जिसने उनकीधर्मतालीमपाकर तारंगातीर्थका मंदिरतामीर करवाया, तारंगा तीर्थकी जियारतकरके यात्री खेरालुकोवापिस लोटे, औररैलमेसवारहोफर वडनगर-वीशनगर रानदालाहोते फिरमेहसानाजंकशन आवे. औरआबुरोडजानेवाली ट्रेनमेंसवारहोवे, टेशनभांड-ऊंझासिद्धपुर-छापी-उमरदेशी-पालनपुर-चित्रासन-रोहऔर--मावल होतेहुवे आबुरोडजाय, रैलकिरायातेरह आनेलगते है, जिसकाइरदा पालनपुरदेखनेकाहो-वह-पालनपुर उतरे, बरना ! सिधा आबु रोड जाय,
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तवारिख-तीर्थ-तारंगा.. (१०५) पालनपुर शहरअहमदाबादसे ( ८३) मीलके फासलेपर देशी राज्यकी राजधानी-और-एजेन्सीका सदरमुकामहै. इसकीमर्दुमशुमारी-(२१०९२) मनुष्योकी है, जैनश्वेतांबरश्रावकोकेघरकरीब (५००)-और जैनश्वेतांवरमंदिर छोटेबडेयहांपर (९) है,-अहमदाबादसे पालनपुरराज्यमेंहोकर अजमेर-देहली-और-आगराकों सडकगइहै, पालनपुरमेंनवावसाहवकेमहेल-पोलिटिकलएजंटकीकोठी -स्कुल-लायब्रेरी-अस्पताल-और-पोस्टआफिस-बडी लागतके मकान है. पालनपुरकीउत्तरमें अमलदारीशिरोही और मारवाडका सबडिविझनहै, यात्रीपालनपुरके-जैनमंदिरोंके दर्शनकरकेवापिसटेशनपरआव औररैल में सवारहोकर उपरदिखलायेहुवे रास्ते आबुरोड टेशन जाय,
पालनपुरटेशन--(१३) मील पूर्वोत्तरजोसरोत्राटेशन पेस्तर लिख चुके है बंबइहाताछुटकर वहांसेराजपूतानाप्रदेशशुरुहोताहै. सरोत्रासें (१९) और पालनपुरसे (३२) मील-पूर्वोत्तर-राजपूताना विभागमें आबुरोडएकवडाटेशनहै-और-इसकादुसरानाम खरेडीकस्वाकहते है, इसकीआवादीकरीब (६०००) मनुष्योंकी-औरदिनपरदिनतरक्कीपर मालूमहोताहै, मकानपके-और-सडकोंपर सफाइअली, अकसरदेखागयाकि-जहांपरपानीकी बहुतायतहोती है पैदावारीभी छीरहती है, इसवजहसेंयहकस्वा दिनपरदिनबढताजाताहै, औरएकनदी-बनास-नामकी यहांपरवहतीरहतीहै, टेशनऔर गांवबहुतनजदीकहोनेकी वजहसेरवनक हमेशाबनीरहतीहै, अमलदारीयहांपर शिरोहीकेराजासाहवकी,-और इंतजामसबठीकहै, जैन श्वेतांवरश्रावकोकेघरकरीब (२०)-और-एकजैनश्वेतांबरमंदिर यहांपरवनाहुवा-पासमें दो-धर्मशाला-एक रायबहादुरबुधसिंहजी-साकीन-मुर्शिदाबादकी दुसरीपंचायती है. दोनोंमेंकरीबएकहजारआद
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( १०६ ) तवारिख-तीर्थ-आरासण. मीब-खूबी ठहरसकते है,-तीर्थकुंभारीया और-आबुजानेवालेयात्री इसीखरेडीटेशनपर उतरतेहैऔर यहांसेदोनोंतीर्थकी जियारतकलिये जाते है, पेस्तरकुंभारीयाजीतर्फ जानेवालेयात्री खयालकरे, उनकेलियेरास्ताबतलायाजाताहै. खरेडीसेकुंभारीयातीर्थ करीब ( १२) कोशकफासलेपरवाकेहै, सवारिकेलिये-डोली-घोडा-और-बैलगाडीतयारमिलतीहै, डोलिकाकिराया साढेपांचरूपये-घोडेकाएक रूपया-ग्यारहआने-और गाडीकेपोनेचाररूपये- सीर्फ ! जानेकेही लगतेहै, ऊतनेही वापिसआनेकेभी समझलिजिये, खरेडीसे रवाना होकरयात्री कुंभारीया तीर्थकोंजाय,
F[ तवारिख-तीर्थ-आरासण,. कुंभारीयातीर्थका असलीनाम-आरासणतीर्थ है, जमानेहालमें आरासणपहाडपर जोकुंभारीयागांवहै असलीनाम-आरासणनगर था,-पुरानेशिलालेखोमेंभी आरासणनाम लिखानिकसताहै, यात्री खरेडीसे कुंभारीयागांवजाय, रास्ता-कठीन-कइजगह-नदी-नाले
और बहुतसा झाडीझुखडआताहै, उसकोपारकरके जब-आरासण पहाडके करीबपहुचोगे-एकतर्फ अंबादेवीका धामआयगा, इससे आगेकरीब कोशभरदूर कुंभारीयागांव मौजूद है, जहांकि--बडेबडे आलिशान पांच-जैनमंदिर-बतौर स्वर्गविमानकेखडे है,-वहांजाकर धर्मशालामें कयामकरना, कुंभारीयागांव सीर्फ ! साठ-सतरघरोकी आबादीमें-रहगया. पेस्तर बडागुलजारथा, अमलदारी यहांपर दांताके राणासाहबकी जारी है, पेस्तरलिखचुके है यहांपर बडेबडे पांचआलिशान मंदिरखडे है, और उनकीपूजनकेलिये-एकमुनीम तीनपूजारी-और-एकनोकर मुकररहै,
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तपारिख-तीर्थ-आरासण. (१०७) - यहाँपर सबसेबडामंदिर तीर्थकरनेमनाथजीकाहै, इसकेतीनतर्फबडेबडेदरवजे-उत्तरतर्फकादरवजा बहुतवडा-तीमंजिला-मयमह-. . रावके गोया ! देवलोकका खासदरवजा मालूमहोता है, जमानेहा. लमें जववारीशहोती है दरवजेकीछतसे पानीगिरताहै, कोइइकबाल मंदहो इसकीमरम्मतपर-गौरकरे, दरवजेकीसीढीचढकर जबमंदिर केरंगमंडपमें पहुचते है मानो ! स्वर्गनजरआताहै. कया ! खुशनसीबोंने मंदिरतामीर करवायाहै जिसकोंदेखकर अकलकामनहीकरती. परकम्मामें जाकरदेखोतो मंदिरकेपीछलेपासे दिवारमेंगजथर लगाहुवाहै, इससेसबुतहुवा यहमंदिर किसीराजाका तामीरकरायाहुवा है, इसकाशिखर बहुतबुलंद-संगीन-और-बेशकीमती है, तीर्थकर नेमनाथमहाराजकी-सफेदरंगमूर्ति-करीब-चारहाथवडी इसमेंतख्त नशीनहै, और इसकेनीचेलिखाहै संवत् १६७५ वर्षे-माघशु. द्धचतुर्थ्यां-शनौ-श्रीउपकेशज्ञातीय वृद्धसज्जनायतपा गछे भट्टारक श्रीविजयदेवसूरि....श्रीनेमिनाथचैत्ये श्री नेमिबिबंकारितं--प्रतिष्टितं-च-भट्टारक श्रीहीरविजय सूरीश्वरपट्टप्राचीनाचलमार्तड मंडलायमानभट्टारक श्री विजयसेनसूरि शर्वरीसार्वभौमपट्टालंकार....गुणगणारंजितमहातपाविरुदधारितभट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः पंडितश्रीकुशलसागर गणिप्रमुखपरिवारसमन्वितैः
इसकामतलब यहढुवाकि-संवत् (१६७५ ) में . यहमूर्ति तामीरकरवाइगइ औरश्रीविजयदेवसूरि महा:
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(१०८) तवारिख-तीर्थ-आरासण. राजने इसकीप्रतिष्टाकिइ, इसमूर्त्तिके पास दो-मूर्ति
औरहै जिसकाकदकरीब सवासवाहाथहै, गभारेके बहारखडआकार चारमूर्ति--सफेदरंग-निहायतखुबसुरत जायेनशीनहै औरसव केनीवेलेख मौजूदहै मगरबचनहीसकते. इनमूर्तियों केसामनेसमवसरणका आकारकाबिलदेखनेकेहै, दिवारमें दाहनीतर्फ एकहीपथरमें १६४ मूर्ते-छोटीछोटीवनीहुइ-बीचमे-परिकरसमेत समवसरणकाआकार बनाहुवाहै, दोनोंतर्फ दोदखजेथे-नमालूमक्यौ बंदकरदियेगये, ? दाहनीतर्फकेदरवाजेकी जगहदिवारपर एकहीपथरपर ( १९) मूर्ते बनीहुइ
और-उनकेनीचे लिखाहै संवत् ( १३४५ ) में-श्रीपरमानंदसूरिने इनकीप्रतिष्टाकिइ,
दूसरेरंगमंडपमें एकतर्फके आलेमें नंदीश्वरद्वीपका आकार-और एकतर्फ देवीकी मूर्तिबनीहुइहै, दाहनीतर्फ रिषभदेव भगवानकी सफेदमुर्ति करीब ( २॥ ) हाथवडी जायेनशीनहे. औरउसकेनीचे लिखाहुवाहैकि-संवत् ( १६७५ ) वर्षे माघवदि (१)श्री मालीज्ञातीयवृद्धशाखीय-शा० रंगाभार्या-किलाभार्या सत्पत्नीभार्या संपूरसतहीरजी-श्रीआदिनाबिंब कारितं-तपागछे-श्रीविजयदेवसूरिभिः पंडित श्रीकुशलसागरगणिपरिवारयुतैः प्रतिष्टितं, बायीतर्फ पार्श्वनाथ भगवानकी सफेदरंग-मूर्ति-जायेनशीनहै, जोकरिब ( ५॥ ) हाय
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तवारिख-तीर्थ-आरासण. (१०९ ) mmmmanianimarwmmmmmm... mir ...........mam बडीहोगी. इसपरकुछलेखनही, सीर्फ ! निशान संपतिराजाके वरुतका बनाहुवाहै, संपतिराजाकी वनाइहुइमूर्तिपर ऐसाहीनिशानहोता है, इसमंडपमें शिंगारचोकीकीदाहनीतर्फ तसिरखंभेमें लिखाहुवाहै, संवत् ( १३१० ) वर्ष-वैशाखवदि (५) गुरौ प्राग्वटा ज्ञातीय-श्रे-विल्हणमातृ-रुपिणीश्रेयोथै—आसपालेनसिद्धपाल-पद्मसिंहसहितेन-निजविभवानुसारेण-आ
रासणनगरे-श्रीअरिष्टनेमिमंडपे-श्रीचंद्रगछीय श्रीपरमाणंदमूििशष्य श्रीरत्नप्रभसूरीणामुपदेशेन स्तंभः कारितः इसलेखसें सबुतहुवाकि-यह-खंभा-संवत् (१३१०) में नयावनायागया,
इसखंभेकेपीछे एकखंभेको छोडकरदूसरे खंभेपर लिखाहै, संवत् ( १३४४ ) वर्षे-आषाडसुदि पूर्णिमायां देवश्री नेमिनाथचैत्ये-कल्याणिकत्रयस्यपूजार्थ--श्रे-श्रीधरतत्पुत्र-श्रे-गांगदेवेन विसलप्रियद्रमाणां ( १२०) श्रीनेमिनाथदेवस्य-भांडागारेनिक्षिप्तं-इसकेपास एक आलेके खंभेपर लिखा है-श्रीकल्याणत्रये-श्रीनेमिनाथ बिबानि-प्रतिष्टितानि-नवांगवृत्तिकार श्रीमदभयदेव सूरिसंतानीयश्री चंद्रसूरिभिः श्रे-सुमिग-श्रे-धीरदेवश्रे-गुणदेवस्यभार्या जइतश्री साहूपुत्रवइरापुनालुणा विक्रमखेताहरपतिकर्मटराणा करमदपुत्र खीमसिंह-तथावीरदेवसुत-अरसिंहप्रभृतिकुटुंबसहितेन गांगदेवेन कारितानि
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(११० ) तवारिख-तीर्थ-आरासण. इसनेमिनाथजीके मंदिरकीपरकम्मामें वायीतर्फ-जो-आठ-छोटेदेवालयहै उसमें अवल देवालयके दरवजेकी दाहनीतर्फ दिवारमें एक शिलालेखशंगमर्मरपथरपर उकेराहुवा-और-उसमेलिखाहैकि-प्रा. ग्वाटवंशे-श्रे-वाहडेन-श्रीजिनचंद्रसुरि सदुपदेशेनपादपराग्रामे-उंदेखसहिका चैत्यं-श्रीमहावीरप्रतिमायुतंकारितं-तत्पुत्रौ-ब्रह्मदेवसरणदेवी-ब्रह्मदेवेन-संवत्--१३ ७५ अत्रैव श्रीनेमिमंदिररंगमंडपे-श्रीडाढाधरःकारितःश्रीरत्नप्रभसुरिसदुपदेशेन-तदनुज-श्रे-सरणदेवभार्या-सहदेवी-तत्पुत्राः श्रे-चीरचंद-पासड-आंबड-रावण-यैःश्रीपरमाणंदसुरीणामुपदेशेन-शप्ततिशततीर्थ-कारितंसंवत् (१३१० ) वर्षे वीरचंद्रभार्या-सुखमिणीपुत्रपुनाभार्यासोहगपुत्रलूणा झांझण-आंबडपुत्रवीजा खेतारावण भार्या-हीरुपुत्र-बोडाभार्या -कामलपुत्रकडुआ-दि-जय. ताभार्या-मुंटपुत्र देवपाल-कुमरपाल-तृ-अरिसिंहनागउरदेवीप्रभृतिकुंटुंबसमन्वितैः श्रीपरमाणंदमूरीणामुपदेशेन संवत् (१३३८) श्रीवासुपूज्यदेवकुलिकां-संवत् [१३४५] श्रीसमेतशिखरतीर्थ-मुख्यप्रतिष्टां-महातीर्थयात्रां-विधाप्य-जन्मपरंपरया सफलीकृतं.-इसलेखकों लिखनेवाले देवपाल-कुमरपाल-बयानकरतेहै-कि-हमने-अपनेकुटुंब परिवारसमेतयहां--आनकरतीर्थकरवासुपूज्यभगवानका-यह-छोटादेवालय संवत् (१३३८ ) में बनवाया, और-संवत् ( १३४५) में-समेतशिखरतीर्थके मुख्यमंदिरकी प्रतिष्ठा-और-महायात्राकिड, इसलेखसे
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तवारिख-तीर्थ-आरासण. (१११ ) शिखरजीतीर्थकलिये सबुती मिलतीहैकि-संवत् (१३४५ ) मे. शिखरजीतीर्थपर जैनश्वेतांबर मंदिरबनेहुवेथे, यह लेखलिखनेवाले पोसिनागांवके रहनेवाले जैनश्वेतांबर श्रावकथे उनकेनाम-देवपालउपरलिखचुकेहै,-और-पोसिनागांव-जमानेहालमें तीर्थकुंभारीयाजीसे ( १२ ) कोशकेफासलेपर वाकेहै,
उपरलिखेहुवे वासुपूज्य भगवानके देवालयके अंदरवेदीपर लिखाहै-संवत् [ १३३८ ] वर्षे ज्येष्टसुदि [ १४ ] श्रीनेमिनाथचैत्ये-वृहदगछीयश्री रत्नप्रभसूरि शिष्यश्रीहरिभद्रमूरिशिष्यैः श्रीपरमानंदमूरिभिः प्रतिष्टितं-प्राग्वाटज्ञाती यश्रीसरणदेवभार्या-सुहडदेवी-तत्पुत्रश्रीवीरचंद्रभार्या-सु. पमिणीपुत्रपुनाभार्या-सोहगदेवी...आंबडभार्या-श्रीअभय सिरिपुत्रवीजाखेता-रावणभार्याहीरुपुत्र बोडसिंहभार्या-जयतलदेवीप्रभृतिस्वकुटुंबसहितैः रावणपुत्रैः स्वकीय सर्वजनानां श्रेयोर्थ-श्रीवासुपूज्यदेवकुलिकासहितं कारितं-प्रतिष्टापितच, इसलेखमेंजो रत्नप्रभमुरिजीके शिष्य-हरिभद्रसूरि लिखेहै-वेहरिभद्रमूरि दुसरेजानना.-और-जिनोने पंचाशकवगेरा प्रकरणबनायेहै-वे-हरिभद्रसरि दूसरेजानना जो इनोसेअवलहुवेहै.
पांचवेदेवालयकी बेदीपर लिखाहै संवत् [ १३३५] वर्षेमाघसुदि [ १३ ] चंद्रावत्या जालणभार्या .... भार्या मोहिनीसुतसोहडभ्रातृ सांगाकन आत्मश्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथ विकारापितं प्रतिष्टितंच, श्रीवर्द्धमानसूरिभिः-इसके नीचे एक दुसरे लेखमें-लिखाहै-संवत् [ १३३८ ] वर्षे ज्येष्ट
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( ११२ )
तवारिख - तीर्थं - आरासण.
सुदि १४ शुक्रे - वृहदगछीय श्रीचक्रेश्वरसरिसंताने पूज्य श्री सोमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीवर्द्धमानसूरिभिः श्रीशांतिनाथ विवं प्रतिष्टितं -- कारितं श्रेष्टिआसलभार्या मंदोदरी - तत्पुत्र श्रेष्टिगलाभार्याशील तत् पुत्रमेहातटभुजेन साहुखांखणेन- निजकुटुंब श्रेयसे--स्वकारितदेवकुलिकायां स्थापितंच-मंगलमहाश्रीभद्रमस्तु —
सामनेकेदेवालय में वेदीपरलिखा है - संवत् [१३३५] मे श्री आदिनाथ भगवान की मूर्ति श्रीवर्द्धमानसूरिजीने प्रतिष्टित किs, और नीचे उसके ऐसाभी लिखा है श्रीमंदाहडगळे श्रीमंगलमस्तु इसके आगेके देवालय में लिखा है संवत् [ १३३५] मे तीर्थकररिषभदेव भगवान की मूर्ति - श्रीचंद्रसूरिजी के शिष्यवर्द्धमान सुरिजीने प्रतिष्टितकि, इसके आगे के देवालयमें संवत् [ १३३८] ज्येष्टसुदि १४ शुक्रवारकेरोज श्रीदेवेंद्रसूरिजीने तीर्थकर चंदाप्रभुकी मूर्ति प्रतिष्टितकि, इसके आगे सभामंडपकों छोड़कर दुसरेदेवालयकी वेदीपर लिखाहै संवत् (१३४३) माघसुदि (१०) शनिवार केरौज-वृ- श्रीहरिभद्रसूरिकेशिष्य- परमानंदसुरिने तीर्थकर अरिष्टनेमिभगवानकी मूर्ति प्रतिष्टितकि, इसके आगे के देवालय की -- वेदीपर लिखाहै संवत् (१३४४) ज्येष्टसुदि (१०) मी केरौज तीर्थकर रिषभदेव भगवान की मूर्ति प्रतिष्टितकि, प्रतिष्टा करने वालेआचार्य महाराजका नाम तोडा गया है, इसके आगे के
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तवारिख-तीर्थ-आरासण. (११३ ) देवालयकी वेदीपरलिखाहै संवत् (१३३५) मे तीर्थकर श्रीसुपार्श्वनाथ भगवानकी मूर्तिमृगसीर वदि १३ केरौज वृहद्गदछीय श्रीहरिभद्रसूरिके शिष्य-परमानंदसूरिने प्र. तिष्टित किइ,- दूसरामंदिर तीर्थंकर महाविरस्वामीका-बडासंगिनऔरपुख्ता -रंगमंडपकी छतमें किसकदर उमदाकारीगरी हुइहैकि-जिसकाबयानकरना जवानसेवहारहै. पथरमेंऊकेरेहुवे तरहतरहके भावकहींकहीं तीर्थंकरोंके समवसरणका आकार-परकंमा-चोइसदेवालयबनेहुवे मगर किसीमें मूर्तिनहीरही, मूलनायक तीर्थकरमहावीर स्वामीकी सफेदरंग मूर्ति-करीब (२॥) हाथवडी इसमेंतख्तनशीन है, और ऊसपर लिखाहै संवत् (१६७५) वर्षे माघशुद्ध ४शनौ-श्रीउपकेशवंशीयवृद्धशाखीय-सात्राहियाभार्या तेजलदेसुत....गोरदेसुत-सानानियाकेनभार्या नामल देवसुत सोमजीयुतेन-श्रीमहावीर विकारित-प्रतिष्टितंच-श्रीतपागछे-भट्टारक श्रीहीरविजयसूरीश्वर प्रभाकर-भ-श्रीविजयसेनसूरि पट्टालंकार भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः श्री आरासणनगरे-ठू०-राजपालोदामेन,
गभारेकेबहार दोनोंतर्फ खडेआकर दोबडीऔर दोछोटी मूर्ति निहायतखूबसुरत जिनकाबनना जमानामौजूदामें निहायत मुश्किलहैजायेनशीनहै, रंगमंडपमेंदोआले वगेरेमूर्तिके खालीपडेहै और उसमेंसिर्फ ! (११४८) का संवतही नजरआताहै ब-सबबहोके घीसजानेसेंइबारत नहीपडीजाती, दिगरआलेका लेखइससेंभीज्या
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( ११४ ) तवारीख-तीर्थ-आरसण. दह घिसाहुवा-उसका-न-संवत्-और-न-इबारत मालूमहोतीहै, मंदिरकी परकम्मामें दाहनीतर्फ निहायतउमदा शंगमरमरपथरपर समवसरणका आकार-तीनकोटवगेरादेखाव हुबहु मौजूदहै, मगर अपशोषहै, टुटगयाहै,
तीसरा मंदिर तीर्थकर शांतिनाथजीका-इसकीकतावजा-मानींद नेमनाथजीके मंदिरकेहै, इसकेभी दरवजेतीन-परकम्मा-और
दोनोंतर्फमिलाकर (१६ ) देवालय तामीरकियेहुवे-मगरकिसीमें मूर्तिनहीरही. छतमें ऊमदाकारीगरी और-इसकी मेहरावे अछीबनीहुइथीमगर सीर्फ ! एकही मेहराव-वास्ते नमुनाके रहगइ-बाकीकीतमाम नेस्तनाबुदहोगइ, सामनेकीतर्फजो छोटेछोटे आठदेवालयहै-अबलदेवालयके उपरलिखाहै संवत् ( ११४६ ) ज्येष्ट शुक्ल (९) शुक्रे प्रल्लदेवहालिकासुतेन-प्रोहरिश्रावकेन-- भ्रातृवीरकसंयुतेन-श्रीवीरजिन प्रतिमाकरिता-दूसरेदेवालयपरलिखाहै संवत् (११३८) वीरकसलहिकासुतेन-देवीगसहोदरयुतेन-जासक श्रावकेन विमलजिनप्रतिमा कारिता, इसकेपासकेदेवालयपर लिखाहै संवत् (११३८) वल्लभदेवीसुतेन-वीरकश्रावकेन-श्रेयांसजिनप्रतिमा कारिता, इसकेआगेकेदेवालयपर लिखाहैसंवत् [११३८) सोमदेवसहोदरेण-सुंदरीसुतेन-शीतलजिनप्रतिमा कारिता, आगेके देवालयमें तीर्थकर पार्श्वनाथजी प्रतिमा है, एक देवालयपर संवत ११३८] सहदेवश्रावकेन सुविधिजिन प्रतिमाकारिता लिखाहै, और दो देवालयके लेख टुटेहुवेहै, छोटे आठ देवालयोंके लेख खतम हुवे,
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तवारिख-तीर्थ-आरासण. ( ११५ ) इसमंदिरमें मूलनायक-तीर्थकरशांतिनाथ भगवानकी सफेद रंगमूर्तिकरीव (११) हाथवडी तख्तनशीनहै. यहमूर्ति-राजासंपति कीतामीरकिइहुइ-वही-निशानात-मूर्तिकेनीचे बनेहुवे-जो-राजा संप्रतिकी तामीरकिइहुइ मूर्तिओंपर होतहै, राजासंमतिकों इंतकाल हवे करीब ( २१२४ ) वर्ष गुजरे, मगर उसका नेकनाम अबतक जारीहै, दुनियामें रूपयापैसा किसीके शाथनहीजाता. सीर्फ ! धर्मही शाथजाताहै, एसेएसेशख्स दुनिया में होगयेजिनोने बडेबडे धर्मकेकामकिये, बदौलत ऊनकीनेंकनामीके आजतकऊनका नाम चलाआया, तुमभीकुछ धर्मकीराहपर नेकीकरोजो तुमकों आइंदे फायदेमंदहै,
चोथामंदिर तीर्थंकरगोडीपार्श्वनाथजीका-इसकीकतावजाभी उसी नेमिनाथजीकमंदिरकी बतौरहै, शंगमर्मरपथरपर क्याउमदा कारीगीरीका नमुना जिसको देखकर इनसान चकितरहजाताहै, इसमें तीर्थकर-पार्थनाथजीकी सफेदरंग मूर्तिकरीव ( २॥ ) हाथ बडीतख्तनशीनहै. और उसकेनीचेलिखाहै संवत् [१३६५] वर्षेमाघधवलेतर शनौ उपकेशवंशीय-वृद्धसज्जनीय-सा०जगडुभार्या-जमनादेसुतरहियाभार्या-चापलदेसुतनानजीवन-भार्यानवरंगदेयुतेन-आत्मश्रेयोर्थ-श्रीपार्श्वनाथविं बं कारितं-प्रतिष्टितं श्रीतपागछेश्वरभट्टारक श्रीहीरविजय सूरीश्वरपट्टोदय दिनमणि-भट्टारकश्री विजयसेनसूरिपट्टालंकाहार-भट्टारक-श्रीविजयदेवसूरिभिः५० कुशलसागर गाणप्रमुखपरिवारयुतैः बु० राजपालोदामेन
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( ११६ ) तवारिख-तीर्थ-आरासण.
मंदिरकेगभारके बहारछोटे रंगमंडपमेंदो-खडेआकार-सफेदरंगमूत्तिकरीब तीनतीनहाथ बडी-जायेनशीनहै. छोटेरंगमंडपके दरवजेकी दाहनीतर्फके आलेकी वेदीपर लिखाहै संवत् (१२१६) वैशाखसुदि (२)-श्रे० पासदेवपुत्रवीरापुनाभ्यां--भ्रातृजेहड श्रेयोर्थ-श्रीपार्श्वनाथ प्रतिमेयं कारिता-श्रीनेमिचंद्राचार्य शिष्यैः देवाचायैः प्रतिष्टिता, बडेरंगमंडपमें तरहतरहकी कारीगरी और महरावें तामीर किइगइहै, मंदिरकी परकम्मामें दाहनीतर्फ अखीरके देवालयकी वेदीपर एक शिलालेख-संवत् (१९६१) का है, इसके बनानेवाले आर प्रतिटाकरानेवाले का नाम हौके मिटजानेकी वजहसें पढा नहीजाता, सीर्फ ! निशान मालूमहोतेहैकि इसमें उनकी तारीफ किइगइथी, और अखीरमें धाराप्रदीयगच्छयगेराभी कुछनजर आतेहै,
पाचमांमंदिर तीर्थकरसंभवनाथजीका इसमेंतीर्थकरसंभवनाथजीकी सफेद मूर्तिकरीव (२) हाथवडीतख्तनशीनहै, गभारेकबहार आठआलेबनेहुवेसीर्फ ! एकहीआलेमें एकमूर्तिबाकीरही दुसरेसब खालीपडेहै. दरवजेतीन और अतराफमंदिरके कोटखीचाहुवाहै,तीर्थआरासणकेकारखानेमें एकमुनीम-तीनपूजारी-एकपानीभरनेवाला कुल्लपांचआदमी हमेशांकेलियेतैनातहै. औरखिदमतगुजारी-करतेहै, मुनीमकीतनखाह रुपयेआठ-और-पूजारीयोंकीरुपये साढेचार माहवारी है. और इतनीकलील (थोडी) तनखाहमें इनकागुजारा नहीहोसकता और-न-किप्सीतरहकी इनकोंदिगरआमदनी है, इसलिये इनकीतनखाह बढानाचाहिये, तीर्थजंगलमें है-औरइतनीछोटी
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तवारिख तीर्थ- आबु,
( ११७ ) तनखाहमेंइनकारहना मुहाल है, कंवल-शतरंजीवगेराभी यहांकुछ नही, आनेजानेवालेयात्रीकों मुश्किलगुजरती है; औरपूजारीवगेराकभी किसीतरहका आरामनही. अगरकोइइकवालमंद - इस लेखपर गौरकरे और मजकुरसामान यहां भेजदेवे उमदाबातहै मुकामजंगलका है, एकasaiहोना यह जरूरी है, कोइखुशनसीब दसपनरांररुपयेकी घड़ी खरीदकर भेजदेवे. कोइमुश्किलकीबातनही, दुनीयाकेखराजात इसीतरह चले जाते है जोकुछनेकनामीकरोगे वही अच्छा है, शत्रुजय - गिरनारवगेरा तीथख चंदेने वाले बहुत है . - मगर ऐसे तीर्थमदेवे तारीफ उसकी ज्याद है, इसतीर्थकी देखरेख दांताकेभावकलोग रखते है, इमारतें सबमरम्मतचाहती है, तीर्थआरासणकी जियारतकरके बापिस उसी रास्ते आबुरोडटेशन आना,तचारिख तीर्थ आबु, ]
आबूरोडटेशन से आबुपहाडपरजानेकेलिये सडकपकीबनीहुइ घोडा - टटु - बेलगाडी - बगीवगेरासवारी पहाडकेसीरेतक जासकती है, यात्री - आबुरोड सेंसवारीका इंतजामकरके पहाडपरजाय, राजपुताना केजनुवी सरहदपर आबुएकमशहूरपहाडहै, आबुकासीर (१२) मीललंबा और (४) मीलचोडापहाडके उपरकामैदान जमीनकीसतइसे ( ३००० ) और समुंदरकी सतह ( ४००० ) फुटऊंचा है, औरजोसबसे बुलंद शिखर है उसकी ऊंचाई समुंदरकी सतह से (५६५० ) फुटहै, इस पहाडपरपेस्तर (१२) गांव आबादथे, अब (१५) होगये, ऊनकेनाम -१, देलवाडा, २- गवां, ३-तोरणा, ४- साल, ५-दुढाइ, ६ - हेटमची, ७ - आरणा, ८-मास, ९-सानी, १०- ओरिया, ११ - अचलगढ, १२ - जावाइ, १३ - उतरज, १४ - सेंर, और-१५, आखी, इनमें देलवाडा - ओरिया - ओर- अचलगढमें जैनमंदिरबने हुवे है, आबुकाचढाव अदारांमील - चढ़ने का रास्ता साफ, दुतर्फाद्रिख्तों
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( ११८ )
तवारिख - तीर्थ- आबु,
की छाया - तरहतरहकीवनास्पति- और - सरचिश्मे आब- जिसकों देखकर तबीयत रहोजाती है, जब (१६) मीलपरपहुचोगे - छावनी मिलेगी, सवारीयहांतकहीजाती है, सरकारी अपसरोंके - बंगले-रेस्सीडेन्सी- कलब - बाजार - वगेरायहां गुलजारजगह है, नखीतालाबझील - हरहमेशपानीसेतर बनी हुइपश्चिमकनारे बांधवनाहुवा वनककी जगह है. करीब - ( १ ) मील उत्तरतर्फदेल वाडेगांवमें जैनमंदिरवने हुवे है, चारोतर्फ पहाडकी चोटियां - और - देखावमानो ! स्वर्गलोगसा नजरआता है, जवनजदीकदेलवाडेकपहुचोगे. निहायत उमदा जैनमंदिर दुरसेदिखलाइदेगें, फौरन ! सीरझुकाकर नमस्कारकरो और अपनी तकदीरकोंसाबाशीदो - जिसने तुमकोंयहांतक पहुचाया, देलवाडाबहुतछोटासा गांव है, ब - सबबजैनमंदिरोंके रवन्नकबनी हुइ है, घरदेखोतो कुल - (२५) - या - (३०) केकरीबमगर यहांकेवाशिंदे इसीजगहकों बसववमंदिरो के उमदासमझते है, धर्मशालायहांपर (२) एकशेठ -हठीसिंह - केशरीसिंह - साकीन अहमदाबाद - मुल्कगुजरातकी तामीर करवाइहुइ, दुसरीकोटके अंदरपंचायती - हठीसिंह - केशरीसिंहवाली बडी हैजिसमें करीब ( २००) आदमीआराम करसकते है. अलावा इसके पांचकोठरी औरभीबनीहुइ यात्रीइसमें भी आरामकरनाचाहे शौखसेकरे, एकधर्मशाला - नयीतामीरहोरही है, यात्रीचाहे जिसधर्मशाला में कयामकरे, कोइमनानही. -
कारखानातीर्थ आबुका बतौरशाहीके बनाहुवा - मुनीम-गुमास्ते - नोकर-चाकर - घंटाघडीयाल - चपरासीवगेरा हमेशां यहांपरतैनात है, जबयात्री - मंदिरमें जाकरदर्शन करेगें दिलवहार अनेका-नहोगा, अगरको आयुपहाडपर सबसे पुराना मंदिरकौनसा है ? तो कइकहदेगे - विमलशाहशेठका, मगरनही ! इससेभी पुरानामंदिरबो- है, जोविमलशाहशे के बनायेहुवे मंदिरकीपरकर्म्मामें दाहनीत
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तवारिख - तीर्थ - आबु,
( ११९ ) फके कौनेमें देवीजीकेपास है, जिसमेकि - शामरंगमूर्त्ति - करीब ( ३ ) हाथबडी - निहायत - खूबसुरतऔर पुरानीराजासंप्रतिकी तामीरकि हुइ तख्तनशीन है. और वहीनिशान उसपर है जोराजासंप्रतिकी बनाइहुइ मूर्त्तिओं पर होता है, मंदिरभी पेस्तरका है कारीगरी इसमें कम है पुराना यही है, इससेभी पुरानेजैनमंदिर यहां पर थे - मगर गर्दी सजमानेके-व-नहीरहे, - तीर्थों में यहकदीमी रवाजचला आयाकिएकमंदिर पुरानाहोकर गिरगया किसीखुशनशीबने दुसरातामीरकरवाया, इसीतरह दर्जे दर्जे बनतेजाते है औरतीर्थ हमेशांके लिये कायम रहता है, विमलशाहशेठने जब अपनानयामंदिरबनवायाइस पुराने मंदिरकी रदबदलनहीकि, पेहलेके मुताबीकही रखा,
अविमलशाह शेठके - और वस्तुपाल तेजपालके बनवायेहुवे मंदिरों का बयान सुनिये ! हिंदके तमामजैनमंदिरमें - ये - दो - मंदिर कारीगरीके काममें आलादर्जेके खूबसुरत है संवत् [ १०८८] में जब विमलशाहशेठने यहांपर मंदिर बनवाया - [१५००] कीरीगार और -[ २००० ] मजदूरमुकररथे, इसके - बनाने में तीनवर्षगे कुलका शंगमर्मरपथरका और पहाडपर हाथीयोसे माल असबाब चढायागया था, ख्याल करो ! कहांकहांसे पथरमंगवायेगयेथे और किसकदर महेनतकेशाथ पहाडपर चढायेथे, अंदाज दो करोडरूपये इसमें सर्फहुवेहोगे, मंदिर की लंबाई [१४०] फुट - और चोडाई (९०) फुट है - रंगमंडपमें खंभोमें- और मेहराबो में कैसे कैसे वेलबुटेबनाये है जिसकी कारीगरीतारीफके बहार है, हाथी-घोडे - और पुतलीयें किस कदरऊम
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( १२० ) तवारिख-तीर्थ-आबु, दाऔर बेंमीशाल बनाइहै-जिसको देखकर बडेबडेकारीगरभी चकितरहजातेहै, आलादर्जेकी कारीगीरीकरके कारीगीरोने ऐसाकमालकियाकि-ऐसीकारीगीरी दुनियामें कम नजरआतीहै, परकम्मामें-चारोतर्फ बावनजिनालय मंदिर बनेहुवे हरेकमें जिनेंद्रदेवोकी पदमासनमूर्तिये जायेनशीनहै, मंदिरके अंगनमेंजो रंगमंडपहै (४८) खंभेलगेहुवे-औरठीकबीचमें एकगुंबज-इसकदर कारीगीरीसेवनाहैकि-जिसकों-देखकर अकल हेरानहोजातीहै, बावनजिनालयोंके सामने-खंमोमें-छतोंमे-औरदिवारोंमें जोजो नकशकारीका कामकियाहै जिसकीतारीफ-जबानसे बाहरहै, जोशख्श देखेगा वहीजानसकेगा. सबजिनालयोंमे राजासंपतिकी तामीरकराइहुइ मूर्तिये जायेनशीनहै, विमलशाहशेठकीकहातक तारीफकरे जिनोने अपनी दौलत इसकदर धर्ममें सर्फ किइ.
इसमें मूलनायक-तीर्थकर रिषभदेव-भगवानकी मूर्ति चारहाथ बडी जोकि-राजासंप्रतिकी तामीरकिइहुइ वेसेही-निशानातहै जो राजासंपतिकी बनाइहुइ मूर्तियोंपर होतेहै, संवत् [१०८८] में इसकी प्रतिष्टाकिइगइ-शिलालेखोसे साबीतहै, इस मूर्त्तिके दाहनेऔर बायेपासे दोमूर्ति खडेआकार और है ऊनकेनीचे लिखाहै संवत् (१३८८ ) मे बनाइगइ. गभारेसे बहारजो मूर्ति सर्वधातमय पदमासनहै दाहने पासेकी मूर्तिकनीचे लिखाहै संवत् (१५२०) मे यह तामीरकिइगइ, इनमुर्तियोंकेआगे रंगमंडप तर्फबढोतो जोदो मुर्ति खडेआकार साढेतीनहाथ बडीहैउनके नीचे
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तवारिख-तीर्थ-आबु. ( १२१ ) लिखाहै संवत् [१४०८] मे-ये-तामीरकिइगइ. औरजैनाचा र्यकक्कसुरीजीने इसकीप्रतिष्टाकिइ. परकम्मामें जोगावनजीनालयके मंदीरखने हुवेहै, कइजीनालयोकेदरखजेपर संवत् [१३७८] काएकपरसंवत् [१३८२] काएकपर संस्कृतजबानमें [१३] काव्य लिखेहुवे औरअखरिमें ऊसकीबुनीयाद संवत् [१२०१] कीबतलाइहै. एकजिनालयके दखजे की दाहनीतर्फ कालेरंगके पथ्थरका एकलेखहै उसमें संवत् [१३५०] औरइसकेआगे-महाराजाधिराज-सारंगदेव
और-विशलदेवका नामहै. एकजिनालयके बहारदरबजेकी बायीतर्फ चौमुखाजीकेपास डुंगरपुरीपथ्थरपर (१६) श्लोकलिखेहुवे है,
इसजिनालयके दरखजेकी दाहनीतर्फ चरणपादुकाके पासएककाले पथ्थरका लेखहै जिसमे [ ४० ] काव्य और संवत् [१२७९] लिखाहै. एकजिनालयके ऊपर संवत् (१२४५) वैशाखवदी पंचमांगुरूवार लिखाहै, औरउसके थोडेदुरनीचे संवत् ( १३७८ ) का लेखहै, जिसमे जैनाचार्य धर्मघोषसूरि-और-ज्ञानचंद्र सूरिजीकेनामहै, एकजिनालयके दरखजेपर संवत (१२४५) का लेख दो-लंबी-सतरे और उसमे चारश्लोकलिखेहुवे है, अवलसतरमे खंडेरगछ-महति-यशोभद्र
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( १२२ ) तवारिख-तीर्थ-आबु. सरि--आर-इसकेआगे शांतिसूरिका नामहै. मंदिरकेठीक सामनेदरवजेके-एक पथरका एकघोडा-और-उसपर विमलशाहशेठ क्या ! उमदा चेहरानजर आताहै जैसेकोई बडासखी और इकबालमंदशख्शहो, कमालहुस्न-और-मुबारीकबादी उनकेचहरे परझलकरहीहै, मुसल्मानी अमलदारीकेवख्त यहमुर्ति कुछतोडी गइथी. हालमे कलीचुनेसें मरम्मत किडगइहै. विमलशाहशेठके घोडेके अगलवगल औरपीछे (१०) हाथी शंगमरमरपथरके क्याही खूबसुरतबने हैकि-मानो ! किसीकारिगीरने अभीइसको बनायाहो. जोकरीवतीनतीन हाथवडे औरचोडेहोगें-उनकीहिफाजतके लिये उपरछत बनीहुइहै, संवत् ( १८१८) मे महाराजश्री पदमविजयजीने जोतीर्थ आबुकास्तवन बनायाहै विमलशाहशेठके बनायेहुवे मंदिरमें ( ८७६ ) मूर्तिी -लिखाहै, सेकडोंकोशोंसे शंगममपथर मंगवाकर पहाडपर मंदिरबनवाना कितनामुश्किल है, हाथीयोंपर माल असबाब लदवाकर चढायजाताथा जिसमें बेशुमार खर्च होताथा,.. अब वस्तुपाल तेजपाल के मंदिरका बयानसुनिये, खुशनशीबोंने दुनियाकी पुस्तपर क्याक्या करदिखाया है जिसकानाम आजतक दुनिया रोशनहै, असल में-वस्तुपाल-तेजपाल-आसराजजीकेवटे और राजावीरधवल के दिवानये, उनोनेभी मानींद विमलशाहशेठके दौलतलगानेमें कोई कसरनहीकिइ. अपनाखजाना लाकरगोया ! आबुपहाडपर रख दिया. विमलशाहशेठके मंदिरकोंदेखकर उनोनेभी वैसाहीमंदिर यहांबनाया. शोभनदेवकारीगर उसवख्त तमाम शंगतरासोका अप्सरथा. जैसा-उसका नामथा वैसाही शंगमरमरपवरपर करकेदिखलादिया. बडाआलिशान मंदिरदेखकर दिलनिहायतखुशहोगा. छतोमें-रंगमंडपमें-और--मेहरावोमें ऐसीऐसी
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तवारिख-तीर्थ-आबु, ( १२.३ ) कारीगरी किइगइहैकि-जिनकीतारीफ-जवानसें बहारहै, जोजोवेलबुटे-कमलकुल-पुतलीया-गुलदस्ते-बनायेहै देखकर अड़ेअछे कारीगर ताज्जुबकरतेहै, मुलनायक तीर्थकर नेमनाथभगवानकी मूर्ति करीब तीनहाथबडी शामरंग इसमें तख्तनशीनहै, यहमूर्तिराजासंप तिकी बनाइहुइ-वैसेही निशानात इसपरवनेहै-जैसे उनकी तामीर कराइहुइमूर्तियोंपरहोते है, इसमंदिरकीप्रतिष्टा संवत् (१२८८ ) में हुइ, परकम्माकेजिनालयोपरलिखाहै आसराजसुत-वस्तुपाल-तेजपालने-यहमंदिरतामीरकरवाया, इसकेभीतरीरंगमंडपमें गभारेकेबहार बायीतर्फजोखडेआकार दोहाथबडीमूर्ति जायेनशीनहै उसकेनीचे लिखाहै संवत् (१२८९) फाल्गुनसुदी (८) कोरंटकीय गछ पुन्यसिंहभायो-- पुन्यश्रीसुत--भ्रातृमूलगेहासहितेनमुंडस्थलसत्कश्रीमहावीरचैत्ये--निजज्येष्टबांधवमहदुदाश्रेयोर्थ जिनयुगलंकारितं प्रतिष्टितं,___ बाहारकेरंगमंडपकीबायीतर्फ-परकम्मामें--जो-दो-बडे बडे शिलालेखसंस्कृतपद्यवद्ध-है-उसमेंएककालेरंगका-दुसरासफेदरंगका--सफेदरंगके शिलालेखपरलिखाहै संवत् (१२८७) फाल्गुनवदी (३) इतवारकेरौजयह लिखागया, दोनोंशिलालेख संस्कृतजबानमें-हर्फनिहायतउमदा-मगरकइजगह टुटगयेहै, इसमंदिरमे बावनजिनालयका
आकारउमदाबनाहै कइजिनालयोपर संवत् (१२९३) केलेखहै, एकपर (१२९०)-और-एकपरसंवत् [१२९१] कालेखहै,और-ये-सब-छोटेछोटेजिनालय वस्तुपाल-तेजपा
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( १२४ ) तवारिख-तीर्थ-आबु. लकेखानदानवालोने बनवाये है, मंदिरकीपीछाडी शंगमर्मर पथरके (१०) हाथी-जोकरीव तीनतीनहाथ लंबेचोडेजिसकी कारीगीरी-हदसेज्यादहहै-जोदेखेगेवेही जानसकेगें, इनहाथीयोंकेउपरछतऔर पीछाडीदिवारबनीहुइहै, उसमेंअलगअलगआले-और
और-उनालोमें वस्तुपाल-तेजपाल-उनकीऔरतें--चचावगेरा रिस्तेदारोंकी मूर्तेशंगमर्मरपथरकी बनीहुइहै, कैसीकैसीउनकी खूबसुरति-कमालहुस्न-और-इकबालमंदी-चेहरेपरझलकरहीहै, खुश'नसीब-बहादूर-और-धर्मपावंदहोतो ऐसेहो,
___मंदिरकेरंगमंडपमेंदोंनोतर्फजोदो-आले-एकबायी-और एकदाहनीतर्फक्नेहुवे है. इसकदर उमदाकारीगरीकिइहैकि-शंगमर्मरपथरकों बतौरकागजकरके दिखलादिया, ये-दोनों-आलेवस्तुपालतेजपालकीऔरतोंने-अपनेजेबखर्चसेंतामीर करवायेहै, दरअसलमेंये-आलेनहीं है मगरकारीगरीमें बडेबडेमंदिरोंकों मातकरनेवाले है, शावाशहै जननेंकऔरतोंके खयालोकों जिनोनेधर्मपर ऐसीनेंकनामीकिइ. आबुकेजैनमंदिरोंकी जोतारिफसुनतेहो इनहीविमलशाहशेउ-और-दिवानवस्तुपाल-तेजपालकेबनायेहुवे मंदिरोंकी है,-वस्तुपाल--तेजपालकमंदिरकी तामीरातमें एककरोड--असीलाखरुपये सर्फहुवे, अलावाइसके जिसजगहपर मंदिरखनाहै उसकीभरतीकरनेमें छपनलाखरुपयेहुवे. जंगलीभील-लोगोनेइसमंदिरकों कुछनुकशानपहुचायाथा--तबसेइसकी रवन्नक-कमहोगइ मगरफिरभी बहुतकुछरवन्नकहै, जवयहमंदिरबनकर तयारहुवाहोगा उसवख्तदेखतेतो मालूम होताकि-क्यारवनकथी,... . . मंदिरकी दाहनीतर्फपरकम्मामें-अंबिकादेवीकी उरलीतर्फ-बि
चलेदेवालयमें पूरवतर्फकीदिवारकेपास शंगमर्मरपथरपर उकेराहु
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maarnamarnammarrian
तवारिख-तीर्थ-आबु, ( १२५ ) वा-जो-शकुनिका-विहारकाआकारहै उसमेंभरुअछशहरके पासका दरियाव-जहाजमेंबेठीहुइ-सुदर्शनाराजकुवरी एकतर्फबोडकादख्तसामनेतीर लगाताहुवा एकशिकारी-जमीनपरगिरीहुइ शमलीऔर नमस्कारमंत्रसुनातेहुवे पासखडे-जैनमुनि-वगेराआकार-शकुनिका विहारका बनाहुवाहै, औरउसपरलिखाहै संवत [ १३३८] वर्षे ज्येष्टशुक्ल [१४] शुक्रेश्रीनेमिनाथचैत्ये-संविज्ञविहारिश्री चक्रेश्वरमुरिसंतान-श्रीजयसिंहमूरिशिष्यश्री सोमप्रभसू. रिशिष्येः श्रीवर्द्धमानसूरिभिः प्रतिष्टितं-आरासणाकरवा स्तव्यप्राग्वाटज्ञातीय-श्रे-गोनासंताने-श्रे० आमिगभार्या-रतनी पुत्रतुलहारि-आसदेव-श्रे० पासड-तत्पुत्रसिरि पाल-तथा-आसदेवभार्या-सहजू-पुत्रतु० आसपालेनभा-धरणि....सिरिमति-तथा-आसपालभार्या--आसिणिपुत्रलिंबदेव-हरिपाल-तथा-धरणिभार्या....ऊदाभार्या--पाल्हणदेविप्रभृति कुटुंबसहितेन-श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबअश्वावबोध-शमलिकाविहारतीर्थोद्धारसहितं--कारितं-मगलंमहाश्रीः-इसलेखकामतलबयहडवाकि-आरासण नगरकेरहनेवाले-पोरवाडज्ञाति-आसपालनामके श्रावकनेयहांनेमनाथभगवानकमंदिरकी परकम्मामेंतीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीकी मूर्तिजायेनशीन किइ-और-अश्वावबोध-शकुनिका-विहारतीर्थकाआकार--पथरपर उकेरवाकर कायमकिया,
महाराज श्रीपदमविजयजीने तीर्थआबुके स्तवनमें उसवख्त वस्तुपाल-तेजपालके मंदिरमें (४६८ ) प्रतिमाथी-लिखाहै, पेय
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( १२६ ) तवारीख-तीर्थ-आबु. डशाहने-और-लल्लनामके साहुकारने-यहांकइदफे जलसेकिये और दौलतसर्फकिइ. हिंदमें आवुकेजैन मंदिरअपनी कारीगीरीसें आमजगह मशहूरहै, मंदिर-सोना-चांदी-जवारातके वनेनही है पथरके है मगर कारिगरीके सामने-सोना-चांदी--जवाहिरातभी-नाचीजहै. फीजमानाके कारी गिर यहांकीकारीगरी देखकर ताज्जुवकरतेहै और इसहुनरकों सीखनेकी कोशिशकरतेहै, कइअंग्रेज-इनमंदिरोका फोटो उतारतेहै,-कीर्तिकौमुदी-औररासमाला कितावजोकि-आलादर्जेकी तवारिखें शुमारकिइजाती है उनमेंआबुकेजैनमंदिरोका हालदर्ज है, जोशख्शयहांआनकर नजरसेंदेखेगा अजहदखुशहोगा.___वस्तुपाल-तेजपालके मंदिरसेथोडीदूरशेठ-भैसाशाहका तामीरकियाहुवा निहायतउमदामंदिर बडेधैरेमें है. मूर्तिइसमेंमूलनायक भगवानकी करीबतीनहाथवडी सवधातकी तख्तनशीनहै, इसके नीचेलिखाहै [संवत् १५५२] मेंतामीरकिइगइ, तपगछ. नायकश्रीसोमसुंदरसूरि-तत्पदे-मुनिसुंदरसूरि-तत्पदे-जयचंद्रसूरि-तत्पदे-रत्नशेखरमूरि-औरउनकेपट्टपर लक्ष्मीसागरमूरि-जिनोने--इसमूर्तिकी प्रतिष्टाकिइ, गभारेके बहाररंगमंडपमें दोमूर्ति-एक-तीर्थकररिषभदेवभगवानकी दुसरी-मुनिसुव्रतस्वामीकी-जायेनशीनहै, तारीफकरनाचाहिये भेंसाशाहशेठकी जिनोनेइसकदरअपनीदौलत इस तीर्थपरखर्चकिइ, चोथामंदिरचौमुखाजीका तीमंजीला
और-तीनोंमंजीलोंपर मूर्त्तिचौमुखाजीकी तख्तनशीनहै. बडाबुलंदशिखर औरसबकाम पुख्ताबनाहै, रंगमंडपबहुतबडा जिसमेंकरीब [५००] आदमीबखूबी बेठसकते है,
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तवारिख-तीर्थ-आबु. (१२७ ) अब-अचलगढके मंदिरोंका-हालसुनिये, देलघाडेसें अचलगढ (५) मीलके फासलेपर वाकेहै, सडक पकीवनीहुइ-मगर चोडाइमें बहुततंग सीर्फ घोडे-और-डोलीये जासकतीहै, बगीया-गाडीनही जासकती, रास्तेमें एकमौजा ओरीयानामका वाकेहै जिसमें श्रावकोंका एकभीघर नहीरहा-सवघर दिगरमजहब वालोंके करीव (१००) है, जैनश्वेतांवर मंदिर एक-यहांनिहायत पुरानावनाहुवा-और-इसमें मूलनायक भगवान् महावीरस्वामीकी मूर्ति . करीब (१) दो-हाथवडी तख्तनशीनहै, यहमूर्ति राजासंप्रतिकी तामीरकिइहुइ-वहीं-निशानातइसपर बनेहुवेहै, बायीतर्फ एकमूर्ति-तीर्थकर पार्श्वनाथजीकी-इसपरलेखनही-सीर्फ ! पार्श्वनाथभगवानका नामहै, दाहनीतर्फ एकमूर्ति तीर्थकरशांतिनाथजीकी जो करीबपोनेदोहाथवडी जायेनशीनहै और यहभीराजासंपति की तामीरकीइहुइहै, आबुपहाडपर बहुतसीमूर्तियें राजसंपतिकीहीतामीरकिइहुइ पाइजातीहै, निगरानी-इसमंदिरकीअचलगढके खजानेसे किइजातीहै, इसकेदर्शनकरके-वापीस उसीसडककोआनाजो-अचलगढकों गइहै,
अचलगढगांव पहाडकी दामनमेबसाहुवा जबतलहटीमें पहुचोगे राजाकुमारपालका तामिरकियाहुवा मंदिरदाहनी तर्फकों नजरआयगा, जो-बडासंगीन-और-पुख्तशिखरवंद वेंशकिंमती बनाहुवाहै,
और इसमें तीर्थकर शांतिनाथ महाराजकी मूर्ति तख्तनशीनहै, यहमूर्तिभी राजासंपतिकी तामीरकिइहुइ-औरवही-निशानात इसपरमौजूदहै, रंगमंडपमें शिलालेख लगाहुवाहै मगरव-वजहटुटजानेके वचनहीसकता, दो मूर्ति-जो-खडेआकार इसमेंजायेनशीनहै बायीतर्फकी
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( १२८) तवारिख-तीर्थ-आबु. मूर्त्तिकेनिचे लिखाहैसंवत् [१३०२] जेठसुदी (९) मीशुक्रवारकरोज यहमूर्ति प्रतिष्टितकिइगइ, पल्लीवालज्ञातीयश्रावक [नामखंडित होगयाहै] की भार्याने यहमूर्ति बनवाइ, और आगेचौथीलकीरमें तीर्थकरशांतिनाथजीका नामलिंखाहुवाहै, आसपास-चुना-लगादियाहै जिससे लेख पुरेपुरा बचनहीसकता, रंगमंडप वडाआलिशान-वहारकीतर्फ उमदाकारिगीरी-और-अतराफमंदिरके संगीनकोट खीचाहुवाहै. राजाकुमारपालके मंदिरकादर्शन करके जबबहारआओगे सामने एकतालाव नजरआयगा. और उसकी एकतर्फ तीन से पथरके बनेहुवे खडेदेखोगे, आगेपहाडकी-तर्फबढोतो-एकदरवजा -और-एक तालाव आयगा, इसकेभी आगे बढोतो दुसरादरवाजाऔर अचलगढगांवकी आवादीशुरूहोगी, आबादीक्याहै, ? बरायेनाम वीशपचीशघर रहगये यहांपरएक मंदिर तीर्थकरकुंथुनाथ जीका-और-एकधर्मशाला पुरानी बनीहुइहै, यात्री इसमें जाकर कयामकरे, मंदिरमें सबधातकी बनीहुइ मूर्ति-तीर्थकरकुं
थुनाजीकी तख्तनशीनहै औरउसके नीचे लिखाहै संवत् [१५२७] में. यहतामीर किइगइ,___ यहांसेआगे बडेमंदिरकों जाना जो बुलंदशिखरपर मानींद स्वर्गविमानके नजरआताहै, पास नयीधर्मशाला-कारखाना-मुनीम-गुमास्ते-नोकरचाकर-चौकी पहरा सबठाठ शाहाना देखोगे, यहकारखाना जेरसाया-गोहिडा गांवके श्रावकोंकेहै, औरअलवते ! इसवख्त इसमंदिरकी तरक्कीहै, पहाडकेबुलंद शिखरपर जैसाखूबमुरतमंदिर अचलगढकाहै दुसरीजगह नहीदेखोगे, इसके रंगमंडपमें
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JANAM
तवारिख-तीर्थ-आबु. (१२९ ) बखूबी ( ५०० ) आदमी वेठसकतेहै, बडासंगीन रंगरोशन किया हुवा बतौरदेव मजलीशके देखलो ! मूलनायक तीर्थकर रिषभदेव भगवानकी-मूर्ति-सवधातकी बनीहुइ करीव (४) हाथवडी निहायत खूबसुरत तख्तनशीनहै, इसमें ज्यादाहिस्सा सोनेकाऔर-बाकी दिगरधातुकाहै,
इसपरलिखाहै-संवत् (१५६६) फाल्गुनसुदि (१०) मी-दिने-श्रीअचलचढ्दुर्गे-राजाधिराज श्रीजगमालविजयराज्ये-प्राग्वाटज्ञातीयसं-कुरपालपुत्रसं-रनसं-धरणसं-रत्नपुत्रसं-लाषासं-सलषासं-सजासं-सालिंगभासं-सुहागदेपुत्रसं-सहसाकेनभासं-सारदे पुत्रषिमराजदि-अनुपमदेपुत्र--देवराज--पिमराज भारमादेपुत्रजयमल-मनजीयुतेन-निजकारित चतुर्मुख प्रासादे-उत्तरदारे-पित्तलमयमूलनायक श्रीआदिनाथ विंबंकारिततपगछनायक सोमसुंदरसूरि-तत्पदे मुनिसुंदरसूरि-तत्पदेजयसुंदरसूरि-तत्पदेविशालराजमूरि-तत्पदे रत्नशेखर मूरि-तत्पदेलक्ष्मीसागरमूरि--श्रीसोमदेवनारीशष्य--श्री सुमतिसुंदरसूरि-शिष्य--गछनायक श्रीकमलकलशसूरि शिष्य-संप्रतिविजयमान-छनायक --श्रीजयकल्पाणसु. रिभिः श्रीचरणसुंदरमूरि प्रमुखपरिवारयुतैः प्रतिष्टितं,
मुलनायकजीकी तर्फ जो मूर्ति जायेनशीनहै उसपरसंवत् (१५१८ ) का लेखहै, उनकेपीछाडी जोदो
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( १३० ) तवारिख-तीर्थ-आबु. मूर्तियेहै उनमें एकपर संवत् ( १५१८ ) और दूसरीपर (१५६६ ) का लेखहै, बायीतर्फजो तीनमूर्तिये है ऊनमेएकपर संवत् ( १५६६ ) एकपर संवत् (१५२९)
औरएकपर संवत् (१५६६) का लेखहै, मूलनायकजीकी दोनोंतर्फ-जो-दोमूर्ति-खडेआकारहै-बेभी-सवधातकी बनीहुईहै, रंगमंडपकी दाहनीतर्फके आलेमें तीर्थकरनेमनाथ भगवानकी मूर्ति-और-उपरकी मंजिलपर चौमुखामहाराजकी चारमूर्तियोपर संवत् [१५६६] का लेखहै
औरएकपर बिल्कुल लेखनही-ये-कुल्ल (१४) मूर्तियां-वजनमे (१४४४ ) मणकी शुमारकिइजातीहै, इनमें ज्यादा-सोना-और तांबा-पीतलवगेरा दिगरधातु कमहै, मंदिरकी छतपर जाकरदेखो तो तमामकफियत आबुपहाडकी-और-मंदिरोंकी नजरआतीहै, किसकदर हरियाली तरहतरहके द्रख्त-चिश्मेआव-नदीनाले-और. छोटेछोटे गांवनजरआतेहै ! एकउमदा कालीन वीछाहो, औरदेखने वाले आस्मानकी शैरकररहेहो, पासमें एकशिखरपर कुंभाराणाजीके महेल-और-सावन-भादवा तालावके निशानातवनेहुवेहै, अचलगढके मंदिरकीजियारत करके नीचे आनाचाहिये, अचलगढ' गांवमें पांचसातघर जैन श्वेतांवर श्रावकोंके आवादहै, यात्रीअचल-- गढसें वापीस उसीरास्ते देलवाडेआवे, ___ आबुपहाडपर पेस्तर पारसपथर मिलताथाकि-जिसकेछुनेसें लोहा-सोना-बनजाताथा, मगरयेवातें अवख्यावमेंभी नजरनहींआती, न-वैसेनेकवख्त आदमीहै-न-३-चीजेंहै, पेस्तरयहां ऐसी ऐसीजडीबुटीयें होतीथी-जिसकोंघीसकर आदमी अपनेबदनपर
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तवारिख - तीर्थ - आबु.
( १३१ )
लगालेवेतो अदृष्टहोजातेथे, आजकल जमाना नाजुक है उमदाचीजे गाय होती जाती है, और कमजोरचीजें दरपेशहोती है, पेस्तरयहां पीले रंग के पथर जैसे होतेथे अगरऊनकों दूधकेसाथ घीसकर बदनपर लगादियेजाय तोतयामवीमारीयां रफाहोतीथी, ताकतवर औष
ये यहां ऐसी होती थी जिसकों खाकर आदमी हजारशख्शो की बराबर ताकतहासिल करताथा, मगर आजकलसीर्फ ! सुननेकेलिये बातेंरह गइ, न-वे चीजे है-न-वे आदमी है, आबुकल्पमे लिखा है, -
-
न सवृक्षो न सा वल्ली-न तत्पुष्पं न तत्फलं, नसकंदो न सा शाखा - या नैवात्र निरीक्ष्यते, १
ऐसा कोइद्ररूत - लता - वल्ली - फल - फुल - और - कुंद -- नहीथाजो यहां पर नही पायाजाताथा, पेस्तरयहां सिद्धरसहोताथा, बुजुर्ग लोग कहाकरते है कि
पदेपदे निधानानि - योजने रसकुंपिका, भाग्यहीना न पश्यंति- बहुरत्ना वसुंधरा, १,
आबुकीहवा मुल्कोंमेंमशहूर है गर्मीयों के दिनो में भी रातकोंयहांपर शर्दी मालूम होती है, कड़किसम के परींदेद्रख्तों पर कलोलेकरते है, आम अनार - अंजीर - बादाम - अंगुर - केले - जामफल- जंभीर - नींबु - - नरंगी गुलर - खजूर - अद्रक - पोंदिना - कुष्मांड - कठेर - केर--कविठ - ककडीऔर- कचनारवगेराकइचीजें यहांपरपैदा होती है, फुलों का बयान सुनो तो- तरहतरहकेगुलाब - हजारोमणपैदा होते है, चंपाकेद्रख्त औरफुल उसके बेशुमारउतरते है, गर्मीयोंमें और बारीश में जिधर देखो फुलोंकी खुशबूमहेकरही है, औरतरहतरहके गिरेहुवेफुल जमीनपर इसकदर बीछेहुवे दिखाइदेते है, मानो ! कोइऊमदा कालीनवी छाहुवा है, जाइ - जुइ - केतकी - डमरा-मरूआ - केवडा - और चमेली हरकिसमकी यहां
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( १३२) तवारिख-तीर्थ-आधु, खडीहै, गुलवेलिया-और-केशुवगेरा जंगली फुलोंकी गिनतीकरो, तो एककिताब भरजाय, विद्याब्राहमी-सहदेवी-काकजंघा-शरपुंखा-लक्ष्मणा-मयूरशिखा-हंसराज-नकछीकनी-रतनजोत--जलजमनी-और-प्रियंगु-यहांहजारोमण पैदाहोतीहै, सफेदमुशलीबहडे-आवले-अरीठे-मोथ-घोडवेल-और-मरोडफलीभी--किसीकदरकमनही, कांटालकासहेत यहांबहुत पैदाहोताहै. भौरे-कांटालजातिकी नाशपातीकारस पीइकर सहेतकों पैदाकरतेहै,... अय्यामवारीशमें आबुपहाड बदलोंसें इसकदर छाजाताहै बुलं दशिखर बिल्कुलनजर नहीआते, आबुपर छावनीमें जिसचीजकी दरकारहो आसानीसे मिलसकतीहै, आबुकेजैनमंदिर जिनोनेनही देखे एकआलादर्जेकी कारीगरीका हिस्सानहीदेखा ऐसाकहनाकोइ गलतबातनही, मंदिरोंमें जातेवख्त-लकडी-हथियार-छडी-जुतेवगेराबहार रखकर जानाचाहिये, देवमंदिर एकअदबकी जगहहै, अंदरजाकर कारीगिरीकों बिल्कुल-न-छीवे, दरसे सबचीजदेखे, दरवजेपर इसीमजमुनका एकइस्तिहारभी लगाहुवाहै, आबुतीर्थकी जियारतसें यात्रीकों दो-किसमके फायदेहोगें, अवलधर्मका दोयम कारिगीरीके देखनेका-देलवाडेसे यात्री उसीरास्ते वापीसखरेडी आवे जिसरास्तेगयेथे, आबुपरचढनेके रास्तेकइबनेहै, मगरखास रास्तेदो-है, अवल खरेडीका-दोयम-अनादरेका, पहाडपर चढतेवख्त रास्ताचढावका-और-उतरतेवख्त उतारकाहै, ब-सबब-सडकके रास्तासाफ- हरजगहहरियाली कुछ कुछ फासलेपर चौकीपहरेलगेहुवे और सबइंतजाम अछाहै,... (तवारिख आबु खतमहुई,)
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तपारिख-तीर्थ-भणवाड. (१३३ )
[ तवारिख तीर्थ बंभणवाड ] आयुरोडसे रवानाहोकर यात्री किरवरली-भिमाना-रोहिदाऔर-बनासटेसन होतेहुवे टेशन पीडवाडा उतरे, रेलकिरायापांचआने लगते है, पिंडवाडेमें श्रावकोके मकानात-धर्मशाला-और -पुराने मंदिर वनेहुवेहै, दर्शनकरके आगे बंभणवाढतीर्थकों जाना जो करीब (४) कोशके फासलेपर वाकेहै, सवारीके लिये बेलगाडी मिलसकेगी, रास्ता खुश्कीकाहै, चौकीदारकों शाय लेनाचाहिये. और खानपानका बंदोबस्तभी यहांसेही करलेना ठीकहै. बंभणवाडगांव छोटाहै चाहिये वैसीचीज वहांपर नही मिलसकेगी, तीर्थबभणवाड पहुचनेपर धर्मशाला में कयामकरना जो-निहायतपुख्ता और आलिशान बनीहुइहै, वंभणवाड कस्वा बहुतब. डानही मगर तीर्थकी वजहसे मशहूरहै. यहाँपर तीर्थंकर महावीर स्वामीका बडाआलिशान मंदिर-गांवसे-कुछ फासलेपर जंगलमें बतौर देवविमानके खडाहै, कारखाना-मुनीम-गुमास्ते-नोकरचाकर और पूजारीवगेरा हमेशांकेलिये यहां तैनातहै, मंदिरके सामने पथरका-एकहाथी-मानींद असलीहाथीके-बनाहुवाखडाहै, मंदिरमें मूलनायक भगवान-तीर्थकर महावीर स्वामीकी मूर्ति-बालुरेतकीबनीहुइ जिसपर मोतीयोंका लेप लगाहै करीब (१) हाथवडी तख्तनशीनहै, दर्शनकरके दिलखुशहोगा, ___जोलोगकहते हैकि-तीर्थकरमहावीरस्वामीके कानोंमें जो-गोवालियेने लकडेकी बडीबडीकीले बतौरमेखके लगाइथी-वहखरकनामकेवैद्यनेयहां निकालीथी, मगरयहबात बिल्कुलगलतहै, असलमें-यहमाजरा मुल्कपूरवकाहै, देखो! कल्पसूत्रमें जहांतीर्थकर महावीरस्वामीका अंतर्वाचनाका जिक्रदर्ज है, ऐसापाठ मौजूदहै, कि-तीर्थकरमहावीर खणमानीगांवकेबहार खडेहोकरध्यानकरतेथे
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(१३४ ) तवारिख-तीर्थ- बंभणबाड. एक-गोवालीयेने ऊनकेकानोमें दो-मेखां-लकडेकीलगाइ, और जब-वे-मध्यमअपापानगरीकोंगये वहांकरहनेवाले सिद्धार्थवणिक
और-खरकनामकेवैद्यने-ऊनोकेकानसे बडीकोशिकेशाथ मेखां निकाली, कल्पसूत्रका पाठ और सबहकीकत आगेचलकरलिखेगे जहांकि-मुल्कपूरवके जैनतीर्थोका क्यान करेंगे, असलवात मूल्क पूरवमें वनीथी पीछेसें यहां उनकी-नकल-किइगइहै, वंभणवाडसें यात्री नादियागांवको जावे, जोकि-दोकोशकेफासलेपरवाके है,
औरयहांपर तीर्थकरमहावीरस्वामीका बडाआलिशानमंदिर बनाहुवा है जियारतकरे, गांवनादियाके बहार एकछोटी पहाडीकी खोहमेंतीर्थकरमहावीरस्वामीकी मूर्ति पहाडमेऊकेरीहुइ-और-एकशिलापर सर्पका निशानबनाहै जिससांपकानाम चंडकौशिक था-और इन्होके पांवकों काटाथा, जब उससर्पको तालीमधर्मकीदिइ उसका गुस्सा उतरगयाथा, और-वहधर्मी होगयाथा. यह माजराभी मुकपूरवकाही है, जब तीर्थकरमहावीर श्वेतांबिकानगरीकों जातेथेकनकखलतापसाश्रमके पास-चंडकौशिकनामके सर्पनेऊनकेपांवकों काटाथा, ऊसकी नकल यहांपरवनाइगइहै, जैसे रायणक्ष (यानी) खिरनीद्ररुतके नीचे तीर्थकर रिषभदेवस्वामीका पधारना तीर्थशबुजयपरहुवाथा-मगर-स्थापना-उसकी औरभी कइजगह किइगइ है इसीतरह यहभी माजरा समझलो, ... कल्पसूत्रमे देखो साफवयानहै तीर्थकरमहावीर छदमस्थ-हालतमें-मुल्कपूरवतर्फही विचरतेरहे मारवाडमें नहीपधारे, नादिया आसपास-लोटाणा-अंजारी-शिरोहीवगेराभी जैनोकी आबादीके -मुकामहै, और बडेबडेजैनश्वेतांबरमंदिर वहांपरबनेहुवे है, अगरफुरसतहोतो वहांभी जानाचाहिये, अगर कमफुरसतहो-तो-नादियासे वापिस बंभणवाड-और-वंभणवाडसे उसीरास्ते देशनपींडवाड़ेआना,
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तवारिख-पंचतीर्थी. (१३५ ) और रैलमें सवारहोकर केशवगंज-नाणा-मोरीबेरा-एरनपुरारोड संदेराव-और-फालना होते रानी-टेशन उतरना, रैलकिराय छआने लगते है,
[ तवारिख-पंचतीर्थी,-] . . मुल्क मारवाडमें-रानीटेशनसे ( २० ) कोशके घेरेमें पंचतीर्थी एकमशहूर जगहहै,-वरकाणा-नाडोल-नाडलाइ-घाणेरायऔर-रानकपुर-ये-पंचतीर्थीके नामहै, सवारीके लिये बेलगाडी रूपयेरोजके किरायेपर मिलसकेगी, रास्ते दो-है, एक वरकाना होकर रानकपुर जाना, दुसरा रानकपुर होकर वरकाना आना, जिनकों जैसा सुभीताहो-वैसा करे, दोनों तर्फसे वापीस रानीटेशनकोही आनाहोगा. और कमसेकम आठरौज लगेगे, जोलोग भ. गाभगी करके चार-या-पांचरौजमेंही खतमकरतेहै उनकीजियारत. फिजुलहै, घरछोडकर तीर्थ आये और तीर्थमेंभी वही हालरहा लो. इससे बेहत्तरहै घर हीबैठेरहना, यात्रीको रानीटेशनसें चलकर एकः
रौजवरकानामें रहनाचाहिये, जोकरीब देढकोशके फासलेपर वाके है, वरकाना-कस्वा पेस्तर बडाथा अब करीब (७५) घरकी आबा- . दीका रहगया, जैनश्वेतांवरश्रावकोंके घरअंदाज दसपनराहकेहै, धर्मः शाला. यहां (२) है, एक छोटी एकवडी, दोनोंमें मिलाकर करीब (१००) आदमी-ब-खूबीठहरसकतेहै, अतराफ-मंदिरके-एक पुख्ताहाता खीचाहुवा, कारखानेमें मुनीम-गुमास्ते-नोकर-चाकर पूजारी वगेरा हमेशांकेलिये तैनातहै, और जेरनिगरानी उनपर: बीजवाके श्रावकलोगोंकी है, जोयहांसे मीलभरकेफासलेपर वाके है, यात्रीकों अगरभांडे-वर्तनकी. दरकारहोतो कारखानेसें मीलसकेंगे, मंदिर वरकानेका-बहुतबडा आलिशान-बावनजिनालयका-निहायतपुख्ताहै, घेराव इसका चारसोगजसे कम-न-होगा, दरवजेके
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( १३६ ) तवारिख-पंचतीर्थी. बहार दोनोंतर्फ दोबडेबडेहाथी-पथरकेबनेहुवेखडेहै दरवजेमे घुसते बायीतर्फके हाथीकेनजदीक एकशिलालेख-खडाहै जोकरीब देव गजलंबा एकहायचोडा-उसपरलिखाहै-संवत् (१६८६) पोषवदी अष्टमी शुक्रवारकेरौज मेदपाटके अधीशराणाजगतसिंहजीने तपगछाचार्य-विजयदेवसरिके वचनसे मेलेकदिनोंमें चाररौजका महेसूल माफकिया, पोषवदी-८-९-१०-११-तकमेला यात्रीयोंका यहां जमाहोताहै उनका मेहसूललेना छोडदिया,
दरवजेकेभीतर चौकमें एकबडाहाथी पथरकाबनाहुवा ठीकमूलनायकजीके सामने-खडाहै, मंदिरकीचारोंतर्फ दिवारमें जोजो कारीगरी किइहै लाइकतारीफकेहै, देखकर दिलनहीचाहताकि-यहांसे-बहारचलेजाय, मंदिरकेचौकमें तीनशिलालेख संवत् (१८०६) के लिखेहुवे खडे है मगरइनमें मंदिरकेबननेका कोइजिक्रनही, सीर्फ ! इनवातोंका जिक्रहै जोउसअर्सेमें यहांकेलोगोने इकरारकियाथा, जवमंदिरके रंगमंडपकेदरवजेपर पहुचोगे निहायत उमदाकारिगिरी नजरआयगी, रंगमंडपबहुतबडा-और-नवचौकीके एकखंभेपर शिलालेखलगाहुवाहै मगरजहांपर संवत् लिखाहुवारहताहै-वो-जगह टुटगइहै, बहुतगौरकेशाथदेखागयातो संवत् (१२११) लिखापाया, आगेकेहर्फभी टुटेहुवे है अछीतौरसे पढेनहीजाते. सबुतहुवामंदिर बारांसोग्यारहके पेस्तरका वनाहुवाहै, मूलनायककी मूर्ति के सामने
और नवचौकीके खंभेकेपास एकहाथी पथरका बनाहुवा-औरउसकेउपर एकशेठशेठानीकी-मूर्ति जायेनशीनहै, लेखइसपरनहींमगर यहांके वाशिंदोमें यहबात मशहुरहैकि इनोने यहमंदिर तामीर करवायाथा मूलनायक तीर्थंकर पार्श्वनाथभगवानकी करीब एकहायबडीमूर्ति-मयफणके निहायत खुबसुरत-तख्तनशीन है; इसपर कोइलेखनही मगरनिशानात् राजासंमतिके जमानेकेपाये
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तवारिख-पंचतीथी. (१३७ ) जाते है, चारोंतर्फ इसके-जो-पीतलका परिकरलगाहुवाहै संवत् (१७०७) का-बनाहुवाहै, मंदिरके आलोमे-छोटेछोटे-जिनालयोंमें और रंगमंडपमें कुल्लमूर्तिये करीब (२००) के-है, दर्शन करके दिलखुशहोगा-मानो! स्वर्गमें आनखडे है, खुशनसीबोने कैसेकैसे आलिशानमंदिरबनवाये है यहांपर वगीचा-एक-बडागुलजार जिसमें गुलाब-चंपा-जाइ-जुइ-चमेली-डमरा-मरुवा-वगेराकेफुल हमेशा ऊतरतेहै और देवपूजनमें चढायेजाते है, फलोमें आम-नींबु-नरंगी-अनार-केलेवगेरा यहां पैदाहोते है, बयान-वरकाणातीर्थ-खतमहुवा,
वरकाणासें रवानाहोकर यात्री नाडोल जावेजो अठाइस कोशके फासलेपर एककस्वाहै, जैनश्वेतांबर मंदिर इसमें (६)-जिनमे तीर्थंकर पदमप्रभुका शिखरबंद मंदिर निहायतपुराना और मूर्ति इसमें राजा-संपतिकी बनाइहुइ तख्तनशीनहै, दुसरा और तीसरा मंदिर इसीवडे मंदिरमें सामीलहै, चोथामंदिर तीर्थकर नेमनाथजीका पांचमा शांतिनाथजीका-और-छठा तीर्थकर पार्श्वनाथजीका बतौर चैत्यालयके बनाहुवा, शिवायइसके उपाश्रयमेंभी कइधातुकी मूर्तिये जायेनशीनहै. जैनश्वेतांबरश्रावकोंके घर-धर्मशाला-और-खानपानकी चीजेयहां सब मिलसकतीहै. बयानतीर्थ-नाडोल-खतमहुवा.
नाडोलसें रवानाहोकर नाडुलाइकस्बेकों जाना, जोकरीब (३) कोशके फासलेपर वाकेहै, श्रावकोकघर यहां बनीस्पतनाडोलके ज्यादह-धर्मशाला उमदा और मंदिरभी छोटेबडे मिलाकर (११) है, इनमे (२) मंदिर गांवकेबहार और (९) भीतरहै, भीतरमंदिर बडीलागतके-पुराने और-एकएकसे आलाबने हुवेहै, एकमंदिर जो दरवाजेकेपासहै, मूलनायक तीर्थकररिषभदेवभगवानकी मूर्ति इसमें निहायतखूबसुरत-तख्तनशीनहै, यहांके लोगोमें यहबातमशहरहैकि
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(१३८ ) तवारिख-पंचतीर्थी. जैनधेतांवराचार्य यशोभद्रमरि अपने मंत्रबलसे इसमंदिरकों उडाकर यहां लायेथे. जैनश्वेतांबराचार्य यशोभद्रसारिका-और-शैवाचार्यका मंत्रविद्याकेबारेमें यहां विवाद हुवाथा. लोगोने कहा ऐसेविवादसे क्याफायदा ! कोइबात ऐसीकरजाओकि-यहांपर आपलोगोंकानाम हमेशांकेलिये बनारहे, उसवख्त जैनश्वेतांबराचार्य-यशोभद्रमुरिजी यहमंदिर तीनसोकोशके फासलेपरसे-उडाकर-अपनेमंत्रबलसे यहां लायेथे और जमीनपर कायमकियाथा, शैवाचार्य अपनेमंत्रबलसे अपना शैवमंदिर उडाकरलायेथे जोदुसरीतर्फके दरवजेकेपास मौजूदहै, कुछलेखी सबुतइसवातका नहीमिलता, सीर्फ ! यहांकेलोगोंमें यहबातमशहुरहै, बयान तीर्थ नाडुलाइ खतमहुवा,
नाडुलाइसें रवानाहोकर यात्री-घाणेराय-कस्बेकोजावे. जो पंचतीर्थीमें-चोथेदरजेपर वाकेहै, जैन श्वेतांवर श्रावकोकेघर-यहांकरीब (२००) और (१०) जैनश्वेतांवरमंदिर बनेहुवे है दर्शनकरके दिलखुशहोगा, कस्बेघाणेरायसे करीव (१॥) कोशके फासलेपर एकमंदिर जो मुछालामहावीरकेनामसे मशहुरहै जंगलमें बतौरदेव विमानके खडाहै, और इसमें तीर्थकर महावीरस्वामीकी अतिशय युक्त मूर्ति तख्तनशीनहै, रंगमंडप बडाआलिशान-और-सबकाम संगीनबनाहुवा धर्मशाला बहुतबडी-जिसमें-जाकरयात्री आराम करे. पासमें जलका हौजवनाहुवाहै, अतराफ मंदिरके झाडीझुखड -द्रख्त-और-पहाडही-पहाडनजर आते है, जंगल में मंगल इसीका नामहै, खुशनसीबोने क्या क्या कामकरवतलायेहैकि-जिसकी तारीफ बेमिशालहै, जिसकों धर्मप्याराहै-दिलकेदलेरहै-वही ऐसेकाम करसकेगें, सूमऔर बखील जोकि-अपनी कमाइहुइ दौलतआप नहीखा सकते, ऊनसें काम होना मोहालहै, बयान तीर्थ घाणेराय
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तवारिख - पंचतीर्थी.
( १३९ )
घाणेरायसे रवाना होकर यात्री सादरीगांव जावे, जो करीब चारकोशके फासलेपर वाकेहै. जैन श्वेतांवर श्रावको के घरवहां करीव (४०० ) और एक - बडाआलिशान जैन श्वेतांबर मंदिरबनाहुबा, इसमें मूलनायक - तीर्थकर चिंतामणि पार्श्वनाथजीकी मूर्त्ति करीब देढ हाथ वडीतख्तनशीन है, इसपर लेखनही, राजासंप्रतिकी तामीरकराइहुइ मूर्त्तियोके निशानात इसपर पाये जाते है. गर्भद्वारकी दोनोंतर्फ जो-दो - मूर्ति - जायेनशीन है उसमें वायीतर्फकी मूर्त्तिपर संवत् ( १६८६ ) और तपगछकानाम लिखा है, मंदिरकी - परकम्मामें दाहनीतर्फ एकदेवालय में एकजगह एकमूर्त्तिपर संवत् ( १६४४ ) और तपगछ- हीरविजय विगेराके नाम लिखेहै, रंगमंडप निहायतबुलंद और सवकाम पुख्ता है, यात्री सादरीगांव के मंदिर के दर्शनकरके - तीर्थ - रानकपुरकी जियारतकों जावे, जो पंचतीर्थी के पांad नंबर पर और सादरीगांवसे अंदाज तीनकोश फासलेपर है, सादरीसेरवाना होतवख्त चौकीदार मीणा - शाथलेना चाहिये, वगेरचौकीदार के रास्ते में तकलीफ होगी. और राज्यकी तर्फसेभी सख्त मुमानीयतहै, रास्ता कठीन - पहाडोके घेरे में - बडेबडे झाडीखडकों पारकरके जाना होगा, चौकीदार हरेक जगहका वाकीफ होता है. -
जब करीब रानकपुरके पहुचोगे बीचझाडी खडके एकआलिशान त्रैलोक्य दीपक - जैन श्वेतांबर मंदिर बतौर स्वर्ग विमानके दिखला देगा, फौरन ! गाडीसें उतरकर मंदिरकों नमस्कार करों. और अपनी तकदीरका शुकरमनाओकि - जिसने हमकों इस जगहपर पहुचाया, इसमंदिरकी बनावट और खूबसुरत देखकर ताज्जुब करोगे, जबधरणाशाह शेठनेइसकों बनाकर तयारकरवायाथा इसकी खूबसुरत देखतेतो मालुमहोताकि - झलाझल रौशनी
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( १४० ) तवारिख-तीर्थ-शंखेश्वर. देवविमानकी यहांआगइहै, और इसीलिये इसकानाम त्रैलोक्य दीपक मंदिर कहागया, बावनजिनालयका उमदामंदिर और आलादर्जेकी कारीगरीका नमुना देखनाहो-नजरके सामने देखलो. चारोतर्फसे बराबर तीनतीनमंजील ऊंचा-और-चारोंतर्फके चार दरवजे इसतरह बनेहुवेहै, मानो ! समवसरणका आकार बनाहो, पेस्तरयहां रानकपुर नामका शहर आवादथा. संवत् (१५००) की सालमें कहतेहै यहांपर जैनश्वेतांबरश्रावकोंके घरअंदाज(३०००) थे, जब-रानकपुरकी आवादीकमहुइ-कितनेकश्रावक-सादरीमेआन बसे, कइपाली-मेवाड-और-मालवेतर्फ चलेगये, दुनियाकेकारोबार इसीतरहसे चलेजाते है, कभी नावगाडीपर-कभी गाडी नावपरयह सब तकदीरीमामलाहै, और पूर्वसंचितकर्मके ताल्लुकहै, श्रावक लोगही क्या ! दिगरकोमकेलोगभी रानकपुरसे खानाहोकर दुसरीजगह जावसे, गरजकि-इसवख्त रानकपुरमें एकभी घर जैनश्वेतांबरश्रावकका नहीरहा. सीर्फ ! रानकपुरकीजगह-मंदिर-धर्मशाला-बाग-और-पुरानेकोट के निशानात बाकीरहगये. राणाजीके बनायेहुवे मंदिरके पासजाकरदेखोतो पुरानेकोटकी दिवार बडी दूरतक लंबीचलीगइहै, और उसीके पाससे भानपुरहोकर मेवाड जानेका रास्ताशुरुहै,
मंदिरकेपासबडी आलिशानधर्मशाला बनीहुइहै यात्री इसमें जाकर कयामकरे, और तीर्थकी जियारत हासिलकरे, तारीफकरो! ऐसे बहादूर और सखी धरणाशाहशेठकी जिसने ननाणवे लाखरुपये सर्फकरके यह त्रैलोक्यदीपकमंदिर तामीरकरवाया, जब पश्चिमकी-सीढी तयकरके मंदिरके रंगमंडपमें पहुचोगे, मानींद एक ... स्वर्गलोकके नजर आयगा, छतोमें-खंभोंमें-और-मेहराबोंमें जोजो
कारीगिरीकिइगइहै ऊसकी तारीफकरना जबानसेवहारहै, छतमें
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तवारिख-पंचतीर्थी. (१४१ ) किसकिसतरहके गुलदस्ते-पुतलीये-वेल-बुटे-बगेरावनाये हैकिजिनकोंदेखकर आदमी ताज्जुबकरने लगताहै, जबदुसरे रंगमंडपमें पहुचोगे-पेस्तरकी बनीस्पत ज्यादहकारीगीरी नजरआयगी, दाहनीतर्फका रंगमंडपदेखोतो उसकी कतावजा-उससेंभी निराली है, पीछलीतर्फका रंगमंडप देखोतो औरही कताका बनाहै, छतपर बारीककाम-और पुतलीये किसकदर तमाशा कररही है जोकाबिल देखनेके है, बायीतर्फका रंगमंडप-सबसे-ज्यादहखूबसुरतबनाहै, चाररंगमंडपबडे औरचार ऊनकेसामनेछोटे-कुल आठहुवे, और सोलहरंगमंडप चारोतर्फके कोनेमें कुल्ल (२४) हुवे,
इसमंदिरमें मूलनायक चौमुखजीकी चारमूर्तिये-निहायतखूबसुरत और अतिशययुक्त तख्तनशीनहै, पश्चिमतर्फजो मूर्ति-तख्तनशीनहै उसपरसंवत् (१४९८) लिखाहै, ऊत्तरतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१६७९) पूर्वतर्फकीमूर्तिपर संवत् (१४९८) और दखन तर्फकी मूर्तिपरभी वहीसंवत् (१४९८) का-लेखहै. पश्चिमतर्फके मूलनायके सामने दरवजेकी दाहनीतर्फ जोदिवारमेंलगाहुवा बडा शिलालेखहै उसमें संवत् (१४९६) श्रीमेदपाट-राजाधिराजश्रीबप्प-और-श्रीगुहिलवगेराराजाओकी (४०) पीढीयोंके नाम-और फिर आगे (३९) मी-पंक्तिमे लिखाहै परमआईत धरणाशाह पोरवाडने यहमंदिर तामीरकरवाया, (४१) मी पंक्तिमेंलिखाहै राणकपुरनगरे राणाश्रीकुंभकर्ण नरेंद्रेण सुनाना-निवेशितः-फिर आगे (४२) मी-पंक्तिमें लिखाहै त्रैलोक्यदीपकाभिधान-श्रीचतुमुखयुगादीश्वरविहारः-कारितः-इसकेआगे लिखाहै श्रीहत् तपागछे-श्रीजगत्चंद्रसरि-श्रीदेवेंद्रसरि....आगेकुछखंडितहोगयाहै पढा नहीजाता, मगरअखीरकी पंक्तियोंमें तपगछके आचार्यमाहाराजने प्रतिष्टाकिइ लिखाहै, जबराज्यका उल्थाहुवाथा-किसीने प्रतिष्टाचार्यकानाम तोडदियाहै,
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(१४२) तवारिख-पंचतीर्थी.
मंदिरकी दुसरीमंजीलपरजानेसे औरही खूबी नजरआती है, हुबहु स्वर्गविमानका नकशादेखलो.-मूलनायक यहांभी चौमुखजी महाराजकी चारमूर्तिये जायेनशीन है, जिनमें पश्चिमतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१५०७) लिखाहै. उत्तरतर्फकी मूर्तिपर (१५०८)-पूरव तर्फकी मूर्तिपर (१५५१) और दखनतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१५०६) लिखाहै. तीसरीमंजीलपर जाकरदेखो औरही उमदारवनक दिखाइदेती है, मंदिरका बुलंदशिखर-और चौरासीजिनालयोके छोटेछोटे-(८४) शिखरदेखकर स्वर्गविमान मालमहोताहै, असलमें यह त्रैलोक्यदीपकमंदिर-नलिनीगुल्म-विमानका-नकशाहै, तीसरीमंजीलपरभी मूलनायक चौमुखजीहीकी मूर्तिये जायेनशीन है. और उनमें पश्चिमतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१५११) का-लेख है, तारीफकरो धरणाशाहपोरवाडकी-जिनोने-ऐसा त्रैलोक्यदीपक-युगादीश्वरदेवका मंदिर बनवाया, जिसकीसानी दुसरा कोई नजर नहीआता, ___ परकम्मामें (८४) जिनालय-और-मूलनायककी दाहनी तर्फ-तीर्थ-समेतशिखरका आकार-बनाहुवाहै, उसपर संवत् (१५४८)--लिखाहै, एकजगह संवत् ( १५५६ )--एकजगह (१५५० ) और एकजगह संवत् (१५४७) लिखाहै, मेरूपर्वतके आकारपर संवत् (१५५० ) का लेखहै, इसके आगे एकजिनालयमें तीर्थकर महावीरस्वामीकी साढे तीनहाथडी मूर्ति तख्तनशीनहै, उसपर लिखाहै संवत् ( १६५१) वर्षे-माघसुदी (१०) मीके रोज यह बनाइगइ. छोटे जिनालयोमें सबजगह बहुतकरके राजा संपतिकी बनाइ मूर्तियेही जायेनशीनहै. बायीतर्फ परकम्माकएक जिनालयमें-तीर्थकर रिषभदेवभगवान्की साडेतीनहाथ बडी-मूर्ति जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१६७९)-वैशाखमुदी
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तवारिख-पंचतीर्थी. (१४३ ) (११) बुधवासरे-राजाश्री कर्णवीजयजित्समये भट्टारक श्रीवीजयदेवसूर्युपदेशेन-श्रीआदिनाथ बिं प्रतिष्टितं-पं-श्री वेलागणि-पंश्रीजयविजयगणि-पं-श्रीतेजहंसगताभिः-ओशवालज्ञाति-कोठारी केशवभार्या-कपूरदे-तत्पुत्रकोठारी....इसकेआगेके हर्फ घीसगयेहै खुलतेनही. मगर मतलव सवका यहीनिकलताहैकि-संवत सोलहसो उन्नासीमे-राजाकर्ण विजयजीक वख्तमें-विजयदेवमूरिके उपदेशसे. कोठारीकेशवजीकी भार्या कपुरदेके बेटेने यह मूर्तिबनवाइ, धरणा शाहपोरवाडके वाद-यह मूर्ति बनाइ गइहै ऐसाजानना, एक जिनालयमें तीर्थअष्टापदका-और-तीर्थनंदीश्वरद्वीपका आकार बनाहुवाहै, मगरलेख इसपर कोइनही,
मूलनायक तीर्थकर रिषभदेवभगवानके सामने एकहाथीपर मरूदेवाजीकी मूर्ति जायेनशानहै उसपर संवत् (१७२८) कालेखहै, और छोटेछोटे जिनालयोंका जिक्र खतमहुवा, मूलनायक भगवानकी दाहनीतर्फ-रंगमंडपोकी बाजु एक रायणकाद्रख्त-और -उसकेनीचे तीर्थकर रिपभदेवजीके कदम जायेनशीनहै, इसत्रैलोक्यदीपक मंदिरमें-( ८४ ) तलघर बनेहुवे और उनका रास्तापश्चिमतर्फके दरवजेमे घुसते जो दोनों तर्फकी दिवारमें-सिलालगीहुइ बंदहै उधरसेहै, शेठ धरणाशाह पोरवाडकी तारीफकरोकि-जिसने-जैसेऔसेकाम-अपनी दिलोजान-व-मालसें किये, श्रावकहो-तो-जैसेहो, ___इस मंदिरमें ( ४२ ) पाट पथरके टुटगयेहै जो काबिल नये बनवानेकै, अगर आजकलमें बनजायतो बहतरहै बरना ! ज्यादह सर्फा पडेगा, मूलनायक महाराजकी दाहनी तर्फकी परकम्मामें इशानकोंन तर्फकी दिवार झुकगइहै, अगरइसकी मरम्मत-न-होगी तो यहदिवार गिरजायगी, जोकाम अब एकहजार रूपयोंमें निक
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( १४४ )
तवारिख पंचतीर्थी.
लताहै- बादमें-वह-लाख रूपये - खर्चतेभी-न-निकलेगा, दाहनीतर्फ रंगमंडपकी छतसें अय्याम वारीशमेंपानी गिरता है उसकीभी मरम्मत होना दरकार है, आजकल जोजो श्रावक - जातेहै उपरसे देखभालकर चलेआते हैं, मगर यह खयालनही करते कि - हमारे बुजुर्गों के बनाये हुवेमंदिरका क्या हाल है, ? - जिसकों बने आज (४००) वर्षहोगये मरम्मत होना दरकार है - या नही ? लाजिम है इस मंदिर - की - रकम चाहे जहां जमा हो - मरम्मत में लगादेनाचाहिये,
de
-
धरणाशाहशेटके खानदानमें उनके भाइवेटे कस्बे घाणेरायमें अबभी मौजूद है, हरसालजवचैतवदी (१०) मी - के - रौज तीर्थरानकपुरमें यात्रीयोंका मेलाभरताहै मंदिरकेशिखरपर उनहीकीतर्फ सें बनवाइहुइ धजा चढाइजाती है, अंगी - पूजाभी उसरौजमंदिरमें ऊनही कीतर्फ सें होती है. संवत् (१९६०) चैतवदी (१०) मीके रौज हमइसतीके मेले में मौजूदथे, यात्रीयोंकामेला बहुतभराथा धरणाशाहशेटके खानदानकेलोग - घाणेरायकस्बेसे आयेथे औरशिखरपर धजाचढाइथी. शाबाश है ! ऐसे सखी - और - इकवालमंदके भाइवेटोंको !! जो - अबतक - अपने बुजुर्गों के नामसे - इतनाभीधर्मका कामचलाते है, कुलधर्मशास्त्रोंकी यहीनसीयत है कि बेटावेटी - रिस्तेदार - औरत - चांदी-सोना - और - जवाहिरात कोइशाथ नहीजायगा, सीर्फ ! धर्मही शाथजायगा,
+
मेलेकेरौज यहां बहुत लोग जमा होते है, कभी पांचहजार और कभी सातहजारतक यात्री यहां आते है, जलसाभी अछा होता है, दुकाने ethasarat लगती है, मंदिरमें पूजन - गीतनृत्य- अंगी -रौशनी वगेरा अजहदजलसा होता है, जहांतकवनपडे उसरौजकी जियारत जरुरकरनाचाहिये, हमने शंगतरासासे रानकपुरकमंदिर का - नकशा
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तवारिख-पंचतीर्थी. (१४५ ) लिया, मंदिरकी दुसरीमंजीलपर पूर्वतर्फके रंगमंडपकी पीछलीबाजु, एकपाटपर-एकशिलालेखमें लिखाहै संवत् ( १६४७) वर्षे फाल्गुन शुक्लपक्षे पंचम्यांतिथौ-गुरूवासरे श्रीतपागछाधिराज बादशाह अखबरदत्त जगद्गुरू विरूद धारक भट्टारक श्रीश्रीश्रीहरिविजयमूरीणां उपदेशेन चतुर्मुख श्रीधरणविहारे प्राग्वाटज्ञातीय सुश्रावकशाह खेतानायकेन व पुत्र यशवंतादि कुटुंबयुतेन-अष्टचत्वारिंशत् प्रमाणानि-(४८) मुवर्णनाणकानि-पूर्वदिक्सत्क प्रतौलीनिमित्तं-अहमदाबाद पार्श्ववर्ति-सापुरतः श्रीरस्तु,
इसका माइना यहहैकि-संवत् (१६४७) फाल्गुनमुदी पंचमीगुरुवारकेरौज-तपग छाधिराज-आचार्य श्रीहीरविजयसूरिके उपदेशसे पोरवाड खेतानायक श्रावकने धरणाशाहशेठकमंदिरमें पूर्व तर्फके दरवजेकी मरम्मतकेलिये (४८) सोनामहोरे भेटकिइ, धरणाशाहशेठ तपग छके श्रावकथे, प्रतिष्टाभी इसमंदिरकी तपगछके आचार्यनेकिइ उपरलिखचुके है, खरतरगछके श्रीयुतसमयसुंदरउपाध्यायने जो रानकपुरका स्तवन संवत् (१६७६) में बनायाहै उसकी पांचवी गाथामें बयानहै कि-" खरतर वसही खांतसुरेलाल"-वह-इसबडे मंदिरकी बहार जोछोटामंदिर बनाहै उसकीवात है, रानकपुरके मूलमंदिरकी तवारिख खतमहुइ, अब बहारके (२) मंदिरोंका बयानमुनिये ! सामने धर्मशालाके जो-तीर्थकर पार्श्वना. थनीका मंदिरहै उसकी दिवारोंपर तरहतरहकी कारीगरी-वेलबुटे
और पुतलीये निहायत खूबसुरत बनीहुइ अतराफ मंदिरके पुख्ता कोट खीचाहुवा और सबकाम पायदारहै, इसमें मूलनायक-तीर्थकरपार्श्वनाथ भगवानकी शामरंग मूर्ति करीब सवाहाथ बड़ी तख्तनशीनहै, दुसरा मंदिर तीर्थकर नेमनाथजीका-इसमें-तीर्थकर नेमनाथ महाराजकी शामरंग मूर्तिकरीब सवाहाथ बडीतख्तनशीन
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तवारिख-पंचतीथी. है, कारीगरी इस मंदिरमें कमहै, कोट बेशक ! पुख्ता खीचाहुवा -संगीनहै,
नेमनाथजीके मंदिरसे आगेजो सूर्यमंदिरहै-वो-राणाजीका तामीरकरवाया हुवाहै-जैनमंदिर यहां कुल्ल तीनहै, एकबडा और दो-छोटे, धर्मशाला यहांपर (२) एकबडी दुसरीछोटी, दोंनोंमें करीब (२०००) यात्री-आरामकरसकते है, वावडी मीठेजलकी
और एकबाग यहांपरमौजूदहै, जिसमें मोगरा-जाइ-वगेराकेफुल हमेशां उतरते है और पूजनमें चढायेजाते है,
(तवारिख पंचतीर्थी-खतमहुइ,-) रानकपुरसें वापिस रानीटेशनआना, और रानीटेशनसे रैलमे सवारहोकर-जावाली--सोमेसर-भीनवालिया होतेहुवे मारवाड जंकशनजाना, और वहां उतरकर पाली-जोधपुरजानेवाली रैलमें सवारहोकर-बोमदराहोते पालीटेशनजाना, रैलकिराया रानीसे यहांतक दसआने लगतेहै, अगर यात्रीको फुरसतहो-एकरौज यहां कयाम करके यहांके जैन मंदिरोंकेभी दर्शनकरे पाली अछा कस्वाहै मर्दुमशुमारी इसकी (१७१५०) मनुष्योंकी और बहुत जैनश्चेतांबर श्रावकोके घर यहां है, बडेबडे जैनश्वेतांबर मंदिर-जिनमेंनवलखा पार्श्वनाथजीका मंदिर नामीग्रामीहै, जैनश्वेतांबर मुनियोंको ठहरनेके कइ मकान यहां बनेहुवेहै, यात्रीयोके लिये धर्मशाला मौजुदहै, इसमें डहेरा करके जिन मंदिरोके दर्शन करे, दुसरेरौज वापीस पालीटेशनकों आवे औररैलमें सवारहोकर केरला-रोहात *लुनी-सालावासहोते जोधपुर जावे, पालीसें जोधपुरतक रैल
. * लुनीसें सिंघहैदराबादलाइनमें बालोतरा टेशनजाना, वहांनाकोडा-पार्श्वनाथका तीर्थ है,
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naanaanaamaanamnarammar
दरवयान-पाली-और-जोधपुर. (१४७ ) किराया आठआनेलगेगे,-टेशनकेसामने धर्मशाला बडीपुख्ताबनी
हुइहै, एककोठरीमें डेहराकरके देवदर्शनको जावे,___मारवाडकी-दशीरियासतोंमें मशहूर-राजधानी-जोधपुर एक गुलजार शहरहै, सन (१४५९) इस्वी में महाराजजोधरावजीने इसकों बसाया, जोधपुरकी मर्दुमशुमारी (६१८४९) मनुष्योंकीजोधपुरराज्यकी जमीन रवन्नकलिये और जगहजगह पहाडीयोंका शिलशिला जारी है, खासजोधपुरभी पहाडीयोंकी दखनतर्फ करीब (६) मीलके घेरेमें आवादहै, बाजरी-जवार-और-मोंठ इस राज्यमें ज्यादहपैदा होतेहै, जोधपुरके राजासाहब सूर्यवंशीराठोड राजपुतोमेसेंहै, अतराफजोधपुरके पकाकोटखीचाहुवा-सातफाटक और-बडेबडेआलिशानमकान उमदापथरोंके बनेहुवे है, जैनश्वेतांबर श्रावकोंकेघर यहांकरीव (६००) और (८) जैनश्वेतांबरमंदिरजिनमे (३) धानमंडीमें-(१) कोलडीमें (१) गुंदीकेमहोलेमें (२) शीगीयोके चौकमें और (२) दफतरीयोंकेवासमें-नागोरी दरवजेके बहार मुताकुंदनमलजीका तामीरकिया हुवा शिखरबंद मंदिर-मूर्ति-इसमें तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी करीबपौनहाथ बडी तख्तनशीनहै, एकधर्मशाला-और-पासमें बगीचा-देखकर दिल खुशहोगा, ___ जोधपुरसें देढकोशके फासले गुरांकेतालावपर (२) मंदिर
और एकधर्मशाला-बनीहुइहै, बडेमंदिरमें तीर्थंकरपार्श्वनाथजीकी सफेदरंगमूर्ति-मयधरणेंद्र पदमावतीके करीब (१) फुटबडी तख्तनशीनहै, ऐसीमूर्ति दुसरीजगह बहुतकमदेखीजाती है, मंदिरके पीछाडी एकतालाव-और-नजदीकमें एकबगीचा-जिसमें-अनारनींबु-गुलाब-चमेली-वगेराके द्रुतखडे है, देखकरदिल तरहोगा, जोधपुरसे (३) कोश उत्तरतर्फ मंडावरगांव-जो-जोधपुरकेपेस्तर
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(१४८ ) दरवयान-पाली-और-जोधपुर. मुल्कमारवाडकी राजधानीथा-आजकल छोटासाकस्वा रहगया, पेस्तर इसमेवडी आबादीथी, किलामंडोर-या-गढमंडोर इसीकों कहते है, करीबपांचसो वर्षपेस्तर इसकावडानामथा, दखजा बडा संगीन-बागबगीचे-द्रख्तोंकी चकाचक-आम-अमरुद-अनारनारंगी-केले--शरीफे-द्राक्ष-वगेराकेपेंड यहां कसरतसेखडे है, जैन श्वेतांबर श्रावकोकेघर पेस्तरयहां बहुतथे मगर आजबरायेनामकुल्ल एकघर रहगया मंदिरजैनश्वेतांबर (२) एकबडा--एक छोटा-बडेमंदिरमें तीर्थकर-पार्श्वनाथजीकी वादामीरंगमूर्ति करीब देढहाथबडी तख्तनशीनहै, और इसपरलिखाहै संवत् (१२२३) में-यह प्रतिष्टितकिइगइ, दाहनीतर्फ तीर्थकरधर्मनाथजीकी-औरबायीतर्फ चंदाप्रभुजीकी सफेदमूर्ति-एकएकहाथवडी जायेनशीनहै,
और दोनोंपर लिखाहै संवत् (१२२३) में यहप्रतिष्टित किइगइ, दुसरामंदिर छोटा-और-वादामीरंग मूर्ति सवाहाथवडी इसमें तख्तनशीन है, ___ जोधपुरमें इक्का बगीवगेरा सवारी तयार मीलतीहै मंडोर जानेकेलिये-सडक पकी बनी हुइ यात्री शौखसे जावे और मंदिरके दर्शनकरे, जोधपुरसे (६ ) मीलपर और मंडावरके रास्तेसें बाइतर्फ-बालसमन तालाव-निहायत पाकजलसें भराहुवा काबिल देखनेकी जगहहै, पचासफुट उंडाजल-ठंडीठंडीहवा-दोनोतर्फ पके महलात-और-घाटपथरोका बडीपुख्तगीके शाथ बनाहुबा देखकर दिल-तर-व--ताजाहोगा, पासमे एक बगीचा-अनार-नरंगीवगेराकेरंगबरंगद्रख्त और सब्जी-आंखोकों तरी देरहीहै, जोधपुर शहरमें गुलाबसागर-आनासागर तालाव बेशक ! काबिल देखनेकेहै मगर इसकीरवनकों कोइनहीपाता, जोधपुरके जैनमंदिरोंके दर्शनकरके यात्री ओशियानगरी जानेकी तयारीकरे, ओशियान
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तवारिख-ओशियानगरी. (१४९ ) गरी जोधपुरसे खुश्कीरास्ते (१६) कोशकफासलेपर वाकेहै, सबारीकेलिये बेलगाडीही कामदेगी और किराया जानेआनेका करीब (६) रूपयेलगेगे, रास्तेमें बालुरेत ज्यादहहोनेकी वजहसें इक्का-वगी काम-न-देयगे, शिवाय आक-बवुल-खेजडे-केर-औरनींबके दुसरेपेंड रास्तेमे न देखोगे. रास्तेमें आठकोश जानेपर एकमथाणीयागांव मिलेगा. रातको-वहां कयामकरना और दुसरेरौज ओशियानगरीकों जाना,
US [ तवारिख-ओशियानगरी, ] जब खास ओशियानगरी पहोचोगे करीब ( ५०० ) घरोकी आबादीका एकछोटासाकस्वा नजरआयगा, जो-रवन्नक इस नगरीकी पेस्तरथी अबकहां है, ? पुरानेमकानोके खंडहेर देखकर मालूमहोताहै पेस्तरयहांपर बडेबडेदौलतमंदवाशिंदेथे,-मथाणियागांवजोपेस्तर (८) कोशके फासलेपर लिखचुकेहै वहां ओशियानगरीकी धानमंडीथी, और जो तीवरीगांव मथाणियाकी बाजुपरहै वहां ओशियानगरीका तेलीवाडाथा, तीवरीके आगे-चारकोशपर जो घंटीयालागांवहै एक शिलालेख वहांपर जमीनमें आधागडा हुवा मौजूदहै उसपर लिखाहै यहां ओशियानगरीका सदर दरबजाथा, ओशियानगरीका असलनाम संस्कृत जबानमें उपकेश नगरीथा, प्राकृतजवानमें उवयेश-और-लोकभाषामें ओशिया नगरी मशहुरहोगया, तीर्थकर महावीरस्वामीके निर्वाणहोनेके बाद (७०) वर्ष पीछे जैनाचार्य-रत्नप्रभमूरि यहांपधारेथे, जो चौदहपूरवकेपाठी-श्रुतकेवली तरहतरहकी विद्यालब्धिके भंडार-और-तीर्थकर पार्श्वनाथजीके शासनमेसे एक थे, और तीर्थकर महावीरस्वामीके शासनमें दाखिल होचुकेथे, क्योकि-जबसें-महाराज केशीकुमारजीकी-और-गौतम स्वामीकी चार-और-पांचमहाव्रतके उपर बहे
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( १५० ) तवारिख-ओशियानगरी. सहुइ तबसे-वे-चारमहाव्रतकी जगह पांचमहाव्रत कुबुलकरचुकेथे,महाराजरत्नप्रभसूरिजी उनहीसमुदायमेंसेंथे,-जब-वे-ओशियानगरीमें तशरीफ लाये ओशियानगरी खुवतरकीपरथी, औरउसवख्त इसकी मर्दुमशुमारी लाखोंआदमीयोंकीथी. साहुकारोकी दुकानपर सोना चांदी-और-गंगंजलगतेथे-और कोटीध्वजवाशिंदोसे यहनगरी सरगर्मथी, राजासाहब-उपलदेव-परमार यहां अमलदारी करतेथे,
और लोग अमनचैनमेंथे, महाराज रत्नप्रभसूरिजीने उससालकी पारीश ओशियानगरी में गुजारी, उनकी धर्मतालीमसे-महाराजउपलदेवपरमार जैनधर्मपर एतकातलाये, और ओशियानगरीके (३८४०००) शख्शोने जैनधर्म मंजूरकिया, रत्नप्रभसूरिजीने अछेवख्तपर उनको नमस्कारमंत्रदिया, और-हिदायतकिइकि-अगर तुम-इससचेधर्मपर पावंदरहोगे-तुमारा इसलोक परलोकमेंभलाहोगा,
ओशियानगरीके वाशिंदेहोनेसें इनकानाम ओशवालकहलाया, जैनधर्म-तीर्थकर रिषभदेवभगवानके वख्तसे चलाआताहै, इस अवसर्पिणीकालमें अवल तीर्थकर रिषभदेवहुवे-रिषभदेवकेबाद तीर्थकरअजितनाथ-इसीतरह चौइसतीर्थकर होचुके है, क्षत्रीय-ब्राह्मण वैश्य-और-शुद्र-ये-चारफिरके हमेशांसे चलेआतेहै उनमेंसे अखीरके शुद्रफिरकेको छोडकर बाकीके तीनोफिरकोमे जैनधर्मपालनेवाले लोग पेस्तरसें चलेआतेहै, चक्रवर्ती-वासुदेव-प्रतिवासुदेव-मांडलीक-और-छत्रपतिवगेरा बडेबडेराजे जैनमजहबमें होगये अखीरके तीर्थकरमहावीरस्वामीके बाद (७०) वर्षपीछे जब-रत्नप्रभमूरिजीने ओशवाल-कायमकिये-तबसे-ओशवालनाम ज्यादहमशहूर हुवा, जोलोगकहतेहै-रत्नप्रभसूरिजीने-ओशियानगरीके शुद्रलोगोंकोंभी-सामीलकरलियेथे यहवात महेजगलतहै, क्षत्रीय ब्राह्मणऔर वैश्य-इनतीनोंफिरकेमेसें जिनजिनोनेजैनधर्म इख्तियारकिया
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तवारिख-ओशियानगरी. ( १५१ ) वे-ओशवालकहलाये ऐसाजानना, ओशियानगरीसे रवानाहोकर जब (१८) वर्षकेबाद रत्नप्रभमूरि-लखीजंगल नामकेशहरमें गयेथे वहां (१००००) शख्शोकोंउनोने तालीमधर्मकी देकर जैनीकियेथे, जोलोगकहते है, महाराजरत्नप्रभमूरि तीर्थकरमहावीरस्वामीके बाद (२२२) वर्षपीछेहुवे, विना तलाशकिये कहते है, तीर्थकर महाबीरनिर्वाणके बाद-(५२) वर्षपीछे महाराजरत्नप्रभमूरिकोंआचार्यपदवी मीली, और (१८) वर्षकेवाद-वे-ओशियानगरी में आये यहीबात सच मालूमहोती है, ____संवत् ( १२२८ ) में जब कुमारपाल भूपाल प्रतिबोधक-हेमचंद्राचार्य-मुल्क गुजरातमें हुवे उनोनेभी बहुतसोंकों जैनबनायेहै, श्रीयुत-जिनदत्तमरिजीनेभी बहुतसे जैनीकिये, बादउनकेश्रीयुतवर्द्धमानसरिजीने कइयोंको तालीमधर्मकी देकर जैनीकिये, संवत् (१६४० ) में जब एहदसलतनत-बादशाह-अखवरकी जारीथी आचार्य हीरविजयमूरिनेभी बहुतोंकों अपने धर्मोपदेशसें जैनबनाये, इसवख्त हिंदकेतमाम मुल्कोंमें ओशवाल लोग फैले हुवेहै,
ओशवालोमें कइगोतहै, मुल्कगुजरातमें गोतकी चर्चा-कमरही, दखनमेंभी कमहै, मुल्कपंजाबमेंभी कम-सीर्फ ! मारवाड-और पूरवमें-गोतकी चर्चा जारीहै, जैसे कोठारी-भंडारी-पारख - मुतागांधी-कोचर-शीगी-भणसाली-नवलखा-सुराणा-कासटीया-ढढा डाघा-भडकतीया-लुणीया-गोलेछा-सचेती-वांठिया-दुगड-दुघे. डिया-नाहर-मुणोत-वगेरा वगेरा, कइ मशहूरहै, कइ-लुप्तहोगये, ____ ओशियानगरीमे तीर्थंकर महावीरस्वामीका-मंदिर-जो-अब-- मौजूदहै, संवत् ( १०३३ ) में इसकीमरम्मत किइगइ. और मूर्ति तीर्थंकर महावीरस्वामीकी दुसरी पधराइ गइ, जोकि-राजासंपतिकी बनाइहुइहै-और-अवभी मौजूदहै, रंगमंडपमें दोनोंतर्फ ती
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(१५२ ) तवारिख-ओशियानगरी. र्थकर रिषभदेव भगवानकी मूर्तिये दोदोहाथवडी राजासंपतिकी तामीर किइहुइ जायेनशीनहै, यहमूर्तियेभी संवत् (१०३३ ) में जबकि-मंदिरका जीर्णोद्धार हुवाथा वेठाइगइहै, मंदिरकी परकम्मामें बावन जिनालयका हकबनाहुवाहै, मगर इसवख्त ( ४ ) जिनालयोंमें मूर्ति बाकीरहगइ. तीनजिनालय बिल्कुल खालीपडेहै, मंदिरकेसामने निहायतपुख्ता सभा मंडप बनाहुवा और उसकीदिवारमें देढहाथलंबा-सवाहाथचौडा-शाहरंगपथरपर एक शिलालेख लगाहै, और उसमेंलिखाहै संवत् (१०३३ ) में-यहलेख यहां लगायागया, सवमीलकर पंक्ति (२८ ) है और उसमें तीर्थकर रिषभदेव और महावीर स्वामीकी तारीफबयान किइगइहै, आगे परिहार वंशका जिक्र-और-वत्सराजाका नाम-जिसने एकदफे
ओशियानगरीको-घडीआफतसे वचाइथी, दिगर मतलव हौके घीसजानेकी वजहसे पढानहीजाता, वडीमुश्किलसें इतनापढागया जो उपर दर्जकरचुके, ___ मंदिरकी मेहराबपर वायीतर्फकेखंभेमें लिखाहै संवत् (१०३४) आशाढसुदीदसमी-आदित्यवार स्वातिनक्षत्रकेरौज इसतौरणकी प्रतिष्टा किइगइ, तौरण पथरकाबनाहुवा और उसपर आठपदमासन जिनमूर्ति-चारकायोत्सर्ग ध्यानमय-और फिर चारपदमासन इसतरहकुल्ल (३२) मूर्तियें बनीहुइहै, मंदिरकी शिल्पकारीको देखकर अछेअछे शंगतराशभी तारीफकरते है, शिखर इसकदर उमदा बनाहै जो दुसरीजगह हर्गिज ! न-देखोंगे, जमानेहालमें मरम्मत मंदिरकी चलरही है, रंगमंडपकाफर्सकाले औरसफेद संगमर्मरका इसकदर उमदाबनाहै गोया! एकगालिचा बिछादियाहो. पुरानाडुटीहुई मूर्तियोंके ऊपर जहांकहीं जोडलगायाहे पुरानी और नयीकारीकाफर्क साफ नजरआताहै, जोकोइश्रावक तीर्थोंमें दौलत सर्फकरनाचाहै ऐसेतीर्थोमेंकरे, यहांपरपुरानेमंदिर और मकानात
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तनारिख-ओशियानगरी. (१५३) देखकर अंदाजकियाजाताहै बडेवडेमोतबीर और मालदारशख्श यहांरहतेथे, सलतनतके रदवदलमें कइमंदिर बरवादहुवे,-औरकइतोडेगये, मगर यह-तीर्थकरमहावीस्वामीका मंदिर ऐसीघडीमें बनायाथाकि-टुटनेपरभी वैसाही बनारहा, और मरम्मतहोनेपर सुधरगया, इसवख्त ओशियानगरीमें कोइजैनश्वेतांबर श्रावकनही, खानपानकी चीजें यहां सब मिलसकती है छोटासा बाजार और पचाससाठ दुकाने आबाद है, जोचाहोसो चीज दस्तयाबहोगी, अलबते ! शहर जैसी चीजतो कहांसेमीलेगी मगर मामुलीचीजे खानपानकी सबहाजिरहै, देवीजीकेमंदिरकी पीछाडी एकउपाश्रय जैनश्वेतांबर मुनियोंके ठहरनेका विरानपडाहै, उसके एक थंभेपर शिलालेखहैकि-संवत् ( १२४५ ) फाल्गुणशुक्ल (५) अद्यश्रीमहावीर रथशाला निमितं पाल्हियाधित देवचंद्रवधूयशोधरभार्यया-संपूर्ण भाविकया-श्रेयोर्थगृहं दत्तं, मतलब इसका यहहुवाकि-तीर्थकर महावीर स्वामीकी रथशालाके लिये देवचंद्रनीकी औरत-यशोधरा श्राविकाने-यहघर-धर्मार्थदिया, . ओशियानगरीकी पूर्वतर्फ आधामीलके फासले एक छोटी पहाडीपर जमीनमें आधागडाहुवा एकभाहै उसपर एकचरणपादुका
और शिलालेख मौजूदहै, उसमें लिखाहै संवत् ( १२४.) माघ कृश्न ( १४ ) शनिवासरे श्रीमज्जिनभद्रोपाध्यायशिष्यैः-श्रीकनकप्रभमहर्भिः कायोत्सर्गः कृतः-( यानी ) संवत् ( १२४५ ) माघवदी (१४) शनिवारके रौज श्रीमान्-जिनभद्र-उपाध्यायकेचेलेश्रीकनकप्रभमहर्षिने यहांपर अपने देहका त्यागकिया, तीर्थ ओशिया नगरीकी देखरेख पोकरन फलौदीके जैनश्वेतांबर लौग रखतेहै, मंदिरकेपास कारखाना वनाहुवाहै, जिसमें मुनिम-गुमास्ते-नोकर चाकर-पूजारी हमेशांकलिये तैनातहै, कोइयात्री यहांसाधारणखा.
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( १५४ )
तवारिख - ओशियानगरी.
ते कुछरकम देना चाहै खुशीसेदेवे, छपीहुइ रसीद उसकी एवजमें मिलती है, वर्तन- विछौना वगेराकी दरकारहो- कारखानेसे मीलसकेगा, धर्मशाला एक - जिसमें (६) कोठरी और रसोइका मकान अलग बनाहुवा है, एककोठारी हीराचंदजीसचेती - साकीन अजमेरकी - एक फलौदीवालोकी-और- रसोइकी जगह -मुरतवालोंकी वनाइहुइ है, मंदिरकी वायव्यकोंनमें उपाश्रयभी पुख्ता बनाहुवा-मगर खाली पडा है, - एकदिन - बोथा - जो यहां महाराज रत्नप्रभमूरि जैसे प्रभाविक - जैनाचार्य - कदम रखतेथे आज-न-कोई आचार्य हैं-न मुनि है, उपाश्रयके सामने - एकधर्मशाला बनाइजायतो-याश्रीयोंकों आरामरहेगा-और-मंदिरकेकोटकी हिफाजतहोगी, ओशियानगरी के मंदिरमे (१५) मूर्त्तिये ऐसी मौजूद है - जोकोइश्रावक खर्चादेकर अपने शहरमें मंगानाचाहतो - मीलसकती है, और उसका दिया हुवा खर्चा - ओशियानगरी केमंदिरमें बतौर जीर्णोद्धारके लगायाजायमा, तीनमूर्त्तियेवडी - बारां छोटी है, ओशियानगरी कामंदिर बहुत बडा आलिशानथा, मगर दिन-ब-दिन चारोतर्फसें बालुरेतबढ जाने से अवलदरवजे की सीढीयां - बिल्कुलजमीनमें डटगई है, हरसाल फाल्गुनमुदी (३) केरौज यहांपर यात्रीयोंका मेलाभरता है, पोकरण फलौदीairs श्रावक लोग यहां आते है और मंदिर के शिखर पर धजा चढाइजाती है, - हरशरूशकों ऐसेतीर्थकी जियारत करनाचाहिये - ओशियानगरी में खतपहुचनेका पता, - पोस्ट - तीवरी- जिलाजोधपुर, मुकाम - आशियानगरी, इतनालिखनेसे वहांचीठी पहुच सकती है, तवास्खि अशियानगरीकी खतमहुइ.
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बयान-शहर-अजमेर-और-चितोडगढ. ( १५५)
HE [बयान-शहर अजमेर, ] ओशियानगरीकी जियारतकरके-यात्री-उसीरास्ते वापिस जोधपुर आवे, जोधपुरसे एकरैललाइन मेरटारोडगइहै जहांकिफलवी-पार्धनाथकातीर्थ है, मुल्कमारवाड जानेवालोको-यहलाइनमुफीदहै, मगर जो तमामजैनश्वेतांबर तीर्थकी जियारतकों जाना चाहते है-वे-जोधपुरसे रैलमेंसवारहोकर पालीटेशनहोते मारवाड जंकशनकों वापिसआवे, और वहांसे अजमेर जानेवालीरैलमें सवारहोवे, मारवाड जंकशनसे आगे टेशनधारेश्वर-सोजतरोड-चंदावल-गुरीया-हरीपुर-बार-सेंदरा-बियावर-खेरवा-मंगलीयावाससरधना-और-आगे अजमेर मिलेगा रैलकिराया दसआने लगेगा अजमेरशहर बडागुलजारहै, टेशनपर बडीरवनक-बाजार लंबाचोडा-और हरजगह सडकेंबनीहुइहै,-देहलीदरवजा-आगरादरवजाउसरीदरवजा-और-मदारदरवजा-ये-चारदरवजे ज्यादह मशहूरहै, पुतलीघर-कचहरीयां-और-कइ कारखाने यहां बनेहुवेहै, महोले लाखण कोठरीमें-जैनश्वेतांवर श्रावकोंकी आवादी-औरदो-जैनश्वेतांबर मंदिर बडीलागतकेहै, बडेबडे-आलिशान मकानहरजगह पानीका नल-और-रातकों सडकोंपर लालटेनोंकी रोशनीहोतीहै,-तारागढकी पश्चिमघाटी तर्फ पुराना अजमेर अबभी मशहूरहै, जहांकि-चोहानराजाओंके मेहलातथे, अजमेरसें रवाना होकर यात्री-चितोडगढकों-जावे, और नसीराबाद-बांदरवाडासिंगावल-बरल-रुपाहेली-सारसेरी-लांबिया-मांडल-भिलवाडा-हमीरगढ-गंगरोर-चंदेरिया-होते-चितोडगढ टेशनउतरे,
[ तवारिख-चितोडगढ ] अजमेरसें ( ११६ ) मील दखनकीतर्फ-चितोडगढ पुराना बहरहै, पेस्तर बडाआबादधा-अबभी रैलका देशन होनेसें तरकी
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( १५६ )
तवारिख - चितोडगढ़.
परहै, चितोडकी मर्दुमथुमाही ( १०२८६ ) मनुष्योंकी - जैन श्वेतांवरश्रावकों के घर अंदाज (५०) और (२) जैन श्वेतांबर मंदिर यहां पर बने हुवे है, एक जुनेबाजारमें और दुसरा तीर्थकर रिषभदेव भगवानका पुराना जिसमें एकतर्फ राजा संप्रतिकी तामीरकिs हुइ मूर्ति जायेनशीन हे बाजार चितोडगढका गुलजार और हरेक कि सम की चीज यहां मिल सकती है शहरके मंदिरोंके दर्शनकर के दूसरे रौजया श्री किले चितोडगढपर जावे, मगरजाने के पेस्तरराज्य कीतर्फ से इजाजत लेनाचाहिये. अगर राज्यका पास-न- ले जाओगे-तो-किला-नदेखसकोगे, और अबल दवजेपर रोकडियेजाओगे, किला-चितोडगढ़ निहायत पुख्ता - और उपरजाने के लिये - सडकपकी - चढ़ाव उतार करीतीनकोश - रास्तावलखाता हुवा उपरकों गया है, स वारी हरेक किसकी उपर जासकती है, मगर किराये पर वगीवगेरा नही मिलती, सीर्फ ! बैलगाडी मिलसकेगी, जब किले पर पहुचोगे बडेबडे मैदान - तालाव और आमरास्ता नजरपडेगा, कुछआगे बढ़नेसे बाजार दुकाने और लोगो की आबादी मिलेगी. गणेशपोल दरवजा लक्ष्मगदरवजा रामपोलदरवजा - कर टुटेफुटेमकान - और खंडहर देखकर पुराना जमाना याद आता है, तत्रारिखो में देखते हैतो - हर जगह चितोडगढकीतारीफ पाइजती है, पेस्तर यहां जैनोकी आबादी बहुतथी, मगर अबकुल ( २० ) घर जैन श्वेतांबरश्रावका के रहगये, नजदीकर नेश्वरतालाब के - एक जैन श्वेतांवरमंदिर और उपाश्रय मौजूद है, मंदिरमें राजासंप्रतिकी तामीर किइहुइ तीन मूर्त्तिये जायेनशीन है, पुराने कीर्तिस्थंभ केपास - और - रास्ते में (२.) जैनश्वेतांबरमंदिर खालीपडे है, अंदाज किया जाता है मूर्ति उठाकर दूसरी जगह पधराइगइहोगी. मंदिर खाली रहगये, क्याक्या ! कारीगीरी इनमंदिरोमें हुईहै देखकर ताज्जुबकरोगे, खुशनसीबाने क्याक्या
AP:
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तवारिख-चितोडगढ. (१५७ ) उमदामंदिर बनवायेथे और अब उनकाहालदेखोतो बिल्कुलविरान पडे है, रंगमंडपमें और थंभोमें जोजो नक्शकारी किइहै देखनेवालेही इसकावयानकरसकते है, दोनोंमंदिर गिरेगिरायेहै मगरजब अंदरजाकरदेखोगे वहारआनेको-जी-नहीचाहता, चितोडके जैनश्वेतांबरमंदिरमें जोजोप्राचीनपुस्तकथे-न-मालूम अव-वे कहां है ? एकदिन-वो-जमानाथाकि-बडेबडेआलिमफाजिल जैनश्वेतांबरा. चार्य यहां कदमरखतेथे, आज बिल्कुल उनकाअभावहै, ___गौमुखकुंडकेपास जो सुकोशलमुनिकी गुफामशहूरहै, उसमें एक पथरपर मुकोशलमुनिकी-और-एकसिंहनीकी मूर्ति बनीहुइहै, जैनशास्त्रोमें कीर्तिधरमुनिकी-और सुकोशलमुनिकीहिकायत इस तरहबयानकिइहैकि --जब-वे-दुनियादारीकी हालतमें थे-बापवेटथे, वालिदने दुनियाछोडकर अवलदीक्षा इख्तियारकिइथीऔर बेटने पीछेसे, गरजकि-महर्षि-कीर्तिधरजी गुरुथे-और मुनि सुकोशलजी उनकेचेलेथे, सुकोशलजीकी वाल्दा-जबकि-सुकोशलजीने दीक्षा इख्तियारकिइथी नाराजहोकर बुरेध्यानसे मरकर सिंहनी होगइथी और इसचितोडगढकी पहाडीयोंमें आनकररहतीथी, एक रौजकी वातहै जबकि-महर्षि-कीर्तिधरजी-और-मुनिमुकोशलजी-मुल्कोंकी सफरकरतेहुवे चितोडगढके पहाडोमें आयेतब सिंहनी उनकेसामनेआइ, इधर कीर्तिधरमहर्षि-सुकोशलमुनिसे कहनेलगे उपद्रव आयाहै मुजे आगेको होनेदो, सुकोशलमुनिने कहा-में आगेहोउगा. क्षत्रीयका धर्म पीछेपांवकरनेकानही, उधरसे सिंहनी उछलकर मुकोशलमुनिपर झपटी, और उनकेशरीरकों तोडकर खागइ. बादमें गुरुजीने उससिंहनीकों धर्मका उपदेश दिया, अरे ! बेरहम ! ! तेने अपने बेटकोही खाडाला, गुरुजीकों अपनेज्ञानसे मालमथाकि-यह सिंहनी पेस्तरकेभवमें सुकोशलमु
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( १५८ ) तवारिख-चितोडगढ. निकी माताथी, और बुरेध्यानसे मरकर सिंहनीहुइहै, सिंहनीकों कीर्तिधरमहर्षिके धर्मोपदेशसे जातिस्मर्णज्ञानहुवा, दिलमें रंजकिया
और उसरोजसे जीवोंकामारना कतइछोडदिया. पेस्तरकेजमानेमें जानवरोंकोंभी जातिस्मर्णझान होजाताथा जिससे पीछलेभवकी बात उसको यादआजातीथी,-आजकल-वैसाज्ञान नहीरहा. धर्मशास्त्रकी रुसेमालूमहोताहै पेस्तर ऐसाज्ञान-होताथा.___ एक मंदिर शो-कीर्तिस्थंभके पास खालीपडाहै दिवारमें एक छोटा शिलालेख लगाहै उसमें चौलुक्य वंशके मूलराज-सिद्धराज और-कुमारपाल वगेरा राजाओके नामहै. मगर अपशोषहैकिवीचमेसे तोडागया जिससे असली मतलब नही खुलता, कीर्तिस्थंभ अंदाज (१००) हाथ ऊंचा-और-उसपर चढनेकी सीढी. यां करीव (१२१ ) वनीहुइहै, नवमी मंजीलपर-धारशिलालेख लगेहुवेथे जिनमेसें अबसीर्फ (२ ) बाकीहै, सोभी कहींकहीं तोडेगयेहैअछी तरहपढे नहीजाते, बीचमें हमीर भुपाल वगेरा राजा
ओके नाम लिखेहुवेहै, इसमंजीलपर चढकर अगर चारोतर्फ नजर किजायतो मालूमहोताहै आस्मानकी सैर कररहेहै, गांवनगर-बाग-बगीचे-द्रख्तोके झुंड-सडक-और नदीवगेरा इसखूबसुरतीसे दिखाइ देते है-जिसको देखकर तबीयत खुशहोजातीहै, हिंदमें बहुतसे किलेहै मगर चितोडगढका किलाभी एकनामी ग्रामीहै, तमामपहाड जडीबूटीयोंसे भराहुवा-जावजा-तालाव-कुंडवावडी-कुवे-और-चिश्मेआव-तर-ब-तरहै, श्रीयुत-रत्नसिंहजीका महेल जोकि-तेरहमीसदीका बनाहुवाहै-काबिल देखनेकेहै, स्त्रसिंछजीकी रानी-पदमनीथी-उसका महेल और सरोवर अबभी वहां वनेहुवेहै. चितोडगढके किलेपर बडेबडेजंगहुवे, और कइबहादूरोने आपनी बहादुरी बतलाइहै, चितोडगढके बहादूर योद्धेसमरसिंह
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क्यान-शहर-उदयपुर. (१५९ ) हमीर-कुंभाराणा-संग्रामसिंह-और-सूर्यमल वगेराहुवे, जिनकों तवारिख पढनका शौखहै बखूबी जानतेहोगें. कुंभाराणाजी जब सन (१४६८ ) इस्वी चितोडके तख्तपरथे चितोडराज्यकी बडी तरक्कीथी, कीर्तिस्तंभ-पदमनीका महेल-मूरजपोल दरवजा-हिंगलुहाडाका महेल-येचीजे यहांपर काविलदेखनेकेहै,-किले चितोडगढकी परकम्मा करीव (७) मीलकी-और हरजगह पुराने मकानात खडेहै, किलेके जैनमंदिरोंकी जियारतकरके यात्री चितोडमें वापिस आवे और टेसनपर जाकर उदयपुरके लिये रैलमें सवार होवे,
me [ बयान-शहेर-उदयपुर ] चितोडसें गोसंडा-कपासन-सनवार-मावली-खेमली-औरदेवारी होतेहुवे टेशन उदयपुरको जावे, रैलकिराया ग्यारह आना छपाइ, चितोडसे ( ६३ ) मीलके फासलेपर मेवाडका शिरोताज उदयपुर एकनामी शहरहै, उदयपुरके महाराज राणासाहब चितोडराज्यके वंशानुयायीहै, उनमेंसे महाराज उदयसिंहजीने मुल्क मेवाडमें आनकर उदयपुर बसाया. अतराफ शहरके पकाकोट खीचाहुवा--कइवाग-और-चारदरवजे यहां मशहूरहै, बडेबाजार होते राजमहलकों जानेका रास्ता बनाहुवाहै, अनायब घर-लाइब्रेरी-और विद्यालय यहां देखनेकी चीजे है, गुलाबबाग-और पिछोलाझील मशहूर जगह-और बाजार लंबाचोडा-जिसचीजकी दरकारहो यहां मिलसकती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर करीब (४०० ) और छोटेबडे ( ३५ ) जैनश्वेतांवर मंदिर यहांपर बनेहुवेहै, सबसे बड़ा मंदिर बीचबाजार कोतवालीके पास-तीर्थकर शीतलनाथ महाराजका-जोकि बडाखूबसुरत और मजबूतहै. मंदिर चंदाममुजीका मंदिर रिषभाननजीका-मंदिर रिषभदेवभगवानका
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(१६०) वयान-शहर-उदयपुर. मंदिर गोडीपार्श्वनाथजीका-मंदिरखाडीजीका-हाथीपोल दरबजेके पास रिषभदेव स्वामीका-और-शहरके बहार वडाआलिशान मंदिरचोगानका-जिसमें अनागत तीर्थकर पदमनाभजीकी-(९५) इंच लंबी-और (८१) इंचचोडी बडीआलिशान मूर्ति तख्तनशीनहै, इसमंदिरके सामने थोडीदरके फासलेपर मंदिर पार्श्वनाथजीकाजोकि-शेठजीकी वाडीके नामसे मशहूर है वहांपर यात्रीयोंकेलिये ठहरनेकी जगहभी बनीहुइहै, यात्री उसमेजाकर कयाम करे और उदयपुरके जैनमंदिरके दर्शनकरे,
उदयपुरसें (१॥) मीलकेफासलेपर एकपुराना जैनतीर्थ आघाटपुरके नामसे मशहूरहै, राज्य उदयपुरका और छोटासाकस्बा रहगया, जहांकि-महाराजश्री-जगतचंद्रमुरिजीकों तपाविरुद-तपगछकाखिताब मिलाथा,-आघाटपुरमें (४) जैनश्वेतांबरमंदिर इसवख्तमौजूदहै, बडामंदिर तीर्थकररिषभदेवजीका-राजासंमतिकेवख्तका तामीरकियाहुवा पुरानाहै, इसमें तीर्थकर रिषभदेवभगवामकी मूर्ति-करीब (२॥) हाथबडी तख्तनशीनहै, निशानभी इसपर वही है जो राजासंपतिकी तामीरकिइहुइ मूर्तियोंपरहोताहै, दिगर (४) मूर्तियेभी उसीनिशानवाली इसमेंजायेनशीनहै, मंदिरकीबहार दिवारोपर क्याहीउमदाकारीगीरी किइगइहैकि-जिसको देखकर दिल निहायतखुशहोताहै, दुसरामंदिर तीर्थकरशांतिनाथजीका-इसमें जो पुरानीमूर्तिथी अवनहीरही, संवत् ( १८१७) की-प्रतिष्ठित नयी-तख्तनशीकिइगइहै, तीसरामंदिर शंखेश्वरपार्श्वनाथजीका इसमें तीर्थकरशंखेश्वरपार्श्वनाथजीकी पौनहाथबडीमूर्ति:संवत् (१८०५) की-प्रतिष्टिततख्तनशीनहै, अतराफ बावनजिनालय बनेहुवे-मगर-इसवख्त सबखालीपडे है, चोथामंदिर सुपावनाथजीका-शिखरबंद बेशकीमती बनाहुवा-मूलनायक तीर्थकर
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तवारिख - तीर्थ - केशरीया,
( १६१ ) सुपार्श्वनाथ भगवानकी ( १ ) हाथवडी मूर्ति - राजा संप्रतिकी तामीर किइहुइ इसमे तख्तनशीन है, रंगमंडपमें एकतर्फ तीनचरनपादुका - जायेनशीन है और उनपर संवत् ( १६९२ ) भट्टारक श्रीहीर - विजयसूरि के बाद - जो - भानुचंद्रगणिहुवे है उनकानाम लिखा हुवा है, जोकोई यात्री शहर उदयपुरकों आवे आघाटपुरकी जियारत जरूरकरे, कौंकि - यह पुराना शहर है, सवारीके लिये इक्का-बगी - उदयपुर में तयार मिलती है -दो घंटे में दर्शनकरके लोट आसकतेहो, आघाटपुर वापिस उदयपुर आना, औरफिर केशरीयाजी तीर्थ जानेकी तयारी करना,
उदयपुरसे ( २० ) कोशके फासलेपर खुश्कीरास्ते - केशरीयाजी- एकमशहूर तीर्थ है, सवारीकेलिये दो घोडोकीवगी-या-बेलगाडी जो चाहो मिल सकती है, रास्ते में ( ९ ) चोकीयां आयगी उद यपुर से रवाना होते वख्त पांचरुपयेके उदयपुरी पैसे इसलिये साथ लेने चाहिये कि - रास्ते में - भील लोग - जो- चोकीदार है, और फीचौकी-चारचार आने - एकगाडीके लेते है, नवचौकीके नाम-१, बलीचा - २, कायां - ३, वारांपाल- ४, बोरीकुडा-५, टीडी-६, पडोगा- ७, बारां-८, परसाद-और-९, पीपली, लोटतेवख्त चौकीएक-धुलेवाजीकी ज्यादह देना पडेगी, मुकाम परसाद पर आठ आने लगते है, चाहे बगीहो-या बैलगाडीहो रास्तेमें एकरोज मुकाम जरूर करना चाहिये. -सवेरके चले शाम तक नही पहुच सकते,
जव खास केशरायाजी तीर्थ पहुचजाओगे ( ५०० ) घरोंकी आबादीका कस्बा घुलेवा मिलेगा, धर्मशाला यहांपर चार बनीहुइहै, जिसमे एक बहुत बडी - एक पुरानी - एकमेहता गोविंदसिंहजी साकीन उदयपुरकी - और - एकजय पुरवालोंकी - इनचारोमें करीब
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(१६२ ) तवारिख-तीर्थ-केशरीया. ( ३०००) आदमी ब-खूबी कयाम करसकतेहै, खानपानकी चीजे-आटा दाल-धी-सकर मेवा-मिठाइ-जोचाहो मिलसकती है, जैनश्वेतांबरश्रावकोके घर-यहां पांचसात-और-कुल्लव्यापारीयोंकी दुकाने (१०० ) के-करीबहोगी, यात्री किसीधर्मशालामें जाकर कयामकरे, कोइमना नहीकर सकता,-करीब एकहजार वर्षहुवे मूर्ति-केशरीयाजीकी-धुलेवा-गांवसे बहारकी जमीनसें निकलीथी,-मूर्ति-ततकाल परचा देनेवाली होनेसें-यात्री-बहुतआने लगे और दिन-ब-दिन पूजामें तरक्की होनेलगी. बाद चंदरोजके जब खजाना तरहुवा-मंदिर बननेका काम शुरूहुवा, और जबबन कर तयार होगया-बडीशान-च-सोतकसे प्रतिष्टाकिइगइ, वहीमंदिर अबतककायमहै, उदयपुरकी तबारिखसे मालूमहोताहै. महाराणा मोकलजीकेवख्तमें यहमंदिर बना, बडासंगीन-बेशकीमती-बावन जिनालयका मंदिर देखकर दिलखुशहोगा, रंगमंडपकी दाहनीतर्फ दिवारमें एकशिलालेखलगा हुवाहै उसमे लिखाहै संवत् (१४३१) वैशाखसुदी (३) बुधवारकेरौज फलां सख्शने इसतीर्थकी जियारतकिइ, बायीतर्फकी दिवारपर जोदूसराशिलालेख लगाहै उसमें संवत् (१५७२) वैशाख सुदी (५) सोमवारके रौज फलांशख्शने इसतीर्थकी जियारतकिइ, इनलेखोंसे सबुतहुवा-संवत् चौदहसोके पेस्तरका यहमंदिरवना हुवाहै,-शिवायइसके दूसरे कोइशिलालेख नहीपायेजाते,
बहारकेरंगमंडपमें जोबायीतर्फकी दिवारपर एकशिलालेख मौजूदहै संवत् उसका दबगयाहै-नीचेकीतर्फ जिनभक्तिमरि-औरजिनलाभरिवगेरा जैनाचार्योंकेनामहै. मंदिरका रंगमंडप-औरलिंगारचौकी उमदा कारीगीरीसे बनाइगइहै, अतराफमंदिरके कोट खीचाहुघा-और-फूलनायक तीर्थकररिषभदेवमहाराजकी शामरंग
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तवारिख-तीर्थ-केशरीया. (१६३ ) मूर्ति-करीब अढाइहाथवडी तख्तनशीन है, मूर्तिपर कोइलेखनहीशिंगार-गेहने-आभूषन-अंगीवगेरा काम-मुताबिक जैनश्वेतांवर आम्नायक होताहै, इसमूर्तिपर जाफरान बहुतचढती है और जाफरानकों संस्कृतजबानमें केशरवोलते है-इसीवजहसे इसमूर्तिका नाम केशरीयाजी कहागया. मंदिरकेरंगमंडपमें-नवचौकीकी छतमें सभामंडपमें-और-परकम्मामें-जोजोकाम पथरोपरहुवाहै सबउमदा कारीगीरीके शाथहै, ____ मंदिरकीवहार नकारखानेकेनीचे थंभेकी बरावरीमें जोवडा शिलालेखहै महाराणा संग्रामसिंहजीकेवख्तकाहै, इसकेपास छोटे पथरपर संवत् (१८४९) जो-गांव-बिलखकेलोगोका इकरारनामाहै उसमेलिखाहै, हमलोग मंदिरकीचौकी बखूबीकरेगें, एकलेख संवत् (१९३७) काहै उसमें भीललोगोंका इकरारनामाहै,-एक लेख अरिसिंहजीकाहै, इसमें संवत्कीजगह टुटीहुइहै.-मंदिरकेदरवजेकी बहार अवलचौकीकी छतमें (८१) कोठेका-यंत्र-पथरमें ऊकेराहुवाबडाप्रभाविकहै,-मंदिरकेपास केशरीयाजीतीर्थका कारखाना बनाहुवाहै-मुनीम-गुमास्ते-नोकर-चाकर-चपरासी-औरनकारखाना हमेशांकेलिये जारी है, परकम्माके जिनालयोमें-कह जिनमूर्तिये संवत् (१७३६) की है, कइसंवत् (१७५४) कीकइसंवत् (१७७८) और कइसंवत् (१७९०) की-प्रतिष्टित जायेनशीनहै. मूलनायकजीके सामने एकहाथी पथरका बनाइवाऔर-उसफर-मरुदेवजीकी मूर्ति-जायेनशीनहै, मंदिरकी सीढीकी दोनोंतर्फ-शासनदेवी-चक्रेश्वरी-और-पदमावती शंगेमर्मरपथरपर उमदाबनीहुइ-निचली डयोढीकेपास-दोहाथी-आमनेसामने-शामरंग पथरके बनेहुवे-और-बडेदरवजेके बहार नकारखानेकेनिचे फिर-दोहाथी-उतनेहीबडे निहायखूरत पथरकेबनेहुवे बतौरवबाश्के खडे है,
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( १६४ )
तवारिख - तीर्थ - केशरीया:
मंदिरकी बहारकीपरकम्मामें- एकजिनालय तीर्थंकर पार्श्वना नाथस्वामीका बनावा - मूर्ति जगवल्लभपार्श्वनाथजी की करीब साढेतीनहाथवडी — जायेनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् (१८०९ ) वैशाख सुदीपंचमी शुक्रवारकेरौज यहतामीर किइगर, और तपगछके सुमतिचंद्रगणिजीने इसकीप्रतिष्ठा किइ, केशरीयाजीकेमंदिरकी पीछाडीकी दिवारपर तरहतरहकीकारीगीरी-पुतलीये - और - गुलदस्ते बने हुवे है, इसमंदिरकी तामीरात में अंदाज (१५०००००) रुपयेसर्फ हुवे कहे जाते है - अगरकोइयात्री - केशरी - याजी महाराजकी मूर्त्तिपर - सवालाखरुपयोकी जेवरात - जोकि -यहांके जाने में जमा है - एकरौजकेलिये चढानाचाहे - तो - ( २३ ) रुपये सफहोगा. - यानी — मंदिरकेखजाने में देना होगा, अगरकोइयात्रीमंदिरमें रौशनीकरानाचाहे तो - एकरौजकेलिये - ज्यादहसँज्यादह ( १६ | | | ) रुपये खर्चलगेगे, औरकम रौशनीकराना चाहे - तो ( २ ) तकभी होसकती है, जिसकी जैसीताकातहो - वैसा करे, यात्रीकों तीर्थ की जगहपर दिलकेदलेर होनाचाहिये. केशरीयाजीमहाराजके मंदिर में नोकर-चाकर- छडीदारवगेरा (२७) आदमी हरहमेश हाजिर रहते है, - और - खर्च भी - इसतीर्थ में ज्यादहहै, - वनस्पत और तीर्थोके - माकुलपैदाशभी यहां अछीहोती है - जिससे तमामरवन्नक बनी हुई है, -
-
हरसाल चैतवदी अष्टमीकेरोज यहांपर यात्रीयोंका मेला भरता है उसरौज महाराज उदयपुरकी तर्फसें हाथी-घोडे-फौज-सवार वगेरा मयलवाजमाके आते है और बंदोबस्त करते है, बाजानकारखाना - कोतल घोडे - संगीत कलावगेरा जुलुसके साथ-भगवानकी सवारी मंदिरसे - छत्रीतक जाती है, यह वही जगह है, जहांसें केशरीयाजी महाराजकी मूर्ति जमीनसें निकलीथी, घुलेवा
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तवारिख-तीर्थ-केशरीया. (१६५ ) गांवके सब-लोग-और-आसपासके आयेहुवे देहातीलोग-भीलवगेरा-दोतीन हजार आदमी-शाथ-चलतेहै,-और-बडाजलसा होताहै, जिसकी अछीतकदीरहो जैसे मोकेपर जियारत करे इस मेलेमें कभीकभी दसपनरां हजार आदमीतक जमाहोतेहै, कोई यात्री मणभर केशरतक केशरीयाजीकी मूर्तिपर चढाताहै, छत्रीपर जहांकि-सवारी लाइजातीहै उमदाछत्री-वगीचा-और-तीनवावडी मीठे जलकी भरीहुइ मौजूदहै, वागमें-गुलाव-चंपा-चमेली-जाइजुइ-डमरा-मरूआ-वगेराफुलोंके पेंड-खडे है, छत्रीमें केशरीयाजी महाराजके कदम-जायेनशीनहै, और उसकेसामने पहाडकी दामनमें आमखास-नशीस्तगाह बनीहुइ-उसपर-मेलेके रौजमूर्ति तख्तनशीन करके उसका पूजन कियाजाताहै, आमलोगके लिये बेठनेकी जगह चुनागचीकी बनी है जिसपरपांचहजार आदमी बखूबीबेठ सकतेहै, मेंलेके रोज यहांपर गीतगान-नाच मुजरा कियाजाताहै, महाराजकी सवारी मंदिरसे दिनके (२) बजे रवाना होकर शामके (६) बजे मंदिरमें वापिस आजाती है, तीर्थकेशरीयाजीकी जियारत करकेयात्री उसी खुश्कीरास्ते वापिस उदयपुर आवे, और रैलमें सवारहोकर चितोडगढ जाय, चितोडगढसें नीमच-मंदसोर-रतलाम-उज्जेनहोती हुइ मकसीजी तीर्थकोंभी रैलगइहै. और इंदोर-खंडवाहोकर भुसावलकोंभी गइहै. मगरतुमकों चितोडगढसे अजमेर-फुलेरा होतेहुवे फलोदी तीर्थकों जानाचाहिये. इसलिये चितोडगढसें रैलमें सवार होकर वापिस अजमेर आना रैलकिराया पेस्तर बतलाचुके है, अजमेरसें रैलमें सवारहोकर-मदार-लाडुपुरा-आखरी-किशनगढ-तिलोनिया-साली-सखुन-नरायणा-होते फुलेराजंकशन जाना, रैलकिराया आठआने लगते है, फुलेरा उतरकर मेरटारोड़ जानेवाली रैलमें सवारहोना,
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(१६६ ) तवारिख-तीर्थ-फलोदी.
और-सांभर-गुढा-कचामनरोड-नारायणपुरा-मकराना-बोरावरगछीपुरा-देगाना-और-रैन-होतेहुवे मेरटारोड टेशन उतरना. इसीकानाम फलोदी तीर्थहै,-फुलेरासें मेरटारोडतक रैलकिराया पनरा आना-तीनपाइ लगते है,
( तवारिख-तीर्थफलोदी. ) _ फलौदी पार्श्वनाथजीका-यहां-पुराना जैनतीर्थ है, इसकी तवारिख बुजुर्ग लोग इसतरहसें बयान करतेहै, संवत् (११८१ ) में यहां एक-श्रीश्रीमाल-धुंधलकुमार-जैनश्वेतांवर श्रावक रहताथा उसके वहां बहुतसी गायेंथी. जिनमेसें एक गौका-यहहालथाकिजब-जंगलसें चरकर-शामको घर वापिसआती-तो-रास्तेमें एक बेंरीकेनीचे उसका दूध-खुद-ब-खुदझर जाताथा, कुछ-दिनकेबाद धुंधलकुमारने गोवालियेसे ताकीदकिईकि-हमारीगौका दूध-कौन दोहताहै, ? उसनेकहा ! आप मेरेसाथ जंगलमें चले, और-वचश्म-खुद इसबातकों अजमावे, दुसरेरौज धुंधलकुमार खुद जंगलकोंगया, और गौके पीछेपीछे वापिस घरकों आया, तो सस्तेमें एक-अजुवा-देखाकि उसबेरीके द्रख्तीचे गायका दूध खुद-चखुद झरनेलगा यहहाल देखकर वह हैरानहुवा और दिलमें सौचनेलगा क्या माजराहै, ? जरूर यहांपर कुछ सबबहै घरआनकर जब सबकासोसे फारीकहुवा और आरामसें सोगया, रातके वख्त उसको एकख्वाबहुवाकि-उसमुकामपर देवाधिदेव-पार्वनाथ भगवानकी मूर्ति जमीनमें बौजूदहै, तुं ! उसको निकालले !! - सने दुसरेरौज यह माजरा अपने दोस्त एक-शिवंकर नामकेश्राव ककोंकहा, और दोनों मिलकरजंगलकों गये, और उसबेरीके द्रख्त नीचे जमीनको खोदा-तो-एक-निहायत उमदा-मूर्ति-शामरंगतीर्थकर पार्श्वनाथ भगवानकीउनकों मीली.-और-वे-अपने क्का
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तवारिख-तीर्थ-फलोदी. (१६७ ) नकों लेआये.-और-अलायधा एक मकान बनाकर पूजाकरना शुरूकिड. ज्यूं ज्यूं यात्री आते रहे तीर्थकी तरक्की. होतीगइ.
और बडा आलिशान मंदिर बनाकर मूर्ति उसमें तख्तनशीन किइगइ. जो-मंदिर अब मौजूदहै उसी वख्तका बना हुवाहै,इसकी प्रतिष्टा जैनश्वेतांबराचार्य धर्मघोषमूरिजीने किइ, फलौदी गांवमें मूर्ति जाहिरहोनेसें इसकानाम फलौदीपार्श्वनाथ रखागया. दिनपरदिन तीर्थकी तरक्की होनेलगी, पेस्तर जब यहां रैलनहीथी यात्री-बजरीयेलगाडी-या-पांवपैदल जातेथे. आजकल रैलहो नेकीवजहसें बहुतसेंयात्री आतेजातेहै. टेशनके उतरतेही सामने बडाआलिशान-शिखरबंदमंदिर-और-धर्मशाला नजरआती है. यात्री वहांजाकर मुकामकरे. धर्मशालामें चालीशकोठरीये-औरएकबडासहेन बनाहुवा-गर्मीकेदिनोमें बडाआराम देताहै, अगरएकहजारयात्री-एकशाथ आजाय-इसधर्मशालामें ब-खुबी कयाम करसकते है,-बीच धर्मशालाके मंदिरफलौदी पार्श्वनाथजीका निहायतउमदाशिखरवंद-बनाहुवा-और इसमें-तीर्थकरपार्श्वनाथभगवानकी शामरंगमूर्ति-करीब अढाइहाथवडी-तख्तनशीनहै. दर्शन करके दिलखुशहोगा,
गर्भद्वारके दरवजेकेनीचे दाहनी-और-बायीतर्फ संस्कृतजबानमें लिखाहै संवत् (१२२१) मृगशीर्षसुदी (६) के-रोजफलवर्द्विकायां (यानी) फलौदीगांवमें तीर्थकरपार्श्वनाथजीकामंदिर-तामीरकियागया,-कुछहर्फ घीसगयये है बराबरखुलतेनही, बायीतर्फ लिखाहै-चैत्येन-नरतरे-येन, श्रीमल्लक्ष्मटकारिते-मंडपो मंडनं लक्ष्म्याः , आगे फिरकुछहर्फ घीसजानेकी वजहसे खुलतेनही तीसरे श्लोकके तीसरे चरणमें-लिखाहै-उत्तानपढें-श्रीपार्श्वचैत्यं( यानी ) बडेपट्टवाला-तीर्थंकर पार्श्वनाथजीका मंदिर तामीरकि
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(१६८) तवारिख-तीर्थ-फलोदी. यागया, भीतरके रंगमंडपमें जो-दाहनीतर्फ-तीनमूर्तिये जायेनशीनहै बडीमूर्त्तिके नीचे संवत् (१६५३) में यहतामीर किइगइ लिखाहै. तपगछाचार्य हीरविजयमूरि और उनके चेलोकनाम-भी-लिखेहै, बायीतर्फ जो तीनमूर्तिये है उनमें एक मूर्त्तिके नीचे संवत् ( १६५३ ) वैशाखसुदी ( ४ ) बुधवारके रौज-तीर्थकर शीतल. नाथजीकी मूर्ति तामीर किइगइ लिखाहै, और तपगछाचार्य विजयसेनमूरि-और-विनयसुंदर गणिके नामभी मौजूदहै, एक शामरंगमूर्ति-मुंडियाल गांवसें लाइहुइ नयी है, तीसरीमूर्ति-तीर्थकर अरनाथजीकी उसीसंवत् (१६५३) और वही तपगछाचार्य विजयसेनसूरि-और-विनयसुंदर गणिके-नाम इसपर मौजूदहै, रंगमंडपबहारका-बहुतपायदार बनाहुवा-जिसमें (५००) आदमी बखूबी बेठसकते है, - एकतर्फके कौनेमें तीर्थअष्टापदजीका नकशा-संगमरमर पथर पर-उकेराहुवा इसमें जैसी मुश्शवरी और मुनहरीकाम बनाहुवा जो दुसरी जगह नहीं दिखाइदेता.-श्रीयुत-वरधीचंदजी सचेतीनेतीन नकशे तामीर करवायेथे. जिनमेसे एक-शत्रुजयतीर्थपर विमल वशीटोंकमें चक्रेश्वरी देवीके मंदिरसे आगे-हाथीपोलसे उरेदाहने हाथतर्फ उनहीके तामीरकरवाये हुवे मंदिरकी दिवारमें लगाहै, दुसरा लशकर गवालियरके मंदिरमें-और तीसरा यहां फलौदी पार्श्वनाथजीके मंदिरमें-कुल्ल (३) हुवे. इसमें क्या !! उमदाछोटीछोटी मूर्तिये पनरासों तापसोंकी बनीहुइ-जोकि-गणघर गौतमस्वामीके चेले होगयेथे,-एकतर्फ रावण-और-मंदोदरीकीमूर्ति-नृत्यकर रही है. बीचमें [२४] तीर्थंकरोकी मूर्तिये
और-अस्मानसे उतरते हुवे देवतोंके विमान इसकदर खूबसुरति फेसाथ बनेहुवेहै जिसकी तारीफ जबानसे बहारहै, इसको देखकर
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तवारिख - तीर्थ - फलौदी.
( १६९ ) मालूम होता है - सर-व-सर- तीर्थ अष्टापद नजरके सामने मौजूद है, दूसरी तर्फके कौनेमें- नंदीश्वरद्वीपका नकशा उसीतरह - शंगमर्मर पथरपर बना हुवा दिवारमें लगा है. द्वीप - समुंदर - और - तरहतरहकी निहायत खूबसुरत मूर्त्तियें दिलको इसकदर असर करती है किगोया ! अभीमुंहसें बातें करेगी. - मेरूपर्वत - युगलीक मनुष्यो के क्षेत्रऔर उदयाचल वगेरा पहाड इसकदर कारीगरीसें बने है कि - देखने वालेही उसकी खूबी बयान करसकते है, वाणव्यंतरदेवता - और देवांगना इसकदर बने है कि - मानो ! - वे सचमुच - यहां आगये हो, -
दुसरा मंदिर कोट बहार जो थोडी दूरपर बना हुवा है इसमें मूलनायक - चौमुख महाराजकी चार मूर्त्तिये तख्तनशीन है, उनमें एक मूर्त्तिपर संवत् (१८९१ ) - और - एकपर संवत् ( १८९६ ) लिखाहुवा है, चारोंकोंनोंमें चार-छोटीछोटी छत्रीये एकमे-चौदह स्वम - एक में जन्मकल्याणिक-और- एकमें दीक्षाकल्याणिकका आariantarter राहुवा मौजूद है, अतराफ मंदिरके कोट खीचाहुवा और सबका संगीन है कारखाना फलौदी तीर्थकाभीतर धर्मशाला एकतर्फ बना हुवा - मुनीम - गुमास्ते-नोकरचाकर- चपरासी - सबकाम शाहाना है, - यात्रीकों खानपानकी मामुली चीजें यहां दस्तयाब होसकती है, टेशनपर हलवाइयोंकी दुकानेभी मौजूद है, मिठाइवगेरा वहांसेमिल सकेगी. हरसाल आसोजमुदी दशमीकों यहां यात्रीयोंका मैलाजुडता है, करीब उसवख्त दशहजार आदमी जमा होते है, - तीर्थकर फलौदी पार्श्वनाथजी के सोनेके बने हुवे जेवरात उसरौज मेरटेसें यहांलाये जाते है और मूर्त्तिपर चढायेजातेहै. चांदीका सामान - नकारखाना - निशान - और - तरहतरहके बाजेभी शहर मेरटेसें आते है और बडेजुलुशकेशाथ - तीर्थकरफलौदी पार्श्वनाथजी की - सवारी - मंदिरकीचारों तर्फ फिराकर बहारतालाव
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( १७० ) तवारिख-तीर्थ-फलौदी. पर लाइजाती है, और वहां पूजन होनेकेबाद शामको वापिस मंदिरमें आतीह. जिसकी अछीतकदीरहो औसे मौकेपर जियारतकरे,
मंदिरकेपास मीठजलका कुवा और एकगुलजार बाग बनाहुवाहै. मोर-तोत-चिडिया वगेरातमाम किसमके परीद यहां हरवख्त कलोले करते रहते है, और दाना चुगनेकोभी उनकों यहां मिलताहै, कइदके इसतीर्थपर मुसीबतें आइ, मगर बदौलत देवधर्मके सब रफाहोतीगइ,-फलौदी तीर्थकी जियारतकरके टेशन मेरटारोडपरआना-और अगर फुरशतहोतो-मेरटासीटी-नागोर
और-विकानेर जाकर वहांके मंदिरोंके दर्शनकरना, मुल्क मारवाडमें-ये-मशहूर शहरहै इसलिये उनका बयानभी यहां बतलाते है, जिसको जानाहो-जावे, न-जानाहो-न-जावे, मेरटारोडसे रेलमे सवार होकर मेरटासीटीजाना, रैलकिराया देढआना,. मेरटाशहर एक पुरानी आवादी है. अतराफ कोट बनाहुवाबाजार पसारहटा-और-सदर जिसमे सराफ औह कपडेवेचनेवाले बेठते है किसीकदर रवन्नकदारहै, मेरटेकी शोहोरत-जो-पेस्तरथी अवनहीरही मगरकिसीकदरठीकहै, हाथीदांतके छल्ले-अंगुठी-फुल और घडीकी जंजीर यहांआलादर्जेकी बनती है, खसकेपंखे-उनीकपडे-और-मीटीके खिलौने यहांकेनामी है, जैन श्वेतांबर श्रावकोके घरपेस्तरबहुतथे-मगरअबसीर्फ ! (८०) के-करीबरहगये, जैनश्वेतांबरमंदिर (१४) और-उनमेखूबसुरत पुरानीमूर्तिये तख्तनशीनहै जैनपुस्तकोंका पुराना भंडारयहांपर मौजूदहै, जैनमुनिजनोको ठहरनेकेलिये कइमकान बनेहुवे है, बहार शहरके छत्री दादाजीकी और-बगीचा उमदाहै-मगर मरम्मत दरकारहै, मेरटेके जैनमंदिरोके दर्शनकरके यात्रीनागोरजावे, रैलकिराया पोनेसात आनेलगते है, और-देशवाल-खजवाणा-मुंडवा-ये-टेशन रास्तेमे आते है,
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बयान-नागोर-और-विकानेर.
(१७१ )
मुल्क मारवाडमें नागोर एकपुराना शहरहै, अतराफ शहरके पकाकोट खीचाहुवा, (६) दरवजे और (२) बारीयेमौजूदहै, कपडा बाजार-सराफा-पसारीबाजार-और-धानमंडीरवन्नक लियेहै, दर मियान शहरकोकिलेमें राजमहेल-मोतीमहेल-और त्रिपोलीयादरवजा काबील देखनेके है, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर करीब (४००) और (५) जैनश्वेतांबर मंदिरयहां बनेहुवेहै, सबसे बडामंदिर तीर्थकर रिषभदेवजीका-इसमें-तीर्थकर रिषभदेवजीकी सर्वधातमय मूर्ति तख्तनशीनहै, दुसरा मंदिर ढाडीवालोंके महोलेमे-तीसरा घोडावतोकेमोहलेमे और-दो-दफतरीयोके महोलेमे यात्रीइनमें जाकर देवदर्शनकरे. माहीदरवजेके बहार यतिजी रूपचंदजीका तामीर कियाहुवा-और-इसकेआगे आधमीलके फासलेपर छत्री दादाजीकी-और नजदीकमें बगीचा-हौजवगेरा बनेहुवे है, नागोरमें वख्त सागर-गिनाणी-और-शम्पस-ये-तीनतालाव मशहूर है, गर्मीयोके दिनोंमें बहुत कामदेते है, शहरमें मुनिजनाके ठहरनेके लिये कइमकानहै, जैनपुस्तकोके लिखनेवाले कइलिखारी यहां रहते है, चार रूइये हजारश्लोक लिखेगे, मगर कागजका खर्चालिखाने वालोके जुम्मे होगा, नागोरके जैनमंदिरोके दर्शनकरके-यात्री-वापिस टेशनपर आवे और शहर विकानेरकों रवानाहोवे. बुदवासी-अलायभग्गु-बिकासर-मुरपुरा-और गीगासर-होतेहुवे-टेशन विकानेर परउतरे, रैलकिराया साढे बारह आने लगते है,
मुल्क मारवाडमें विकानेर शहर पथरीली जमीनपर वसा हुवाहै, श्रीयुत-विकारावजी महाराजने इसकों आबाद किया इसलिये विकानेर कहलाया. विकारावजीका जन्म सन (१४३९) इस्वीमें हुवाथा, पांचदरवजे और तीनतर्फ इसके पुख्ता खाइ बनी हुइ है,-सन (१८९१) की-मगथमारीमें विकानेरकी मk
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( १७२ ) बयान-नागोर-और-विकानेर. मशुमारी (५६२५२) मनुष्योंकीथी, शहरपनाहके फाटकसे करीब ( ३०० ) गजके फासलेपर एककिला-जिसमे उमदा राजमहेल-तामीर कियेहुवे-और-अतराफ उनके पुख्ता खाइ मौजूद है, विकानेरमें-कइकुवे जैसे है, जिसमे ( १५० ) या ( २०० ) हाथ तकलंबीरसी लगती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर विकानेरमें अंदा ज (१०००) होगे जैनश्वेतांबर बडेबडे मंदिर (८) और (२०). के अंदाज छोटे है, बडेमंदिरोमें तीर्थकर रिषभदेवजीका-मांडासरजीका-तीर्थकर नेमनाथजीका महाविर स्वामीका शांतिनाथजीका बडेआलिशानहै, जैनश्वेतांबर मुनियोकों ठहरनेकेलिये पोषधशालाएक-पंचायती और करीब (१०) बडेछोटे उपाश्रयहोगें, जैनपुस्तक लिखनेवाले लिखारी यहांभी-अछेअछे मौजूदहै. और चाररू पये हजार श्लोक लिखतेहै, विकानेरके (२) बाजार अछेगुलजारमीसरी विकानेरकी निहायत उमदा-और-चुरनभी यहांका नामी बनताहै, किलेके पास सुरसागरतालाव-एकअछी जगहहै, ___इसरियासतमें नदीयें कम-वारीसके जलपर लोगज्यादह भरूसा रखते है, पोखरोमे-और-कुंडोमें-वारीशका जल-इसकदर भररखते है जो गर्मीयोके दिनोंमें बहुतकाम देताहै, वैशाख-जेठमे गर्मी-इतनी सख्तपडतीहै-और-इसकदर हवा चलती हैकि-कहींकहीं बालुरेतके टीवे जमाहोजाते है. असलमें इसमुल्कमें बालुरेत ज्यादह-और यहांकी फसल बाजरी-मोठ-तरबुज-खेलरे ककडी-कर-सागरी वगेराहै,-घोडे यहांकेबडे मजबूत-हाथीदांतकी चुडीयां और कंबल मुल्कोंमें मशहूरहै,-चारीशके दिनोंमें मुल्क हराभरा होजाताहै. विकानेरसे (२०) मील दखन-पश्चिमकीतर्फ एक-गजनरझील-हमेशांमीठेजलसे भरीहुइ बाग-बगीचे-हरीयाली और उमदाजगह बनीहुइहै,-विकानेरके जैनमंदिरोके दर्शनकरके
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दरबयान-शहर-जयपुर. (१७३ ) यात्री वापिस मेरटारोड और मेरटारोडसें फूलेराजंकशनआवे रैल किराया पेस्तर बतलाचुकेहै,-फुलेरासें जयपुरके लिये रवाना होवे क्योकि-देहली होकर तीर्थहस्तिनापुरकी जियारतकों-जाना होगा मगर रास्तेमें जयपूर शहर काबिल देखनेकेहै, वहांके जैनमंदिरोके भी दर्शन करना चाहिये-फुलेरासे-रैलमें सवारहोकर-हरनोदाआसलपुर-उगरीयावास-धांकिया-और-कनकपुरा होतेहुवे जयपुर टेशन उतरना. रैलकिराया छआना,
3' ( दरबयान-शहर-जयपुर.) - राजपुतानेके देशीराज्योंमें जयपुर एक गुलजार राज्यहै. करीबटेशनके एकउमदा धर्मशाला बनीहुइहै. मगर जैनश्वेतांबर यात्रीकों शहरमे जाना बेहतर होगा. टेशनपर इके-बगी-तयार मिलते है, सांगांनेरी दरवजेके पास जो शेठ-नथमलजीकी धर्मशाला बनीहुइहै जाकर उसमें कयामकरे, सन् ( १८९१) की-मर्दुमशुमारीमें-जयपुरकी मर्दुमशुमारी (१५८९०५) मनुष्योकीथी, शहरकी लंबाइपूरव-पश्चिमदो-मील-और-चोडाइ उतर दखन देडमील होगी, बहुतसी सडकें वसी-और-लंबी, बाजार इसउमद. गीसे बनेहै मानो! कारीगिरोने अभीबनाकर तयारकिये है, हरेक सादर-नादरकेमकानमें--आरामगाह-नाहनेधोनेकीजगह--औरनसीस्तगाह ऐसे उमदा बने है जोदिगरशहरमें कमदेखोगे, जहोरी बाजार-हवामहल-रामगंज और त्रिपोलीया वगेरानामी बाजारहै, जिसमें सांगानेरीदरवजेसें-हवामहेलहोतीहुइजो आमेरीदरवजेतकसडकगइहै बडीरवनकपरहै. बडेबडे आलिशानमकान-वेलबुटे
और-चित्रकारी -झलकरही है, हरेककिसमके-मेवे-मिठाइ-औरमालअसबाब-यहांमिलसकताहै, हिंदुस्थानमें बहुतशहर देखेहोगे मगरइसकी कतेवजेभी एकनिराली है, बाजारकीसडके इतनीसाफ
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( १७४ )
दरवयान - शहर - जयपुर.
कि- जहां- गर्देका नामनही. जयपुरके मकानोंकी कहांतक तारीफ करे हरमकान पर रंग और चित्रकारी बनी हुई है, हरजगह पानी के नल और - रातको सडकॉपर लालटेनोंकी रौशनी होती है, जयपुर के राजमहल बडे उमदा - और कींमती क्या ! उमदाबावनकचहरियांजिनकी कते जे निराली है, देखकर ताज्जुब होगा,
tradiatoranोकेघर करीब ( १२५ ) और - जहोरीबाजार मेचीवालो के रास्ते पर - दो - जैन श्वेतांबर मंदिर बने हुवे है, जिनकी कारीगीरी - नक्शकारी-शंगमर्मरपथरका काम-वेलबुटे-और-चित्रकारीदेखकर दिलखुश होगा. – जैन श्वेतांबरमुनिजनो के लिये ठहरनेके कइमकान यहां पर है, घाटदरवजेके आगेकरीव (२) मीलके घेरे में - घटनामसे एक उमदा जगह बनी हुई है जहांपर अकसर बडेबडेआदमयोंकी गोठहुवाकरती है, और खानपान बनता है, चाहे दुकाल पडे तोभीवहां आनंद बंधनही होता, रास्ते मेंदुतर्फा जालीदारमकान बीच सडक - मकानोपर तरहतरहकी मेहराबे - महल - बागात - पानीकेहोज - चिश्मे आब - और - सडकपर फर्सपथरका लगा हुवा - जगह सोहावनी है, एकजैन श्वेतांबरमंदिर यहांपर वेंशकीमती बनाहुवायाश्री इसकेदर्शन जरुरकरे, जयपुरमे हरजगह इक्का - बगी - किरायेपर तयारमिलते है, - बेठकर जहां-जी - चाहे सैरकरलो, -
सांगानेरीदरवजेके बहार - रामनिवासबाग - काबिलदेखनेकी जगह है, अजायबघरभी इसमें मौजूद है, जिसमें दुनिया की अजनवी चीजेरखीहुइ देखकर दिलकों औरही असरहोती है, खास ! ग्रहवैध मकानकानकशा, तरहतरहकेसीके - नकली आदमी-शंगमर्मरका बनाहुवा आगरेका ताजमहल - हिंदुस्थानके तमामदेवताओंकी मूर्त्ति तीर्थकरोके समवसरणका आकार - शंगमर्मरका तामीर कियाहुवा निहायत उमदा है, मुल्कबर्माका बना हुवा चांदीकाकाम-सिंहलद्वी
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दरबयान- शहर - जयपुर.
( १७५ )
पके बने हुवे मीटीके बर्तन - इजीप्तकी तस्वीरोंके नक्शे -सुपारीकी बनी हुइलकडी - भरतपुरका बना हुवा - बांसकीचीरोंका बाजा - मुल्क arth मंदिरका नक्शा - आदमीका कलेवर - जिसमें नशे-पसलीहड्डीवगेराके आकारदेखकर दिलमें असर होता है कि - आदमीकाशरीर इनइन चीजों का बना हुवा है, - लंकानगरीका चित्र - दमयंतीका स्वयंवर - जयपुरके कारीगिरोने इसकदर चित्राम किया है कि - इन्सान देखकर ताज्जुबकरता है, जयपुरकेचितारे आला दर्जेके होशियार, चाहे जिस जगह जाकर देखो जयपुरकीसी नक्शकारी बहुतकमदे - खोगे, - दिवारपर (१४) राजेमहाराजों की तस्वीर - इसकदर उमदा चित्राम fast मानो ! अभी बोलने लगेगी. हरमुल्कके परींदेऔर जानवर - आफ्रिकाका - केशरीसिंह - जिसकी गर्दनपर केशोंका झुंडहोता है, शास्त्रों में जिसकों केशरीसिंह कहा - यहांपर मौजूद है, हरेक किसमके सांप- हरेक किसमको मछलीयें - मौर- कबुतर - तोते वगेरारखेहुवे है अजायबघर - इतवारकों बंद रहता है दुसरे दिनों में जबतबीयत चाहे जाकर देखलो, ! कोइ रोकटोक नही, -
शहरके बहार दादावाडी - उमदा - और - चरनप ( दुकाकी छत्री काबिलदेखनेके बनी हुइ है. जयपुर से थोडीदूरपर एक गलता - नामका स्थान - जलके झरने-कुंड और मैदान सोहावनी जगह है, जयपुरके जैनमंदिरोंके दर्शन करके यात्री - झालना -- सांगानेर - कनौता - वसई - झीर - जटवाडा - डोंसा - भाखरी - आरन-बांदीकुई - वसुवा राजगड - दिगवाडा - मालाखेडा - महवा - होतेहुवे अलवर टेशन उतरे रैलकिराया ग्यारह आने, - राजपुतानेके देशी राज्योंमें अलवर राज्यभी- अछा है, शहर अलवर में अछेअछे बाग - सराय - और - उमदा मकान बनेहुवे है, सवारीके लिये इक्का-वर्गाी-टेशनपर तयार मिलती है शहरमें जाकर वहांके जैनमंदिरोंके दर्शनकरो, -- सन्
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(१७६ ) बयान-शहर-देहली. ( १८९१ ) की-मर्दुमशुमारीमें अलवरकी मर्दुमशुमारी-(५२३५८) मनुष्योंकी-थी, अलवरशहर पहाडके नीचेकी सतहपर बसाहुवाहै, राजमहेल उमदा-बाजार गुलजार-और अनाजका व्यापार यहां ज्यादहहै, टेशन और शहरकेबीच कंपनीबाग-काबिल देखनेको जगहहै, अलवरमें जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी-और-मंदिर मौ. जूदहै, दर्शनकरके-वापिस टेशनपर आवे-और-देहलीके लियेरवाना होवे,-टेशन अलवरसे परिसाल-खेरस्थल-हरशौली-अजेर:का-बावल-रेवाडी-खलीलपुर--जाटौली-पाटली-गढीहरसरू-गुडगांव-पालम-और-सरायरोहिला-होतेहुवे देहली जावे,-रैलकिराया सवारूपया लगताहै, कमीबेंसी होगयाहो-तो-टाइमटेबलमें देखलेना,
0 (बयान-शहर-देहली,) . रैवाडीसे ( ५२ ) और गुडगांवसे (२०) मील-पूर्वोत्तर जमनाके पश्चिमकनारे देहली एकमशहूर और मारूफ शहरहै,-महा राज पृथवीराज चौहानके वख्त इसकीरवन्त्रक बहुतथी, और कस्बे मेहरोलीतक जहांकि-कुतुबकी लाटवनीहुइहै आबादथा.-महाराजपृथवीराजने जो अपनी अहदमें किला तामीर करवायाथाअवतक उसकेनिशानात अतराफ देहलीके पायेजाते है,-पृथवीराज • चौहानके जमानेतक हिंदुस्थानमें स्वंयवर विवाह होताथा. औरलडाइके वख्त क्षत्रीयलोग शंवजातेथे, बेशुमार दौलत-और-बडेबडे इकबाल मंद लोगथे, बहुत अर्सेतक देहलीके तख्तपर क्षत्रीयराजे सलतनते करते रहे, वाद-मुसल्मानोंकी सलतनत जारी हुइ और कहबादशाहोंने अमल्दारीकिइ. सन (१६४०) इस्वीमेंदेहलीके तख्तपर शाहजहांबादशाह अमल्दारी करताथा, लालकिला जो-जमना कनारे अबमौजूदहै बहुत दौलतसर्फ करके नववर्षमें
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बयान- शहर-देहली.
( १७७ )
बनाया, बादशाह - शाहजहांने हमेशांके लिये इसमें अपनी सकुनत कायमकि. कइमहल - जनानखाना - दिवाने आम-और- दिवाने खास इसमें बने हुवे है, देहलीसे तीनकोशके फासलेपर बादशाह हुमायुका कबरा जो उसकी वेगमने अपनेखाविंदकी यादगीके लिये बनवायाथा सन (१५५४) में बनना शुरूहुवा और (१५७० ) इस्वीमं तयार हुवाथा. दिवार नगीने जडेहुवे थे और मुनहरी चित्रकारीका कामया, मगर अब मरम्मत खाली मकान पड़ा है, देहली के अतराफ दसदस कोस के फासले तक कइइमारतें - और - मुकबरे बने हुवे बतौर खंडहर के पडे है. एकदिनवो रवन्नकथी - जो देखनेवाले ताज्जुब करते थे, आज वो ख्वाबमेंभी नजर नहीं आती जमाने हाल में अंग्रेज सरकारकी अमल्दारी मौजूद है और सबलोग अमन चैन कररहे है,
सन ( १८७७ ) जनवरीमें यहां - - एक्ष - - इम्पिरियल -- अमेदरवार हवाथा - उसवख्त बडाजलसा हुवाथा. सन ( १९०३ ) जनवरी में - महाराज - सप्तम एडवर्डका दरबार यहां वडीशानसौकतसेवा, उसवत ( २० ) कोशके घेरे में वास्तेदरबारके देहलीका मैदानआरास्ता कियागया था. हिंदुस्थानकेसवराजा-नवाब-औरasaरहीश यहां जमाहुवेथे. और सवारीनिकलीथी. देहलीकेमकान उमदावने हुवे - सडकेलंबी-चोडी - हरजगह पानीकानल औररातको लालटेनों पर रौशनीहोती है, करवटेशन के पास एकधर्मशाला और- सरायवनी हुइ है - मुसाफिरलोग इसमेठहराकरते है, सवारीके लिये इक्का बगी तयार मिलते हैं, जमनानदीपर दो मंजिला पुलसन (१८६७) इस्त्री में बनाया गया, चांदनी चौक-जहोरीबाजारदरीबा - अछेगुलजार है, तरहतरहकी चीजें और माल असबाब यहां मिलता है. वर्क चांदीसोने के और काम सल्मेसितारोंका यहां इस
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( १७८ )
वयान - शहर-देहली.
कदर उमदावनता है - जो - दुसरीजगह - कमदेखोगे, -- हरेक किसमकेमेवेtators- garain मौजूद है और चोराहेपर चुरनवेचनेवाले दोहेकवित्त बोलकर अपने चुरनकी तारीफकरते है, शामकेवख्त तरहतरहके खु मचेवाले और कुलगजरे बेचनेवाले बाजारमेंनजर आते हैं, और शौकीन लोग - उमदा से उमदा कपडे पहनकर हवाखोरीकेलियेनिकलते है, खानपान - बोलचाल - और - पुशाकयहांकी निहायतउमदा - बीचशहरके irtanहुवा और इसकी अवाज दूरदूरतक जाती है, -सन (१८९१) कीममशुमारीमे देहलीकी मर्दुमशुमारी मयछावनीके (१९२५७९ ) मनुष्यों कीथी, जैन श्वेतांवरश्रावकों केघर करीव (१००) और (२) जैश्वेतांबर मंदिर यहां परवने हुवे है, बडामंदिरम होले नवघरे में और छोटा अचेल पुरीमे, जोकोइ जैन श्वेतांबर यात्री देहलीमें कदमरखे अवल नवघरे जावे और मंदिर के दर्शन करे, देहली से (४) कोशके फा सलेपर छोटे दादाजी की छत्री - और - कुतुबलाट - महरोली के पास
दादाजी छत्री बनी हुइ है कुतुब मिनार जिसकों कुतुव लाट बोलते है देहली से करीब (१०) मील के फासलेपर मौजूद है, पेस्तर छमंजिलबी, भूकंप से उपरका हिस्सा कुछटुटगया, सन (१८२९ ) में फिर बनाया गया पेस्तर ( २५० ) फुट ऊचीथी अब ( २४० ) फुट रहगई, इसकी पांच मंजिले अब कायम है, तीनमंजिलोंमें लालपथर लगा हुवा उपरकी दोमें सफेद मारवल पथर लगा है और इसके भीतर चकरदार सीढीयें बनी हुई जिसके जरीये उपरसीरे तक जासकते हो जब उपर चढकर चारोंतर्फ नजर करोगे-गांवनगर बागबगीचे - तो केझुंड - सडक-और-नदीयां वगेरा देखकर तबीयत खुशहोगी, और यह मालूम होगा कि मानो ! आस्मानकी सैको चले है, देहलीकी इमारतें - आसपासके मुकबरे - और - पुराने खंडहर टुटेफुटे मकानात देखकर पुराना जमाना याद आता है, -
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बयान-शहर-देहली. ( १७९ ) कुतुबलाटके पास एक-लोहकी छोटी लाटभी-खडीहै इसपर राजा धवके प्रतापका वयान लिखाहुवा दुसरे लेखमें-संवत् ( ११०९) दुसरे अनंगपालका-और-आठमी सदीके पहलेके अनंगपालका नाम दर्ज है, इससे सबुतहुवा-पहले अनंगपालने इसको तामीर करवाइ होगी, इसकी ऊंचाइ ( २२ )फुटकी-और चौडाइ (१६) इंचहै,
देहलीके जैनमंदिरोके दर्शनकरके-यात्री-तीर्थहस्तिनापुरकी जियारतको जावे, देहलीसे-शाहदरा-गाजियाबाद-मुरादनगरबेंगमाबाद-महीउददीनपुर होतेहुवे मेरटसीटी टेशनपरउतरे,-रैलकिराया सातआने-नवपाइ, जिलेका सदरमुकाम मेरट एकबडा शहेरहै, सन (१.८९१) की मर्दुमशुमारीकेवख्त-मेरटकी मर्दुमशुमारी (११९३९०) मनुष्योंकी-बाजार बहुतवडा और जिसचीजकी दरकारहो यहां मिलसकती है,-मेरटमें हरतरहकी तिजारतहोती है जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी यहांपर नही-न-जैनश्वेतांबर मेंदिरहै, बहारशहरके धर्मशाला मौजूद है यात्री इसमें कयामकरे,
और दुसरेरौज तीर्थहस्तिनापुर-जानेकी तयारीकरे, जो (१८) कोशके फासलेपर खुश्कीरास्ते वाके है,-अबवहां-न कोइवाशिंदा है-न-इमारते है,-सीर्फ ! मंदिर और धर्मशाला बनीहुइ है, मेरटसे सवारी हरकिसमकी दस्तयाब होसकती है, जिसकदर रुपयाखर्च करोगे आरामपाओग. मगर बखीलोंका रास्ताही अलायधाहै, न-वे-खासकते है-न-पुन्यकरसकते है. शुभहके गयेहुवे यात्री शामकों-खास हस्तिनापुरमें पहुचसकेगे. मेरटसे मोहानागांव तक पकी सडकमिलेगी, आगे छकोश कचा रास्ता है, खास ! हस्तिनापुरकेपास रेतकारास्ताभी मिलेगा, सडककी दोनोतर्फ हरकिसमके दख्तलगेहुवे गंगानदीकी तरावटसे हमेशां यहां सब्जीबनीहुइ
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( १८० ) तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर. है. और द्रख्तभी बडेबडे बुलंद और-पुख्ता-मोसमगर्मामेंभी यहां पर बनिस्पत दिगरमुल्कोके गर्मी कमपडती है, बल्कि ! शुभहके वख्त किसीकदर शदीभी मालुमहोती है,-मोहानागांवसें आगे एक मौजा-जिसकानाम गणेशपुरा है,-मिलेगा,
US [तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर ] हस्तिनापुर एक पुराना शहरहै-तीर्थकर रिषभदेव महाराजने साधुपनेकी हालतमें वैशाख सुदी तीजके रोज अपने वार्षिक तपका पारना यहां कियाथा, तीर्थकर शांतिनाथ महाराज इसी हस्तिनापुरमें पैदाहुवे, चवन-जन्म--दीक्षा-और--केवलज्ञान-ये चार कल्पाणिक उनके यहांहुवे, विश्वसेन राजाके घर अधिरा रानीकी-कुखसे जेठबदी (१३) भरणी नक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, तीर्थकर शांतिनाथ महाराज चक्रवर्ती पदवीके धारक हुवे और बहुत अर्सेतक उनोने यहांपर अमलदारीकिइ, पेस्तरदीक्षालेनेके एक सालतक उनोने यहां खेरातकिइ, और जेठ वदी ( १४ ) के रौज दुनिया फानीसरायकों छोडकर उनोने यहां दीक्षा इस्तियार किइ, पौष मुदी (९ ) के रौज उनोकों यहां केचल ज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवते वगेरा उनकी खिदमतमें हाजिर होतेथे,-सतराहमें तीर्थकर कुंथुनाथ महाराजभी इसीहस्तिनापुरमे पैदाहुवा,-चवन-जन्म-दिक्षा-और-केवलज्ञान--ये-चारकल्याणक उनके यहांहुवे, सुरराजाके घर--श्रीरानीकी कुखसे वैसाखवदी (१४) कृत्तिकानक्षेत्रके रौज उनका यहांजन्म हुवा, तीर्थकर कुथुनाथ महाराजभीचक्रवर्ती पदवीके धारकथे, और बहुत अर्सेतक उनोने यहांपर अमलदारी किइ, दीक्षाके. पेस्तर एकसाल तक बरा बर उनोनेयहां खैरात किइ, चैतवदी (५) के रौज दुनियांके एशआराम छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, चैतसुदी
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तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर. ( १८१ ) ( ३.) के रौज उनको यहां केवलज्ञानपैदाहुवा, इंद्रदेवतेवगेरा उनकी खिदमतमें आतेथे,____ अठारहमें तीर्थंकर अरनाथ महाराजभी इसी हस्तिनापुरमें पैदाहुवे, चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञान-ये-चार कल्याणक उनके यहां हुवे, सुर्दशन राजाके घर-देवीरानीकी कुखसे मृगशीर्ष मुदी (१०) रेवती नक्षत्रके रोज उनका यहां जन्महुवा, तीर्थकर अरनाथ महाराजभी चक्रवर्ती पदवीके धारकथे और बहुत अर्सेतक उनोने यहांपर अमलदारी किइ, दीक्षाके पेस्तर एकसालतक उनोने यहांबहुत खैरातकीइ, और मृगशीर्ष सुदी (११) के रौज दुनीयवीकारोबार छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार किइ, कार्तिक सुदी (१२) रोज उनोकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, उनकी खिदमतमें इंद्रदेवता हाजिर रहतेथे, ___ उन्नीसमें तीर्थकर मल्लिनाथमहाराज यहां तशरीफ लायेथे, और उनका समवसरण यहांपरहुवाथा,-कौरव-पांडवोका युद्धइसी हस्तिनापुरके मेंदानमें हुषाथा, मुभूमचक्रवर्ती इसीहस्तिनापुरके तख्तपरहुवा, बडीबडी अजुबाबाते यहांपर गुजरचुकी है. बहुत खुशनसीब-इकबालमंद-भालीम-फाजील-जमामर्द--दलेर-और-- बहादूरशख्श यहां पैदाहुवे कहांतक लिखे ? कार्तिकशेठ-इसी हस्तिनापुरके रहनेवालेथे, महर्षि-दमदंत--यहांपर तशरीफलाये और मुकम्मीलइबादत यहांपरकिइ, ऐसीऐसी जडीबुटीयें यहांजंगलमें खडी है जिनके पहिचाननेवाले नहीरहे, तीनतीन-चारचार कोसकेघेरेमें बहुतसी नासपातीयोके द्रख्त, मशलन ! जामुन-अमरुद-अनार-शरीफे-अमरख-शंबल-शिशम--बेल वगेरा हरकिसमके पेंड यहांपरखडे है, पटेराके पेंड जिसकी चटाइ बनजाती है यहां कसरतसे देखोगे,-अय्यामवारीशमें कभीकभी यहां-जवाहि
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( १८२ ) तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर. रातके नगीने जमीनसे निकस आते है इससे सबुतहोता है पेस्तर यहांके लोग बडेमालामालथे,... जोकोइयात्री हस्तिनापुरमें तशरीफलावे अपने खानेपीनेका इंतजाम-मेरट-या-मोहानागांबसे करते आवे, (यानी) आटादाल -धी-सकर-मिठाइवगेरा शाथलेतेआवे,-अगर किसीचीजकी दरकार पडे पूजारीको बुलाकर कहसकतेहो वह इंतजाम करसकेगा,
और गनेशपुरेसें-या--वसुमागांवसें चीजमंगवाकर तुमकोदेसकेगा, खास हस्तिनापुरमें--जहांकि--बडाआलिशान जैनश्वेतांवरमंदिर और धर्मशाला बनीहुइ है यात्रीउसमें कयामकरे, और तीर्थकी जियारतकरे, पेस्तर यहां तीर्थकर शांतिनाथ-कुंथुनाथ-और-अरनाथमहाराजके बडेबडे कीमतीमंदिर बनेहुवेथे, बीचलेदिनोंमें जब हस्तिनापुर विरानहोतागया ऐसा वख्तभी आगयाथाकि-योही दूरपर एकद्रख्तकेनीचे तीर्थकर शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरनाथ महाराजके कदमकी छत्रीही सीर्फ ! कायमरहगइथी. जैनश्वेतांवर श्रावकोंकी आबादी पेस्तरसेही बरवादहोगइथी, जब-जहोरी-परतापचंदजी-पारसान-साकीनकलकत्ता यहांपर तशरीफलाये, और देखाकि-तीर्थ-दिनपरदिन विरानहोजाताहै करीब एकलाखरुपये खर्चकरके उमदा आलिशान जैनश्वेतांबर मंदिर तामीरकरवाया, और संवत् (१९२९) वैशाखमुदी तीज़केरौज उसकी प्रतिष्टाकिइ, एकधर्मशाला निहायत उमदा बनवाइ जिसमें (६) कोठरी और आठदालान बनेहुवेहै, जोकोइ जैन श्वेतांबर यात्रीआतेहै इसीमें कयामकरते है, ज्यादहयात्री आनेपर बेशक ! बिदून दुसरी धर्मशालाके तकलीफहोती है कोइखुशनसीब यहां दुसरी धर्मशाला तामीरकरावे उमदावातहै, बडेतीर्थोमें बहुतसीधर्मशाला बनीहुइ रहती है और वहां दूसरी बनवानेवालेभी बहुत है, मगर तारीफ उसी शख्शकी है जो एसीजगहपर खयालकरे,-
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तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर. ( १८३ ) बगीचा एकयहांपर मंदिरकी पूर्वतर्फबना हुवाहै मगर बंदरोंके सबब द्रख्तोंकी बढवारी कमहोती है, ताहम ! इसमे हरेक किसमके द्रख्त मौजूद है, मशलन ! आम-अमरूद-कमरख-खीरनीअनार-नींबु-चकोतरा-नारंगी-शरीफा-जामुन-जमोआ-सीसमनींबवगेरा, और फुलभी हरेककिसमके पैदाहोते है मंदिरमें मूलनायक तीर्थकर शांतिनाथ महाराजकी करीव देडहाथ बडीमूर्त्तितख्तनशीन है, जो राजासंप्रतिकी तामीरकिइ-वही--निशान इसपर पायेजाते है, दाहनीतर्फ सोमंधर स्वामीकी मूर्ति करीब सवाहाथ बडी जायेनशीनहै और यहभी-राजासंप्रतिहीकी तामीर कराइहुइहै बायी तर्फ तीर्थकर अभिनंदन स्वामीकी मूर्ति सवाहाथवडी जायेनशीन है और उसपर लिखाहै-संवत् ( १६८२ ) जेठवदी नवमी गुरूवारके रौज यहप्रतिष्टित किइगइ,-तपगछके आचार्य-विजयदेव मूरिजीके जमानेमें-विवेकहर्षगणिके शिष्य-महोपाध्याय-मुक्तिशागरगणिने इसकीप्रतिष्टाकिइ, एकपूर्ति करीब पौनहाथ बडी जोतीर्थकर शांतिनाथ भगवानकी है उसपर संवत् ( १९३१ ) लिखा है, नवमूर्ति-सर्वधातुकी-और-एकसिद्धचक्र यंत्रभी-बनाहुवा मौ जूदहै, परकम्माके पास दाहनीतर्फके जिनालयमें तीर्थकर कुंथुनाथ भगवानकी मूर्ति जायेनशीनहै, और उसपर संवत् ( १९३१) लिखाहै, बायीतर्फके जिनालयमें तीर्थंकर-अरनाथ भगवानकी मूर्ति जायेनशीन है और उसपरभी संवत् (१९३१) कादर्ज है,--अधिष्ठात्रीदेवी निर्वाणी--और--यक्ष गरूडकी मूर्ति संवत् ( १९२९ ) वैशाख मुदी तीजकी प्रतिष्टितभी इस मंदिरमें मौजूदहै,
मंदिरका चौक निहायत उमदा-जब-वडीपूजन-पढाइजाती है सबलोग इसीमें बेठतेहै, उपर इसके लोहेकी जाली लगी हुइहै
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( १८४ ) तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर. ताकि-कबुतर-चिडीया वगेरा इसमें-न-जासके, मंदिरके पासजमीन-जहोंरीपरतापचंदजी पारसानकी खरिदीहुइ मौजूदहै अगर कोइ खुशनसीव यात्री यहां दुसरी धर्मशाला-या-मंदिरबनवाना चाहे बना सकते है, इसकी जेर निगरानी आजकल देहलीके जैनश्वेतांबर श्रावकोके ताल्लुकहै, जोकुछ चढापा मंदिरमें चढताहै भंडारमें जमाहोती है. और पूजारीकी तनखाह मुकररहै,
तीर्थकर रिषभदेव महाराजके कदमोकी छत्री-जो-उत्तरतर्फ सवामीलके फासलेपर बनीहुइहै, इसकी पूजावगेरेका इंतजामभी जैनश्वेतांबर संघके ताल्लुकहै, असलमें पुरानीजगह यही है, मंदिरसे छत्रीतकजाते रास्तेमें जो-नाला-आताहै, बहुतसे खजुरीके पेंड-और--ककडी-खरबुजे-कुष्मांड--घियावगेरा यहां कसरतसे पैदाहोते है. पानीयहांपर जमीनमें बहुतनजदीक अगर पांचहाथजमीन खोदीजावे फौरन ! पानी निकलआताहै, जगह सोहावनी और तरहतरहकी जडीबुटीयें यहांपरखडी है, छत्रीमें तीर्थकर रिषभदेव भगवानके कदमतख्तनशीनहै यात्री वहांजाकर दर्शनकरे, छत्री पुरानीहोजानेकी वजहसे इसकीमरम्मत होनादरकारहै, दिवारे इसकी टेडीपडगइहै और कहींकहीं दराजेभी नजरआती है. अगर कोइयात्री इसकी मरम्मत करानाचाहे करीब (५०००) रुपये लगेगे अतराफ छत्रीकेहाता लोहेकेसिकचोंका बनवादियाजाय-और-एक मजबूतदरवजा तयारकरके उसकेकिवाड वनादियेजाय-तो-छत्री की हिफाजतहोगी,-छत्रीपर वेठकर चारोतर्फ नजरकरते है तो शिवाय जंगलके दुसरीकोइचीज नजरनहीआती, चारकोशके फासलेपर गंगानदीकी धारा वहरही है और जगह बहुतही सुहावनी दिखाइदेती है जिसकेवडेभाग्यहो-ऐसे-तीर्थकी जियारतकरे, छत्रीके दर्शनकरके यात्री वापिस धर्मशालामें आवे. जहांसेगयेथे,
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बयान - शहर - अंबाला - और - लुधिहाना. ( १८५ )
हस्तिनापुरकी जियारत करके वापिस उसीरास्ते टेशन मेरट आना, और मेरटसे रैलमें सवार होकर मुल्कपंजाबके जैनतीर्थोकी जियारतको जाना,
( तवारिख हस्तिनापुर खतमहुइ. )
ICSTM
[ बयान- शहर - अंबाला - और - लुधिहाना ]
मेरटसे मेरट कंटोन्मेंट - सरधना - खतौली - मन्सुरपुर-मुजफर नगर - रोहाना- देवबंद-नगाल- टपारी - सहारनपुर- सरसवा कलानोर - जगाद्री - दराजपुर - मुस्तफाबाद-बरारा - केशरी - और - अंबाला केन्टोन्मेंट होते हुवे टेशन अंबालासीटी उतरना, -रैल किराया एक रुपया छ आने नवपाइ, जिलेका सदरमुकाम अंबाला एकअछा शहर है, - तवारिखोंमें बयानहैकि इस्त्रीसनकी चौदहमी शताब्दी में एक अंबाजी नामके राजपुत महाशयने इसकी आवादकिया, - इसीलिये अंबाला नाम मशहुर हुवा - सन ( १८९१ ) इस्त्री की मर्दुमशुमारीके वरुत--अंबालेकी मर्दुमशुमारी मय छावनीके ( ७९२९४ ) मनुष्यों की थी. - बाजार गुलजार और जिसचीजकी दरकार हो यहां मिलसकती है, पूरी - कचौरी मिठाइ - हरवख्त तयार मिलेगी, यात्रीकों कोई तकलीफ न होगी, अंबालेमें रूइअनाज-दरी-और- कपडेकी तिजारत ज्यादह है, - शहर और छावनीवछ सरकारीइमारतें - कचहरी - खजाना - और - स्कुल वगेरा मकानात बने हुवे है, जैन श्वेतांवर श्रावकों की आबादी और मंदिर मौजुद है, यात्री दर्शनकरके आगे लुधियानेकों जावे, -अंबालेसेंसंभु- राजपुरा-सराइबंजार - साधुगढ - सरहिंद गोविंदगढ - खन्नाचावा - दुराहा-सनाहवाल - और डंडारी होतेहुवे टेशन लुधियाना उतरे, रैलकिराया तेरह आने तीनपाइ - अंबालेसे (७१ ) मील -
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( १८६ ) बयान-शहर-अंबाला-और-लुधिहाना. पश्चिमोत्तर शतलज नदीसे (८) मील दखनकी तर्फ-जिलेका सदर मुकाम लुधिहाना एक उमदा शहरहै, सन ( १४४० ) इस्वी में लोदीखानदानके युसुफ और निहंगामके शाहजादोने इसकों
आवादकियाइसलिये लुधिहाना कहलाया,-सन ( १८९१ ) की मर्दुम शुमारीके वख्त लुधिहानेकी मर्दुम शुमारी (४६३३४) मनुप्योंकीथी,-जिला कचहरी-सराय-खेराती अस्पताल और स्कुल अछी लागतके मकान बनेहुवे है, कश्मीरी-काबली-और-पठाण लोग यहां ज्यादह रहते है. शाल-दुसाले-और पश्मिनेका काम यहां लाइकतारीफके बनताहै,-पघडी दुपट्टे और हरेक किसमफी सोदागीरी यहांपर होती है,-बाजार गुलजार खानपानकी चीजें पुरी-कचौरीमीठाइ वगेरा यहां उमदा बनती है,-जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी-और मंदिर यहांपर वनाहुवाहै, यात्री दर्शन करके आगे जालंधरकों-जावे,-लुधिहानेसे रैलमें सवार होकर लाधोवाल-फिलोर-गोराया-फगवाडा-और-चिहेरू होते जालंधर टेशन उतरे, रैलकिराया छआने छपाइहै,-जिलेका सदर मुकाम जालंधर एक पुराना शहरहै, सिकंदरकांचढाइके पेस्तर जालंधर फटौचराजपुतोकी राजधानीथी, सातमी सीमें-चीनके मुसाफिर हवांक्तसांगने जब जालंधर शहरकों देखाथा अपनी तवारीखमें लीखाहै उसंवख्त दोमीलके घेरेमेथा सन (१७६६) के करीब सिख्खोंके कबजेनें आया, जमाने हालमें अमल्दारी अंग्रेज सरकारकी यहां पर जारी है, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारी में जालंधरकी मर्दुमशुमारी ( ६६२०२ ) मनुष्योकीथी, सरकारी कचहरीयां-जनानास्कुल-और-सरायवगेरा पुख्ता मकान बनेहुवे है, जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी और मंदिर यहां मौजूदहै, यात्री दर्शशनकरे, बाजार बडागुलजार पुरीकचौरी-उमदामिठाइ-और गर्मध जबचाहो
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दरबयान-शहर-अमृतसर. (१८७ ) तयारमिलशकता है,-रेशमका काम यहा लाइक तारिफके बनताहै, जालंधरसे खुश्की रास्ते (१८) कोशके फासलेपर होशियारपुर एक अछा कस्बाहै,-जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और मंदिर वहांभीमौजूदहै, फुरसत हो-तो-वहांभी जावे, और अगर फुरसत न-हो-तो जालंधरसे रैलमेंसवार होकर आगे अमृतसरके लिये रवाना होवे-सुरानसी—करतारपुर-हमीरा--बीझ-बुटारी जंडियाला-और-मननवाल टेशन होते अमृतसर टेशन उतरे, रैलकिराया नवआने तीनपाइ,
* [ दरबयान-शहर-अमृतसर, ] मुल्कपंजाबमें अमृतसर एकबडा-नामीग्रामी शहरहै, रेलवे टेशनसें करीब आधमीलके फासलेपर आबादी शुरूहोती है, सवारीकेलिये इक्का-बगी-टेशनपरतयार मिलेगी, सन ( १५७४ ) इस्वीमें सिख्खोके गुरू-रामदासजीने इसको आबादकिया, और अमृतसर नामका एक तालाव बनाया जिसकी वजहसें शहरका नाम अमृतसरं कहलाया,-सन १८०९) इस्वीमें महाराज-रणजितसिंहजीने गोबिंदगढ किला बनवाया,-सन (१८९१ ) कीमदुमशुमारीमें अमृतसरकी मर्दुमशुमारी-( १३६७६६ ) मनुष्योंकी थी,-शाल-दुशाले यहां आलादर्जेके तयार होते है, अंदाज चार हजार कश्मिरी कारीगीर यहां दुशाले बनानेका कामकरतेहै, और (८०० ) रूपये तकका दुशाला यहां तयारहोताहै,-सिख्ख-क्षत्रीय-ब्राहमन-शेठ-साहुकार-अफगान-कश्मिरी-नयपाली-बुखारा वाले-और बलुचीस्तान वगेराके लोग-यहां आबादहै, बाजारमें हरकिसमकी चीजे-पुरी-कचौरी-मिठाइ-जबचाहो तयारहै, टाउ नहोल-अस्पताल-और-स्कुल-वगेरा मकान अछे बनेहुवे है, उनी रेशमी कपड़े-और-कारचोबीका काम यहां लाइक तारीफके वन
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( १८८) दरबयान-शहर-अमृतसरं. ताहै, गालीचे यहांके वडेउमदा-और-दस्तकारीका-कामभी मशहूरहै, मुसाफिरोके लिये शहरमें दो-सराये बनीहुइहै, जैनश्वेतांवर श्रावकोके घर अंदाज पचीस-और-एक-जैनश्वेतांबर मंदिर यहांपर मौजूद है-यात्री-शहरमें जाकर दर्शनकरे.
सिख्खोंका गुरूद्वारा-जिसकों दरवार साहब-बोलते है बीच शहरके वनाहुवा काबिल देखनेके है,-आसपास तालाव करीब (४७५) फुटलंबा-और-उतनाही चौडा-चारोतर्फ सफेद मारबल और कालेपथरोंका फर्स--और--तालावके जलसे उपरतक सफेद मारवलकी सीढियां बनी इहै, ठीकबीचमें सुवर्ण मंदिर जिसकी दिवारोंपर और उपरके भागमें तांबेके पतरे और उनपर सोना लगाहुवाहै इसलिये इसको सुवर्ण मंदिरभी वोलते है, इसमें सिख्खोंका धर्म पुस्तक जिसकों ग्रंथसाहब बोलतेहै रखागयाहै,
और उसका पूजन होता है,-मंदिरकी मंजिलमें एक छोटासा-शीशमहल,--और तालावके एक कनारेसे मंदिर तक जानेका पुल बंधाहुवाहै.
अमृतसरके जैनमंदिरका दर्शनकरके यात्री-पठाणकोट जानेवालोरेलमें सवार होकर पठाणकोटको जावे. वेरका-काठुनंदगालजयंतीपुर-बटाला-छीना-धारीवाल-सोहल-गुरुदासपुर--दीनानगर-परमानंद-जकलारी-और-सारना टेशन होतेहुवे पठाणकोट उतरे रैलकिराया साढेवाराह आने लगते है, पढाणकोटसे कांगडा( ५१ ) मीलके फासलेपर-रास्ता पकीसडकका-और-इका वगी वगेरा सवारीजाती है. किराया पांचरूपये जातेके-और-उतनेही आतेके समझो. रास्ते पडाव तीन-नुरपुर-कोटला-और-शाहपुर जहां दिलचाहे रातको ठहरजाओ, कोइतकलीफ नही,
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तवारिख-तीर्थ-कांगडा. ( १८९ )
( तवारिख-तीर्थ-कांगडा ) जालंधर विभागमें कांगडा एक कस्बाहै. पेस्तर यहां जैनतीर्थ था-अब नहीरहा,-कांगडेकी पूर्वोत्तर हिमालयका सिलसिलाजारी है, गुरूदासपुर-चंबा-होशियारपुर,--और--धर्मशाला नामका कस्वा-कांगडेकी आसपास आवाददै, जिले कांगडेके वनोमें-चीता रीछ-भेडिया-शेर वगेराभी कभीकभी नजर आते है, शीशालोहा-और-तांबेकी खान इस जिलेमें पाइजाती है. ब्यासनदीकी रेतमें कभीकभी सोनाभी मिलताहै. बादशाह अखबरने सन (१५५६ ) में कांगडेपर चडाइ किइथी. जमाने हालमें यहांपर अमलदारी अंग्रेज सरकारकी जारी है, कांगडेकी मर्दुमशुमारी करीब (५३८७) मनुष्योंकी-जबसन (१९०५) अप्रेल महिनेमें भूकंप हुवाथा अजहद नुकशान पहुचाया,-करीब (२) मिनिटतक भूकंप होतारहा. भूकंप क्याथा एकतरहका प्रलयथा, इसके कुछ ऊचे भागपर एक किलाहै, मुसाफिरोंके लिये धर्मशाला यहांपर बनीहुइ है, खानपानकी चिजेसब मिलती है,-कइ अर्सेतक कांगडेका नाम-नगरकोटभी-मशहूररहा, तेहसील-खेराती अस्पताल-वगेरायहां बनेहुवे है,-कांगडेसें भागसु (१०) मीलके फासलेपर आबादहै, और वहांसे हिमालयका सिलसिला मुल्क काश्मिरतक चलागया, कांगडेसें वापिस उसी रास्ते पठानकोट आना. और पठानकोटसे रैलमें सवार होकर जिसरास्ते गयेथे अमृतसरकों आना,-रैलकिराया पेस्तर बतला चुके है,-अमृतसरसे रैलमें सवार होकर छहेलटा-खासा-अटारी-और जालों होतेहुवे लाहोर जंकशन उतरना. रैलकिराया छआने लगते है,
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( १९० ) वयान - शहर - लाहोर-और-गुजरानवाल.
( बयान - शहर- लाहोर - और - गुजरानवाल, - )
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मुल्कपंजाब में रावी नदी के बाये कनारे लाहोर एकबडा नामी शहर है, लाहोरकी मर्दुमशुमारी छावनीकों मिलाकर (१७६८५४ ) मनुष्योंकी - लाहोर शहर मुल्क पंजाब में पुराना है, चीना मुसाफिर वहां सांगने अपने सफरनामे में लिखा है मुल्कपंजाबमें लाहोर शहर वडागुलजारथा, सन ( ९७७ ) इस्वी में लाहोरके तख्तपर छत्रपति - राजा - जयपाल अमलदारी करताथा, बादशाह अखबरने लाहोरकों तरक्कीपर किया, और किलेकों बढाया. बादशाह जहांगीर लाहोर में बहुत मुदततक रहा, सिख्खोंके महाराज रणजित - सिंहने सन ( १७९९ ) इस्वी के अर्सेमें लाहोरपर अमलदारी किइ. जमाने हाल में अंग्रेज सरकारकी अमलदारी यहांपर जारी है, लाहोरकी चातर्फ (१५) फुटउची - इंटोकी दिवार और ( १३ ) दरवजे है, शहरपनाह के बहार चारोंतर्फ पकी सड़क बनी हुइ. - और टेशनके पास एक धर्मशाला मौजूद है, - पानीका नलहरजगह लगा हुवा - और सडकों पर रातके वख्त लालटेनोंकी रौशनी होती है, अनारकली चौक बडा बाजार है, हरेक चीज यहांपर मिलसकती है, - पुरी कचौरी - मिठाइ वगेरा खानपानकी चीजे यहां उमदा बनती है,
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चीफकोर्ट दो मंजिली इमारत बनी हुई है, चिडियाखानेमें तरहतरहके जानवर रखे हुवे है, यहांके गालिचे उमदा और - अमरिका इग्लांड तक भेजे जाते है, रावीनदीपर नावका पुल वधाहुवा - जिं सपर होकर शाहदरा जानेका रास्ता है, रेशम और सोनाचांदी के लेश - लाहोर में - उमदा बनते है, पोस्टओफिस- टेलीग्राफ आफिसअजायबघर - गवर्नमेंट कालेज-छोटी कचहरीयां-मेओ अस्पताल-किला - सिरुखमंदिर - शीशमहल वगेरा बडी लागतके मकानात है,
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बयान - शहर- लाहोर - और - गुजरानवाल
( १९१ ) छावनी मियांमीर - लाहोरसें - तीनमीलदुरहै, शालामार बाग - टंकशाल दरवजेसें ( ६ ) मीलके फासलेपर काबिल देखनेकी जगहहै, सन ( १६३७) में बादशाह शाहजांके हुकमसें बनाया
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गयाथा, -
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लाहोरसें राविंड और - खानावाल जंक्शन होतीहुइ एकरैलवे लाइन मुलतानकोंभी गइ है, जोकि आगे - सिंध हैदराबाद और करांचीतक जारी है, मुलतान शहर बडा है, - जैन श्वेतांवर श्रावकोके घर अंदाज ( २० ) और - एक जैन श्वेतांबर मंदिर बाजार चुडीसराय में बना हुवा है, मूलनायक तीर्थकर पार्श्वनाथ महाराजकी मूर्ति संवत् ( १५६४ ) की प्रतिष्ठित इसमें तख्तनशीन है, दुसरी एकमूर्त्तिजोकि - बादामी रंगकी है राजासंप्रतिके वख्तकी बनी हुइ - वही निशानात उसपर पाये जाते है जोराजा संप्रतिकी बनाइ मूर्त्तिपर होते है, मुलतानसे डेहरा गाजीखान - नजदीक है और वहांभी जैन श्वेतांवर श्रावकों की आबादी और मंदिर है, - यात्रीकों- मुलतान जानेकी फुरसतहो तो जावे-और- अगर फुरसत - न - होतो शहर गुजरानबालको जाय,
[ बयान- शहर - गुजरानवाल. ]
लाहोरसें रैलमें सवार होकर बादामीबाग - शाहदरा - मुरीदकी कामोकी - और - अमीनाबाद होते गुजरानवाल टेशन उतरे, रैलकिराया सात आने - नवपाइ लगते है, जिलेका सदर मुकाम गुजरानवाल एकअछा शहर है, मर्दुमशुमारी गुजरानवालकी (२६७८५) मनुष्यों की लाहोरके महाराज रणजितसिंहके वालिद यहां रहते थे, जमाने हालमें अमलदारी यहांपर अंग्रेज सरकारकी जारी है, जिले गुजरानवाल के पश्चिमोत्तर चनाबनदी - और - शाहपुर जिला है, दखनपश्चिमकों झांग- मोंटगोमरी - लाहोर जिला - और - पुरवको
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( १९२) तवारिख-तीर्थ-वितभयपत्तन. स्यालकोट जिलाहै,शहर गुजरानवालका बाजार अछा-और-हरेक किसमकी चीजें यहांपर मिलसकती है, दिवानी-फोजदारी कचहरियां-सडक लंबीचौडी-और-मकान पकेवनेहुवे है, शालदुशाले और रेशमका काम यहां अछा होताहै, जैनश्वेतांबर श्रावकोंके घर करीब ( ७५ ) और--एक--जैनश्वेतांबर मंदिर यहांपर बनाहुवाहै, यात्री दर्शनकरे, आधेमीलके फासलेपर जैनश्वतांवराचार्य-न्यायांभोनिधि--महाराज आत्मारामजी-आनंदविजयसूरिजीके चरनोंकी छत्री बडी लागतसे बनीहुइहै,-यात्री वहां जाकर गुरूवंदनका फायदा हासिल करे, और फिर गुजरानवालके आगे वितभय पत्तननगर जिसका नाम आजकल भेरा कस्बा बोलते है जावे. टेशन गकर-वजीराबाद-कैथला-शहर गुजरात-लाला मुसाजंकशन-जौराह-डिंगा-चिलियानवाल-बहउद्दीन--आला--हरिवाह-मुल्कोवाल जंकशन-मियानी-हुजुरपुर-होते भरा टेशन उतरे गुजरानवालसे वजीराबाद तक रेलकिराया करीब तीनआने नवपाइ, वजीराबादसे लालामुसातक तीनआने नवपाइ, लालामुसासें मुल्कोंवालतक आठआने छपाइ, और मुल्कोंवालसें मेरेतक तीनआने तीनपाइ लगते है,
me [तवारिख-तीर्थ-चीतभयपतन,-]
आवश्यक मूत्रमें-इसकानाम वितभय पतन नगर लिखाहै, जमाने तीर्थकर महावीर स्वामीके-यहांपर-राजा उदयन-अमलदारीकरताथा, जोकि-वितभय *उदयनके नामसे मशहूरथा, उसवख्त शहर बडागुलजार और बेशुमार दौलतथी, बडेबडे जैन मंदिर और-इमारते पायदार संगीन वन हुइथी. राजा उदयन पेस्तर जैन
* कौशांबीका राजा उदयन वत्सउदयन कहलाताथा.
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तवारिख-तीर्थ-वितभयपत्तन. (१९३ ) नहीथा,-पीछेसे जैन मजहषपर पावंदहुवा, उसकी पटरानी प्रभावती पेस्तरसेही जैन मजहबसे ताल्लुक रखतीथी जोकि-विशाला नगरीके चेंडा राजाकी बेटीथी. जब-गांधार नामका श्रावक जैन तीर्थोकी जियारत करताहुवा यहां आयाथा, उसके साथ तीर्थकर महावीर स्मामीकी चंदनमय मूर्तिथी, राजा उदयनके दरबारमें उसकी बडी तारीफहुइ, गांधार श्रावकने खुशहोकर वहमूर्ति-राजा उदयनकीरानी प्रभावतीकों दिइ, और प्रभावतीने अपने जेबखर्चसें एकबडा आलिशान मंदिर बनवाकर उसमें-वह-मूर्ति तख्तनशीन किइ, हरहमेश उसकी पूजन करतीरही, जब प्रभावतीने-दुनीय वीकारोबार छोडकर दीक्षा इख्तियार किइ, और उसका इंतकाल हुवा, उज्जेनका राजाचंडमद्योत पोशिदगीसे वीतभय पतनमें-आया और एक स्वर्ण गुलिका दासी-और-उसमूर्तिकों उज्जेन लेगया, जब उदयनकों यहबात मालूम हुइ बडी फौजलेकर चंड प्रद्योतका पीछा किया-मारवाडके रास्ते मुल्क मालवेमें जाकर शहर उज्जैन को घेरा, चंड प्रद्योतभी बडी तयारीसे सामने आया और दोनोंका जंगहुवा, आखरीश-चंड प्रद्योतने सिखस्तखाइ, और उदयनकी फतेहहुइ,-इस किस्सेका कुछ हिस्सा उज्जेनकी तवारिखमें बतलायगें, यहांइतनाही लिखना काफी हैकि-उदयनकी फतेह हुइ और अपनेवतन वितभय पत्तनकों लोटआया,
भैरेकस्बेकी मर्दुमशुमारी ( १७४२८) मनुष्योंकी--बाजार रवन्नकदार-और-हरेक किसमकीचीजें यहांपर मिलसकती है, पेस्तर जैनश्वेतांबर श्रावक यहां बहुतथे, मगरदिनपरदिन कमहोते गये, थोडे अर्सेकी बातहै दोचार श्रावकथे-मगर-वेभी . शहरगुजरानवाल तर्फ चलेगये, एक-जैनश्वेतांवर मंदिर यहांपर मौजूदहै, और एकपूजारी तैनातहै, आये गये यात्रीयोंसे खर्चचलताहै,
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( १९४ ) बान-शहर-जंबु-और-काश्मिर. ऐसी जगहपरकोइ यात्रीमंदिरकी मरम्मत करावे-औरधर्मशाला बनवावे बहुतअछीबातहो, वरना ! जोकुछ अबहै वहभी-न-रहेगा, यात्री यहां आनकर मंदिरके दर्शनकरे, और जोकुछ बनपडे तीर्थमें देवे, तीर्थमें खेरात करना वडापुन्यहै, भैरेके पास-पिंडदादन खानमें जैनश्वेतांबर श्रावककोंके घर पनराह बीस आवादहै, तीर्थ वितभयपतनकी जियारत करके यात्री रैलमसेवार होवे और मुल्कोवाल जंकशन होतेहुवे वापिस लालामुसाजंकशन आवे, लालामुसासे शहर गुजरात और केथला टेशनहोते वजीराबाद जंकशन उतरे, रैलकिराया पेस्तर लिखचुके है, वजीराबादसे जंबुजानेवाली रैलमें सवार होकर-सोधरा-बेगोवाला-संब्रियलउगोकी-स्यालकोट-डालोवाली-सुचेतगढ-रणविरसिंह-मिरानसाहब-और-सतवारी केंटोन्मेट टेशनहोते-जंबुकेपास टावीटशनउतरे, वजीराबादसे यहांतक रैलकिराया नवआने नवपाइ लगतेहै,- .
बयान-शहर-जंबु-और-काश्मिर. ] ... मुल्क काश्मिरकी अमलदारीमें राज्यकी दखनपश्चिम सीमाके पास-चनाबनदीकी सहायक टावीनदीके कनारे जंबु एक निहायत उमदा शहरहै, काश्मिर महाराजका तख्त जंबुमभी है और श्रीनगरभी राजधानी कामिरहीकी है, सन ( १८९१ ) की मर्दुमाधुरीमें जंबुकी मर्दुमशुमारी ( ३४५४२ ) मनुष्योकीथी, राजमहल नदीके दाहने कनारे और किला वाये कनारे पर नदीकी सतहसे (१५०) फीट उपरकों है, जंबुका बाजार बहुत अछा और हर किसमकी चीज यहांपर मिलसकती है, मकान उमदा और खूबसुरत वनेहुवे यहांसे श्रीनगरतक सोदागीरीका मार्ग-और आमदरफत होतीरहती है, मुल्ककाश्मिरमें पेस्तर जैनोकी आवादीऔर जैनमंदिरथे. मगर अब नहीरहे, यात्री अगर क्षेत्रफरसना करना चाहे-तो
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बयान - शहर - जंबु - और - काश्मिर . ( १९५ )
खुश्किस्ते श्रीनगर जासकते है, इक्का-बगीजाती है, रैलनहीगइ,मुल्क काश्मिरमें श्रीनगर वडा शहर है, सन ( १८९१ ) कीमर्दुमशुमारी में श्रीनगरकी मर्दुमशुमारी (११८९६० ) मनुष्यों की थी राजमहल काबिल देखनेके बने हुवे है, गर्मीयोंके दिनोंमें काश्मिरके महाराज - जंबुसे यहां आनकर रहते है, महाराजगंज बाजार नामी और जिस चीजकी दरकारहो - यहां मिलसकती है, शालदुशाले यहां उमदासे उमदा बनते है और यहबात आममुल्कोमें मशहूर है कि दुशाले काश्मिरके मानींद किसी मुल्क में नहीवनते, रेशमी दस्तकारीभी यहां उमदा बनती है, -- स्कुल - अस्पताल - और - टंकशालघर अछे मकान बने हुवे है, - - और - राममुन्शीबाग काबिल देखनेकी जगह है, - काश्मिरके पहाड - नदी - झील -और बन बडेसोहावने और जाके दिनों में यहां ठंड बहुत पडती है, बल्कि ! पहाडोंपर बर्फ जमजाती है. बादाम-पिस्ते - सेव - अंगुर - नासपाती आलुचा - शाहदाना - सहतुत - और - अखरोट वगेरा मेवा यहां ज्यादह होता है, जेहलमनदी काश्मिरसें निकसीहुइ और दुसरी कइ छोटी नदी भी इसमे आकर मिली है, काश्मिरमें कइ - खानें लोहेकी और जंबुकी पहाडियोमें सुर्माभी पैदा होता है, कस्तुरियेमृग - वराहसिंगा - - और - बडा हिरणभी यहांकी पहाडियों में अकसर नजर आता है, पामपुरमें केशर पैदा होती है, काश्मिरके आदमी बडे मजबुत और खुबसुरत होते है, - काश्मिर में संस्कृत विद्याकी पेस्तर बडी तरक्कीथी बडेबडे आला दर्जेके पंडित यहां होचुके यात्री - जंबुसे रैलमे सवार होकर वापिस उसी रास्ते वजीराबाद जंकशन आवे, -रैलकिराया अवल लिख चुकेहै, -
--
वजीराबादसे - गुजरानवाल -- लाहोर - अमृतसर - जालंधर - लुधि हाना - अंबाला - मेरट होते वापिस गाजियाबाद आना, रैलकिराया
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( १९६ )
तवारिख - तीर्थ - कंपिलपुर.
और रास्ता पेस्तर बतला चुकेहै, - टाइमटेबलमें सब कातका खुलासा लिखा रहता है देख लेना, - मुल्क पंजाबमें- शतजल-ब्यासा-रावी चनाव - और - जेहलम - येपांच बडीबडी नदीयां है, और इसी सबबसें इसका नाम पंजाब कहलाया, संस्कृत जवानमें पांचाल बोलते है, गाजियाबादसँ तीर्थकंपिलपुरकी जियारत के लिये रैलमें सवार होकर - मारीपट - दाद्री - अजायबपुर - सिंकंदराबाद - - वायर - चोला बुलंद शहर - खुर्जा- डामर - सोमना - कुलवा - अलिगढ - माद्रक - सासनी - हाथरससीटी ( अँड ) - हाथरस रोड - रतिकानागला - सिकं दरारोड -- अगसोली- मरेहरा- काशगंज- बधारकला - साहावारटाउन-गंजडुंडवारा--पटियाली- दर्वावगंज - और - रुदैन होते हुवे कायम गंजटेशन उतरना, गाजियाबादसे हाथरस जंकशन तक रैलकिराया एक रूपया एक आना, और हाथरस जंकशनसे कायम गंजतक चौदहआने लगते है, -
[तवारिख - तीर्थ - कंपिलपुर ]
'टेशन और कायमगंजके बीच एककोशका फासला है, सवाकेलिये इar - बगी - तयार मिलती है शहरमें जाकर सरायमें ठहरे, सराय यहांपर दोबनी हुई है एक बीचशहरके और दुसरी बहार, तीर्थ कंपिलपुर यहाँसे तीनकोशकेफासले पर वाके है, सडक कच्ची बनी हुई इक्का - बगी - मजे में जासकते है, कायम गंजसे शुभहके वख्त रवाना होकर जियारत करके शासकों वापिस आसकतेहो, खान पानकी चीजे वहां पर मिलसकेगी मगर उमदातौरपर नही, बहेतर है कायमगंज से इंतजाम करतेजावे - कंपिलपुर पेस्तर बडा गुलजार शहरथा, तेरहमे तीर्थकर विमलनाथ महाराज इसीकंपिलपुरमें पैदाहुवे - चवन - जन्म - दीक्षा - और - केवलज्ञान - ये - चार कल्याणक उनके यहां हुवे - कृतवर्मा राजा के घर - श्यामा रानीकी कुखसे माघ
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तवारिख-तीर्थ-कंपिलपुर. (१९७ ) सुदी (३) उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रकेरौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत अर्सेतक उनोने कंपिलपुरके तख्तपर अमलदारी किइ, दीक्षाके पेस्तर उनोने यहांपर बहुत खैरात किइ. माघशुदी (४) के रौज उनोने दुनियाके एशआराम छोडकर दीक्षा इख्तियारकिइ पोषसुदी (६ ) के-रौज उनको यहां केवल ज्ञानपैदा हुवा, इंद्र देवते उनकी खिदमतमें आतेथे. दसमे चक्रवर्ती हरिषेण-औरबारहमे चक्रवर्ती ब्रहमदत्तजी इसीकंपिलपुरमें हुवे. बडेबडे दौलत मंद यहांपर पेस्तर आवादथे. तीर्थकर महावीर स्वामीके निर्वाण हुवेबाद ( २२० ) वर्ष पीछे अश्वामित्र नामकेचोथे निन्हव इसीकंपिलपुरमें आनकर सुधरे, गांगलिकुमार इसीकंपिलपुरका वाशिंदा था, जोकि-पृष्ट चंपानगरीके राजा-शाल-महाशालका-भानजाथा, पृष्ट चंपानगरी हिमालय पहाडकी उत्तरकों मुल्क तिब्बतमें आबादथी, जब-शाल-महाशालने दुनियाछोडकर तीर्थंकर महावीर स्वामीके पास दीक्षा इख्तियार किइ, अपने भानजे गांगलिकुमारकों कंपिलपुरसे बुलाकर अपनीगदीदिइ और आप मुनि होगये, दुर्मुख नामका राजा जोइसी कंपिलपुरमें अमलदारी करताथा एक रौज जब बागकीसैरकों निकला एक मोटाताजा बेल रास्तेमें उसकी नजरसे गुजरा, देखकर दिलमें निहायत खुशहुवा और कहनेलगा क्या उमदा बेलहै, दुसरे रौज वही बेल मरगया, और उसीरास्ते पडाहुवाथा जिसरास्तेसे राजादुर्मुख फिरनिकले, और देखते है-तो-वही बेल मराहुवा नजर आया, इस परसे उसकों नसीहतहुइकि-दुनियामें-एकदिन सबकों मरनाहै, इससे यहीमुनासिबहै दुनयवी कारोबार छोडकर दीक्षा इख्तियार करना, दुसरे रौज उनोने वैसाहीकिया,
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Ans.MAAWAAAA
( १९८ ) तवारिख-तीर्थ-कपिलपुर. .... द्रुपदराजाकी कुंवरीद्रौपदी इसी कंपिलपुरमें पैदाहूइथी, और उसका स्वयंवर मंडप यहांही रचागयाथा, जो खन्नक और आवादी पेस्तरथी अब नहीरही, आजकलकरीब (६००) घरोंकी आबादीका कस्वा रहगया, जैनश्वेतांबर श्रावकोका घर एकभी नहीरहा, बाबु छोटालाल सरूपचंद साकीन लखनउका तामीर करवायाहुवा-तीर्थकर विमलनाथ महाराजका बडाआलिशान मंदिर यहां पर मौजूद है, जिसकोअंदाज पचास वर्ष हुवेहोगे, पेस्तर जबकिचक्रवर्ती राजाओका जमानाथा बडेबडै जैन मंदिर और मूर्तिये यहांपरथी, तीर्थो यह अकसर होता चलाआया एक मंदिर पुराना होकर गिरगया किसी खुशनशीबने उसकों फिरसे बनवाया, इसीतरह तीर्थ कायम बनारहताहै, इसमंदिरमें मूलनायक तीर्थकर विमलनाथ महाराजकी मूर्ति तख्तनशीनहै, दोनोंतर्फ दो-मूर्तितीर्थंकर चंदाप्रभुकी और आगे तीर्थंकर महावीर स्वामीकी मूर्तिभी इसीवेदीमें जायेनशीनहै, दर्शनकरके दिल खुशहोगा, अतराफ मंदिरके कोट पकाबनाहुवा-और-चारकोनेमें चार छत्रीये कायमहै उनमे तीर्थकर विमलनाथ महाराजके-चवन-जन्म-दीक्षा-और केवलज्ञान-ये-चार कल्याणक और-उनके-कदम जायेनशीनहै,मंदिरके कोटके नीचे एकतर्फ इसकदर खड्डा होगयाहैकि-चारीशके दिनोमें पानीकी मारसे कोटको खतराहै, अगर पथर और चुनेसे उसखड्डेकों भरादिया जाय और पानीके जानेका रास्ता बनादिया जायतो कोटकीहिफाजत बनीरहेगी और तीर्थ कायम रहेगा, बडे तीर्थोमें बहुतसे मंदिरवनेहुवेहै मगर ऐसे तीर्थोंमें नया मंदिरवनाना या-पुराने मंदिरकी मरम्मत कराना बडेपुन्यका कामहै,
धर्मशाला यहांपर एक निहायत पुख्ता भंडारी मुंनालाल साकीन फरक्काबादकी बनवाइडइ मौजूदहै, जिसमें ( २५० ) आ
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तवारिख - तीर्थ-मथरा.
( १९९ )
दमी बखूबी कयाम करसकते है, इसकों बनेबहुत अर्सा होगया इसकी मरम्मत होना दरकार है, -आगेका दरवजाभी मरम्मत होनेके काबिल है, इसतीर्थकी जेरनिगरानी लखनउके जैन श्वेतांवर श्रावक लोग करते है. मंदिरका खर्चा - और - पूजारीकी तनख्वाह वगेरा भी लखनउके श्रावक देते है, अगर कोई यात्री अपनी दौलत खर्च करना चाहे ऐसे तीर्थ में करे, तुमने अकसर कइदफे देहली आगरेकी सफरकि होगी मगर कंपिलपुर तीर्थकी जियारत नही कि डेअपशोसकी बात है, खेर ! अबभी खयाल रखो, जिसके बडेभा हो ऐसे तीर्थकी जियारत करे, कंपिलपुरकी जियारत करके यात्री कायमगंज वापिस आवे, और कायमगंज से रैलमें सवार होकर हाथरस रोड आवे, रैलकिराया पेस्तर लिखचुके है, हाथरसरोडसे मेंडु - हाथरस सीटी - मुरसान - राया - मथुरा केन्टोन्मेन्ट होते मथरा सीटी उतरे, रैलकिराया चारआने, -
( तवारिख - तीर्थ - मथरा . )
पश्चिमोत्तर प्रदेश आगरा विभाग में जमनाके दाहने कनारे जिलेका सदर मुकाम मथरा एक पुराना शहर है. जैनशास्त्रोंमें इसके आसपासकी जमीनको सुरसेन देश लिखा है, तीर्थंकर सुपार्श्वना थजी वख्त यहां बहुतसे जैनमंदिरथे, यादव कुल दिवाकरसमुद्र विजयजी - उग्रसेनजी - और - वसुदेवजी वगेरा दशदशावरवीर पुरूष इसी मथुरा में हुवे, कृष्न वासुदेव और उनके बडे भाइ बलभद्रजी यहांही पैदाहुवे जो दुनिया में बडे नामी ग्रामी और मशहूर कहलाये. १ - अर्कस्थल, २ - चीरस्थल, ३ - पदमस्थल, ४- कुरूस्थल, और-५-महास्थल येपांच यहां पेस्तर बडेबडे स्थलथे, - लोहजंघवन - मधुवन-छिल्लवन -- तालवन - कुमुदवन-वृंदावन
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( २०० ) तवारिख-तीर्थ-मथरा. भंडीरवन-खदीरवन-कामितवन-कोलवन-बहुलवन-और-महावन ये-(१२) वन यहांपर थे. इनमेंसे कइ मौजूदहै, कइनहीरहे, वृंदावन इसवख्त बहुत तरक्की परहै, जैनाचार्य आर्य रक्षितमूरि यहां तशरीफ लायेथे उसवख्त जैनोंकी आबादी यहां अछीथी. स्कंदिलाचार्य ने यहां जैनसंघको इकठाकरके जैनागमका अनुयोग प्रवायाथा, जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणने महानिशीथसूत्रका यहां अनुसंधान कियाथा, कृष्नजीकी जन्मभूमिहोनेसे वैश्नव संप्रदाय वाले-शहर मथराको बडा तीर्थ मानते है. उनकी संप्रदायके बहुत मंदिर और विश्रामघाट वगेरा कइ घाट यहां बनेहुवे है. चीना मुसाफिर-फाहियान-और-हवांक्तसांग जब हिंदुस्थानकी सफरकों आयेथे-उनोने अपने सफरनामेमें लिखाहै हमने मथराको देखा फाहियान अवल आयाथा, हवांक्तसांग ( २५० ) वर्षके बाद आया हवांक्तसांगने लिखाहै उसवख्त मथरामें ( २० ) बौद्धमठथे,-मथराजिलेमें बहुतेरे गांव--उपवन:-और--कुंजोसे घेरे हुवे है, जिलेकी खास फसल गेहु-जवार-बाजरा--कपास-औरउखहै. सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त खास शहर मथराकी मर्दुमशुमारी ( ६११९५ ) मनुष्योंकीथी, बडी बडी सडके बहुतेरे मंदिर और मकान-पथरके बनेहुवे है, बाजार लंबा चोडा
और हरेक किसमकी चीजें यहां मिल सकती है, बडीवडी आलिशान इमारतें बागबगीचे-और दौलतमंद लोग यहां आबादहै. महोले घियामंडीमें एक जैनश्वेतांवर मंदिर बनाहुवाहै, थोडे वर्स पेस्तर जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादीभीथी, मगर जमाने हालमे कमहोगइ, इसलिये इस मंदिरकी जेरनीगरानी लशकर गवालियर के जैनश्वेतांबर श्रावक लोगरखते है. इसमें मूलनायक तीर्थकर पार्श्वनाथ भगवानकी मूर्ति-निहायत खूबसुरत एक विलस्तवडी तख्त
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तवारिख-तीर्थ-मथरा. (२०१ ) नशीनहै, बायीतर्फ एक पुरानी मूर्ति जोकरीव देढहाथबडी है दर्शन करके दिल खुशहोगा, मथराके बहार थोडी दूरपर जो जैन टीला पुरानी जगहहै, कहतेहै यहां जैनोकी आबादी और मंदिरथे. मगर अब तमाम विरानहै, जब-सर-ए-कनिंगहाम साहबने-पुराने शिला लेखोंकी तलाश किइथी-तो-कइजगहसे पुराने लेखमिलेथे, एकलेखमें लिखाहै, सिद्धं० संवत् (२०) गृष्यरूतुका पहला महिना तिथि पुनमके रौज जयपालकी माता-वि-की-स्त्री-दत्तिलकी पुत्रीदत्ताने यहकीर्तिमान वर्द्धमान स्वामीकी मूर्ति चतुर्विध संधको अर्पण किइ. और कौटिक गछ-वाणिज्यकुल वज्रीशाखाके सीरी भागके आर्यसिंह-आचार्यने इसकी प्रतिष्टाकिइ, दुसरे लेखमें लिखाहै अरिहंतकों नमस्कार सिद्धकोनमस्कार संवत् (६०) उष्न रूतुका तिसरा महिना तिथि पंचमीके रौज यह स्थान उस समुदायके उपभोगकेलिये दियागया जिसमे चारवर्गका समावेश होताहै, दुसरा अर्थ यहभी निकलताहैकि-एकएक वर्गके लिये इसका एकएक हिस्सा देनेमें आयाथा, तीसरे लेखमे लिखाहै सिद्धं महाराज कनिष्कराज्यके संवत् ( ९० ) महिना पेहले तिथि पंचमीके रौज ब्रहमाकी पूत्री-भट्टि मित्रकी स्त्री-विकटाने सब जीवोंके फायदेके वास्ते-यहकीर्ति मान वर्द्धमानकी प्रतिमा बनवाइ. इसकी प्रतिष्टा कौटिकगण-वाणिज्यकुल-और-वयरी शाखाके आचार्य नागनंदीने किइ, चोथैलेखका पुरेपुरा समाधान मिलना मुश्किलहै लेकिन ! अवलपंक्तिके एकटुकडेकेदेखनेसे मालूम होताहैकि-यह अपर्णकरनेका काम एकत्रीसे हुवाथा-और वह अमुक पुरूषकी-स्त्री तरीके लिखने में आइथी. दूसरीपंक्तिमें कौटिक गगतः प्रश्नवाहनतः कुलतो मध्यमातः शाखातः लिखाहै, पांचमें लेखका मतलब यहहैकि-वर्ष
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( २०२ )
तवारिख - तीर्थ - मथरां.
(४७) उनका दुसरा महिना मीति विरामीके रोज यह एक पानी पीनेका स्थान अर्पण करनेमें आया, छठे लेखमे लिखाहै अरिहंत महावीरकों नमस्कारहो, राजावासुदेवके संवत् ( ९८ ) वर्षारूतुका चौथा महिना ( ११ ) के यह एक स्त्रीकी तर्फसे वनवायीगs. और पारिहासिक कुलकी पौर्णपत्रिका शाखाके आचार्य आर्यरोहने यहस्थापन कि यह लेख एक अलगपाषाण पर है इस लिये निश्चय नही कियाजाताकि-यह-क्याचीज स्थापनकि,
इनमें जो अवल लेखकी अखीरमें कौटिकगछ- वाणिज्यकुलवज्री शाखावगेरा नामदर्ज है जैन श्वेतांबर आम्नायके कल्पसूत्र से संबंध रखते है, तीसरे लेखकी अखीरमें जो कीर्त्तिमान वर्द्धमान स्वामीकी मूर्ति - कौटिक गछ- वयरीशाखा के आचार्य नागनंदीने प्रतिष्ठित कि लिखा है, यह मूर्ति जैन श्वेतांबर आम्नायकी सबुत सबुत होती है, क्योंकि - कौटिकगल - वयरीशाखा - कल्पसूत्रमें साफ जाहिर है, और कल्पसूत्र जैन श्वेतांवर आम्नायका सूत्र है, जमीन से निकलेहुवे शिलालेखका और कल्पसूत्रका पाठ एक मिलगया, - चोथे लेखक अखीरमें कौटिकगछ- प्रश्नवाहनकुल - मध्यमा शाखा लिखा है - छठे लेखकी अखीरमें पारिहासिक कुल और पौर्णपत्रिका शाखा लिखी- ये सब शाखा - कुल - और गणभीजैन श्वेतांबर आम्नायके शास्त्र - कल्पसूत्र से संबंध रखते है. जोजो संवत् लिखाहै हिंदुस्थान और सीथियादेशके - बीचके राजा कनिष्क और वासुदेवके जमानेके है, अबतक इन संवत्सरोकी शुरूआत मालूम नही हुई मगर इतना सबुत होसकता है कि - हिंदुस्थान और सीथिया देशके राजाओं का राज्य इस्वी सन के अवल सेकडेकी अखीर सें- और
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दरबयान-शहर-आगरा. . (२०३ ) दुसरे सेंकडेके पौन भागसें कमनही होसकता. क्योकि-इस्वीसन (७८) वा-(७९) के वर्षमें कनिष्कमहाराज-तख्त नशीन हुवा सबुत होचुकाहै,
मथराकी जियारत करके जो यात्री वृंदावन जानाचाहे तो व जरियेरैल जासकते है.मथरासे (६) मील उत्तर यमुनाके दाहने कनारे वृंदावन एक गुलजार कस्वाहै. मथरा छावनीटेशनसें (८) मीलकी रैलवेशाखा वृंदावनको गइहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुममशुमारीके-वख्त-वृंदावनकी मर्दुमशुमारी (३१६११) मनुष्यो की-जैन श्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी यहांपर नहीरही, बाजार लंबाचोडा-और-हरेक किसमकी चीजे यहांपर मिलसकती है, निजवन-सेवाकुंज-कालिद्रह-और-चीरघाट-अलग अलग स्थानबने हुवे है, वृंदावनसे यात्री-वापिस मथरा केन्टान्मेट टेशनको आवे, और वहांसे आगरे जानेवाली रैलमें सवार होकर-भंसा-पारखाम और अचनेरा जंकशन होतहुवे आगरा फोर्ट जावे. रैलकिराया छआने लगते है,
1 [बयान-शहर-आगरा, जमनाके दाहने कनारे जिलेका सदरमुकाम आगरा एक अजिब और नायाब शहरहै, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त आगरेकी मर्दुमशुमारी ( १६८६६२) मनुष्योंकीथी. आगरेकादूसरानाम अकबराबादभी बोलतेहै, करीबटेशनके धर्मशाला पनीहुइ और किरायेकेमकानभी मिलसकतेहै, यात्री जहां सुभीता देखेकयाम करे, शहरके मकान निहायतखुबसुरत ओर पथरके पनेहुवे जिनपर खुली छत देखकर दिलखुशहोगा, सडकेलंबीचोड़ी बजार गुलजार-पुरीकचौरी मेवामियइ-शाल दुशाल और तरह
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( २०४ )
दरबयान - शहर - आगरा.
तरहकी चीजे यहां पर मिलती है, शामकेवख्त बडीरवन्नक देखोगे. जगह जगह परखुमचेवाले तरहतरहकी मीठाई और चुरनवाले चुरन बेच रहे है, अमीर उमराव उमदापुशाक पहनेदुवे शामको जबहवाखोरीको निकलते है वही रवन्नक मालूम देती है, जैनयात्री लोनमंडी और रोशनमहोलेमंजाकर जैनमंदिरो के दर्शनकरे, बडेबडे आलिशान जैन श्वेतांबर मंदिर बने हुवे है, जिनमें चिंतामणी पार्श्वना थजीका मंदिर बडाखूबसुरत है, जबकि - जैन श्वेतांबराचार्य हीरविजयसूरिजी शहर आगरेमें तशरीफलायेथे जैनधर्मकी तरकी अच्छी हुइथी. जमानेहाल में जैन श्वेतांवरश्रावक के घर यहांपर ( २० ) के अंदाज है. - कड़बागबगीचे और मकान वडेही सोहावन बने हुवे है,
जमनाकेकनारे पकाघाट-और-रैलका दोमंजिला पुल- निहायतपुख्ता बंधावा, आगरेमें कारचोबीका काम - पथरका कामऔर विछानेकी दरी उमदावनती है. जमनाके दाहनेकनारे आगरेका किला एकदेखनेकी चीज है, और जोकोइ उसमें जाना चाहे पासलेकर देखनेकों जायाजाताहै, सन ( १५६६ ) इस्वी में बादशाह अकबर ने इसकों तामीर करवाया, दिवानेआम - दिवानेखाससुनहरा सायवान - अंगूरीबाग - शीशमहल वगेरा कीमती मकान इसमें बनेहुवे है, किलेसें - एक मीलके फासलेपर जमनाके दाहने कनारे ताजमहल एक मशहूर मकान है, सन ( १६३० ) इस्वीमें बादशाह - शाहजहांने अपनी मुमताज महलबेंगमकी कबरके लिये बनवाना शुरू किया जोकि ( १७ ) वर्ष के असमें तया रहुवाथा, चातर्फ बाग - चारसडके - जलके फवारे - होज - मारवल पथरका - फर्स - कs कमरे - महेरा - और चारोंतर्फ चारमनारे बनेहवे है, जैन यात्री आगरेके जैनमंदिरो के दर्शन करके तीर्थ - शौरीपुरकी जियारत कलिये रवानाहोवे, आगरेसें- कुबेरपुर - एतमादपुर-टुंडला जंकशन
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तवारिख-तीर्थ-शौरीपुर. (२०५ ) हरनगांव फिरोजाबाद-और-मकनपुर होते सिकोहाबाद टेशनउतर रैलकिराया करीब छआने तीनपाइ लगते है,
PC ( तवारिख-तीर्थ-शौरीपुर, ) सिकोहाबाद टेशनसें सात कोशके फासले जमना कनारे शौरीपुर एक निहायत पुराना जैन तीर्थहै, यात्री सिकोहाबाद टेशन उतरकर सरायमें कयामकरे और खाने पीनेसें फारिगहोकर शौरीपुरजानेकी तयारी करे. सिकोहाबादसें चार कोश तक सडकपक्कीमिलेगी आगे कची है, इक्का-बेशक ! जासकताहै. मगर कमजोरघोडा बिल्कुल-न-चलसकेगा, इकेका किराया जातेआते अंदाज़ तीन रूपये लगेगा, और उसमे तीन सवारी जासकेगी, बडीफज़र सातबजे सिकोहाबाद सरायसे रवाना होकर-बारांबजे शौरीपुर पहुचसकतेहो और अगर तीर्थ शौरीपुरकी जियारत करके उसीरौज लोटना चाहोतो लोटसकतेहो मगर बेहतरहै एक रोज यहांपर कयाम करना, भगा भगीकी जियारत करना ठीकनही. सिकोहाबाद सरायसे रवाना होते वख्त खानपानकी चीज पुरीकचौरी मिठाइ वगेराका इंतजाम करलेना जैसी उमदाचीज यहांमिलेगी वहां-न-मिलेगी.
तीर्थकर नेमनाथमहाराजकी जन्मभूमि शौरीपुर-पेस्तर बड़ा आबाद और रवन्नक अफजूंथा, मगर जमाने हालमें वहरवनक नहीरही, पेस्तर बडेबडे दौलतमंद और खूशनसीब आवादथे जिनकेघर बेशुमार दौलतथी, आज लखपतिभी कमनजरआते है, सीर्फ एकहजार आदमीयोंकी वस्तीका कस्वारहगया, न कोइ-जैनश्वेतांवर
श्रावकहै-न-धर्मशाला सीर्फ ! जमनाफी वीहडमें एकऊंची पहाडी: पर मरम्मत पांच जैन श्वेतांबर मंदिरखडे है, जिनमें चार खालीहै.
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( २०६) तवारिख-तीर्थ-शौरीपुर. एकमें-तीर्थकर नेमनाथमहाराजके कदम तख्तनशीनहै,-जवतुमारा इक्का शौरीपुर पहुचे जहां सुभीतादेखो कयाम करलो और एक मीलके फासलेपर जमनाकी वीहडमें ऊंची पहाडीपर जाकर तीर्थ शौरीपुरके जैनश्वेतांवर मंदिरोंकी जियारतकरो, जिसमंदिरमें तीर्थकर नेमनाथमहाराज कदम तख्तनशीन है चारोतर्फ इसके चबुतरा बनाहुवा है, पुरानेकदम अवनहीरहे, संवत् ( १९०५ ) के प्रतिष्टित मौजूद है इसके दर्शनकरे, चारमंदिर जो खालीपडे है उनकी कारीगिरी और खूबसुरति क्या उमदा बनी इहै मगर मूर्तिके न होनेसे विरानहोगये, दिवारे देखोतो क्या ! पुख्ता-और-इटेंबतौरतांवेंके चमकरही है, जैनश्वेतांबराचार्य हीरविजयसूरिजी जबकि-यहां तशरीफलायेथे और जियारतकिइथी बडाजलसाहुवाथा, और तीर्थका जीर्णोद्धार करवाया गयाथा, जिसबातकों आजकरीब साढेतीनसोवर्षके होगये, इनदिनोंमें मरम्मत होना दरफार है,. इस मंदिरकी जेरनिगरानी लश्कर ग्वालियरके जैनश्वेतांबर श्रावफलोग रखते है, पूजारीवगेराका-ही-बंदोबस्तकरते है, शौरीपुरका रहनेवाला एकशख्श जो हमेशां एकमील जंगलमेंजाकर उसमंदिरकी पूजाकर आताहै, और उसकों सालीयाना तनख्वाह जो उनकेवहांसे मुकररहै देतेहै, जगह निहायतपाकीजा देखकर दिलखुशहोगा, एकदिन वोथा इसमुकामपर बडेबडे राजेरहीश और दौलतमंद यात्री यहांआतेथे, आज वोजगह मानो! विरान और उजाडपडी है एकजैन वेतांवर धर्मशाला यहांपर बननाजरुरी है, कोइखुशनसीब सखी यात्री इसतीर्थमें ( १०००० ) रुपये सर्फकरे इसतीर्थका उमदातौरसे जीर्णोद्धार होसकताहै, पांचहजारमें धर्मशाला कायमकरे पांचहजारमंदिरकी मरम्मतमें लगावेतो अलबते !
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दरवयान-शहर-कानपुर. (२०७ ) इसतीर्थका कुछअर्सेतक नामनिशान बनारहेगा बहुतसे यात्री बडे बडे तीर्थोकी जियारतकोंजाते है मगर ऐसे तीर्थकी जियारतकोंभी जरुर जानाचाहिये, वहांपरजानेसे तमामहाल बखूबीमालूम होसकेगा,तीर्थ-शौरीपुरकी जियारतकरके यात्री उसीरास्तेवापिस सिकोहाबाद आवे और रैलमें सवारहोकर-करोरा-भदन-बलराइ-जशवं. तनगर-सरायभोपट-इटावा-एकदिल-भरथना--सामहोन-अचल्दा पेंटा-फफूंद-कानचौसी-झींझक--अबियापुर--रुरा-मेथा--भावपुर और पांकी-होतेहुवे-टेशन कानपुर उतरे,
' ( दरबयान-कानपुर ) हाथरस जंकशनसे ( १८८) मील पूरवकों इलाहाबाद विभा गमें गंगाके दाहने कनारे जिलेका सदरमुकाम कानपुर एक गुलजार शहरहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त कानपुरकी मर्दुमशुमारी मय छावनीके (१८८७१२) मनुष्योकीथी, टेशनसे शहर कुछ फासलेपरहै और सवारीकेलिये इक्का-बगीतयार मिलतीहै, वेठकर शहरमें चलेजाओ. धर्मशाला कइवन हुइ जहां मुभीता देखो कयामकरो, बाजारकी सडकेलंबी चौडी मगर गली ओर रास्तेतंगहै, वडेवडे आलिशान-रंगरौशन कियेहुवे मकान-कोठिये यहां बनी इहै, कपडे बनानेकी कले-और-कइकारखाने यहां मौजूदहै बाजारमें हरेककिसमकी चीजे पुरी कचौरी-मेवा मिठाइशाल दशाले और जेवर जिसचीजकी दरकारहो मिलसकती है, अनाजकी तिजारत यहां ज्यादह होती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोंके घर वीश-और-एक जैनश्वेतांवर मंदिरयहां महेशरी महोलेमें मौजूदहै, जो भंडारी रूगनाथप्रसादजीका तामीर करवाया हुवा काबिलदेखनेके है, यात्री जाकर वहां दर्शन करे, पासमें एकमकान जैनमुनियोंके ठहरनेके लियेभी मौजूदहै,
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( २०८ ) तवारिख-तीर्थ-कौशांबी.
शहर कानपुर इन दिनोनें व्यापारकी तरकी परहै, नये कानपुरसे (२) मील पर पश्चिमोत्तर गंगाके दाहने कनारे पुराना कानपुर आबादहै, बीच दोनोंके कइ वाग और मैदान नजर आतेहै, हरिद्वारसे गंगाकी नहर ( ६३५ ) मील चलकर कानपुरके पासगंगामें आमीलीहै, कानपुरसे एक रैल *लखनउ होकर अयोध्याको गइहै, और एक रैल इलाहाबाद होकरभी अयोध्या गइहै. यात्रीको कानपुरसे भरवारी टेशनके पास कौशांबी नगरीकी जियारतकों जानाचाहिये, जोकि-कानपुरसे इलाहाबादकों जाते रास्तेमें है,
AS [ तवारिख-तीर्थ-कौशांबी, ] कानपुरसे रैलमेंसवार होकर-चाकरी-सारसोल-कारबिगोन बिंदगीरोड-कंसपुर गुंगवाली-मालवा-कुरास्टी कल्यान-फतेपुर
* अबध प्रदेशमें जिलेका सदर मुकाम लखनउ एक उमदा शहरहै, सन-( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त लखनउकी मर्दुमशुमारी मयछावनीके ( २७३०२८ ) मनुष्योंकीथी, मकान यहाँके बडे पुख्ता-द्रख्त-बाग-गुंबज-मीनार-और दौलत मंदलोगोके मकानपर सोनेकी कलशीयां दिखपडती है. जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर ( ५० ) और ( ८ ) जैनश्वेतांबर मंदिर यहां मौजूदहै, बहोरनटोला-चुडीवालीगली-सोंदीटोला-और-फुलवाली गलीमें मंदिर बनेहुवेहै यात्री वहांजाकर दर्शनकरे, लखनउका खान पान-बोल चाल-और-पुशाक-उमदा, गोल दरवजेसे अकबरी दरवजे तक बडी रवन्नक देखोगे. हुसेनाबाद-अमीनावाद-शाहनजफ-लीगार्ड-केशरवाग-अजायव घर वगेरा देखनेकी जगहहै.
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Mirrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrum
तवारिख-तीर्थ-कौशांबी. ( २०९ ) फेजुल्लाहपुर--रसूलाबाद-टेनी-खागा-कुनवार-सिराथु--और-- सुजातपुर होते भरवारी टेशन उतरे, रैलकिराया करीब बारांह आने लगते है, टेशनके पास सराय बनीहुइहै जाकर उसमे कयाम करे, तीर्थ कौशांबी यहांसे खुश्कीरास्ते दसकोसके फासलेपर वाके है, सवारीकेलिये इक्का-बगी तयारमिलती है, इकेकाकिराया जाते आतेकरीब तीन-या-चाररुपये लगेगे, और तीनसवारी ब-खूबी उसमें बेठसकेगी, टेशनभरवारीसे शुभहकेचले बारांबजे पपोसागांव पहुचसकोगे, जहांसे कौशांबीनगरी करीब (२) कोशपर रहजाती है भरवारीसे चारकोस पकीसडक-और-आगे कच्चारास्ताहै. गांव-सडककी आजुबाजु रहजाते है रास्ताकठीन-बहुतसेकेशुकेपेंड और-गंगाकीनहर जो कानपुरसे इलाहाबादको गइहै मिलेगी. नहरकी बजहसे जमीन तर-और-अनाजकी पैदाश ज्यादहहोती है भरवारीसे पपोसा गांवतक इक्केमेंजाना और वहांसे दोकोस आगे पैदल चलनाहोगा, क्योंकि-रास्ता-कठीनहै, इक्का-बगी-जानही सकते. कौशांबीतीर्थ यहांसे आगे दोकोसदूर है, जिसकों आजकल कोसंवपाली बोलते है,-यात्री वहांजाकर तीर्थकौशांबीकी क्षेत्रफर्सना करे,
कौशांबी में जाकर जहांमुभीतादेखे कयामकरे, और पूर्व-याउत्तरकी तर्फ मुहकरके तीर्थकर पदमप्रभुकी इबादतकरे, क्योंकितीर्थकर पदमप्रभुकी जन्मभूमि यही कौशांबी है, आजकल-न-कोई यहां जैनश्वेतांबर मंदिरहै-न-श्रावकहै, सीर्फ ! क्षेत्रस्पर्शना करके तीर्थकी जियारतहुइसमझे, अगर कोइयात्री (२५०००) हजाररुपये खर्चकरके यहां मंदिरधर्मशाला बनवादे-तो-तीर्थ कौशांवीका फिरसे उद्धार होसकताहै, दुनियाकी नामवरीमें हजाराहरुपये खर्च करते है मगर तारीफ उनकी है जो तीर्थकरोकी जन्मभूमिपर मंदिरमूर्ति
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( २१० )
तवारिख - तीर्थ - कौशांबी.
धर्मशाला बनावे, जिनके बडेभाग्यहो ऐसे तीर्थकी जियारत करे, आजकल कौशांबीनगरीकी आबादी कुल (२००) घरोकी रहगई, एकदिन बोथा जहां झलाझल रौशनी - और - बेशुमार दौलतथी. आज वही जमीन वैरवनकहै, चोथेकालमें जहांजहां तीर्थकरोके कल्याणकोंकी भूमिथी पंचमकालमें वहां धर्मकी कमीहोजायगी ऐसा जो तीर्थकरों का फरमाना था नजर से देखलो,
पेस्तर यहां कसुंभकेद्रख्त बहुतपेंदा होते थे इसलिये इसकानाम कौशांबीनगरी कहा गया, छठेतीर्थंकर पदममभु इसीकौशांबी में पैदा हुवे थे. और वत्सदेशकी राजधानी यहीकौशांबी कहलातीथी, चवन - जन्म - दीक्षा - और -- केवलज्ञान -- ये - - चार कल्याणक तीर्थंकर पदम के इसी कौशांबी में हुवे, श्रीधरराजाकेघर सुसीमारानीकी कुखसे कातिकवादी ( १२ ) चित्रानक्षेत्र केरौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत असेतक उनोने कौशांबी पर अमलदारीकि, पेस्तरदीक्षाने एकसालतक बराबर उनोने यहां खेरातक और कातिकदी ( १३ ) के रौज दुनियाके एशआराम छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार कि, और चेतमुदी ( १५ ) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवता वगेरा उनकी खिदमतमें आतेथे धवलशेठ - जोकि - श्रीपालजीकों - भरूअछ नगरमें मिलाथा इसीकोशीका वाशिंदा था, श्रीपालजीकी वाल्दासाहिबा यहांपर हकीमकी तलाश करनेकों इसलिये आइथी कि मेरेवेटेकी आर्जा-कोढकी कोइरफाकरे, और उसने यहांपर एकज्ञानीमुनिके मुखसे यह अजूबा सुनाथाकि- तुम - उज्जेनकों जाओ ! तुमाराबेटा अछाहो गया, तीर्थंकर महावीरस्वामीको चंदनवालाने उनकेतपका पारना यहां करायाथा, बडेबडे इकबालमंद शख्स यहां आवादथे, और ashiमती और मशहूर जैन श्वेतांबर मंदिर यहांपर मौजूदथे जिनके
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तवारिख - तीर्थ - कौशांबी. ( २११ ) नामनिशान अबनहीरहे, उज्जैननगरीके राजाचंड प्रद्योतने कौशांबीपर चढाइकिथी, और उसका इरादाथाकि - कौशांबीके राजाशतानिकी रानीमृगावतीकों -- लेकर अपनीरानी बनालु, मृगावती बडीपाकदा मनथी, जबतक शतानिकराजा लडतारहा चंडप्रद्योत उसे- न - लेसका, जबशतानिकका इंतकालहुवा रानीमृगावती-तीर्थंकर महावीरस्वामी के चरनोमेंगइ और दुनियादारीको छोड़कर दीक्षाइख्तियार किइ, - जबकोइशख्श दुनियादारीको छोडकर दीक्षा sererrat और धर्मका सहारालेवे तो उसको कोइ क्याकरसकता है ? दुनियामेधर्म उमदा चीज है, अजहद तकलीफ में भी धर्मही कामदेता है, -
शतानिकराजाका बेटा - उदयन - जोकि - गानेकेइल्ममें- आलादर्जेपर पहुचाहुवाथा चंडप्रयोतने चाहा उदयन - उज्जेनमें आकर मेरी लडकी वासवदत्ताको इल्मगानेका शिखलावे, चंडप्रद्योतने उदयनको बुलानेकी कौशिशकि, मगर उदयन राजी न हुवा, असल में इल्मदारलोग अपनेइल्म में मशगुलरहते है, रुपयेपैसेकी परवाह नही करते, आखीरकार चंडप्रद्योतने उदयनकों धोखादेकर उज्जेन बुलवाया, और कहा वासवदत्ताको गाना शिखलाओ, उदयननेकहा इल्मसिखलाना - उस्तादकी मरजीके ताल्लुक है, अगर मुताबिक मेरेफरमानके चलेगी, बेशक! इल्म सिखजायगी. चंडप्रद्योतने कहा तुम तालिमदेना शुरूकरो, उदयनने कुबुलकिया खेर ! मैं उसे तालिमदूंगा, चंडमयोतने उदयनकों कहा- वासवदत्ता एक आंखसे कांणी है - वह शर्मकरेगी, इसलिये तुमारे दोनोंके बीचमें पर्दा बांधकर तालीमदेना, इधर वासवदत्ताकों कहा उदयनके बदनमें - कोटकी बीमारी है तुमबीचमें पर्दा लगाकर पढना, ऐसा-न- होकि उसकी बीमारी तुमकों लगजाय, भाखरीश पर्दालगाचा
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( २१२ )
तवारिख - तीर्थ - कौशांबी.
गया, और तालीमदेना शुरु किया, बादचंदरौजके जब एकरौज वासवदत्ताने गाने में भूलकर उदयननेकहा ! अरि ! कांणी !! ऐसा बैताला क्यों गाती है ! वासवदत्ता ने कहा- यहां कांणी कौन है ? आपकैसे बोलते है ? उदयनने कहा - में नही जानता, तुमारे वालिदने कहा था कि- वासवदत्ता एकआंख से कांणी है, वासवदत्ताने खयाल किया - जैसे - मुजकों कांणीबतलायी - मगर - में - कांणीनही हूं, इसी तरह ये भी - कोठीन होगें, वासवदत्ता अपने वालिदकी धोखाबाजी से नाराजहुइ, और उदयनकेशाथ कौशांबी - जानेको तयारहुइ, उदयनने कहा - में - राजकुमारहूं इसतरह छीपीहालत में - न - ले - जाउगा, तुमा रे - वालिदकों इत्तिला करके लेजाउगा, एकरौज उदयनने राजा चंडमोसे कहा आपने मुजको धोखादेकर बुलवाया - मगर-मेंतुमकों - इत्तिलादेकर कौशांबीजाताहुं-- तुमारी मरजीहो -सो--तुम करलेना. ऐसाकहकर उदयन - और - वासवदत्ता उज्जेनसें - कौशांबी चले गये, और चंडप्रोत उसका कुछ-न करसका,
वारीश के दिनो में - कौशांबीकी जमीनसें अनमोलचीजे - जवाहिरात जडीहुइ अंगुठीये - - हीरे पनेके - - टूकडे - और पुरानी सोनामोहरे निकलती है, इसलिये लोग इसकों रत्नभूमि कहते है, कैसे कैसे खुशनसीब और - इकबाल मंदलोग यहां होगये, जिनकेघर बंशुमार दौलतथी, किला कौशांबीका पेस्तर बडामजबूतथा - जिसकी निशानी यह है कि - अवभी उसमेसे देढदेढ फुटलंबी- और - एकफूट चोडीइंटे लालमुर्ख - बतौर तांबेके निकलती है, आजकल वैसी इंटे बनना मुश्किलसमझो. -- तीर्थकौशांबीकी जियारत करके वापिस उसी रास्ते भरवारी टेशनआवे, -
भरवारी टेशन से रैलमें सवार होकर मनोहरगंज- मनवारीबंरावली - होतेदुवे इलाहाबाद टेशन उतरे, रैलकिराया तीन
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दरवयान-इलाहाबाद-और-फैजाबाद. ( २१३ )
आने लगते है, गंगा-जमना के संगमपर इलाहाबाद एकपुराना शहर और रैलवेका जंकशनहै, इसका दूसरानाम प्रयागभी कहते है, इलाहाबादसे ( ५६४ ) मील पूर्वको कलकत्ता, (३९० ) मील पश्चिमोत्तर देहली और (८४४ ) मील पश्चिम दखन बंबइहै, इस्वीसनके करीब ( ३००) वर्ष पेस्तर जब चीना मुसाफिर मेगस्थनीज हिंदमें आयाथा इलाहाबाद देखाथा. सन (४१४ ) इस्वीमें बौद्धयात्री फाहियानने इसजिलेका हाल लिखाहैकि-यह कोशलराज्यका एक हिस्साथा, उसके (२००) वर्षबाद जब हवांक्तसांग चीना मुसाफिर हिंदमें आयाथा अपने सफरनामेमें लिखाहै उसवख्त यहां (२) बौद्धमठ और बहुतेरे हिंदूमंदिरथे, सन (११९४) इस्वीमें शहाबुद्दीन गहोरीने प्रयागको फतेह किया सन ( १५७५ ) इस्वीमे बादशाह अकबरने इसकी आवादी बढाइ
और इलाहाबाद नाम रखा, गंगा-यमुनाके बिचलेभागमें यमुनाके बाये कनारे निहायत पुख्ता किलाबनवाया, जोअब मौजूदहै, इसकी दिवार ( २० ) से ( २५ ) फीट ऊंची-और-तीनतर्फ खाइ बनीहुइहै. बडा फाटक गुंबजदार और पुख्ता बनाहुवाहै, बादशाह जहांगीरने किलेमें रहकर इलाहाबादकी हकुमतकिइ, जमाने हालमें अंग्रेज सरकारकी अमलदारी यहांपर जारीहै, किलेके भीतर अपसरोंके मकान--मेगजीन--मेंदानमें तोपोंकी कतार-और तरह तरहके गोलोंके ढेर देखपडताहै, पूरवफाटकसे किलेमें जाया जाताहै, एकतर्फ साढेनव फीटऊचा-एकहीपथरका बनाहुवा अशोकस्थंभ खडाहै, और उसपर इस्वीसनके ( २४० ) वर्ष पेस्तरके राजा आशोकका हुकमनामा खुदाहुवाहै,
इलाहाबादसे उत्तरतर्फ परतापगढ, पूरवमें जोनपुर-औरमिर्जापुर-दखनमें रिवांका राज्य-दखनपश्चिममें बांदा-और-फते
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( २१४ ) दरवयान-इलाहावाद-और-फैजाबाद. हपुर जिलाहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त इलाहाबादकी मर्दुमशुमारी (१७५२४६) मनुष्योंकीथी, सिविलकचहरीहाइकोर्ट-पब्लिकलाइब्रेरी-अस्पताल-मेओकोलेज वगेरा खूबसुरत मकानहै, सडके लंबी चौडी-बाजार गुलजार-शामकेवख्त चौक बजारमें बडीरवन्नक रहतीहै. हरेक किसमकी चीजे-जवाहिरातसोनाचांदी-ऊनी-और-रेशमी कपडे यहांपर मिलते है, पुरी-कचौरी-और ताजीमिठाइ जवचाहो तयार मिलेगी, चुरन वेचनेवाले दोहे-कवित्तगातेहुवे अपना चुरन वेचरहे है.
जैनचैत्यस्तवमें लिखाहै पेस्तर यहां जैन तीर्थथा, अंगे बंगे कलिंगे सुगतजनपदे सत्प्रयागे तिलंगे, गौडे चौडे मूरीडे वरतरद्रविडे उद्रियाणेच पौढ़े, आद्रे माद्रे पुलींद्रे द्रविडकुवलये कान्यकुब्जे सुराष्ट्र, श्रीमत्तीर्थकराणं प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वंदे, ६,
इसमें जो सत्प्रयागे उल्लेखहै इसका माइना यह वाकि-प्रयागमे पेस्तर जैन तीर्थथा, अबनहीरहा, यात्री यहां क्षेत्रस्पर्शना करे, आजकल यहां जैनश्वेतांवर श्रावकोंका कोइ घरनही. व्यापारके लिये आयेगये रहते है, ___ गंगा-यमुना-और-सरस्वतीका जहा मिलापहवाहै-वैश्नव आम्नायवाले उसजगहकों त्रिवेणी बोलते है और तीर्थ मानतेहै, हरसाल माघ महीनेमें यहा वैश्नवयात्री बहुत आते है, टेशनके पास धर्मशाला-और-सराय बनीहुइहै, यात्री जहां दिलचाहे ठहरे,
और क्षेत्र स्पर्शनकरके इलाहाबादसे परतापगढ लाइनमें सवार होवे और-टेशन फाफामउ-स्वेत-मउएमा-विश्वनाथगंज-कुरेभारखजुरहाट-बिकापुर-और-भरतकुंड होते फैजाबाद जावे, अवध
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तवारिख-तीर्थ-रत्नपुरी. ( २१५ ) विभागमें जिलेका सदर मुकाम फैजाबादभी एक अछा शहरहै, बाजार उमदा और हरेककिसमकीचीजे यहांमिलसकती है, टेशनसे शहरकुछ फासलेपरहै, सवारीकेलिये इक्का-बगी--तयारमिलेगी, शहरमेंजाकर यात्री चौकबाजार त्रिपोलिया दरवजा तलाशकरे, और महोले पालखीखानेमें जो बडाशिखरबंद जैनश्वेतांवरमंदिर बनाहै दर्शनकरे, इसमें मूलनायक तीर्थकर शांतिनाथमहाराजकी मूर्ति करीब सवाफुटबडी तख्तनशीनहै,-फैजाबादसें यात्री तीर्थ रत्नपुरीकी जियारतकों जावे, रास्ते दो है,-एकरैलका-दुसराखुश्की, रैलरास्तेजानेवाले यात्री फैजाबादसे रैलमें सवार होकर सोहावल टेशन जाय, फैजाबाद और सोहावल टेशनका कुछबहुत फासलानहीं है, एकहीटेशन आगे है, सोहावलटेशन उतरकर बजरीये बेलगाडीके तीर्थरत्नपुरी पहुचे जो पोनकोश दुरहै, खुश्की रास्ते जानेवालेयात्री फैजाबादसें इक्के-या-बगीमें सवारहोकर रत्नपुरीकोजावे, सडकपकी बनीहुइहै, रास्ताकरीब (१०) मीलका होगा, फैजाबादसे शुभहकेगयेहुवे जियारतकरके शामको वापिस आसकतेहो, मगर जियारतमें जल्दीकरना मुनासिवनही, एकरौज रत्नपुरीमें ठहरकर दुसरेरौज फैजाबाद आना अछाहै,
use [तवारिख तीर्थ रत्नपुरी, ] रत्नपुरी पेस्तर बहुत आवादथी, आजकल छोटीबस्तीरहगइ, इसका दुसरानाम नवराही बोलते है, पनराहमें तीर्थकर धर्मनाथ महाराज इसीरत्नपुरी में पैदाहुवे चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञान-ये-चारकल्याणक उनके यहांहुवे, भानुराजाकेघर मुव्रतादेवीकी कुखसे माघसुदी (३) पुष्पनक्षत्रकरौज उनका यहां जन्महुवा कइअर्सेतक उनोने यहां रत्नपुरीपर अमलदारी किइ दीक्षाके पेस्तर उनोने यहां एकसालतक हरहमेशां खैरातकिइ, और
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( २१६ )
तवारिख - तीर्थ - रत्नपुरी.
माघ सुदी (१३) के रौज दुनिया के एशआराम छोडकरदीक्षा इख्तियारकि. दोसालतक उनोने तप किया, और पोषसुदी (१५) के रौज उनको यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवते वगेरा उनकी खिदमत में आते थे, पेस्तर बडेबडे वनखंड - उद्यान -और लतावल्ली यहां इसकदर होती थी कि - जमीन - हमेशां सब्ज बनी रहतीथी, बडे बडे गुलजारबाग - और - तरहतरह के फल- केले - अनार - अमरुद - जामन - और - किसमिसके पेंड यहां मौजूदथे, चावलकीपैदाश यहां बहुत होती थी. मंदिर तीर्थकर धर्मनाथमहाराजका यहां हमेशां मौजूदरहा, तीथम यहकीमीरवाज हमेशांसे होताचलाआया कि - एक मंदिर पुराना होकरगिरगया किसी खुशनसीबने दुसरा बनवाकर तयार किया, इसीतरहसे तीर्थ कायम बना रहता है, -
रत्नपुरीकी आबादी आजकल कुछदेढ हजार घरोंकी रहगई. धर्मशाला ( ४ ) जिनमें ( २ ) धर्मशाला रायबहादूर धनपतसिंहजी - साकीन- मुर्शिदाबादकी - ( १ ) लखनउवाले जहोरी छोटन लालजीकी - और ( १ ) पंचायती की तर्फसे बनी हुई है. पूरवतर्फ एककोठरी भंडारी - रूगनाथप्रसादजी साकीन कानपुरकी एकमुल्कगुजरात - भावनगरवालोंकी - और - एककोठरी पंचायतीकी त फसे - बनी हुई है, मंदिर - धर्मशाला-और- कोठरीयोंके अतरफ एक पुख्ता कोट खीचाहुवा - करीब - पांचविधेके फासले में मानो ! एक हातामालूम देता है, यात्री धर्मशाला में जाकर कयामकरे और तीर्थकी जियारतकरे, यहांपर जैन श्वेतांबर मंदिर ( २ ), एकवडा - दूसराछोटा है, वडेमंदिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथमहाराजकी शांमरंग मूर्त्ति करीब देहाथवडी तख्तनशीन है, दाहनीतर्फ तीर्थकर अनंतनाथ जीकी - और - बायी तर्फ - तीर्थकर धर्मनाथजीकी एकही सिंहासन पर जायेनशीन है, मंदिरके बीचले भागमें तीर्थंकर धर्मनाथजीके
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तवारिख-तीर्थ-रत्नपुरी. ( २१७ ) केवलज्ञानकल्याणककी स्थापना और उनकेकदम बनेहुवे है, मंदिर पुख्ता और चारोंतर्फ चार छोटेछोटे जिनालय-कता वजा समवसरणकी--अतराफ संगीन कोट खीचाहुवा और वीचमें उमदा चौक-जिसमें-(१०००) आदमी बखूबी बेठसकते है, देखकर दिल खुशहोगा,__ अग्निकोंनके जिनालयमें तीर्थकर धर्मनाथ और महावीर स्वामीके कदम तख्तनशीनहै, नैरूत्यकोनके जिनालयमें तीर्थकर धर्मनाथजीके चवन कल्याणीककी स्थापना और कदम तख्त नशीनहै, वायव्यकोनकें जिनालयमें जन्म कल्याणककी स्थापना इशानकोंनके जिनालयमें दीक्षाकल्याणककी स्थापना और कदम तख्तनशीनहै,-मंदिर पुराना होनेकी वजहसे मरम्मत दरकारहै, जोकोइ यात्री तीर्थों में दौलत खर्चकरनाचाहे जैसे तीर्थों में करे, करीब पांचहजार रूपयेमें इसतीर्थकी मरम्मत होसकतीहै, छोटा मंदिर तीर्थकर रिषभदेव माहाराजका-इसमें तीर्थकर रिषभदेव महाराजकी मूर्तिकरीब पोनेदो हाथबडी तख्त नशीनहै, कुल्लमूर्तिये इसमें (८) है, जिनमें ( ६ ) मूर्ति राजासंपतिके वख्तकी-और (२) उनके बादकी बनीहुइहै, धर्मशालामें बगीचा एक-जिसमें -आम-अमरूद--शरीफे-बेल-इमली--कटेर--जामुन-और आवले वगेराके पेंडखडे है, फुलोमें गुलाव-चमेली-३लावगेराके फुलभी पैदाहोते है और हमेशांकी पूजनमें चढायेजातेहै, दोंनों मंदिरके दोपूजारी-और-दो-नोकर यहांपर तैनातहै, दोनों मंदिरके वहीखाते अलग अलग बनेहुवे है, बडेमंदिरमें चारखाते है, अवलभंडारका, दोयमजीर्णोद्धारका-तीसरा साधारणका-और-चौथा गेहने आमूषणका, जिसका जीचाहे उसखातेमें रूपया देवे, छोटे मंदिरके दो-खाते है, अवल भंडारका, दूसरा साधारणका-जिसकी मरजीहो
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( २१८ ) तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. उसखाते में देवे, मंदिरकी मरम्मत के बारेमें अगर कोई यात्री अपने मुनीम-गुमास्तेको भेजकर मरम्मत करादेवेतो बहूतही बहेतरहै, रत्नपुरीकी जियारतकरके यात्री-फैजाबाद वापिसआवे, और फैजावादसें तीर्थ अयोध्याको जावे, जो करीव दो-तीन कोशके फासलेपर वाके है, रैलभी जातीहै, और इक्का बगीभी जाते है जिसकी जैसी मरजीहो-उस रास्ते जाय, तबारिख तीर्थ रत्नपुरीकी खतमहुइ,
___ ( तयारिख-तीर्थ-अयोध्या, ) अयोध्या शहर निहायत पुराना और रैलवेका टेशनहै, विनि ता-कौशला-और-साकेतपुर इसीके नामहै. अवल तीर्थकर रिपभदेवमहाराज इसी अयोध्या पैदाहुवे, चवन-जन्म-और दीक्षाये तीनकल्याणक-उनकेयहांहुवे, नाभिकुलकरके घर-मरूदेवाजीकीकुखसे चैत वदी ( ८ ) मी-पूर्वाषाढा नक्षेत्रके रोज उनका यहां जन्महुवा, बहुतअर्सेतक उनोंने यहांपर अमलदारीकिइ, और दीक्षालेनेके पेस्तर एकसाल जुतबारित बहुत खैरात किइ, चैतवदी(८) मीके रोज दुनयवीकारोबारको छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार किइ. एकहजार वर्षतक छदमस्थ हालतमेरहे और फाल्गुनबदी (११) के रोज उनको यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवता. वगेरा उनकी सेवामें आतेथे,-दुसरे तीर्थकर अजितनाथ महाराजभी इसीअयोव्यामें पैदावे, चवन-जन्म-दीक्षा-और केवल ज्ञान-ये-चारकल्याणक उनके यहांहुवे, जितशत्रुराजाके घर विजयारानीकी कुखसे माघसुदी (८ ) मी-रोहिणी नक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत अर्सेतक उनोंने अयोध्यापर अमल्दारी किइ, दीक्षाके पेस्तर एक सालतक उनोने यहां खैरातकिइ और माघबंदी ( ९) मीके रौज दुनियाके एशआराम छोडकर उनोने
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तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. (२१९ ) यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, बारांवर्षतक तपकिया और पोषवदी (११) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदावा, तीर्थकरअभिनंदन महाराज सुमतिनाथ और अनंतनाथ महाराजभी इसी अयोध्या पैदाहुवे, और उनके चारचार कल्याणक यहांहुवे,
रघुवंशके खानदानमें रामचंद्रजी और लक्ष्मगजी बडेबहादुर शख्शइसी अयोध्यामें हुवे. जिनकानाम दुनिया में मशहूर और मारूफहै, लंकायुद्धमें उनोंने जोजो वहादुरी किड, रावणके भाइ विभीषणको लंकाका राज्य दिया और सती सीताको अपनी कोवत वाजुसे वापिस लाये जोकि-रावन छलकरके लेगयाथा,
सत्यवादी हरिश्चंद्र इसी अयोध्याका राजाहुवा जिसने अपने सतके उपर राजपाट छोडदिया, और अपना वचन पुराकरनेके लिये अपनी रानी और लडकेकों वेचकर खुदभी विकगया, देखिये ! अपने सत्यके पीछे उसने कितनी तकलीफ उठाइ ? हरशख्शकों-लाजिमहै अपने सत्यकों-न-छोडे, और धर्मपर सावीत, कदम रहे, चंद्रावतंसकभी एक धर्मपावंद राजा इसीअयोध्याके तख्तपर हुवा, एक रौजका जिक्रहै उसने अपने महेलमें खडेहोकर शामके छबजेसे परमात्माकी इबादत करना शुरूकिइ, और दिलमें यहशर्तकर लिइकि-जो-चिराग मेरे सामने जलरहाहै जबतक जलतारहेगा-में-खडेखडे इबादत करता रहुगा, चिरागमें तेल उतनाथा-जो-तीन घंटेतक जलसके, इबादत करते जब नवबजे एकनोकर जो उसजगह पहरा देताथा सोचा ! कि-मालिकको अंधेरा-न-होजाय ! यहसमझकर चिराग तेलसे भरदिया, जब रातके बारांबजे वोभी तेल खतमहोगया, नोकरने फिर दोबारां तेलभरदिया, जब रातके तीनबजे फिर चिरागगुल होनेलगा. तीसरे मरतबा फिरतेल डाला, नोकरका इरादाथाकि-मालिककों
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( २२० ) तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. अंधेरा-न-हो, और राजाकी शर्तथीकि-जबतक-चिराग-न-बुझे इबादतकरतारहु, गरज कि-सवेरतक राजा इबादत करतारहा,
और नोकरके उपरविल्कुल नाराजी नही लाया, बल्कि ! उसकी खिदमत अपनी इबादतमें व-खूबी समझी.
तीर्थकर महावीर स्वामीके नवमें गणधर इसीअयोध्याके रहने वालेथे, करीब (४००) वर्ष पेस्तर जैनश्वेतांबर श्रावकोंके घर अयोध्या-बहुतथे, आजकल एकभी नहीरहा, फैजाबादसे (६) मील पूर्वोत्तर सरयूके दाहने कनारे अयोध्याकी आवादी फैलीहुइहै जमाने हालमें अयोध्याकी मर्दुमशुमारी करीब ( १४००० ) मनुप्योकी-बाजारमें हरेक किसमकी चीजें मिलसकती है, सरयूकनारे सोहावनेघाट बनेहुवे और बडीरवन्नक रहती है,-बगीचा अवध नरेशका-और-महल काबिलदेखनेकेहै, सरयूकी तरीसें वनास्पति यहां ज्यादह-और बंदरोकी तरक्की इसकदर बढीहुइहैकिजराभी नजर चुकजायतो हरेक चीज उठाजातेहै, कितनाही इंतजामकरो हाथमेसेभी चीज लेजानेकों मुस्तेज रहते है, अयोध्याके इर्दगीर्द-बहुतसी इमारतोंके निशान दूरदूरतक पायेजाते है इससे मालूमहोताहै पेस्तर बहुतवडी नगरीथी, जोकोइ जैनश्वेतांवरयात्री अयोध्यामें कदमरखे कटरामहोला तलाशकरे, जैनश्वेतांबर मंदिर धर्मशाला-और-कारखाना बनाहुवाहै, यात्री धर्मशालामें जाकर कयामकरे. और निहायत खूबसुरत शिखरबंद मंदिर जोकि-तीर्थकर अजितनाथ महाराजका बनाहुवाहै दर्शनकरे, मूलनायक तीर्थकर अजितनाथ महाराजकी मूर्ति करीव एकहाथ बडी इसमें तख्तनशीनहै. अलावा इसके तीन मूर्तिये औरभी इसमें जायेनशीनहै जिनके नाम रिषभदेव-अभिनंदन-और-महावीर स्वामी है,
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तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. (२२१.) ___ मंदिरके बीच जो समवसरणका आकार बनाहुवाहै तीर्थकर अजितनाथ महाराजके केवल ज्ञानकल्याणककी स्थापना और कदम उसमे तख्तनशीनहै, उपरकीतर्फ एककोंनेमें अभिनंदनजीके कदम -एकमें मुमतिनाथजीके कदम-एकमें अनंतनाथजीके और-एकमें -रिषभदेव महाराजके कदम जायेनशीनहै, नीचेकी तर्फ एककोंनेमें पांचभगवानके चवन कल्याणक-एकमें पांचभगवानके जन्मकल्याक-एकमें चारभगवानके-दीक्षा कल्याणक-और-एकमें चारभगवानके गणधरोंके कदम और पांचभगवानके यक्षयक्षणी बनेहुवे है, अयोध्यामे तीर्थकर रिषभदेवजीके तीनकल्याणक चवन जन्मदीक्षा, अजितनाथजीके चारकल्याणक-चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञान, अभिनंदनजीके चारकल्याणक-सुमतिनाथजीके चारकल्याणक-और-अनंतनाथजीके चारकल्याणक--कुल्ल (१९) कल्या णक हुवे, तीर्थकर रिषभदेव महाराजका-केवलज्ञान कल्याणकभी यहांही हुवाथा. मगर वह इसजगहसे थोडी दूरपर पुरिमतालनामका शाखानगरथा इसलिये जुदागिनागया.
धर्मशाला यहांपर (२) बडीपुख्ता बनीहुइहै-एक रायबहादूर बुधसिंहजी-साकीन मुर्शिदाबादकी और-एक पंचायती, यात्री जहां मरजीहो ठहरे, तीर्थ अयोध्याका कारखाना-यहांपर बनाहुवा है, मुनीम-गुमास्ते-नोकर चाकर पूजारी चौकीदार वगेरा मौजूदहै यात्री इसमें जोकुछ देनाचाहे देवे. जिसके बडेभाग्यहो ऐसे तीर्थकी जियारतकरे, कइदफे तुम देहलीसे कलकत्ता-और-कलकत्तेसे देहली आयेगये, मगर अयोध्याकी जियारतसें मेहरूमरहे. अगर तुमारा खयालहोकि-फिरकभी जियारत करलेयगे तो यह खयाल गलतहै, जिंदगीका कोइभरूसा नही. जोकुछ धर्मकाम करलिया वही अपनाहै, वैदिकमजहबवालेभी अयोध्याको तीर्थ मानते है,
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( २२२ )
तत्रारिख - तीर्थ - सावथ्थी.
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और उनके कई मंदिर यहांपर बने हुवे है, अयोध्याकी जियारत करके यात्री सावथ्थी नगरीकी जियारतकोंजावे. अयोध्या से सरयूनदी पार होकर लकडा घाट टेशन जाना सरयूनदीका पुल धावा है रास्ता करीव सवाकोशका होगा, सवारीमें जानेवालोको इक्का मिलसकता है, पैदल जानेवाले पैदलभी जासकते है, लकड़ा घाट टेशनसे रैलमें सवार होकर कटरा - नवाबगंज-और टीकरी होतेहुवे मनकापुर जंक्शन उतरना रैलकिराया तीन आने तीनपाइ फिरवहांसे गोंडा लाइनमें सवार होकर विद्यानगर होते हुवे गोंडा जंकशनजाना, रैल किराया तीन आना, वहांसे रैलमें सवार होकर इंटियाथोक होते हुवे बलरामपुर टेशन उतरना रेल किराया
चारआना,
1.
तवारिख तीर्थ - सावथ्वी. ]
बलरामपुर टेशनसे खुश्कीरास्ते सातकोशदूर सावथ्वी पुरानातीर्थ है, टेशनसें शहर कुछफासलेपर है सवारीकेलिये इक्का - वगी तयारमीलेगी यात्री शहरमेंजाकर सरायमें ठहरे, और दूसरेरौज सावथ्थीकों जानेकी तयारीकरे, सावथ्थीकों आजकल सहेटमेटका किला बोलते है, और बलरामपुरसे सहेटमेटतक सडककची बनी हुइ है. सवारीकेलिये इका - बगी - जासकते है, इकेका किराया जाते आते अंदाज तीन या चाररुपये लगेगे, - शुभहके आठवजेके चले बारांबजेतक सहेटमेट पहुचसकतेहो, रास्ते में दुतर्फा द्रख्तलगे हुवे है, जब करीब सहेटमेटके पहचोगे कोशभर के फासलेपर द्रख्तोके झुंड में सडकपर इक्का ठहरजायगा, क्योंकि आगे इक्केजानेका रास्तानही है ख्वाह - अमीर हो - या - गरीब पैदल चलना होगा, जबकोशभर के फासजाओगे तुमकों सावथ्वीनगरी नजरआयगी, पेस्तर बहुतवडी आवादथी जमानेहालमे बिरानकस्वा रहगया, बडेबडे मकानात और
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1.
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तवारिख-तीर्थ-सावथ्थी. (२२३,) खंढहेरपडे है, एकरौज वहथाकि यहांपर जवाहिरात और सोना-चांदीके ढेर लगतेथे, आज वहदिनहै चारोतर्फ झाडीमुखड-द्रख्तोकेझंड-और-जंगलहीजंगल नजरआताहै, किला सहेटमेटका विरान और उसमे तीर्थकर संभवनाथका मंदिर वगेरमूर्तिके खाली पडाहै, आजकल-न-कोइ यहांपर श्रावकहै-न-वो-रवन्नकहै, शिवाय ज्ञानीयोंके कौन कहसकताहैकि-किसकिस जमीनपर क्याक्या वनावबने और बनेगें, वारीशके दिनोंमें यहांपर अकसर जवाहिरातके नगीने-मोहर वगेरा-निकलआते है इससे मालुमहोताहै. यहांपर बडेबडे दोलतमंदलोग आवादहोगये, इसवख्त यहांपर एक चक्रभंडार-और-दुसरा कानभारी नामके दो गांव अलग अलग मौजूद है,-मानलो ! यह सबजमीन पेस्तर बडीरवनकपरथी और सावथीसे ताल्लुक रखतीथी,-...
बडीबडी अजुवा वातें यहां होचुकी और बडेबड़े सखी दौलतमंद यहांपर पैदाहोचुके है,-तीसरे तीर्थकर संभवनाथ महाराज इसीसावथ्थीमें पैदा हुवेथे, चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञानये चार कल्याणक उनके यहांहुवे, जितारी राजा और सेनारानीकी कुखसे माघसुदी (१४) मृगशिरा नक्षत्रकरौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत अर्सेतक उनोने सावथ्थीपर अमलदारी किइ. और दीक्षाके पेस्तर एकसालतक उनोने यहां खैरातकिइ, मृगशीर्ष सुदी (१५) के रौज दुनियाके एशआरम छोडकर उनोनेयहां दीक्षा इख्तियार किइ और कातिकवदी (५) मीकेरौज उनकोयहां केवलज्ञान पैदावा, इंद्रदेवता वगेरा उनकी सेवामें आतेथे तीर्थकर महावीरस्वामीने यहां चौमासा किया और कइदफे तशरीफलाये, तीर्थकर पार्श्वनाथजीके शासनके आचार्य केशीकुमार महाराजकी और तीर्थकर महावीर स्वामीके बडेचेले गौतमगणधरकी यहांपर . तेंदु
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(२२४ ) बयान-भुल्कनयपाल-और-हिमालय. कवन उद्यानमें मुलाकात हुइथी, और धर्मचर्चा के बारेमें बहेस हुइथी.
___ बडेबडे नवखंड और बागबगीचे यहांपर मौजूदथे. अबभी तरह तरहकी जडी बुटीये यहांपर खडी है, कुवे-तालाब-द्रख्तोके झुंड
और-जगह सोहावनी नजर आती है. सावथ्थीकी क्षेत्रफरना करके-यात्री अपनी जियारतकों कामयाबहुइ समझे. जिसके बडे भाग्यहो ऐसे तीर्थकी जियारत करे. और अपना परलोकका रास्ता साफकरे, यात्री सावथ्थीकी क्षेत्र स्पर्शना करके वापिस उसी रास्ते बलरामपुर आवे.
CF [ मुल्क नयपाल और हिमालय,-] मुल्क नयपालमें पेस्तर जैनतीर्थ था, जैनचैत्यस्तवनमें लिखा है, श्रीमाले मालवेवा मलयजनिखिले मेखले पीछलेवा, नेपाले नाहलेवा कुवलयतिलके सिंहले मैथलेवा, डाहाले कौशलेवा विगलीतसलिले जंगले वातिमाले, श्रीमत्तीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्रचैत्यानिवंदे, ५
इसमें नपाले-ऐसा जोपाठहै इसका माइना यहहुवाकि-मुल्क नयपालमें पेस्तर जैनतीर्थया अवनहीरहा. नयपालके लोग ताकतवर आवहवा अछी और बोली उनकी नयपाली है, रास्ता पहाडोंका-और कइजगह पगदंडीभीहै, सागवान-और-सागकी लकडी ज्यादह, हाथीभी नयपालमें पैदाहोते है जिसमें सफेदरंगके हाथी ज्यादह देखोगे, कस्तूरी नयपालमें अछी मिलती है. नयपाल राज्यमें बगेर इजाजत नहीं जायाजाता. पहाड हिमालय हिंदुस्थानकी उत्तर सरहदमे-काश्मिरसें लगाकर वंगालतक चलागया.
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बयान - मुल्कनयपाल - और - हिमालय. ( २२५ )
हिमालय में कइजगह आबादी - जंगल - और कहीं कहीं खेती भी पैदा होती है, ज्यूज्यूं पहाडकों देखो द्रख्त - झाडी - फलफुल - और खेतीयोंकी सुरत बदलती जाती है, तरहतरहकी बनास्पति और जड़ी बुटीयोंका खजाना हिमालय पहाड एक उमदा जगह है, कस्तूरीये मृग - और - चमरीगौ इसमें पैदा होती है, देवदार और भोजपत्र वगेरा तरहतरहकी चीजें यहां देखलो. कइ नदीयें हिमालय सें निकलकर समुंदरकों जामीली, इस पहाडपर द्ररूत - फलफुल - और-औषधि इतनी पैदा होती है आदमीकी ताकात नही उसका तमामहाल लिखसके, केशर - कस्तूरी - बादाम - एलाची-शाहदाना- अखरोट - खजूर-नारीयल-कदम - कचनार - खीरनी-मनूरशिखा- शरपुंखा - काकजंघा - अपामार्ग - सहदेवी - लजवंती - मोलसीरी-लक्ष्मणा-विद्याब्राह्मी - शिलाजित -- सालम - बगेरा - उमदाचीजें यहांपर पैदाहोती है, जानवरों में- शैर व्याघ्र - चिता- रींछ- हिरन - वाराहसिंगा वगेरा इस पहाड में रहते है.
-
पहाड हिमालय में पेस्तर जैनतीर्थथा - विविधतीर्थ कल्प मे लिखाँहै हिमालये छायापार्श्वो-मंत्राधिराजः श्रीस्फुलिंग:इसका मतलब यह है कि - हिमालय पहाडमें - छायापार्श्वनाथ-मंत्राधिराज - और - स्फुलिंग पार्श्वनाथका तीर्थया, अवनही रहा. जैनचैत्यस्तवमें बयान है कि—
―――――
चित्रै शैले विचित्रे यमकगिरिवरे चक्रवाले हिमाद्रौ, श्रीमतीर्थकराणं प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वंदे, २
इसमें जो हिमाद्रौ ऐसा पाठ है इसका माइना यहहुवा कि - पेस्तर हिमालय में जैनतीर्थथा. अवनही रहा. - इसलिये वहां जानेकी जरूरत नहीरही. प्रसंगोपात यहां इतनावयान इसलिये लिखागया है कि -पेस्तर - वहां जैनतीर्थथे,
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( २२६ )
तवारिख - तीर्थ - बनारस.
बलरामपुरसें यात्री रैलमें सवार होकर गोंडा जंकशन- मनकापुरजंकशन होकर लकडाघाट टशन आवे और वहांसे सरयू नदी लंचकर अयोध्या वापिस आवे, रैलकिराया वगेरा पेस्तर लिख चुके है, - अयोध्या से तीर्थ वनारसकी जियारत जानेके लिये रैल में सवार होकर यात्री दर्शननगर - विल्हारघाट-टांडोली - गोसाइ गंज- कटहरी - अकबरपुर - मालीपुर - बिलवाइ- शाहगंज - खेटासराय मेहरावन - जोनपुर - जाफराबाद -- जलालगंज - खलीसपुर- बाबतपुरशिवपुर होते हुवे बनारस टेशनजाय, रैलकिराया एकरूपया सात आने नवपाइ लगते है, -
[ तवारिख तीर्थ - बनारस ]
-
-
बनारस शहर निहायत पुराना और इसका असलीनाम वरनासी था, असल में यहांपर वरना और असीनामकी दो-नदीयां आनकर गंगाकों मिली. और उसजगह शहर आवादहुवा इसलिये वरनाअसी कहलाया, मगर लोकभाषामें आमलोग इसको बनारस कहनेलगे. बडेवडे दौलतमंद और खुशनशीब लोग यहां हमेशां आबाद होते चले आये, सातवे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ इसी बनारस में पैदाहुवे, चवन- जन्म - दीक्षा - और - केवलज्ञान ये चार कल्याणक उनके यहांहुवे, प्रतिष्टराजा के घर पृथवीरानीकी कुखसें ज्येष्टमुदी (१२) विशाखा नक्षत्ररोज उनका यहां जन्महुवा. बहुतमुततक उनोने यहां पर हकुमत कि, दीक्षालेनेके अवल- एक वर्षतक उनाने यहां अजहद खैरात कि, जेठमुदी (१३) के रौज दुनयवीकारोबहार छोड़कर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार कि और फाल्गुन वदी ( ६ ) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेव वगेरा उनकी खिदमतम आतेथे,
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तवारिख-तीर्थ-बनारस. ( २२७ ) तेइसमें तीर्थकर पार्श्वनाथ इसी बनारसमें पैदाहुवे, चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञान--ये--चारकल्याणक उनके यहांहुचे, अश्वसेनराजाकेघर-वामारानीकी कुखसे पोषवदी (१०) विशाखा नक्षत्रकेरौज उनकायहां जन्महुवा, तीर्थकर पार्श्वनाथजीने अपना विवाह नहीकराया, दीक्षाके पेस्तर एकसालतक उनोने यहांवहुतसी खैरातकिइ. और पोषवदी ( ११ ) के रौज दुनयवीकारोबार छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, और चैतबदी (४) के रौज उनको यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवते वगेश उनकी खिदमतमें आतेथे, बनारसके चारहिस्से पेस्तर मशहूरथे, देववाणारसी राजवाणारसी-मदनवाणारसी-और-विजयवाणारसी, बडेबडे बन खंड-उद्यान-और-बागबगीचे यहांमौजूदथे, जिसमें तरहतरहके फल-और-फुल पैदाहोतेथे, अबभी किसीकदर कमनही है, इल्म संस्कृतकी यहां हमेशां तरक्कीरही,
चीनामुसाफिर हवांक्तसांगने अपने सफरनामेमें लिखाहै-मैने -शहर बनारस बचश्म देखाथा. राजाजयसिंहजीके बनवाये हुवे चंद्रसूर्य और तारा वगेराके देखनेकेयंत्र पेस्तर यहां बनेथे आजकल विल्कुल उमरम्मतहै, ज्योतिषकी वेधशाला पेस्तर इसलिये बनाइ जातीथीकि-ज्योतीषीलोग चंद्रमूर्यतारा वगेराके चलनेफिरनेका हाल ब-खूबी-मालूमकरसके, वनारसको इमारते बहुतखूबमुरत और संगीनहै, गलियां तंग और मकानात इतनेऊंचकि-गर्मीयोंकेदिनोमें चलनेफिरनेका बडाआराम-छातेको कोइदरकारनही, छांव छांवमें हरेकजगह घूमआओ, बनारसकी मर्दुमशुमारी छावनीको मिलाकर (२१९४६७) मनुष्योंकी-चौकबाजार बडागुलजार-और-हरेक किसमकीचीजें यहांपर मिलती है, सडकेलंबीचाँडी और हरजगह पानीकानल मौजूदहै. बाजारमें पुरी-कचौरी-हरवख्त तयारमिल
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( २२८ )
तवारिख - तीर्थ - बनारस.
ती है, किरायेके इक्का - बगीभी - हरजगह तयारमिलेंगे, चूरनवेचनेवाले दोह - कवित्तोंकों बोलकर अपनेमालकी तारीफ कररहे है. चांदनी चौक - जोरीबाजार - चौखंभा - और - नया चौक - ये - बनारसके नामीबाजार है. बनारसकी मशहूरचीजे - जरीके दुपटे - कमख्वाब रेशमी किनारीके धोतीजोडे तांबे पित्तलके बर्तन - और - सल्मेसि - तारेका कामहै. रेशमी कपडोंपर कारचोवीका काम यहां आलादजैका बनता है,
बनारस में जैन श्वेतांबर श्रावकोंके घर कुल ( २५ ) और -जैश्वेतांबर मंदिर ( ८ ) है, महोले भेलुपुरे में - जोकि - शहर से कुछफासलेपर है एकजैन श्वेतांबर मंदिर और धर्मशाला यहांपर बनी हुइहै. मंदिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथजीकी मूर्ति तख्तनशीन है, यात्री दर्शनकरे, धर्मशाला, बडी गुलजार जैन श्वेतांवर यात्री अकसर इसीमें ठहरा करते है, जोकोइ यात्री बनारस आवे और महोले भेलुपुरेमे जानाचाहे तो - बनारस कँटोन्मेंट टेशनपर उतरे. और शहरमें जाना चाहे राजघाट टेशनपर उतरे, महोला भदैनी - जोकि - बनारस से एककोशके फासलेपर वाकेहै वहां पर गंगाकनारे बछराज घाटपर एक जैन श्वेतांबर मंदिर बना हुवा है. और इसमें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ महाराजकी मूर्ति तख्तनशीन है, - बछराजघाट असेमोकेपर बना है कि - बनारस के कुल घाटोंका - देखाव - यहांपर खडेहो - कर देखलो मंदिर के पास दो-छोटीछोटी जैन श्वेतांवर धर्मशाला बनी हुई है यात्री इसमे ठहरना चाहे तो ठहरसकते है,
शहर बनारसकों वैदिक मजहब वालेभी वडातीर्थ मानते है. इसवजह से वैदिक मजहबके यात्री यहां बहुतआते जाते है, और गंगानारे का बहुवे है. राजघाट टेशनपर सवारीकेलिये इक्का - बगी - तयार मिलती है, देशनकेपास धर्मशाला मौजूद है -
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animun.mmmmmmarwar
तवारिख-तीर्थ-सिंहपुरी-और-चंद्रावती. ( २२९ ) हरकोइ मुसाफिर वहांजाकर ठहरसकताहै, कंपनीबाग बनारसमें नामीयामी है, और वहाखोरीकेलिये इसमें जानेकों कोइ रोकटोक नही, गंगानदीका पुल-लोहेके बडेबडे खंभेपर पुख्ता बनाहुवाहै, वनारससे तीनकोशके फासलेपर वौधलोगोका एकस्थूभ-जिनकों वे अपना पूज्यस्थान मानते है बनाहै, जोकि-अंदाज (९०) फुट ऊचा-और ( ३००) फुटके घेरेमें होगा, इस गुंबजके पास थोडीदुरपर बौधमजहबकी मूर्तिये निकली है जिनमें कइबेठीमुरतमें और कइखडी मुरतमेहै,
(तवारिख-तीर्थ-सिंहपुरी,) तीर्थ बनारसकी जियारत करके यात्री सिंहपुरीकों जावे जोकि तीर्थकर श्रेयांसनाथ महाराजकी जन्मभूमि है. बनारस केन्टोन्मेंटटेशनसे छोटीलाइनपर अलाइपुर टेशनसें रैलमें सवार होकर सारनाथ टेशनपर उतरे, सारनाथ टेशनसे सिंहपुरी ( १) मीलके फासलेपरहै, सवारी नहीमिलेगी पैदल जानाहोगा, बनारससे अगर इक्का-बगीके जरीये सिंहपुरी जानाचाहो-तोभी जासकतेहो, करीब (१) घंटेका रास्ताहै, सिंहपुरीकी जगह आजकल हिरावनपुर गांव आबादहै, ग्यारहमें तीर्थकर श्रेयांसनाथ महाराज इसी सिंह पुरी में पैदाहुवे, चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञान-ये-चार कल्याणक उनके यहांहुवे, विश्नुरानीकी कुखसें श्रवणनक्षेत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, बहुतअर्सेतक उनाने सिंहपुरीके तख्तपर अमलदारीकिइ. दीक्षा लेनेके पेस्तर यहां एकसालतक उनोने दान दिया,-फाल्गुन वदी ( १३ ) के रौज दुनियाके एशआराम छोड कर उनोने यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, और माघवदी ( ३) के रोज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा,-सिंहपुरी पेस्तर बडेबडे दौलत मंद लोगोकी आबादीसे सरगर्मथी, जहां रवन्नक अफजुथी
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.JAPAMNIA
( २३० ) तवारिख-तीर्थ-सिंहपुरी-और-चंद्रावती. आम-वहां बिल्कुल सुनसानहै, दिनोंकी गर्दीस सबपरहै, जमानेकी खूबी और रदबदल इसीकों कहते है,
सिंहपुरीका मंदिर गांवसें थोडीदूर जंगल में बनाहुवाहै, दोधर्मशाला-और बगीचा एकही हातेमें करीब पांचविधेके घेरेमें बनेहुवे,--मंदिरके ठीक बीचमें समवसरणका आकार और उसमें तीर्थकर श्रेयांसनाथ महाराजके केवलज्ञान कल्याणककी निहायत उमदा छत्री देखकर दिलखुश होगा, अग्निकोंनमें जो एकछत्री उपरके भागमें बनीहुइहै अधिष्टायक देवकी मूर्ति उसमे स्थापितहै. नैरूत्य कोनकी छत्रीमें तीर्थकर श्रेयांसनाथ महाराजकी माताकी मूर्ति और चौदह स्वप्नेका आकार शंगमर्मर पथरपर उकेरा हुवा मौजूदहै, वायव्य कोनकी छत्रीमें तीर्थकर श्रेयांसनाय महाराजके जन्मकल्याणककी स्थापना-और-इशानकोंनमे दीक्षा कल्याणककी स्थापना-अशोकक्षका आकार शंगमर्मरपर उकेराहुवा-मौजूदहै, निचेकी एकछत्रीमें तीर्थकर श्रेयांसनाथ महाराजके गर्भ कल्याणककी स्थापना एकछत्रीमें मेरूपरवतका आकार-और एकछत्रीमें तीर्थकर श्रेयांसनाथ महाराजके कदम जायेनशीनहै,___समवसरणकी पश्चिमकों तीर्थकर चंदाप्रभुका एक मंदिर जिसमे मूलनायक तीर्थकर चंदाप्रभुकी करीब ( १ ) फुट बडीमूर्ति त. ख्तनशीनहै, दर्शनकरके दिलखुश होगा. धर्मशालामें करीब ( २०० ) आदमी बखूबी ठहरसकते है, कोठरीये अलग अलग बनीहुइ और उत्तर तर्फकी धर्मशालामें छतभी मौजूदहै, यात्री धर्मशालामें कयामकरे, और तीर्थकी जियारतकरे. बगीचेमें गुलाब चमेली-बेला--गुलदाउदी-मरूआ-जुही--केवडा--चंपा वगेराके फुल पैदाहोते है और हमेशांकी पूजनमें चढायेजातेहै, नोकर-चाकर-चौकीदार बगेरा हमेशां यहांपर बनेरहते है,
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तवारिख-तीर्थ-सिंहपुरी-और-चंद्रावती. ( २३१ )
RF ( तवारिख-तीर्थ-चंद्रावती.) बनारसमें सातकोशके फासलेपर गंगाकनारे चंद्रावती एक पुराना शहरहै, रैलमें जानेवालोंकों (१५) मीनीटका रास्ता
और इक्के-बगीमें जानेवालोंकों (२) घंटेका रास्ताहै, जिसकी जैसी मरजीहो- जैसाकरे, इक्के-बगीमें जानेवालोको वनारससे (७) मील जानेपर एक मौजा जिसकानाम उमरहाहै मिलेगा, (१२) मील जानेपर चोबेपुर-और-चोबेपुरसे (३) मील आगे-चंद्रावती मिलेगी. आठवे तीर्थकर चंदाप्रभु इसी चंद्रावतीमें पैदाहुचे, चवन-जन्म-दीक्षा--और-केवलज्ञान-ये--चारकल्याणक उनके यहां हुवे, महासेन राजाके घर लक्ष्मणा रानीकी कुखसे पोषवदी (१२) अनुराधा नक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, बहुतअर्सेतक उनोने चंद्रावतीपर अमलदारीकिइ, दीक्षाके अवल एकसालतक उनोने यहां बहुतखैरातकिइ, पोषवदी (१३) के रौज दुनियाके कारोबार छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, और फाल्गुनवदी (७) मी के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, पेस्तर चंद्रावती बहुतबडी नगरीथी, जमाने हालमें छोटासा कस्बा रहगया, दुनियाका यही कारोबारहै कोइ आबाद और कोइबरबाद होताहै,
धर्मशाला यहां एक बहुतबडी बनीहुइहै जिसमेंकरीव (५००) आदमी व-खूबी ठहरसकते है, कोठरीये (२०) पका सहन और कोठरीयोंके उपर छतवनीहुइ गर्मीयोंकेदिनोंमें आरामकी जगहहै, यात्री धर्मशालामें कयामकरे, धर्मशालासे करीब (३००) कदमके फासलेपर गंगाकनारे एकबडाखूबसूरत जैनश्वेतांबर मंदिर बनाहुवा है जो मानींद देवलोकके नजरआताहै, इसमे तीर्थकर चंदाममुके
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( २३२ ) तवारिख-तीर्थ-सिंहपुरी-और-चंद्रावती. कदम और तीर्थकर शांतिनाथ महाराजकी शामरंगमूर्ति करीब (१॥) फूटबडी तख्तनशीनहै, दर्शनकरके दिलखूशहोगा. करीब (४) विधेके घेरे मंदिर और कोट इस खूबसुरतीकेशाथ बने हैकि -मानो ! एक देवमजलिस नजर आती है. कोटकी पूर्वतर्फ गंगा नदी बहती है, पहाडकी चोटीपर क्याही ! उमदा तीर्थस्थान बना हुवाहैकि-जिसकी तारीफ ३मीशालहै. कोटकेघेरेमें करीब पांचहजारआदमी बखूबीवेठसकते है,-मंदिरकी पश्चिमतर्फकाकोट गिरगयाहै, इसकी मरम्मतहोना दरकारहै, यात्री चंद्रावतीकी जियारत करके वापिस वनारस आवे. रैलरास्तेगयेहो-चे-रैलसे-और-इक्के वीमें गयेहो-वे-इक्के बगीमें बनारसही आवे, क्योंकि-आगे-जानेकेलिये रास्ता इधरहीसे है.-बनारससे यात्री गया शहरहोतेहुवे आगे भदीलपुरकी जियारतकों जावे.
बनारससे रैलमें सवारहोकर-मोगलसराय-मझवार-सैयदरा. ज-कर्मनासा-दुर्घटी-भाबुआरोड-पुसौली-कुद्रा--सहसराम-करवंडिया-देहरीआनसोन-सानइष्टवंक-पालमेरगंज-फिसार--जखीम-रफीगंज-इस्माइलपुर-और-परैया होतेहुवे गयाशहर जाय, रैलकिराया अंदाज पनराआने नवपाइ, बिहारप्रदेशमें गया-एक पुरानाशहरहै, गयाके दो हिस्से है, एकपुरानागया-और-दुसरासाहबगंज, फल्गुनदीके वायेकनारे दोनोंहिस्से आवादहै, साहबगंजमें सडकेलंधीचौडी-मकानात-दोतीन-मंजिले-और-बाजार रवनकपरहै. जैनश्वेतांवर श्रावकोके घर-या-मंदिर यहांपर नही.तिजारत गया ज्यादहहोती है, फल्गुनदीके कनारे कइघाट बनेहुवे है, वैदिक मजहबवाले गया में अपनातीर्थ मानते है, और पीडदान करते है, गयाशहरसे (६) मीलके फासलेपर बौधगया नामसें एकमशहूर मंदिरहै. और बौधलोग बडीवडीदूरसे यहां आते है.
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तवारिख - तीर्थ - भदीलपुर.
( २३३ )
गयाशहरकी मर्दुमशुमारी साहबगंजको मिलाकर (८०३८३) मनुप्योंकी - और - टेशनसें शहर कुछ फासलेपर है, सवारीकेलिये इक्का aft तयार मिलती है. --
(तवारिख तीर्थ - भदीलपुर )
गया शहर भदीलपुर खुश्की रास्ते करीव ( १६ ) कोशके फासलेपर वाकेहै, और वहांजानेके लिये (२) रास्ते है, एक शहर घाटी होकर दुसरा डोवीगांव तर्फ, शहरघाटीवाला रास्ता अछा है, गयासे शहरघाटी (१०) कौश - और - शहरघाटी से इंटरगंज ( ४ ) कोश - और हंटरगंज से ( २ ) कोशआगे हटवरीयागांव मिलेगा. गयाशहर से इक्का - बंगी - किराये मिलसकते है. इक्केका किराया जा
आते करीब ( ५ ) रुपये - और - बर्गीके दस या बारां समझो. खानपानके लिये गया शहर से बंदोबस्त करलेना बहेतर है, गयासे शुभहकों इकेमें रवाना होकर शामतक हंटरगंज पहुच सकोगे, वहां रातको ठहरकर शुभहकों हटवरीया गांव जाना, पहाडकी तराइमें झाडी झुखड - - द्रख्तोके झुंड और वीश पचीश घरोंका कस्बा - हटवरीया गांव- आबाद है, पेस्तर यहां भदीलपुर शहर
--
आवादया,
दस तीर्थकर शीतलनाथ महाराज इसी भदीलपुरमें पैदाहुवे, चवन - जन्म -- दीक्षा - और - केवलज्ञान - - ये - चारकल्याणक उनके यहांहुवे, द्रढरथ राजाके घर नंदारानीकी कुखसें माघवदी ( १२ ) पूर्वाषाढा नक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत अर्खेतक भदीलपुरपर सलतनत कि, दीक्षाके पेस्तर एक सालतक उनोने यहां खैरात कि, माघवदी ( १२ ) के रौज दुनियाके एशआराम छोडकर उनोंने यहां दीक्षा इख्तियार किr, और पोषवदी ( १४ )
२.
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( २३४ ) तवारिख-तीर्थ-भदीलपुर. के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, देवकीजीके (६) पुत्र इसी भदीलपुरमे परवरीश हुवे, पेस्तर जोकुछ रवन्नकथी अवनरही,-आजकल-यहां-न-कोई श्रावकहै,-न-जैनश्वेतांबर मंदिरहै, पहाडपर बेशक ! एक मंदिरहै मगर वगेर मूर्तिके खालीपडाहै. हटवरीया गांवसे एक आदमीकों शाथलेकर-पहाडपर जानाचाहिये, वगेर आदमीके रास्तेका पता-न-लगेगा. पहाडका चढाव करीब ( १ ) कोशका होगा. जिधर देखो तरह तरहकी वनास्पति और हरेक किसमके दख्त खडे है. जब पहाडके सीरेपर जाओगे बडा मेंदान और वहांपर एक आकाश लोचन तालाव मिलेगा. इसके पास थोडी दूरपर एक खाली जैनश्वेतांबर मंदिर जो उपर लिख चुके है खडाहै. उस जगहपर जाकर तीर्थकर शीतलनाथ महाराजकी इबादतकरे और अपनी भदीलपुर तीर्थकी जियारत कामयाब हुइ समझे, आकाश लोचन तालावकी पूर्वतर्फ एक पाताल पानीकुंड बनाहुवाहै,-पहाडसें करीब (६) घंटेमें दर्शन करके नीचे हटवरीया गांव आसकतेहो, भदीलपुरके पहाडकों आजकल यहांके लोग कोलुका पहाड वोलतेहै, मगर असली नाम भदीलपुर तीर्थ है, हटवरीया गांवसे इक्कमे सवार होकर वापिस हंटरगंज होतहुवे शहर घाटी आकर रातको आराम करना. और दुसरे रोज सवेरे चलकर दिनके दो-वजेतक गया शहरको आना, गया सहरसे रैलमे सवार होकर मानपुर-पैमारवजीरगंज-तिलैया टेशन होतेहुवे नवादा टेशन उतरे, रैलकिराया दो-आने-नवपाइ, यहांसे खुश्की रास्ते पंच तीर्थीकी जियारतकों जावे,
नवादेसे पंचतीर्थकों जानेकेलिये सवारी मिलसकती है, खुकी रास्ते अंदाज ( २० ) कोसके घेरेमें पंचतीर्थीकी जियारतको
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तवारिख-तीर्थ-राजगृही... ( २३५ .) गुणायाजी-पावापुरी-राजगृही--कुंडलपुर--और--सूबेविहार-ये-- पंचतीर्थीके नामहै, और सूबेविहार-रैलका टेशनहै, जो यात्री मूबेविहार टेशन उतरकर पंचतीर्थीकी जियारत करना चाहे-उनको तीनकोसपर अवल कुंडलपुर जानाचाहिये, कुंडलपुरसे (४) कोश राजगृही-राजगृहीसें (५) कोश पावापुरी और पावापुरीसे (६) कोश गुणायाजी-और गुणायाजीसे करीब (१) कोशपर कस्वा नवादाहै. जोकोइ यात्री नवादा टेशन उतरकर पंचनीर्थी करनाचाहे तो अवल गुणायाजीकी जियारतकरे, गुणायाजीसें पावापुरी, पावापुरीसे राजगृही-राजगृहीसे कुंडलपुर और कुंडलपुरसे मूवेविहार जावे, जिनकी जैसीमरजीहो-वैसाकरै,
जोकोइ यात्री नवादा टेशन उतरकर पंचतीर्थीकी जियारतकरे और वापिस नवादा आवे तोभी बनसकताहै, नवादासे अवल राजगृही जाय,
[ तवारिख तीर्थ राजगृही, 1 • मुल्क मगधकी राजधानी राजगृही नगरी पेस्तर बडीरवनक परथी, क्षितिप्रतिष्टित नगर-रिषभपुर--कुशाग्रपुर-ये-सबइसीके नामहै. बीसमें तीर्थकर मुनिमुव्रतस्वामी इसी राजगृहीमें पैदाहुवे,मुमित्रराजाके घर पदमावती रानीकी कुखसे ज्येष्टवदी (८) मी अषण नक्षत्रके रोज उनका यहां जन्महुवा. बहुत अर्सेतक उनोने राजगृहीपर अमलदारी फिइ. दीक्षा लेनेके पेस्तर एकसालनक उनोने यहां बहुत खैरात किड, फाल्गुन मुदी ( १२) के रौज दुनीयाके एस-आराम-छोड़कर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार किड, ग्यारह महीने छदमस्थ हालतमें रहे, यानी तपकिया, और
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( २३६ ) सवारिख-तीर्थ-राजगृही. फाल्गुन वदी ( १२ ) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा. इंद्रदेवने वगेरा उनकी खिदमतमें-आतेथे,___ तीर्थंकर महावीरस्वामीने यहां (१४) चौमासे किये. महाराज प्रसेनजित इसीराजगृहीके राजाथे. जो राजा श्रेणिकके वालिदथे महाराज प्रसेनजितकों औरभी कइ लडकेथे, एक वख्तकी बातहै तमाम लडकोंकों हुकम दियाकि-तुम-आयुधशालामें जाओ ! और एकएक चीज-जो-तुमारे दिल पसंदहो-उठालाओ, तमाम लडकोने अपने दिल के मुताविक एकएक चीज उठाइ किसीने हीरा-जवाहि गत-और किसीने मोती वगेरा उठाया, और अपने वालिदके सामने आये. श्रेणिक लडकेने एक विभीसार नामकी भेरीउठाइ और अपने वालिदके सामने लाया, महाराज प्रसेनजितने पुछा यह भेरी क्यौं लाया ! श्रेणिकने बडी होशियारीके शाथ जवाव दियाकिजहां-मेरे नामकी भेरीबजेगी वहांही मेरा राज्यहोगा, उसके वालिदने अपने दीलमें ख्यालकीयाकि लाइक तख्तके यही है, मगर जाहिरातमें उसपर नाराजी इस गरजसे बतलातेथेकि-कोइ-रानीया-नोकर चाकर इसकों मार-न-डाले, इधर श्रेणिक अपने वालिदके खयालात देखकर जैसा समझ गयाकि-मरे वालिद मुजसे नाराजहै-मुजे- लाजिमहै-में-कहीं दुसरे शहरमें चलांजाउ. गरजकि-राजगृही छोडकर चलागया. जब वालिदका अखीर वख्त आया-उसवख्त उनाने श्रेणिकको यादकिया, दिवान वगेरासे कहा इसको ढूंढलाओ ! और राजगृहीके तख्तपर बिठाओ ! ! नोकर चाकर लोग इनकी तलाश करके लाये और बाद प्रसेनजितके उनकों तख्तपर बेठाये, तीर्थकर महावीर स्वामीके जमानेमें राजगृहोके तख्तपर श्रेणिकराजा राज्य करताथा, पेस्तर दिगर मजहबपर इसका एतकात था मगर जब तीर्थंकर महावीर स्वामीको धर्मतालीम पाइ उसका एतकात जैनमजहबपर पावंदहुवा,
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तवारिख-तीर्थ-राजगृही. ( २३७ ) तीर्थकर महावीर स्वामीके ग्यारह गणधरोने यहां मुक्तिपाइ, जंबुस्वामी-एकबडे कामील शख्श जिनकेघर करोडो रूपयोंकी दौलतथी-और-जिनके आठऔरतें बडीकमालहुस्न-और-खूबमुरतथी-छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, धन्ना-औरशालिभद्रजी-इसी राजगृहोके रहनेवालेथे. जिनकेघर अजहद दौलतथी उनोनेभी यहांदीक्षा इख्तियारकिइ, अगर धर्म-प्यारा-नहोतातो असा कौनकरता !-शव्यंभवमूरि इसी राजगृहीमें जैनाचार्योकी धर्मतालीमसे जैनहुवे, बडीबडी नायाव--और-अजुवा बातें-यहां होचुकी है. राजा श्रेणिकके कइरानीयां और लडकेथे, जिनमें अभयकुमार एकलायक और अकलमंद शख्शथा. और वही उनका दिवानथा, जब उसने दुनियाछोडकर दीक्षा इख्तियार किइ, कौणिक नामका लडका जोकि-बडाजाहिलथा-राज्यकी लालचसे अपने वालिद श्रेणीककों केदकरके आप राजगृहीके तख्त परवेठा, अभयकुमार अगर दुनियादारी हालतमें मौजूदहोतातो कोणकी ताकत न--होतीकि--अपनेजइफ वालिदकों केदकरसकता. राजाश्रेणिक जइफीहालतमें होहीगयेथे, केदमेंही उनका इंतकाल हुवा, राजगृहीके वाशिंदे कौणिकपर बहुतनाराजहुवे, और कहने लगे जिसने अपने वालिदकों केदकिया-वह-हमारेशाथ कयासलुककरेगा ? श्रेणिक जैसे राजा और अभयकुमार जैसे दिवानहोना दुसवारहै, राजाश्रेणिकके मरनेपर कौणिकने राजगृही छोडकर चंपानगरी में रहना इख्तियार किया, हल्ल-विहल्लकुमार जो कौणिकके छोटेभाइथे, उनकेशाथभी उसने नेकी नहीकिइ, गरजकि-कोणिकने अपनी तमामउमर झगडेबखेडेमेंही खतमकिइ, आखीरकार तीर्थकर महावीरस्वामीकी नसीहतसें कुछजैनधर्मपर एतकातलाया था-मगर वसवबजइफीके ज्यादह धर्मनही करसका. उसकी वफातकेबाद उसका बेटा उदायि-उसकी जगइपर-तख्तनशीनहुवा,
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( २३८ ) तवारिख-तीर्थ-राजगृही. लेकिन ! उसने अपना तख्त चंपानगरी में रखना पसंदनही किया, और नयाशहर पटना आबादकरके वहांपर अपना रहना वसना इख्तियार किया, ___रोहिणीयाचौर इसी राजगृहीके पास वैभारगिरिकी कंदरामें रहनेवाला था, और किसीसे गिरफतार नहींहोसकताथा, एकरौज इत्तिफाकसे उसने तीर्थकर महावीरस्वामीकी कुछ धर्मतालीममुनी,
और उसतालीमसे उसको नसीहतहुइकि-में-ऐसे फेलोंकों छोडकर परमात्माकी इबादतमें दिललगाउ, गरजकि-उसने चौरीकरना छोडकर धर्मपर दिललगाया, राजगृही आजकल एकछोटासा कस्वाहै, करीब अढाइहजारवर्ष के पेस्तर यहां झलाझलरौशनी और दौलतथी, आजयहां न-वह-दौलतहै-न-रवन्नकहै, असलमें-जवाल-और-कमाल सबको लगाहुवाहै, राजगृहीका एकमहोल्लानालंदनामका-जो-बहुतमशहूर और मारुफथा, जिसमें जैनलोगो. की बहुतआवादीथी, चीनामुसाफिर हवांक्तसांग-और-सीनयनअपनेसफरनामेमें बयानकरते हैकि-हमने-राजगृहीकों और नालंद महोल्लेकोंभी देखाथा. बडेबडे पंडित-और-दोलतमंद लोग यहां रहतेथे. इसवख्त राजगृहीमें जैनोकी आवादी नहीरही. जैनश्वेतांपरमंदिर और एक-बडी आलिशान जैनश्वेतांवर धर्मशाला-करीव (४) विधेके घेरेमें पुख्ता बनीहुइ है. इसमें तीनकोठरी-जोदखनकीतर्फ बनीहुइ है. श्रीमती-हुलासवाइ- साकीन बंबाइबनाइहुई है. अठारांकोठरी पंचोकीतर्फसे-और-बीचमें एकवंगला -शेठ रुपचंद रंगीलदास-साकीन एवला-मुल्क दखनवालोका बनायाहुवाहै. एकबगीचा बीचइसी धर्मशालाके बनाहुवा जिसमें गुलाब-चमेली-बेला-गुलदाउदी-जुही--निवार-और हारशिंगावरोराकेफुल पैदाहोते है और हमशांकी पूजनमें चढायेजाते है यात्री
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तवारिख - तीर्थ - राजगृही.
( २३९ ) धर्मशाला में कयामकरे. इक्का - बगी वगेराकेलिये पासमें दुसरी धर्मशाला करीब ( ५ ) विधेके घेरेमें मौजूद है, चारोंतर्फ कोट घिरा हुवा - करीब - ( २०० ) गाडीबेंल - इसमें व - खूबी रहसकते है.
जैन श्वेतांबर मंदिर यहां तीन है मगरएकही हातेमें बने हुवे होनेकी वजहसे दूर से एकही मालूम होते है, एक पुराना - और - दो - नये है, एकमंदिरमें तीर्थकर पार्श्वनाथजी की मूर्ति-दुसरेमें तीर्थकर रिषभदेव महाराजकी- और तीसरेमे - तीर्थकर मुनिसुव्रत स्वामीकी मूर्त्ति - तख्तनशीन है. तीर्थ राजगृहीका कारखाना - मुनीम - गुमास्ते - नोकरचाकर-पूजारी वगेरा सबश्वेतांबरोंकी तर्फसे है, खानपान - कीची आटा-दाल - घी - सकर - वगेरा यहां मिल सकती है.
राजगृहीके पंचपहाड जिनपर जैन श्वेतांबर मंदिरवनेहुवे, काबिलदेखनेके है, राजगृहीसें थोडीदूरपर चलनेसे विपुलगिरि पहा - डकी दामनकों जाते रास्तेमें गर्मपानी के भरेहुवे पांचकुंड मिलते है, वहांसे आगे पहाडकारास्ता शुरुहोगा, रास्ता बांकाटेडा-और-चढा मुश्किल है. पहाडके सीरेपर अमंता मुनिकी छत्री बनी हुइ और उसमें अहमतामुनिकी शामरंग मूर्त्ति खडेआकार तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् ( १८४८ ) कातिकसुदी - पुनमके रोज जैन श्वेतांबर संघने यहां अतिमुक्तकमुनिकी मूर्ति तख्तनशीन far, और अमृतवाचक महाराजने इसकी प्रतिष्ठा कि, दूसरा मंदिर तीर्थंकर महावीरस्वामीका इसमें उनके कदम कमलदलपर तख्तनशीन है. तीसरा मंदिर तीर्थकर चंदाप्रभुका इसमें चंदाप्रभुके कदम तख्तनशीन है. चोथामंदिर तीर्थंकर महावीरस्वामीका - इसमें तीर्थंकर महावीरस्वामी के कदम-और-एकमूर्त्ति खडीमुरतमें तख्तनशीन है, इसमंदिरकी दूसरी मंजिलपर समवसरणकी शिकलबनी हुइ-तीन किले - और - वारांपरखदाका आकार उमदा बना हुवा -दे
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। २४० ) तवारिख-तीर्थ-राजगृही. खकर असलीसमवसरण यादआताहै, पांचवामंदिर तीर्थकर मुनि सुव्रतस्वामीका-इसमें मुनिसुव्रतस्वामीके कदम तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१९२८ ) में इसकी मरम्मत किइगइ, छठामंदिर तीर्थकर रिषभदेवस्वामीका-इसमें उनके कदम तख्तनशीनहै और उसपर लिखाहै संवत् ( १८१६) ओशवंशगोत्रे-बुलाखीदास-तत्पुत्रमाणिक्यचंद्रेण-राजगृहे--वैभारगिरौ-जीर्णोद्वारःकारापितः-असलमें यहकदम-वैभागिरिपरथे वहांसे यहां लायेगये है. दुसरेकदम-तीर्थकर रिषभदेव महाराजके यहांपर मौजूदहै, और उसपर संवत् ( १८७४ ) में-श्रीजिनहर्षमरिने इसकी प्रतिष्टाकिइ लिखाहै, यह कदमभी पेस्तर वैभारगिरिपरथे, वहांसे यहां लायेगये है, तीसरे कदम तीर्थकर महावीरस्वामीकेभी यहां. पर जायेनशीनहै. और उसपर लिखाहै संवत् ( १९००) में इसकी प्रतिष्टा किइगइ-और-ओशवाल वंशोद्भव-बाबु खुशालचंद्र पत्नी-प्राणकुमारीबीबीने इनकों बनवाये, विपुलगिरिसे उतरकर रत्नागिरि पहाडपर जाना. विपुलगिरिका चढाव एककोशका
और-उतारभी एककोशका है.___रत्नागिरि पहाडपर दो-मंदिर बनेहुवे है एकवडा और एक छोटा-बडामंदिर तीर्थकर शांतिनाथजीका-इसमें शांतिनाथमहाराजके कदम तख्तनशीनहै. और उसपर लिखाहै संवत् (१८१९) में ओशवालगंधीगोत्र-बुलाखीदासके बेटे-मणीक्यचंद्रगंधीने इसकों तामीरकरवाये, तीनकदम औरभी है उनपरभी यहीलेख लिखाहुवा है, दूसरामंदिर तीर्थकर चिंतामणीपार्श्वनाथजीका-इसमें उनके कदम-तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१९००) मेंसचिंतीगोत्र-बाबु-महतावचंदजीकी औरत-चिरोंजीबीबीने इसकी मरम्मतकरवाइ, ये-कदमभी पेस्तर वैभारागिरपिरथे, बादमें यहां
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तवारिख-तीर्थ-राजगृही. ( २४१ ) लायेगये है, रत्नागिरिसे उतरकर उदयगिरिकों आना, पहाडसें उतरकर एक मीलतक साफरास्ता मिलेगा, इसजगह बहुतबडा मेंदान-और-तरहतरहकी जडीबुटीये-खडी है, अनंतमूल-गोरखंडी-शतावर-सहदेवी-आसगंध-बगेरावगेरा, फुलोंमें चमेलीबेला-गुलदाउदी-जुही-निवार वगेरा यहांपर पैदाहोते है. रास्तेमें मीठेजलका कुवा मौजूदहै जिसकेजरीये यात्रीयोंकों आराम मिलताहै,
उदयगिरिका चढाव-कठिनहै, और इसपर दो-मंदिर-मौजूदहै. एक-शामलियापार्श्वनाथजीका-दुसरा शांतिनाथजीका-शामलियापार्श्वनाथजीके मंदिरमें-तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी निहायत खूबसुरतमूर्ति-करीव (२) हाथवडी तख्तनशीनहै, इसपर लेख नहीहै, और जो तीर्थकर पार्श्वनाथजीके कदम जायेनशीनहै उसपर लिखाहै संवत् ( १८२३) में-ओशवालगंधीगोत्र-घुलाखीदासजीके बेटे माणिक्यचंद्रजीने इसकों तामीरकरवाये,-मंदिरकी परकम्माके सामने एकछत्री बनीहुइहै, उसमें तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी शामरंगमूर्ति-और-तीर्थकर अभिनंदनजीके कदम तख्तनशीन है. उसपरलिखाहै संवत् (१८२३) में ओशवालगंधीगोत्र-बुलाखीदासजीके बेटे माणिक्यचंद्रजीने इनकों बनवाये, दाहनीतर्फकी दिवारमें एकछत्री वनीहुइहै और उसमें तीर्थकर पदमप्रभुकी शामरंगमूर्ति जायेनशीन है. पिछाडीतर्फ दिवारमें एकमूर्ति और उसकेपास तीर्थकर सुमतीनाथजीके कदम जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१८२३ ) में ओशवालगंधीगोत्र-माणिक्यचंद्रजीने इसकों तामीर करवाये. वायीतर्फकी दिवारमें एकछत्री और उसमें एकमूर्ति शामरंगकी तख्तनशीनहै, पूर्वतर्फ तीनमंदिरगिरेहुवेपडेहै, उदयगिरिपर पेस्तर औरभी कइमंदिरथे मगर सबनेस्तनाबुद होगये, उदयगिरिसे उतरकर स्वर्णगिरिकी तर्फजाना. रास्ताकोसभरका
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( २४३ )
तवारिख - तीर्थ - राजगृही.
उतार- बीचमें कुछ सिधीसडकभी आती है. यहां पर पानीका एकनाला हमेशां वहता रहता है, यात्रीकों पानीकी तकलीफ नहीहोती.
स्वर्णगिरिverses arrव और उतार दोनोंबराबर है और इसपर ( २ ) मंदिर बने हुवे है, बडामंदिर तीर्थकर रिषभदेव स्वामीका - इसमें तीर्थकर रिषभदेवमहाराजकी शामरंगमूर्ति और उनकेकदम तख्तनशीन है, मूर्त्ति करीब ( ३ ) फुटबडी और इसपर लिखा हुवा है संवत् ( १५०४ ) फाल्गुनसुदी ( ९ ) वीजाहडगोत्र-संदेवराजपुत्र - सं- खीमराज -सं- शिवराज भार्यामाणिक्यदे पुत्र--संरणमलधर्मदासने - यह मूर्त्ति तामीरकरवाई. दुसरामंदिर छोटा है, और इसमें तीर्थकर शांतिनाथजी की मूर्ति करीब पौनफुट वर्डी त ख्तनशीन है, वडेमंदिरकी पश्चिमतर्फ एकमंदिर गिराहुवा पडा है, पेस्तर और भी मंदिर - मगर - अवनहीरहे, स्वर्णगिरिसें उतरकर वैभारगिरिपहाडकोंजाना, रास्ते में तरहतरहकेद्ररूत और जडीबुटीयें इतनखडी है जिनका पहिचानना दुसवार है, वैभारगिरिकीतराइमै - स्वर्ण भंडार - जो - राजाश्रेणिकका मशहूरखजानाथा पहाडकी खोहमें बना हुवा है, बडी भारीगुफा - और - उसके भीतर जानेकारास्ता पेस्तर बना हुवाथा आजकलचंद है. गुफा के दरवाजे के करीव तीर्थकर रिषभदेवमहाराजकी मूर्ति खडीसुरतमें कायोत्सर्गध्यानमयमौजूद है, और कुमारनमि-विनमि- उनकी खिदमत में खडे है, दर्शन करके दिलखुशहोगा, स्वर्ण भंडार से पूरवकीतर्फ निर्माल्य कुइ जहांकि - शालिभद्रजीकी औरतें हरहमेश नयेनये गेहने और पुशाकपहेनकर पुराने छोडदेती थी, वोजगह मौजूद है, यात्री वहांभी जाकरदेखे, क्या क्या ! खुशनसीब और इकबालमंदो की जगहथी और अवक्या! रहगइ ? सीर्फ ! जमीन पडी है. न- वो खनक है-न वो चीजे है. निर्माल्य कुइसे वापिस स्वभंडारी तर्फ आकर वैभारगिरिपहाडकों जाना.
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तवारिख-तीर्थ-राजगृही. ( २४३ ) वैभारगिरिपहाड करीव कोसभरऊंचा-और-बनिस्बतचारोंपहाडोंके इसका चढावउतारआसानीपरहै, इसपर अवलमंदिर तीर्थकरवासुपूज्यस्वामीका-इसमें-तीर्थकरवासुपूज्यस्वामीकी मूर्ति करीब (२) हाथवडी परिकरसमेत तख्तनशीन है, दाहनीतर्फ तीर्थकरने: मनाथजीकेकदम जायेनशीनहै, इसकी मरम्मत संवत् (१७७६) में हुइ, बायीतर्फ तीर्थकरशांतिनाथजीकेकदम मौजूदहै, इसकी मरम्मत संवत् (१९०० ) में हुइ, दुसरा मंदिर तीर्थकरमहावीरस्वाभीका इसमें तीर्थकरमहावीरस्वामीकी मूर्ति करीब तीनफुटबडी शामरंगतख्तनशीनहै, और तीर्थकर कुंथुनाथमहाराजके कदमभी इसमें मोजूदहै, इसकी मरम्मत संवत् (१९०० ) में-बाबु मोहनलालजीके बेटे-हकुमतरायजीने करवाइ, तीसरामंदिर तीर्थकरमहावीरस्वामीका इसमें उनकेकदम संवत् (१८७४ ) के प्रतिष्टित-और-तीर्थकर नेमनाथजीकेकदमभी जायेनशीनहै, एकमूर्ति तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी करीव (२) हाथवडी शामरंग जायेनशीनहै, यहमंदिर श्रीयुतबाबु परतापसिंहजी-साकीन मुर्शिदाबादने तामीरकरवाया, जोकि-वडा संगीन-और-पायदारहै, इसके चारोंकोंनोंमें चारकदम अलगअलग जायेनशीनहै, इसमंदिरकी दोंनोतर्फ और सामने तीनमंदिर गिरे हुवे विरानपडेहै, पेस्तर इसवैभारगिरिपर बहुतसेमंदिरथे-अबदिन ब-दिन कमहोतेजातेहै, चोथामंदिर चौइस तीर्थंकरोंका इसमें चौइसतीर्थकरोंकी छोटीछोटी (२४) मूर्त एकही परीकरमें तख्तनशीनहै, पांचवामंदिर तीर्थकररिषभदेवस्वामीका इसमें तीर्थंकररिषभदेव महाराजकीमूर्ती तख्तनशीन है, यहमंदिर-ओशवालगंधीगोत्रमाणेकचंद्रजीने तामीरकरवाया, रंगमंडप इसका उमदा और काबिल देखनेकेबनाहै, इसकी उपरकी मंजिलपर नकशा समवसरणकानिहायत उमदाबनाहै-जो-आस्मानसें मशवरा करताहै देखकर असळी समवसरण यादआताहै, छठामंदिर गौतमगणधरका-जो
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( २४४ ) नवारिख तीर्थ - राजगृही
पांचवेमंदिरसे आगे आधमीलके फासलेपर है, इसमें तीर्थकर महावीरस्वामीकीमूर्त्ति करीव (४) फुटबडी तख्तनशीन है - और एकतर्फ (११) गणधरोंके कदम जायेनशीन है, और उनपर लिखा है संवत् ( १८३० ) माघशुक्ल पंचमी शुक्रवारकेरौज ओशवालवंश-गहेलडा गोत्र - जगतशेठ - फतेचंदजी -- उनके बेटे आनंदचंद्रजी - उनके बेटे मेहताबरायजी - उनकी - शेठानी - शिंगारदेवीने - राजगृही के वैभारगिरि पहाडपर - - ( ११ ) गणधरोंके कदम तामीर करवाये, सातमामंदिर धन्ना -- शालिभद्रजीका इसमें धन्नाशालिभद्रजीकी मूर्ति - कायोत्सर्ग ध्यानमयखडे आकार करीब ( १ ) फुटवडी तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् (१५२४) आषाढ (१३) के रौज श्रीजिनचंद्रमरिमहाराजके उपदेश श्रीकमलसंयमोपाध्यायेने यहां धना - शालिभद्रजी की मूर्ति प्रतिष्टित कि, इसके नीचे जिसश्रावकने मंदिर बनवाया उसकानाम वगेरालिखा है मगर हफों के घीस जाने की वजह से उठ सकता नहीं, -
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वैभारगिरि पहाड बडेबडे अजायब और नायाब चीजोंकी जगह है, बडेबडे आलिम फाजिल जैनमुनियोंने यहांपर ध्यानसमा धि कि. हरेकयात्रीकों ऐसे तीर्थकी जियारत करना चाहिये. वैभारगिरि पहाड सब पहाडोंसे रवन्नकदार है तरहतरहकी किंमती जडीबूटीये यहां पर खडी है. पांचो पहाडके तमाम जैनमंदिरमें पूजारी- नोकर-चाकर खर्च आमदनी वगेरा श्वेतांबरसंघके मातहत हैं, और हरेकमंदिरपर मरम्मत होना दरकार है, वैभारगिरिसे उतरकर राजगृहीकों आना, पहाडकी दामनमें ( १३ ) कुंड पानीके भरेहुवे पके बंधे है, पांचो पहाडोका चढाव - उतार - करीब ( १२ ) कोशके पैरेमें होगा, जोकोइयात्री शुभहके सातबजे राजगृहीसे डोली में - या - पांवपेदल - जावे - वह जियारत करके शासकों वापिस आसकते है;
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नपारिख-तीर्थ- कुंडलपुर-और-सुबेविहार.: ( २४५ ), गर्मीयोके दिनोमें दफेरकी धूप वैभारगिरिकी तराइमें गुजारनाठीक है, वहां ठहरनेकी जगहबनी हुई है, चारबजे वैभारगिरिपर जाकर सामकों राजगृही आसकतेहो, ठंडके दिनोंमें चाहे दिनभर पहाडकी जियारत करतेरहो, धूप बिलकुल-न-सतायगी, जो यात्री डोलीमें जानाचाहे उसको दोरुपये नवआने लगेगे, और डोली उठानेवाले (४) आदमी आयगें, उनको पहाडपर चढनेउतरनेका महावरा बनाहुवा है, तुमकों बखूबी शामकों राजगृही पहुचादेयगे.. मगर एकरौज पेस्तर डोलीका इंतजाम करलेना चाहिये ताकि-बरवख्त जियारतके देर-न-हो, जो यात्री पांवपेदल जियारत करेतो बहुत बहेत्तरहै मगर कमजोर और जइफआदमी अगर इत नी मेहनत-न-उठासके उनके लिये डोलीमें जानाभी कोइहर्जनही.
7 (तवारिख-तीर्थ-कुंडलपुर-और-सुबेविहार,) - कुंडलपुरगांव करीब (५००) घरोंकी आबादीका एककस्बा है, इसका दूसरा नाम आजकल वडगांव बोलते है, करीब चौइससोवर्ष पेस्तर इसकानाम माहणकुडगांव था, जिसकावयान कल्पसूत्रमें दर्ज है. जमानेहालमें यहां कोइ जैनश्वेतांबर श्रावकनही. एक जैनश्वेतांबर मंदिर यहांपर बनाहुवाहै, और इसमें मूलनायक तीर्थकर रिषभदेव महाराजकी मूर्ति करीब (३) फुट बडीतख्तनशीन है. जो-कि संवत् (१५०४) की तामीरकिइहुइ शामरंग निहायत खूबसुरत दर्शनकरके दिलखुशहोगा. सबमूर्तियें इसमंदिरमें (११) है, और एकतर्फ गणधरगौतमस्वामीके कदम जायेनशीन है, मंदिरमें फर्स शंगेमर्मरपथरका और सभामंडप अछा बनाहुवाहै, रंगमंडपके दरवजेपर एकशिलालेख लगाहै, और उसमे लिखाहैकिसंवत् (१९६०) में जैनश्वेतांवर श्रावक-शेठ-रुपचंद-रंगीलदास साकीन एवला-मुल्कदखनने मंदिरकी मरम्मतकरवाइ, मंदिरकेपास
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( २४६ ) तवारिख-तीर्थ-कुडलपुरी-और-मुबेविहार. धर्मशाला बनीहुइहै, दुरसेमंदिरका और धर्मशालाका एकही हाता मालूम देताहै, यात्री यहां कयामकरे और तीर्थकी जियारतकरे,बगीचा एक यहां बनाहुवाहै जिसमें गुलाब-चमेली-बेला-कामिनी बुंद-जुही-गुलदाउदी वगेराके फुल उतरते है और पजनमें चढाये जाते है, खानपानकी चीजोमें शिवाय आटादालके और यहांनही मिलेगी, कुंडलपुरकी गिर्दनवाहीमें चारपांच तालाव इसकदर गहरेजलसे भरेहुवे मौजूद है जिनमें हजारां कमलकेफूल पैदाहोते है, जिसके बडेभाग्यहो-ऐसे तीर्थकी जियारतकरे. ... [ तवारिख-सुबेविहार. ] ...जिले पटनेमें मुबेविहार एक रैलवेका टेशनहै, और टेशनसें करीब पौनमीलके फासले वस्ती सुवेविहार शुरुहोती है, सवारी टेशनपर इक्का-बगी वगेरा तयार मिलती है शहरमें जाकर महोलेमेथीआन-जैनधर्मशालामें कयामकरे, यहांसेभी पंचतीर्थी जानेका रास्ताहै. सुबेविहारमें पेस्तर जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी बहुत थी, मगरं इसवख्त सीर्फ ! पांच-छ-घररहगये, मंदिर तीर्थकर महावीरस्वामीका-जो-इसीधर्मशालामें वनाहुवाहै इसके दर्शनकरे, मूलनायक तीर्थकर महावीरस्वामीकी मूर्ति इसमें तख्तनशीन है, इस मंदिरमें एकशिलालेख जो अलगरखाहुवाहै करीब (२.) हाथ लंबा-और-एकबिलस्त चौडा है, और इसमें राजगृहीके विपुलाचल पहाडका बयानदर्ज है, तीर्थकर महावीरस्वामी-गणधरमुधमास्वामी-राजाश्रेणिक-और अभयकुमार वगेरानामभी मौजूद है. संवत् तिथि वगेराकी जगह दुटीहुइहै, पंक्ति (१६) हर्फ उमदा-मगर धीसनानेकी वजहसें कमपढनेमें आते है, अखीरकी पक्तिमें जहां गछकानाम होता है वहां किसीने तोडदियाहै, वन शाखा वगेरा नाम पेशक मौजूद है,-....
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तवारिख - तीर्थ - पावापुरी - और - गुणशिलवन उद्यान. (२४७ )
दुसरामंदिर बाजार में तीर्थंकर चंदाप्रभुस्वामीका - इसमें तीर्थकर चंदा की मूर्त्ति तख्तनशीन है. इसकेपास तीसरामंदिर तींकर अजितनाथ महाराजका - इसमें तीर्थकर अजितनाथ महाराजकी मूर्ति तख्तनशीन है, चौथामंदिर महोलेचोखंडी में तीर्थंकर रिषभदेव स्वामीका - इसमें तीर्थकर रिषभदेवस्वामीकी मूर्ति बिराज - मान है, इसकेपास एकउपाश्रय जैनमुनिलोगोके ठहरनेकेवास्ते मौजूद है, बाजार सुबेविहारका उमदा और हरेक किसमकी चीजे यहां पर मिलसकती है, तुंगीयानगरी जोकि आजकल तुंगीगांवके नामसे मशहूर है सुवेविहारसे ( २ ) कोस दखनकीतर्फ वाके है, तुंगीयानगरीके श्रावकोका बयान जैनशास्त्रोंमें जो दर्ज है - वह यही नगरीथी. पेस्तर बडी आबादी और यहांके श्रावक वडेधर्मपावंद थे. मगर आजकल - यहांपर - न - कोइ श्रावक है - न - जैनमंदिर है, सीर्फ ! एक छोटासा गांव आबाद है,
[तवारिख पावापुरी और गुणशिलवन उद्यान, ]
तीर्थंकर महावीरस्वामीकी निर्वाणभूमि पावापुरी एक जैनतीर्थ है, केवलज्ञान होनेकेवाद जब तीर्थकरमहावीरस्वामी यहां तशरीफ लायेथे देवताओने उनका यहां समवसरण बनायाथा, समवसरणं उस जगहों कहते है जहां धर्मकेबारेमें तालीम आमलोगों कों दिइजाये इंद्रभूति - अग्निभूति - और - वायुभूतिवगेरा (११) वडेचेले इसीपावापुरी में हुत्रे, वाद पावापुरी से रवाना होकर मुल्कों में आमलोगोंकों तालीमधर्मकीदिs, और हरजगह धर्मकीवाज करते रहे, जब उनकी जंमर ( ७२ ) वर्षीहुइ फिर पावापुरीमें आये, और अख़ीरका चौमासा यहां किया, जब उनके निर्वाणहोनेका वख्त आया दोदिन
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(२४८) तवारिख-तीर्थ-पावापुरी-और-गुणशिलवन उद्यान. तक उनोने आमलोगोंकों तालीमधर्मकीदिइ, साधु-साधवी-श्रावक श्राविका-उसवख्तके कइराजे-और इंद्रदेवतेबगेरा वहांहाजिरथे. उसवख्त तीर्थंकरमहावीरस्वामीसे-गौतमगणधरनेपुछाकि--महाराज! अब-आगे दुनियामें धर्मकापचार कैसारहेगा? तीर्थकरमहावीरस्वामीने जवाबदियाकि--मेरेनिर्वाणकेबाद तीनवर्ष और साडेआठमहिने गुजरेगे जब पांचमाआरा शुरुहोगा. उसरोजसे धर्मकी दिन-बदिन घटतीहोतीजायगी और अछीअछीचीजोंका जवालहोताजायगा, साधुलोग तकलीफ पायगें और असाधुलोग चैनकरेगें, वारीश जैसी होनाचाहिये-न-होगी, देवमंदिर कमहोतेजायगे, और धर्ममेंभी लोग फरेबकरेगें, पांचवेआरके एकीसहजारवर्षमें तेइसदफे धर्मका उदय और तेइसदफे अस्तहोगा, जंबूअणगारकेबाद मुक्तिकाहोना इसक्षेत्रसें बंदहोजायगा, और अधर्मकीद्धिहोगी, इसतरह क्यानफरमाकर कार्तिकवदी अमावासकेगैज जब चंद्रमा-स्वातिनक्षत्रपरथा उनका इसीपावापुरीसें निर्वाणहुवा. (यानी) यहांसे उ. नोने मुक्तिपाइ, देवताओने और मनुष्योने मिलकर उनकेशरीरका यहां अग्निसंस्कारकिया,... क्षत्रीयकुंडगांवकराजा नंदीवर्द्धनने यहां मंदिर तामीरकरवाया जो कमलसरोवरकेबीच अबतक मौजूदहै, दोकोशदूरसे यहमंदिरनजरआताहै और इसका दूसरानाम जलमंदिरभी बोलतेहै,-पावापुरी पेस्तरबहुत आवादी मगर दिनपरदिन कमहोतीगइ, आजकल एकछोटासाकस्वा रहगया, जैनश्वेतांवरधर्मशाला यहांपर (४) कायमहै, दो-पंचायती, एक रायबहादूरखुधसिंहजी-साकीनमुर्शिदाबादकी-और-एक-दुगड-मुन्नीलालबाबु-साकीनमुर्शिदाबादकीयात्री इनमें जहांमरजीहो-आरामकरे, बडीधर्मशालामें एक जैनश्वेतांबरमंदिर पनाहुवाहै, और इसमें तीर्थंकर महावीरस्वामीकी मूर्ति
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तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. ( २४९ ) तख्तनशीनहै, असलमें यहमूर्ति पुरानी है. और उसपर लिखाहैकि संवत् (४४४) में यह प्रतिष्टितकिइगइ, प्रतिष्टा करानेवाले आचार्यका नाम घीसजानेकी वजहसे पढनेमें नहीआता, इसमूर्त्तिके इर्द गीर्द तीर्थकर रिषभदेव-चंदाप्रभु-मुविधिनाथ-और-तीर्थकर नेमनाथमहाराजकी मूर्तिये जायेनशीनहै, मूलनायकके सामने तीर्थकर महावीरस्वामीके चरन-दाहनीतर्फ पुरानेचरन-बायीतर्फ ग्यारहगणधरोंके चरन-और-देवगिणि क्षमाश्रमण महाराजकी मूर्ति करीव (१) फुटबडी जायेनशीनहै, चारोकोनोंमे चारछत्री-एकमें ती. थंकर महावीरस्वामीके चरन-एकमें स्थूलभद्रजीके चरन-एकमें चंदनबालाके-और-एकमें दादाजीके चरन-मौजूदहै, रंगमंडप मंदिरका निहायत पुख्ता-और-निचे फर्स शंगमर्मरपथरका साफवना हुवाहै, मंदिरका शिखरवहुत बुलंदहै, और उसपर बावनकलसीयां लगीहुइ-निहायत खूबमूरति देरही है, मंदिरके बहार बगीचा एक बहुत-तर-ब-ताजा-वनाहुवा इसमें गुलाब-चमेली-चंपा-केतकी-बेला-मोघरा-गुलदाउदी-डमरा-मरुआ--जुही-कुंद-वगेराकेफुल पैदाहोते है और हमेशांकी पृजनमें चढाये जाते है,
धर्मशालाके अंदर ( २१ ) कोठरी और कइदालानहै, सब काम मजबूत और लदावका कियाहुवा-करीब (४००) आदमी इसमें ब-खूबी आराम करसकते है, और दरवजेके फाटकपर नकारखाना जारी है, दुसरी धर्मशाला इसीकी दिवारसे लगीहुइ इसमें वडाभारी कमरा और चारोतर्फ चारदालान बनेहुवे है. चारोतर्फ कोट खीचाहुवा और एकबगीचा इसमेंभी मौजूदहै, दोंनो धर्मशाला-और-मंदिर करीव (५) विधेकेघेरेमें बनेहुवे-और चारकुवे मीठेजलके यहांपर मौजूदहै, धर्मशाला और मंदिरके सा. मने जो सिधिसडक जाती है वह कमल सरोवरतक पहुची है. जहां
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( २५० ) तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. तीर्थकर महावीरस्वामीके चरन मुकीमहै, रास्तेमें-एकमंदिर-मेहताबकुंवर-साकीन-मुर्शिदाबादका तामीरकरायाहुवा शिखरबंद मौजूदहै, और उसमें मूलनायक तीर्थंकर महावीरस्वामीकी मूर्ति करीब (२) हाथबडी तख्तनशीनहै, एकतर्फ तीर्थकर रिषभदेव-और-एकतर्फ-शांतिनाथ महाराजकी मूर्ति जायेनशीनहै, मंदिरके उपर चौमुखाजीकी चारमूर्तिये-शिखर निहायत पुख्ता-जिसपर सोनेका कलश लगाहुवा देखकर दिलखूशहोगा. सामने मीठे जलकाकुवा और एकवगीचा लगाहुवाहै, जिसमें गुलाब-चमेलीबेला-गुलदाउदी--कुंद-जुही--जासूस--वगेराके फुल पैदाहोते है,
और हमेशांकीपूजनमें चढायेजाते है. मंदिरके पिछाडी धर्मशाला एक रायबहादूर बुधसिंहजी-साकीन मूर्शिदाबादकी तामीर कराइ हुइ जिसमे चारकोठरी-दोदालान-और-एक-कमरा-बनाहुवाहै, करीब (१००) आदमी इसमेंकयाम करसकते है दुसरी धर्मशाला बाबु मुन्नीलाल दुगडकी इसमें पांचकोठरी-चारदालान-और बीचमे खुलाचौक मौजूदहै इसमें करीब (५०) आदमी ठहरसकते है,
कमलसरोवरकी उतरमें एकमंदिर समवसरणका-जिसकीकतावजा निहायत उमदा-आठ मेहरावें-चारोंतर्फ लोहेकीजाली,-मेहराबोकेउपर तरहतरहके शीशे लगेहुवे-मंदिरकेठीकबीचमें शंग मर्मरपथरकी वेदी बनीहुइ और इसमें तीर्थकर महावीरस्वामीके पुरानेचरन तख्तनशीनहै. इसपर पुराना लेखथा, मगर-च-सबब घीसजानेकी वजहसे खुलनहीसकता, मंदिरकीचारोतर्फ (४८ ) चश्मोंका कोट-और-लोहेकाकठहरा बनाहुवाहै, जमीन पथरचुनासे गचीकिइहुइ-और-करीव एकविधेके घेरेमें यहमंदिर आबाद है, केवडेकेद्रख्त सामनेलगेहुवे और इसकी खुशबूचारोंतर्फ महेकरहीहै.
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तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. ( २५१ )
(बयान मंदिर कमलसरोवर.) मंदिरकमलसरोवर जिसकाहाल उपरबतलाचुकेहैकि-यह-मंदिर-क्षत्रीयकुंडगांवके राजानंदिवर्द्धनका तामीरकरायाहुवाहै. इस मंदिरका आसार और दिवार इसकदर पायदारीसे बनाइगइहैकिजमानेहालमें ऐसाबनना दुसवारहै, कमलसरोवरके कनारेसे मंदिर तकजानेकेलिये (५८८) फुटको पुलवनाहुवाहै यात्री इसीपुलपर होकर जलमंदिरकों जातेहै, दोंनोतर्फ पुलकेउपर पथरकेकठहरे बने हुवे है, यात्री जब मंदिरकेपासपहुचतेहै-तो-कोटका-अवलदरवजा मीलताहै, चारोंकोनेपर चारछत्रीये-लोहेका कीमतीकठहरा बहुत बडीकारीगिरीसे सनातकियागयाहै, यात्री जब दूसरीपरकम्मामें पहुचतेहै निहायत उमदाजगह मालूमहोतीहै, बहारआनेकों दिलनही होता तीसरीपरकम्मा जोकि-दर्मियान मंदिर और कमलसरोवरके है मानींद स्वर्गकेदेखलो!
जलमंदिरमें तीर्थंकर महावीरस्वामीकेचरन पुराने बनेहुवे त. ख्तनशीनहै, दाहनीतर्फके आलेमें गौतमस्वामीके और बायीतर्फके आलेमें सुधर्मास्वामीके चरन जायेनशीनहै, तीर्थकर महावीरस्वामी के चरनोपर हमेशां सोनेचांदीके छत्र बंधेरहते है, वेदीमें और दिवा. रोंपर चांदीकपत्र लगेहुवे-और-चांदीके खंभोपर शमियाना कमख्वाबका बनाया रहताहै. यात्री मंदिरमें जाकर तीर्थंकर महावीर स्वामीके धरनोंके दर्शनकरे, इसमंदिरके तीनोंतर्फ तीनदरवजे और चारोंतर्फ परकम्मा बनीहुइहै, कातिकवदी-अमावासकेरौज तीर्थकर महावीरस्वामीके निर्वाणकल्याणका जलसा बढीधुमधामसे यहॉपर होताहै. और उसवख्त बहुतसे यात्री यहांपरजमाहोत है, उस रोज तीर्थंकर महावीरस्वामीकी सवारी पावापुरीसे निकलकर इसी
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vvvvvvvvvvor
( २५२ ) तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. कमलसरोवरके मंदिरमें आतीहै, हाथी-घोडे-निशान-धजा-पताका-रथ-म्याना-पालखी-चांदीका समवसरण और-तरहतरहके बाजे शाथचलते है, इसतरह जलमंदिरमें जाकर शामको उसी जल सेकेशाथ सवारी वापीस पावापुरीआती है, उसवख्त मगधदेशके बहुतसे देहातीलोग जमाहोते है, और वडाजलसा होताहै, ऐसा नायाबजलसा यात्रीकों जरुरदेखना चाहिये, जिसकेबडेभाग्यहोऐसे-मौकेपर जियारतकों जावे, जलमंदिरमें तीर्थकर महावीरस्वाभीके चरनपर जो अंगीसोनेकी बनीहुइहै रायबहादुर धनपतसिंहजी साकीन-मुर्शिदाबादकी-बनाइहुइहै, पूरवदखनकी कोनमें जो सोलहसतीयोंके चरनहै उसपर लेख परतापसिंहजी धनपतसिंहजीका है. उत्तरपूरवकी कौनमें जो गणिदीपविजयजीके चरनहै-वे-जैनश्वेतांवरथे, और श्वेतांवरोंकीतर्फसे बनायेगयहै, बहारकीछत्रीमें जो दादाजीके चरनहै-उसपरलिखाहै संवत् ( १७५३ ) आषाढसुदी पंचमीकेरोज प्रतिष्टित कियेगये,
कमलसरोवरमें उतरनेकी सीढियां पूरवतर्फकी बनीहुइहै, उस जगह (३० ) हाथ उंडा जल हमेशां भरारहताहै. कमलसरोवर (८४) विधेकेघेरेमें बनाहुवा हमेशां पानीसे भरारहताहै, कभी मु. कतानही. वारीशकदिनोंमें बडीरवनकदेखोगे, और हरसाल इसमें हजारां कमलफुल पैदाहोते है. मोर-तोते-चिडिया-मुर्घ इसमेंहमेशा कलोले करतेरहते है. पेस्तर यहसरोवर बहुत बडाथा, पावापुरीसे पूरवकों आधमीलके फासलेपर पुराने समवसरणकी जगह छत्रीमें जो चरनथे-कमलसरोवरके नजदीक केवडोंके पेंडोंके पास जो समवसरणका मंदिर उपर बतायाहै उसमें तख्तनशीन कियेगये है, पावापुरीमें तीर्थका खजाना-मुनीम-गुमास्ते-नोकर-चाकर-चपरासी वगेरा सबठाठ बतौर शाहानाके मौजूद है, स्वर्च-आमदनी
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तवारिख - पावापुरी - और - गुणशिलवनउद्यान ( २५३ )
चढापा - जैन श्वेतांबर संघ के ताल्लुक है खानपानकी चीजे आटा-दाल - घी-दूध - सकर - वगेरा हरवख्त यहां मिलसकती है, यात्रीकों कोइतकलीफ नहीहोगी, -
( तवारिख पावापुरीकी खतम हुइ . )
ET [ तवारिख गुणशिलवन उद्यान ]
गुणशिलवन उद्यान - जिसकों - आजकल - गुणायाजीगांव बोलते है, करीब ( ३०० ) आवादीका एककस्वा रहगया, यहांपर Creators asratमती पुख्ता और पायदार मंदिर देखकर पावापुरीके हालात मालूम देते है. पावापुरीका काम बेशक ! बडा है यहांका तालाब - मंदिर वगेरा छोटे है, तालावके कनारेसे मंदिर तकजानेकेलिये पुल पकाबंधाहुवा जो करीब ( १७५ ) हाथलंबा और ( ४ ) हाथचौदा - दोनोतर्फ पुख्ताकठहरा बना हुवा - यात्री पुलपरहोकर मंदिरको जावे, वारीशकेदिनोंमें तालाब पानी से भरजाता है मगर गर्मीयोंके दिनोंमें बेशक! सुकजाता है, मंदिरमें मूलनायक तीर्थंकर महावीर स्वामीकी मूर्ति एकफुटबडी निहायत खूबसुरत तख्तमशीन है दर्शनकरके दिलखुशहोगा, कदम तीर्थकर महावीरस्वामी के - संवत् ( १६८६ ) के प्रतिष्टित - इसीमें जायेनशीन है. बायीतर्फ एकआलेमें कदम गौतमस्वामीके जायेनशीन है और उसपर लिखाहै संवत् (१६८८) मे - ये प्रतिष्टित किये गये, अग्निकोंनकी छत्रीमें वीशतीर्थंकरोके कदम संवत् (१९२४) के प्रतिष्टित जायेनशीन है, वायव्यकोंनकी छत्रीमें संवत् ( १९२४) के प्रतिष्टित तीर्थकर नेमनाथजीके कदम - नैरुत्यकॉनकी छत्रीमें रिषभदेवस्वामीके कदम - और - इशानकोंनकी छत्रीमें तीर्थंकर वासुपूज्यस्वामी कदम - उसी संवत् (१९२४) के प्रतिष्टित जायेनशीन है, इसमंदि
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( २५४ ) तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. रकी मरम्मत संवत् (१९२४ ) में रायबहादूर धनपतसिंहजीसाकीन मुर्शिदाबादने करवाइ, और एकधर्मशालाभी यहां बनवाइ,
मंदिरके रंगमंडपमें फर्स शंगेमर्मरका-और-वेदी-संवत् (१९५९) में-शेठ-रंगीलदास रुपचंद-साकीन एवला-मुल्कदखनने तामीर करवाइ, और धर्मशालामें पांचकोठरी बनवाइ, बगीचा एक-धर्मशालामें-बनाहुवा-जिसमें-गुलाब-चमेली-बेला--गुलदाउदी-जुही-कुंद-वगेराके फुल पैदाहोते है और पूजनमें चढायेजाते · है, यात्री धर्मशाला दिलचाहे जहां कयामकरे और तीर्यकी जियारत हासिल करे, तीर्थ गुणशिलवनउद्यानमें गुमास्ता-पूजारी-सिपाही-और-माली-वगेरा हमेशांके लिये तैनात है, खानपानकी मामुलीचीजे यहां मिलसकेगी, अछीचीज कस्बे नवादेमें-मिलेगी, जो करीब (१॥) कोशके फासलेपर वाकेहै,-तवारिख पंचतीर्थी खतमहुइ,
[जैनतीर्थगाइडका-प्रथम-भाग-समाप्त,-]
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तवारिख-तीर्थ-पटना.
[भाग दुसरा.] - [तवारिख-तीर्थ-पटना,]
MONaalow
पंचतीर्थीकी जियारतके अगर कोई यात्री नवादेसे रैलमे सवार होवे और लखीसराय-मधुपुर होते गिरिडी टेशन उतरकर समेतशिखरजी जानाचाहे-तो-जासक्तेहै, नवादेसे वापिस गयाजकशन आकर गयासे हजारीबागरोड होकर इसरी टेशनसे समेतशिखर जानाचाहे-तोभी-जासकतेहै, गयासे बांकीपुरहोते पटना जानाचाहे तो जासकतेहै, मगर यात्री पंचतीर्थीकी जियारतकरके विहार टेशन आवे और रैलमे सवार होकर-सोह-पचासा-वेनाहरनाट-चेडो-बख्तियारपुर-करौता-खुशरोपुर--फतवाह,-औरबांकाघाट-होते-पटनासीटी जाय, रैलकिराया आठआने लगतेहै,__ जब राजगृहीके राजाश्रेणिकका इंतकालहुवा उसके बेटे कोणिकने अपने वालिदकी फिक्रसे राजगृही छोडकर चंपानगरीमें रहना इख्तियार किया, कौणिकके तीन नामथे, कौणिक-अशोकचंद्र-और-अजातशत्रु, जब कौणिककी उमर खतमहुइ उसके बेटे उदायिने अपने वालिदकी फिक्रसै चंपा छोडकर दुसरा शहर आबाद करनाचाहा, और अपने नोकरोंको बुलाकर हुकमदियाकि जाओ ! तुम जैसी जगह तलाशकरो जहां-में-दुसरा शहर आबाद करूं, और अपना अमलदरामद रहना बसना वहां कायम करूं, नोकर लोग चंपासे रवाना होकर जगह तलाश करने लगे, और और घूमते घूमते-जहां-शहर पटना आबाद है आये, और देखा तो गंगाकनारे एक-पाडल नामका द्रक्त-बडा गुलजार-और उसके मुराख में एक-पपैया-बेठापाया, गंगाका पानी जोरसे बह
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( २५६ ) तवारिख-तीर्थ-पटना. रहाथा और फव्वारे उसके उछलकर पपैयाके मुहमे गिररहेथे, नोकरोने खयाल कियाकि-जैसे परीदके मुहमें गंगाकापानी खुदब-खुद गिररहाहै अगर यहांपर शहर आवाद किया जायतो खुद ब-खुद दौलत आनकर लोगोंकों मिलेगी. और तमामलोग अमन-व-आराममें रहेगें, गरजकि-नोकरलोग तलाश करके चंपामें आये, और अपने मालिकसे तमाम हाल सुनाया, राजाउदायिने वहांजाकर शहर आवाद किया. और उसकानाम पाटलीपुत्र रखा, मगर लोगोंने अपनी जवानमे पटना कहा, इन सबुतोसे मालुम होताहै करीब ( २०००) वर्ष हुवे पटना शहर आवाद है, पटनेका दुसरा नाम कुसुमपुरभी कहलाया, क्योंकि-उनदिनोमें फूलोंकी पैदाश ज्यादह होतीथी. उदायिके बाद पटनेके तख्तपर नंदनामका राजा बेठा, उसके पीछे दुसरानंद-फिर तीसरा, फिर चौथा, गरजकि-इसीतरह नवनंद पटनेकी गद्दीपर राजाहुवे. नवमे नंदका दिवान-शकडाल था, और उसके दो-बेटे-थे, पहलेका नाम स्थुलभद्र-और-दुसरेका नाम सिरियक, उस अर्समें कोशानामकी एक कस्बन-इसपटनेमे-रहतीथी, जो बहुत खूबसुरत-और-कमालहुस्नथी, इत्तिफाकसे स्थूलभद्रजीकी निगाह उसपर पडी, और आशक होगये, यहांतककि-घरकाकाम छोडकर वारांवर्ष उसीकी मोहब्बत में फसेरहे, जब इनके वालिदका इंतकालहुवा नंदराजाने इनके छोटेभाइ-सिरियको-बुलाया, और कहाकि-तुम-पटनेकी दिवानगिरि लेलो. उसनेकहा-में-इसकामके लाइक नहीहुँ, मेरावडा भाइ स्थुलभद्रजी है आप उनको बुलवावे, राजानंदने हुकम दिया कि-तुम-जाओ ? और उसको बुलालाओ, छोटाभाइ अपने बडेभाइके पास गया, और कहा तुमकों राजानंद बुलातेहै, चलो, ! और पटनेकी दिवानगिरी देतेहै लो,-जवाक-कस्वनके घरसे स्थु
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तवारिख-तीर्थ-पटना. ( २५७ ) लभद्रजी राजानंदके दरवारमें गये, और पुछाकि-मेरेवालिदकाइंतकाल किसतरह हुवा, राजानंदने कहा क्या ! तुम ख्वाबमेथे,जो अपने वालिदका हालभी नही जानते, उनोने एक-संगीन-गुनाह कियाथा जिसकी वजहसे उनकी मोत मरनापडा, अवतुम उसकी दिवानगिरी कुबुलकरो, स्थुलभद्रजीन अपने दिलमें खयाल किया कि-मुजे-जैसी दिवानगिरीसे कोइ जरुरतनहीं. जिससे कभीबेंमोत माराजाउ, जाहिरातमें राजा नंदसे कहा, में-कल इसका जवाब दूंगा, जैसा कहकर राजा नंदके दरवारसे-वे-अपने घरआये, और दुनयवी एशआरामको छोडकर संभूतिविजय गुरुके पास दीक्षा इख्तियार किइ, दुसरे रौज राजानंदके दरबारमें जाकर कहाकि मुजे-परमेश्वरके घरकी दिवानगिरी अछी मालूम देतीहै, राजानंदने इसवातपर तारीफ किइ, और कहा, जो कुछकिया अछाकिया, मगर इस दिवानगिरीकों उमदा तोरसे निभाना असा मतकरना कि-दोंनों-दीनसे जाओ. पेस्तरके लोग कैसे अछे दिलवालेथे-जरा नसीहत-पाइकि-धर्मके पावंद होजातेथे, आज ताबे उमर नसीहत पातेरहे मगर क्या ! मजालहै ! ! असरहो बल्कि कइलोग दीक्षालेनेवालेकी दिल्लगी करतेहैकि-इनसे कमाया नहीगया, फकीर होगये.
___ नवमेनंदके बाद पटनेके तख्तपर मौर्यवंशी राजाचंद्रगुप्त बेठा, निदानकि-नवमेनंदका और चंद्रगुप्तका जब पटनके मेदानमें जंग हुवा नवमेनंदने सिकस्तखाइ, चंद्रगुप्त फतेहमंद हुवा, चाणाक्य इसी चंद्रगुप्तका दिवानथा, जैनश्वेतांबर उमास्वाति वाचक इसी पटनाकें रहनेवालेथे, जैनाचार्य-भद्रबाहु-आर्यमहागिरि-आर्यसुहस्ति-और-वज्रस्वामि-इसपटनेमें तशरीफलायेथे. और जैनधर्मकी तरकी किइथी, पेस्तर यहां (६४) वादशाला (यानी) मजहबी
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( २५८ )
तवारिख - तीर्थ - पटना,
वहेसकरने के मकानातथे, जिनमें हमेशां मजहबपर बहस हुवाकरतीथी, पदर्शनके जाननेवाले पंडित यहां पर मौजूद थे. बडेबडे मंत्रवादी और बहत्तरकला के जाननेवाले यहांहुवे, रसायनविद्याअविद्या - और इंद्रजालविद्याके बाकि कगार यहां होगये, हाथियोके सोदागिर-और-तलवारकी धारपर नाचकर अपना हुनर बतलानेवाले यहांरहतेथे, संस्कृत इल्पके जाननेवाले और संगीतकलाके माहितगार यहांपर मौजूदथे. कहांतक बयानकरे बडेबडे अजुवात यहांपर हो चुके है. पेस्तर इस्त्रीसनके जब मेगस्थनीज चीनामुसाफिर पटने में आयाथा अपने सफरनामेमें लिखा है-मेनेगंगा और सोननदी के संगमपर पटनाशहर देखा उसवख्त करीब (२४) मीलकेघेरे गुलजारशहरथा. और बडेबडेलंबे बाजारथे, हवांक्तसांगचीना मुसाफिर जब हिंद आया था उसनेभी इसकों देखाथा, उसवत ( ११ ) मीलकेमेरेमें पटनाशहर आबादथा, वादशाह अखवरने अपनी हकूमत यहां कि, औरंगजेबने अनिमकों पटनेका सुवेदार बनाया तवसे पटनेकानाम अजिमावादभी कहलाया, पटनेकी आवहवा उमदा और चावलकी पैदाश यहां ज्यादहहोती है. जहांपर गंगा और सोननदी मिली है पेस्तर वहां तक शहरपटना आवादया, अब वो - जगह ( १३ ) मीलके फासलेपर होगई है.
पटना इसख्त कलकतेसे (३२० ) मील वायुकोनकों झुकता हुवा विहारमे अवलदर्जेका शहर है. गंगाकनारे नवमीलतक लंबा बसताचलागया, पटनेकी मर्दुमशुमारी (१६५१९२) मनुष्योंकी - पुराना किला - जो - शहरको घेरे हुवेथा अवनही रहा, गलियां तंगमकानात इंटचुके पक्केबने हुवे जिनकी - छत - खुली, और कवेलछाये हुवे मकान बहुत कम देखोगे, बाजारमे - सोनाचांदी - जवाहि
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तवारिख-तीर्थ-पटना. ( २५९ ) रात-शालदुशाले-मेवा-मिठाइ--जिसचीजकी दरकारहो तयार मिलती है, पटनेका अफीमगोदाम भारी-और-कइजिलोसें अफीम यहांआताहै. तिजारतके लिये पटनाएक नामीशहरहै, और नीलका व्यापार यहां ज्यादह होताहै, मुल्कनयपालसे मणोबंद बडीइलायची यहांआती है, और मुल्कोमें भेजीजाती है, पटनेकी चारोतर्फ कइ बाग बनेहुवे और उनमे तरहतरहके फलफुल पैदाहोते हैं, मेडिकल कालेज-लाइब्रेरी-विहारनेशनेलकालेज-और खेराती अस्पतालबडीलागतके वनेहुवे है, पटनेके नजदीक गंगाकापाट वारीशके दिनोमें करिब चारकोशका होजाताहै, पटनेसे पश्चिमकों आठकोश सोनभद्रनदी-दखनसे-आनकर गंगामें मिली, और सरयूभीआनकर उसी जगह मिली है. वारीशके दिनोमे उसजगह गंगाकापाट सातकोश चोडाहोजाताहै, अतराफ पटनेके-जव-चने-मटर-अरहर-सरसोंतील-और-अलसी-कसरतसे पैदाहोती है. पटनेमें जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर-पांच-सात-और-बाडेकी गलीमे (२) जैनश्वेतांवरमंदिर बनेहुवे है, दोनोमें मूलनायक तीर्थकर पार्श्वनाथजीकीमूर्ति तख्तनशीनहै, और दोनोंमंदिरोंकी मरम्तहोना दरकारहै, धर्मशाला एक-बडेमंदिरके दरवजेपर बतौरकमरेके बनीहुइहै, दुसरी बगलमें गिरीहुइपडी है, अगरकोइ खुशनसीव इसकों फिरसे बनवावे यात्रीयोकों आराम रहेगा.
पटनेसें पश्चिमकों महोले तुलसीमंडीमें स्थूलभद्रजीके चरनोंकी छत्री और सुदर्शनशेठका शूलीसिंहासन बननेका स्थान काबिल देखनेके है, इस जगहकों कमलद्रहभी बोलते है, क्योंकि-पेस्तरयहां कमल बहुत पैदा होतेथे, करीव (१) विधेके घेरेमे कमलद्रह तालाव-और-बगीचा वगेरा आबादहै, जो कोइ जैनश्वेतांबरयात्री पटनेमें कदमरखे कमद्रहकों जरुर देखे, और वहांकी जियारत करे
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( २६० ) तवारिख-तीर्थ-पटना. बाडेकी गलीसे-या-चौकबाजारसे इक्का-बगी किराये मिलसकतेहै, अगर कोइ यात्री पश्चिमसे आयेहो-या-पटनेसे ध-जरीये रैलके कमलद्रह जानाचाहे-गुलजारबाग टेशनपर उतरे, कमलद्रहतालाव गुलजारबाग टेशनसें बहुत करीबहै, इक्के-बगीकी वहां कोई जरुरत नही, कमलद्रहमें छत्री स्थूलभद्रजीकी पुरानी वनीहुइ और उसपर लिखाहै संवत् (१८४८) में इसकी मरम्मत किइगइ, और जैनश्वे
तांबराचार्य-अमृतचंद्रमरिने-इसकी प्रतिष्ठा किइ, छत्री सुदर्शनशे• ठकी कुछ नीची जमीनपर बनी इ है, जगह निहायतपाक-एकमीठेजलका कुवा-और-दशवारां आमकेपेंड लगेहुवे है, छत्रीके पासकी जमीनमें बडे बडे गढे पडगये है उनमें मीटी भरादिइ जाय और छत्रीकी मरम्मत करादिइ जाय कोइ रोज तीर्थकी हिफाजत बनीरहेगी, करीव (२०००) रुपये सर्फा होगे, ऐसे नीर्थोमें दोलत लगाना हरयात्रीकी फर्ज है. तीर्थो में यह कदीमीरवाज होताचलाआयाकि-एक मंदिर पुरानाहोकर गिरगया किसी खुश नसीवने फिर नया वनादिया इसीतरह तीर्थकी हिफाजत बनीरहती है. ___शहर पटनेसे करीव (१) मीलपर जहां बगीचा दादानीका
और-एक छोटी धर्मशाला वनीहुइ है कोई यात्री वहां ठहरनाचाहे तो-ठहरसकते है,-बगीचेमें-आम-अमरुद-कटहेर--अंजीर--नीबु वगेरा पेंड-और फुलोम-गुलाव-बैला-मोतिया-जुही वगेराके पेंड खडे है, छत्री-दादाजीकी-संवत् (१६८२) की तामीर किइ हुइ
और उसके दरवजेपर शिलालेख लगाहुवाहै, शेठ मृदर्शनके कदमोंकी छत्री यहांभी वनीहुइहै, और कदमोंपर लिखा है. अव्यय पदप्राप्तस्य-श्रेष्टिसुदर्शनस्य-इमेपादुके संप्रतिष्टिते-सकल संघेन-बगीचेके कोटकी सफील एक तर्फसें गिरीहुइहै, वारीशके दिनोमें भीतर बगीचेके-और-छत्रीतक-पानी आजाता है, इसकी
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तवारिख - तीर्थ - पटना.
( २६१ ) मरम्मत होना जरुरी है, अगर कोई यात्री मरम्मत कराना चाहे करीब हजाररुपये लगेगे, शहरपटने में जैन श्वेतांवर श्रावकोके घर पेस्तर बहुतथे, मगर आजकल सिर्फ ! पांचचार रहगये, उपाश्रय चार मौजूद है मगर सब खाली पडे है, तीर्थंकरोंका - जो - फरमाना था कि- पांचमेकालमें धर्म कमहोजायगा -सो- नजरके सामने देखलो ! पटने का बाजार खन्नकदार - लोग खुशमिजाज - और - पुशाक उमदा है, मकान - यहां के इसकदर खूबसूरत और मजबूत है किजिनकी बनावट देखकर हर किसीकों ताज्जुब आता है, यात्री पटनेकी जियारत करके आगेकों रवाना होवे.
पटनासिटीसे रैलमें सवार होकर काघाट- फतवाह- खुशरोपुर- करौता - बख्तियारपुर - अथमलगोला - वाढ, वख्तियारपुर से (११) मील दूर बाढ एक - रेलवे टेशन है, पटना जिलेमें गंगा के दाहनेकनारे वाढ एक अच्छा कस्वाहै, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारी वाढकी मर्दुमशुमारी (१२३६३) मनुष्योकीथी. वाढसेपांडराक - मोर- कल्पसूत्र में जो - मोराकसंनिवेश लिखा है जहांकितीर्थंकर महावीरस्वामी कदमरंजा फरमाचुके है यही है, मोरसेमुकामा जंकशन जाना, रैलकिराया सवासात आने लगते है, मोकामा जंकशन से सीतामढी टेशनकी टिकीट लेना और रैलमें सवारहोकर मोकामाघाट टेशन उतरना, और वहांसे ष्टीमर में बेठकर गंगापार जाना, टीमर तयार रहती है, टीमरका किराया अलग नहि लगता. वही टिकीट कामदेगा जो मोकामा से सीतामढीत लिया है, ष्टीमरमें माल चढाने उतारनेकेलिये कुली मौजूद रहते है. चार पैसे दियेकि- माल - चढादेयेगें, गंगापार जाते कुछ बहुत देर - न - लगेगी, गंगा के सामने कनारे पहुचतेही रैल तयार मिलती है, सेमरियाघाट टेशनसे रैलमे सवार होकर घरारा व
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( २६२ )
तवारिख - तीर्थ - मिथिला.
रानीगंज-तेगरा - बछवारा - दलसिंहसराय - और उजारपुर होते समस्तीपुर जंक्शन उतरना, रैलकिराया मोकामा जंक्शनसे यहांतक आठआने लगते है, सीतामढी टेशन जानेवाले यात्री यहांउतरकर दरभंगा जानेवाली रैलमें सवारहोवे, और किसनपुर-हैयाघाटऔर- लहेरियासराय - टेशनहोते दरभंगा जाय, रैलकिराया पोनेचारआने.
वागमती नदीके कनारे जिलेका सदर मुकाम - एक - गुलजार शहर है, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त-दरभंगाकीमर्दुमशुमारी ( ७३५६१ ) मनुष्योंकीथी, सिविलकचहरी स्कुलअस्पताल - शिवसागर तालाव - बाग बगीचे - बडेबडे बाजार - और राजमहल काबिल देखनेके है, मकान बनानेकी लकड़ी यहां उमदा होती है, अनाज - निमक- लोहा - बगेरेकी तिजारतभी अच्छी होती है दरभंगा के उत्तर में नयपाल राज्य - पूरवमें जिला भागलपुर - दखन में गंगानदी - और - जिला - मुंगेर और पश्चिममें जिला-मुजफरपुर है, - दरभंगा - कोइ जैन श्वेतांवर श्रावक-या- मंदिरनही, यात्री शहर देखना चाहे एक रौज के लिये उतरे और शहर देखे, - दरभंगा से रैलमें सवार होकर - महम्मदपुर-कमतोल - जोगियारा - जनकपुररोडऔर बाजपटी -होते सीतामढी टेशन उतरे, रैलकिराया चारआने लगते है, - टेशनसे शहर बहुत दुरनही है सवारीभी मिलती है शहर में जाकर जहां सुभीता देखे कयामकरे.
[ तवारिख तीर्थ - मिथिला, ]
मुल्क - विदेहकी - राजधानी मिथिलानगरी पेस्तर वडी आबादी, उन्नीसमें तीर्थकर मल्लिनाथ इसीमें पैदाहुवेथे, कुंभराजाके खानदान में प्रभावती रानीकी कुखसे मृगशीर मुदी ( ११ ) -अ
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तवारिख-तीर्थ-मिथिला. ( २६३ ) श्विनी नक्षत्रके रौज उनका-यहां-जन्महुवा, बडीउमर होनेके बादउनोने-दुनयवी एशआराम छोडकर मृगशीर मुदी (११) केरौज-यहां दीक्षा इख्तियार किइ, केवलज्ञानभी उनको यहांही पैदाहुवा, जगह जगह फिरकर उनोने लोगोकों तालीम धर्मकी दिइ, इंद्रदेवते वगेरा उनकी खिदमतमें आतेथे, एकीसमें तीर्थकर नमिनाथ इसीमिथिलामें पैदाहुवे, विजय राजाके खानदानमें विमा रानीकी कुखसें श्रावणवदी (८) के रौज उनका यहां जन्महुवा, कइ अर्सेतक उनोने मिथिलापर अमल्दारी किइ, और आषाढवदी (९) मीके-रोज दुनिया फानीसरायकों छोडकर यहां उनोने दीक्षा इख्तियार किइ. मृगशीरमुदी (११) के-रौज-उनको यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवते वगेरा उनकी खिदमतमे आतेथे,
राजा-रामचंद्रजीकी पटरानी महासती सीता इसीमिथिलामें जनकराजाके घर पैदाहुइ, और यहांही उसका स्वयंवरमंडप रचागयाथा, जब रामचंद्रजीने धनुष्यचढाया सीताने खुशहोकर उनके गलेमे वरमाला पहनाइ, नमिराज नामकेराजा-इसी-मिथिलाके राजाहुवे, एकमरतबेका जिक्रहेकि-जब-ये-बुखारकी तेजीमें गाफिलहुवे हकिमोने सलाहदिइ आप तमामबदनपर चंदनका लेप करावे, इनकी बहुतसी रानियांथी, पासके कमरोंमें उनोनेजब वास्ते राजासाहबके चंदन घीसना शुरुकिया, चंदनके घीसनेकी वजहसे हाथोमें-जो-कंकन पहनेहुवेथे आपसमे अवाज करनेलगे, राजाने मुनाकि-यह-क्या ! माजराहै, ? उनोने जवाबदिया-हम लोग-आपकेलिये-जो-चंदन घीसते है उससे चुडियांकी अवाज निकलती है, नमिराजाने हुकमदियाकि-सब-चुडिये निकालडालो सिर्फ : एक एक रहनेदो, उनोने ब-हुकमराजाके वैसाही किया, तब अवाज बंद होगइ, इस बातपरसे राजाकों-यह-खयाल पैदा
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( २६४ ) तवारिख-तीर्थ-मिथिला. हुवाकि-दुनियामें अकेला रहनाही बहुत बहेत्तर है, जहां बहुत है वहांही झगडाहै, अगर मुजे इसवीमारीसे-आराम मिला फौरन ! में-दुनिया छोडकर अकेला जंगलकी राह लुंगा, और दिक्षा इख्तियारकरके जंगलमें तपस्या करुंगा, आखीरकार खुशकिस्मतिसे उनकों आराम हुवा और सलतन छोडकर जंगलका रास्ता लिया, तनाहीमेंजाकर तपकरने लगे, एकमरतबा इंद्रने आनकर उनका इम्तिहानलिया, और कहाकि-आपकी रानीयां-और-रियाया आपकेवास्ते रोरही है, नमिराजरिषिने कहा-न-मेरा कोइहै-न-में किसीकाहूं. कहांका राजा ! कहांकी रानी ! मेरा धर्म मेरे शाथ है, जोशख्श परलोकका रास्ता साफकरना चाहे धर्म करे. ए ! नाजरीन ! ! इन बातोंपर जरा गौर करो, कैसे कैसे एश-आराम छोडकर राजाओने भी दीक्षा इख्तियार किइहै, और तुम अबतक अपने एशआराममे गाफिलहो, मगर यादरहे ! जोकुछ धर्म करोगे वही बहेत्तर होगा. आदमीका चोला-वारवार-नहि मिलता, मगर अपशोस इसबातकाहैकि-बहुतसे अनजानलोग धर्मको पहिचानतेभी नहीं, उनको इसतेहरीरका असर होना मुश्किल है,
तीर्थकर महावीरस्वामीने यहांपर (६ ) चौमासे गुजारे. आठमे-गणधर इसी मिथिलाके रहनेवालथे, चोथे निन्हव-जो-तीथंकर महावीरके निर्वाणवाद (२२०) वर्ष पीछे पैदा हुवेथे-इसी मिथिलाके रहनेवालेथे, मिथिलाके नामसें मुल्कका नामभी मैथिल मशहूरहुवा, पेस्तर-विदेह-मुल्क कहलाताथा, पानीकी बहुतायतमें कुवे-चावडी-और-तालाव-जावां मौजूदथे, अबभी किसीकदरकम नही. जलकी तरीसे वनास्पतिकी तरक्की यहां हमेशांसे रहती रही, केले के पेंड इसकदर होतेथेकि-सालभरकी फसल सारा मुल्क नही-खासकताथा, दूध यहां इसकदर होताथाकि-हरशख्श एक
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तवारिख - तीर्थ - मिथिला.
( २६५ )
पैसेका दूध लेकर खीर बनाताथा और पेटभरकर खाताथा. अब - भी ये चीजे यहां किसीकदर कम नही, बडे बडे दौलतमंद यहांपर होचुके जिनके घर हाथी बंधतेथे, संस्कृतविद्याकी यहां इतनी तरक्कीथी कि किसानलोगभी-संस्कृत जवानमें बातचीत करतेथे, आजकल संस्कृत इल्मकी उतनी तरक्की नही रही, मुल्क निहायत उमदा - और - लोग खुशमिजाज है.
पेस्तर यहां तीर्थकर मल्लिनाथ - और - नमिनाथके मंदिर बने हुवेथे, आजकल -न-कोई जैन श्वेतांवर मंदिर है-न - जैन श्वेतांवर श्रा वक है, मुज्जफरपुर यहांसे करीब (१५) कोसके फासलेपर वाके है. जबतक उसमें जैन श्वेतांवर श्रावकोकी आवादी रही, इसतीर्थकी देखरेख करते रहे, वादअजां कुछ नहीरही, और तीर्थ विरान होगया, तीर्थकर मल्लिनाथ - और - नमिनाथजीके चरन - जो - यहां छत्रीयो में कायम रहगयेथे - उठाकर भागलपुर में लाये है, और सामने टेशन के रायबहादुर धनपतसिंहजी की धर्मशाला के मंदिरमें कायम किये है, सीतामढी इसवख्त जनकपुररोडसे (१६) मील के फासले करीब दसहजार आदमीकी वस्तीका कस्वा रहगया, बाजार-नबहुत बडा - न - छोटा - मगर सब किसमकी चीजे यहां पर मिल सकेगी स्कुल - अस्पताल - कचहरी वगेरा मकानात अच्छे बनेहुवे है, चावल - और नयपालकी पैदावारीकी चीजे यहां बीकती है, लखनदेइ नदीपर लकडीका पुल बना हुवा है और चैतकी रामनवमीके रौज य| हॉपर मैला भरता है. उसमें हाथी - बेल- पितल के बर्तन और कपडे | बगेराकी तिजारत अछी होती है, यात्री - यहां पूरव - उत्तरकी तर्फ |संहकरके तीर्थंकर मल्लिनाथ और नमिनाथकी इबादत करे, और दिलमें समझेकि - तीर्थमिथिलाकी जियारतकामयाब हुई. अगर कोह खुशनसीब - इस तीर्थकों फिरसें तरक्की देना चाहे मंदिर - धर्मशाला
-da
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( २६६ ) तवारिख - तीर्थ- काकंदी - और - क्षत्रीयकुंडगाव,
बनवाकर पूजनका बंदोबस्त करे, और तीर्थकों फिर से कायम करे, निहायत उमदाबात है, बीस-पचीसहजार रुपये खर्च करनेसे तीर्थ कायम होसकता है, दुनियादारीके कामों में हजारांह खर्च होते है धर्ममें अगर उतने खर्च कियेजाय कितना फायदाहो, रामचंदजी लक्ष्मणजीका मंदिर और सीताकुंड यहां पर बनाहुवा है इसलिये वैदिकमजहब वाले भी इस जगहकों तीर्थ मानते है, सीतामढीसे रैलमें सवार होकर उसी रास्ते वापिस दरभंगा-समस्तीपुर- सेमरियाघाटमोकामाघाट-होते - मोकामा जंक्शन आना, और मोकामा जंकशनसे रैलमें सवार होकर डर्मा वहीं मंकाथा - होते लखीसराय-उनरना, रैलकिराया साडेतीन आने,
[ तवारिख - तीर्थ - काकंदी, ]
लखीसराय से बेलगाडीके रास्ते रवानाहोकर यात्री काकंदी नगरीजाय, जोकरीव (६) कोशके फासलेपर वाके है, और आजकल काकंदगांवके नामसे मशहूर है, तीर्थकर सुविधिनाथमहाराज इसीकाकंदीमें पैदाहुवे, चवन - जन्म - दीक्षा - और - केवलज्ञान-येचारकल्याणिक उनके यहांहुवे, सुग्रीवराजाकेघर मृगशीरवदी ( ५ ) मूलनक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, कइअतक उनोने काकंदीके तख्तपर अमल्दारी कि, पेस्तर दीक्षाके एकसालतक उनोने यहांपर खूब - खैरात - कि, मृगशीरवदी ( ६ ) के रौज - दुनिया के एशआराम छोड़कर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार किइ, और कातिकसुदी (३) के रौज-उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहवा, इंद्रदेadaगेरा उनकी खिदमत में आतेथे, पेस्तर यहनगरी बडी रवन्नकपरथी. बडेबडे दौलतमंद वाशिंदे यहांपर आवादथे और बडेबडे खुशनसीब राजेमहाराजे यहांपर अमल्दारी करचुके है, धन्नाकाकंदी नामके जैनमुनि - इसीका कंदीके रहनेवालेथे, जिनोने तप
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तवारिख-तीर्थ-काकंदी-और-क्षत्रीयकुंडगांव. ( २६७ ) किया और उमदागति पाइ, जैनश्वेतांबरमंदिर-यहांपर-निहायत पुख्ता बनाहुवाहै, और इसमें-तीर्थकर पार्श्वनाथमहाराजकी-मूर्ति तख्तनशीनहै, जोकि-संवत् (१५०४) फाल्गुनसुदी सप्तमीकी प्रतिष्टित निहायत खूबसुरत-और-अतिशययुक्तहै, तीर्थकर सुविधिनाथमहाराराजके कदमभी इसमें जायेनशीनहै, जो-संवत् (१८२२ ) वैशाखमुदी छठके प्रतिष्टितहै, करीव मंदिरके धर्मशाला बनी हुइ-यात्री-इसमें कयामकरे, और तीर्थकी जियारतकरे, खानपानकी चीजे यहां अछीनही मिलती, लखीसरायसे बंदोबस्तकरते आनाचाहिये, तीर्थ-काकंदीकी--जियारतकरके यात्री क्षत्रीयकुंडगांवकी जियारतकों जावे,
KB ( तवारिख-तीर्थ-क्षत्रीयकुंड गांव )
काकंदीसे (९) कोशके फासलेपर तीर्थंकर महावीरस्वामीकी जन्मभूमि क्षत्रीयकुंड गांव पुराना जैन तीर्थहै, सिद्धार्थ राजाकेघर त्रिशलारानीकी कुखसें चैतमुदी (१३) उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रकेरौज उनका यहां जन्महुवा, उनोने अमल्दारी इख्तियार नहिकिइ, और धर्मकी राहपर कदमर खा, पेस्तरदीक्षाके एक सालतक उनोने यहां बहुत खैरातकिइ, और मृगसीर सुदी (१०) उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रके रोज दुनियाके ऐश आराम छोडकर उनोने यहां ज्ञात वनखंड उद्यानमें दीक्षा इख्तियारकिइ. साडेबारां वर्षतक तप किया, और वैशाखसुदी (१०) उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रके रोज रिजुवालुका नदीके कनारे उनकों यहां केवल ज्ञानपैदाहुवा. इंद्रदेबता वगेरा उनकी खिदमतमें आतेथे, क्षत्रीयकुंड गांव पेस्तर ज्यादहरवनकपरथा, जोकोइ यात्री मुल्क पूरवकी जियारतकों जावे क्षत्रीयकुंड गांवकी जियारत जरुरकरे, तीर्थकर महावीर स्वामी की जन्मभूमि होनेसे बडीपाक जगहहै, एकजैन श्वेतांबर मंदिर-और बड़ी
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( २६८ ) तवारिख-तीर्थ-काकंदी-और-क्षत्रीयकुंडगांव, आलीशान धर्मशाला यहांपर बनी हुइहै, यात्री इसमें कयाम करे, बडे बडे कमरे-दालान-और-हवादार मकान बनेहुवेहै,-तीर्थकी जियारतकरे, क्षत्रीयकुंड गांवको आजकल लछवाड गांव बोलते है इसकेपास एकपहाड जिसका नामभी लछवाड मशहरहै अत्रीयकुंड गांवसे करीव ( १॥) कोसके फासलेपर वाके है, ज्ञातवनखंड उ
द्यान जहां-तीर्थकर महावीर स्वामीने दीक्षा इख्तियार किइथी, ' रवन्नकदार जगह है, वडा वसीमेंदान और बडे बडे दख्न-यहांपरखडे है, जिसकी छाया देखकर आदीकी तबीयत खुशहोजाती है,
और-यही-जी-चाहताहैकि-यहांही वेठेरहे. ___ क्षत्रीयकुंउ गांवके मंदिरका दर्शन करके यात्री दुसरे रोज पहा डपर जावे, गांवसे पहाडतक जानेके लिये वेलगाडी-डोली-वगेरा सवारी मिलसकती है, जिसकों पांवपैदलजाना मंजूरहो-वैसे-जाय, डोलीमें जानाहो-डोलीमें जाय, पहाडकी तराइमें ( २ ) जैनश्वेतांबर मंदिर बनेहुवेहै, रास्तेमें एक छोटी नदीभी मिलती है. अत्रीय कुंडगांवसे हरहमेश पुजारी यहां आनकर पुजाकर जाताहै, यात्री इन दोनों मंदिरोके दर्शनकरके पहाडपर जावे, रास्ते में तरह तरहके द्रख्त-और-जंगली मेवाजातके पेंडखडे है, चीता-शेर-रीछ वगेरा जानवरभी इस पहाडमें रहतेहै मगर बदौलत तीर्थ भूमिके किसीकों तकलीफ नहीदेते, पहाडका चहार करीब एककोशका-और-जवठीकसीरेपर पहूचोगे तीर्थकर महावीर स्वामीका एक-आलिशानमंदिर मिलेगा, मूर्ति इसमें तीर्थकर महाविर स्वामीकी शामरंग निहायत खूबसुरत तख्तनशीनहै. अगर पूजा करना चाहो-पूजाभी-करशकतेहो, पानी बगेराका इंतजाम सब मौजूदहै, अतराफ मंदिरके कोट खीचाहुवा-बहार-बडीबडी शिला-चटाने-चिश्मेवाद और-तरह तरहके जंगलीपेंड खडेहै, यात्री यहां खानपान करना
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तवारिख-तीर्थ-चंपापुरी. ( २६९ ) चाहे-तो-करसकतेहै, मंदिरका हाता अलगहै और बहारका हाता अलगहै, यहांपर कोइचीज खानपानकी नही मिलसकती. जोकुछ अपनेशाथ लायेहोगे वही कामदेगी. जियारत करके वापिसउसी रास्ते पहाडसे उतरकर क्षत्रीयकुंड गांव आना, पहाडपर रातकेवख्त ठहरनेकी जगह नहीहै, शुभहके गयेहुवे यात्री शामकों-बखूबी-आसकते है, क्षत्रीयकुंड गांवकी जियारत करके वापिस लखीसराय जंकशन आना, और रैलमें सवार होकर-कवील-कजरा... धरहरा-जमालपुर-बरीयारपुर-सुलतानगंज -अखवरनगर-औरनाथनगर होते भागलपुर-टेशन उरतना, और तीर्थ चंपापुरीकी जियारतकों जाना,
[ तारिख-तीर्थ-चंपापुरी. ] तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीकी जन्मभूमि चंपापुरी पुराना जैनतीर्थहै. वमुपूज्य-राजाकेघर-जयारानीकी कुखसे फाल्गुन वदी (१४ ) शतभिषा नक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, दीक्षाके पेस्तर उनोने यहांपर बहुत खेरात किइ, और फाल्गुनसुदी (१५) के-रोज दुनयवी औश आराम छोडकर यहां दीक्षा इख्तियार किइ माघमुदी ( २ ) के-रोज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, उनकी खिदमतमें इंद्रदेवते वगेरा आतेथे. श्रीपालजी-जिनोने-नवपदका आराधन कियाथा-इसीचंपापुरीके-राजाथे, तीर्थंकर महावीर स्वामीने यहां तानचौमासे किये, कामदेव श्रावक-जिसकावयान-मूत्रउपाशक दशांगमें दर्ज है इसीचंपाका रहनेवालाथा, कुमारनंदी नामका एक-स्वर्णकार-जिसका बयान-मूत्र आवश्यकमे मौजूदहै इसीचं. पाका नामी ग्रामी शख्शथा, जैनाचार्य-शय्यंभव मूरिने दशवै कालिकमूत्र इसीचंपामें बनाया, सुभद्रासती इसीचंपाकी रहेनेवालीथी बडेबडे खुशनसीव लोग इसचंपामें पैदाहुदै, कहांतक बयान
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( २७० ) तवारिख-तीर्थ-चंपापुरी. लिखे, चंपापुरी जानेवाले यात्री भागलपुर टेशन उतरकर खुश्की रास्ते जाय, जो-करीब-तीनमीलके फासलेपर वाकेहै,
जिलेका सदरमुकाम-भागलपुर एक गुलजारशहरहै, मुजागंज-नाथनगर-चंपानगर-और-ममूरगंज वगेरा कइहिस्से होकर भागलपुर बसाहै. सन ( १८९१ ) की-मर्दुमशुमारीके वख्न भागलपुरकी मर्दुमशुमारी ( ६९१०६) मनुष्योंकीथी, भागलपुर एक-तिजारकी-जगहहै, रेशमका कारोबार यहां अछाहोताहै, दरी-और-कंबलभी उमदा बनते है, बाजार अछा और हरकिसमकी चीजे यहां मिलसकती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोका एकघर सिर्फ ! नाथनगरमे है, भागलपुर टेशनके सामने जैनश्वेतांबर धर्मशाला-रायबहादर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादकी तामीर करवाइहुइ मौजूद है, यात्री उसमें जाकर कयामकर, धर्मशाला वडीआलीशान जिसमें आठकोठरी-चार दालान-अलग अलग बनेहुवे है, दरवजेके सीरेपर एक-कमरा-और-खुलीछत बनीहुई है, जिसपर गर्मी के दिनोमे बडाआराम मिलताहै, एक-बगीचाऔर मीठे जलका कुवाभी इसीधर्मशालामें मौजूद है, बगीचमेंआम-अमरुद-केले-नींबु-जामन-एरंडककडी--नारियल--कठेरगुलाब-चमेली--मोतिया-केवडा-जुही-गुलदाउदी-गयचंपा-हारशिंगार-कनेर वगेराके पेंड खडे है और इनके फुल, हमेशाकी पुजनमें चढाये जातेहै, एक जैनश्वेतांवर मंदिर वडीलागतका और बुलंद शिखरबंद बनाइवाहै, और उसमें तीर्थकर वामपूज्य स्वामीकी मूर्ति तख्तनशीनहै, दाहनी तर्फके कोनेमें-तीर्थकर वासुपुज्य स्वामीके गणधरकी मूर्ति-बायी तर्फके कोनेमें तीर्थकर मल्लिनाथ और नमिनाथकी मूर्ति-और-उनके कदम जाये ननिहै, और उसपर लिखाहै-संवद् बाणार्षिनागेंद्रौ-राधशभादशी
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तवारिख-तीर्थ-चंपापुरी, (२७१) मृगौ-संवत् ( १९७५ ) वैशाखसुदी (१०) शुक्रवारके रौज मिथिलापुरीमें जायेनशीन कियेगये,-असलमें-ये-कदम तीर्थ मिथिलामेथे, जब यहांका मंदिर विरानहुवा उसवख्तसे यहां लायेगये, मंदिरके बहार एकछत्रीमें स्थुलभद्रजीके कदम जायेनशीन है, और उसपर लिखाहै संवत् (१९३६ ) में-रायबहादूर धनपतसिंहजी शाकीन मुर्शिदाबादने जायेनशीन किये, इसमंदिरके दर्शन करके यात्री चंपापुरी जानेको तयारीकरे, जो-चंपानालेके नामसे मशहूरहै, भागलपुरसे हरकिसमकी सवारी मिलसकती है, इक्का-बगी-म्याना-पालखी-वगेरा-जोचाहो हाजिरहै, जिसकी मरजी पांव पैदल जानेकी हो शौखसे जाय, सडक पकी बनीहुइहै, रास्ताभूलनेका कोइकाम नही, रास्तेमें-बागबगीचे और तरह तरहके दख्त खुशनुमा खडे है, गोया ! किसीवागमें चलरहे है, पानीकी बहुतायतसे वनास्पति ज्यादह-और-जमीन-तर-ब-तर है,
जब करीब चंपानालेके पहुचजाओगे दुरसे जैनश्वेतांबरमंदिर और धर्मशाला नजर आयगी, उसमें जाकर कयाम करना, धर्मशाला छोटीवडी यहांपर ( ४ ) है, मगर सब एकही हातेमें बनीहुइ है इसलिये एकही मालूम देती है, बडीधर्मशाला पंचायती जिसमें सात कोठरी मौजूद है, दुसरी छोटी है उसमें कोठरी तीन है, वहारकी धर्मशाला (२) रायबहादूर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादकी तामीर कराइहुइ जिसमें कोठरी चारहै यात्री जिस जगह चाहे कयाम करे, इन चारो धर्मशालामें-यात्री-करीब ( ४०० ) के ठहर सकते है, मंदिर तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीका शिखरबंद बेंशकिमती पुख्ता बनाहुवा और इसमें तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीकी मूर्ति करीव देढहाथ बडी राजा संपतिकी बनाइहुइ तख्तनशीनहै, वैसेही निशानात बने है जैसे राजा संपतिकी बनाइ
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( २७२ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. हुइ मूर्तियोंपर होते है, छत्रीकी मरम्मत और रंगमंडपका फर्स रायबहादुर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने करवाया, वेदीपर लिखाहै संवत् (१९२५) मे-पाषाणमय वेदी और मरम्मत करवाइ, एक-छोटे जिनालयमें तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीके पंचकल्याणिक
और उनके कदम जायेनशानहै, उनपर लिखाहै संवत् ( १८५६) फाल्गुनवदी एकमके रौज-ये-कदम-प्रतिष्टित कियेगये,
दुसरामंदिर इसीके करिबमें दाहनीतर्फ तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीका-इसमे-उनकी मूर्ति करीब तीनफुटबडी तख्तनशीनहै,
और उसपर लिखाहै संवत् (१८५६) वैशाखसुदी (३) बुधवारकेरौज चंपापुरीमे देवाधिदेव-वासुपूज्यस्वामीकी-मूर्ति-सबसंघने मिलकर तख्तनशीन किइ, बायीतर्फके एक जिनालयमें नवपदजीका यंत्र जायेनशीनहै और उसपर लिखाहै संवत् ( १९२५ ) में रायबहादुर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने यह तामीर करवाया, इस मंदिरकी उपरकी मंजिलमे चौमुखाजीकी चारमूर्तिये-समवसरणका--आकार-तीनकोट--उमदातौरसे बनेहुवे है, संवत् (१८५६) में इसकी प्रतिष्टा किइगइ, धर्मशालामे दुतर्फा बगीचा बहुतबडा-जिसमें-गुलाब-चमेली-कुंद--जुही-गुलदाउदी-रायचंपा नवारवगेरा पैदाहोते है, और हमेशांकी पूजनमें चढायेजाते है, यहांपर-दो-पूजारी एक जमादार और तीन नोकर हमेशां वनेरहते है, तीर्थ चंपापुरीकी जियारतकरके यात्री-उसीरास्ते वापिस भागलपुर आवे,
(तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर,) भागलपुरसें रवानाहोकर नाथनगर-अखबरनगर-मुलतानगंज-वरीयारपुर-जमालपुर-दरहरा-कजरा-क्वील-मननपुर
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तवारिख - तीर्थ समेतशिखर.
( २७३ ) जमुई - गिधोर - झाझा- सिमुलतुला -- वैजनाथ - मधुपुर - जगदीशपुरऔर-महेशमुंड-टेशनहोते हुवे - गिरिडीटेशन उतरना, रैलकिराया देदरुपया लगता है:
गिरिडीकस्बा इसख्त तरक्की पर है, खानपानकी चीजे यहां उमदा तौर से मिल सकती है. सामने टेशन के बडीआलिशान जैन श्वेतांबर धर्मशाला बनी हुइ यात्री इसमे कयामकरे, संवत् (१९३४) मे - यह - धर्मशाला जैन श्वेतांवर श्रावक रायबहादूर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने तामीरकरवाड़, यात्रीयोंकों आरामकी जगह है, संवत् (१९४२) में - जैन श्वेतांबर मंदिर यहां रायबहादूर बुधसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने तामीरकरवाया, और तीर्थकर सुपार्श्वनाथकी मूर्ति तख्तनशीन कि, पासमे एक बगीचा खूब-तर-वताजा - गुलाब - चमेली - बेला - जुही - कुंद - गुलदाउदी वगेराके पेंड इसमें खडे है, और इनके फुल हमेशांकी पूजनमें चढायेजाते है, गिरिडीटेशन से मधुवनतक सडक पक्कीबनी हुइ - बेलगाडी - इक्का-बगीम्याना - पालखीवगेरा सवारी बखूबी जासकती है, रास्तेमें किसी तरहका खौफनही. गिरिडीसे शुभहके सातबजे रवानाहोकर शामकों पांचबजे मधुबन - पहुचसकतेहो, रास्तेमे पांचकोसपर बराकडगांव- जहांकि - तीर्थंकर महावीरस्वामीकों केवलज्ञान पैदाहुवाथा एक जेनश्वेतांबर मंदिर और धर्मशाला आरामकी जगह बनी हुई है, तीर्थंकर महावीरस्वामी के कदमोसें पाकहोइहुइ रिजुवालुकानदी यहांपर बहरही है. पानी-कभी बंद नहीहोता. तीर्थंकर महावीरस्वामी इसनदीके कनारे बहुत अर्सेतक विचरेथे, तपकिया, और श्यामाक कुटुंबीके क्षेत्रमें ध्यानसमाधि करतेहुवे उनकों यहां केव" लज्ञान हासिल हुवाथा, यहांपर एक- जैन श्वेतांबर मंदिर बना हुवा है, मात्री इसकी जियारतकरे, इसमे तीर्थंकर महावीरस्वामीके समव
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( २७४ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. सरणका आकार बनाहुवाहै. और शिलालेखमें लिखाहैकि-रिजुवालुकानदीतटे-श्यामाककुटुंबीक्षेत्रे-वैशाखशुक्ल (१०) तृतीयप्रहरे-केवलज्ञान कल्याणिकसमवसरणमभूत्, मुर्शिदाबादबास्तव्य-प्रतापसिंह-तभार्या--मेहताबकुवरतत्पुत्र-लक्ष्मीपतसिंहबहादर-तत्कनीष्ट-भ्राता-धनपतसिंह बहादरने संवत् (१९३०) में इसका जीर्णोद्धार कराया. __ पासम बगीचा एक-जिसमें-आम-कटहेर-केले-अमरुद-गुलाब-चमेली-चंपा वगेराके पंडखडेहै, पूजारी और एक-मालीयहांपर हमेशां वने रहते है, और समेतशिखर-जैनश्वेतांबर-कोठी तर्फसे यहांका सब इंतजाम होताहै, जैनश्वेतांबर धर्मशाला एकजिसमें ( ६ ) कोठरी-और-चारोंतर्फ पका कोट खोचाहुवायात्री-यहांपर ठहरनाचाहे-शौखसे-ठहरे,-या-जियारतकरके मधुबनकों रवानाहो, वराकडगांव बहुत लोटाहै. मगर जरुरतकी चीजे सबमिलती है, रिजुवालुका नदी उतरकर आगे ( ४ ) कोस-समेत शिखर पहाडकी दामनमें मधुबन जाना. जब मधुबन एक कोसपर रह जायगा. हजारीबागका रास्ता छुटजायगा. रास्तेमें एक-जलका नाला-आताहै, समेतशिखर पहाडकी दामन-कहो-या-मधुबनकहो-बात एकहोह, जनलोग इसकों समेतशिखर ताथ-और पारसनाथ पहाडभी कहकर बोलते है, समुंदरके पानीस (४४८८) फुट उंचा-और-ठीकसारेको चोटीपर-जनमदिर-टोंक
और-छत्रीये--जिनमें तीर्थंकरोंके चरन जायनशीन है, तीर्थकर पारसनाथकी टोंक-उंची जगहपर बनी इहै इससबबसे जाहिरमें पारसनाथका पहाड कहलाया. जिले हजारीबागम गिरिडीटेशनसे करीब [ १८ ] मीलके फासलेपर समेतशिखर पहाडको दामनमें
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. ( २७५ ) मधुवन एक गुलजार जगहहै, संवत् ( १७५० ) में जैनश्वेतांबर मुनि-सोभाग्यविजयजी महाराजने तीर्थोकी सफर करके-जोतीर्थमाला बनाइहै मुर्शिदाबादसे समेत शिखरकों जानेके-दो-रास्ते फरमाये, एक-वर्द्धमानगांव होकर-दुसरा-वीरभुमि तर्फ होकर जाया जाताथा, आजकल-शिखरजी पहाडके ( ४ ) कोशपर इस री नामका टेशन खुलाहै, और--वो--लाइन--गया लाइनमें जामीली है.
7 ( बयान-मधुबन.) समेतशिखर पहाडकी तलहटीमें मधुवन द्रख्तोंके झुंडसे घीरा हुवा एक-ऊमदा जगहहै, दुरसे देखतेही दिल बहुततर-च-ताजा होगा, एक-बडीआलिशान जैनश्वेतांबर कोठी-जिसमें-मुनीम-गुमास्ते-नोकरचाकर-चपराशी-घंटा घडियाल-नोबतखाना सबठाठ शाहानातौरसे बना हुवा है, बाग बगीचे द्रख्तोके झुंड और तरह तरहके परीदा जानवर-मोर-तोते-मेंना-चीडिया वगेरा यहांपर कलोले.करते रहते है, ओर उनकी मीठी मीठी अवाजसे दिल निहायतखुश-और-खुरम होता है, आटा-दाल-धी-दुध-मिठाइ वगेरा खानपानकी जरुरी चीजे यहांपर मिलसक्ती है, भांडे-बर्त न-वगेरा-जो-चीजे दरकारकी है यहांपर मिलसकेगी, जैनश्वेतांबर धर्मशाले यहांपर चार है, अवल धर्मशाला खुशनसीब श्राविका हरकुवरशेठानी-साकीन अहमदाबादकी तामीर कराइ हुइ पुख्ता है, कोठरी पनरांह-बीचमे चौक और-उपर निहायत उमदो छत-जिसपर गर्मीयोंके दिनोमें बडा आराम मिलता है, दुसरी धर्मशाला-रायबहादूर लक्ष्मीपतसिंहजी-साकीन मुर्शिदाबादकी-यहभी बहुत बड़ी और खुबसुरत बनी हुई है, यात्रीको किसी तरहकी तकलीफ-न-होगी, इसमे कोठरी (४०)-बीचमें बड़ा भारी
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( २७६ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. चौक-और-हवादार जगहहै, कोइ यात्री डेहरा तंबु लगाकर ठहरना चाहे-तोभी-जगह बहुत है, चारो तर्फ पका कोट-और-निहायत उमदा छत-जिसपर-गर्मीयोके दिनोंमें रातकों सोनेका आराम रहेगा, इसमे करीव एकहजार आदमी ब-खूबी-ठहर सकते है, इसमें कइ कोठरी अलायधा अलायधा खख्शोके नामसेभी बनी हुई है, उत्तर तर्फकी कोठरी शेठ-अमीचंदजी-धनसुखदासजी-साकीन मिर्जापुरने मधुवन धर्मशालामें यात्रीयोंके लिये संवत् (१९२०) मे तामीर करवाइ, इसीतरह दुसरी कोठरी शेठभेरुदासजीके बेटे नथमलजी जुहारमलजी गोलेछा साकीन जयपुरने मधुबन धर्मशालामें संवत् (१९३५) में तामीर करवाइ, औ. रभी सात कोठरी इसीलाइनमें बनीहुइ है, और उनपर शिलालेख लगे हुवे है, मगर उनपर चुना फेर दीया है जिससे हर्फ बाचे जाते नही, पूरवकी तर्फ एक कोठरीपर शिलालेख लगा हुवा उसमें लिखा है शेठ-हीरालालजी-मोतीलालजी-जवाहिरलालजी भणशाली साकीन कलकत्ताने मधुबन धर्मशालामे संवत् (१९३५) मे-यह-कोठरी-तामीर करवाइ, पश्चिम तर्फ एक-पौषधशालाबनी हुई है, इसमें शेठ-उदयचंदजी-लीलाभाइ-साकीन सुरतने कुल्ल खर्चा दिया है, __एक-धर्मशाला-श्वेतांवर कोठीकी पश्चिम तर्फ सडकके कनारे बनीहुइहै, जिसमे ( २०० ) रुपये-शेठ-परतापचंदजी-छोगमलजी ढाडीवाल-साकीन नागपुरने दियेहै, चौथी धर्मशाला-चतांवर कोठीके सामने बनीहुइ इसमे (१८) कोठरी-दालान-चोतराफर्स-और-सबकाम पुख्ता बनाहुवा है, इसकी तामीरातमें-शेठपरतापचंदजी-छोगमलजी-ढाडीवाल-साकीन नागपुरने (५००) रुपये दिये, शेठ-धर्मचंदजी उदयचंदजी-साकीन मुरतने (५००)
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. ( २७७ ) और शेठ-नगीनदसजी-कपुरचंदजी-साकीन सुरतने (५००)-शेठ वल्लभजी-हीरजी-साकीन कलकत्ताने ( २५०) वकील-शिवलजी वाहलजी और लक्ष्मीचंदजी वाहलजी-साकीन काठियावाडने (७०१ )-सुमेरमलजी-लोढा-साकीन अजमेरने (७०० :-राय बहादुर-मेघराजजी-कोठारी-साकीन मुर्शिदाबादने (२०००) रुपये दियेहै. इन धर्मशालोंमें कोइ जैनश्वेतांबर यात्री किसीजगह ठहरे कोइ मनानही, और किसी अमरकी तकलीफभी नही. मु- . साफिरोके आरामकोलिये सब जगहहै,
बगीचा एक- निहायत खुशनुमा-दर्मियान इसीधर्मशालाके बनाहुवा जिसमे गुलाब-चमेली-जुही-गुलदाउदी-कुंद-छोटाचंपा वगेराके खुशबूदार पेंड लगेहुवे और इनके फुल हमेशां देवपूजनमें चढाये जातेहै, यात्री इनधर्मशालाओमें कयामकरे और अपना माल असबाब-मुकफल-करके बंदोबस्तके शाथ दर्शनकों जाय, अवल दर्शन शामलिये-पार्श्वनाथजीके मंदिरका-दरवजेके पास एक शिलालेख लगाहुवा और उसमे लिखाहैकि-जैनलोग-और उंची जातके आर्यलोग इसमें जा सकते है,-शिवाय इसके दुसरा नही जासकता, चौकमें जाकर देखोतो चारोंतर्फ सबमंदिरही मंदिर खडे है, शामलिया पार्श्वनाथजीका शिखरबंद मंदिर बहुत लागतका-और-मूर्ति-शामलिया पार्श्वनाथजीकी करीब ( ३) फुटबडी इसमे तख्तनशीनहै, उसके नीचे लिखाहैकिसंवत् ( १८७७ ) राधराकायां श्रीपार्श्व बिंबं प्रतिष्ठितंश्रीजिनहर्षसुरिणा--कारितं-मिरगांजानिव--सांवतसिंह ज-पदार्थमल्लेन-दाहने पासे-जो-सफेद रंग मूर्तिपार्श्वनाथजीकी-करीब (२) फुट बडी मौजूद है उसपर लिग्या हैकि-संवत् (१८८७) वर्षे-फाल्गुन शुक्ल (१३)
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( २७८ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. श्रीपार्श्वनाथ जिनबिंब-दुगड-ज्येष्ठमल्लभार्या-फत्तीनाम्न्या-वाचकचारित्रनंदनगणि--उपदेशात्-कारितं-प्रतिठितं-च, बायेपासे जो सफेदरंग-मूर्ति-शीतलनाथजीकी करीब (२) फुटबडी मौजूदहै उसपर लिखाहै, संबत् (१८८८) माघशुक्लपंचम्या-सोमवासरे-श्रीशीतलनाथबिंब-कारितं-ओशवंश-दुगड गोत्रप्रतापसिंहेन-प्रतिष्टितंच-श्रीजिनचंद्र सूरिभिः-इसमंदिरकोंजग्तशेठ-साकीन-मुर्शिदाबादने बनवाया.-तीर्थोमें-यहकदीमी-रवाज होता चला आयाकि-एकमंदिर पुराना होकर गिरगया, उसजगह दूसरा किसीखुशनसीवने फिर तयारकरवाया, इसमंदिरके खासदरवजेकी दोनोतर्फ दिवारमेंशत्रुजय-गिरनारके नकशे-शंगमरमरपथरपर उकेरे हुवे निहायत उमदा बनेहै, रंगमंडप बहुतवडा और इसमें वेठकर इबादत तीर्थकरदेवोकी किइजातीहै, हारमोनियम-सारंगी-तबले-और-सितारवगेरासें गायन होताहै, और अछेअछेगवैये यहां अपनाइल्मवतलातेहै ___ शामलियापारसनाथजीके मंदिरकी बायीतर्फ-दुसरामंदिर पावनाथजीका इसमें तीर्थंकरपार्श्वनाथजीकी-मूर्ति-करीब एकहाथव. डी-जायेनशीन है, और उसपर लिखाहुवाहै कि-संवत् (१८७७) वैशाखशुक्ल पौर्णिमायां-श्रीपार्श्वबिंबं-प्रतीष्टितं-श्रीजिनहर्षसरिणा-गोलवछा-मेहताबोजानि-मूलचंद्र धर्मचंद्रेण -कारितं.-और यहमंदिर-एक-खुशनसीवश्राविका-साकीन-मुर्शिदाबादने तामीरकरवाया,
तीसरा मंदिर चंदाप्रभुजीका-तामीरकियाहुवा-बावुनशरुपजी -हरखचंदजी-नवलखा-साकीन मुर्शिदावादका-इसमें मूर्ति चंदाप्रभुजीकीकरीव एकहाथवडी जायेनशीनहै, और उसकेनीचे लिखाहुवाहैकि-संवत् (१८८८) माघशुक्लपंचम्यां-चंद्रवासरे श्री
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. (२७९ ) चंद्रप्रभजिनबिंब-कारितं ओशवंशे नवलखागोत्रे मेटामलपुत्रजशरूपेन-प्रतिष्टितं च-वृहद्भट्टारक खरतरगछत्री जिनाक्षयसूरिचरणचंधरीक-श्रीजिनचंद्रसूरिभिः___चौथामंदिर तीर्थंकरपार्श्वनाथजीका, तामीरकियाहुवा जहोरी भेरुदानजी साकीन कलकत्ताका-इसमेंमूर्ति पार्श्वनाथजीकी जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहुवाहैकि-संवत् (१९१०)-शाके (१७७५) माघशुक्ल द्वितीयायां-श्रीपार्श्वबिंबं-प्रतिष्टितंवृहत्खरतरगछे,__पांचवामंदिर पार्श्वनाथजीका-तामीरकियाहुवा भंडारी-रुगनाथप्रसादजी साकीन कानपुरका-इसमें मूर्ति पार्श्वनाथजीकी सफेदरंग करीब एकहाथवडी जायेनशीनहै, और उसपरलिखाहुवाहेकि -संवत् (१८५४) माघकृष्नपंचम्यां चंद्रवासरे श्रीपार्श्वजिनबिंबंप्रतिष्टितं,
छठा मंदिर गोडीपार्श्वनाथजीका-तामीरकियाहुवा-खुशनसीव श्रावक-साकीन-मिर्जापुरका इसमें मूर्ति गोडीपार्श्वनाथजीकी सफेद रंग करीव (१) फूट बडी-संवत् (१९०० ) की प्रतिटितजायेनशीनहै, दाहनेपासे-शामरंगमूर्ति नेमनाथजीकी संवत् (१८९७) की प्रतिष्टित-और-बायीतर्फ शामरंगमूर्ति रिखभदेवभगवान्की उसीसंवत् (१८९७) कीप्रतिष्टित,-मौजूद है.
सातवा मंदिर चिंतामणिपार्श्वनाथजीका-तामीरकियाहुवाजहोरीधनसुखदासजी, साकनिमिर्जापुरका-इसमें मूर्ति चिंतामणि पार्श्वनाथजीकी करीब (२॥) हाथ बडी शामरंग जायेनशीन है, और उसपरलिखाहैकि-सागरांकवसुचंद्र वर्षे (१८९७)-ने
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( २८० ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. अषणगणधरायुतेशके ( १७६२ )-फाल्गुनांतिमदले-सुनागके (५) भार्गवे सितपटौघपालके वाणारस्यां श्रीमद्भगवत्सहस्रफणालंकृत श्रीपार्श्वनाथजिनमूर्तिः-क-से-उद्यचंद्रधर्मपत्नी-महाकुवराख्यया-मूलचंद्रसुतथुतया-वृहत्खरतरगणेश श्रीजिनहर्षगणि पदालंकृत श्रीजिनमहेंद्रसरिणा प्रतिष्टिता, यहमूर्ति बनारसमें बनाइगइ और मधुवनमें तख्तनशीन किइगइहै, __ आठवामंदिर मुपार्श्वनाथजीका-तामीरकियाहुवा पंचायती श्रावक विकानेरवालोका-इसमें मूर्ति सुपार्श्वनाथजीकी सफेदरंग करीब एक हाथवडी जायेनशीनहै, और उसपरलिखाहैकि-संवत् ( १९००) में यहमूर्ति तामीर किइगई,
नवमामंदिर गणधर-शुभस्वामीका-तामीरकियाहुवा-जैनश्वेतांबरसंघ-बालुचर-मुर्शिदाबादवालोंका इसमें मूर्तिपार्श्वनाथजीके गणधर शुभस्वामीकी करीव (१) हाथ बडी-साधुस्वरुपमें जायेनशीनहै, और उसपरलिखाहैकि-संवत् (१८९५) फाल्गुनशुक्लतृतीयायां-रवौ-श्रीपार्श्वनाथस्य-शुभस्वामी गणधरबिंबप्रतिष्टितं-जिन हर्षसरिभिः कारितंच बालुचरवास्तव्यश्री संघेन,
दसवामंदिर गोडीपार्श्वनाथजीका-तामीरकियाहुवा-बाबुप्रतापसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादका-इसमें मूर्ति गोडीपार्श्वनाथजीकी सफेद रंग-करीब एकहाथवडी जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहैकि-संवत् (१८८८ )-माघशुक्लपंचम्यां चंद्रवासरे श्रीपावनाथ जिनबिंब-कारितं-ओशवंशे-दुगडगोत्रे प्रतापसिंहेन-प्रतिष्टितं खरतरगच्छाधिराज-श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. (२८१ ) इनदशमंदिरोंके दर्मियान एसाउमदाचौक-और-मेंदानबनाहै जिसमें (४०००) हजारआदमी-ब-खूबी बेठसकते है, बाजेलोग इस वातका शुभाकरते है कि-शिखरजीके पहाडमें-हरड-बहेड-आमलेभीलावा-वत्सनागवगेरा ऐसीजहेरीजडीबुटीयेहै कि-जेठ-वैशाखमें इनकीअसर पानीमेंआजाती हैं. और यात्रीलोग इसके पानीसें बीमार होजातेहै, लेकिन ! यहख्याल महाल-बेंफायदाहै, कइदफे हम यहां गर्मीयोंकेदिनोंमें जाचुकेहै, खास ! मधुवनमें कइ कुवे मीठेजलके बने हुवे-किसीतरहकी तकलीफयात्रीकों-नहीहोसकती, पहाडके झरनोंका पानीपीना कोइजरुरतभी नही. अगर यह अमर एसाही होतातो हरवख्त यात्री यहांक्यौंआयाकरते? फिजहूल लोगोके कहनेपर ख्याल करनाकोइ जरुरतनही, रुइके रोजगारवालोंकों-कातिक-मगसीरमें फुरसतनही. चौमासेमें बारीशका सबब-और गर्मीयोम कहोग पानी लगजाताहै, बतलाओ ! फिर तीर्थयात्रा कवजाओगे ? बेटा-बेटीके विवाह और वरातमें जेठ-वैशाखमें भी जातेहो-कोइ बहाने नहीं करते
और तीर्थयात्रामें एसेएसेबहाने सामने आतेहै, मगर यहसबफिजहूल बातेहै, जिसवख्तदिलचाहे तीर्थयात्राकरो और किसीतरहका खोफ मतलाओ,
[ बयान-पहाड-समेतशिखर, ] मुल्क पुरवमें समेतशिखर पहाड जैनका पुराना तीर्थ है. प. हाडके सीरेतक एक सडक और कुछदुरतक पगदंडी गइहै, तीर्थकर अजितनाथमहाराज इसपहाडपर चैतसुदी पुनमके रौज मुक्तिकों पाये, तीर्थकर संभवनाथ-अभिनंदन-सुमतिनाथ-पदमप्रभसुपार्श्वनाथ-चंद्रप्रभ-सुविधिनाथ--शीतलनाथ-श्रेयांसनाथ-विमलनाथ-अनंतनाथ-धर्मनाथ-शांतिनाथ-कुंथुनाथ--अरनाथ-मल्लिनाथ मनिमत्रत-नमिनाथ-और-पार्श्वनाथ इसीपहाडपर मुक्तिकों पायेहै,
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( २८२ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. इंद्रदेवते-और राजेमहाराजे उनकी खिदमतमें हाजिररहतेथे, वडेबडे जलसे-और मुवारकवादीये इसपहाडर गुजरचुकी है, कइमुनिमहर्षि-इसपहाडपर मोक्षको पाये. बेशुमारधनदोलत खुशनसीबोंने यहां सर्फ किइ. पेस्तर इस पहाडपर हाथीयोंका बनथा, मगर ब-सबब यात्रीआनेजानेके हाथीयोंका रहनाकाहोतागया. शेर-गेंडा-सांवरशींगी-भेसाहिरन-रोझ-रांछ-और-बंदरवगेराभी रहाकरतेथे, मगर-वेभी-अबकमह. कभीकभी-शेर-यहांपर नजरआताभी है. मोर-तोते-मैना-बुलबुल-चीडीया-तीतर-कबुतर वगेरा हरफसलीपरीदा-यहांपर दख्तोंके झुंडाग हमेशां कलोल करतेरहते है, तरहतरहकी मेवाजातवनस्पति-पेस्तरकेजमानेमें--यहांपर होतीथी. आम-खिरनी-केले-चीरोंजी-वंशलोचन-कचनार-नालियेर-सुपारी-जंभीर-खजूर-नींबु-हरड-वहेडे-आमले- केतकीकदंब-ताड-तमाल-मोघरा-गुलाब--चंपा-अशोक--जाइ--जुइ-दमन-मरुआ-सेवती-मालती-मचकुंद-चंदन--सागुन--खेर--इमलीपलाश-अखरोट-अनार-बगेरा बगेरा. जिनसे कइअव यौजूद है
और कइ नाजुक मिजाज-चीजें ब-सबर तबलजमानेके कमहोगइ, कामराज-हाथाजोडी-पातालकोला-धनजीरा-कालिलाखनअनंतमूल-और-रतनजोत-अवभी यहांपर मौजूदहे, कइजडीबुटीऐसीभी है जिसकेजाननेवाले नहीरहे, सांप और वीकेजहेर उतारनेकी जडीभी यहांपर पैदाहोती है, गरजाक-पहाइपर जिवरदेखो जंगली मेवाजातचीजें सबजी-फुल-कलि-बाग-बगीचे-खुशबू-और हरेहरेडदिलखुश-व-ताजाकरनेवालीचींजे नजरआती है, शिखरजीके पहाडकीचढाइ करीब तीनकोशकी-बीशटोंकोंको सफरभी तीनकोश-औरउतराइभी तीनकोशकी-कुल- ( ९) कोशको सफरयात्रीकों होगी कपडेपाक-और-बदन साफहोकर जियारतकों जानाचाहिये, जो. यात्री पांवपैदलजानाचाहे शौखसें जाय, मगर जिनकीताकातनहीं है
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तवारिख - तीर्थ - समेतशिखर.
( २८३ ) डोलीमें सवारहोकरभी- जासकते है, डोलीका इंतजाम अवलरौजसे करना होगा. बरवख्त - डोली -नहीमिलीतो जियारतकों धक्का पहुचे गा, पूजनकेलिये केशर - चंदन - धूप-दीप- सोनेचांदी के वर्क - इत्रदान रकाबी - वगेराचीजे भी अवलरौजही तयारकरलेना चाहियेकि- वख्त पर देरी - न- हो, गर्मीयोके दिनोंमें पहाडपर जानेकेलिये पांवमें कपडे मौजेभी पहन लिये जाय कोइहर्जनही, जिससे पहाड़के कंकर -- पथर -- और गर्मजमीन पैरोंकों लगकर छाले - न- पडजाय, अगर पांवकों तकलीफ होगइतो दुसरेरीज जियारतजाना मुश्किलहोगा, तीर्थ में आनकर कमसेकम तीनयात्रातो जरुरकरनाचाहिये कितनेक एसेपतले दुबले और नाजुकमिजाज होते है कि उनकों एयात्राकरनाभी दुसवारहोजाता है, जहांतकबने तीर्थकखजाने में भीकुछरकम - देनी चाहिये, जिनेंद्रदेव - वीतराग है उनकों रुपये पैसोसे जरुरतनहीं, मगर तुमारीफर्ज है कि - तीर्थ की हिफाजत के लिये- कुछरकमदेना, कितनेक ऐसेकंजुस होते है कि - एकपैसाभी देना उनसे बन नही सकता, मगरदलीले ऐसी करतेहैकि - वीतरागों को पैसोंसे क्यागरज ! तीर्थो में खजाना किसलिये ! ! और नोकर चाकर घंटा - घडियाल क्यौं, ? मगर - ये सब बाते गलत - और नाजाइज है, तुम - जो बतौरधर्मकी राहपरदेते हो - अगळेजन्ममे - तुमारी भलाइके लियेदेतेहो, जिनको अगलेजन्ममें मुक्तिपानाहो-धर्म करे-लाखोकरोडों - बल्कि ! अर्ब - खर्बतक रुपये पेस्तरके जमाने में लोगोने दिये है, और तीर्थो की हिफाजत कि है. धर्ममे किसीपरजोराजोरी नहीकि जाती, जिसकी - मरजीहो धर्म करे,
-
मधुबनसे आगे पहाडपर जानेका रास्ता शुरु होता है, और जब करीब एक कोशके पहुचोंगे रास्तेमें एक चाह बागान मिलेगा, यहां पर निहायत उमदा चाह के पेंड खडे है और चाह बहुतपैदा होती है,
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( २८४ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. आगे आधकोशबढनेसें-एक-गंधर्वनालाआयगा, रास्तेमें दोनोंतर्फ झाडीझुखड-व-कसरतद्रख्तोंकी चकाचक-और-ठंडीठंडीछांव चेतवैशाखकेदिनोभी हरियाली-मानींदेसब्जफर्स विछाहुवाहै सडक वहुतआरामकीवनीहुइ कोइतकलीफ यात्रीकों-न-होगी. गंधर्वनालेपर धर्मशालाएक-जैनश्वेतांवरसंघकीतर्फसे बनी इहै-और करीवमें एक चिश्में आव-मीठेजलका ज्ञरनाजारी है, देखकर दिलखुश होगा, ____ गंधर्वनालेसे आगे एकमीलपरवढेतो एक शीतानालानामका नालामीलेगा. जलकेझरने-तरहतरहके द्रख्त-और-झाडीझुखडसे तमामपहाड छायाहुवा, किसीजगहविनापेंड और सब्जीके कोइहिस्सा-न-देखोगे, शीतानालेसें आगे एककोश चढनेपर तीर्थकर कुंथुनाथमहाराजकी टोंक मिलेगी, अवल इसकेदर्शनकरनाचाहिये, इसमें कुंथुनाथस्वामीकेचरण तख्तनशीनहै--और उसपरलिखाहैकि संवत् ( १८२५ ) माघशुक्ल (३) गुरौ-बिरानीगोत्रीय शाहखुशालचंद्रेण-श्रीकुंथुनाथचरणपादुकारापिता--प्रतिष्टिता-ध-तपागछे-श्रीरस्तु छत्रीकी मरम्मत संवत् (१९३१) में हुइ, हरेकतीर्थमें यहएककदीमीरवाज होताचला आयाकि-एकमंदिरपुरानाहोकर गिरगया दुसरेखुशनसीवने फिर उसकों तामीर करवाया. इसीतरह तीर्थकी जड बनी रहती है,___ दुसरीटोंक नेमिनाथजीकी, इसमें तीर्थकरनेमिनाथजीके चरनतख्तनशीनहै, और उसपरलिखाहैकि-संवत् ( १८१६) माघ सुदी तीज गुरुवारकेरौज विरानीगोत्रके शाह-खुशालचंदजीने इसकों तामीर करवाये. खुशालचंदजी जैनश्वेतांबरश्रावकथे, टौंकपर जो छत्री बनीहुइहै सं. वत् (१९३१ ) में उसकी मरम्मतहुइहै,
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. (२८५ ) ___ तीसरीटौंक तीर्थंकरअरनाथस्वामीकी इसमें तीर्थंकरअरनाथ महाराजके चरन तख्तनशीनहै, और उपसर वही संवत् (१८२५) माघसुदी तीज गुरुवारके रौज बिरानीगौत्रके शाहखुशालचंदजीने इनकों तामीरकरवाये लिखाहै, छत्रीकी मरम्मत संवत् (१९३१) में हुइ. चौथीटोक तीर्थकर मल्लिनाथस्वामीकी-इसमें तीर्थंकरमल्लिनाथमहाराजके चरन तख्तनशीनहै. और उसपर वही संवत् (१८२५) मे-बिरानीगोत्रके खुशालचंदजीने इनकों तामीर करवाये लिखाहै.पांचमीटोंक तीर्थकरश्रेयांसनाथजीकी-इसमें तीर्थकर श्रेयांसनाथजीके चरन तख्तनशीनहै, और उसपर वही लेखहै जो उपरकी चारटोंकोंमे लिखचुके,__ छठीटोंक तीर्थंकरसुविधिनाथजीकी-इसमें तीर्थकरमुविधिना. थजीके चरन तख्तनशीनहै, और उसपर वही लेखहै जो उपरकी पांचटोंकोंमे-लिखचुके. छत्रीकी मरम्मत दोवारा किइगइ, और उसपरलिखाहैकि-शेठ-उमाभाइ--हठीसिंह-साकीन--अहमदाबादने इसकी मरम्मतकरवाई.___ सातवीटोंक तीर्थकरपद्मप्रभस्वामीकी-इसमें तीर्थंकरपद्मप्रभुके चरन तख्तनशीनहै, इसकी मरम्मतभी दोवाराहुइहै. और उसपर लिखाहै-संवत् (१९४९) माघशुक्ल (१०) शुक्रवासरेसमेतशिखर पर्वतेपद्मप्रभजिनचरणपादुफा-स्थापिताप्रतिष्टिताच-भट्टारकशीविजयराजसूरिभिः तपागछे,
आठवीटोंक तीर्थकरमुनिसुव्रतस्वामीकी-इसमें तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीके चरन तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहैकि-संवत्
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( २८६ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. ( १८२५ ) माघशुक्ल (३) गुरौ-बिरानीगोत्रीय-शाह खुशालचंद्रेण-श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणपादुका-कारापिताप्रतिष्टिताच तपागछेधीरस्तु
नवमीटोंक तीर्थकर चंदाप्रभुस्वामीकी-इसमें-तीर्थकरचंदाप्रभुजीकेचरन तख्तनशीनहै. और उसपर लिखाहैकि-संवत् (१८४९) माघशुक्लपंचम्यां-बुधवासरे-श्रीचंद्रप्रभजिनचरण न्यासः कृतः यहसवटोंके पेस्तर शाह-खुशालचंदजी-विरानीगोत्र-तपगछ. वालोने संवत् ( १८२५ ) में मरम्मतकरवाइथी, मगर ब-सबव-गिरजानेके दोबारा-तिवारा-मरम्मतकरारपाइहै,-यहटोंक बहुतऊंचीबुलंद-और-उसकाचढाव-बडाकठिनहै, इसपरचढकरदेखोतो-मालूम होताहै मानो ! आस्मानमें चलेगये. समेतशिखरपहाडकी तमाम रवन्नक-और-केफियत यहांसें व-खूबी-नजरआतीहै, तरहतरहकी मेवाजातबनास्पति-और-खूशबू-चारोंतर्फ-महकरहीहै-तीर्थकर कुंथुनाथजीकीटोंकसें-यह-टोंक-करीवएककोशकेफासलेपर और वडीऊंची है. यहांसें उतरकर तीर्थकर-रिपभदेवजीकी टोंककों-जाना,
दसवीटोंक-तीर्थकर-रिषभदेवभगवानकी--इसमें तीर्थंकररिषभदेवमहाराजके चरन तख्तनशीनहै,-और-उसपर लिखाहैकिसंवत (१९४९) माघशुक्ल दुनकेरोज-समेतशैलपहाडपर-नीर्थकर रिषभदेवमहारानकी चरणपादुकाका जीर्णोद्धार-रायबहादूर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने कराया. तीर्थकर रिषभदेवमहाराज अष्टापद पहाडपर मुक्तहुवेहै, मगर यहां उनकीचरनपादुका इसलिये तामीरकरवाइ गइकि-यात्रीको यहांभी उनकी जियारत हासिलहोजावे, थोडे अरसेकी बातहै इस टौंकपर ब-सवव-विजलीगिरजानेके तिवारामरम्मत किइ गइ, और संवत् (१९५८) में फिर हमारे हाथसें प्रतिष्टा हुइ है.
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. ( २८७ ) ग्यारवही टोंक तीर्थंकर शीतलनाथजीकी-इसमें-तीर्थकर-शीतलनाथजीके चरन तख्तनशीनहै, और उसपरलिखाहैकि-संवत् (१८२५ ) वर्षे माघ शुक्ल (३) गुरौ विरानीगोत्रीयशाह खुशालचंद्रेण श्रीशीतलनाथजिनचरणपादुका कारापिता प्र तिष्टिताच तपागछे श्रीरस्तु--इसटोंकका चढावभी बहुत कठिन है.
वारहवीटोंक तीर्थकर अनंतनाथजीकी-इसमें-तीर्थकर अनंतनाथजीके चरण तख्तनशीनहै, और उसपर संवत् (१८२५) मेंशाह खुशालचंदजीने इसका तामीरकरवाये लिखा है.
तेरहमीटोंक तीर्थकर संभवनाथजीकी-इसमें-तीर्थकर संभवनाथजीके चरन तख्तनशीन है, और उसपरभी वही लेख है संवत् ( १८२५ ) में शाह खूशालचंदजीने इसकों तामीर करवाये. __चौदहमीटोंक-तीर्थकर वासुपूज्यस्वामीकी-इसमें तीर्थकर वासुपूज्यमहाराजके चरन तख्तनशीन है, और उसपर लिखाहै संवत् ( १९२४ ) फाल्गुनवदी पंचमी बुधवारकेरौज तीर्थकर वासुपूज्यस्वामीके पंचकल्याणिकोंका यहां चरणन्यास कियागया, और मुर्शिदावाद वास्तव्य-दुगडगोत्रीय प्रतापसिंह भार्या मेहतावकुंवर ज्येष्टसुत लक्ष्मीपतिसिंह कनीष्टभ्राता धनपतिसिंहजीने इसका जीर्णोद्धार कराया. ( यानी) मरम्मत करवाइ, तीर्थकर वासुपुज्य स्वामीके पांचकल्याणिक चंपापुरीमें हुवे, लेकिन ! यहांपर उनके चरन और छत्री इसलिये कायम किइगइ, कि-यात्रीलोग-यहांभी उनकी जियारत हासिल करे,
पनराहमीटोंक-तीर्थकर-अभिनंदनस्वामीकी-इसमें--तीर्थकरअभिनंदनस्वामीके चरन तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है
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( २८८ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. संवत् (१९३३) ज्येष्ठ शुक्लदशम्यां-शनिवासरे-अभिनंदन जिनेंद्रस्य-चरणपादुका जीर्णोद्धारः-श्रीसंघेन-कारितः
वेदीकेनीचे एकतर्फकी दिवारमें एक शिलालेख लगाहुवा है और उसमें लिखाहैकि- इसवेदीकी मरम्मत-संवत् (१९४२) में शाह-शामजी-पदमसी-साकीन-कछ-मांडवी-श्रीमालवंशीने करवाइ, इसटोंकसे नीचे उतरकर शामलिया-पार्श्वनाथजीके मंदिरकों-जाना.
शामलियापार्श्वनाथजीका मंदिर-निहायत कीमती-और-शिखरबंद बनाहुवा इसमंदिरका दुसरा नाम-धुरमटका-मंदिर-भीबोलतेहै, और कोइकोइ जलमंदिरभी कहतेहै, सब मंदिरोंकेवीचमानींदे स्वर्ग विमानके देखलो, जबकि-यहमंदिर-जगतशेठ खुशालचंदजीने तामीरकरवाया जमाने उसवख्तके-रैल-नहीथी. पहाडके नीचेसे उपरतक सब माल-असवाव-इमारतका हाथीयोंपर लदाकर चढायाजाताथा, इसकी तामीरातमें (९३६००० ) रुपये सर्फहुवे, पीछाडी मंदिरके एक शिलालेख लगाहुवाथा, मगर इस वख्त नहीं रहा, इसमें तीर्थकर पार्श्वनाथमहाराजकी मूर्तिकरीब (२) हाथवडी-शामरंग-तख्तनशीन है, और उसकेनीचे लिखाहै संवत् (१८२२) वर्षे-वैशाख शुक्ल (१३) गुरौ-शाह खुशालचंद्रेण-श्रीपार्श्वबिंबं-कारापितं--प्रतिष्टितंच-सर्वसरिभिः-दाहनीतर्फ तीर्थकर संभवनाथमहाराजकी मूर्ति-करीब देढहाथ बडी सफेदरंग जायेनशीनहै, और उसकेनीचेलिखाहै संवत् (१८२२) मे यहमूर्ति प्रतिष्टित किइगइ, और मुगालचंद्र-ओश. वाल-साणसुखागोत्र-साकीन मुर्शिदाबादने तामीर करवाइ, इसके दाहनेपासे एक-और-मूर्ति-तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी फणसहित-करीब (२) हाथवडी सफेदरंग जायेनशीनहै. और उसपर लिखाहै
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. (२८९ ) संवत् (१८२२) में-मुगालचंद्र-ओशवाल-साणसुखागोत्र-साकीन मुर्शिदाबादने यह तामीर करवाइ.
वायीतर्फ शामलीयापार्श्वनाथजीके एकमूर्ति-तीर्थकर आभि. नंदनस्वामीकी-करीब देढहाथ बडी सफेदरंग जायेनशीनहै. और उसपर लिखाहै-संवत् (१८२२) में मुगालचंद्र-ओशवाल-साणसुखागोत्र-साकीन-मुर्शिदाबादने यह तामीरकरवाइ, इसकी बायी तर्फ-एक-और-मूर्ति-तीर्थकर शीतलनाथमहाराजकी करीब देढ हाथ बडी सफेदरंग जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१८२२) में-सुगालचंद्र-ओशवाल-साणसुखागोत्र-साकीन मुर्शिदाबादने यह तामीरकरवाइ,-श्रावक खुशालचंदजी-और-उपर लिखेहुवे श्रावक-मुगालचंद्रजी-जैनश्वेतांबर श्रावकथे, मंदिरका रंगमंडप और दालान निहायत उमदा बनेहुवे-फर्स-शंगमर्मर पथरका-खुलाचौक-जिसमें (५००) आदमी ब-खूबी वेठसकते है. खुबसुरतिदेखकर दिलखुश होगा,-जगह मानींदे स्वर्गविमानके देखलो, हरीहरीवनास्पति-और-जडीबुटीयें यहांपर खडी है, जिनकों इस बातकी माहिती है खजाना जवाहिरात दिखरहाहै,
धर्मशाला यहांपर (२) बनीहुइ, एक पंचायती, दुसरी-रायबहादुर धनपतसिंहजी-साकीन मुर्शिदाबादकी तामीर किइ हुइ. यात्री अगर रातकों यहांकयाम करना चाहै, शौखसे करे. चौकी पहरेका बंदोबस्त अछाहै. मगर कभीकभी ठंडीरातकों पानीपीनेकेलिये-शेरभी यहां आजाताहै, इसलिये खुलेमेंदानमें सोना ठीकनहि भीतरधर्मशालाकेबंदोबस्तीसे सोनाचाहिये, आजतक किसीयात्रीकों तकलीफ शेरकी नहिहुइ, तीर्थका रवाव बडाहै, मगर तोभी इनसानकों जानका बचाना • फर्जहै, इसलिये बंदोबस्तकेशाथ सोनाचाहिये, पानीके दो-कुंड-और
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( २९० ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. पासमें एक बगीचा यहां बनाहुवाहै, गुलाव-चमेली-बेला वगेराके फुलहमेशां उतरते है, और देवपुजनमें चढाये जाते है,-खर्च-आदमनी चढापा-पुजारी और-नोकरचाकर-यहां हमेशांसे जैनश्वेतांवरोंकी तर्फसे है, यात्री-पूजावगेरा करके ग्यारहवजेसे तीन बजेतक तीन घंटेकी धूप यहां बतीतकरे, और बाद दोपजेके नवटोंकोंके दर्शन करके नीचे मधुवनमें शामतक पहुचशकते है. हमने चारमरतवे इस तीर्थकी जियारतकिड, इसीतौरसे शुभहके गयेहुवे शामको वापिस मधुवनमें आयेथे, हरयात्रीको लाजिमहै तीयोंकी जियारतमें जल्दी न करे, धीरजकेशाथ शांतभावसे देवपुजन वगेरा करे, धर्मके काममें जितना अर्सा गुजरे उतनाही अछा, दुनियाके धंदे कभी खतम नहि होते.
सोलहमीटोंक गौतगस्वामीकी-इसमें-गौतमस्वामीके-और-चौ. इसतीर्थंकरोके चरन तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् ( १९४१ ) में इसकी प्रतिष्ठाकिइगइ, और श्रावक-लक्ष्मीचंदजीसाकीन-मांडल-मुल्केगुजरातने इसकों तामीर करवाये,-तीर्थकरकुंथुनाथमहाराजकी टोंक-इसीके सामने है, पेस्तर जिसकेदर्शनकरके आगेकों गयेथे, तीर्थकर कुंथुनाथजीकीटोंकसें-चंदाप्रभुकीटोंक खास ! पूरवकीतर्फ, पार्श्वनाथजीटोंक पश्चिमतर्फशामलियापार्श्वनाथजीका मंदिर दखन तर्फ-मधुबन-श्वेतांवरकोठी-और-धर्मशाला वगेरा उत्तरकीतर्फ है,
सतराहमीटोंक तीर्थकर धर्मनाथजीकी-३समें-तीर्थकर-धर्मनाथजीके-चरन तख्तनशीनहै, और उसपरलिखाहै, संवत् (१९१२) में इसकी मरम्मत दोबारा किइगई,-तीसरीदफे संवत् ( १९३१ ) में-शेठ-नरसिंह-केशवजी-साकीन-कटनेभी इसकी मरम्मत करवाइहै.
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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. ( २९१ ) ... अठारहमीठोंक-तीर्थकर सुमतिनाथजीकी-इसमें-तीर्थकर सुमतिनाथमहाराजके चरन तख्तनशीनहै. और उसपरलिखाहै संवत् (१८२५) माघशुक्ल (३) गुरौं बिरानीगोत्रीय शाह खूशालचंद्रेण श्रीसुमतिनाथ जिनचरणपादुका कारापिता प्रतिष्टिताच मर्वमूरिभिः तपागछेश्रीरस्तु
उनीसमीटोंक तीर्थकर-शांतिनाथजीकी-इसमें-तीर्थकर शांतिनाथमहाराजके चरन तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१८२५) में-विरानी गोत्रीय-शाह-खुशालचंदजीने इनको तामीर करवाये,--
बीसमीटोंक-तीर्थकर-महावीरस्वामीकी-इसमें-तीर्थकर-महावीरस्वामीके-चरन--तख्तनशीनहै. और उसपर लिखाहै संवत् (१९२४) में इसकी मरम्मत रायबहादूर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने करवाइ, तीर्थकरमहावीरस्वामी-पावापुरीमें-मुक्तहुवे, मगर यहां उनके चरन इसलियेतामीरकरवायेगयेकि-यात्रीलोकयहांभी-उनकीजियारत हांसीलकरशके. - एकीसमीटोंक-तीर्थकर-सुपार्श्वनाथजीकी-इसमें-तीर्थकर-सुपार्श्वनाथमहाराजके चरन तख्तनशीनहै, और उसपरलिखाहै संवत् ( १८२५) माघशुक्ल (३) गुरौ बिरानीगोत्रीय शाह खूशालचंद्रेण श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणपादूका कारापिता प्रतिष्टिता च सर्वसूरिभिः तपागछेश्रीरस्तु, .... बाइसमीटोंक-तीर्थकर विमलनाथजीकी-इसमें-तीर्थकर-विमलनाथजीके चरन तख्तनशीनहै, और उसपरलिखाहै संवत् ( १८२५ ) में विरानीगोत्रीय-शाह-खुशालचंदजीने इनकों वानीर.करवाये,- ... ....... ... ... . . . . . . . .
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( २९२ )
तवारिख - तीर्थ समेतशिखर.
तेइसमी टोंक - तीर्थकर अजितनाथजी की - इसमें तीर्थकर अजितनाथजी के चरन तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् ( १८२५ ) में बिरानीगौत्रीय - शाह - खुशालचंदजीने इनको ता मीर करवाये,—
apa
चोइसमीटोंक तीर्थकर - नेमनाथजी की - इसमें तीर्थकर नेमनाथजी महाराजके चरन तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है, संवत् ( १९२४ ) में इसकी मरम्मत रायबहादुर धनपतसिंहजी - साकीन मुर्शिदाबादने -करवाड़. तीर्थकर नेमनाथमहाराज - गिरनार पहाड़पर - मुक्तहुवे, मगर यहां उनके चरन इसलिये तामीरकरवाये गयेकि - यात्रीलोग यहां भी उनकी जियारत हासिल करशके.
पचीसमीटोंक तीर्थंकर पार्श्वनाथजीकी - इसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ महाराजके - चरन - तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है-संवत् ( १८४९ ) माघशुक्लपंचमी बुधवारकेरौज श्रीसंघने तीर्थकरपार्श्वनाथजीके चरन यहां तामीर करवाये, और बाद उसके संवत् ( १९५८) में इसकी तिवारामरम्मत रायबद्रीदासजीमुकीम साकीन कलकत्ताने करवाई. शिखरवंद मंदिर मजबूत - बेशकीमती बनवाया औरप्रतिष्टा करवाई, फर्स- सफेद और काले-शंगमर्मरपथरकावेदी - निहायत उमदा यहटोंक सवटोंकोंसे उंची - इसके चढनेके लिये सीढी बनीये बनी हुई है, ठीक इसटोंक के सीरेपरचढकर नजरकरेतो तमाम समेतशिखरका - पहाडदिखपडता है, हरीहरीवनास्पतीऔर - जंगली मेवाजात हख्तों से छाया हुवा - चोगिर्दा खुशबु - महेकरही है देखकर दिलखुश होगा, मंदिरकी पीछली परकम्मामें खडेहोकरदेखो तो - गोया ! आस्मानकेसाथ बातेंहो रही है, कहांतकतारी - फकरे देखनेवालेही इसकीकदर जानसकते है, तीथामें दौलत खर्च - करना बडेशनशीवों का काम है, जो लोगधर्मकों हुवे क्या
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तवारिख - तीर्थ- समेतशिखर. ( २९३ ) खर्चकरसकेगें, ? पायबंदधर्मकेही अपनीदौलतकों बतौरराहधर्मपर सर्फकरसकते है,—
तीर्थ - समेतशिखर पहाडपर - जैन श्वेतांबर मंदिर - टोंक - औरधर्मशाला - सब - जैन श्वेतांबरोंकी तर्फसेवनेहुवे है, पहाडकेनीचे मधुवनमें जो जैन श्वेतांबरकोठी है- उसीकेखजानेसें सबका इंतजाम किया जाता है, सीढीयों के मुकदमें के फेसलेमें बयान दर्ज है कि . -
The Jains of the Sitam beri sect are in charge and possession of the temples tonks and images and idols therein.
( माइना . ) – शिखरजी पहाडपरके मंदिर - टोंक - उनमेंकी मूर्त्तियें और पुतलें सब - श्वेतांबरमजहबके जैनोके ताबे में है,
[दरबयान- जिला - हजारीबाग, ]
समुंदर के पानी से करीब ( २०० ) फुट ऊंचा जिलेका सदरमुकाम हजारीबाग एक वडा कस्बा है, सन ( १८९१ ) की मर्द - शुमारीके वख्त कस्बे हजारीबागकी मर्दुमशुमारी ( १६६७२ ) मनुष्योंकी -थी, आवहवा निहायतपाक और तंदुरस्ती बढानेवाली जिलेकी वडीनदी दामोदर दुरतक वहती चलीगइ है, जिले हजारीबाग के - पूरवकों परगना संथाल - और - वीरभूमि - दखनपfront लोहारडागा - और - गयाजिला, उत्तरकों गया - और - मुंगेरके जिले है, जिलेमें बहुतसी पहाडीयें और अवरखकी खाने मौजूद है, करीब - आठ - दसलाख रुपयोंका अबरख हरसाल यहांसे गेरमुल्कोमें भेजाजाताहै, कस्बे - हजारीबागमें सरकारी कचहरी - पुलीसटेशन - अस्पताल - और - स्कुल बडी लागतके मकान बनेहुवे
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( २९४ ) तवारिख-तीर्थ-बर्द्धमान. है, बाजार गुलजार और जिसचीजकी दरकारहो यहां मिलसकती है, पूरव दखनकी तर्फ फौजीछावनीमे अंग्रेजीफौज रहाकरती है, जिले हजारीबागमें करीव ( ७० ) मील पूर्वोत्तर गिरिडी टेशनहै, तीर्थ समेतशिखरकी जियारतकरके-यात्री-मधुवनसे रवाना होवे
और-इसरीटेशनसे-कलकत्ता जानेकेलिये रैलमे सवार होवे, और नीमियाघाट-गोमाह-मतारी-तेतुलमरी-धानवैद्य-प्रधानता--छोदावोना-कलुवथान-मुगमा-बराकर-कुलती-सीतारामपुर-बोराचक-आसनसोल-रानीगंज-पानागर-और-खानाजंकशन होतेहुवे वर्द्धमान देशनजाना, रैलकिराया एकरुपया लगताहै,
- [तवारिख-तीर्थ-वर्द्धमान, कलकत्तेसें (६७) मील पश्चिमोत्तर और खानाजंकशनसे (८) मील दखनकों जिलेका सदरमुकाम वर्द्धमान एक-अछाशहरहै, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त वर्द्धमानकी मर्दुमशुमारी (३४४७७ ) मनुप्योकी थी, बाजार रवन्नकलिये और तरहतरहकी चीजे यहां मिलती है, शहरमें जगहजगह-पानीका नल लगाहुवा-कइ तालाव-बागबगीचे-जिनमें तरहतरहकी वनास्पति
और फल-फुलोके पेंड लगेहुवे है, राजमहेल-और-गुलालबाग काबिलदेखनेकीजगहहै, चीडियाखानेमे-बहुतेरेजानबर-शेर-हिरन-वंदर वगेरा मौजूदहै, सडके लंबीचोडी-और-मकान इंटचुनोंके खूबसुरत वनेहुवे है, आजकल जैन श्वेतांवर श्रावकोका-घर-यहांकोइ नही.-न-जैनश्वेतांवर मंदिर है, कल्पमूत्रमें-जहांकितीर्थंकर महावीर स्वामीकी अंतर्वाचनाका बयान दर्ज हे, वहांलिखाहै तीर्थकर महावीरस्वामी-मोराकसंनिवेशसे यहां तशरी फलाये, और जब कायोत्सर्गकरके ध्यानसमाधिमें मशगुलहुवे शुलपाणि यक्षने उनको परिसहदेना शुरुकिया, हवाचलाइ-गर्जा
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तवारिख-तीर्थ-वर्द्धमान. ( २९५ ) रवकिया और पिशाचकी शिकल दिखाकर डरानेलगा, और तरहतहकी तकलीफदिइ, लेकिन ! तीर्थकर महावीर अपने ध्यानमें साबीतकदमरहे, शुलपाणियक्षने समझलियाकि--ये-अपने ध्यानसे गिरनेवालेनही, कोइबडे महर्षि दिखलाइदेताहै, इनकी कदमबोसी करना चाहिये, और कियेहुवे गुन्होंकी माफी मांगनाचाहिये. अखीरमें माफी मांगी, धर्मपर एतकातलाया, और तीर्थकर महावीरस्वामीके बदनपर फुलोंकी वारीशकिइ, पेस्तर यहां जैनोकी आबादी और तीर्थथा, आजकल सिर्फ ! क्षेत्रस्पर्शना है, यात्री इस तीर्थकी कदमबोसी करके जियारत कामयाबहुइ समझे, वर्द्धमानसे रैलमें सवारहोकर-वंडेल-चीनमुरा-चंद्रनगर-सेरामपुर-और लील आटेशनहोते हवराटेशन उतरे. रैलकिराया नव आने,
3 (तवारिख-शहर-कलकत्ता,) इलाहाबादसे (६८४ ) मीलके फासलेपर गंगाकनारे मुल्क बंगालका नामीशहर कलकत्ता-जो-आजकल हिंदुस्थानकी राजधानी कहाजाताहै, बडामशहूर-और-मारुफ शहरहै, कलकत्ता बंबइके बीचका फासला (१२७८ ) मीलका-और-रैलकी सडक बनी हुइहै, कलकत्तेकी जगहपर पेस्तर-कालीघाट-और सुतापटी-दो-तीन-छोटेछोटेगांव आबादथे. गंगाकनारे कालीदेवीका घाट अलबते ! पुरानाहै, जब अंग्रेजोकी आबादी बढनेलगी दिन-ब दिन शहरकलकत्ता तरकीपर होतागया, ज्युंज्युं आबादी बढतीगइ शहरकी तरक्की होतीगइ, बडेबडे मकानात बनतेगये, और तिजारतभी हरेककिसमकी होनेलगी, कल-कारखाने बनतेगये, गरजकि-आजकल इतनातरकीपरहैकि-मुकाबिले इसके शिवाय बंबइके दिगर शहर नही, कभी छोटाशहर वडा-और-बडाशहर छोटा होजाता है, दुनियाका यही कारोबार हमेशांसे चला आताहै, जिसचीजकों
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( २९६ )
तवारिख - शहर - कलकत्ता.
कमाल है उसको जवाल है, और जिसको जवाल है उसको कमालभी है,
रवन्नक कलकत्तेकी आजकल बढी हुइ है, बडेबडे बाजार - टेलीफोन - तार - पानीकानल - बडेबडे मकानात - और - तरहतरहकी चीजे यहां पर काबिल देखने के है, कलकत्ता के बडेबडे बाजार - हरीसनरोडशालदह-- वडाबाजार - चितपुररोड - धर्मतल्ला - कालिघाट - किलेका मेदान - हाफ साहबका बाजार - वांसतल्ला - अफीमचा रस्ता-मुर्गीहट्टाचीनाबाजार- कोलटोला - मछुआबाजार - अलसीवागान - वगेराव - गेरा है, - बगी - घोडे और ट्रामवगेराके सवबसें रास्ते में हमेशां वडा हुजुम बना रहता है, शहरकी सड़के लंबीचोडी और उनपर रातको लालटेन की रौशनीहुवा करती है, समुंदर के कनारे बडेबडे जहाज और-टीमरे - हमेशां तयाररहती है. सन (१८९१ ) की मर्दुलशुमारीके बख्त - कलकत्तेकी- मर्दुमशुमारी ( ८१०७८६ ) मनुष्यों की थी, मकान यहां के निहायत पुख्ता - और - पथरके बनेहुवे - जिनकी छत उपरसे खुली हुई. दुकान दुकानपर साइनबोर्ड और घरपर नंबरलगे हुवे है, कोइशख्श यहां वैंकार नही, हरेक आदमी अपने कारोवार में मशगूल है, मकानका किराया इतना तेज है कि - एक छोटी कोठरीभी सातरुपये महावारसे कम नही मिलसकती. बडीवडी कोठियां (२०० ) रुपये महावारी और बाजे (४००) रुपये महावारीतक मिलसकती है,
फोर्टविलियम - किलेका मैदान - गवर्नमेंट हाउस - बडेलाट साहकी कोठी - हाइकोर्ट - बंगालबैंक - पोष्ट ओफिस- टेलीग्राफ ओफिस - टंकशाल - कलकता युनिवरसीटी - जनाना अस्पताल - कस्टम हाउस इष्ट इंडियन रेलवे मकान - टेशनरी दफतर - बडे बडे आलिशान और कीमती मकानात है, यहां पर हरमुल्कका माल मिलसकता है,
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तवारिख-शहर-कलकत्ता. ( २९७ ) इग्लांड-अमरिका-फ्रांस-जर्मनी-रुस-चीन-जापान--आफ्रिकाइटाली-स्वीटझरलेंड-स्पेन-नोर्वे-स्वीडन-अरव-काबुल-जंजीबारमोरसस-वगेरा मुल्कोकी बनीहुइ चीजे-यहां मीलसकतीहै, तरहतरहकेबाजे-और-साज यहांपर कारिगिरलोग बनातेहै. जहोरीयोकी दुकाने देखो-तो-तरहतरहकी जवाहिरात नजर आती है, कपडेवालोकी दुकाने-तिजारतकी कोठीये घडीसाजोकी दुकाने जिसमें हजार हजार रुपयोकी कीमती घडी मौजूदहै, हरेककिसमके मेवे-बादाम-पिस्ते-अंगुर-अनार वगेरा-जो-चाहो-यहां लेलो, पुरी-कचौरी-मिठाइ-वगेरा हरवख्त ताजी मिलसकती है, नाशपाती-आम-अमरुद-सेव-शरीफे-फालसे-वगेरा यहां हमेशां मिलसकते है, अलिपुरके बगीचेमें तरहतरहके जानवर-परीद-तोते चीडिया-शेर-हिरन-गेंडा-बंदरवगेरा मौजूदहै, अजायब घरमें तरहतरहकी चीजें-अमरिका-आष्ट्रेलियाके जानवर-हिंदुस्थानकी कारीगिरीके नमुने-समुंदरके जानवरोके कलेवर-आफ्रिकाके बडे बडे शेर-और-व्याघ्रके कलेवर-मसालोसे भरेहुवे रखेहै, आदमीयोंके कलेवरभी मौजूद है जिसको देखकर इसतरहकी नसीहतहोती हैकि-बदनका पुतला-इसतरहका बनाहुवाहै, कइमूर्तिये-शिलालेख देखकर पिछलाजमाना याद आता है. अजायबघरके अजुबात देरखनेसे एकतरहकी-नसीहत मिलती है,
जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर शहरकलत्तेमें करीब (७००) होगे, जहोरी-मारवाडी-गुजराती-सब इसमें आगये, इनमें दुकाने सा. मीलनहि किइगइ, अफीमचौरास्तेपर-एक-जैनश्वेतांबरमंदिर उमदा और बेशकीमती बनाहुवाहै, जो-कोइ-जैनश्वेतांबरयात्री कलकत्ते. कों जाय-हवराटेशनपर उतरे, हवराटेशनसे कलकत्तेकों जातेवख्त रास्तेमें गंगाका पुल बंधाहुवाहै, गंगाकनारे देखोतो तरहतरहकी
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( २९८ ) तवारिख-शहर-कलकत्ता. नावे-घुमरही है, और तरहतरहके झंडे फरकरहेहै, पश्चिमसे जानेवालेको अवल-हवराटेशन मिलताहै, टेशनपर इका-बगी-तयार मिलेगी, वेठकर शहरमेंजाना,-और-शामावाइकी गलीमे-जो जैन श्वेतांबर धर्मशाला वनीङ रहे जाकर ठहरमा, जोकोइ यात्री दादावाडौंमें ठहरनाचाहे-सीधे अलसीवगान पुशे चले जाय वहांभी ठहरनेकेलिये धर्मशाला मौजुदा है, शहर में वहां ज्यादह आराम मि. लेगा, मगर शहरमें आनेजानेकी बेशक ! तकलीफ रहेगी,
दादाजीके बगीचमें छत्री-और-कदम-दादाजीके जायेनशीन है, सामने एकतालाब-और-एक-वारांदरी-निहायत उमदा बनी हुइ जहांकि-तीर्थकर धर्मनाथ जीकी सवारी-कार्तिक पुनमके रोज शहरसे आती है और ठहराइजाती है, छत्रीसे पश्चिमको धर्मशाला बाहुइ यात्री इसमें शकर ठहरे, कोइ रोकटोक नहि. कुवा-एक मोठे जलका-और-पासमें एक बगीचा जिसमें-गुलाव-चंपा वगेराके फुल पेदा होने है, लसीके पचिपकों रायवद्रीदासजीका बगीचा-और-उन्हीका तामीर करवायाहुवा तीर्थकर शीतलनाथजी का मंदिर बडीलागतकाहै इसकी हलेवजह और मीनाकारी काम अजबकिसमका देखोगे, इसको देखनकालिये हरवख्त कइलोग आते जातेहै, इसकी तारीफ तमाम कलक में मशहूर है, कइअंग्रेज इसका फोटो उतारकर लेजातहै, इसमंदिरमें कइ किसमके चित्राम-और आइनेका काम-इसकदर उमदा वनाहे जिसको देखकर आदमी ताज्जुब करताहै, मंदिरकी दवनतर्फ-श्रीकल्याणमूरिजीकी छत्रीउत्तरतर्फ धर्मशालाएक-बारादरी--तीनकमरे--चारचमन--जलके फव्वारे-सामने तालाब-और फाटककेउपर नोवतखाना-जिसमें हमेशां-शुभह-शाम-लोबत बजती है, दादाजीके बगीचसे इशानकोनकों जहोरी-मुखलालजीका-तामीरकरवायाहुवा मंदिर बेश
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तवारिख-मुल्क-आसाम-और-ढाका ( २९९ ) कीमती और पायदारहै, इसमें तीर्थकर महावीरस्वामीकी मूर्ति तख्तनशीनहै, तीसरामंदिर-जहोरी-कपुरचंदजीका तामीरकिया हुवा इसमें मुलनायक तीर्थकरचंदाप्रभुकी मूर्ति तख्तनशीनहै, ठीक सडकपर इस तरह बनाहुवा है कि-सडकपर खडेहुवेभी दर्शन करलो, __हरसाल कातिकसुदी पुनमकेरौज अफीमचौरास्तेके मंदिरसे सवारी तीर्थकर धर्मनाथजीकी बडेजुलुससे निकलकर दादाजीके बगीचे रौनक-अफरोज होती है, सवारी जिसवख्त शहरसे बडे बाजारमें होकर निकसती है-डंका-निशान-धजा-पताका-वेंडवाजा-महेंद्रधजा--चांदीसोनेके सिंहासन-छडी-चवर-छत्र-वगेरा लवाजमा शाथ निकलताहै, तीर्थकर धर्मनाथजीकी मूर्तिके सामने 'जब जहोरीलोग संगीतकलाके जाननेवाले हारमोनियम वगेरा बाजोकेशाथ तालस्वरसे गाते है. उसवख्तका जलसा काबिल देखनेकेही होताहै. दुफेरके बारांवजे सवारी शहरसे निकलकर चार बजे दादाजीके बागमें जाकर दाखिलहोती है, और तीनरौज वहां कयामकरके चोथेरौज उसी जुलुसके शाथ वापिस शहरमें आती है,-यात्री--कलकतेमें कुछरौज कयाम करे और जैनमांदरोकी जियारत करे,
IT ( तवारिख मुल्क आसाम-और-ढाका,) - कलकत्तेसे अगर कोइयात्री मुल्क आसाम तर्फ जाना चाहे शौखसे जाय, मुल्क आसाम ब्रह्मपुत्रानदीकी इर्दगिर्द चीनकीहदतक चलागया, उत्तरतर्फ भुटान-पूरवमें बर्मा-और-सलतनत मनीपुरहै, जंगल-पहाडियां-हमेशां पानीकी बहुतायतसें मुल्कसरशब्ज और चायके-पेंड -यहां कसरतसे होते है, आसाममें जिलेकामरुपका
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( ३०० ) नवारिख-मुल्क-आसाम-और-हाका. सदरमुकाम गोहाटी एक छोटासा कस्बाहै, जो ब्रह्मपुत्रानदीके दखन कनारेपरवाके है, आवादी इसकी (१०८१७ ) मनुष्योंकी-और इसके आगे (२) मीलकेफासले कामाच्या पहाडीपर एक-कामाक्षादेवीका मकानहै, जिलेकामरुपकी शुमालतर्फके हिस्सोंमें-हाथी-चीता-भालु-और-बडे हिरनवगेरा ज्यादह होते है, हरजगह जंगलोमें मोर-तोते-बगेरापरीदे द्रग्ब्तोपर कलोले करतेरहते है, और उनकी मीठीमीठी अवाजोसे आदमीयोंकी तबीयत खुशहुवा करती है, मुल्कआसाममें ब्रह्मपुत्रा नदीके दरवनकनारे ग्वालपाडा एक छोटाकस्वाहै, लखीमपुर-डिब्रुगढ-तेजपुर वगेरा औरभी कस्बे इसमें आवादहै, नेजपुरसे डिब्रुगढतक रास्तेमें बहुतसेचायके बाग फैलेहुवे है, ___ सुबेवंगालमें नारायणगंजसे (१०) मील पश्चिमोत्तर जिलेका सदरमुकाम-ढाका-एकअछा शहरहै, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीकेवख्त ढाकेकी मर्दुमशुमारी ( ८२३२१ ) मनुष्योंकीथी, मलमल ढाकेकी हरेकमुल्कमें मशहूर सानेचांदीका काम यहांका लाइकतारीफके-और-कसीदेकाकाम-दोरियाजामदानी यहां उमदावनाइजाती है, बंगालमें तोरसानदीके नजदीक कुचविहार एक अछा शहरहै, आबादी इसकी सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीक वख्त (११४९१ ) मनुष्योंकीथी, एक सडक रंगपुरसे-कुचविहारहोकर जल्पाइगोडीको गइहै, सुबे बंगालके राजशाही विभागमें सिलीगोडीटेशनसे (५१) पश्चिमोत्तर दार्जिलिंग एक-खुशनुमाशहर और रैलका टेशनहे, सिलीगोडीटेशनसे दार्जिलिंग-हिमालयकी छोटीलाइन-पहाडके एक छोटे शिखरकी अतराफ घुमती हुइगइ है, भोटीया-तिब्बती-नयपाली-काबुली कश्मीरी पहाडी--और-हिंदुस्थानीलोग यहां बसते है, बाजार गुलजार-और-इतवारकरीज
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तवारिख-शहर-मुर्शिदाबाद. ( ३०१ ) लोगोका हुजुम बहुत रहताहै, चायकी पैदाश-ज्यादह-पहाडियोमें कइगुफा-और उंची उंची पहाडीयोमें तेंदुए-भालु-और-बडे हिरनभी रहाकरते है, आवहवा यहांकी उमदा और गौंकेदिनोमें शरीफलोग यहां आनकर सकुनत इख्तियार करते है, मुल्कआसाममें-ढाकमें-दार्जिलिंगमें--और--कुचविहारमें-जैनोंकी आबादीभी है, मगर थोडी, कलकत्तेसें अगर कोइ यात्री रंगुन जानाचाहे ष्टीमरमें जासकते है, किराया थर्डकलास पासेंजरका रुपये (१०) लगते है, रंगुनमें जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आवादी और मंदिर वनाहुवा है, चावलकी पैदाश ज्यादह-और तिजारतकी जगहहै.
कलकत्तेसें यात्री इष्टरन बंगाल स्टेटरेलमें सवारहोकर-स्यालदा-डमडम-बेलगुरिया-अगरपारा-सोदेपुर-खरडाहा तीताघरबराकपुर-पालता-इछापुर-सामनगर--कनकीनरा--नयहाटी-हाली शहर-कंचपारा-मदनपुर-सीमुराली-चकदा-प्याराडंग-रानाघाटबीरनगर-बदकुला-कृष्ननगर--धुबुलिया-मुरागचा--बेधुआधरीडेबाग्राम-प्लासी-राजीनगर-बेलदंगा-भापता-सेरागची-बरहामपुर-और कासिम बजार टेशन होते-मुर्शिदाबाद उतरे, रैलकिराया एकरुपया पोनेदसआने लगते है,
[ तवारिख-शहर-मूर्शिदाबाद,-] मुल्क बंगालमे-मुर्शिदाबाद एक उमदा शहरहै, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीमें मुर्शिदाबादकी मर्दुमशुमारी (३५५७६) मनुष्योंकीथी, मुर्शिदाबाद पेस्तर बडाशहरथा, मकान वडे आलिशान रंगदार और खुबसुरत बनेहुवे, निझामतकालेज वडीलागतका मकानऔर-मोतीझील-एक-काबिल देखनेकी जगहहै, रेशमीकपडे-रुमाल
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( ३०२ ) परिसह-तीर्थंकर-महावीरस्वामीके. कारचोबीका काम-और-हाथीदांतका काम यहां अछा बनताहै, महल नवावसाहबका बेशकीमती और खुशनुमा बनाहुवा निहायत संगीनहै, दरमियान अजिमगंज और मुर्शिदावादके गंगानदी बहती है और बजरीये नावके पार जानाआना होताहै जैनश्वेतांबर श्रावकोंके घर करीब ( १५० ) और-मंदिर-अजीमगंजमें (७) राम बागमें ( २ ) कुल्ल नवहुवे. बालुचरमे मंदिर (४) कीर्तिबागमें (१) महिमापुरमें ( १ ) कठगोलेम ( १ ) और-कासीम बाजारमेभी ( १ ) बना हुवाहै, उपाश्रय अजीमगंजमे ( ६ ) औरबालुचरमें ( ४ ) है, ठहरनेकेलिये अजीमगंजमे करीव टेशनके धर्मशाला बनीहुईहै, यात्री उसमे कयाम करे, और जैनमंदिरोंकी जियारतकरे,-रवानगीके वख्त अजीमगंज-टेशनसे-रैलमें सवार होकर बराला-सागरडीघी-वोखरा--लोहापुर-ताकीपुर-नलहटी-रामपुरहाट-मोलारपुर-सेंथिया-कोरी-मूरि-चीपाइ-डुवराज-पंचरा-पांडवेश्वर-उखारा-ओंडल-रानीगंज-और-काली पहाडी होते आसनसोलजंकशन आना. रैलकिराया एकरुपया-सातआने,-मुवे बंगालके-जिले वर्द्धमानमें आसनसोल एक गुलजार बस्ती है, बाजारमें हरेककिसमकी चीजे मिलसकेगी,-इंझीनका बडा कारखाना और अतराफ आसनसोलके कोयलेकी खानेभी मौजुद है,
E परिसह तीर्थंकर महावीरस्वामीके, संवत ( १७५० ) की सालमे जैनश्वेतांवरमुनि सौभाग्यविजय जीने-जो-तीर्थोकी सफर करके तीर्थमालानामकी पुस्तक बनाइ है उसमे यहलिखाहैकि हमने-तीर्थ भदीलपुरकी जियारत कि और पुनायागांव गये, जहांकि-तीर्थकर महावीरस्वामीके कदमोकी छत्री वनी इथी और उसमे उनके कदम तख्तनशीनथे, तीर्थकर महावीर
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परिसह - तीर्थकर - महावीर - स्वामीके. (३०३ )
स्वामीके कानोमेसें कीले खरकनामके हकीमने यहांपर निकालेथे, जोलोग कहते है - यह - माजरा - करीब तीर्थ बंभणवाड मुल्क मारवाढमें - गुजराथा यहबात बिल्कुल गलत है, तीर्थंकर महावीर स्वामीने अपनी छदमस्थ हालत में मुल्क मारवाड तर्फ सफर कभी नही कि . ( ( पाठ कल्पसूत्र में सबुत इसका इस तरह लिखा है, )
ततः षण्मानिग्रामे स्वामिनः बहिः प्रतिमास्थस्य पार्श्वे गोपो वृषान् मुक्त्वा ग्रामंप्रविष्टः आगतश्च पृछति देवार्य ! कगता वृषभाः भगवताच मौनेकृते रुष्टेनतेन स्वामिकर्णयोः कटशिलाके तथाक्षिप्ते यथापरस्पर लग्नाग्रे - अग्रछेदनाच अदृश्याग्रे जाते, - एतच्चकर्म शय्यापालकस्य कर्णयो स्त्रपूप्रक्षेपेण त्रिपृष्टभवेउपार्जितं अभूत् उदितंच वीरभवे, शव्यापालको भवंभ्रांत्वा अयमेव गोपः संजातः- ततः प्रभुर्मध्यमा पापायगतः तत्र प्रभुं सिद्धार्थवणिग्गेहे भिक्षार्थ आगतंनिरीक्ष्य खरक वैद्यः स्वामिनः सशल्यं ज्ञातवान् - पश्चात् स वणिकू तेन वैद्येन सहोद्यानं गत्वा संडासकाभ्यां ते - शिलाके निर्गमतिस्म, तदाकर्षणेन वीरेण आरादिस्तधामुक्ता यथा सकलमपि उद्यानं महाभैरवं बभूव, तत्रदेवकुलमपि कारितं लोकैः प्रभुश्च संरोहिण्या औषिध्या निरोगो-बभूव, वैद्यवणिजौ स्वर्ग जग्मतु-गोपः सप्तमंनरकं,
जब तीर्थंकर महावीरस्वामी पणमानी गांवके नजदीक ध्यानकरतेथे एक गोवालिया वहां आया, और कहनेळगा कि - इनवेंलोके निगाहबान आपरहिये, में - एक - जरुरी कामके लिये गांवमें जाता हूं तीर्थंकर महावीरस्वामी अपने ध्यानमें मशगुलये उनोने उसका कुछ जवाब- नही दिया. और गोवालिया अपने बेंळोको इनके पास छोड़कर चला गया, बादजब चंदअर्सेके वापिस आया और देखातो
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( ३०४ ) परिसह-तीर्थकर-महावीर स्वामीके. बेलोकों-न-पाया. क्योंकि-के-जंगलको चलेगयेथे, तीर्थकर महावीरसे दर्याफ्त करने लगाकि-ने-बैलोको आपके जेरेजिम्मा कियाया-कहांगये ? तीर्थकर महावीरने उसबख्तभी कुछजवाब नहीदिया, तब उसने गुस्साखाकर लकडेकी-दो-मेखे-उनकेकानमें लगादिइ. तीर्थंकर महावीर स्वामीके जीवने-जो-त्रिपष्टवासुदेवके जन्ममें शय्यापालके कानों में गर्म कभीर उलबादियाथा-बह-कर्म इनजन्ममें उनके पेशआया, गोवालिया वेलोकी तलाश करताहुवा अपने बतनको गया. और तीर्थंकर महावीर स्वामी वहाँसे रवाना होकर मध्यम अपापानगरीको गये, वहां एक-सिद्धार्थनामके-साहुकारका घरथा उसकेघर जबमिलाको जातेथे एक-खरकनामकेहकीमने देखाकि-इनके कानोमें कुछ तकलीफसी माम देती है, जब खूबगोरसे देखातो मालूमहुवा किसीने इनके कानोमें-मेखेमगादिइहै, हकीम-खरक-और-साहुकार सिद्धार्थने सलाह किइकि किसीसुरत मेखे उनके कानासे निकाल देना चाहिये, तीर्थकर महावीरस्वामी भिक्षालेकर जब जंगलकीतयः रवाना हुने-कीम और साहुकार चंदनोकरोको अपने हमरा लेकर उनके पीछे गये, और मेखे निकालनेकी तजवीज किड, बडी कोशिशकेसाय संडासीयोसेखींचकर मेखे वहार निकाली,-उसयस तीर्थकर महावीर स्वामीकों अजहद तकलीफ झुइ. कील खरकन्दै उशीवख्त संरोहिणी जडीका लेपलगाकर जखमकों चंगाकरदिया. इस उमहाकार रवाइ से हकीम और साहुकारने बहिरू पाइ, और गोवालियने अपने कियेकी सजा दोजक पाया, उसकलसे-यह-जगह तीर्थगाहबनी
और मंदिर बनायागया, तीर्थमाला बनानेवाले महाराज सौभाग्यविजयजी फरमाते है जबकि-हमने-जियारतकिइथी तीर्थकर महावीरस्वामीके कदमोकी छत्री चहापर कायमयी, और सुनायगांवसे राजग्रही नगरी ( ११) कोशके फासलेपर वाकेथी, आजकल वह
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परिसह-तीर्थंकर-महावीर-स्वामीके. (३०५ ) .. कदम-और-छत्री जेरेजमीन होगइ, कदमभी नहीरहे और तीर्थ वीछेद होगगा, ए ! नाजरीन " एसीजगहपर तीर्थकी तरकी जानोमालसे करनाचाहिये, चुनाचे बाजेलोगोने वडेवडे तीर्थोमें रुपया खर्चकर बडे आलिशान मंदिर बनवाये मगर ऐसे तीर्थोमें तरही करना लाय क तारीफके है,
तीर्थकर महावीर स्वामीके पांवकों जिसजगह चंडकोसियासांप-डसाथा-यह-माजराभी मुल्क पुरवमें हुवाथा, जोलोग कहते मुल्क मारवाडमें करीब नादिया गांवके यह माजरा गुजराथा विल्कुल गलत है, बल्कि ! कनखल कस्बेके पास तीर्थकर महावीर स्वामीके पांवकों चंडकौशिये सांपने काटाथा, कल्पसूत्रमें पाठहैकि
" ततो विहरन् श्वेतंव्यां गछन्-जनार्यमाणोपि कनकखलतापसाश्रमे चंडकौशिक प्रतिवोधाय गतः" -सचप्रभुं दृष्ट्वा दृष्ट्वा दृष्टिज्वालां सुमोच-मुक्त्वाच मापतन्नयं-मां-आक्रामतु हत्यपसरति तताभृशं कुन्डो भगवंतं ददंश, ___ तीर्थंकर महावीरस्वामी सफर करते हुवे जब श्वेतांबी नगरी तर्फ जातेथे लोगोने कहा आप इधर तशरीफ-न-लेजाइये, उधर एक बडा जहरीला सांप रहता है, मुआदा असा-न-होकि-आपकों डस जाय, तीर्थकर महावीर स्वामीने इसबातका कुछ खयाल नही किया और उसी तर्फकी राह लिइ, जहां उससांपका हुदथा, उसजगह जाकर कयाम किया और ध्यान करने लगे, इस असनामें सांप आपने हुदसे बहार निकल आया और देखाकि-कोइ महात्मा खडेहै, गुस्सा होकर उनकी तर्फ आया, उसके दिलमें यहभी खयाल आया रहताथा-कहीं-ये-महात्मा मुजपर-न-गिर पडे, जिससे-में-दष जाउ, इसवजहसे कुछ पीछेभी हठता जाताथा, तीर्थकरमहावीर अपने ध्यानमें निहायत साबीत कदमथे, सांपने आखीरकार नजदीक
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( ३०६ ) बयान-शहर-बिलासपुर. आनकर उनके पांवकों डसा, मगर उनके बदनमें जहर नही चढा, बल्कि ! उनाने सांपकों हिदायतकिइकि-हें ! चंडकोसिया सांप ! जब-तुं-पीछले जन्म साधुकी हालतमे था तेने बहुत क्रोध कियाथा अब-तु-सांप बना है, अब तेरी गुस्सेकी हालत दरगुजर कर और धर्मपर निगाह बांध, इसबातकों सुनकर चंडकोसिये सांपने अपना होश संभाला, और उसको जातिस्मर्गज्ञान हासिल हुवा, यह-माजराभी-मुल्कपूरवमें गुजराथा, मारवाडमें नही, कनखलनामका कस्वा इसवख्त हरिद्वारसे (३) मील के फासलेपर गंगाके दाहनेकनारे आबाद है, आजकल वहां इसबातका-कोइ निशान बाकी नही रहा.
पूरवके तीर्थोका वयान खतमहुवा-इसमुल्कमें पानीकी बहुतायत रहनेकी वजहसे-अनाजकी फसले अछी होती है, खानपान बोलचाल और पुशाक उमदा-तीर्थकरोकी निर्वाणभूमिहोनेसे पेस्तर यहां जैनधर्मकी बडी तरकीथी, वडेबडे जैनश्वेतांबर मंदिर-मूर्ते
और-जैनमजहबकी किताबे यहांपर मौजुदथी, चक्रवर्तीराजे जिनके पास बेशुमार दौलत-और-जवाहिरातथा यहांहुवे, धन्ना-शालिभद्र
और जंबुस्वामी जैसे धर्मपाबंद शख्श इसी मुल्कके बाशिंदेथे; आनंद-कामदेव-वगेरा व्रतधारी श्रावक इसी मुल्कमें पैदाहुवे. तीर्थकरोंकी निरवाण भूमिहोनेसे जैन तीर्थभी इस मुल्कमें ज्यादह है,
[बयाम-शहर-बिलासपुर,] आसनसोलसे रैलमें सवार होकर-दामोदर-मुरुलिया-मुराडी -रामकनली-खजुरा-चीनपीना-आडरा-अनारा--कुस्टार-पुरुलिया-कंटाडीह-बारभोम-नीमडीह-चांडिल-कांडरा-*सीनीजंकशनअमदा-बाराबंवो-चक्रधरपुर, रैलकिराया आसन सोलसे चक्रधर
* यहाँसे एक रैलवेलाइन खडगपुर होकर कलकत्तेकों गई है,
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बयान-शहर-बिलासपुर. (३०७) पुरतक एक रुपया छआने लगते है, चक्रधरपुरसे-लोटापहाड-सोनुआ-गोइलकेरा-पोसोइटा-मनहरपुर-जरायकेला-बिसरा-रोवरकेला-पनपोश-कालुंगा-गजगंगपुर--सोनखां-गारपोश--बामराधरुआडीही-बागडेही धुतरा-झाड सोगरा-चक्रधरपुरसे झाइसोगरेतक रैल किराया एक रुपया पोनेपांच आने-लगेगे, झाडसोगरासे-बेलपहाड-कानीका-जमगा-रायगढ-नाहारपाली-खरसिया-शक्ति-बाराडोर-चंपा-नेला-अकलतरा--और-पाराघाट होते बिलासपुर जाना, झाडसोगरासे यहांतक रैल किराया एक रुपया सवापांच आने लगते है,
आसनसोलसे (३११) मील पश्चिम दखन तर्फ जिलेका सदर मुकाम बिलासपुर एक-रैलवेका जंकशन है, सन (१८९१)की मर्दुमशुमारीके वख्त बिलासपुरकी मर्दुमशुमारी (१११२२) मनुष्योंकीथी, बिलासपुरसे (१९८) मीलकी रैलवे लाइन पहाडी जिले और उमरियाके कोयलेके मेंदान होकर कटनी जंकशनकों गइहै. विलासपुरसे (६३) मील उत्तरकी तर्फ पेंड्रारोड-और-पेंड्रारोडसे (१३५) मील पश्चिमोत्तर रुखपर कटनी है,-पेंड्रारोडसे (७) मीलपर अमरकंटकके शिखरोका सिलसिला जहांसे नर्मदा नदी निकलीथी मौजूद है. जिले बिलासपुरके पूरव पश्चिम-और-उत्तरकी तर्फ पहाडी और बहुतेरे जंगलहै, अनाज-उख-और-रुड़की पैदाश यहां अछी होती है, बिलासपुरसे रैलमें सवार होकर-बिल्हा-निपानिया-भाटपाडा-हटबंध-तीलदा सिलियारी-मंढर-होते-रायपुरजंकशन आना, बिलासपुरसे रायपुरतक रैलकिराया सवाग्यारह आने लगेगे यात्रीको अगर रायपुरमें जाना मंजूर हो-शौखसे जाय, वरना ! आगेकों बढे,
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बयान-शहर-रायपुर.
HT ( बयान-शहर--रायपुर,) बिलासपुरसे (६८) मील-पश्चिमदरखन-मध्यप्रदेशके छत्तीसगढ विभागमे जिलेका सदरमुकाम-रायपुर-एक रैलवेका टेशन है, टेशनसे करीब (?) मीलके फासलेपर आबादी शुरुहोगी, एक-सडक-नागपुरसे रायपुर-संभलपुर-और मेदनीपुरहोकर कलकत्तेकों गइहै. सन (१८९१) की सर्दुमशुमारीकेवरून-रायपुरकी मर्दुमशुमारी मयफौजी छावनीके (२३७२१) मनुष्योंकीथी. जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आवादी और मंदिर यहां पर बनाया है, गोलचोकसे दखनकी तर्फ (२) मीललंबी पकी-सडक-जिसके बगलोमें मकान-और कपडे-वर्तन वगेराकी दुकाने मौजुद है-पानीकानल हरजगह लगाहुवा
और बडी सडकोंपर लालटेनोंकी रौशनी हुवा करती है. दिवानी फौजदारी कचहरियां-और-अस्पताल वगेरा यहांपर अछे मकानात है. और जिले रायपुरकी बडी बडी फसिले अनाजकी है, रायपुरसे रैलमे सवार होकर-कुंभहरी-भिलाय-डुघ-मुरीपुर-होते राजनांदगांव आना. अगर मरजी होतो शहरमेजाना और देखना, न-जाना होतो आगेको रवाना होना, रायपुरसे (४२ ) मील पश्चिम तर्फ राजनांदगाव-एक-रेलवे देशन है. सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त राजनांदगांवकी मर्दुमशुमारी ( ८८५० ) मनुष्योकीथी,-जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी और मंदिरभी यहांपर मौजूद है. दरमियान शहर--और-टेशनके सडक बनी हुइ है, राजमहल--कचहरियां--और-स्कुल--वगेरा मकानात कीमती वने हुवे है, राजनांदगांबसें रैलये सवार होकर-मुसरा-डोंगरगढ-बोरतालाव--दरेकासा-- सलेकासा-आमगांव-गुडमागोंदिया-गंगाझीरी-तीरोरा-तुमसर रोड-कोका-भंडारारोड-खट... थरसा-और-सलवा होते कामठी जाना, अगर कामठी देखनेका
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दरबयान-शहर-नागपुर. (३०९ ) इरादा हो-तो-वहां उतरना, वरना ! आगेको बढना, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त कामठीकी मर्दुमशुमारी मयफौजी छावनीके (४३१५९) मनुष्योंकीथी, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और मंदिर यहां मौजूद है, सडके लंबी चोडी-बाजार उमदा-और-जो -चीज दरकारहो बखूबी मिलसकती है, कामठीसें रैलमें सवार होकर-मेंदीबाग-होते नागपुर टेशन उतरना, रायपुरसे नागपुरतक रैल किराया एक रुपया पनराआने लगते है,
ॐ दरबयान-शहर-नागपुर,-] अक्लीमें हिंदमें मध्यप्रदेशका सिरोताज नागपुर-एक उमदा शहरहै. करीब इसके नागनामकी एकनदी बहती है जिसकी वजहसे शहरका नाम-नागपुर-कहलाया, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त नागपुरकी मर्दुमशुमारी मय फौजी छावनीके ( ११७०१४) मनुष्योंकीथी, इतवार पेठमें जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आवादी और मंदिर वनेहुव है, करीव टेशनके धर्मशालाभी तामीरहै यात्री उसमें कयामकरे, और शहरमें जाकर मंदिरोकी जियारतकरे, वाजार लंबाचोडे-और-हरकिसमकी चीजे यहांपर मिलसकेगी, पानीका नल-हरजगह-जारी, और रातकों सडकोंपर लालटेनोकी रौशनी हुवाकरती है, इक्का-बगी-हरजगह तयारमिलेगी, बागबगीचोमें महाराजबाग एक काबिल देखनेके है, जिसमें कइत रहके जानवर चुनाचे-बाघ-भालु-वंदर-हिरन-और-कइ किसमके परी देभी रखेहुवे है, कचहरियां-स्कुल-और-कइ कल कारखाने यहां मौजूदहै, नागपुरकी-नरंगी निहायत मीठी-रंगदार-खुशनुमा होती है और कइमुल्कोमें भेजी जाती है. अनाज और कपडेकी सोदागिरी ज्यादह-नागपुरी धोतीजोडे मुल्कोंमें मशहूरहै. नागपुरसे एक-पैदलसडक-जबलपुरकों और एक संभलपुर मेदनीपुर होतीहुइ
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( ३१० )
बयान- शहर - उमरावती.
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कलकत्तेकोभी गइ है, नागपुरकी उत्तरी सरहदपर - और -दखनपश्चिमकी रुखपरभी पहाडोका सिलसिला जारी है, एक सिलसिला उत्तरसे दखनकोंभी चलगया, ये - तीनो - सिलसिले सतपुडे पहाडके हिस्से कहलाते है, यात्री नागपूरके जैनमंदिरोकी जियारत करके आगेको रैलमें सवार होकर - खपरी - बोरी - बोरखेडी - सिंदी -- तुलजापुरऔर- पौनार टेशन होते - वरधा टेशन जाय, नागपुरसे (४९) मील पश्चिम मील दखनकी रुखपर जिलेका सदरमुकाम वरथा एक छोटासा कस्बा है, इसकी आबादी अंदाज (६) हजार मनुष्योंकी होगी, रुड़की तिजारत यहां कसरतसे हुवाकरती है, कस्बेकी पूर्वरूखपर सरकारीकचहरियां - और - पब्लिकबाग बनाहुवा है, जैन श्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी और मंदिरभी यहांपर तामीरहै, यात्री दर्शनकरे, वरधेसें रैलमें सवार होकर - दहेगांव - पुलगांव - तालनी - धामनगांव- दिपोरचांदुर - मालखेड - और - अंजनगांव होते बडनेरा जंकशन जाय,
(दरबयान- शहर - उमरावती )
बडनेरासे उत्तरतर्फ ( ६ ) मीलके फासले पर जो एक रैलवे लाइन गइहै उसजगह शहर उमरावती वाके है, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त उमरावतीकी मर्दुमशुमारी मय फौजी छावनी के ( ३३६५५ ) मनुष्योंकीथी, जैन श्वेतांवर श्रावकोकी आबादी और मंदीर यहांपर बना हुवा है. यात्री शहरमें जाकर दर्शनकरे, उमरावती एक पुराना शहर है, और इसके दो हिस्से - मशहूर है, एक कस्बा - दुसरा पेंठ - बाजार गुलजार और जिसचीजकी दरकार हो यहांमिलसकेगी, रुड़की तिजारत यहां ज्यादह होती है. अतराफ शहरके मजबूत पथरोकी दिवारबनी हुइ - जिसमें - ( ५ ) फाटक - और ( ४ ) खीडकीयें लगी हुई है. - यात्री - उमरावतीसे वापिस बडनेरा जंकशन आत्रे, और बडनेरासे - तकली - कुरम - मान - मूचिंजा
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बयान-आकोला-और-बालापुर. ( ३११ ) पुर-कोटेपुरना--बोरगांव--और--यावलखेड टेशनहोते आकोला टेशन उतरे,-नागपुरसे आकोलेतक रैलकिराया दोरुपये सातआने लगते है,
ET (बयान आकोला-और-बालापुर,) मुल्केवराडमें जिले का सदरमुकाम आकोला एक रैलवेका टेश. नहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त आकोलेकी मर्दुमशुमारो ( २१४७० ) मनुष्योंकीथी. दरमियान शहर और पेंठके मोरना नामकी एकनही वहती है. और उसपर जानेआनेके लिये पुल बंधाहुवाहै, बाजारमें हर किसमकी चीजे मिलसकेगी. हफतेमें एक दफे बाजारभी भराकरताहै. जैनश्वेतांवर श्रावकोंकी आबादी और मंदिर ताजना ठमें मौजुदहे, यात्री वहांजाकर मंदिरकी जियारत करे, सरकारी कचहरियां टाउनहोल-और-खेराती अस्पताल वगेरा मकानात वनेहुवे है, आकोलेसे तीर्थ अंतरिक्षनी जानेवाले यात्री बजरीये बेलगाडीके जासकतेहै, जो करीव (२२) कोसके फासलेपर वाकेहै, रास्ते सडकपकी बनीहुइ पांच रोजमें तीर्थकी जिया रतकरके वापिस आसकोगे.____ अगर कोई यात्री आकोलेसे आगे-डाबकीटेशन होते-पारस टेशन उतरकर वालापुरसे तीर्थ अंतरिक्षनीको जाना चाहे-तोभीजासकते है, पारस टेशनसे करीव (३) कोशके फासलेपर बालापुर एकपुराना शहरहै, दरमियान-पारस-और-बालापुरके पकी सडक बनी हुइ-और-दो-नदीये रास्तेमें आती है, सन (१८९१) की मदुमशुमारीके वरुत-बालापुरकी मर्दुमशुभारी (१०२५०) मनुष्योंकीथी, तिजारत रुकी यहां अछी होती है, और शनिवारके रौज बाजारभी जमा होता है, हरकिसमकी चीजें उसरोज मिल सकेगी,
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( ३१२) तवारिख-तीर्थ-अंतरिक्षजी. गालिचे-शतरंज-और-पघडी यहां अछी बनाइ जाती है, टेलीग्राफ औफिस-स्कुल-अस्पताल और पोस्टऑफिसभी यहां मौजूद है, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर अंदाजन (७५)-और-(२) जैनश्वेतांवर मंदिर जिसमे एक मंदिर-जो-तपगछवालोंकी तर्फसें नयातामीर किया गया है काबिल देखनेके है, मुतस्सिल उसके तपगछघालोंकी धर्मशालाभी बनी हुइ है, जहांकि-आये गये यात्री और मुनिलोग ठहरा करते है, वालापुरसे तीर्थ अंतरिक्षजी करीव (१८) कोसके फासलेपरवाके है, जैसे आकोलेसे पकी सडक गइ है वालापुरसेभी उसीतरह गइ है, जोकि-नजदीक कस्बे पातुरके जाकर मिल जाती है, यात्रीको मरजी हो बालापुरके रास्ते तीर्य अंतरिक्षजी नाय-या आकोलेसे-इख्तियारपर मौकुफ है, जितना खर्च-आकोलेसे पडेगा बालापुरसेभी उतनाही पडेगा.
( तवारिख-तीर्थ-अंतरिक्षजी,) मुल्कवराडमें आकोला टेशनसे (२२) कोसके फासलेपर कस्बे श्रीपुरमें-अंतरिक्षजी-एक पुराना जैन तीर्थ है, आकोलेसे-इक्काबेलगाडी वगेरा सवारी मिलसकती है, तवारिख इसतीर्थकी इसतरह बयान किइजाती हैकि-एकवख्त लंकाके रहनेवाले-दो-विद्याध र-माली-सुमालीनामके लंकासे उत्तराखंड जानेकेलिये रवानाहुवे, विद्याधरलोग बजरीये विमानोंके सफरकियाकरतेथे, यह बात पेस्त रके धर्मशास्त्रोंमें लिखीहुइहै, जब उनके खाना खानेका वख्त करीब आपहुचा सौचाकि-जमीपर उतरकर- स्नानकरे और खानाखावे. गरजकि-वे-जमीनपर उतरे जहांकि-एक-तालाब मौजुदथा, माली मुमाली-हाथमुंह धोकर साफहुवे और अपनी देवपूजाकेलिये तनवीजकिइ-तो-मालूमहुवा अपने देवकी मूर्तिका करंडिया घर भुल आये है, और यहांकोइ जिनमदिरभी मौजुदनहीं जिसके दर्शनकरे,
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तवारिख-तीर्थ-अंतरिक्षजी, (३१३) उसवख्त वहां उनोने वालरेत इकठी करके मंत्रबलसे पाककिइ और भावितीर्थकर पार्श्वनाथ महाराजकी एक मूर्ति बनाइ, और उसकी पूजाकरके खानाखाया, चलतेवख्न उस मूर्तिको तालावके कनारे जायेनशीनकिइ और अगाडी बढे, बहुतअर्सतक वह मूर्ति वापर कायमरही, जब विंगलनगरका-श्रीपालनामका राजा-किसीमोकेपर-वहांआया, और उसके बदनमें-जो-कोटकी बीमारीथी उसतालावमें स्नानकरनेसे रकाहुइ निहायत खुशहुवा. और जब-अपने बतनको गया रानीभी उसकी बहुत खुशहुइ, और तारीफ करने लगीकि-क्याही ! उमदावातहुइ आपकी कोढबीमारी एकदम चलीगइ, बाद जब खापीइकर सोगये अधिष्टायक देवने रानीके ख्वाबमें आनकरक हा तुमारे खाविंदकी बीमारी बदौलत उसमूर्तिके रफाहुइ है, उसमूर्तिकों अपने वतनपर लाना चाहोतो एक रथ बनाकर उसको सातरौजके बेललगाना और कचे सूतकी लगाम तयार करके-उस यूर्तिकों रथमें वेठाना, ओर अपने बतनको लाना मगर यादरहे रास्ते कभी पीछामुडकर देखनानही, अगर देखोगेतो मूर्ति वहीं ठहर जायगी और फिर उसका आना-न-होसकेगा, शुभह होते रानीने यह सव माजरा राजासे कह सुनाया और राजाने उ. सी मुआफिक किया, ( यानी ) मूर्तिको रथमें बैठाकर लेचले, जब थोडीदूरपहुचे राजाने मुहफेरकर देखातो मूर्ति रथसे अलग आस्मानमें बिना आधार आसरेके ठहरीहुइ देखी, उसबख्त वडाताज्जुबकिया और दिलमें सौचाकि-इसी जगह-मूर्तिकों कायम करना मुनासिबहे, आस्मानको संस्कृत जबानमें अंतरिक्ष कहते है इसलिये बिना आसरेके ठहरने वाली मूर्तिको लोगोने अंतरिक्षनामसे मशहूरकिइ, राजाने वहांपर शहरआवाद किया और उसकानाम-श्रीपुररखा, बडाखुबसुरत मंदिर बनाकर मुर्तिकों उसमे तख्तनशीनकिइ.
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( ३१४ ) वयान-भुसावल-बुर्हानपुर-और-खंडवा. उसरौनसे इसकानाम-अंतरिक्षपार्श्वनाथतीर्थ कहलाया-जो-अवतक जारी है, पेस्तरके जमानेमें मुर्तियोम जैसे अजुवात होतेथे-जो-आजकल नहीरहे, बल्कि ! बहुतकम होगये, क्योंकि-अब-बह-जमाना नहीरहा जो पेस्तरथा,
तीर्थीमें यह कदीमीरवाज होताचला आयाकि-एक-मंदिर पुराना होकर गिरगया किसी खुशनशीवने उस जगह दुसरा बनवाकर तयारकिया, इसी तरहसे तीर्थका नामवनारहताहै, अगर जैसा-न-कियाजायतो तीर्थका नामनिशानतक बाकी-न-रहे, मंदिर अंतरिक्षजीका-जो-इसवख्त मोजुद निहायत पुख्ता और वैशकिमती है. तीथकर अंतरिक्षपार्श्वनाथकी शामरंगसूति तलघरमें मयफणके करीब अढाइ हाथवडी तख्तनशीनहै, नीर्थअंतरिक्षजीका कारखाना-सुनीम गुमास्ते-नोकरचाकर-सब मौजुद है, जैसा खाव वडेवड तोथाम होताहे यहांपर बना वाहै, श्रीपुरकस्वा करीव पांचहजार आदमीयोकी आबादीका इसवख्त मोजुदहे पेस्तर वडाथा, धर्मशाला-दो-एकवडी और एक छोटी यात्री इसम कयामकर, कोइतकलीफ-न-होगी. पुराना मंदिर जो गांवके वहार पश्चिमकी तर्फ वाकहै, वहकाबील देखनेकहै यात्री तार्थअतरिक्षजीकी जियारतकरके वापिस उसीरास्ते आकोला आव. DS [ बयान-भुसावल-वुहानपुर-और-खंडवा,-]
आकोला टेशनसे रैलम सवार होकर- डावकी-गगांव-पारसनागझीरी-सेगांव-जेलम-नांदुरा-विसवा-गल्कापुर-खामखेड-बोदवड-और-वारंगाम होते भुसावल जंकशन उतरना, रेलकिराया आकोलेसे भुसावल तक एकरुपया छ आने लगतह. अगर शहरमें जाना मंजुरहो शाखसे जाय, वरना आगेको रवाना होवे, नाग
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बयान-भुसावल-बुर्हानपुर-और-खंडवा. ( ३१५ ) पुरसे (२४४) मील पश्चिमकी रुखपर भुसावल रैलवेका एक जंकशन है, सन (१.८९१) की मर्दुम शुमारीके वख्त भुसावलकी मर्दुमशुमारी (१३१६९) मनुष्योंकीथी, मुतस्सिल टेशनके एक धर्मशाला बनी हुई है यात्री उसमें जाकर ठहरे, कोइ सुमानियत नही, बाजार भुसावलका अछा है और हरेककिसमकी चीजे यहां मिल सकती है, असावलसे (२७६) मील दखन पश्चिमकी तर्फ बंबइ-और -(३४०) मील पूर्वोत्तर जबलपुर है, भुसावल देशन बडा है और कइ-कल-कारखाने यहांपर बने हुवे है,___ भुसावलसे रैलमें सवार होकर-दसरखेडा-सावदा-नींभोरारावेर-और-वाघोडा होते हुवे बुहानपुर टेशन जाना, रैलकिराया नवआने लगते है, टेशनसे (३) मीलके फासलेपर वुहानपुर-एकपुरानाशहर है, सडक पकी बनी हुइ और जाने आनेके लिये सवारी टेशनपर तयार मिलती है, यात्रीकी मरजी हो शहरमें जाय और जैन मंदिरोकी जियारत करे, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त बुर्हानपुरकी मर्दुमशुमारी (३२२५२) मनुष्योकीथी. बाजार यहांका उमदा-और-हरेक किसमकी चीजें यहां मिलसकती है, बुर्हानपुरसे रैलमें सवार होकर--चुलखान-चांदनी-मांडवा-डों. गरगांव-और-बागमारटेशन होते खंडवा जंकशनपर उतरना, बुनिपुरसे खंडवेतकका रैलकिराया दशआने लगते है, मध्य प्रदेश में -खंडवा-एकपुराना शहर है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीमें खं. डवेकी मर्दुमशुमारी (१५५८९) मनुष्योंकीथी, करीब टेशनके धर्मशाला बनी हुइ है यात्री उसमें कयाम करे और मरजी हो-तो-शहर देखे, बाजार उमदा और हरेकचीज यहांपर मिलसकती है, जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आवादी यहांपर मौजूदहे, खंडवेसे रैलमे सवार होकर-अजंटी-अटार-निमारखेडी-सनावद-मोरटाका-बर
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( ३१६ ) तवारिख - तीर्थ - मांडवगड- और -इंदोर,
वाहा- मुख्तियारा - चोरल - काला कुंड- और - पातालपानी टेशन होते हुवे छावनी टेशनपर उतरना, रैलकिराया तेरांआने लगेगे. [ तवारिख तीर्थ-मांडवगढ, ]
छावनीमहु - एक गुलजार वस्ती है, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके व छावनी की ममशुमारी (३१७७३) मनुष्योकीथी. बाजार रौनकदार और हर किसम की चीजे यहांपर मिलसकती है. धर्मशाला यहांपर एक बनी हुई है, यात्री इसमें कयाम करे, और तीर्थ nisar जाने तयारी करे, सवारीके लिये इका-वगी-तयार मिलेगी, शुभहके गये हुवे शासकों मांडवगढ पहुच सकोगे, सड़क पकी बनी हुई है, रास्तेमें पहाड-नदी-नाले और तरह तरहके द्रख्त नजर आयेंगे, जब करीव तीन कोसके फासले पर मांडवगढ रहजायगा एक नालछा - नामक गाव राहमें मिलेगा, इसमें आठ दश घर जैन श्वेतांवर श्रावकों के आवाद है, -
छावनी उसे करीब (३०) मील दखन पश्चिमकी रुखपर मांडवगढ एक पुराना शहर है, पेस्तर बडाथा आजकल छोटासा कस्वा रह गया, पुराने खंढहेर और मकानात देखकर दिलकों ताज्जुब होता है कि- खुशनसीबोने क्या क्या उमदा मकान तामीर क वायेथे और अब किसकदर विरानपडे हवे है, हिंडोला महल - चंपाबावडी - वगेराजगह काबिल देखनेके है, अतराफ मांडवगढके तरह तरहकी जडीबुटी खडी है मगर उसके पहिचानने वाले कम निकलेगें, एक - जैन श्वेतांबर मंदिर और एक धर्मशाला यहांपर मो. जूद है, यात्री इसमे ठहरे और तीर्थ मांडवगढकी जियारत करे, खानपानकी जरुरी चीजे यहांपर मिलसकेगी. तीर्थ मांडवगढकी जियारत करके यात्री छावनीमउकों-वापिस आवे ओर रेलमें सवार होकर - रोहटेशन होते शहर इंदोर जाय, मउसे इंदोरतक रैलकिरा - या सवादोआने लगेगे,
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तवारिख-तीर्थ-उज्जेन. ( ३१७ )
F[ बयान-शहर-इंदोर, मुल्क मालवेमें इंदोर एक उमदा शहर है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त इंदोरकी मर्दुमशुमारी (९२३२९) मनुष्योकीथी जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आवादी और मंदिर यहांपर बने हुवे है, बाजार रौनकदार और तरह तरहकी चीजे सोनाचांदी जवाहिरात -शालदुशाले और मेवा मीठाइ वगेरा यहाँपर मिलसकती है, पानीका नल हरजगह लगा हुवा और सडकोंपर लालटेनोकी रोशनी हुवा करती है, राजमहेल उमदा बने हुवे-और-लालबाग यहांका काबिल देखनेके है. जिले इंदोरकी जमीनमें अनाज-पोस्तरुइ-ऊख-और-तमाखू-ज्यादह पैदा हुवा करती है. यात्री शहरमें जाना चाहे शौखसे जाय और जैनमंदिरोकी जियारत करे, इंदोरसे रैलमे सवार होकर-पालिया-अजनोड-और-फतेहाबाद होते शहर.उज्जेन जाय, रैलकिराया साढे छ आने लगेगे.
हास [ तवारिख-तीर्थ-उज्जेन. मुल्क मालवेमें फतेहाबाद जंकशनसे (१४) मील-उत्तरकीरुखपर क्षिप्रानदीके दाहनेकनारे उज्जेन एकपुराना शहर है, श्रीपालराजा-इसी-उज्जनके राजा प्रजापालकीलडकी-मयणा मुंदरीसे विवाहेथे, और वदौलत नवपदजीके उनकी कोढवीमारी यहां रफा हुइथी, राजा मानतुंग इसी उज्जनके तख्तपर हुवे-जो-बडे खुशनसीब और धर्मपावंदथे, तीर्थकर महावीरस्वामीके जमानेमें राजा चंडप्रद्योत इसी उज्जनके तख्तपर अमलदारी करताथा, सूत्र आवश्यककी टीकामें बयान हैकि-जब-चंदप्रयोतकी-और-मुल्क पांचालके वीतभयपतननगरका राजा-उदयनकी-एक मूर्ति और दासीके लिये नाइत्तिफाकी हुइथी उन दोनोका जंग इसी उज्जेनके
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( ३१८ ) तवारिख-तीर्थ-उज्जैन. मेंदानपर हुवाथा, वीतभय पतन नगरसे-उदयन-वडी फौज लेकर मुल्क मारवाडके रास्ते उज्जेन आया, और चंडप्रद्योतने उसका मुकाबिला किया, मगर आवरीशमें सिकस्तखाइ, और उदयनकी फतेह हुइ, चंडप्रयोतको गिरफतार करके अपने वतनको लेचला, जब उज्जेनसे थोड़ी दूर पहुचा मोसिम बारीशका करीब आगया. था वारीशहोना शुरु हुइ. उदयने वहां मुकाम किया और बारीशके दिन गुजारे, दस राजे जो उनकी मातहतीमेये उनको रहते जब चौमासा गुजरा-तो-वहांपर एक मौजा बस गया जिसका नाम दशपुर कहलाया, चौमासेमें जब पपग पर्वके दिन आये अखीरके रौज उदयनने चंडप्रद्योतसे कहा आज हमारे उपवास व्रत हैतुम-जो-चाहो-सो-बनवालो. हम आज नही खायगे. चंडअयोतने कहा आज-मभी-उपवास व्रत करुंगा, शामके वख्त जब पतिक्रमण करनेका वख्त करीब आया उदयनने चंडप्रयोतसे कहा आज पर्युषणपर्वका अवीरदिन है धर्मशास्त्रको रुसे वैरविरोध दुर करके राजीखुशी होना चाहिये, चंडप्रयोतने कहा-में-तुमसे राजी कैसे होसकुं, तुमने मेरी सलतनत लेली और गिरफतार किया, उदयनने कहा, अछा : अब क्या चाहते हो ? चंडायोत बोला अगर मुजे राजी करना चाहो-तो-उज्जेनकी सलतनत वापिस देदो उदयनने उसी वख्त उज्जेनकी सलतनत उसको वापिस देवी,
और उसकी खताको दर गुजर किइ, चंडप्रयोत उज्जेन आया और उदयन अपने वतन वीतभयपतनको गया,
रोहानामकाशख्श इसीउज्जनकेपास एक-नटग्रामका-रहने. वालाथा, जिसकी अकलमंदीका बयान मूत्रआवश्यककीटीकामें दर्ज है, कोकासनामका कारिगिर-जो-सोपारकपतनका रहनेवाला था इसउज्जेनमें आयाथा, और अपने इल्मसे बहुतसी दौलत यहां हासिल किइथी, अटनमल नामका पहलवान इसीउज्जेनका वाशिंदा
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तवारिख-तीर्थ-उजेन. ( ३१९ ) था-जो-कुस्ती लडनेमें बहुत बहादूर था, चंडरुद्राचार्य-जिनका बयान-सूत्र उतराध्ययनमें दर्ज है एकदफे उज्जेनमें तशरीफ लायेथे, तीर्थकर महावीरस्वामीके बाद (२९०) वर्ष पीछे राजा संप्रति इसी उज्जेनमें हुवा, जिसने बहुत जैनमंदिर-और-मूर्तिये बनवाइ, अवंतिसुकुमाल-इसी उज्जेनके वाशिंदेथे. जिनोने आर्यसुहस्ती जैनाचार्यके पास दीक्षा इख्तियार किइथी,
राजा विक्रमादित्यके वख्त यहां बडी रवन्नकथी, और संस्कृत विद्याका यहां बहुत जोर शौरथा. बडे बडे नजुमी लोग यहां हुवे. इसका दुसरा नाम अवंतीकापुरीभी बोलते है, जमीनके खोदनेसे पुरानी आवादीके निशान दुरदूरतक पाये जाते है इससे मालूम होता है पेस्तर यह बहुत बड़ा शहर था. सन (१८९१) में उज्जेनकी मर्दुमशुमारी (३४६९१) मनुष्योकीथी. हरेक किसमकी चीजे यहां मिलसकती है, बाजार लंबे चोडे और अफीमकी तिजारत यहां कसरतसे होती है, मालवेकी अफीम मुल्कोमें मशहूर है, चंदनका--तेल यहाका नामी-और अगरबत्ती यहां उमदा बनती है, का तालाव-और-बागबगीचे यहां काबिल देखनेके है और क्षिमा नदीके कनारे बहुतसे सोहावने घाट बने हुवे है, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और पुराने जैनश्वेताम्बर मंदिरभी यहांपर मौजूद ह सराफे बाजारमें--डेहरा खडकीमें-और--नयेपुरेमें जाकर यात्री देवदर्शन करे, ठहरनेके लिये अवंती पार्श्वनाथजीके मंदिरपास धर्मशाला बनी हुई है, उसमे कयाम करे, और तीर्थ उज्जेनकी जियारत हासिल करे, शहरसे चार मीलके फासलेपर कालियाद्रहगांवके पास क्षिप्राके कनारे एक-बादशाही वख्तका बना हुवा मकान है. नदीका पानी उसमें-होज-और-घमरीये झरनोके आता है, गर्मीयोके दिनोंमें बडी आरामकी जगहहै.
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( ३२०)
तवारिख-तीर्थ-मकसीजी.
उज्जनसे रैलमें सवारहोकर-ताजपुर-और-तारनारोड होते हुवे तीर्थमकसीजीकों-जाय, रैलकिराया पांचआने लगेगे,
F [तवारिख-तीर्थ-मकसीजी, ] मुल्क मालवेमें मकसीजी एक मशहूर जैनतीर्थ है, टेशनसे कवि आघमीलके फासलेपर मकसी एक छोटासा गांववाके है, जि. सकी वजहसे तीर्थकानामभी मकसीजी कहलाया, खानपानकी चीजे-आटा-दालवगेरा यहांपर मिलसकती है, तीर्थकर पार्श्वनाथजीका बुलंदशिखरबंदमंदिर मानींद स्वर्गविमानके यहांपर बना हुवा है, परकम्मा इसकी तीन एक छोटी-एक वडी-और-एक उससे बड़ी जोकि-कोटके वाहारसे दिइ जाती है, मंदिरकी चारोतर्फ (४२) जिनालय बने हुवे और इनमें बहुत करके संवत् (१५४८) के अर्सेकी प्रतिष्टित मूर्तियें जायेनशीन है, मूलनायक तीर्थकरमकसी पार्श्वनाथजीकी मूर्ति शामरंग करीब सवादोहाथ बडी तख्तनशीन है, पेस्तर इसके नीचे एक गुफाथी जिसमेसे तीर्थकर मकसी पार्श्वनाथकी मूर्ति निकलीथी, बाद अजां उसपर शंगेमरमरका चोतरा बनादिया गया, एकतर्फ चिंतामणि पार्श्वनाथ-और-एकतर्फ-नेमनाथजीकी शामरंग मूर्तिभी जायेनशीन है, रंगमंडप निहायत खुशनुमा-यात्री-इसमे वेठकर तीर्थकर मकसी पार्श्वनाथकी इबादत करते है,
तीर्थ मकसीजीका कारखाना उमदा तौरसे बना हुवा है, और पास धर्मशालाभी मौजूद है, यात्री उसमे कयाम करे, जब मकसीजीतक रैल-नहीथी-यात्री-वजरीये बेलगाडीके जातेआतेथे, मगर अब रैलके होनेसे बहुत आराम होगया, जिसके बडे भाग्य हो असे तीर्थकी जियारत करे, पिछाडी मंदिरके एक उमदा वाग
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बयान-शहर-रतलाम-और-मंदसौर. ( ३२१ ) जिसमे तरहतरहके द्रख्त-और-गुलाब-केवडा-चंपा-जाइ-जुइ-गुल्दाउदी वगेराके फुल हमेशां उतरते है और पूजनमे चढाये जाते है, एक बडा तालाव यहां मौजूद है मगर-ऊंडा-कमहोनेकी वजहसे गर्मीयोके दिनोमें पानी सुक जाताहै, मौजे मकसीजीमें यात्रीयोंका आनाजाना हरवख्त बनारहता है, मकसीकी जियारत करके वापिस उज्जेन होते हुवे फतेहाबाद आना. और फतेहाबादसे-चांबल -बरनगर-रुणेजा-नोंगनवान-होते रतलाम जंकशन उतरना, रैलकिराया फतेहाबादसे रतलामतक छआने लगेगे,
- [बयान-शहर-रतलाम,-] ___ मुल्क मालवेमें रतलाम एक अछा शहर है, रतलामसे (७१) मील दोहद, (११६) मील गोधरा, (१५०) डाकोर और (१६९) मील आनंदजंकशन है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त रतलामकी मर्दुमशुमारी (२९८२२) मनुष्योकीथी, राजमहल यहांके उमदा मजबूत और मुस्तहकुम बनेहुवे है, चांदनीचौक-मानकचौक और बजाजखाना-ये-नामी बाजार है, जिसमें तरहतरहके माल असबाब मिलसकते है, चांदनीचौकमे-जहोरी-और-सराफलोगोकी दुकाने लगी हुइ है, बहार त्रिपोलिया दरवजेके एक अमृतसागर तालावजोकि-बारीशके अय्याममें-भराहुवा रहताहै काबिल देखनेके है, कचहरियां-अस्पताल-स्कुल-वगेरा मकानात लागतके बनेहुवे है, अफीम और अनाजकी तिजारत यहां अछी होती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर अंदाज (७००) और बडे बडे आलिशान जैनश्वेतांबर मंदिर यहांपर मौजूद है, यात्री शहरमें जाकर जियारत करे, रतलामसे दखनकी तर्फ एक कोसके फासलेपर क. रमदी नामका एक कस्बा है, जहांकि-तीर्थकर रिषभदेव महाराजका बडा आलिशान मंदिर-धर्मशाला-और-दो-कुंडपानीके बने हुवेहै,
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( ३२२ ) वयान-शहर-रतलाम-और-मंदसौर. थात्री वहांकी जियारतकरे, रतलामसे पश्चिमकी रुखपर एक-सागोद नामकागांव वसाहुवा जहांकि-मंदिर-धर्मशाला-और नजदीक,एक पानीका-नालाभी वहता है, यात्री वहांकीभी जियारत करे, सागोद गांवसे आगे देढकोसके फासलेपर विवडोद नामका एक कस्बा -जहांकि-तीर्थकर रिपभदेव महाराजका वडा आलिशान मंदिर कावीलेदीद है, और मूर्ति निहायतपुरानी है. अतराफमें कोट पका खीचाहुवा निसमेकियात्री-वखूबी कयामकरे, और तीर्थकीजियारत करे. रतलामसे करीब चार कोसके फासलेपर शेमलिया गांवभी एक जैनतीर्थ है, यात्रीको जिसतरह फुरसतहो-मुकाम करे और तीर्थयात्राका फायदा हासिल करे, रतलामसे आगे रैलमें सवार होकर-नांमली-जावरा-ढोढर-और-दरावदा टेशन होते हुवे मंदसौर टेशन उतरे, रैलकिराया आठआने लगेग.
ॐ [बयान-शहर-मंदसौर,-] मुल्क मालवेमें मंदसौर एक अछा शहर है. और इसका दुसरा नाम दशपुरभी कहते है, इसकेपास एक नदी हमेशां वहती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी और मंदिर यहांपर बनेहुवे है, यात्री शहरमें जाकर जियारत करे. वाजार यहांका बहुतअछा और हरकिसमकी चीजे यहां मयस्सर आसकती है, दसपुरे यहां अलग अलग आवादहै इससबबसे इसकानाम दशपुरनगर कहलाया, जबकि
बीतमयपत्तनका राजा-उदयन-उज्जेनके राजा चंडप्रयोतको सिकस्त देकर अपने वतनको जाताथा यहां उसने मोसमेवारीश गुजाराथा, उसवख्त यह दशपुरनगर आबाद हुवाथा, जो आजकल मंदसोरके नामसे मशहूर है, तिजारत अफीमकी यहां कसरतसे हुवा करती है, मंदसौरसे करीब पांच कोशके फासलेपर-एक :-बहीपार्श्वनाथका तीर्थ मशहर और मारुफ है, और एक-पुराना
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बयान-जलगाव-पांचोरा-और-मनमाड. ( ३२३ ) मंदिर वहांपर मौजूद है, यात्रीको फुरसतहो वहांकी जियारतकों जाय, पोषदशमीके रौज हरसाल वहां-यात्रीयोंका मेला भराताहै, मंदसौरसे रैलमें सवारहोकर-थारोद-पीपलिया-मल्हारगढ-हरकियाखाल-नीमच केशरपुरा-निभाडा-और-शंभुपुरा होते चितोडगह-टेशन जाय, रैलकिराया ग्यारह आने लगेगे,-तवारिख चितो. डगढ और उसके आगेका बयान पेस्तर लिख चुके है,EF [ बयान-जलगांव-पाचोरा-और-मनमाड,-]
अब भुसावलसे मुल्के दखनकी तर्फ जानेका रास्ता बतलातेहै, देखिये ! भुसावलसें रैलमें सवार होकर-भडली टेशन होते हुवे जलगांव टेशनपर उतरना और अगर शहरमे जानेका इरादा हो-तो जाना, वरना, आगेको रवानाहोना, जलगांव अगरचे एकछोटासा शहर है, मगर रौनकदारहै, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और मंदिरभी यहांपर बना हुवा है, बाजार गुलजार और खुशनुमा-हरेक किसमकी चीजे यहांपर मिलसकेगी, तिजारत रुइकी यहां अछी होती है और यहांसे एक-रैलवे लाइन सुरतको गइ है, जल. गांवसे रैलमे सवार होकर-सीरसोली-महसावद-माइजी-होते पाचोरा टेशन जाना, पाचोरा एक छोटासा कस्वा है लेकिन ! काबिल देखनेके है, रुइके कलकारखाने यहांपर बनेहुवे है, और अकसर रुइकीतिजारत ज्यादहहोती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोकेघर करीब (५०) और एक जैनश्वेतांबर मंदिर यहांपर बना हुवा है, बाजारमें हरेक किसमकी चीजे मिल सकेगी, आवहवा यहांकी अछी-औरनजदीको एक-नदी-बहती है जिससे बागवगीचे-वनास्पतिकी सरशब्जी बनी रहती है, पाचोरेसे रैलमें सवार होकर-गलना-कजगांव-बागली होते चालिसगांव टेशनपर उतरना, चालिसगांव एक छोटासा कस्बा है, मगर ब सबब रैलका जंकशन होनेके ज्यादह
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( ३२४ ) बयान-शहर-औरंगाबाद-और-जालना. मशहूर है, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी-और-एक मंदिरभी यहां उमदा बना हुवा है, यात्री अगर फुरसतहो-शहरमें-जाय
और देखे, रुइके कल कारखाने यहांपर मौजूद है और तिजारत रुइकी अछी होती है, यहांसे एक रैलवे लाइन शहर धुलियेकों गइ -जो-(३०) मीलके फासलेपर वाके है, चालिसगांवसे रैलमे सवार होकर--हीरापुर-रोहनी--नयीइंगरी-पीपारखेड--नंदगांवपंजान-हिसवाल होते मनमाडजंकशन जाना. भुसावलसे मनमाड तक किराया मेलटेनका एकरूपया बाराआना लगते है, मनमाड एक-रैलवेका वडा जंकशनहै, और खानपानकी चीजे-पुरी-कचौरी-मिठाइ वगेरा-जो चाहो यहां मिलसकती है, यात्री टेशनपर ठहरे और-जो-लाइन शहर हैदराबाद दखनकों गइ है उसमें सवार होकर-अंकाइ-नागरसोल-तारुर-रोटागाव (विजापुर)-परसोदा-लामुर-इलोरारोड-और दौलताबाद होते औरंगाबाद जाय, रैलकिराया ग्यारहआने लगेगे,
[ बयान-शहर-औरंगाबाद-और-जालना,-] __ सलतनत हैदरावाद दखनमें औरंगाबाद-एकपुराना शहर है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त औरंगाबादकी मर्दुमशुमारी मयछावनीक (३३८८७) मनुष्योकीथी, करीव शहरके एक छोटीसी नदीवहतीहै, और गेहु-कपास वगेरा चीजोकी तिजारत यहां अछीहोती है, जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आबादी-और-दो-पुराने मंदिर यहां बनेहुवे मौजूदहै, यात्री शहरमेंजाय और दर्शनकरे करीब मंदिरके धर्मशाला बनीहुइ है इसमें कयामकरे, और अगर इलोराके गुफामंदिर देखनेका इरादा होतो यहांसे शौखसे जाय, दौलताबादसे-या-इलोरारोडसेमी-जासकते हो--और-यहांसेभी जासकते हो,
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बयान-शहर-औरंगाबाद-और-जालना. ( ३२५ ) औरंगाबादसे करीब (१५) मीलके फासलेपर इलोरागांव जहां आबाद है पहाडमें उकेरे हुवे गुफामंदिरोंकी वजहसे ज्यादह मशहुर है, सडक पकी बनी हुइ और वहां जानेके लिये सवारी औरंगाबादसे-इक्का-बगी-मिलसकेगी और शुभहके गये हुवे शामको वापिस आसकोगे, इलोरेकी गुफामें कई जगह बुधदेवकी और कइ जगह वैदिक मजहबके देवोकी मूर्तिए बनी हुई है, सबसे दूर जो गुफा है उसमें एकसाथ पांच मंदिर जो पहाडमे उकेरे हुवे मौजूद है, उनमें जैनमूर्तियेभी बनी हुई है, जिसकी मरजी हो-जाय-और-देखे, जगह काबिल देखनेके है.
औरंगाबादसे (३०) मील-और-अहमदनगरसे करीब (६०) मील पूर्वोत्तर गोदावरी नदीके कनारेपर-पैठन-एक पुराना शहर है, जो पेस्तर शकजातिके राजा शालिवाहनकी राजधानी प्रतिष्टानपुरके नामसे मशहूर था, यात्री औरंगाबादसे रैलमें सवार होकरचिकलठाना-करमाला-और बदनापुर होते जालनाटेशन जाय, रैलकिराया सातआने लगेगे,
जालना एकपुराना शहर है, पेस्तरके दिनोमें बहुत आबादथा, जमाने हालमेभी कदरे बहेत्तर है, बाजार उमदा और हरेक किसमकी चीजे यहां मिल सकेगी, रुइके कइ कल कारखाने यहांपर मौजूदहै
और तिजारतभी यहां अछी होती है, जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आबादी और मंदिर यहां बने हुवे है, यात्री शहरमें जाय और मंदिरोकी जियारत करे, जालनेसे रैलमें सवार होकर-कोडी-रंजनी-पातुर-सटोना-सेलु-मनवाथरोड-पैदगांव-परभनी-पींगली-पुरनालींबगांव-नानेड-मुगत-मदखेड-सीवनगांव-उमरी-करखेली-धर्माबाद-बसर-नयीठ-निझामावाद-दिचपल्ली-इंडलवाइ-सिरनापल्लीउपलवाइ-कामरेडी-विकनुर--अकनाऐंठ-मिर्जापल्ली-वडीयारम-म
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( ३२६ ) दरवयान-शहरे-हैदराबाद-दखन. सइपेंठ-मनोहरावाद-मेडचल-वलारम-अलवाल-और-सिकंदराबाद होते-हैदरावाद जाना, रैलकिराया तीनरुपये पांचआने लगेगे,
दरबयान-शहरे-हैदराबाद-दखन, } मुल्के दरखनमें मुसा नदीके दाहनेकनारे हैदरावाद एक-अजनवीशहर है. हैदरावाद राज्यकी उत्तरतर्फ-वरार-पूर्वोत्तर और पूर्व-मध्यप्रदेश-दक्षिण पूर्व-और दक्षिणतर्फ मद्रासहाता-और-पश्चिम तथा-पश्चिमोत्तर बंबइहाता है, हैदरावादसे एक पैदलसडक मद्रासतर्फ गइ है, जिसकेशाथ कटकसे आइ हुइ समुंदरके पासकी सडक आमीलती है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त हैदरावादकी मर्दुमशुमारी (४१५०३९) मनुष्योकीथी, वडे बडे आलिशानमकानात-रंगरौशनसे सजेसजाये-यहांपर देखोगे, सडके लंबीचोडी और सवारीके लिये इक्का बगी-तयार मिलेगी, रेसीडेन्सी-अफजलगंज-महाराजगंज-वेगमवाजार-चारकबाजार-वगेरामे वडी रवन्नक देखोगे, अफलगंजसे चारकवानकों जाते रास्तेमें मु. सानदी मिलेगी, जिसपर पुल बंधा हुवा है और इक्का वगी वगेरा सवारी जासकती है, बाजार निहायत उमदा-और-शानदार जिसमे लाखो रुपयोंकी-जिन्स और-माल-ब-असवाव-जो चाहो मिलसकेगा. पानीका नल हरजगह लगा हुवा और रातको सडकोंपर लालटे. नोकी रोशनी हुवा करती है, करीव टेशनके पब्लिकवाग जिसकों मेहबुववागभी वोलते है. बडा गुलजार और इसमे तरहतरहके जानवर चुनाचे-शेर-चीते-हिरन-भालु-और कइकिसमके परीदे तोता -मना-चिडिया वगेरा रखे हुवे है, शहरकी पूरवतर्फ घुडदोडका बडा वसी मैदान जिसमे घुडदोड हुवा करती है काविल देखनेके है, महलात निझाम सरकार आलीके कीमती और खूबसुरत बने हुवेहै, हैदरावादके राज्यमें सवतरहके अनाज-नील-उख-और कपास
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तवारिख-तीर्थ-कुल्पाकजी. (३२७ ) वगेरा चीजें बहुतायतसे पैदा होती है, आम-अमरुद-खरबुजा-ककडी-शरीफे वगेरा किसम किसमकी फलफलारी यहां कसरतसे हुवा करती है, जैनश्वेतांवर श्रावकोंकी आबादी-चारकबान-इशबचोक-पथरघटी-बेंगमबजार-रमूलगंज-और-रेसीडेन्सीमें फैली हुइ है, जैनश्वेतांवर मंदिर बेगमबजार-कारवान-चारकबान-औररेसीडेन्सीमेवडी लागतके बने हुवे है, यात्री शहरमें जाय और मंदिरोकी जियारत करे,
मुतस्सिल शहर हैदराबाद के सिकंदराबाद एक गुलजार वस्ती और अंगरेजी फौजी छावनी है, बाजार उमदा और हरेक तरहकी चीजे यहां मिलसकती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और एकमंदिर यहांपर बना हुवा मौजूद है, यात्री यहांके मंदिरकेभी दर्शन करे, सिकंदराबादसें (३) मील और-हैदरावादसे (११) मील उत्तरकी तर्फ बलारम एक अछा कस्बा है और यहांपर जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और मंदिरभी बना हुवा है,
हैदराबादसे रैलमें सवार होकर-सिकंदराबाद-मौलाअलीघटकेशर-बीडीनगर-भोंगर--रायगिर-और-बंगापाली होते आलेर टेशन उतरना, रैलकिराया मेलट्रेन दसआने लगेगे,
[उ तवारिख-तीर्थ-कुल्पाकजी,-] मुल्के-तैलंगमें आलेर टेशनसे दोकोसके फासलेपर कुल्पाकजी एकपुराना जैनतीर्थ है, पेस्तर कुल्पाकशहर बहुत आबादथा, जमाने हाल में कम होगया, और शहरके नामसे तीर्थका नामभी कुल्पाक मशहुर हुवा, पेस्तर यहां बहुतसे बागबगीचे और गुलजारवन खंडथे, और-शहरभी-बडीरवनकपरथा, आम,अमरुद-नारंगीकेले-खिरनी-नारियल-सुपारी-लोंग-और--नागरवेलके पान यहां
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( ३२८ ) तवारिख-तीर्थ-कुल्पाकजी. बहुत हुवा करतेथे, और मुल्क वडा सरसब्जथा, दरमियान आलेस्टेशन और कुल्पाकके सडक पकी बनी हुई है और बीचमें एक नदी मीलती है जोकि-वारीशके अय्याममें भरपुर होजाती है, मंदिर यहांका निहायत आलिशान और बुलंदशिखरवंद मानींद देवलोकके बना हुवा है, जिसके देखनेसे मालूम होता हैकि-पेस्तरके दिनोंमें जैनोकी यहां कामील आवादीथी, जैनश्वेतांवर आम्नायके विविध तीर्थकल्प शास्त्रमे तेहरीरहैकि-यह-मंदिर विक्रम संवत् (६८०) की सालमें तामीर किया गया, इसमे तीर्थकर रिषभदेव महाराजकी शामरंग मूर्ति करीब अढाइ हाथ बडी तख्तनशीन है,
और इसका दुसरा नाम माणिक्यदेवभी वोलसे है, रंगमंडपके एक खंभेपर शिलालेख लगा हुवा है उसमे अवल तीर्थकर रिषभदेवे महाराजकी तारीफ लिखी हुई है, और बादमे यहभी लिखा हुवा है कि- संवत् (१६६५) में इसमंदिरका जीर्णोद्धार हुवा, विजयसे. नमूरिका नामभी इसलेखमे दर्ज है, हाँके घीसजानेकी वजहसें तमाम लेख वखूबी नही पढा जाता मगर जो कुछ पढ़ा जाता है उसका मतलब उपर लिख दिया है,
कोटके अंदर अवल दरवजे के भीतर और दोयम दरवजेके सीरेपर एक-और-शिलालेख लगा हुवा है जिसमे संस्कृत जवानसें यह मजमून लिखा हैकि,
स्वस्तिश्रीयत्पदाभोज-भेजुषा सन्मुखी सदा, तस्मैदेवाधिदेवाय-श्री आदिप्रभवेनमः ?
संवत् (१७६७) वर्षे-चैत्रशुद्ध दशम्यां पुष्यार्कदिनेविजयमूहतें-श्रीमाणिक्यस्वामिनाम्नः आदीश्वरभगवतो-बिंबरत्नप्रतिष्टितं-दील्लीश्वरबादशाह औरंगजेब
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तवारिख-तीर्थ-कुल्पाकजी. ( ३२९ ) आलमगीरपुत्र-बादशाहश्रीबहादूरशाहविजयराज्ये सूबेदारनवाब मुहम्मदयूसुफखानबहादूरसहाय्यात्-तपागछे भट्टारकश्रीविजयरत्नसूरिवरेसति-पंडितश्रीधर्मकुशलगणिशिष्य-पंडित केशरकुशलेन-चैत्योद्धार कृतः शाके (१६३३) प्रवर्तमाने इतिश्रेयः
माइना इसका इसतरह बयान किया जाता हैकि-अवलतीर्थकर रिषभदेव महाराजकों नमस्कार हो, संवत् (१७६७) की-सालमे-चैतसुदी दसमी पुष्यार्कके रौज विजय मुहूर्तमें-माणिक्यदेव स्वामि-आदीश्वरभगवानकी मूर्ति यहांपर तख्तनशीन किइ गइ, उसख्त देहलीके बादशाह औरंगजेव-आलमगीरपुत्र-बादशाह बहादूरशाहकी अमलदारीमें-सूबेदार नवाबमुहम्मद यूसुफखान वहादूरकी मददसे-तपगछके-भडारक श्री विजयप्रभमूरिके वख्त-पंडितश्री धर्मकुशलगणिके शिष्य-पंडितकेशर कुशलजीने इसकी प्रतिष्टा किइ, मंदिरका जीर्णोद्वार हुवा और भागनगरके श्रावक संघने अतराफ मंदिरके-पुख्ता कोट-तामीर करवाया, शक (१६३३) उसवख्त प्रवर्त्तमान था,
संवत् (१९६५) में हैदराबादके जैनश्वेतांबर श्रावकोने फिर इसमंदिरका जीर्णोद्वार कराया, और कोट वगेराकी मरम्मत किइ, मंदिरके पास यात्रीयोकों ठहरनेकेलिये मकानात बने हुवे है उसमें कयाम करे और तीर्थकी जियारत हासिल करे, तवारिखे तीर्थ कुल्पाक खतम हुइ.
यात्री तीर्थ कुल्पाकजीकी जियारत करके वापिस आलेर देशन आवे और रैलमें सवारहोकर-जानगांव-रुगनाथपल्ली-घानपुर-काजीपेठ-वारंगल-चिंतालपल्ली-नेकोंडा-कासुंमुंदरं-मानुकोटा-गारला
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( ३३० ) बयान-शहर-बेजवाडा. डोरनाल जंकशन--पापतापल्ली-खामामेथ--चिंताकनी-बोनाकलुमदीरा-येरुपालियम-गांगीनीनी--और कोंडापल्ली-होते वेजवाडा जंकशन जाय, रैलकिराया थर्डक्लासपासेंजर एकरुपया तेरांआने और मेलटेनके दोरुपये चारआने लगेगे.
बयान-हर-बेजवाडा, कृश्नानदीके बायेकनारे वेजवाडा एक मशहर तिजारती कस्बा है, वेजवाडेसे मद्रास-मछलीपटन-राजमहेंद्री-और-काकनाडेकोनहेर गइहै. वेजवाडेमे सन ( १७६० ) इस्त्रीका वनाहुवा एकपुराना किला-और-पास उसके पहाडके चटानोमे बोध और हिंदुओके पुरानेगुफामंदिरहै, सन ( १८९१ ) की भर्दुमशुमारीके वख्त बेजवाडेकी मर्दुमशुमारी ( २०७४१ ) मनुष्योंकी थी, बाजार अछा और हरकिसमकी चीजे यहां मिलसकेगी. स्कुल-अस्पताल-सरकारी कचहरीयां-और-लाइब्रेरी बगेरा मकानात उमदा बनेहुवे है यात्रीशहरमें जानाचाहे-तो-जाय और देखे, वेजवाडेसे रैलमें सवारहोकर-किस्नाकेनाल-कोलंकोंडा कवायरी-पेडावडलापुडीडुगीराला-कोलाकलुर-तेनाली-टुंडुरु--नींदुवरुलु-आपीकाटलाबापटला-चीराला-बेटापालियम--चीनागंजाम-उपुग्वार-अमानाब्रोल-कारावडी-अंगोल---मुरारेडीपालम-तांगुटुरु-सिंगारियाकोंडा उल्वापाडु-तेटु-कावली -विटागुंटा--आलुरुरोड-लालामंची-कोडावलुरु-पडुगुपाइ-नेलोर-वेंकटाचलम-मनुबोलु-गुडुर जंकशन-पेदापेरिया-नायड्पेटा-घोरावरीछतरम-पोलीरडीपाल-सोलुरपेटा-टाडाऔरंवाकम-एलउर-गुमीडीपुंदी-कावराइपेटे-पुंजोरी-मिंजुर-एनुरएरानाउर-तिरुवतुर-तोडायरपेटे--कोरुकुपेटे---और-बेसीनबीडझहोते मद्रासटेशन उतरना, रैलकिराया मेलटेन साडेतीनरुपये लगेगे.
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दरवयान-शहर-मद्रास. ( ३३१ ) MS [ दरबयान-शहर-मद्रास, ] बंबइसे ( ७९४ ) मील दखनपश्चिमकी रुखपर मद्रास एक निहायत उमदा शहरहै. मद्राससे एक-रैलवेलाइन-बेजवाडा-औरकटकहोतीहुइ-और एकलाइन-रायचूर-मनमाड-भुसावल-नागपुर और आसनसोल होतीहुइ-कलकत्तेको गइहै. मद्राससे समुंदरके रास्तेभी कलकत्तेकों जासकते है, मद्राससे पूर्वोत्तर एकपैदल सडकअंगोल-वेजवाडा-राजमहेंद्री-विजयानगर-ब्रह्मपुर-गंजाम-कटक-भद्रक बलेश्वर-और-मेदनीपुरहोते कलकत्तेकों गइहै, एक-पेदलसडकदखनपश्चिम-विलीपुर-त्रिचनापल्ली-मदुरा-और-मनीयाची होकरकन्याकुमारीको गइहै, एकसडक-पश्चिमतर्फ-कटपदी-और-जोलारपेठके पासहोकर-बेंगलोरकों गइहै, मद्रासकों द्रविडिनलोग चीनापट्टन बोलते है, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त मद्रासकी मर्दुमशुमारी (४५२५१८) मनुष्योकीथी, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर करीब ( ३०० ) और साहुकारपेठमे-दो-जैन श्वेतांबर मंदिर बनेहुवे है, एकमंदिर शुलेबाजारमेंभी मौजूदहै, यात्री शहरमें जाय और मंदिरोंकी जियारतकरे, मद्रासमें बडीवडी आलिशान इमारते और लंबेचौडे बाजारहै, साहुकारपेठ-चीनाबाजार-तिरुमलखेडीमाउंटरोड-जामवाजार-गुजरी-इविनिंगवाजार-कोमठीगली-गडंगगली
और-शुलाबाजार वगेरा नामीबाजारहै, शहरमें शुभहशाम-ट्रामकारचला करती है, इक्का-बगीभी हरजगह तयार मिलेगी, सडकोपर पानीकेनल लगेहुवे और रातको लालटेनोकी रौशनी हुवाकरती है, दरयावकनारे कस्टमहाउस-टेलीग्राफ औफीस-मद्रासवेंक-पोर्ट औफिस-जनरल पोस्टऔफीस-हाइकोर्ट-और-लाइटहाउस-बगेरा बडीलागतके मकानात बनेहुवे है, समुंदर कनारे निहायत उमदादेखाव-और-सडके बनीहुइ-लोग शामकों उधर हवाखोरीके लिये
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(३३२) दरबयान-शहर-मद्रास. जायाकरते है, मद्रासका अजायबघर काविल देखनेके है, तरहतरहकी चीजे पुरानी और नयी कारीगिरी देखकर दिलको ताज्जुब होगा, हाइकोर्टके पास-फोर्ट सेंटजर्ज नामका किला निहायत संगीन और उमदा बनाहुवाहै, अतराफ मद्रासके नारियल और केलेकेड बहुतायतसे देखोगे, इलायची-काफी-सकर-सोडा--गुलाबमलकालीमीर्च-कापुर--किसमीस--छुहारे-बादाम-पिस्ते-चिरोंजी-अखरोट--और केशर-कस्तूरी वगेराचीने गेरमुल्कोसे यहां आती है और विकती है, कइतरहका माल असबाब-इग्लांडचोन-जापान-रंगुनवगेरासे यहांआताहै, सोनाचांदीके गेहने यहां उमदा बनते है, मद्रासके दौलतमंद वाशिंदे जवाहिरात और सोनेके गेहनोसे हमेशां सजे सजाये रहते है, औरतेभी उमदा लिवास पहनी हुइ रहती है, हरजगह गानेबजानेको मजलीसमें नामीगवैये अपने इल्मका जहोर दिखलारहे है. ___सेंट्रल रेलवे टेशनके पास रानीबाग काबिल देखनेके है, जि. समे-शेर-भालु-चीता-गेडा-कबूतर-तोता-मैना-चिडिया वगेरा रखेहुवे है, मद्रासमें--तैलंगी-अवी-कनडी अंग्रेजी--और-उर्दूवगेरा जबान बोलीजाती है, मुल्क गर्महोनेकी वजहसे लोग रुइदार कपडे कम पहनते है, और खानपानमें दालचावलका इस्तिमाल ज्यादह रखते है, मद्रास हातेमें काफी-तमाखू-और-चायकी पैदाश कसरतसे-होती है, नमकभी यहां बनाया जाताहै, मुंगफलीभी यहां बहुता. यतसे पैदाहोती है, केतकीके पेंड हरजगह देखोगे, समुंदरके कनारे हवा बहुत जोरसे चलती है और पानीकी लहरे दिलको फरहत बक्षती रहती है, पेस्तरके शास्त्रोमें इसमुल्कका नाम द्राविड लिखा है, मद्रास हातेके मुताल्लिक-पिनाकिनी-पनार-बैगा-वैलर-ताम्रपर्णीऔर-तुंगभद्रा वगेरा नदीयां बहती है, मद्राससे रैलमें सवारहोकर
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बीच बयान - शहर - त्रिचनापल्ली - और - मदुरा ( ३३३ )
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सेंदापेठ - सेंट थामस मांउट - ( फरमकुंडा ) - पलावरम - वंडलूर - गुडा चेरी - सिंगापेरमाल कोइल - चिंगलपेठ - कोलेतुरनोर्थ - पडलम-करनगुंजी - मदुरांतकम- अचरपाकम-- परेमबेर-ओलकुर - दिंडीवनम-मेलम- पैंरानी - विक्रावंडी - वेलुपुरम जंकशन -- सरंडानुर - पानरुटी - मेलपटमवाकम- नेलीकुपम - कडलूर - अलेपाकम - पुदुछतरम-- पोर्टोनोवोकिले- चिदंबरम - कोलेरून - अरसुर - सियाली - वेथीस वरीनकोइलआतंडवपुरम - मायावरम जंकशन - कटलाम- नरसिंगनपेंठ-अदुतुराइतिरुवडामारुडु - कुंभकर्ण -दरमुरम - सुंदरा पेरमालकोइल - पापनाशम पंडरावडाइ - एयमपेंठ - और - तिट्टी- टेशन होतेहुवे तंजुर जंक्शन उत रना, - अगर शहर देखना मंजुरहोतो देखना, वरना ! आगेकों रवानाहोकर अलाकुडी - बुडलुर - सोलागमपेटे - और - तिरुबेरमबुर होतेशहर - त्रिचनापल्ली जाना,
[ बीच बयान शहर - त्रिचनापल्ली और मदुरा, ]
शहर मद्रास से ( २४९ ) मील दखन पश्चिमकी रुखपर कावे - नदीसे कमी के फासलेपर त्रिचनापली एक पुराना शहर है, टेशन से थोडीदुर आगे बढने से शहर की आबादी शुरूहोगी, मद्रास से जो पैदल सडक कन्याकुमारीको गइहै त्रिचनापल्ली होकर गइहै. सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीमे त्रिचनापलीकी मर्दुमशुमारी (९०६०९) मनुष्योंकी थी, बाजार खुशनुमा - जिसमें तरह तरहकी चीजे रेशमी कपडे-और-माल असबाब मिलता है, चित्रकारीका काम यहां लाइक तारीफ होता है, और सोना चांदी के गहने उमदा बनते है, तमाखूकी पैदाश यहां ज्यादह - और - खानपानकी चीजे अछी मिलती है, - जैन श्वेतांवर श्रावकोकी आठ दश दुकाने यहां मौजूद है, यात्रीको अगर शहरमें जाना मंजूरहो- तोजाय, वरना ! आगेको रैलमें सवार होकर - कोलातुरसाउथ - समुदरम- मनापराइ
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( ३३४ ) वीचबयान-शहर-त्रिचनापल्ली-और-मदुरा. क्यायपट्टी-नंदुपटी-अय्यालुर-वडामदुरा-दिंडीगल-अंवातुराइ-कोडेकनालरोड-अमायानायकनुर-वाडीपटी-सोलावंडन--और-समायनालूर-होतेहुवे मदुराटेशन जाय,__मद्राससे (३४५ ) मील दखन पश्चिमकी रुखपर वेगानदीके दाहने कनारे मदुरा एक पुराना शहरहै, आवश्यक मूत्रत्तिमें-जोदखन मथुरा लिखी है-वो यही है, पेस्तर यहां पांडववंशके राजा राज्य करतेथे सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त मदुराकी मर्दुमशुमारी ( ८७४२८ ) मनुष्योंकी थी, करीव देशनके धर्मशाला बनीहुइहै बाजार अछा-और-हरेककिसमकी चीजे यहांमिलसकती है, सुनहरी किनारीदार-पघडी-दुपटे-और-साडी-यहां अछीवनती है, एकदो-दुकाने-मारवाडी श्रावकोकी यहांपर मौजूद है, जिलेमदुराके उत्तरतर्फ कोयंबतुर-त्रिचनापली-और-जिला तंजोरहै, पुरव
और-पूरव दखनकी रुखपर समुंदरकी खाडी-दखन और दखन पश्चिम- तिरुनलवेली जिला. और पश्चिम-त्रिरुबांकुरका ( यानी) त्रावनकोरका राज्यहै, मदुरासे एकरेलवे लाइन रामेश्वरको-औरएक लाइन-तुतीकोरिनको गइहै, यात्री लंकातर्फ जानेकेलिये तुतीकोरिनकों जाय, मदुरासें रैलमें सवारहोकर-पसुमलाइ-तिरुपरानकुंडरम-कापलुर-तिरुमंगलम-सिवराकोट-कालिगुडी--विरुदुपटीसुलाकरे-तुलुकापटी-वेपीयालीपटी छतरम-सेतुर-नली-कोयलपटी नलटीनपुतुर-कुमारपुरम-कदंबुर-देवलंगल--मनीयाची जंकशनतातापराइ-मिलावितन-और-तुतीमेलुर होते तुतीकोरिन टेशनजाय मद्राससे तुतीकोरिनतक-रैलकिराया-मेलटेनका चाररुपये पनराह आने लगते है,
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तवारिख-तुतीकोरिन-और-लंका. ( ३३५ )
o [तुतीकोरिन,] मदुरा टेशनसे (८१) मील दखन मनीयाची जंकशन-औरमनीयाचासे (१८) मील दखनपूरवकी रुखपर-तुतीकोरीन नामका रैलवे टेशनहै, द्रविडिनलोग इसको-तुतुगुडी-कहते है, और अंग्रेजी जवानमें तुतीकोरिनके नामसे मशहूरहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त तुतीकोरीनकी मर्दुमशुमारी ( २५१०७ ) मनुष्योंकी थी, पेस्तर तुतीकोरीन वडाशहरथा, बाजार यहांका खुशनुमाऔर-हरेककिसमकी चीजे यहांपर मिलसकती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी यहां नहीं,-न-कोइ-जैनश्वेतांवर मंदिरहै यहांपर समुंदरमेंसे-मोतीकीसीपें-और शंख निकालेजाते है. और समुंदर कनारे बडेबडेजहाज-और ष्टीमरे आतीजाती है, अगर यहांसे कोइशख्स लंकाटापुके कोलंबो शहरकों जानाचाहे-तो-टीमरमें सवार होकर समुंदरके रास्ते जासकते है, किराया थर्डक्लास पासेंजरके लिये तीनरुपये-छपाइ लगताहै,
[ तारिख-लंका, - लंका टापुकों पेस्तरके शास्त्रोमें सिंहलद्वीप लिखाहै, जैन रामायनमें लंकाकी तबारिख इसतरह बयान किइहैकि-तीर्थकर अजितनाथ महाराजके जमानेमें एक- घनवाहन नामका विद्याधर राजा लंकाके तख्तपर अमलदारी करताथा, जोकि-निहायत दिलेर और जमामर्दथा, उसकी सलतनत और अदल इन्साफ लाइके तारीफथा, जब उसका इंतकालहुवा लंकाके तख्तपर उसका बेटा तख्तनशीन हुवा, और अमलदारी करनेलगा, इसतरह कइराजे एकपीछे एक लंकाके तख्तपर होतेरहे, बयान उसका बहुतहै यहां कहांतक लिखे जव तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीका जमाना दरपेश हुवा लंकाके
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( ३३६ ) तवारिख-लंका. तख्तपर उस विद्याधर वंशका रत्नाश्रव नामका राजाहुवा, जिसकी रानीका नाम-केकसी-था, उसके शिकमसे-रावन-नामका लडका पैदाहुवा एकरोजकी वातहै नवहीरोंका-हार-जोकि-रावनके बडेरोको देवताकी तर्फसे मिलाथा रावनने अपने गलेमें पहना, तव उस हारके हीरोंकी रौशनीसें रावनके दस मुख नजर आनेलगे, असलमें मुखतो एकहीथा मगर हीरोंकी परछाइसे दशमुख दिखलाइ देतेथे, इसी सबबसे रावनका नाम दसमुख कहलाया, जवजव-वह-हारपहनाकरताथा उसके दसमुख दिखलाइ दियाकरतेथे-और-जबनही-पहनताथा एकही-मुह-नजर आताथा,
जब-राजा रत्नाश्रवने वफात पाइ रावन लंकाके तख्तपर वेठा, और उसकी सलतनत वढतीगइ, बडेबडे राजे महाराजे उसके फरमा बरदार हुवे, लंका-निहायत खूबसुरत और झलाझल रौशनी लियेथी बडबडे आलीशान मकानात उद्यान-बनखंड-और-बाग बगीचे यहांथे, मकान मकानपर सोनेके कलस-और-धजा पताका लगीरहतीथी, सुनहरी चित्रकारी और नक्शका काम निहायत उमदा बनाहुवाथा, बडेबडे बाजार और बेशुमार दौलतबी, विद्याधर वंश की आबादी होनेसे उसवख्तके लोग विद्या बलसे आस्मानमें सफर करतेथे,
रामचंद्रजी और लछमनजीका रावन के शाथ यहां बहुत भारी जंग हुवाथा, वजह उसकी यहहैकि-जब-रामचंद्रजी-ल छमनजीऔर-सीताजी-अयोध्यासे वनवासके लिये रवाना होकर दंडकारन्यमें आयेथे रावनने सीताजीके रुपकी तारीफ मुनी, और उसके लेनेके लिये आमादा होकर लंकासे आस्मानके रास्ते दंडकारन्यमें आया, और जब रामचंद्रजीकी गेरहाजरीका मौका पाया सीताजी. को उठाकर लेगया रामचंद्रजी और लछमनजी जब अपने डहरेपर
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तवारिख-लंका. (३३७ ) आये और तलाशकिइ-तो-सीताजीको-नही पाया, बहुत उदासहुवे और तलाश करते करते किष्कंधानगरी पहुचे, वहां सुग्रीवसे मुलाकातहुइ, और दरयाफ्त करनेसे मालूमहुवा कि-सीताजीकों-रावन-लंकामें लेगयाहै, रामचंद्रजी-लछमनजी-बडी तयारीके शाथ लंका पहुचे, उनके शाथ-वरविराध-सुग्रीव-हनुमान-भामंडल-अंगदनलनील वगेरा वडेवहादूर और जमामर्द योद्धथे, इधर विभीषणजोकि-रावनका छोटाभाइथा सीताजीके बारेमे रावनकी बेंइन्साफीसे रुठकर रामचंद्रजीकेशाथ आमिला, रावन अपनीवडी फौज हमरा लेकर जिसमें-कुंभकर्ण-इंद्रजित-हस्त-प्रहस्त-वगेरा बडेबडे बहादूर यो मौजुदथे-रामचंद्रजीके सामने आया, और बडाभारीजंग शुरु हुवा बडेवडे योद्धे अपनी जानपर खेलगये मगर पीछाकदम नहीं किया, एक रौज क्या-महिनोतक जंगहोतारहा, मगर शर्त यहथी कि-वाद-आफताब-गुरुव होनेके लडाइ मौकुफ होजाय और शुभह होनेपर फिर शुरुहो, एकरौज असाभी मौका आयाथाकि-रावनकी अमोघ शक्तिकी जरबसे लछमनजी बेहोश होकर गिरपडेथे, मगर दुसरेरौज फिर होशियार होकर संग्राममें आयेथे, और घोरसंग्राम कियाथा, कहांतक उसका जिक्र बयानकरे जितना लिखो थोडाहै, आखीरकार रामचंद्रजीकी फतेहहुइ और रावनने सिकस्त खाइ, रामचंद्रजी और लछमनजी बडे जुलुसकेशाथ लंकामें गये और अपनी सीताजीकों वापिसलिइ, लंकाका राज्य विभीषणकों दिया, रामचंद्रजी और लछमनजी जैसे बहादूर और जमामर्द शख्श बहुत कम निकलेगे. उसजमानेमे किसी दुसरेकी ताकात नहीथीकिरावनपर-फतेहपावे.
लंकामें उसवख्त जैनधर्मका बहुत प्रचार था, और तीर्थकर शांतिनाथ महाराजका बुलंदशिखरबंद आलिशानमंदिरभी बनाहुवा
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( ३३८ )
तवारिख - लंका.
था, यहवात जैनशास्त्र से सावीत है, - गौतमबुद्ध के जमाने में वौत्रमैका प्रचार लंकामे था यहवान योध मजहवके शाखोसे साबीत है, जमाने हालमेतुतीकोरिन बंदरगाहसे दखनपूरवकी रुखपर लंकाटापुका सदरमुकाम कोलंबो एक मशहूर शहर है, और तुतीकोरिन - से कोलंबोतक टीमर आवाजाता है, इसटापुके लंका होने में किसीत - रहका शक-वा-शुभहा- नहीं, क्योंकि-उधर दूसरा कोड जैसाटापु नही कि - जिसको लंका समझे, अवते! रावनके जमाने में ज्यादह तरकीपर था, यहवान पेस्तर जमाने के शाम्रो सावीत है, मुसल मानलोग इसका नाम - सरंद्रीप - कहते है, प्राचीन युनानी ग्रंथो-टोपरोवेन - (यानी ) - रावनका टापु लिखा है, और अंग्रेजी जवानमें सिलोन कहते है, आजकल इसटापुमे - कोलंबो - निंगपु-जाफना क लक्षूरा-चिकामली-कांडी - और अनिरुद्र - ये मशहूर शहर है, लंकाटा में इस बडी नदी -महाबली गंगा है, जो करीब (२०० ) मील लंबी और उसमे नाव बेडे-चलते है, नवारा एलिया नामका एक पहाड-जो- समुंदर के पानीसे (६२००) फीट ऊंचा और वहांकी Haar Baar है, कोलंबोसे वहांतक रैलजारी है - जो - नवघंटे जाकर पहुंचा देती है, लंका टापुमैं- दारचीनी - काली मीर्च - काफीचाय और इलायची इफरातसे पैदा होती है, और अकीक पुखराज-शंगेयशव-तरमेलीन-निलम-लसनिया - गोमेदक-और-विलो र यहांकी खानोसे निकलते है, हाथीयोंकी पैदाय यहाँ कसरतसे देखोगे - जिनकी मजबती-और- पालाकीको सरे जंगलोके हाथी -न-पासकेंगे, शंखभी यहां सर बहुत निकला करते है,
Š
नारीयल - और - सुपारी यहां कसरत
करती है, लोहा-और
Pheniat are se
है,
वहा- यहांकी - उमदा,
और यहां वाशिदको अकसर सिंहली कहा करते है, पेस्तर यहां
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बयान-इरोड-कोचीन-और-कलिकोट. ( ३३९ ) जवान संस्कृत वोली जातीथी, इसटापुमें कोलंबो शहर बडानामी है,-चीन-जापान-बंबइ-कलकत्ता बगेराकों यहांसे ष्टीमरे जाती है क्योंकि-वंदरगाह वडा है, लंकाटापुमें जमाने हालमें अंग्रेजसरकारकी अमलदारी जारी है, और लोग अमनचैन कररहेहै,
तुतीकोरिनसे वापिस रैलमे सवार होकर-त्रिचनापल्ली जंकशन आना, रास्तेके टेशन पेस्तर लिख चुके है, किराया-दोरुपये-दोआने मेंलट्रेनके लगेगे, वयान त्रिचनातल्लीकाभी-अवल देचुके है, त्रिचनापल्लीसे रैलमें सवार होकर-त्रिचीपलाकरे-त्रिचनापल्लीफोर्टश्रीरंगमरोड-मुरंगापेटे-तिरुचचंदरे-एलामनुर-पेरुगामनी-पेटाइवायातालाइ-भरुडुर-कुलीतलाइ-तिमाचीपुरम-लालापेट-महादनपुरम -कतलाइ-पुलीयुर-सनप्पीरटी-कारुर-पुगलुर-नायल-कुडीमुडीउजलुर-कालानली-पापुर-और-चवाडी पालियम होते इरोड जंकशन आना, रैलकिराया पनरांआने लगेगे.
बयान-इरोड-कोचीन-और-कलिकोट, ] त्रिचनापल्लीसे (८८) मील पश्चिमोत्तर मुतस्सिल कावेरीनदीके इरोड एक उमदा कस्बा है, कस्बेसे मीलसवामीलके फासले पूरवकी तर्फ कावेरीनदीपर (१५३५) फुटलंवा-जिसमे-(३२) मेहरावें लगी है एक-पुल-बंधा है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त इरोडकी मर्दुमशुमारी-(१२३३०) मनुष्योकीथी, जैनश्वेतांवर श्रावकोकी दुकाने तीनचार यहांपर मौजूद है, कस्वाइरोड खुशनुमा औररुइ-चावल-हलदी वगेरा चीजोकी तिजारत यहां अछी होती है, इरोडसे एक पैदल सडक-करुर होती हुइ महीमुरकों गइ है, इरोडसें एक रैलवे लाइन-कोचीन-कलिकोट-और-मंगलोरतर्फ गइ है, और एक लाइन-सेलम-जालारपेठ--होतो हुइ-वेंगलोरतर्फ आइ है,
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( ३४० ) तवारिख-कोचीन, जिनकों-कोचीन-कलिकोट तर्फ जाना हो-उधरको जावे, और जिनकों-बेंगलोर तर्फ आना हो-बेंगलोर नर्फ आवे,___ इरोडसे-कोचीन जानेके लिये-पोदनुर-उल्लाकोट-और-शौरनुर होती हुइ-जो-रेलवे लाइन गइ है उसमे सवार होकर कोचीन-जाय, टेशनसे करीव आध मीलतक टीमरमें वेठकर सामने कनारे जाया जाता है, किराया देहाना लगेगा. इरोडसे कोचीन तकका रैलकिराया, दो-रुपये-छ-आने लगेगे.
कोचीन मद्रास हातेके जिले मलेवारमें कोचीन-एक अछा कस्बा है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वरखत-कोचीनकी-मर्दुमशुमारी (१७६०१) मनुष्योकीथी, जैनश्वेतांवर श्रावकोंकी आवादी-औरमंदिर यहांपर बना हुवा है, बाजार खुशनुमा-जिसमें-हरेक किसमकी चीजे मिलसकती है, समुंदरके कनारे एक-लाइटहाउसभी मौजूदहै, कोचीनको मलवारी लोग-कोची-वोलतेहै, इर्दगिर्द कोचीनकेनारियल-केले-कालीमीर्च-कपुरकाचली-पान-साग-कटहल-सोंठ
और-सुपारी वगेरा चीजे ज्यादह पैदा होती है, जगह सोहावनीबडे बडे द्रख्तोके झुंड-और-जंगल पडे है, कोचीनसे अलपाइ करीब (३०) कोसके फासलेपर वाके है, और छोटी टीमरमें बेठकर समुंदरके रास्ते जाया जाता है. किराया ष्टीमरका आठआने लगेगे, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर दसबारां और एक मंदिर यहांपर तामीरहै, धर्मशाला-एक-समुंदर कनारे मौजूद है, यात्री उसमे कयाम करे, और जैनमंदिरकी जियारत करे, अल्पाइमें नारियलकी रसी बहुत बनाइ जाती है. कोचीनसे एक टीमर सिलोनकों जाती है, तुतीकोरिनसे टीमरमें सवार होकरकेभी-कोचीन-आसकते है, अगर क.
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तवारिख-कलिकोट. ( ३४१ ) लिकोटसेंभी बजरीये ष्टीमरके कोइ-कोचीन-आनाचाहे-तो-आसकते है, समुंदरका रास्ता दोनों तर्फसे है, कोचीनके पास समुंदरके कनारे करीब (१॥) कोसके फासलेपर जहाजकी-लंगर-डाली जाती है, कोचीनसे शौरनूरआकर कलिकोट जाना, रैलकिराया शौरनूरसें कलिकोटतक ग्यारहआने,
[ कलिकोट,] मद्रास हातेके पश्चिमघाटपर जिले मलबारके कनारे-कलिकोट एक पुराना शहरहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त कलिकोटकी मर्दुमशुमारी (६६०७८) मनुष्योंकीथी, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादी और एक मंदिरभी यहांपर बनाहुवाहै, बाजार उमदा और हरेक किसमकी चीजे यहां मिलसकती है, आसपास कलिकोटके-नारियल-कालीमीर्च-केले-और-सोंठ वगेरा चीजे कसरतसे हुवा करती है, जगह खुशनुमा-कटहेल-और-नारियलके द्रख्तोके झुंड-खडे है, समुंदरके कनारे लाइटहाउस बनाहुवाहै, सरकारी कचहरियां-अस्पताल-वेंक-और-स्कुल वगेरा पुख्ता इमारतें बनीहुइ मौजूदहै, आवहवा यहांकी अछी और तंदुरस्ती बढानेवाली है,____जोशख्श इरोडसे रैलमें सवार होकर-कोचीन-कलिकोट जाना-न-चाहे वह-जोलारपेठ होते बेंगलोर तर्फ आवे, इरोडसे रैलमें सवार होकर-कावेरी-अनंगुर-संकारीग-मेकडोनाल-चोलटरी-अरियेनुर-सेलम-तिनापटी—काडीमपटो-लोकुर--मलापरमबुडीरेडीपटी-मोरापुर--काल्लवी-समलपटी-कगनकरे-और-तिरुपातुरहोते जोलारपेठ-जंकशन आवे रैलकिराया मेलट्रेन एकरुपया सात आने लगेगे, जोलारपेंठ एक छोटासा कस्बाहै, मगर रैलवेका जंकशन होनेसे मशहूरहै,
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( ३४२ )
बयान-शहर-बैंगलोर.
जोलारपेठसे रैलमें सवारहोकर-पचुर-मलनुर-कुपम-गुडुपल्ली-विसानथम-कामसमुंदरम-बोरिंगपेठ-टेकल--मालुर-देवनकुंडी वाहिटफिल्ड-कृश्नराजपुरम-और-बेंगलोर छावनी होते-बेंगलोर सीटीटेशन उतरना, रैलकिराया मेलट्रेन एकरुपया दोभाने लगेगे,
म [ बथान-शहर-बंगलोर, जोलारपेठसे (८७ ) मील-और-मद्राससे (२९१) मील पश्चिमकी रुखपर बैंगलोर एक बडा शहरहै, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वन बेंगलोरकी मर्दुमशुमारी मयफौजी छावनीके ( १८०३६६) मनुष्योकी थी, जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आवादी
और मंदिर यहां बनाइवाहै, बेंगलोरशहर-दो-हिस्सोमे तकसीमहै, एक-पेठ-और-दुसराछावनी (हानी) लशकर कहलाताहै, लशकरके मुत्तस्सिल महीमुरमहाराजका एक-आलिशान महलवना हुवा-जोकि-काविल देखनेके है, और यहां एक पुराना किलाभी मौजूदहै, दरमियान पेठ-और-लशकरके कुछ दुरपर घुडदोडका मेंदान-बडालंबाचौडाहै-बाजार बहुत उमदा-और-रवकदार जिसमें हरेककिसमका-रेशमी-मूती-कपडा-मालअसवाव-जोचाहो-बखूबी मिलसकता है, बनिम्बत दुसरे शहरोके यहा तरहतरहकी वनाम्पति
और-फलफलारी इफरातसे मिल सकती है, लाकर मालिशान मकाना-और-सडके लंबीचोडीलोने, अमान-और-रुड़की तिजारत यहाँ कसरतसे हुबाकरती है, यहां-अलपुर-और-मिल्लरनामके दो-कालाव नामी है, इनदोनों के दरमियानकी जमीनमें लशकरका बाजार और- मशानात बनेहुवे है, शहांका रेशम बहुत मजबूत-और-मादा होता है,-रेशमी किनारीके मृतीकपडे यहां बडे बनाये जाते है, बंगलोरके गालीचे नामी-और-सोनाचांदीक लेस यहां लाइक तारीफके बनते है, लालबाग यहां एक काबिल देख
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दरबयान-शहर-बल्लारी-और-किष्कंधा. ( ३४३ ) नेकी जगहहै, जिसमें तरहतरहकी चीजे-और-नमुने-रखेहुवे-चुनाचे-गहने-पुशाक-सिक्के-हथियार-वगेरा-तरहतरहकी चीजेहिफाजतसे-रखीहुइहै, लालबाग यहांका एक मशहूर जगहहै जिसमें तरहतरहके फल और फुलकेद्रख्त-लगेहुवे-और-चारपाये जानवरोमे-शेर-हाथी-चीते-रीछ-बंदर-हिरनवगेरा मौजूदहै, परीदोमेंतोते-मना-कबूतर-और-रकमरकमकी चीडिया वगेरा रखीहुइहै, बेंगलोरसे एक पैदलसडक-जोलारपेठ होतीहुइ मद्रासको गइहै, एक-पश्चिम-और कुछदखन श्रीरंगपट्टन होकर-कनेनुरकों-गइहै,एकसडक पश्चिमतर्फ-मंगलूरको गइ, और-एकसडक-टुमकुर-हरिहर-हुबली-वेलगांव होतीहुइ-कोलापुर-और-पुनाकों गइहै,
बेंगलोरसेरेलमे सवारहोकर-यशवंतपुर-यलहंका-रासनकुंटोडुडबालापुर--मकलीगड्ग-ठंडीभावी--गोरीबीदनुर--डडकुरुगाडहिंदुपुर-मलुगर-चाकरलापल्ली-पेनुकुंडा-मकाजीपद-नागसमुदरमधरमावरम-कडुकुर--अनंतपुर-गरलाडीनी-कुलुरु--पामीडी-खादरपेठ-और-गुलापलीयामु-होते-गुंटकलजंकशनआना, रैलकिराया -दो-रुपैयाचार आने नवपाइ, गुंटकल एक छोटासा कस्वाहै मगर रैलकाजंकशन-होनेकीवजहसे मशहूरहै, गुंटकलसे रैलमेंसवारहोकरबंटनाहाल-वाहाल-विरापुर-और-हगरी-होतेहुवे-बल्लारीजंकशन आना रैलकिराया सातआने नवपाइ,
3 ( दरवयान-शहर-बल्लारी-और-किष्कंधा,)
गुंटकजंकशनसे ( ३० ) मील पश्चिमकी रुखपर निलेकासदर मुकाम-बल्लारी-एकरेलवेका टेशनहै, सन ( १८९१ ) की-मर्दुमशुमारीकेवख्त वल्लारीकी मर्दुमशुमारी मयछावनीके ( ५९४६७ ) मनुष्योंकी थी, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी--आवादी और मंदिरभी यहांपर मौजूदहै, कस्वा बल्लारी दामनमें बसाहुवा बाजार रव
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( ३४४ ) दरबयान - शहर-बहारी - और - किष्कंधा.
"
नकदार और हर किसमकीचीजे यहां पर मिलसकेगी, आवहवा, यहांकी उमदा - और - जिले बहारीमें नमक - सौरा- ज्यादहपैदाहोताहै, यात्री बहारीमें जानाचाहे शोखसे जाय और देखे, वरना ! आगेकों रवानाहोत्रे, बहारीसे रैलमें सवार होकर बल्लारीकंटोन्मेंटकुडाटीनी - दाराजी - टोरंगल - गढ़ीगलुरू- पापी नायकनहल्ली - होते हुवे होस्पेट - जंकशन उतरना, रैलकिराया चारआने,
-
बल्लारी से ( ४१ ) मीलके फासले पश्चिमउत्तरकी रुखपर हो - स्पेट एक रेलवेका टेशन है, सन ( १८९१ ) की मर्दुमशुमारी केवख्त होस्पेटकी मर्दुमशुमारी ( १२८७८) मनुष्यों की थी, जैन श्वेतांवर श्रावकोकी चारपांच दुकाने - यहां पर मौजूद है, मजी ट्रेकी कचहरीस्कुल- अस्पताल - वगेरा यहां पर बने हुवे है, होस्पेटसे करीब ( ७ ) मीलके फासलेपर- किष्कंधा - एक पुराना शहर है, रामचंद्रजी के जमानेमें यहां सुग्रीवनामका राजा सलतनत करताथा, और रामचंद्रजीलछमनजीभी- जबकि लंकायुद्धको गयेथे- यहांतशरीफ लायेथेजैनरामायण में लिखाहैकि- जमानेसुग्रीव के किष्कंधा - वडीरवन्नकपर थी, बागबगीचे - उद्यान - वनखंड - राजमहल -और-आलिशान मका नात यहां बहुवे, और बडेबडे दौलतमंद वाशिंदोसे सरगर्मथी. जबकि साहसगति विद्याधर और सुग्रीवका यहां - तारारानीकेलिये जंग हुवाथा - रामचंद्रजी और लक्ष्मणजी यहां सुग्रीव की मददकों - आयेथे और उनकी फतेहुइयों, पेस्तरयहां तीर्थकर शांतिनाथ महाराजके नामका जनता, जमानेहाल में बरबाद होगया, आजकल किष्कंघाभी छोटासा कस्वारहगया है यात्री अगर किष्कंधानगरी देखना चाहे तो जाय और देखे, वरना ! होस्पेटटेशनसे रैलमें सवारहोकर- मुनीराबाद -जिनीगिरा - कुप्पल - मानापुर- बन्नी कुप्पा - हरलापुर कंगनहाल-होते - गढ़कजंकशन जाय बैलकिराया नवआने लगते है.
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बीचबयान-गदक-और-दुबली-धारवाड. ( ३४५ ) 3 [बीचबयान-गदक-और-हुबली धारवाड,-]
गुंटकनजंकशनसे-( १२३ ) मील पविम कु छ उत्तर जिलेधारवाडमे-गदक-एक अछाशहरहे, सन ( १८९१ ) की सईम मारीके वख्त-गदककी मर्दुमशुमारी ( २३८९९ ) मनुष्यों कोथी. जैनश्वेतांबर श्रावकोंकी आबादी और मंदिर यहांपर मोजूदडे, वाजार खुशनुमा-और-हरेककिसमकी चीजे यहां मिलसकतीहै, रुइ
और रेशमकी तिजारत यहां अछीहोती है, गहकसे-यात्री-रैलमें सवारहोकर-हालकोटी-अनीगिरि-डंडुर-और-कुमुगलहोते--हुबलीजंकशन-जाना, रैलकिराया-छ-आने लगेगा,
जिलेधारवाडमें-हुबली-एक अछाशहर है, सन ( १८९१) की मर्दुमशुमारी (५२५९५ ) मनुष्योंकीथी, जैनश्वेतांवर श्रावको की आबादी और मंदिर यहांपर मौजूद है, यात्री शहरमेंजाय और जियारतकरे, सरकारी कवहरियां-अस्पताल-ओर--स्कुल वगेरा मकान यहां पुख्ता बनेहुवेहै, बाजार रवानादार-और हरककिसमकीचीजे यहांपर मअस्सर आसकतीहै, अनाज-नमक-रेशमऔररुड़की तीजारत यहां अलीहोती है, हुवलीसे रैलमें सवारहोकर अमरगोल होते धारवाड जंकशन जाना, रैलकिराया अढाइआने लगेगा,
HT [ धारवाड,] हुबलीजंकशनसे (१२) मील पश्चिमोत्तर जिलेका सदरमुकाम धारवाड एक-रैलवेका जंकशनहै, सन ( १८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त धारवाडकी मर्दुमशुमारी (३२८४१ ) मनुष्योकी थी. जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और मंदिर यहांपर मौजूद है, किला धारवाडका लाइकतारिफके बनाहुवा, अंदर दिवारके और बहारवारभी पुख्ताखाइ लगीहुइहै, बाजार यहांका अछा और
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( ३४६ )
बयान- बेलगांव - और - गोकाक.
हरेक चीज यहांपर मिलसकेगी, यात्री शहर मे जानाचाहे शौखसे जाय और जैन श्वेतांबर मंदिरकी जियारतकरे, धारवाडसे रैलमें सवारहोकर मुगद-कांवर रांची- अल्नावर-- तवरगटी-नगरगल्ली-देबराइ - लौंडा - गुंजी - खानापुर-देसुर
बेळगांव-आना, रै
लकिराया एक रुपया.
(बेलगांव )
जिलेका सदरमुकाम बेलगांव एका शहर है, सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारी की मर्दुममारी मयफौजी छावनीके (४०७३७) मनुष्योकी थी, जैनश्वेतांवर आक्कोकी आबादी और मंदिर यहां पर बना हुवा है, इर्दगिर्द बेलगांव तोकी बहुतायत और after anivर मौजूद है, बाजार उमदा हरेक किसमकी चीजे यहांपर मिलसकेगी, यात्री शहरमें जानाचाहे तो जाय और देखे, सरकारी कचहरियां- अस्पताल और स्कुल वगेरा मकानात किंमती बहुतेरे, नमक और नारियलकी तिजारत यहां अछी हुवा करती है और शहर काविल देखनेके है, बेलगांवसे रैलमे सवार होकर मुलेभवी-सुलधवल-पछापुर - और - धुपडल होते -गोकाक - रोडटेशन आना, रेल किराया साढेसात आने,
[ गोकाक, ]
गोकाकरोडटेशन से करीब ( ४ ) मीलके फासलेपर- गोकाक - एक छोटासा कस्वा है, सन (१८०१ ) की मर्दुमशुमारी के वख्त गोकाक की मर्दुमशुमारी ( १२१:६) मनुष्योकीथी, जैन श्वेतांबर श्रावक की आबादी और मंदिर यहांपर मौजूद है, गतपर्वनदीकीधारा (१७५ ) फीट उपर से बतौरचादर के गिरती है, गोकाक कFor नजदीक होने की वजहसे उसकानाम गोकाकका जलप्रपात मश
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तवारिख-शहर-सितारा-और-पुना, (३४७ ) हूरहै, बाजार गोकाकका अछा और हरेककिसमकी चीजे यहां मिलसकेगी, गोकाकरोडटेशनसे रैलमें सवारहोकर-चीकोडीरोड
रायबाग-चींचली-कुडछी-सेडवाल-मीरज-बुधगांव--तासगांवरोड कुंडलरोड-तकारी-शेनोली--करड--मसुर-आरवीरोड-रहमतपुर
और-कोरेगांवहोतेहुवे-सितारारोडटेशन आवे रैलकिराया एकरुपया सवाग्यारहआने लगेगा,
[सितारा,] सितारारोडटेशनसे (१०) मीलकेफासले पश्चिमकी रुखपर जिलेकासदरमुकाम-सितारा-एकपुराना शहरहै, दरमियान टेशन
और सितारेके पक्कीसडक बनीहुइ, और सवारीके लिये इक्काबगी मिलसकती है, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त-सितारेकी-मर्दुमशुमारी मयफौजी छावनीके (२९६०१ ) मनुष्योकीथी, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और मंदिर यहांपर मौजूदहै, सडके लंबीचोडी और मकानात पुरानी वजहकेहै, सरकारी कचहरियांअस्पताल-हाइस्कुल वगेरा मकान पुख्ता बनेहुवे है, और किलाभी सितारेका एक पहाडीपर बनाहुवाहै, यात्री सितारा जानाचाहेतो-जाय और देखे, वरना ! सितारारोडसे रैलमें सवारहोकरवथर-( यहाँसे महाबलेश्वर जानेकारास्ताहै,)-अडारकी-सल्पालोनंद-नीरा-चाल्हे-जेजुरी-राजेवाडी-अलंदी-फुरसंगी--ससबदरोड-और-घोरपुरीहोते पुनाजंकशन आना, रैलकिराया सवासोलह आने लगते है,
" [तवारिख-शहर-पुना, सितारारोड टेशनसे (७८) मील उत्तर-और-बंबइसे (११९) मील दखनपूरवकी रुखपर-पुना-एक-गुलजार शहर है,-टेशनसे
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( ३४८ )
तवारिख-शहर-पुना.
थोडीदुरपर शहरकीआवाही शुरुहोती है और-सवारीके लिये-इक्काबगी-तयार मिलनी है, करीब टेशनके एक धर्मशाला बनीहुइहै मगर जैनश्वेतांवर यात्रीको शहरमें जाना मुफीद है, शुक्रवार पेंठमें जैनधर्मशाला जहां मौजूद है, उसमें कयामकरे, सन (१८९.१ ) की मर्दुमशुमारीके बग्न पुनाकी मर्दुम शुमारी मयछावनीके (१६१३०० ) मनुष्योकीथी, दरमियान छावनी और शहरके सरकारी ओफिसे वगेरा मकानात बने हुवे है सवारीके लिये इक्का-बगी-हर जगह तयारमिलती है, आदितबारपेठ-बुधवारपेठशुक्रवार और शनिवारपेठ वगेराम जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आवादी फैलीहुइ, और वैतालपेटमें वडेवडे जैनश्वेतांवर मंदिर बनेहुवे है यात्री जियारतकरे, पुनाके बाजार वडे खुशनुमा और रवनकदार जिनमें नरहतरहकी चीजे मिलसकती है, सडके लंधीचोडी-मकान रंगरौशन कियेहुवे और हरजगह पानीकानल लगाहुवाहै, पुनेमें सातदिनोके नामसे सातमहल्ले मशहूग्दै और शनिवार महल्लेमें पेशवोका महल जिसकों आजकल जुनावाडा कहते है मौजूदहै,
बागवगीचे-सरकारी कचहरीयां-हाइस्कुल-लाइब्रेरी---और अस्पताल वगेरा मकानात यहां पुख्ता वनेहुवेहै, यतीमखाना-चित्रशाला--और--पांजरापोल--यहाँपर कायमहै, रेशमीसुती कपडेतांबापीतल-और-मीटीके वर्तन यहां अछेबनते है, हरेककिसमकी वनस्पति-और-फल फलारी यहां कसरतसे हुवाकरती है, चांदी सोनेके गेहने यहां उमदा बनते है, हाथीदांतकी कंघी और मोरपंखलगेहुवे खसके पंखे-यहां लाइकतारीफके देखोगे,-जिले पुनाके उत्तरपूरवकी रुखपर शहर अहमदनगर-दूरवकीतर्फ सोलापुर-दखनकी रु उपर नीरानी और बाद जिलासितारा-और-पश्चिमतर्फ थानाजिला है, जमीन उंचीनीची और पश्चिमकी तर्फ
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बयान-शहर-अहमदनगर-और-एवला. ( ३४९ ) सिंह्याद्रिपहाडकी चोटियां शुरुहै, सिंह्याद्रिसे बहुतसीधाराये निकलकर भीमानदीमें गिरती है, जिलेपुनेकी खानोसें मकानबनानेके पथर निकलाकरते है,
पुनासे कल्यानीहोकर बंबइ जायाजाताहै रैलकिराया करीब चौदहआने लगेगे, मगर उसमें तीर्थनाशिक बाजुपर रहजायगा, इसलिये पुनासे-डोंड-अहमदनगर-एवला-मनमाडहोते यात्री तीर्थ नाशिककी जियारतकरके बंबइ आवे, पुनासे रैलमें सवारहोकरहडपसर-लोनी-उरली-येवत-खेडगांव-और पटास टेशनपर होते डोंड जंकशन उतरे, रैलकिराया दसआने लगेगा, डोंड-जंकशन रखनकदार और खानपानकी चीजे यहां मिलसकती है यहांसें ग्रेटइंडियन-पेनिनसुला रेलवेकी लाइन तीनतर्फ गइहै, चुनाचे-पूरव दखनकीतर्फ वाडी-रायचूरकों-दुसरी लाइन पश्चिम उत्तरकी रुखपर-पुना-और-कल्याणीको-और-तीसरीलाइन उत्तरतरफ अहमदनगर-और-मनमाडकों गइहै, डोंडसे यात्री रैलमें सवारहोकरपीपरी-वेलवाडी-विसापुर--सरोला-और-अकोलनेर टेशन होते अहमदनगर टेशन उतरे, रैलकिराया आठआने लगेगा.
o [ बयान-शहर अहमदनगर-और-एवला, ]
जिलेकासदर मुकाम अहमदनगर एक-रैलवेका टेशनहै, सन ( १८९१ ) की-मर्दुमशुमारीके वख्न अहमदनगरकी मर्दुमशुमारी मयछावनीके ( ४१६८९ ) मनुष्योंकीथी, टेशनसे करीव ( १ ) मीलके फासलेपरसे शहरकी आबादी शुरु होती है और सवारीकेलिये टेशनपर इक्का-बी-तैयार मिलती है, यात्री शहरमें जाय
और जैनश्वेतांबर धर्मशाला-जोकि-खिस्तीगली में बनीहुइ है उसमें कयामकरे, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और दो-मंदिर-यहां
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बयान-शहर-एवला.
बनेहुवे है, यात्री जियारत करे, कापडबाजार और गंजबाजार यहां नामी है. हरेक किसमकी चीजे यहां मिलसकेगी तांबे-पीतलके वर्तन-और-गालिचे यहां लाइकतारीफके बनते है, सरकारी कचहरियां-स्कुल-अस्पताल-वगेरा मजबुत इमारते यहां बनीहुइ है, शहर अहमदनगरसे करीव (१२) मीलके फासलेपर शिवानदी इ. ब्तिदा है, रैलवेटेशनसे (२।।) मील और शहरसे ( १।। ) मील पूरवकी रुखपर देढमीलके हिसारमें पथरका एक मजबूत किला यहांपर बनाहुवा है. और इर्दगीर्द चोडी खाइभी तामीरकिइ हुइहै, जिले अहमदनगरकी पूर्वोत्तर रुखपर गोदावरीनदी-पूरवमे कुछ दूरतक हैदराबादराज्य-दखनपूरव-और-पूर्वपश्चिमनर्फ सोलापुर
और पुनाजिला, और पश्चिमोत्तरकी रुखपर जिला नाशिक है,पश्चिम सरहदके एक हिस्सेके पास पूरवतर्फ फैलीहुइ सिंह्यादिकी पहाडियोंका सिलसिला जारी है,-अहमदनगरसे रैलमें सवारहोकर यात्री-विलाड-वांबोरी-राहोरी-लाख-बेलापुर-चिताली-तुंबासंवत्सर-और-कोपरगांव रोडटेशन होते एवला टेशनपर उतरे, रैलकिराया सवाबारां आना लगेगा.
___ [ बयान-शहर-एवला, ] मुताल्लिक दखनके एवला एक अछाशहरहै, दरमियान टेशन और शहरके पकीसडक बनीहुइ और सवारीकेलिये-इक्का-बगीतयारमिलतीहै, मकानात एवलेके पुरानेतरीकेके बनेहुवे और बाजार रौनकदारहै, हरहफतेमें मंगलकेरौज एकमामुली बाजार भरताहै, जिसमेंतरहतरहकी जीजे और माल असबाब-मिलसकताहै, जैनश्वेतांवर श्रावकोकीआवादी और एकमंदिर यहांपर तामीरहै, यात्री शहरमें जाय और जियारतकरे, ठहरनेकेलिये मंदिरकेपास एकधर्मशाला बनीडुइहै, शहरएवलेमें जरकिदुपट्टे-रेशमीकपडे-और
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तवारिख-तीर्थ-नाशिक-और-थाना. ( ३५१) कमख्वाब उमदा बनताहै, सोने-चांदीके गेहने यहां अछेतयारहोते है, सरकारी कचहरियां--स्कुल और अस्पताल वगेरा मकानातयहां पुख्ता बनेहुवे है, लकडीकी नकाशी यहां लाइकतारीफके देखोगे, एवलेसे रैलमें सवारहोकर-अंकाइ-मनमाड-समीट-लासलगांवउगांव-निफाड-थेरगांव-खेरवाडी-और ओघा टेशन होते-यात्री नाशिकरोड टेशन उतरे, रैलकिराया पोनसोलहआने लगेगा,
ॐ [तवारिख-तीर्थनाशिक-और-थाना,] वंबइहातेके दरमियान-मनमाड जंकशनसे (४६) मील दखन पश्चिमकी रुखपर नाशिकरोड नामका एक रैलवे टेशनहै, और टेशनसे करीब (५) मीलके फासलेपर गोदावरीनदीके दोनों कनारेपर जिलेका सदरमुकाम नाशिक एक पुरानाशहरहै, पेस्तरके जमानेमें इसकानाम पदमपुरथा, और यहांपर एक-त्रिभुवनतिलकचंद्रप्रभस्वामीका निहायत उमदा आलिशान मंदिर बनाहुवाथा, पेस्तर यहां जेनोंकी आबादी ज्यादहथी जमाने हालमें कमहोगइ, सन (१८९१ ) की-मर्दुमशुमारीके वख्त नाशिककी मर्दुमशुमारी (२४४२९) मनुष्योंकीथी, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर करीब (२५) मंदिरभी यहांपर बनेहुवे है, यहांके मकानोपर नकाशीदार लकडीका काम ज्यादह देखोगे, जगहजगह गलियोमें फाटक बनेहुवे है, बाजार रवन्नकदार और हरेककिसमकी चीजे यहांपर मिलसकती है, तांबेपीतलके बर्तनोकी-दस्तकारी-यहां लाइकतारीफके होती है, और यहांके बनेहुवे वर्तन मुल्कोमें मशहूरहै, सरकारी कचरियां-स्कुल-अस्पताल वगेरा मकानात यहां पुख्ता बनेहुवे और सडकोपर रातकेवख्त लालटेनोकी रौशनी लगती है, नाशिकशहरको वैदिक मजहबवालेभी-तीर्थ-मानते है, और गोदावरी नदीके बायेकनारेके हिस्सेमें पंचवटी मौजूदहै, जिलेनाशिकके उत्तरकी रुख
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( ३५२ ) तवारिख-तीर्थ-नाशिक-और-थाना पर जिलाखानदेश-पूरवकीतर्फ-सलतनत हैदराबाद-दखनकी रुखपर जिलाअहमदनगर-और-पश्चिमतर्फ थाना जिलावाके है, जिले नाशिकमे पहाडियां और जंगल कसरतसे देखोगे,
नाशिकरोड टेशनसें रैलमेसवार होकर-देवलाली-असवालीघोटी-इगतपुरी-कसारा-खरदी-अटगांव-असनगांव-वासिंद-खादोली-तीतवला-कल्याणीजंकशन -डोमविवली--डीवा-मंबा-औरपारसिकटेशन होतेहुवे-थानाटेशन उतरना, रैलकिराया देहरुपया लगेगा,
[ थाना,] नाशिकरोड टेशनसें (९५) मील पश्चिम दखनकी रुखपर-औरबंबइ विकटोरिया टर्मिनससे ! २१ ) मील पूर्वोत्तर-थाना-एकपुराना शहरहै, तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीके जमाने-राजाश्रीपालजी जबकि-उज्जेनसे रवानाहोकर मुल्कोकी सफरको गयेथे यहांभी उनकाआना हुवाथा, और यहां जैनमंदिर मौजुदथे, सन (१८९१) की मर्दुमशुमारीके वख्त थानेकी मर्दुमशुमारी (१७४५५) मनुष्योकीथी, जैनश्वेतांवर श्रावकोकी आवादी और मंदिर अबभी यहां मौजूदहै, सरकारी कचहरियां-किला-अस्पताल-और-कइजलाशय यहांपर बनेहुवेहै, कइसरकारी ओफिसर थानेमे रहते है और हरहमेश बजरीये रैल बंबइपहुचकर अपनाकाम-कियाकरते है, पेस्तर थानेमें रेशमकाकाम ज्यादह होताथा जिलेथानेकी जमीन अकसर पहाडियोके सिलसिलेसे घीरीहुइ और यहांके जंगलोमें लकडीकी पैदाश बहुतायतसेहै, थानेसे रैलमे सवारहोकर यात्री-मुलंद-भांडुप-विकरोली-घाटकोपर--कुरला-सिओन-माटुंगा-दादर-परेलकरीरोड-चिंचपोखली-भाइखल्ला--मझगांव-आर-मशजिटेशन
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बयान-विरान-और-नामांतरहोगयेहुवे-तीर्थोका. ( ३५३ ) होतेहुवे-विकटोरियाटर्मिनस (बोरीबंदर) टेशन आवे, रैलकिराया पांचआने लगेगा, ___ बंबइकी तवारिख पेस्तर इसकिताबमें दर्जकिइहुइहै, चुनाचे, इसकिताबकी इब्तिदा-और-इंतिहा-बंबइशहरहै, हमने बंबइसे सफरका लेख लिखना शुरुकियाथा, असनाये राहमें जोजोशहर
और जैनतीर्थ आतेगये उनकावयान लिखतेहुवे यहांतक आगयेजहांतक बना जैनशास्त्रोसे-इतिहासिक किताबोसे-और-अपनीनजरसे देखाभाला इसमें दर्जकियाहै,____ एडनमें जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और मंदिर बनाहुवाहै, हिंदुस्थानके कइ जैनश्वेतांबर श्रावक वास्ते रोजगारके वहांजाकर बसेहुवे है, मुल्क आफ्रिकाके पूरवकनारेपर जंगबारटापुमें जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर करीब (४०) और एक जैनश्वेताबरमंदिर मौजूदहै, दालगोवाबंदरमें जैनश्वेतांवर श्रावकोके घर करीब (१५) और एक छोटासा चैत्यालय बनाहुवाहै, लींडीबंदरमें-और-मुंबासाबदरमेंभी इसीतरह छोटासा चैत्यालय और करीब पनरावीस श्रावकोके घर आबादहै, अगर कोइ जानाचाहेतो-बंबइसें-बजरीये टीमरके जासकते है,[ अब उनउन जैनतीर्थोंका बयान बतलायाजाता है जोजमाने हालमे विरान-या-नामातर होगये है, ]
१-चुनाचे-नजदीक अयोध्याके पुरीमताल-शाखानगरमें-तीथैकर आदिनाथमहाराजके नामका एक जैन तीर्थथा, जमानेहालमें नेस्तनाबुद होगया, २-तक्षशिलानगरी-जोकि-हिंदुस्थानके बहारवारथी बाहुबल विनिर्मित धर्मचक्रनामका वहां एक जैन तीर्थ था
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( ३५४ ) बयान-विरान-और-नामांतरहोगयेहुवे-तीयोंका. वोभी अब जेरेजमीन होगयाहै, ३-प्रयागतीर्थमें तीर्थकर शीतलनाथ महाराजके नामका एक जैन तीर्थथा वोभी अब विरान होगया, ४-प्रभासमें शशिभुषण चंद्रप्रम-ज्वालामालिनी देवतावसरनामका गौतमस्वामिप्रतिष्टित एक जैनतीर्थ था मगर बोभी अब नजर नहि आता, ५-प्रतिष्ठानपुर-जोकि-मुल्कदखनने पेंटनके नामसे मशहुर है, पेस्तर वहां नीर्थकर मुनिमुव्रतम्बामीके नामका जैनतीर्थथा, ६हेमसरोवर-और-मानसरोवरके कनारेपर जैनतीर्थथे अब नजरनहि आते, ७-कोटिशिलाके पास एक जैनतीर्थ या उसकाभी कुछ पता नहि लगता, ८-कादंवरीअटवीम कलिकुंड पार्श्वनाथमहाराजके नामका एक जननीर्थथा, '.-हिमालयकी उत्तरमें जहां पृष्ट चंपानगरी थी शालनामका राजा अमल्दारी करताथा, और महाशाल उसका छोटाभाइथा, जैनागम-आवश्यकत्रके अवल अध्ययनमें बयान है कि-तीर्थकर महावीरस्वामी वहां तशरीफ लेगयेथे और-शालमहाशालकों दीक्षा दिइथी,
१०-दंडकारन्य जहांकि-रामचद्रजी-लछमनजी और सीताजी वनवासके वख्त रौनकअफ रौजहुवेथे. मध्यहिंदमें शुमारकियाजाता है, ११-विराटमें जहां पांचपांडव वनवासके वख्त ठहरेथे पेस्तर वहां जैनतीर्थथा, १२-तागतंबोलमें जैनतीर्थथा अवभी स्यातहोगा मगर पता नहिलगता, १३-ताम्रलिप्ती नगरीमें जैन तीर्थथा, १४गंगा यमुनाकी वेणीसंगमके पास-जो-आदिकमंडल नामका और तीर्थकर कुंथुनाथमहाराजके नामका जैनतीर्थथा फिलहाल उसकाभी कुछ नामनिशान मालूम नहिहोता, १५-माहेंद्रपर्वतमें पदमप्रभुके नामका-और-छाया पार्श्वनाथके नामका जैनतीर्थथा वोभी अब नाश होगया, १६-गंगानदीके पास विमलनाथमहाराजके नामका एक जैनतीर्थथा वोभी अव-न-रहा, १७-त्रिकुटगिरि पर्वतमें तीर्थ
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बयान-विन-और-नामांतरहोगयेहुवे तीर्थोंका. ( ३५५ ) कर शांतिनाथमहाराजके नामका एक जैन तीर्थया-वोभी-अब जमीनदोस्त है, १८-श्रीपर्वतमें तीर्थकर मल्लिनाथमहाराजके नामका एक जैनतीर्थथा वोभी बरबादहोगया, १९-माणिक्यदंडकमें तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीके नामका एक जैन तीर्थथा वोभी अब जेरेजमीन होगया, २०-शंखजिनालयमें-और-२१-स्थंभतीर्थमें-पाताल गंगाभिधान-और-तीर्थकर नेमिनाथमहाराजके नामका जैनतीर्थया जमाने हालमें विरानहोगया, २२-दंडखातमें भव्य पुष्करावर्त-पार्ष. नाथमहाराजकेनामका जैनतीर्थथा वोभी अब-न-रहा, २३-भायल खामीगढमें देवाधिदेवके नामका एक जैनतीर्थथा वोभी अब नेस्तनाबुदहै, २४-गमशयनमें प्रद्योतकारि-श्रीवर्धमानस्वामिके नामका एक जैनतीर्थया-वोभी अब जमीनदोस्तहै, २५-सिंद्याद्रिपर्वतमेपेस्तर जैनतीर्थया वोभी अब जेरेजमीन होगया, २६-मुल्कद्राविडमें पेस्तर जैनतीर्थथा, २७-कान्यकुब्जमें पहेले जैनतीर्थया, २८-खेंगारंगढमें उग्रसेनपूजित-मंदिनीमुकुट-आदिनाथमहाराजके नामका जैनतीर्थया, जमानेहालमें उसकाभी सुराग नहींलगता, २९-नगरमहास्थानमें युगादिदेवके नामका एक जैनतीर्थथा अब-वोभी-नजर नहिआता, ३०-महानगरीमें-और-३१-उदंडविहारमें तीर्थकर आदिनाथमहाराजके नामका जैनतीर्थया-वोभी-अब जेरेजमीन होगया,
३२-काशहदमें त्रिभुवनमंगलकलश-आदिनाथ महाराज नामका जैनतीर्थका अब उसकाभी पतानहीलगता, ३३-सोपारक पत्तनमें जहांकि-राजाश्रीपालजी तशरीफ लायेथे तीर्थकर रिषभदेवमहाराजका जैनतीर्थथा जमानेहालमें बरबादहोगया, ३४-मोक्षतीर्थमें तीर्थकर नमिनाथमहाराजके नामका जैनतीर्थथा, अब-वोभी-नहीरहा, ३५-चंदरीमे-३६-तारणमे-और-३७-विश्वकोटि शिलापर तीर्थंकर अजितनाथ महाराजके नामका जैनतीर्थथा इसवख्त उस
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( ३५६ ) बयान - विरान - और - नामांतर होगये हुवे - तीथाँका.
का नामनिशान नही मिलता, ३८- अगंदिका नगरीमें- अजितनाथ और - शांतिनाथमहाराजकेब्रहमंद्रदेवतावसरनामका जैनतीर्थथा अत्र सरेदस्त — बोभी — मिटगया, ३९ - नर्मदानदीकी जहां - - बुनियाद है सेrमतीग्राम करीब तीर्थंकर अभिनंदनमहाराजके नामका जैनतीयेथा जमानेहाल - वोभी - विरान होगया, ४० - कोंचद्वीपमें-और४१ - हंसद्वीपमें - तीर्थकर सुमतिनाथ महाराजकी- देवपादुका के नामका जैनतीर्थथा अब वोभी नहीरहा, ४२ - आंबरी गांममे - श्रीमतीदेवके नामका जैन तीर्थथा वोभी अब उजडहोगया, ४३ - कोयाद्वार में सु विधिनाथमहाराज के नामका जैनतीर्थथा अब उसकाभी कुछपतानही ४४ - विंध्याचलमें जहांकि - हाथीयोंकी पैदाश ज्यादहथी - कदलीवन बडी रवन्नकदार जगहथी - गुप्तपार्श्वनाथ महाराजके नामका जैनतीfer - बरबाद होगया, ४५ - मलयागिरिपहाडमें - तीर्थंकर श्रेयांसनाथमहाराजके और पार्श्वनाथमहाराजके नामका जैनतीर्थथा जमानेहालमें वोभी - नेस्तनाबुद होगया, ४६ - हारवतीमें-४७- देसमुद्रमेंऔर-४८-- शाकपाणिमें तीर्थकर अनंतनाथमहाराजके- जैनतीर्थथेजमाने हाल में - वे भी - जेरे जमीन होगये, ४९ - अजागृह में - और -५०स्थंभनतीर्थ में नवनिधिपार्श्वनाथके महाराजके नामके जैनतीर्थथेअब वे भी - नाशहोगये, ५१ - करटक में- उपसर्गहरपार्श्वनाथ महा राजके नामका एकजैनतीर्थथा वोभी अब विरानहै, ०२ - अहिछत्तानगरी त्रिभुवनभानुके नामसे जैनतीर्थथा - अब वोभी नजर नहीआता, ५३ - कलिकुंडमें - और - २४ - नागहद तीर्थंकर पार्श्वनाथ महा राजके नामका तीर्थकरथा, वोभी अव - वरवादहोगया. ६५-कुकटेश्वरमे - विश्वगजपार्श्वनाथ - और - ५६ - कारपर्वतमें सहस्रफणीपार्श्वनाथके नामका तीर्थथा, ५७ - महाकालांतरस्थानमें - पाताल चक्रवर्ती पार्श्वनाथमहाराजके नामका जैनतीर्थथा, ५८- डाकुलीभीमेश्वरस्थानमें तीर्थंकरपार्श्वनाथ महाराजके नामका जैनतीर्थथा उसकीभी कुछखबर
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जैन-चैत्य-स्तव, (३५७) मालूमनहींहोती. ५९-रोहणाद्रिपहाडमें-तीर्थंकर महावीरस्वामीका तीर्थथा-चोभी-अवनहीरहा, ६०-माढेरमें, ६१-चायडमें, ६२मेतुंडकमें-६३-मुंडस्थलमें, और-श्रीमालपत्तनमे एकएक जैनतीर्थये मगर- वेभी-नेस्त-व-नामुदहोगये, ६५-कुंडग्राममें-६६-टंकास्थानमे, ६७-गंगाझीलमें,-६८-सरस्थानमें, पुंदूपर्वतमें, और-७०नंदीवर्द्धनकोटिभूमिमेभी-एकएक जैनतीर्थथे मगर उनकाभी कुछपचा नहीलगता.
७१-तिमालमें, ७२-मुरीडमें, ७३-श्वेतंबिकानगरीमें-७४-- मणवतीनदीकेकनारे-ढीपुरीनगरीमें-पेस्तर जैनतीर्थथे वेभी अबनहीरहे, ७५-राजाश्रीपालजीके जमानेमें मुत्तस्सिल रत्नसंचया नगरीके तीर्थकर आदिनाथ महाराजके नामका जैनतीर्थया, ७६-मुल्कमारवाड-कस्बे-सांचोरमें तीर्थकर महावीरस्वामीका तीर्थइसवख्त मौजुदहै, मुल्कबर्मामें जो-आवानामका शहरहै, चंदराजाकेचरितसें मा. लूमहोताहै सायत ! वही पेस्तर आभापुरीहो,
[ तीर्थअष्ठापद, ] अष्टापदतीर्थ-जोकि-मुताबिक जैनशास्त्रके फरमानसे-वैताज्य पर्वतके दखनमें वाकेहै आजकल यहांसेकोई-वहां-जा-नहाँसकता,
ॐ [जैनचैत्य-स्तवः, ]
(स्रग्धरा-वृतम्,-) सद्भक्त्या देवलोके रविशशिभवने व्यंतराणां सिकाये, नक्षत्राणां निवासे ग्रहगणपटले तारकाणां विमाने, पाताले पंन्नगेंद्रे स्फुटमणिकिरणे ध्वस्तसांद्रांधकारे, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्रचैत्यानिवंदे, १
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( ३५८ )
जैन- चैत्य-स्तव,
वैताढ्ये मेरुशृंगे रुचकगिरिवरे कुंड लेहस्तिदंते, वक्षारेकूटनंदीश्वरकनकगिरौ नैषधेनीलवंते, चित्रेशैले विचित्रे यमकगिरिवरे चक्रवाले हिमात्रा, श्रीमत्तीकराणां प्रतिदिवसमहं तत्रचैत्यानिवंदे, श्रीशैले विध्यशृंगे विमलगिरिवरे ह्यर्बुदेपावकेवा. सम्मेते तारकेवा कुलगिरिशिखरेष्टापदे स्वर्णशैल, संह्याद्रो चोज्जयंते विपुलगिरिवरे गुर्जरे रोहणाड़ा, श्रीमत्तीकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्या निवंडे, आघाटे मेदपाटे क्षितितमुकुटे चित्रकूटे त्रिकूटे, लाटे नाटे च धाटे विटपिघनतटे देवकूटे विराटे, कर्णाटे हेमकूटे विकटतरुकटे चक्रकोटे च भोटे, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानिवंदे, श्रीमाले मालवे वा मलयजनिखिले मेखले बीछले वा, नेपाले नाहलेवा कुवलयतिलके सिंहले मैले वा, डाहाले कौशले वा विगलितसलिले जंगले वा निमाले, श्रीमत्तीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानिवंद, अंगे वंगे कलिंगे सुगतजनपदे सत्प्रयागे तिलंगे. गोडे चौडे मुडे वरतरद्रविडे उद्रियाणे च पौ आद्रे माद्रे पुल द्रविडकुवलये कान्यकुब्जे राष्ट्रे, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानिवंदे. चंपायां चंद्रमुख्यां गजपुरमथुरापत्तने चौजयिन्यां कौशव्यां कोशलायां कनकपुरवरे देवगियच कयां, नाशिक्ये राजगेहे दशपुरनगरे भद्दीले ताम्रलियां, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्रचैत्या निवंदे, स्वर्गे मत्त्यंतरिक्षे गिरिशिखर हे स्वर्णदीनीरती',
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जैन-चैत्य-स्तव, (३५९) शैलाने नागलोगे जलनिधिपुलिने दुर्गमध्येत्रिसंध्यं, ग्रामेरन्ये वने वा स्थलजलविषमें भूरुहाणां निकुंजे, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानिवंदे, ८ श्रीमन्मेरुकलाद्रौ रुचकनगवरे शाल्मलौ जंबुले, चौजन्य चैत्यनंदे रतिकररुचके कुंडलेमानुषांगे, इक्षुकारेंजनाद्रौं दधिमुखशिखरे व्यंतरे स्वर्गलोके, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्रचैत्यानि वंदे, इथ्यं श्रीजैनचैत्य स्तवनमनुदिनं ये पठति प्रवीणाः मोद्यत्कल्पाणहेतुं कलिमलहरणं भक्तिभाजस्त्रिसंध्यं, तेषांश्रीतीर्थयात्राफलमतुलमलं जायतेमानवाना; कार्याणांसिद्धिरुचैः प्रमुदितमनसां चित्तमानंदकारि. १०
(जैनतीर्थगाइडका-दुसरा-भाग-पूर्णहुवा,-)
[ अनुष्टुप-वृत्तम्. ]
उपः
१
अनर्घाण्यपि रत्नानि-लभ्यते विभवैःसुखं, दुर्लभो रत्नकोटयापि-क्षणोपि मनुजायुषः आर्यदेशश्च तत्रापि-मुकुलं निर्मलामतिः विशिष्ट गुरुसंपर्को-भूरिभाग्यैरवाप्यते, या देवे दवता बुद्धिः-गुरौ च गुरुता मतिः धर्मे च धर्मधी श्रद्धा-सम्यक्त मिदमुच्यते,
३
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( ३६० )
नसीहत-उल-आम.
। [ नसीहत-उल-आम, ] १-नरदेह वारवार नहीमिलता, इसको पाकर जोकुछ बनपडे नेकीकरो हरशुभह चारघडी रातरहते नींद छोडदो, आफताव तुलुहोयेतक सोतेरहना अछानही, जव विस्तरसे उठो पेस्तर अपना सांस देखलो, चंद्रस्वर चलताहै-या-मूर्यस्वर ? अगर चंद्रस्वर चल ताहै तो बायापांव-और-सूर्यस्वर चलताहै तो दाहनापांव जमीन पर रखो, वाद अपनी जरुरी हाजतोसे फारिग होकर तीर्थकरदेवोकी इबादत करो, जवकोई मर्द-या-औरत मंदिरमें देवदर्शनको जाय अपने बदन और लिवासकों साफकरके जाय, यह नहीकि-नापाक बदन और लिवाससे मंदिरमें चलेजाय, शुभहके वख्त जंगलकी हवामें घुमना निहायत मुफीदहै, मगर रास्तेमें कीडेमकोडोकों वचाकर घुमना चाहिये, ताकि उनपरभी कुछ तकलीफ-ल-गुजरे,साफ हवा इस्तिमाल करनेसे बदनकी बीमारी रफा होतीहै, और ताकातबढतीहै, जोलोग हमेशां गादीतकीयेके सहारेवेठे रहतेहै और अपने जिस्मको तकलीफ नहीदेते, यादरहे ! बीमारी उनके लिये हमेशां हाजिररहतीहै, क्योकि उनके जिस्मसे पसीनावहार नहीहोसकता,
२-शास्त्रमें सुनतेहो राजेमहाराजे लोग जब शुभहको उठतेथे अपने बदनकी शुस्ति रफा करनेकेलिये पहलवानोसे कुस्ती किया। करतेथे, कल्पसूत्रके मूलपाठमें देखलो सिद्धार्थराजाकेलिये क्या बयान लिखाहै, ? अलबतां ! जइफोंकों कसरत करनेकी कोई जैसी चंदा जरूरतनही, जोलोग दंडपेलते है उठवेठ करतेहै अंसी कसरत नादानीकी करसतहै, जब किसीके बदनमें कसरत करनेसे कुछपसीना आजाय तो उसवख्त गंदीहवासे अपने जिस्मको जरुरवचानाचाहिये, हरेकशख्शको मुनासिबहै अपनी हाजत रवाइको दुरज
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नसीहत-उल-आम. (३६१ ) गहपर जावे, मशानमें जहांकि-मुर्दै जलायेजातेहो वहांपर-न-जावे, गुप्तमोरियां जोकि-हमेशां गंदीरहाकरतीहै उसमे पेशाब-न-करे, मुताबिक धर्मशास्त्रके देखाजायतो गुप्तमोरीमें पेशाबकरना सबब पापकाहै, क्योंकि-उसमें अकसर जीवोंकी पैदाश हुवाकरती है, सांप-या-चूहोके बिलमें पेशावकरना बिल्कुल नामुनासिवहै, एक वख्तका जिक्रहै किसीशख्शने सांपके बिलमें पेशाब करना शुरुकिया, उसकीधार जब विलकेभीतर गइ फोरन ! उसमेंसे एक सांप निकलआया, इधर पेशाबकरनेवाला मारेखोफके ऐसा भागनिकला कि-जससे उसके कपडे सब नापाक होगये, कहो ! इससे क्या ! फायदा हुवा ? इसीसे अछे लोगोंने कहाहैकि-ऐसी बातोंसे परहेज करो,
३-हरेक आदमीकों चाहियेकि-विना-दातूनकिये कोइचीज अपने मुहमें-न-डाले, जो शख्श दातुन नहीकरते उनके मुहसे बद बू आती है, जिसके मुहमें छालेपडगयेहो-या-जलनहोतीहो उसरौज दातुन-न-कियाजाय कोइहर्जकी बातनहीं, जिसका गला बेठगयाहो-या-होठ फटगयेहो-वह घीके कुरलेकरे, या दुधका इस्तिमाल रखे, जरुरफायदा होगा, जिसको तैरना-न-आताहो गहरेजलमेंन-कुदे, नहाते वख्त-ख्वाह मदहो-या-औरत हर्गिज ! नंगे-ननहावे, एकदुपट्टा-या-साडी-बदनपर जरुररखे, वाद स्नानके देवपूजनमे मशगुलरहे, दुनियादारोकेलिये देवपूजन करना निहायत फायदेमंदहै, जबकोइ देवमंदिरमें जावे हथियार शाथ-न-लेजावे, जूते-लकडी वगेरा चीजभी बहार छोडकर अदबकेशाथ जावे. जब देवमूर्तिके सामने पहुचे तीनमरतवे सीरझुकाकर ताजिमकरे, और तीनवख्त अतराफ परकम्मादेवे, पूजाकरनेका हुकम जैसे मर्दकोहै वैसे औरतकोंभी है, पूजाकरतेवख्न लिवास और जिस्मको पाकरखे
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( ३६२ ) नसीहत-उल-आम. अगर कोइ साज-और-संगीतकलाका जाननेवालाहो-तो-बाजेके शाथ उमदातौरसे गायनकरे और तीर्थंकरोंकी इबादतकरे, पूजनमें इरादा पाकहोनेके सवव भावहिंसा नही. और विनाभावहिंसाके पापनही, पाकइरादेसे तीर्थकर देवोकी पत्तिकी पूजाकरनेसे अशुभकमंकी निर्जरा और पुन्यानुवंधिपुन्य हासिलहोताहै, धर्म और प्रीत जोरावरीसे नहींहोती, जिसकेपर देवद्रव्य का पैसाहो फोरन ! देदियाकरे, जो लोग नहीदेते गोया ! अपना विगाडकरतेहै, धर्मकेकाम में दगाबाजी करना अछानही,
४-अगर शहरमें अपने मजहबी गुरु आयेहो तो व्याख्यान सुननेकों जरुरजाना चाहिये, जिसशख्शने देवपूजन-न-कियाहो
और शास्त्रसुननेका वख्न करीब आजाय तो पहलेशास्त्र सुने और पीछेदेवपुजनकरे , क्योंकि-वगेर शास्त्रमुने देवपुजनकी पहिचानठीक नहींहोती, मुनिलोगोको चाहियेकि-कोई अमीर हो-या-गरीब दोनोको एकसागिने, जैसा-न-करेकि-कहीं दोलतमंदकी तर्फ ज्यादह तवज्जोकरे और गरीवकों-न-पुछे, पेस्तरके मुनिलोग शहरके बहार उद्यान-या-बनखंडमें रहाकरतेथे जवकोइ जैनमुनि शास्त्रका व्याख्यान बाचरहेहो, और उसहालतमें कोइश्रावक व्याख्यानमें आनकर वंदनाकरे मुनि उसको धर्मलाभ-न-दवे, क्योंकिव्याख्यानमें खलल होगा, चलते व्याख्यानमे श्रावक स्फेटावंदना करे, स्थोभ-वंदना-न करे, जबतक शास्त्रकी बाजा -न-होवीचमें कोइ उठेनही. ओर अगर कोई किसीको गुलानेआवे-तोमुहसे कुछ-न-बोले, इसारेसे उसकाजबाव देवे, अगर किसीकेघर कोइ मोत होगइहो-या-किसी किसमका सोगहो-तोभी-शास्त्र सुनने सोग-न-रखे, एकश्रावकका नवजुवान लडका रातकेवख्त गुजरगया, और शुभहके वख्त उसके देहका अग्निसंस्कार करके कुछदे
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नसीहत-उल-आम.. ( ३६३ ) रकेबाद शास्त्रकी वाज सुननेकों हाजिरहुवा, गुरुजीने व्याख्यान खतमहोनेपर पुछाकि-आजदेर क्यों हुइ ?-उसने जवावदिया एकमेहमान-आयाथा उसको विदाकरने जानापडा जिससे देरीहुइ, गुरुजीको मालूमनहींथा एक दुसरे श्रावकने कहा, गुरुजी ! इसका नवजुवान लडका मरगया-तोभी-यह अपनी हुस्नेएतकात शास्त्रकी वाजसुननेकों आयाहै, गुरुजीने कहा तारीफहै इसकी-और धर्मका पावंद होतो ऐसाहो.
५-शास्त्रका बयान सुनतेवख्त अगर किसीकों कोइ सवालकरना मंजूरहो विनयसे करे, किसी किसमकी बांकीटेडी बात-न-करे
और अगर अपनी भूलपर गुरुजी कुछ सख्त वातकहे-तो-उसका बुरा-न-माने, और हक बातको समझे, जिसकादिल साफहोगा शास्त्रकी बातपर उसकों फौरन ! असर होगा, जिसका दिल साफ न-होगा उसको किसी तरहका असर-न-पहुचेगा, चुनाचे ! जिस घडेमें लहसन और प्याज डालागया होगा उस्मे दूधडालेतो दूधका असर न होगा, क्योंकि उस्मे लहसन और प्याजकी असर पेस्तर मौजूदहै. एक वख्तका जिक्रहै गुरुजीने अपने चेलेकों कहा-तुं ! पापकेकाम मतकियाकर जिससे दौजकमें जापडे, चेलेने जवाबदिया गुरुजी ! में-दोजकका रास्ता कब जानताई, रास्ता बतलानेको तो आपही आओगे, गुरुजीने कहा ऐसीऐसी बातोंसेंहीतो तेरे दिलकी सफाइ जाहिरहै, चेलेने कहा गुरुजी ! वेशक ! ! मेरादिल साफनहीं, आप कोई ऐसी तरकीब बतादेवेकि-जिससे-मरादिल साफहोजाय, गुरुजीने कहा जाओ! किसी हकीमसाहवका घर तलाशकरो, और एक-दस्त-या-उल्टीकी दवा लेलो, दिलसाफ होजायगा, चेला इसमाकुल जवाब सुनकर शीदा हुवा, और चुप होगया ऐसे गुस्ताख चेलेकों ऐसाही जवाब काफीहोताहै,
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( ३६४ )
नसीहत- उल - आम.
६ - हरेक शख्शकों चाहिये बदनपर कपड़ा साफ पहने, चाहे कमकीमत का क्यौं- न- हो ? मगर साफहोना चाहिये, जोलोग दौल तमंद है मगर वसवव कंजूसीके अछेकपडे नही पहनते उनकी कदर नहीहोती, अछेकपडे पहनने से खजाना खाली नहीहोता, खजाना उसवख्त खालीहोगा जब तकदीरका सितारा जोफखायगा. अगर तुमकों रोजगार में पैदाश अछी है - तो - गुलाब केवडा वगेराहके इतरोसें अपने कपडे और लिवासकोंभी खुशबूमें वसायाकरो, मगर याद रहे ! अकेले अपने कोही सिंगारना बहेतरनही, देवमूर्तिकभी इतर वगेरासे तवजो-व- मुदारातकरो, हरेक शख्शकों चाहिकि- अपने हाथमें एक अंगूठी पहनेरहे, ताकि वख्त जरुरतपर काम आसके, अगर वनसकेतो एक जेंवघडीभी पासरखो, ताकि - वख्तभी - मालूमरहे, हरशख्शको लाजिम है जब घरसेवहार जावे कुछ रुपये पैसे भी अपने हमराहरखे, वजह उसकी यह है कि- तुमकोंअगर किसीने अमीर समझकर कुछ सवाल किया तो जरूर उसको न-कुछदेना होगा, या कोइ - दिलपसंदचीज नजरपडी तो उसको मौल लेनेकाभी खयालहोगा, सौचो ? अगर उसवरूत रुपये पैसे पास-न- होंगेंतो क्यों कर मौललेसकोगे ? सोहागन औरतकेलिये नथ - कंगन - और - नेवर पहनना जरुरीयातसेहै, ताकि - मालमहोसके यह औरत सोहाग है,
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७- खानपानकेलिये-- गेहु - चावल - घी - सकर - दूध-बादाम - पिस्ते - किस्मीस - ये - ताकतवर चीजें है, अगर अपना खजाना तरहोतो - इनचीजों का इस्तिमाल रखना बहेत्तरहै, ताकि वदनकीताकात और कौवत बनीरहे, जिस्म में - ताकात - न - होगी तो धर्मभी-न-होस - केगा, हरेकशख्श - जोकि - दौलतमंद है रौजमररा पांचतोले वजन तक - घी - खाया करे, ताकि - जिस्मके आजा और हडियो में ताकात
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नसीहत-उल-आम. ( ३६५ ) बनीरहे, जोलोग रोटियोंके मोहताजहै उनकेलिये यह अमर दुसवार है, मगरदौलतमंदोकेलिये कोइ मुश्किल बात नही, जवार-बाजरीकी रोटीभी अगर दुरुस्तगीके शाथबनाइगइहो-तो-खानेमें कुछ हर्जनही, गरीबलोग इसीसे अपनागुजर कियाकरतेहै, चाहेजितनी मिठाइ खाओ मगर मुकाविले रोटीदालके कोइचीज नही, लाखदवाकी एक दवा दूधहै, जोलोग हमेशां दुधका इस्तिमालरखतेहै ताकतवर बनेरहतेहै, मगर दुध जैसा होनाचाहिये जिसमें पानी-न-मिलाहो, खानाहजम होनेकेलिये दहीभी एक फायदेमंद चीजहै, गर्मीकी मौसिममें जीरा-और-नमक मिलाकर दहीं खानेसे दिमाग तररहताहै, हरेक शख्शकों चाहिये शुभहके वख्त कुछचीज खायाकरे एकदम बारांबजेतक भुखारहना अछानही, जिससे शरीरमें हरारतपैदाहोजाय, अष्टमी चतुर्दशी वगेराह पर्वकेरोज व्रत-उपवासकरनाभी लाजिमहै, धर्मकों भुलजाना और दुनयवीकारोबारमें मशगूलहो जाना ठीकनही, दुनियामें धर्म-एक-आलादर्जेकी चीजहै, गौके दिनोमे शुभहके वख्त-तरचीज-खाना बहेत्तरहै मगर इतना याद रखनाकि निसरोज बदहजमी हुइहो-फाका-रखे, ज्यादहखानाखानेसे आदमीकी जानको तकलीफ पहुचती है,
[दोहा.] दाहनेस्वर भोजनकरे-बाये पीवे नीर, बायी करवट सोवतां-होय निरोग शरीर.
सूर्यस्वरमें खाना और चंद्रस्वरमें पानी पीना तंदुरस्तीकी अलामतहै, एक शहरमें-चारभाइ रहतेथे, उनमें तीनभाइ अछीतरह रोजगारकरके पैदाशकरतेथे और एक भाइ बेरोजगार रहताथा, मगर खानेकेलिये सबसे पहले मुस्तेज होजाताथा, एकरौज तीनभाइयोने मिलकर उसको कहाकि-कुछ धंदेरोजगारमें लगो, बेठेबेठे
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( ३६६ )
नसीहत-उल-आम,
कहांतक खाओगे, मगर यहबात उसको अछीनहीलगी, दुसरेरौज उसने खानेकी जगह एकदिवारमें आलाबनाकर खानेकी थाली उसमेंरखी और खडेखडे खानेलगा, जब तीनोभाइयोंने देखा और पुछाकि-क्यों ! आज क्याडंग निकालाहै, ? जो-खडेखडे खारहेहो उसने जवाब दिया जिनको हमारा बेठेबेठे खाना नागवार गुजरताहो उनके सामने हम वेठेवेठे क्यों खावे ? खडेखडेही खालियाकरेंगे, तब तीनोभाइयोने कहाखूबसमझा ! अकलमंदोका यहीकामहै जोकहे कुछ और समझेकु छ, हमनेकहाथाकुछ धंदारोजगारकरो, तुमने यह ढंग निकाला इस मिशाल का मतलब यहहैकि-जोकोइ-अपनेकों नसीहतदे उनसे गुस्ताखी करना सहेज नादानी है, जैसे खानपानसे
औरहवासे बदनकी हिफाजत किइजातीहै वैसे मकानसेभी करनाचा. हिये, जिसमकामें हवाकी आमदरफत बनीरहतीहो-बदब-न-आती हो, और अंधेराभी-न-रहताहो ऐसेमकानमें निवास करना चाहिये, जिसमकानमें वारीशकेदिनोमें पानी गिरताहो उसमें रहनावसना ठीकनही, मकानवनानेकी तरकीब मुल्कमुल्कमें अलग अलगहै, मका नके दरवजे और बारीये ऊंचीरखना चाहिये, ताकि-आदमीके सीरकों चोट-न-लगे, चुनाचे ! एकशख्शने मकान नया बनाया, मगर दरवजे उसके बहुत छोटेरखे, हरवख्त जाते आते सीरमें चोटलगनेका खतराथा, एकदफे उसीकेसीरमें इसकदर चोटलगीकिबेहोशहोकर गिरपडा, और खुनभी निकलआया, कहिये : ऐसे छोटे दरवजे रखने से क्या फायदा, ?
९-एकसो-आठहाथ-लंबाघर-चारोतर्फ हवादार कमरे वीचमे चौक-और जिसतर्फ देखो चांदनाहो ऐसे घरमें रहना निहायतउमदावातहै. मकानकी सीढी चौडीबनाना चाहिये, जो-न-बहुत उची और-न नीचीहो, जिसपर बुढा और लडका ब-खुबीचढसके,
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नसीहत--उल-आम, (३६७) घरकी दिवारपर चित्राम करानातो-लडाइका देखाव-सांप-कौआ या-विनागर्दनके आदमीका चित्र-नही-खीचवाना चाहिये, देवविमान-नाचतीहुइ परी-बागवगीचे-फलफुल-और-मनलिशका चित्रामबनाना अछाहै, छोटेघरोमें रहना जहांकि -हवाकी-आमदरफत न-हो-बिल्कुल ठीकनही, आजकल कइजगह देखतेहै-तो-छटी छोटी कोठरीयोमें लोग अपनी औकातबसर करतेहै, जिनकेपास दौलत नहीं है पूर्वजन्ममें पुन्य कम कियाहै उनकेलिये अमरलाचारी है,दुनि यामें चक्रवर्ती जैसे बडेबडेराजे होगये जिनकेघर-नवनिधान-चौदहरत्न-हाथीघोडे-जवाहिरात-सोना-चांदी-नोकर-चाकर-म्यानेपालखी और छडी चवर मौजुदथे-वेभी पुन्यसे सबचीज पायेथे,
१०-सचबोलना और धर्मपर कामील एतकात रखना हरेककेलिये फायदेमंदहै, आजकरनेका काम कलपर मतरखो, आदमी जैसे दुश्मनसे डरताहै अगर पापसे डरे तो क्याही ! उमदा बातहै, दो-आदमी-वातकररहेहो विनाबुलाये जाना मुनासिब नही, गुनहगारकी माफी उसवख्त होसकती है जब-वह-अपनी-खताका कायलहो, जहां नादानोकी मजलिश मिलीहो वहां नसीहतकरना कारआमद नही. नादानदोस्तसे दानादुश्मन बहेत्तर, सबदिन एकसरखे किसीके नहीरहते. रामचंद्रजी लछमननी-और-पांचपांडव जैसे इकबालमंद और खुशनसीबोंकोंभी बनवास करनापडाया, कहांतक वयानलिखे बहुतेरीमिशालै मौजूदहै, तदवीरकरतेहुवेभी काम उल्टा होजाताहै तो समझनाचाहिये तकदीर अपनीअछीनही, तकदीर उल्टीहो और काम बिगडजाय-तो-उसका रंजकरनाभी लाहासिलहै, जहां बहुतसे बेंइल्मलोग बेठेहो-वहां-इल्मी तकरीर करना फायदेमंद नही,
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(३६८)
नसीहत-उल-आम.
( अनुष्टुप्-वृत्तम् ) कः कालः कानि मित्राणि-कोदेशः को व्ययागमौ, कश्चाहं काच मे शक्ति-इतिचिंत्यं मुहुर्मुहुःः, १,
हरेकशख्शकों लाजिमहै कोइबात मुहसे निकाले तो इतनीचीजोका खयाल अवलसे करलेव, जमाना कैसाहै ? मेरेदोस्त कौनकौनसेहै ? किसमुल्कमें-में-बेठाहुं ? कितनाखर्च और कितनीआमदहै ? में-कोनहुं और मेरी ताकात कितनी है ? इनबातोंको पहले सौचलेवे, दोस्ती उसकेशाथ रखनाचाहिये-जो-आलीहिंमतहो, जिसकादिल साफहै-वो-हमेशांपाकहै, बखील आदमी खर्चनहीकरसकता, अखबारवाले हमेशां कल्मसे जंगकियाकरतेहै, जो सभा जिसकामकेलिये मुकरर किगइहो-और-वह-उसकामको-न-करसकेतो उसको नाममात्र सभा कहना चाहिये,
११-जोलोग कहतेहै औरतकों इल्मपढाना नहीचाहिये यह उनकी भुलहै, मौसिमे जवानोमें जैसा कौनमर्द-या-औरतहै जोदामे इश्कमें-न-फसाहो, लेकिन ! तारीफ उसकी है,-जो-फंदेइश्कलें बचारहे, अगले जन्मकी नेककिस्मतसे आदमी खूबसुरत रुप पाताहै, ख्वाह ! मर्दहो -या-औरत ! मुवारकचहेरा-और-हुस्नोजमालभी एकतरहका जादु समझना चाहिये-कइलोग दुसरेकामोमे बहादुरी करसकतेहै लेकिन ! आलादर्नेका वहादुर-वो-है-इश्कसे फतेहपावे, हरेकशख्शको मुनासिबहै मावापकी फरमावरदारी करे
और यहभी याइरहे ! औरतकी त केदारीकरके मातपिताकों तकलीफ न-देवे,-जीव अनादिहे इसका बनानेवाला कोइनहो, आराम और तकलीफ अपने कियेहुवे-कर्मोका फलहै,-धर्मप्रवर्तक तीर्थकर सर्वज्ञ होते है, नेककामसे बहिस्त मिलताहै, और बदकामोंसें दौजक, दौ
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नसीहत- उल - आम.
( ३६९ )
लतपर घमंड करना ठीकनही, गोस्तखाना-और-शराबपीना मुताविकधर्मशास्त्रके फरमानसे पापहै, - जोशख्श अपने माबापकों गाली देता है पुरानादान है, जोशख्श अपनी पैदाशमेंसे आधा हिस्सा धर्मके काममें खर्चकरे उसकी तारीफ है, जो रुपये में चारआने खर्चे -वहदोयम दर्जे - और - जो एकरुपये में एक आनाभी धर्ममें खर्च करे - वोतीसरे दर्जे पर है, जोलोग बिल्कुलखर्च - धर्मकाममें - नही करते बडी भुहै, पेस्तरके लोग जब बुढापेके दिन आजातेथे दुनयवीकारोबार छोड़कर दीक्षा इख्तियार करते थे - या - तीर्थ भुमिमेंजाकर धर्मकरतेथे, बहुतसेलोग आजकल इसकामको भुलगये है,
१२ - पृथवी स्थालीके आकार गोलहै, और घुमतीनही बल्कि ! कायम है, चांद सूर्य बेशक ! घुमते है, अगर पृथ्वी घुमतीहो-तोएकशहर जो दुसरे शहरसे - उत्तरतर्क है कभी दखनतर्फ होजाना चाहिये, और जो दखनमें है उत्तरमें होजाना चाहिये, दुसरी दलील यहहै कि- किसीशहरमें समझो दोघंटतक वारशहोती रही इधर जमीन फिरनेवालोके फरमानसे फिरतीहुइ जमीन कोसोतकदूर चलीगइ, फिर वहांके तालाब पानीसे - न - भरनाचाहिये. और भरजाते है यह आमलोग अपनी आंखोसे देखते है इसकी क्यात्रजह, ? तीसरीदलील यह है कि - एक - परींदा अपने मालेसे आस्मानतर्फ उडा और कुछदेरतक सफरकरता रहा, इस अर्सेमें जमीन फिरतीमाननेवालो के खयालसे जमीन कोसोतक दूरचलीगई, फिर वह परींदा अपने मालेको कैसे पासकेगा ? और सब देखते है पासकता है, इसका क्यासबब, ? इल्मनजुम एक उमदा चीज है मगर जाननेवाला कामीलहोनाचाहिये, कवि होना यहभी एकइल्म और अकलके ताल्लुक है, हरकोई कहे - - कवि - बनजाउ तो यह होनही सकता, -
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(३७० ) नसीहत-उल-आम,
१३-जबकिसीके घर गमीहोजाती है चाहे-वो-अपना दुश्मनभी क्यौ-न-हो ! उसवख्त उसके घर जरुरजाना चाहिये, जिंदगीका कोइभरुसा नही-जो-कामधर्मका करलिया वही बहेत्तरहै. जोलोग कहते है हम दीक्षा लेनेका इरादा-नो-करने है मगर क्याकरे ! पढे लिखेनही, कोडकहते है हम नीयोंकी जियारत जाना वेशक ! चाहते है मगर फुरसत नही, ये-सब उनके बहानेहै, सचेदिलसे जोशख्श दीक्षा इख्तियारकरना-या-तीयों को जानाचाहे उसको कौनरोक सकताहै, ? दुनिया में तकदीर बस्ने मालाहै तदबीर मुकाबिले उसकेकोइचीज नही, तदवीर चुकनासकती तकदीर नहीं चुकती, समझोकि वगेरतदवीरकेभी राज्य मिलसकता है जब नकदीर सीधी हो,-आमलोग फायदेहीकेलिये तिजारतकरले है मगर जबतक नकदीर यावर-न-होशिवायनुकशानके कोइबात हासिल नही होती,
शेयर यावरी ताले करे-तो-किमिया क्या मालहै, ! शंगरेजा हाथमें-लोगे तो जर होजायगा, १,
एकशख्श पेस्तर गरीबी हालतमेधा, बाद चंदरौजके किसीएकआला दर्जेके ओहदेपर पहुचा, और दौलतमंद होगया, अगली हालत जाननेवाला एक दोस्त उसका इसइरादेसे उसके पासगया कि-में-कुछ-इससे फायदाहासिल करं, इधर-वह-दौलतमंद अपने ओहदेके घमंडमें इसकदा चकचूरथा कि-अपने दोस्नको जानताहुवाभी मुलगया, और पुनेलगा-तुं ! कोनहै ! ! और क्यौं ! आया ! ! कदीम दोस्त ने कहा, ठीक है वह दिन भुलगया जो मुजसे उधारलेकर अपनागुलर करताबा, आज बडीवातें बनाताहै, इसबातको मुनकर ओहदेदार शर्मीदा होगया और घमंड उसका उतर
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गुलदस्ते-जराफत. ( ३७१ ) गया, हरेकआदमी दौलत और ओहदेके घमंडमें-न आवे, और अपने दोस्तोंकी यादीरखे,
[दोहा ) चलत कलम सुकत अखर-यही नेहका मूल, नेह छांड नीलो रहे-ताके मुखपर धूल, १,
T [ गुलदस्ते-जराफत, ] [ एक-कंजुस-शेठ-और शेठानीका लतिफा, ]
१-किसीदिन एकशेठ अपनी शेठानीसे कहनेलगे इसवख्त हमारेपास इतनाधनमाल जमाहै, अगर हमारी सातपीढीतक लडके बाले खावे और मौजकरे तोभी कुछ अंदेशानही, लेकिन ! आठ. मीपीढीकी औलाद क्याखायगी इसबातकेलिये फिक्र हुं. शेठानी बोली खूबकहा ! फिक्रमंदहो-तो-आप जैसेहीहो, क्या ! जोजो
औलाद होतीरहेगी अपनी अपनी तकदीर शाथ-न-लायगी? और यहभी खयालकरोकि-बाद अपने मरनेके दूसरी पीडीकी औलादही अगर सबधनमाल खोबेठेगी तो तिसरी पीढीकी औलाद क्याखायगी ? नाहक ! फिक्र करतेहो. जोकुछ धनमाल अपनेपासहै चैनसे खाओपीओ और धर्ममें खर्चकरो,
[दोहा. ] पानी बात्यो नावमे-घरमे बात्यो दाम, दोनो हाथ उलेचिये-यही सयानो काम, १,
देखो ! अपनी बिरादरीमे कइ जैसेभी लोगहै जिनकेपास एक दिनकाभी खाना मौअसरनही तोभी-वे-अपनी तकदीरपर बेफिक रहा करतेहै और आप आठमी पीढीकी फिक्र लारहेहो, इस मिसालका मतलब यहहैकि-कलकीभी-फिक्र-नहीकरना तकदीरका चक्र
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( ३७२ ) गुलदस्ते-जराफत. हमेशां फिरतारहताहै कोइदिन अछा-कोइदिन बुरा, मगर-हां ! जो कंजुसहोतेहै-वे-जैसे फिक्रमेंही गिरफतार रहाकरतेहै, धर्ममें खर्चकरना नही और जैसेही वहाने पेंशकियाकरतेहै, मुताविक धर्मशास्त्रके देखाजाय तो लाजिमहै जोकुछ बनपडे धर्मकाममें खर्चकरना और खाने पीनेमें कंजुसाइ नहीकरना, पुर्वजन्ममें धर्मकियाथा तो यहांधनपाया, अगर यहां-न-करोगे आगे क्यापाओगे ? बहत्तरहै इस बातकी फिक्रकरना, एक कंजुससे एक शख्शने पुछाकि-कपडेकैसे पहनना चाहिये, उसनेकहा कपडे ऐसे पहनना चाहिये जो निकम्मे हो, जिसको दुसरा कोइ उठालेजानेका खयाल-न-करे, क्याकहना ! खूब सलाहदिइ, ! सलाह देने वालेहो-तो-ऐसेहो,
[ एक मालिक-और-नोकरका किस्सा, ]
२-एकशख्शके वहां एकनौकरथा, एकरौज मालिककी तबीयत कुछ नादुरुस्त हुइ नौकरको बुलाकरकहा, जाओ ! हकीमके पाससे दवा लाओ ! नोकर बोला अगर हकीमसाहब घर-न-मिले गेंतो ? मालिकने कहाजाता क्यौनहीं ? बहानेबाजी कररहाहै, नौकरनेकहा अगर उनकेपास दवा-न-होगीतो? मालिकनेकहा तुजकों क्यामालूम दवा-न-होगी, नोकरने कहा, अछा ! जाताहु मगर दवा फायदा-न-करेगीतो, ? मालिक वोले अवे ! नादान ! फायदाहोने-न-होनेसे तुजे क्यागरज ? तूं ! जा, और दवा ला, ! नौकर बोला फर्जकरो दवाने फायदाभी किया मगर आखीर एकरोजतो मरनाही है, फिरदवाकी क्या जरुरत, ?
[ दोहा] चलनाहै रहनानही-चलना विस्वा वीस, थोडे जीवन कारने-कौन गुथावे सीस, १,
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गुलदस्ते-जराफत. ( ३७३ ) ___ मालिकनेकहा यहबात तेरेपरभीतो गुजरेगी फिर नौकरी करने क्यौं आयाहै ? दुसरे नौकरकों हुकम-दिया इसको कानपकडकर घरसे निकालदो ऐसा नौकर किसकामका जो मालिकका हुकमन-माने और गुस्ताखी करे,
[ एक कमअकल लडकेका लतिफा ] ३-एक कमअकल लडका अपनी अम्माका हुकम लेकर नौकरीकरनेकेलिये गेरमुल्ककों चला, अम्माने कहा हरेकके शाथ नर्मीरखना और झुककर चलना, लडका जब घरसेचला, और दोचार कोसके फासलेपर पहुचा, रास्तेमें एक-तालावके-कनारे धोबी कपडे धोरहेथे, सुकायेहुवे कपडे अकसर कभीकभी चौरलोग लेजायाकरतेथे, और धोबीलोगभी हमेशां उसकी ताकमें लगेरहतेथे, पस ! इससुरतमें वह लडका उसरास्तेसे गजरा, जो झुकाहुवा चलाजाताथा, धोबीयोने समझा, सायत ! यहीचौर होगा, इसगुमानसे उसको पकडा और मारपीट करनेलगे, लडकेनेकहा मुजे क्यों मारतेहो ? मेंतो नौकरीकेलिये जारहाहुं. धोबीयोंने कहा ऐसा झुक कर छी पेहुवे क्यों जाताहै ? सिधाहोकर चलाजा, और साफ होजा लडका जब आगेको बढा-तो-क्यादेखताहै खेतोमें किसानलोग बीज डालरहेथे, देखकर इसनेकहा सब साफ होजाओ ! किसानलोग इसबातसे बडेनाराजहुवे और कहनेलगे अवे ! क्याकह रहाहै सब साफ होजाओ, यूं-क्यों नहीकहताकि-जैसा बहुतहो, इसवातकों सुनकर लडका अगाडीबढा-तो-एकगांवके बहार कइलोग मुर्दालिये आरहेथे, लडकेनेकहा, एसाबहुतहो-ऐसाबहुतकहो.इसबातको सुनकर लोग नाखुशहुवे, और कहनेलगे, अबे! एसामतकहो, यूं-कहोकि-ऐसाकभी-न-हो, लडका इसबातकों खयालमें
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( ३७४ ) गुलदस्ते-जराफत. रखकर आगे बढातो एक दुल्हादुल्हन-सादीकरके बरातकेसाथ आरहेथे, देखकर बोला ऐसाकभी-न-हो, इसबातकों सुनकर वरातीलोगबहुत गुस्सेहुवे और कहनेलगे ऐसाक्यों कहताहै, ? यूं कहोकिऐसा बारबारहो, फिरआगे बढा-तो-राहमें राजाके नौकर-दोचार इज्जतदार महाजनोकों किसीखताहपर गिरफतार करके लेजारहेथे लडकेने उनको देखकर कहा ऐसाकाम बारबारहो, तब उनकेशाथी लडकेपर नाराजहुवे, और कहनेलगकि-ऐसा क्यों नहीकहताकिजल्दीछुटजाय, इसबातकों यादकरके आगेजाताहै-तो-एक बागमें दो-जमातवाले-इकठेहोकर दावतकर रहेथे और कहतेथेकि-क्या ! मुबारक रौजहै-जो-आजहम इकठे होगये, लडका वहां पहुचा
और कहनेलगा जल्दी छुटजाय, तब उनलोगोंने खयालकिया, यह कौन कमअकल लडकाहै-जो-एसाबुरा सकुन निकालताहै, गरजकि लडका-वहांसे आगेको बढा और एकगांवमें गया, वहां एकचौधरीकेपास नौकररहा, जब चंदरौज गुजरे और एकरौज चोधरी पांचदश आदमीयोंकी मजलिशमें किसी बातका निवेडा कररहेथे चौधरानने नौकरसे कहा, जाओ ! चौधरीजीको बुलालाओं, जवारकीरोटी तयारहै ठंडा होजायगी, नौकरने मजलिसमें आनकरकहा चौधरीजी ! चलिये ! जवारकी रोटी डंडी होजायगी, चौधरीजी इसबातसे शमींदा हुवे और घर आनकर नौकरसे कहने लगे ऐसी कोइवातहोतो मजलिसमें नहीकहना, जब मजलिस बरखास्तहो धीरेसे कहना, एकरोनको वातहै, चौधरीजीके घर अंगार लगगइ चौधरानने नोकरको दोडाया, और कहा, जाओ ! चौधरीजीकों जल्दी बुलालाओ, चौधरीजी मजलिसमें वेठेथे, नौकर वहांजाकर बेठगया, और दोघंटेवाद जब मजलिस बरखास्तहुइ धीरेसे जाकर कहा चलिये ! मकानको आग लगीहै, चौधरीजी घर आये और
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गुलदस्ते-जराफत. (३७५) देखातो बहुतसा नुकसान होगयाहै, पस नौकरको कमअकल जान कर उसीवख्त घरसे बहार निकलवा दिया, ऐसानौकर किसकामका-जो-कहोकुछ और समझे कुछ,
[ ऐक शुस्त आदमीका जिक्र, ] ४-किसी जंगलमें एक शुस्तआदमी बेंरके दरख्तकेनीचे लंबा होकर सोरहाथा, इत्तिफाकन ! एकौर दरख्तसे दुटकर उसकी छातीपर गिरा इस अर्सेमें एक आदमी थोडीदुरपर चलाजारहाथा शुस्त आदमीने उसको पुकाराकि-भाइसाहब ! जरा इधरहोतेजाना, उसने समझा सायत ! कोइ जरुरीकाम होगा इस खयालसे उस शुस्तकेपास आया, तब शुस्तने कहा-मेरी छातीपर जो-बेर-गिराहै उठाकर मेरेमुहमें डालदो, इसवातको सुनकर वह आयाहुवा आदमी बोला, अवे ! गवार ! क्या ! तेरेहायसे उठाकर मुहमे नहीडालाजाता ? जो मुजको बुलाया, उसने कहा माफकरना-में-जन्मका शुस्तआदमीहुं-यही-चजहहैकि-आपकों तकलीफदिइ, तब आयाहुवा आदमी कहताहै-में-तुजे तकलीफ देताहुं, तुं ! अपने हायसेही उठाकर बेंर खाले, एसा कहकर रास्तालिया और कहता जाताहै कि-क्या ! खूबआदमीहै-जो-छातीपर गिराहुवा-बेंरभी-उठा नहींसकता, बशर्तेकि-हाथपेर-दुरुस्तहै फिरभी यह हालतहै,
[एक कंजूसका किस्सा.] ५-एक कंजूस अपने घरमें रातकों अकेला सोरहाथा, इत्तिफाकन ! एक चूहा-उसके-पेटपर होकर इधरसे उधर चला गया, फौरन ! कंजूस नींदसे चौंक उठा, और कहनेलगा, हाय ! मान गये, हाय ! मान गये, इसतरह गाफिल होकर बेइख्तियार रोने
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( ३७६ ) गुलदस्ते-जराफत. लगा, पडोसके लोग मुनकर आगये और कहने लगे क्यौं ! भाइ!! किसलिये रोते हो, ? उसने कहा देखिये ! चूहा-मेरे पेटपर होकर चला गया, लोगोने कहा चला गया तो चला गया, ! इसमें रोनेकी-क्या ! बात है, ? कंजूस बोला-में-चूहेके चले जानेपर नही रोता हुं, में-जोरोताहु सो इसखयालसेकि-यह-पंथा बूरी निकली, आज चूहा पेटपर होकर चला गया, कल-सांप-चला जायगा, फिर मेरा जिना कैसे होगा ? लोगोने कहा जमीनपर क्यों सोतेहो ? एक चार पाइ मोललाकर उसपर सोया करो, फिर जैसी आफत क्यों आयगी, ? कंजूसने कहा मेरी कंजूसाइ तो आप लोग जानतेही हो इतना खर्च मुजसे कैसे होसकेगा, ? लोगोने कहा-न-होसके तो हमकों क्या ? हम आज पडोसका हक अदा करनेकों आये है, कल हम क्यौं ! आयगे, ! तुम जानो और तुमारा काम, ऐसा कहकर चले गये, ठीक कहा है कि-कंजसोसे-न-खर्च किया जाय, न-खाया जाय,
[एक साहकार और धोबीकी तकरीर.] ६-वि.सी साहूकारने अपने धोबीसे कहा-तू-वडा गाफिल है और कपडेकों असा धोता हैकि-एकएकके दस दस बना देता है, धोबीने जवाब दिया स्यात आपका कहना सच होगा, मगर आप धुलाइ तो एक कपडेके हिसाबसेही देते है, साहूकारने कहा अबे ! गुस्ताखी क्यों करता है ? कपडे फाडकर वरवाद करना और फिर जबाबमें चालाकी ! जा चलाना ! ! आजसे कपडे दुसरेसे धुलवाये जायगे, तब धोवीकी अकल ठिकानेआइ और कहनेलगा-कसुर माफकिजिये. आइंदा ऐसा-न-करुगा, साहूकारने उसकी आजीजी पर मामूल मुताबिक कपडे उसको दिये और-वहभी-कपडे अछीतरह धोकर लानेलगा,
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गुलदस्ते - जराफत.
[ बेटेकेलिये बापकी हिदायत, ]
७- एक साहूकारने मरतेदम अपने बेटेकों हिदायत कि किकभी धुपमे नही चलना, शुभह शाम मीठा खाना खायाकरना, और किसीको उधारदेना फिर उसे मांगनानही, ऐसा कहकर साहुकार फोतहुवे, इधर बेटेने बाद अपने वालिदके उसी मुताविक वर्तावकरना शुरु किया, अवलतो अपने घरसे दुकानतक रास्तेमें रेशमी और जरीके कपडोसे - चांदनीयां- लगवा दिइ ताकि - बरसे दुकान जाते आते धुप-न- लगे, क्योंकि वालिका फरमानाथा धुपमे नही चलना, दुसरा फरमाना - जो मीठाखाना खाने काथा उसका बर्ताव इसतरह करने लगा कि - नामी - हलवाइयोंको घरपर नौकर रखलिये. और उनसे कह दिया कि - रौजमररा - तरहतरहकी मिठाइ बनायेकरो, गरज कि वह हमेशां मिठाइ खायाकरताथा, तीसराफरमाना वालिदका यहथाकि - उधारदेकर मांगना नही. सो जिसको उधारदेताथा मागता नहीथा, इसतरह फिजहुल खर्चकरते करते दोलत उसकी फनाहोगई, और जब मुफलिसी हालत में आनपडा, अपने वालिदके दोस्तसें जाकर मिला, और कहने लगा क्या सब है - जो - हमअपने वालिद के फरमानपर चले और फिरभी नुकशान उठाया ? क्या ! हमारे वालिद बुजर्गवार दुश्मनथे- जो ऐसी हिदायत करगये तब वालिद के दोस्त ने कहा, अबे ! नादान !! क्या कहरहाहै, ? तेरे वालिदने तो ठीकही कहाथा, तुं ! उल्टा समझगया इसका कोई क्या करे ! सुन !! तेरे वालिदने जो कहाथा धूपमें नही चलनासो - बात यह थी कि - दुपहर से पहले घर से दुकानपर चलेजाना और शामको वापिस आना, ताकि धूपसे - वचावरहे, तेने उल्टी समझसे रास्तेमें रेशमी चांदनियां लगवादिइ, दुसरीबात यहथों कि - भूख लगे उसवख्त खायाकरना विनाभूखके खाना न खाना, क्योंकि भूख
( ३७७ )
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( ३७८ ) गुलदस्ते-जराफत. केवख्त-जो-चीज खाओ मीठीलगेगी, तेने उसकी एवजमें मिठाइ खाना शुरुकिइ, तीसरीवात यहथीकि-जिसको माल उधारदेना तो ज्यादह रकम अपने पास रखकर देना, ताकि-वह-अपनाघर ढुंढता चलाआवे, अपनेको उसके घर जानेकी कोई जरुरत -न-पडे, तेने उसका माइना उल्टा समझाकि-उधार देकर मांगने-न-गया, अब गौरकर ! इसमे भुल किसकी है तेरी-या-तेरे वालिदकी, ? इस बातकों सुखकर लडकेने अपना होस संभाला, और अगले वर्तावकों छोडकर वालिदको हिदायतपर कायम होगया. हरेक शख्शकों लाजिमहै अपना भला चाहनेवाले बुजुर्गोंकी हिदायतकों अछीतरह समझे उसपर अमलकर,-कभी नुकशान-न-होगा,
[एक पंडित और वेसमज विद्यार्थी,-] ८-एक राजासायने अपने शहरसे एक वात पुछनेके लिये बुलवाये, और नौकरले करदियाकि-अगर-पंडितजीको फुरसतन-होतो उनके किसी विद्यार्थीकों लेआना, नोकर पंडितजीके पास गया और कहा आपकों राजासाहव यादकरते है, उनकों फुरसत नहीथी एक विद्यार्थीको जाने के लिये तयारकिया, और चलतेवख्त उसको समझा दियाकि-देख ! तुं ! राजाजीके रुबरु जाताहै, जो कुछ राजाजी पुछे नर्मी और मुलायमीसे जवाबदेना, सख्त बातचीत मत करना, और जोकुछ पुछे उसका मीठी जबानसे उत्तर देना, विद्यार्थी इसवातकों खयालमें रखकर राजाजीकी खिदमतमें पहुचा, राजानीने पुछाकि-अछा ! तुमआये हो ! ठीक है, खेर ! यह बतलाओ ! आजकल तुम पंडितजीसे कौनकौनसी किताबे पढते हो ? विद्यार्थीने सौचाकि-पंडितजीका फरमानहै नर्म और मुलाइम वात बोलना, जवाव दियाकि-राजाजी ! रुइ-रेशम-औरमखमल वगेरा, फिर राजाजीने पुछा तुमारे खानेपीनेका क्या दंग
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गुलदस्ते-जराफत. (३७१) है, ? जवाबमें विद्यार्थीने कहा लाडु-पेंडा -और-बर्फी, राजाजी इन बातोंकों सुनकर समझगये लडका नादानहै, फौरन ! उसको वापिस जानेका हुकम दिया, और कहला भेजाकि-तुमारे-पंडितजीकों भेजो विद्यार्थी पंडितजीके पास आया, और कहा आपको राजाजीने बुलवाये है, पंडोतजीने कहा-ठीकहै, मगर तुजसे क्या क्या! बातें हुइ वतला, विद्यार्थीने कहा, मुताविक आपके फरमानके सुलाइभ और मीठी बातेही किइहै, मुलाइम चीनोमें-रुइ-रेशम-मखमल कह सुनाया, और मीठी चीजोमें लाडु-पेंडे-वी-वगेरा कहाहै, पंडितजीने कहा, अबे ! नादान ! ! मेने तुजसे क्या कहाथा, और तुं ! क्या समझा ! ! मूर्खताके जवाब देआया विद्यार्थी बोला, नाराज क्यों होतेहो, ? जैसा आपने फरमाया मेने उनमुनय किया, इसका मतलब यह हैकि-नादान-विद्यार्थी असहीहुनाकरते है, हरेकको, चाहिये अपने मालिकके कहनेको समझे और उसपर अमल करे इसनादान विद्यार्थीकी तरह-उल्ला-खगाल-न-करे,
[वालिद और लडकेकी गुफ्तगु, ] ९-किसीएक साहूकारका लडका जलमें तैरनेकेलिये नदीपर जानेलगा, वालिदने उसको मना किया, मगर उसने हरचंद-नमाना, तब वालिद गुस्सेहोकर कहनेलगे, भला! बच्चा ! तुं-जा !! अगर पानीमें डूबगया तो असा पिटुंगाकि-तुंभी याद करेगा, लडकेने कहा क्या खूब बातहै, जब-में-पानीमें ड्रबजाउगा. तो आप किसकों पिटोगे ? वालिदने कहा जब से-तु-पैदाहुया है तेरा यही हालहै, और आजतक-में-तेरी गुस्ताखीया जानचुकाहुं
[हिकायत एक गुरुजी और श्रावककी, ] १०-एक श्रावक अपने गुरुमहाराजकी खिदमतमें हमेशां हा
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( ३८० ) गुलदस्ते-जराफत. जिर रहा करताथा, चौमासेके चार महिने तक उसने इसकदर खिदमत किइकि-जैसी-किसीने-न-किइ होगी, चंदरौजमें ऐसा मौका आगयाकि-उसकी दुकानमें रुपये पैसेकी तंगी आगइ, खाने पीनेसेभी तंग होगया, एकरोज गुरुजीने उसको पुछाकि-आजकल -तुम-उदास क्यों रहा करते हो ? उसने कहा में-रुपये पैसेसे निहायत तंग होगया हूं, लोगभी कहते हैकि-तुमने-अछा धर्म किया जो खाने पीनेसेभी दरगुजरे, धर्मका फल अछा होनेकी एवजमें क्या सबब हैकि-मेरा काम-विगड गया, गुरुजीने कहा धर्मका फल तो हमेशां अछाही होता है, मगर तुमारे कोइ पूरवजन्मके कर्मोंकानतीजा था-जो-इसहालतमें आगये हो, फिक्र मत करो, तकदीरका चक्र फिरता रहता है. चंदरौजमें जब अछी तकदीर आ जायगी फिर सवकाम सुधर जायगा, बाद चंदरौनके ऐसाही हुवा, और उसके अछे दिन आगये, इस लेखका मतलब यह हैकि-किसी शख्शने-धर्म कीया और उस अर्सेमें उसका काम विगडगया तो-यह-न समजनाकि-धर्म करनेसे बुरा हुवा, धर्मका फल हमेशां अछाही हुवा करता है, मुनासिव है पूरवजन्मके किये हुवे कर्मोके फलपर कायम रहे,
[नवजवान और एक बुढेकी गप्प, ] ११-एक जगह पांचदस जवान आदमी बेठे हुवे अपनी बडाइ कर रहेथे, कोइ कहताथा-मने-पांच घाव लडाइमें तलवारके खाये, कोइ कहता है मेने सात घाव खाये, लेकिन ! मरा नही. इतनेमे एक बुढाभी वहां बेठाथा कहने लगा अये ! जवानो ! ! क्या खयाली खीचडी बना रहे हो ? तुम पांच सात घाव लगनेकी बात कररहे हो, मेने जवानीमें कइ लडाइ लड़ी और इतनेघाव बदनपर खायेथेकि-तीलधरनेकी जगह वाकी नही रहीथी, इसवातकों सुनकर एक नव जवान लड़का बोल उठा, अछा ! आप जरा
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गुलदस्ते-जराफत ( ३८१ ) कपडे उतारिये, हम देखेतो सही आपने कितने घाव खाये है, बुढा हंसकर बोला, न-वह-जमाना रहा, न-जवानी रही, सब जखम मिट मिटा गये, क्या ! देखोगे, ? जाओ! अपने घरका रास्ता लो, कोरीबातें क्यों बना रहे हो, ?
[एक हकीम और मरीजकी तकरीर, ] १२-एक हकीमसाहब अपने जाहिल मरीजसे पुछने लगेकिकहो ! बनिस्बत औरदिनोंके कल तुमारी तबीयत कैसी रही ?
और खाना खुशीकेशाथ खाया-या-नही, ? मरीनने जवाब दिया तबीयत तो अछीरही. खानाभी कुछ खायागया, मगर खुशीकेशाय नही, पुदिनेकी चटनीकेशाथ खायाहै, हकीमसाहबने सोचा ! क्या खूब ! मरीजहै जो हालते बीमारीमेंभी गुस्ताखीकी बातें नहीं छोडता, जाहिरमे कहनेलगे खुशीकेशाथ नहीखाया तो क्या हर्ज है, पुदिनेकी चटनीकेशाथभी खायातो सही, देखलो ! हमारीदवाने किसकदर फायदा पहुचाया-जो-बिल्कुल नहीखातेथे अब खाने तो लगे, अवकहो-तो-ऐसीदवा दु-जो-तुमारा खानापीना बतौर आगेके छुटजाय, मरीजने कहा माफकिजिये, मेरा तो यहीहालहैकि बातबातमें घरकेलोगोसेभी दिल्लगी किया करताहुँ,
[ एक कंजुसका जवाब,-] १३-एक शहरमें एक दोलतमंद शख्श अपनी दुकानपर बेठाहुवा रुपए पैसे गिनरहाथा और अपना हिसाब मिलारहाथा, मगर कुछ गलतीसे हिसाब मिलता नहीथा, इस अर्सेमें एक फकीर उसकी दुकानपर आया, और सवालकिया, यावा ! कुछ दिलवा. इये, जो आगेको मिलेगा, दौलतमंदने जवाबदिया फकीरसाहब ! जोकुछ पूर्वजन्ममें दियाथा यहां मिलाहै, जिसको गिनते गिनते
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( ३८२ )
गुलदस्ते - जरा फत.
थक गयाहु, और नाक में दम आगया है, अब हर्गिज ! - न - दुंगा जो आईदे मिले, और मुसीबत उठाना पडे, आप आगेको बढिये, और किसी दुसरेके पास सवाल किजिये, सायत ! कुछ मिल जायगा,
[ एक हकीम और मरीजका बयान ]
१४- एक मरीजने ऐक हकीमसे अपनी बीमारीका हाल सुनाया, और दवा के लिये अर्ज गुजारीश कि आप मुजे दवा दिजिये, जो कुछ कीमत होगी खिदमत में हाजिर करूंगा, हकीमने उमदा दवा उसको दिइ और वह चंद्ररौजमें अछा होगया, हकीमने कहा अब आपकी बीमारी का होग, दवाकी कीमत भेजवा दिजिये, मरीजने कहा, आपने क्या असी भारी दवा दिइथी ? पांच चार पुड़िये जो दिल्ली उसकी कीमत लेलिनये, हकीम इसबातकों सुनकर अपनी भूलपर दादीम दुबे, और आइंदाकेलिये जैसा अहदकर लिया कि दवा पेस्तर बेलेना चाहिए, क्योंकि आदमी अपना काम निकले बाद अनजान होजाता है, और कुछ देता नही, बहेत्तर है पेस्तरसे होशियार होकर चले,
[ औरत मर्दका मलाइकेलिये झगडा ]
१५ - एक शख्शने अपनी औरतसे कहा कल में एक भैंस खरीदकर लाउडा, औरतने कहा अजीबात है, मलाइ - मेंही खाउगी, मने कहा नहीं ! मलाइतो - में खाउगा, और तुजे कोरी छांछ ढुंगा, इसपर दोनोंकी तकरीर होनेगी यहांतक कि - नतीजा - मार पीटा गया, पडोसी शोरगुल सुनकर दरयाकतकों आये और पुछने लगे क्यों लड़ते हो, ? दोनोंने अपना माजरा कह सुनाया, पडोस कहने लगे क्या खूब बात है ! अबतक भैंस आइ नही और
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गुलदस्ते-अराफत. ( ३८३ ) मलाइके लिये लडाइ, इसमिशालका मतलब यह हैकि-विना-चीज -लडाइ लडना फिजहूल है,
[एक नौकरकी फिजहुल बडाइ ] १६-एक दौलतमंदके मकानपर पनरांसोलह आदमी बेठे बातचित कर रहेथे, जब मालिकने चाहा अब आरामपानेका वख्त करीब आया है, बत्ती बुझाइ जाय इसखयालसे अपने नौकरकों बुलनेके लिये घंटी बजाइ, तब मोहना नामका नौकर भीतर दोडा
और थोडी देरके बाद हसता हुवा बहार आया, दुसरे नौकरोने पुछा क्यों बे ! हसता क्यों है ? मोहने नौकरने कहा, भाइ ! सोलह हट्टेकट्टे जवान बेठे हुवेथे, उनसबोसे एक बत्तीभी-न-बुझी, जब हम गये तब बुझी, देखिये ! नौकरने फिजहूल बडाइ मारी, जोकि उसका-खास काम था किया और फिर बडाइकी बडाइ,
[एक दिवानेका किस्सा,] १७-एक बादशाह किसी दिवानेके सामने गया और कहाकि -तुं कुछ मुजसे मांग, जो तुं मागेगा-में-दुंगा, तब दिबानेने कहा हुजुर ! मख्खीयां मुजे बहुत सताती है, इनको हुकम दिजिये, मुजे-न-सतावे, बादशाहने कहा. अबे ! जो कुछ मेरें हुकममें है ऐसी चीज मांग, यह क्या ! वाहियात मांगता है, दिवाने शख्शने कहा जब मख्खीयेंभी आपका हुकम नही मानती है-तो-और क्या चीज मांगुं ? जो आप देसकोगे,
[एक मुसाफिरका लतिफा] १८-एक मुसाफिर किसी दुसरे गांव जानेके लिये टेशनपरं चला जा रहाथा, और दिलमें समझ रहाथा बारां अभी नही बजेहै, बारा
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( ३८४ ) गुलदस्ते-जराफत. बजे जानेवाली रैल मिल जायगी, रास्तेमें जो लोग मिले उनसे पुछने लगा, क्यों भाइ ! वारांसे ज्यादह-तो-नही बजे, रैल मिल जायगी, ? उनोने कहा हमारे यहां बारांसे ज्यादह कभी नहीं बजते, रैलको गये आधा घंटा होगया है, जल्दी जाइये सायत ! मिल जायगी,
[फुलकीबडाई] १९-एकरौज अखबर बादशाहने सरेदरवार अपने मुसाहिबोंसें पुछाकि बतलाओ ! फुलोंमें कौनसा फुल बडाहै, इसबातपर कइ मुसाहिबोने कहा फुल गुलाबका बडाहै, कइयोने चंपाका और किसीकिसीने जाइका फुल बडा कहा, आखिरकार जब बीरबल तक नौबत पहुंची-तो-उनोनेकहा जहांपनाह ! सबसे बडाफुल कपासकाहै जिससे तमाम आलमका लिवास बनताहै और उनके वदनकी हिफाजत होतीहै, बादशाह इसबातकों सुनकर निहायत खुशहुवे और बीरबलकों इनाम दिया,
[एकबुढेकी चालाकी] २०-एक वापबेटा बाजारसे सौदा लिये आरहेथे. बापके सीरपर तेलसे भराहुवा घडाथा, और बेटा दुसरी चीजेलेकर पचीस कदम के फासले चलाआरहाथा, रास्तेमें बुढेने एक सोनामहोर कचरेमें पडीहुइ देखी, मगर दुकानदार लोग देखरहेथे, इसलिये उठालेनेकी सुरत-न-वनी, तव अपने सीरपर जो तेलका घडाथा जमीनपर गेर दिया और तेलजमीनपर वहनेलगा, तब बुढेने तेलके बहाने महोर अपने हाथ करलिइ दुकानदारोने बेटेसे कहा तेरे वालिदने तेलका घडा जमीनपर गिरादियाहै, तुं ! जल्दी जा बेटेने कहा इसवातकी कोई परवाह नहीं, में-खूब-जानताएं-मेरे वालिद ऐसे अनजान नहीं जो वगेरफायदेके घडा नुकशान करे फायदा देखकरही यहकाम किया होगा,
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गुलदस्ते-जराफत. (३८५ ) गरजकि-बापबेटे-अपना मतलव करके आगे बढे पीछेसे लोगोको मालुम हुवा किसीकी सोना महोर पडीहुइ देखकर बुढेने यहकाम कियाथा,
[ दोस्तोंकी बातचित,] २१-किसी शख्शके पांचलडकेथे और-वे-अपने वालिदके पास खेलरहेथे, इतनेमें एक दोस्त उसका वहां आन पहुचा, और बातें होनेलगी, पांचलडकोंका बाप कहनेलगा आजकल एकरुपयाभी-में-पैदा-नही करसकता, दोस्तने कहा वजाहै, मगर यहतो बतलाइये फिर पांच लडके कैसे पैदा किये, ? पांचलडकोंका बाप बोला, खुबकहा, में-क्या कहताहु और आप जवाब क्यादेरहेहो जैसा किसीने कहाहै, ''पुछी जमीनकी-तो-कही आस्मानकी,"
[एक घोडे सवारका मजाक,-] २२-एक शख्श घोडपर सवार होकर जंगलकी तर्फ घास लानेके लिये गया, और घासकी गठरी बांधकर अपने सीरपर रखी,
और घोडेपर सवार हुवा, जब-वह-गांवके करीब आया एक शख्शने पुछा कि-आपने-घासकी गठरी सीरपर क्यों रखी है, ? सवारने जवाब दिया घोडेकों ज्यादह बौज-न-लगे इसलिये सीरपर रखी है, मुलाकाती आदमी बोला, तारीफ है आपकी उमदा अफलपर, अकलमंद होतो जैसे हो,
[दुनियाकी हिसका किस्सा, ] कश्चित् काननकुंजरस्य भयतो नष्टः कुवेरालय शाखासु ग्रहणं चकार फणिनं कूपे त्वधो दृष्टवान् वृक्षो बारणकंपितोपि मधुनो बिदू नितो लेढी सः तल्लुब्धोमरशब्दितोपि-न-ययौ संसारसक्तो यथा,
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( ३८६ )
गुलदस्ते - जराफत.
"
२३ - एक आदमी जंगली तर्फ जारहाथा, एक हाथी भागता हुवा पीछे आया आदमी वडाया और एक दरख्तपर चढ गया, हाथ भी पीछे पीछे आकर उस दरख्तकों हिलाने लगा, आदमी दोनों हाथो से एक शाखकों पकड़कर लटक गया. और नीचे देखता है - तो एक कुवा नजर पडा, उसमें चार सांप मुह फाडकर वैठे हुवेथे, दरख्त के उपर के भागमे मख्खीयोंका एक छाताभीमौजूदथा, और उसमे सहेत के बंद गिर रहेथे, इस आदमीके मुहमें एक एक बूंद पडताथा, जिसशाखाकों पकड़कर वह लटक रहाथा उसको सफेद और शाम चूहे भी काट रहेथे, पस ! इससुरतमें आस्मान से एक विमान आया, और उसमेसे एक देवता इस आदमीकों कहने लगाकि - अगर- तुमको अपनी जानसे वचनाहो - तो - इस विमान में बैठ जाओ, आदमी कहने लगा अच्छा ! ठहरिये, एकबुंद सहतकी और मुंहमें आजाय फिर-में- आता हुं, देवताने सोचा ! देखो !! यह अपनी जानसेभी सहेतकी बुदकों बढकर समझता है, फौरन ! अपने विमानको लेकर चले गये, इधर आदमी शाखा कटजानेसे hai frrust और मर गया, इस मिसालका मतलब यह है कि - आदमी - दुनियाकी हिर्समें पडकर अपनी जान खोलेता है, मगर धर्म नही करता, कुवा - जो था सो संसारथा, और उसमें क्रोध, मान माया, लोभ-चार सांप थे, हाथी - जो था वह इसका काल था दो - चूहे - काले और सफेद रात और दिनथे, और सहतका छत्ताजो था दुनियाकी हिर्सथी, विमान लेकर जो देवते आस्मानसें आयेथे-वे- धर्मके बतलाने वाले गुरुलोगथे, और दरख्तपर लटकने वाला आदमी संसारी जीवथा, जिसने देवताका कहना - न- मानकर अपनी जान - खो -लइ, इसलिये हर आदमीकों चाहिये दुनियाकी हिर्सपर ज्यादह खयाल - न रखे, और धर्मपर पाबंद रहे,
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गुलदस्ते - जरफत.
[ एक कंजूसका - लतिफा, ]
२४ - एक गांव में एक कंजूस रहताथा - जो खर्च ज्यादह-नहोजाय इसखयाल से पांवमें जूतातक नहीं पहनताथा, जब जंगलमें जाता आताथा इसकदर कांटे लगजाया करतेथेकि - पांवमेसें लोहू बहने लगताथा, मगर वहां कांटे नहीं निकालताथा, घर आनकर निकालताथा, इस खयालसेकि - दस पांचरौजके काटे इकठे होजायगें तो एकरौजी चिलममें बतोर लकडीके कामदेयगें, एकरौजका जिक्र है उसका एक दोस्त दुसरे गांवकी सफरकों जाने लगा, कंजूस कहता है मेरे जैसा कोई और कंजूस दिखपडेतो मुजे खबर देना मेरी लडकीकी सादी करनी है, दोस्त जब दूसरे गांवको गया तो वहां एक ऐसे कंजुसको देखाकि जो रसोडेमें बैठा हुवा है, और घीका भराहुवा वर्तन सामने रखकर रोटी रुखी खाता है, दोस्तने खयालकिया यहभी पुरा कंजुस है, जब सफरसे वापिस आयातो अपने दोस्तों कहता है, तुमसेभी एक ज्यादह कंजुस मैनेदेखा, जो रोटी - घीके सामने दिखाकर रुखी खाताहै, कंजुसने कहा यहभी मेरेलाइक नही, क्या ! ताज्जुब है कि कभी - उसघीमें रोटी डुबोदेवे और खावे, इससेंभी कोइ ज्यादह कंजूस मिलेतो मुजे कहना, देखिये ! दुनिया में ऐसे भी कंजुस होते है - जो - अपने खानपान के लियेभी रुपया खर्च नही करसकते, धर्ममें - तो - क्या खर्च करेंगें,
( ३८७ )
[ एक शैर और सूअरका मुकाबला, ]
सत्रे क्रोडमृगाधिपौ च मिलितौ ब्रूते हरिं सूकरो, वादं त्वं वदरे ! मयासह हरे नो चेन्मया हारितं, श्रुत्वा तद्वचनं हरिर्वदति तं त्वं याहिरे ! सूकर, लोकान् ब्रूहि मयाजितो मृगपति जनंति मे ज्ञा बलं,
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(१८८) गुलदस्ते-जराफत.
२५-किसी जंगलमें एक सूअर चला आरहाथा, राहमें उसकों एक और मिला, सूअरने कहा-तुंवाद मुदतके आज मिला है, अबमें-चाहता हुं-आज तेरा और मेरा मुकाविला होजाय, वरना ! तुजको-में-यहांसे जाने-न-दुंगा, अगर-तुं ! लडना-नही चाहता तो कहदे-में-हार गया, शेरने कहा अबे ! सूअर । तुं मेरे सामने एक थप्पडका साथी है, क्या ! बकवाद कररहाहै. में-जंगलका बादशाह होकर तेरे जैसेके शाथ मुकाबिला करके क्या करूँ ! तुं ! मेरे मुकाबिलेके लाइक नही, फरजकरकि-मेने-तुजकों मारभी दिया तो मेरी इसमें कुछ तारीफभी नही, लोग कहेगे शैरने मूअरकों मारातो क्या बहादूरी किइ ? इसलिये-में-तुजसे लडना नही चाहता, वेशक ! तुं ! शहरमें जाकर कहदे, लोग इसबातको बखूबी जानतेहै कि-शैर-हरहालमे सूअरसें कभी-न-हारेगा, तुं-अगरलाख बातभी बनावे मेरा क्या ! बिगडेगा, असा कहकर शैरने अपना रास्ता लिया,
गछ मूकर ! भद्रं ते-चद सिंहो मयाजितः पंडिता एव जानंति-सिंहसूकरयो बलं, १
__ [ दोस्तोंकि बातचित, २६-एक वख्तका जिक्र है रास्तेमें चलते वख्त-दोदोस्त मिले, एकने पुछा क्यों भाइ ! खेरियततो है, ? दुसरेने कहा आपकी महरबानीसे-में-दोरौज हुवे बुखारसे घिरा हुँ, दोस्तने कहा इसमें मेरी महेरबानी कैसी ? यूंक्यौं नही कहतेकि-मेने-बहुत कुछ खाना खालियाथा जिससे बुखारने घेरा है, तब चालाक दोस्त शर्मीदा हुवा और कहने लगा सायत ! ऐसाही होगा, एक शख्शकी भेंस मरगइ, जिसकोलिये वह रौने लगा, तब उसके एक
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गुलदस्ते - जराफत.
( ३८९ ) दोस्तने आकर पुछा कि क्यौं भाइ ! किसलिये रोतेहो ! उसने जवाब दिया, आज मेरी भेंस मरगई, जो सारे कुनबेकों परवरीश करतीथी, दोस्त बोला ! भाइ ! खातिरजमा रखो, हमें तुमें काले रंगकी चीज रास्त नही, क्योंकि - आज मेरीभी एककाली इंडिया फुट गई है, इसबात सुनकर वह बोला ! ठीक है, जखमपर नमक लगाना इसीका नाम है, कहां दोपैसेकी इंडिया और कहां सोरुप - येकी भेंस, !
[ जरबुल - अमसाल, ]
२७ - १ - नयी बात नवदिन तानी खेंची तेरहदिन, २- अन होनी होनी नही होनी होयसो होय, ३ - अपने अपने कामको गरजी है सबकोय, ४- आप मरे विनस्वर्ग-न-पहचे, ५- जैसे कंथा घररहे तैसे रहे विदेश, ६ - अंधेरनगरी चोपट चौपट्टराजा टकेसेर भाजी टकेसेरखाजा, ७ - सबकी सुनना अपनी करना यहभी एक तमाशा है, ८- एक घरमें तीनमता कुशल कहांसे होय, ९ - कर्मरेख नामिटे करो कोइ लाखो चतराइ, १० - काजलकी कोठरी में कैसाही सयाना जाय एक रेख लागेही लागे, ११ - ओछेकी प्रीत बालुकी
भींत, १२ - बाहर के खाजाय घरके गीतगाय, १३ - वीछूका मंतर -
"
न जाने सांपके बिलमें हाथ डाले, १४ - बेदिल नौकर दुश्मन बराबर, १५ - हलकसे निकली खलकमें पडी, १६ - दरियावमें रहना और मगरमछसे वैर, १७ - जैसी करनी वैसी भरनी, १८ - पथ्थरकों जोंक नही लगती, १९ - धोबी का कुत्ता घरका - न- घाटका, २० -दियेकेतले अंधेरा, २१ - साचकों आच नही, २२ - घरका भेदी लंका ढावे, २३ - हाथकंगनकों आरसी क्या ? २४- अब पस्ताये क्या करे चिडिया चुइ गइ खेत,
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गुलदस्ते-जराफत.
( दोहा.) सज्जन समय-न-चुकिये-कहत गुनिजन कूक, चतुरनको खटकतहिये-समय चुककी हूक, १ होनहार हिरदे बसे-विसर जाय सव शुद्ध, जाफी जैसी होनहार-ताकी तैसी बुद्ध, २ जा तनमें विरहा वसै-सो तन कैसा मांस, यही गनीमत जानिये-हाड चाम अरु सांस, ३
(अफीमचीका-किस्सा ) २८-एक अफीमची अफीमके नशेमें बेठेहुवे अपने मकानकी छतसे नीचे गिरपडे, लेकिन ? यह मालूम नही हुवाकि-कौन गिरा, नौकरसे पुछनेलगेकि-देख ! तो कौनगिरा, ? नौकरने देखकर जवाब दिया, हुजुर ! आपही तो गिरेहै, अफीमचीने कहा, खेर ! कुछ हर्जनही, मुनको तो तलाश करनीथी सो करलिइ, फिर बाद थोडीदेरके आप घोडे पर सवार होकर हवाखोरीको चले, एक सहिस शाथमेंथा, आप पुछतेहै अबे ! सहिस ! ! घोडा किधरहै ? सहिसने जवाबदिया आपही तो उसपर सवारहै, अफीमचीने कहा फिरभी खयाल रखना ठीकहै, ताकि-कोइ-ले-न-जाय, सहिस अपने मालिककी चतराइपर हसा और कहने लगा किसकदर नशेमें मतवाले बनेहै, जिनको आपकी और घोडेकीभी मालुमनही, किसी शहरसे चार अफीमची दुसरे शहरकों जानेकेलिये निकले, राहमें एककुवा मिला, उसके कनारे बेठकर चारों अफीमचीने अ. फीमका कसुंबा बनाकर पिया, और नशेमें चकचूरवने, कुवा छोटासाथा इस सबब उसपर कठेरा वनाहुवा नहीथा, उनचारोमेसें एककों एसा नसा चढाकि-उसकी घुमरसे कुवेमें गिरपडा, जब
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गुलदस्ते-जराफत. (३९१) गिरनेकी आवाज हुइ तीन अफीमचीकों खयालआयाकि-अपना शाथी-कुवेमें गिरगया तीनो पुकारकरके पुछनेलगे, क्योंभाइ ! चोट तो-नही लगी, खुश-तो-है, ? उसनेकहा-में-वहुत खुशहुं, पस !' ये तीनो कहनेलगे अछी बातहै जहांरहो खुशरहो, ऐसा कहकर चलेगये, और वह कुवेमेही रहगया, देखिये ! नशेबाजोकी हालत, जो अपने शाथीको कुवेमें छोड़कर चलनिकले, आखोरकार जब दुसरे मुसाफिर वहांआये तो उनोने उसको निकाला,( एक अकलमंद मुसाफिर और भालुका लतिफा ) कस्याग्रे पथिकस्य सत्रामिलितो भालुस्तदा तच्छचौ, द्वौ गुन्हाति तदंबरं गतमतस्तस्यापतन्नाणकं, तत्रागत्या जडः किमस्त्यय मतोस्याहास्य वक्रादिदं, सोवक मामिमं प्रदेहि सुमते तेनाशुदत्ता करे,
२९-एक मुसाफिर जंगलमें चला जारहाथा, उधरसे एक रीछ . उसके सामनेआया, मुसाफिरने सोचा यह रीछ मुजको खाजायगा, : बहेत्तरहै-में-इसकेकान पहलेसे पकडलं, पीछे जोकुछहोगा, देखाजायगा फौरन ! पासगया और रीछके कान पकडलिये, दोनोमें कसाकसी होनेलगी, मुसाफिर खुद जोरावस्था, एकघंटे तक दोनोंका कस्माल होतारहा, मुसाफिर के किस्सेमें-जो-सोना महोरेथी, कसाकसीकी हालतमें नीचेगिरपडी, इतनेमें एक दुसरा मुसाफिर रास्तेचलता वहां आगया, और देखता क्याहै ? रीछ और मुसाफिर आपसमें लडरहे है और सोना महोर नीचे पड़ी है, अगले मुसाफिरसे पुछनेलगा भाइ ! तुम क्या कररहेहो, ? उसनेकहा देख ! इस रीछकेकान मसलमसलकर उसके मुहमेंसे सोना महोरे निकाल रहाई, इस बातकों सुनकर पिछ ले मुसाफिरकों हिर्स दामनगीरहुइ और कहनेलगा थोडी देरके
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( ३९२ ) गुलदस्ते-जराफत. लिये मुजकोंभी देदिजिये ताकि-मेभी-कुछ सोना महोर पैदाकरलं अगले मुसाफिरने कहा अछीबातहै मगर पेस्तर नीचे गिरीहुइ सोनाहमोर उठाकर मेरेकिस्सेमें डालदे, क्योंकि-ये-मेरी महेनतसे निकाली हुइहै, फिर-तुं-इसके कानपडलेना-जो-कुछ तेरे हिस्सेमें होगा तुजमिलजायगा, इसबातकों मुनकर कमअकल मुसाफिरने उसीतरह किया, और पहले वाले मुसाफिरने रीछके कान इसको पकडादिये और आप अपना रास्ता लिया, थोडी देरभी-न-गुजरी होगीकि-कमअकल मुसाफिर कमताकत होनेकी वजहसे सोना महोरोंकी हिर्समें मारागया, और अगला मुसाफिर अपनी जान बचाकर चलागया,
( एक बाबु साहबकी मुलाकात, ) ३०-किसी बाबुसाहवकी-कोठीपर निगाहकेलिये एक डयोदीवान मुकररथा, किसीने आनकर पुछाकि-क्यौंभाइ ? बाबुसाहब मकानपरहै, ? डयोडीवान जल्दीसे भीतरगया और फिर आनकर कहनेलगाकि-बाबुसाहब कहतेहै घरमें नहीहै, मुलाकातकों आयेहुवे महाशय ! समझगयेकि-बाबुसाहब मकानपरतोहै मगर हमसे मिलना नही चाहते, ऐसाजानकर वापिसचलेगये,
[चोरीका नतीजा,] ३१-एकवस्तका जिक्र है एक गांवसे वापबेटा दोनों किसीके खेतमें चोरी करनेकेलिये गये, बापने बेटेसे कहाकि-देखले ! चारो तर्फ कोइ आतातो नही, ऐसा कहकर चारोतर्फ देखने लगे और खेतमें चोरी करनेके लिये दस्तअंदाजी किइ, इतनेमें वेटा बोला, चारों तर्फतों देखलिया, मगर एकतर्फ देखना भूलही गये, बापने कहा किधर भूल गये, वेटेने कहा उपर देखनातो भलही गये.
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गुलदस्ते - जराफत.
( ३९३ )
परमेश्वर तो देखताही होगा, इसबातकों सुनकर वाप दिलमें शामदा हुवा और उसदिन से चोरी करनेकी आदत छोडदिइ,
[ एक चोरकी रहमदिली, ]
चौरो निःस्वगृहे गतो हिमनिशि प्राहमियं स्वाबला, त्वत्पार्श्वेवरखंडकं ददतुवा शिघ्रं ग्रहीष्वार्भकं, नोग्रन्हात शिशुं ददाति-न- तदा द्वंद्वंच जातं तयोः तच्छ्रुत्वांवरकं शिशुपरि हरो क्षिप्त्वागतोन्यालये, १
३२- किसीगांवमें एक गरीब आदमी रहताथा जिसकों एक औरत और एक लडकाभी था, खानेपीके लिये निहायत तंग थे, यहां तक कि - मौसिमे जाडेमे वदनपर औढनेकेलिये कपडाभी नहीथा, envr insaan उसकेघर चौर चौरी करने लिये आया और छीप कर खडा हो गया, इससुरतमें औरतने अपने खाविंदसें कहा, लडका ठंडसे निहायत सुकड गया है. आपके पास कोई कपडा होतो फेंक दो, ताकि इसको ओढार्दु, खाविंदनेकहा, में - खुद मारेठंडके तंगहोगयाहुं, तुजे लडकेकी सुझीहै, औरत मजबूर होकर रहगई, चौर इसबातकों सुनकर रहमदिलहुवा और अपने बदनका कपडा उसलडके क ओढाकर चलागया, देखिये ! चौरकोभी किसकदर रहमआया, दरअसल रहम आनाथा लडकेके बापकों - मगर - उसका बरअक्षहुवा, (यानी) चौरकों रहम आगया, दुनियामें मिशा लहैकि - नादान दोस्तसे दाना दुश्मन वहेत्तर,
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[ हिदायत गुरुजीकी चेलेकों, 1
३३ - एकगुरुजी अपने चेलेसे हमेशां कहाकरतेथे पात्रे हरदम देख लियाकर ताकि उसमे कोइ जीवजंतु या कीडेमकोडे -त-जमा 1
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( ( ३९४ )
गुलदस्ते - जराफत.
होजाय, चेला, निहायत शुस्तथा, पात्रे देखता नहीथा, मुहसे जवाब दे दियाकरताथा, देख लिया सबठीक है, गुरुजीने दुसरेरोज फिरकहा पात्रे जरुरदेख लियाकर ताकि आइंदा तकलीफ न उठानापडे, चेलेने
-
कहा आप बहेमी मालुम देते है. क्या ! कही !! पात्रेमें सांप आवेटते है. ? गुरुजी कहने लगे तुं ! कभी पस्तायगा, चुनाचे ! एकरौज एसाही हुवा कि कहींसें सांप आनकर पात्रमें बैठगया, इधर जब चेला पात्रों लेने गया तो उसमें सांप वेठादेखा, जो फुंकार माररहाथा, चेला गुरुजीकेपास भागआया, और कहने लगा, सचमुच आजतो पात्रे सांप आनकर बैठा है, जो मुजे काटनेपरभी आमादा था, गुरुजीने कहा मेने पेस्तर नही बोलाथाकि कभी - पस्तायगा, तुं ! पात्रे देखता नही, उसीका यह नतीजा है, अछा ! चल ! ! अब में तेरी हमराह चलताहुं और उसको हठाताहुं मतलब इसका यह है कि - eta roast चाहिये गुरुजीके फरमाने पर कामील एतकात रखे . और उनकेशाथ गुस्ताखी - न- करे,
-
[ एक बापबेटे पर दुनियाकी जबान - ] अवस्थं जनकं तस्य गमनं प्रोचुर्विशोधो व्रजा, श्वारुढं कुरु पुत्रकं कृतमितः पाचपुत्रं तथा । reat feat जधियो ताहि गंतुमना, पद्मां कार्यमितश्वकस्य भवतो मध्येन किं तिष्ठतुः ॥ १ ॥
३४ - किसी शहर से एक बापबेटा एकघोडा लेकर दूसरे शहरकों जानेकेलिये निकले, राहमें बाप घोडेपर सवार है, बेटा पीछे पैदल चलरहा है, जातेजाते दोचार कोसके फासलेपर जब एक गांवकेकरीव पहुचे गांव के लोग सामने मिले, उनोनेकहा अपशोस है इसबुढेपर - जो आप घोडेपर वेठाहै, और बेटेकों चलारहाहै, इसबातकों सुन
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गुलदस्ते-जराफत. ( ३९५.) कर बापने कहा मेरा बेठना दुनियाको नागवार गुजरताहै, ले ! तुं ! घोडेपर बेठजा, में-पैदल-चलताहुं, इसतरह चलतेहुवे जब दुसरे गांवतक पहुचे वहांकेलोगोने इसको देखकर कहा, देखो ! कैसा नादान लडकाहै-जो-आप घोडेपर वेठाहै, और बुढेको चलाताहै, इसवातको सुनकर दोनों ने खयालकिया, अब घोडेको खाली चलाना ठीकहै, इसतरह चलते जब तीसरे गांवके करीब पहुचे वहांकेलोगोने कहा, देखो ! ये-कैसे-कमअकलहै-जो-घोडा होतेहुवेभी पैदल चलतेहै, इसबातकों सुनकर दोनोने सोचाकि-अब-क्या ! करना चाहिये, कुछ देरकेबाद सलाह हुइकि-हम-दोनों मीलकर घोडेपर बेठजाय, इसतरह कहकर दोनों घोडेपर सवार होगये, और आगेकों चले, जब चोथे गांवकरीब पहुचे, वहांके लोगोने देखा, और कहा, क्याखुब आदमी है, जो घोडेको जान माररहेहै, घोडेको मारनाहै-तो-यूही मारदो, नाहक ! क्यौतकलीफ देतेहो, ? मतलबकि इससुरतमेंभी-लोगोने इनको बुरेकहे, आगेजाकर बाप बेटोने सलाह किइ दुनियां दुरंगी है, इसके कहनेपर कहांतक खयाल कियाजाय, यह-तो-यूही कहती रहेगी, आपन अपना फायदा देखलो. और जैसा मुनासिब समझो वैसा करो, इस मिशालका मतलब यहहैकिदुनिया-ख्वाह ! भलाकामहो-या-बुरा, जो चाहे-सो-कहे, अकलमंदोकों चाहिये जो अछाकामहो कियेजाय, दुनियाके कहनेपर खयाल-न-करे,
[एक मालिक-और-नौकरका किस्सा ] - ३५-किसीगांवमें एक किसान रहताथा, और वह गांवके बहार रोजमररा अपने खेतको जाया करताथा, एकरोज उसकों एक नौकरकी जरुरतपडी, और तलाश करनेसे एक आदमी मिला, किसानने पूछा क्यो : तुं ! ! मेरेपास नौकर रहेगा, ? उसने कहा,
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( ३९६) गुलदस्ते-जराफत. बेशक ! रहुंगा, मगर काम क्या करना-सो-बतलाना चाहिये, किसानने कहा, बतलाना क्याथा, जोकुछ काम मालिककरे उस मुजब करतेरहना, तब उसने नौकर रहना कुबुलकिया, और दुसरेरौज दोनोमिलकर जब खेतकों जानेलगे मालिकने मीटीसे भरा हुवा एक टोकरा अपने सीरपर उठालिया और नौकरसे कहा तुं ! पानीका भराघडा अपने सीरपर उठाले, गरजकि-दोनों अपना अपना बौज लेकर खेतमें पहुचे, मालिकने सीरपरसें मीटीका टोकरा जमीनपर पटकदिया, इधर नौकरने पानीका घडा जमीनपर दे पटका, घडा तुर्तफुटगया, और पानी बहगया, मालिक खफाहोकर कहनेलगा, अबे ! मुर्ख ! यह क्याकामं किया ? नोकर बोला आपनेही कहाथाकि-मालिककरे सो करना, मालिकने एक दरख्तकी टेंनी इसे मारनेकेलिये उठाइ, गरजकि-आपसमें-दोनोंकी हाथापाइ होनेलगी, नोकर मोटा ताजाथा आखीरकार मालिककों भागना पडा, जब मालिक घर वापिस आया, नौकरभी पीछे आया, लोगोने पुछा यह क्या ! किस्साहै, ? मालिकने कहा यह मुर्खहै, नौकरने कहा यह मुर्खहै, लोगोने नौकरकों हठादिया और झगडा तयकिया, ऐसा नौकर किसकामका-जो-बातकों समझे नही, और मालिककी हमसीरी करे,
[ तकदीरका-तखाजा ] ३६-किसी शहरमें एकशेठ रहताथा, एकरौजकी वातहै, जंगलकीतर्फ शैरकरनेके लिये गया, राहमें एक आदमीकी खोपरीजमीनपर पड़ी हुइ नजर आइ, और उसपर एसालिखाहुवाथा,
जम्मो कलिंगदेसे-श्रागमणं अंग देसमझमि , । मरणं समुद्दतीरे-अजवि किं किं भविस्सइः॥१॥
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गुलदस्ते-जराफत (३९७ ) इसबातकों पढकर शेठने उस खोपरीकों उठालिइ, और एक रुमालमें बांधकर अपनेघर लाया, शेठानीने पुछाकि-यहक्या ! लायेहो ? शेठनेकहा तुजकों इसबातसें क्या ! सरोकारहै ? अपने काममें मशगूल रहो, शेठानीको इसबातसें शक पैदाहोगया कि-सा. यत ! यहकोइचीज-मेरेदिलकों अपनी तर्फ फिरालेनेकेलिये लायेहो बादचंदरौजके शेठकी गेरहाजरीमें शेठानीने रुमालकों खोलकरदेखा तो दरमियान उसके एक खोपरी पाइ, और खयाल आयाकिजरुर यहचीज मेरेलियेही लायेहै, मेंही इसको कुटकाटकर बडियां बनातुं और शेठजीकों खिलाडुं, दुसरेरोज उसीतरह किया और जब शेठजी जिमनेकों आये शेठानीने वही बडियां उनकों परोसदिई शेठजी ! खातेहुवे तारीफ करनेलगे, क्या ! उमदा बडियां बनी है ? शेठानीने कहा क्यौ-न-हो ? यहतो आपहीकी ख्वाहेसकी चीजथी. इसबातको मुनकर शेठजी समजगये यह उसी खौपरीकी बडियां है, शेठने शेठानीसें कहा, जैसा उस खौपरीपर लिखाहुवाथा, वैसाही हुवा, में किस इरादेसे लायाथा और तेने उसका मतलब किसतर्फ उतारा, आदमी चाहेसो करे-जो-काम-होनहार होताहै वगेरहोनेके नही रहता, एकगजलका बंदभी हस्बहालहै,
तकदीरके लिखेहुवे तदबीर क्याकरे ? थांभा गिरेतो थांभलें-पर्वत गिरेतो क्याकरे, ?
[ गुरुजीसे चेलेका सवाल ] पृष्टः केन गुरुर्हि खिद्यतिमनो नेत्रे रुतस्तत्कथं, प्रोचे तं च गुरुमंनो नयनयो ! व्यंजनावग्रहः वेदाक्षे प्रकरं पृथक भवतितद्वर्ग मनो नेत्रयोः मां वेकगृहस्थितौ समसुखं लग्नाति तुल्यं तयोः,
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गुलदस्ते-जराफत. . ३७-किसी चेलेने अपने गुरुजीसे पुछाकि-महाराज ! जब ममकों तकलीफहोती है-तो-आंखें क्यौरोती है, ? गुरुजीने कहा मन और आंखोंका अर्थावग्रहहै, व्यंजनावग्रहनही, शरीर-जवान-नाक और-कान-प्राप्यकारी है, नेत्र और-मन अप्राप्यकारी है, यही वजहहैकि-जब-मनकों तकलीफ होती है, आंखे रोदेती है, जैसे कोइपडोसीकों किसी किसमकी तकलीफ होजाय तो पासरहने वालेकोंभी रंजहोताहै, आंख और मनके दरमियानभी यहीबातहै, अकलमंदोकों मुनासिबहै जबकभी किसी किसमकी मुसीबत आनपडे हरचंद हिंमत-न-हारे, जो लोग हिंम्मत हारजातेहै-वे-जमामर्दनही,___ [रास्तेकी तलाशीपर किसानकी हाजिरजवाबी]
३८-एक मरतबेका जिक्रहै, एक साधुमहाराज किसी शहरसें रवाना होकर दुसरे शहरकों जारहथे, इत्तिफाकन ! रास्ता भुलगये एककिसान-जो-अपने खेतमें हल जोतरहाथा, पूछाकि-फलांगांवका रास्ता किसतर्फ है, ? किसान हाजिर जवाबथा, कहनेलगा आपतो परलोकका रास्ता बतलानेवालेहो, क्या ? इसलोकका रास्ताभी आपको मालुमनही, ? साधुमहाराज बोले, वेशक ? जो केवलज्ञानी-या-अवधिज्ञानी होते है उनको जरुर मालुम होताहै, किसान हसा, और कहनेलगा मेनेतो आपके शाथ एक दिल्लगी किइथी, यह देखलो रास्ता यही है, इसी रास्तेसे चलेजाओ, अगर ख्वाहेसहोतो यह खेतभी आपकाही है यहां ठहरो,
[एक नजुमी पंडितकी चालाकी, ] गुवी भूपवशैकदास्ति नृपति विप्रं तदा पृछति, पुत्रः किं च सुता भविष्यतिहि मे पुत्रो नहीत्यंगजा, संलेख्य छदने ददौ नरपति पुत्रो भविष्यत्यथ. पुत्री चेद्यदि वाशु दीर्घलघुकान् कृत्वा तु वक्ष्येक्षरान् ,
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गुलदस्ते-जराफत. (३९९ ) ३९-किसी शहरमें राजासाहबकी रानीकों हमल रहा, राजासाहबने अपने शहरके पंडितोंको बुलाकर पुछाकि-बतलाओ ? हमारी रानीकों बेटाहोगा-या-बेटी, ? एक जइफ पंडितजी बोले बजरीये नजुमके-में-अभी बतलासकताहुं, मगर सायत ? आपको याद रहे-न-रहे ! इसलिये लाइये ! एक कागजपर लिखदेताहुं उसकों भंडारमें रखलिये, जिसवख्त रानीजीकों कोइसंतान पेदाहो, उसवख्त इसकागजको खोलकर देखलिजियेगा, आपको यकीन होना यगाकि-पंडितजीका-कहना सचहै, राजासाहबने कहा अभीलिखदो,-में-उसको भंडारमें रखवादेताहुं, पंडितजीने फौरन ! लिखदियाकि-पुत्रो-न-पुत्री-इसलेखमें पंडितजीने दो-मतलब-रखेथेकि अगर पुत्रहोगातो कहढुंगा, देखलो मेने पहलेपुत्र लिखाहै, और अगर पुत्री होगीतो कहुंगा पुत्रो-न, (यानी) पुत्र नहोगा, पुत्रीहोगी, इस तरह दोनों तर्फसे मेरीबात ठीकहोजायगी, .
। एक मश्करेकी-गुस्ताखी ] ४०-एक साधुमहाराजने अपनेधर्मशास्त्रके वयानमें आमलोगोकों मुनायाकि-जोकुछ-भलाबुरा होताहै अपनी तकदीरसे हुवाकरताहै, उसवख्त सभामें बहुतसेलोग हाजिरथे, उनमें एक मशकराभी बेठाहुवाथा उसनेभी मुना, और जब शामकेवख्त साधुमहाराज दीशा जंगल जानेलगे राहमें उसमशकरेने पीछेजाकर साधुमहाराजकी पीठपर एकपथर फेंक मारा, साधुमहाराजने पलट नजरकरके देखातो वही मशकरा नजरआया, मशकरा कहनेलगा पलट नजरसे क्या देखतेहो ? जोकुछ भलाबुराहोताहै, अपनी तकदीरसें हुवाकरताहै, यहपथर-जो-आपकों लगाहै अपनी तकदीरसे लगाहै, साधुमहाराज बोले, वेशक ! यह सब अपनी तकदीरहीका मामला है, मगरमें-यह देखताहुं, गुनाह किसने मोल लेलिया ? और पापका भागी
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गुलदस्ते-जराफत. कौनबना, ?-मशकरा सुनकर शर्मीदा हुवा, साधुमहाराजसे माफी मांगने लगा, साधुमहाराजने कहा यहभी तेरी तकदीरमें लिखाथाकि-पहले गुनाह-करना और फिर माफी मांगना,
४१-[ बापके साथ बेटेकी बेअदबी] एकशेठने अपनेलडकेक नसीहत दिइकि-बापके सामने बोलनानही, जब तुजको नसीहत दिजाती है,-तु-सौचतानहीं, और बेअदबीका जवाब दियाकरताहै, बडीभूलहै, दुसरेरौन शेठ कहीं जरुरी कामकेलिये बहारगयेथे, और जब वापिस घरआये मकानमें लडका अकेला किवाडबंदकरके बेठाहुवाथा, शेठने उसको बहुत पुकारा मगर लडकेने जवाब नहीदिया, आजुबाजुके लोग इकठे होगये और इस माजरेको देखकर कहनेलगे लडकातो भीतर बेठाहुवाहै, आप छतपरसे होकर अंदर जाइये, गरजकि-शेठने-वैसाही किया, भीतर आनकर देखातो लडका वेठाहै, वापनेकहा क्यौं ! रे ! ! तेने इतनीअवाजे सुनकरभी जवाब नहीदिया, सबब क्याहै,? लडकेने कहा, कलही-तो-आपने फरमायाथाकि-वालिदके सामने बोलना नही. सो-मेने-ऐसाही किया, वालिदने खफाहोकर कहा, क्या ! तुं !! नीरा मूर्खहै ? जो कहे कुछ और समझता है कुछ, ? इसका मतलब यहहुवाकि-बडोंके सामने गुस्ताखी करना महेज नादानी है,
४२-[एक वजीरकी उमदा तकरीर ] एक राजासाहब जंगलकी तर्फ नंगेपांव शैरकरनेके लिये गये, रास्तेमें एककांटा उनके पांवमें चुबगया, उनोने सौचा ! मेरेपांवमें कांटा चुबा दुसरोके पांवमेंभी चुवता होगा, इसलिये लाजिमहै अपनी सरहदमें जितनी जमीनहै चमडेसे मढादेना चाहिये ताकि
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गुलदस्ते-जराफत. (४०१ ) किसीके पांवमें कांटा-न-चुवे, जब वापिस महेलमें आये वजीरकों बुलाकर कहने लगे जाओ ! जितना चमडा शहरमें मिले खरीदलो, वजीरने मुताबिक हुकम राजासाहबके दोचारलाख रुपयोका चमडा उसीवख्त खरीदलिया, और दोतीनदिन उसीतरह चमडा खरीदते रहे, चोथेरौज राजासाहबसे पुछाकि-अब-क्या ! हुकमहै ? और इसचमडेको क्या करना चाहिये, राजासाहबने कहा, देखो ! मेरेपावमें किसकदर कांटा चुबाहै, ?-में-जानताहुं इसतरह दुसरों कोंभी चुवताहोगा, मेरीरायहै तमाम जमीन अपनी सरहदकीचमडेसें मढादेना, ताकि किसीके पांवमें कांटा-न-लगे, वजीरने कहा खता माफहो-में-अर्जकरताहुं, ब-मुताबिक हुकम हुजुरके चमडा मढाभी दिया, फिर गाडीघोडे चलनेकी वजहसे फटजायगा
और फिर सिलाना होगा, बहेत्तरहै आप अपने पांवकी हिफाजत किजिये, थोडे चमडेसें काम होजासकता है, सारी आलमकी फिक्र कहांतक करेगें, ? राजासाहबने कहा, बेशक ! ठीकहै, अपने पांवकी हिफाजत करनाही मुनासिबहै, दुनियाकी फिक्र कहांतक किइजाय, !!
४३-[ एक हकीम और मरीजकी मजाख,] एक मरीज हकीमके पासगया और कहनेलगा मुजकों बुखार आताहै, हकीमने पुछा रौजका आताहै. ?-या-बारीका, ? मरीजने कहा हजरत ! रौजका-या-बारीका-तो-में-नहीजानता, हां ! इतना मालूमहैकि आज आयाहै, कल-न-आयगा, फिर परसों आयगा, हकीमसाहब बोले, इसीको बारी कहतेहै, मरीजने कहा, में-बारीउसकों समझताथाकि-आज-मुजकों आयाहै, कल-हकीम साहबको आयगा, परसों उनके कुनबेमेसें किसीकों, हकीमसाहब बोले खूब कहा, क्या ! आप दवालनेकों आयेहै, ? या दिल्लगी करनेकों, ? मरीजने कहा माफ किजिये, मेरीतो आदतही दिल्लगी करनेकी है,
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(802)
गुलदस्ते - जराफत.
४४ - [ मुताबिक धर्मशास्त्र के चार चिजोंकी तलाश, ]
किसी गुरुने अपने चेलेकों कहा अगर तुजकों कोइ पुछेकिहमकों - चारचिजें जैसी बतला जिनमें एकचिज ऐसी हो - जिसकों यहां सबकुछहो परलोकमें कुछनही, दुसरी चिज ऐसीहो जिसकों परलोक में सबकुछहो-यहां कुछनही, तीसरी चिज ऐसीहो जिसकों यहां - और वहां दोनो जगह कुछभी नही, और चोथीचिज ऐसीहो जिसको यहां और वहां दोनों जगह सबकुछहो, चेलेने कहा मेरीअकल नही चलती, आप बतलाइये ! बडी महरवानी होगी, गुरुजीने कहा, सुन ! पहेली चीज वेश्याहै, जिसकों यहां रुपया पैसा - शिंगार सबकुछ है, परलोक में नही, दुसरीचीज साधुमहाराज है जिनकों यहां कुछभी सुखनही, परलोक में बहुत कुछ है, क्योंकि - धर्मकरनेसे परलो - में फायदा है. तीसरीचीज हिंसाकरनेवाला शख्श जिसकों यहां और वहां दोनांजगह सुखनही, चौथीचीज धर्मात्मा शख्श - जिसने : पूर्वजन्म में धर्मकयाथा इससे यहां सुखी है, और यहांभी धर्म करता है, इस लिये आगे परलोकमंभी सुखीहोगा, -
४५ - [ दो मुसाफिरकों एक किसानका माकुल जवाब, ]
दो - मुसाफिर - दुसरे शहरकों जानेके लिये अपने घरसें चले, चारक शके फासले जानेपर दो-सडके-नजरपडी, दोनोंने खयाल किया कि - अब - किधरकों जानाचाहिये, ? थोडीदेर वहांखडे होगये और चारोतर्फ देख रहे थे तो एक किसान नजरपडा, दोनोने पासजाकर पुछा कि क्यौं ! भाइ ! ! यह सड़क किधरकों जाती है ? किसानने कहा तुमबडे पागलहो, सडकभी कहींजाती है ? जानेवा लेही जायगें, सडकतो यहांही पडीरहेगी, दोनों मुसाफिर शर्मादेहुवे और कहने लगे, बेशक ! तेरा कहना ठीक है, मगर यहतो बतला -
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गुलदस्ते - जराफत.
( ४०३ ) हमको फलांगांव जाना है, किससडक होकर जावे, ? किसाननेकहा ऐसा कहोतो बतलाताहुं, देखो ! इससडक होकर चले जाओ, -
४६ - [ मौसिमं कौनसा अछा ? ]
एकदिन बादशाह अखबरने सरेदरवार अपने मुसाहिबोंसें पुछा कि बतलाओ ! मौसिम कौनसा अछा है ? किसीने कहा मौसिम गर्मीका अच्छा है, किसने कहा सर्दीका, और किसीने कहा मोसिमे वारीश सबसे वहेत्तर है, लेकिन ! किसीकी बात बादशाह अखबरकों पसंद-न-आइ, जब वीरवलके कहनेका मौका आया, झटसें कहा- मौसिम - वो अच्छा है जिसमें अपनी तबीयत बहाल रहे, और खाना अछा मिले, बादशाह खुश होकर कहने लगे जवाब हो - तो ऐसा हो, जिसपर कोइ उजर नही कर सकता, अछा! अब एक और बात पूछता हुं बतलाओ ! जब रातकों सब कोइ आराम करता है उस वख्तभी कोइ चलता है - या नही ? बीरबलने जवाब दियाकि - हुजुर ! उस वख्तभी साहूकारका व्याज चलता है, जो कभी नींदभी नही लेता,
४७ - [ जैन धर्मकी चंद बातें, ]
जैन मजहब निहायत पुराना और इसमें रिषभदेव वगेरा चौइस तीर्थकर सर्वज्ञ हुवे, बडेबडे चक्रवर्ती - वासुदेव - प्रतिवासुदेववगैरा राजे इस मजहबमें हो चुके है, आजकल जैनोंकी मर्दुमशु मारी कम है पेस्तर बहुतथी, जैनके अखीरकें तीर्थंकर महावीर और 'बौध मजहबके गौतम बुध एक समयमें मौजूद थे, जैन और बौधके
उसूल जुदे जुड़े है जो लोग एक समझते है ठीक नही, दुसरे मज Teri sarai जगतका कर्त्ता कहते है, जैन इस बात से खिलाफ है, जो कुछ भले बुरे कर्म जीव करता है,
उसका फल
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६ ( ४०४ )
गुलदस्ते - जराफत.
वह खुद पाता है, - दुनिया अनादि है, जमीन -आब- हवा - आ तीश - और - वनास्पतिमेंभी जीवोंका होना जैन मानते है, मुक्तिके लिये ज्ञान - और - क्रिया अपनी अपनी जगहपर काबिल मंजुर कर नेके है, शराब - गोस्त - सहेत - और - जमीकंद खाना जैनमें मना है, पानीकों कपडेसें छानकर पीना चाहिये. रातको खाना जैनमें क ताइ मना है, शिकार खेलना - या - जीवोंका काटना - मारना जैन लोग अच्छा नही समझते, बल्कि ! लुले - लंगडे जानवर जो करीब मोत होते है हिफाजतसें रखते है, हिंदमें कई जगह इनके लिए मकानातभी बने हुवे है, जैनोमे (१६) संस्कार और उनके मंत्र अलग अलग मौजूद है, ख्वाह मर्द - या - औरत कोईहो इल्म पढना सबके लिये जाइज है, जो जो दुनियादार जैन मजहबपर एतकात रखते है अपनी पैदाशमेंसे रुपये आठ आने-चार आने- या - दोआने धर्ममें खर्च करे, और हरसाल एक जैन तीर्थकी जियारतकों जाय, दुनियामें धर्म एक आलादर्जेकी चीज है, -
४८ - [ दोस्तकें साथ दोस्तकी चालाकी . ]
किसी शहरमे दो - दोस्त रहते थे, एक रौज - वे - जंगलकी तर्फ सैर करनेके लिये गये, और कुछ दूर जाकर एक दरख्त के नीचे वेठे, इधर उधर देखते है तो इत्तिफाकन ! जमीनमे गडा हुवा एक बड़े बर्तनका मुंह दिखाई दिया, नजदीक जाकर देखते है तो वहवर्तन मीटी मे दवा हुवा है, मीटीकों हटाकर उसका ढकन खोला तो भीतर सोनामहोर लबालब भरी हुई नजर आई, दोनों आपसमें खुश हुवे और कहने लगे क्याही ! अछी बात है ! आज खजाना मिल गया, मगर दोनोंमें एक चालाक था, कहने लगा भाई! आज इसकों यही रख छोडे, क्योंकि दिन- अछा नही है, अछा
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गुलदस्ते-जराफत (४०५) नक्षत्र देखकर उठा ले जायगें, ऐसा कहकर उसपर मीटी दाब दिइ, और घर चले आये, दुसरे रोज चालाक दोस्तने खुद अकेले जाकर सब सोनामहोरे अपने हाथ कर लिइ, और उस बर्तनमें कोयले भर दिये, बाद दोचार रौजके अछा नक्षत्र देखकर दोनों वहां गये, और मीटी निकालकर उसबर्तनकों देखते है-तो-महोरोकी एवजमें कोयलोसे भरा हुवा है, चालाक दोस्त कहने लगा, क्या करे! भाइ !! अपनी तकदीरही बुरी है, जो सोनामहोरे कोयले हो गइ, पस! दोनों नाउमीद होकर वापिस चले आये, मगर नई दगाकी हर्गिज ! छीपती नही, आखीरकार चालाक दोस्तकी चालाकी मालूम हो गइ, और दुसरे दोस्तने सोचाकि-अब आपनभी चालाकी करना चाहिये, गरज! वह चालाक दोस्तके घर गया और कहने लगा आज आपके लडकेकों मेरे घर खाना खिलानेकों ले जाता हूं, ऐसा कहकर उसके लडकेकों अपने घर ले गया, और खाना खिलाकर तलघरमें उसको छीपा रखा, और एक-बंदर-मौल लाकर घरमें बांध दिया, दुसरे रोज चालाक दोस्त उसके घर आया और पुछाकि-भैया ! लडका कहां है ? जो कल तुमारे घर दावतके लिये आयाथा, दोस्तने जवाब दिया, क्या कहुं ! अपशोषकी बात है, आपका लडका बाद खाना खा चुकनेके बंदर बन गया, देख लो ! यह बंधा हुवा मौजूद है, चा. लाक दोस्त हेरान हुवा और कहने लगा क्या ! लडकाभी बंदर बन जाता है ? दोस्तने कहा, कभी सोनामहोरेभी कोयले हो जाती है, ? तब चालाक दोस्त समझ गया, और कहने लगा, सोनामहोरे मौजूद है, क्यों फिकर करते हो ? उसने कहा लडकाभी मौजूद है, तुम क्यों फिक्र करते हो? गरजकि-उसने-सोनामहोरे दे दिइ और इसने लडका दे दिया,
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( ४०६ ) गुलदस्ते-जराफत. ४९-[सवाल बादशाह अखबरका दरबारी मुसाहिबोंसें,]
बादशाह अखबरने अपने सरेदरवार मुसाहिवोसें पुछाकिबतलाओ ! सवपत्तोंमें कौनसा पत्ता बडाहै, ? चुनाचे ! किसीने कहा केलेका पत्ताबडाहै, किसीने कहा अरइका-और किसीने कहा सागवानका बडाहै, इसीतरह पेंदर जवाब देनेलगे, मगर किसी का जवाब बादशाकों पशंदे खातिर-न-हुवा, जिसवरूत बीरबलसे पुछागया उसने जवाबदिया, हुजुर ! नागरबेलका पत्ता सबसे बडाहै, जो आपके मुंहतक पहुचताहै, बादशाह यह सुनकर निहायत खुशहुवे,
५०-[ एक अकलमंद मुन्शी ,] एक अकलमंद मुन्शी-अपने शहरमें-कोइ कम अकल पनेका काम करता दिखाइदे फौरन ! उसकानाम अपनी किताबमे लिखलियाकरताथा, एक रौज बादशाहके दरबारे खासमेंमी आपहुचा, एक सोदागिर घोडे बेचनेवाला बादशाहके सामने खडाथा और कुछवातचीत कररहाथा, बादशाहने कहा ! कोइ उमदा घोडा लायेहो, ? उसने कहा सरेदस्त कोइहाजिर नही, मगर बहुकम हुजुरके उमदा घोडा खिदमतमें हाजिर करसकताहुं, बादशाहने पुछा उसकी कीमत क्या होगी ? सोदागिरने जवाबदिया दशहजारसे कम-नहोगी, वादशाहने खजानचीकों हुकमदिया अभी इसको दशहजार रुपये देदो, व सुजव हुकम बादशाहके खजानचीने रुपये देदिया, मुन्शीने यहमाजरा देखकर अपनी किताबमें लिखादियाकि-बादशाह-कमअकलहै, किसीने इसवातकों देखा और बादशाहसे अर्ज किइकि-आपको इसमुन्शीने कमअकलके नामसे लिखलिये है, बादशाहने उसको बुलाकर पुछा और उसने जवाब दियाकि-हुजूर !
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गुलदस्ते-जराफत. (४०७ ) बुजुर्गोका फरमानहैकि-बगेर चीज देखेभाले-या-कबजेमेलिये मौल देदेना अकलमंदीकी बात नहीं, बादशाह बोले, अगर सोदागिर घोडा लाकर हाजिर करेगा तो, ? मुन्शीने कहा अगर-न-करेगा तो ? बशर्तेकि-उसकी पहिचानतक आपको नहीं है, बादशाह तुर्त उस बातकों समझगये और उस सोदागिरसे रुपये पीछे लेलीये इसलेखका मतलब यहहैकि बगेरचीज देखभाले और कब्जेकिये पेस्तर दामदेदेना मुनासिवनही, ..
५१-[ एक अनपढ राजेका जिक्र, ] एक रोज एक भाटने एक राजासाहबके पास जाकर कुछकवित्त सुनाये, राजासाहबने खुशहोकर खजानचीको हुकम दियाकिइसे-सवारुपया इनाम दियाजाय, खजानचीने उसहुकमकी तामीलकिइ, भाट जब इनामपाकर राजासाहबके सामने आया, राजासाहबने पुछाकि-क्यौं ! तुजे सवारुपया मिलगया, भाटने जवाबदिया, हुजुर ! बीसआने मिलगये, राजासाहब गुस्से होगये और खजानचीको बुलाकर कहा, मेने सवारुपया देनेका कहाथा तेने इसकों बीसआने क्योंदिये ? इसमाजरेको सुनकर भाटसे बिनाजवाब दिये के-न-रहागया, वोट उठा, हुजुर सवारुपया और बीसआने एकही बातहै, राजासाहब भाटपर खफाहुवे, और कहनेलगे तेने मुजेपेस्तरसे क्यों-न-जचायाकि-सवारुपया और बीसआने एकही वातहै, देखिये ! अनपढ महाशयोकी खूबी, गरज! इसमिशालकी यहहैकिहरशख्शको इल्महासिल करना चाहिये,
५२-[ एक जजसाहब और मुजरीम, ] एक जजसाहबके इजलासमें एक शख्शका मुकदमा चलताथा, जजसाहबने पुछाकि-तुमारीसादी हुइहै-या-नही ? मुजरीमने जवा
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( ४०८ )
गुलदस्ते - जराफत.
बर्दिया, हुजुर ! मेरी सादी नही हुई मेरी औरतकी सादी हुई है, जजसाहब बोले क्या ! अदालतमे भी दिल्लगी करते हो ? उसनेकहा, नहीं हुजुर ! मेरी क्याताकात है - जो - अदालत में दिल्लगी करूं, ? दरअसल मेरी औरतने मुजकों छोड़कर दुसरेसे सादी करलिइहै, इसबातकों सुनकर सबलोग हसने लगे,
५३ - [ एक हाजिरजवाब लडका, ]
किसी बादशाहने अपने शहरमें हुकम जारी किया कि - रातके वख्त कोई आदमी घर से बाहर कदम - न - रखे, तमाम लोगोने बादशाह हुकमकी तामील कि, मगर एक लडका हुकम अदुली करके मकान के बाहर निकला, और रास्ते में सिपाइयोंकों मिला, उनाने पुछा कि क्या ! तेने शाहि हुकम नही सुना, ? लडकेने कहा बेशक ! सुना है, सिपाइयोने कहा फिर हुकम अदुली किस लिये कि ? लडकेने जवाब दिया-में- किसका लडका हुं-कुछ मालूमभी है ? जिसके सामने तमाम बादशाह - शाहजादे - और - दिवान वगेरा सिर झुकाते है, सिपाइयोने समझा कोइ शाहजादा होगा, जाने दो, असलमे वह नाइका लड़का था; देखिये ! हाजिर जवाब लडका किस कदर कामयाब हुवा,
५४ - [ संस्कृत इल्मकी तरक्की, ]
किसी शहर में एक पंडितजीका जाना हुवा, रास्ते में एक भीस्तीकी लडकी मिली, पंडितजीने पुछा तुं ! किसकी लडकी है ? उसने जवाब दिया,
चतुर्मुखी तो बह्मा - वृषभारूढो न शंकरः तोय धारा नतो मेघः- तस्य कुले बालिका,
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गुलदस्ते-जराफत. (४०९ ) - यह सुनकर पंडितजी समझ गये, यह भिस्तीकी लडकी है, फिर कुछ आगे बढे तो एक दरजीकी लडकी मिली, उसको पुग तुं ! किसकी लडकी है, ? उसने जवाब दिया,
ग्रीवाशीर्षे न विद्यते-हस्तपाद विवर्जितः स जीवं पुरुषं अत्ति-तस्य कुलेहं बालिका,
यह सुनकर पंडितजी समझ गये कि-लडकी-दरजीकी है, फिर कुछ आगे बढे तो एक और लडकी मिली, उसको पुछा तोजनावमें उसने कहा,
यंत्र तंत्र विधि नित्यं-करोति खंडखंडतां,
राजा प्रजा न जानाति-तस्य कुलेहं बालिका, ३ - पंडितजी इस बातको सुनकर समझ गये यह मूथारकी लड़की है, फिर कुछ आगे बढे तो एक लोहारकी लडकी मिली उससेभी पुछा तो जवाब दिया कि
स्वासोत्स्वासं च गृन्हाति-जीवंतं इव सर्वदा,
कुटुंबे कलहो यत्र-तस्य कुलेहं बालिका, ४ फिर कुछ आगे बढे तो एक और लडकी मिली, उससभी यही सवाल किया, और उसने जवाब दिया कि,. पर्वताग्रे रथो याति-भूमौ तिष्ठति सारथी,
चलते वायु वेगेन-तस्य कुलेहं बालिका, यह सुनकर पंडितजी जान गये यह कुंभारकी लडकी है, फिर आगे बढे तो एक और लडकी सामने मिली, उससेभी पुछा कितुं ! किसकी लड़की है ? उसने कहा,
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( ४१० ) गुलदस्ते-जराफत. .. कृष्नमुखी न मार्जारी-द्विजीव्हा न सर्पिणी, .. पंच भी न पांचाली-तस्य कुलेहं बालिका, ६
इस बातकों सूनकर पंडितजी समझ गये, यह मोहरिरकी यानी लेख लिखने वालेकी लडकी है -
५५-[ एक कंजूसका-मजाख, ] . एक कंजूसका बाप बीमारपडा तो उसके बेटेने अपने बापसे कहाकि-चादर अभीसे उतार दिजिये तो अछा है, जो धोकर रख लिइ जाय ताकि-आपके मुर्देपर ओढानेके लिये काम दे, बापने कहा घबडाता क्यों है ? मेरी अंगुलीमें जो अंगुठी सोनेकी पहनी हुइ है बेचकर नया कपडा मौललाना,-बेटेने कहा-में-अपनी अंम्माजानसे पेस्तरसे इकरार कर चूका हूं कि आपके दम निकल जानेपर अंगुठो तुजे लाडुंगा, बल्कि ! वह आपके मरनेका इंतजार कर रही है, बापने कहा अबे ! कमबख्त ! क्या लडकपनकी बातें कर रहा है, रात पडनेकी तयारी है, चिराग तो जला, बेटेने कहा, तीन रौजसे आपका दम निकलनेकी हालत बीत रही है, अबतक निकला नही, नाहक ! तेल क्यों खराब करना ? बापने कहा अब में-किसी दमका मेहमान हुं, और-जी-घबडाता है, चिराग जला दे, बेटेने कहा, अछा ! जलाता हुं, मगर मुजे नींद आ जाय तो मरनेके पहेले आप चिरागको बुझाकर मरना, ताकि-तेलका बचाव हो, देखिये ! दुनियामें ऐसेभी कंजुस लडके होते है, जो अपने बापके लियेभी पेसेका तेल खर्चना नहीं चाहते,
५६-[एक जाहिल नौकरका लतिफा,] एक मालिकने अपने नौकरसे कहा चार पाइ बिछा दे और फक्त तकिया रख दे, नौकरने चार पाइ बिछा दिइ और उसपर
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गुलदस्ते-जराफत. (४११ ) तकियाभी रख दिया, मगर फक्तकों ढुंढने लगा, देर होनेपर मालिकने पुकारा अवे ! क्या करता है ? वह कहने लगा, हुजुर ! चार पाइतो बीछा दिइ, और तकियाभी उसपर रख दिया, लेकिन! फक्तके लिहे हुँह रहा हुंकि-फक्त क्या चिन है, ? मालिकने कहा, अबे ! नादान !! क्या बकवाद कर रहा है ? मेने फिकरेमेंजो-फक्तका लब्ज कहाथा क्या ! वोभी कोई चीज है ? जो इंड रहा है, बैंइल्म नौकरका नतीजा ऐसोही हुवा करता है,
५७-[चार दामादोंका लतिका, किसी शहरमें एक पुरोहित ब्राह्मण रहताथा, और उसकी राजाके दरबारमें बहुत बड़ी इज्जत थी, यहां तककि-उसको राजाजीने दो गांवकी जहांगिरीभी दे दिइथी, उसके घर चार लडकी और एक लड़का था, चारो लडकीयोंकी सादी कर दिइ गइथीऔर-वे-अपने मुसराल में रहा करतीथी, जब लडकेकी सादीके दिन करीब आये पुरोहितजीने लिख भेजाकि-आप लोग मय कबीलेके मेरे घर तशरीफ लावे, और लडकेकी सादीकों रौनक अफरोज करे, बमुजब तेहरीरके-वे-चारों दामाद सुसरालके घर आये, और सादीका जलसा शुरु हुवा, औरभी कह रिस्तेदार पु. रोहितजीके घर आये हुवेथे, बडीशान-व-सौकतसे बरात चढी, . और बाद चंद रोजके सादी करके वापिस आये बराती लोग अ. पने अपने घर गये, और करीबके रिस्तेदारोनेभी रुकसत मांगी, मगर चारों दामाद जो पेस्तरसे आये हुवेथे जिनके नाम-विनय. राम-माधवराव-मणिराम-और-केशवलाल-थे, मुदत गुजर गइ रुकसत नही मांगते, चैनसे पुरोहितजीके रसोडेमें जाकर जीम आते थे, और दुफेरकों शतरंज खेला करतेये, यूं-कह रौज गुजरे बाद पुरोहितजीने सौचाकि-तो-ये-जानेवाले नजर नहीं आते, बहे
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( ४१२ )
गुलदस्ते - जराफत.
तर है इनके लिये जानेकी कोइ तदबीर निकाले, गरजकि- पुरोहि तजीने अपनी औरतसें पुछा कि इनके रवानगीकी क्या सुरत है, ? उसने कहा आप फिक्र मत किजिये, में-कलही इनकी तजवीज करती हूं, ऐसा कहकर दुसरे रौज गेहुकी रोटी बनाना मौकुफ कर दिइ और बाजरे की रोटीयां बनाकर चारों दामाद के सामने रखी, चारोन उन रोटियोंको खाइ, और दुफेरकों जब शतरंज खेलने बैठे विजयरामने कहा, देखो ! आज बाजरे की रोटी मिलने लगी, अब अपनी इज्जत नही जो यहां फिर चंदरौज ठहरे, मुनासिब है, अब अपने घरकों जाय, इस बातकों सुनकर तीनोने कहा, आप जाना हो जाइये, हमतो यहांही ठहरेगें, गरज कि - विजयराम अपने सुसराल से रुकसत पाकर अपने घरकों गया,
बाद चंद रौज पुरोहितजीने फिर अपनी औरतसे कहा- ये तीनोतो हिलतेभी नही, इनके जानेकी कोइ तदबीर बनाओ, औ रतने दुसरे रौज घीकी एवज बाजरेकी रोटीयोंपर तिल्लीका तेल दामोदोके सामने रखा, इस बात से माधवराम समझ गया, और दोनो साथियोसे कहने लगा, अबतो पुरी बेइज्जती होने लगी है, बेहत्तर है जल्दी से चल निकले, दोनोने कहा, आप जाइये, हम बाजरे की रोटी और तेलही खाया करेगें, मगर यहांसें नही जायेंगें, यह सुनकर माधवराव मय अपने कबीले के बतन चला गया, बाद चंदरौजके पुरोहितजीने फिर अपनी ओरतसे कहाकि ये दोनों तो खूब जमे बेठे है, इनका भी कोई रास्ता निकालो, दुसरे रौज औरतने चार पाइयां विखेर डाली, और दामादोसें कहने लगी, चार पाइयोंमें खटमल हो गये है, आजसे आपलोग जमीनपर सोया किजिये, इस बातकों सुनकर मणिरामकों होश आया, और कहने लगा, भाइ ! अबतो यहांका रहना ठीक नहीं, ऐसा कहकर मणि
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गुलदस्ते - जरफत.
( ४१३ )
रामभी अपनी औरतकों लेकर चला गया, अब रहा केशवलाल - सो- उसने बारां महिने तक जानेका नाम नही लिया, तब पुरोहितजीने सलाह कि अब इसकी तजवीज क्या करे ? औरतने कहा, मेने तीनों की तजवीज तो कर दिखाइ, अब इनकी तजवीज आप किजिये, गरजकि- बापबेटेने सलाह कि कल जीमते वख्तमें तुजपर खफा होगा, उस वख्त तुंभी मेरे सामने गुस्ताखी करना, यहां तक कि - हाथा पाइ करके लडाइ लडना, और जब वह अपनोकों छुडानेके लिये आवे दोनो मिलकर उसीकों खूब सीधा करना, पस ! दुसरे रौज उसी तरह बापबेटोमें लडाइ शुरु हुइ, केशवलाल उस वरूत रसोइ जिमनेको आयाही था, उसने देखा बापबेटे लड रहे है, चलो ! इनकों छुड़ा देवे, इस ख्यालसे दोनो के दरमियान आया, और छुडाने लगा, पस! इनाने काबु पाकर उसकों इस कदर सीधा कियाकि-बोभी याद करे, वर्स दिनका खायापिया दो घंटेमें वसूल कर लिया, गरजकि- सब - भुखे प्यासे रसोइकी जगहसे बाहर चले गये, केशवलालभी विना खाये पीये अलग जाकर सौचने लगा कि - अब यहां रहना बिल्कुल ठीक नही, अगर रहेगे तो फिर यही नौबत होगी, गरजकि- दुसरे रौज विना पुछे अपने सुसराल के घर से विदा हो गया, इस किस्सेपर एक श्लोकभी बना हुवा है, पढलो, -
वज्रकूटाद विजेरामः - तिल तैलेन माधवः भूमिशय्या मंणिराम: - धक्का धूमेन केशवः,
५८ - [ एक मालिक और गुस्ताख नौकर, ]
एक मालिकने अपने नौकर से कहाकि - हवा खोरीकों जायगें, गाडी लाओ, नौकर गुस्ताख था तवेले से विनां घोडे जोते गाडी
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( ४१४) गुलदस्ते-जराफत. लाकर खडी कर दिइ, मालिकने देखा विना घोडेकी गाडी सामने रखी हुइ है, नौकरसे कहने लगे इसमें घोडे क्यों नही लगाये, नौ. करने जवाब दिया हुजुरने सिर्फ ! गाडी लानेके हुकम दियाथा, घोडोंके लिये तो कुछ नही कहाथा, मालिकने कहा अछा तुंही खींच और लेचल, नौकर शर्मिंदा हुवा, और घोडे लाकर गाडीमें जोत दिये, मालिकने कहा, अब घोडे क्यों लगाये, ? क्या! तुजे खेचनी पडतीथी इस लिये, ? नौकरीके दाम लेता है खोटे रुपयेतो हर्गिज ! नही लेता,
५९-[दरियावकी सफर,] किसी आदमीने एक-शख्शकों पुछाकि-आपने दरियावकी सफरतो बहुत किइ है, बतलाइये ! आपने उसमे नादीर चीन क्या देखी ? उसने जवाब दिया नादीर चीज दरियावमें वही देखीकिमें-सहीसलामत कनारे आ पहुचा, अगर बीच दरियावके गर्क हो जाता तो वहां मुजे कौन बचा सकता था ? ६०-[बादशाहका सवाल और अकलमंदका जवाब,]
एक वख्तका जिक्र है बादशाहने अपने शहरमें मशहूर कर दियाकि-में-एक सवाल पुछुगा, जो कोइ माकुल जवाब देगा, य. हुत कुछ इनाम पायगा, इस वातकों सुनकर एक हाजिर जवाब आदमी बादशाहके सामने गया, और अर्ज किइकि-हुजुर ! सवाल करे, में-उसका माकुल जवाब दूंगा, बादशाहने पुछा, बतला ! मेरे हाथपर बाल क्यों नहीं, ? उसने जवाब दिया, आप आपने हाथोंसें खूब खेरात करते है, इस लिये बाल नही, फिर बादशाहने पुछा तेरे हाथपर बाल क्यों नही, ? उसने जवाब दिया, रुपये पैसे लेते लेते मेरे हाथके बाल घीस गये, बादशाहने कहा, बताओ!
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गुलदस्ते - जराफत.
( ४१५ ) दुसरे लोगोके हाथपर बाल क्यों नही ? उसने जवाब दिया, आप देते है, और में लेता हूं इस बातकों देखकर वे लोग हाथ मसला करते है, इस लिये उनके हाथपरभी बाल नही, बादशाह इसकी हाजिर जवाबी से खुश हुवे, और बहुतसा इनाम दिया, -
६१ - [ एक उस्ताद और बेअदब लडका, ]
उस्ताकी हमेशां इज्जत करना चाहिये, एक उस्ताद मदर्सेमें लडकेकों पढा रहेथे, उसमें एक लडका बडा गुस्ताख था, और ह"रेक बातपर बेअदबीका जवाब दिया करताथा, एक दफे उस्ताद उस लड़के के सामने बेंतकों सिधा करके कहने लगे हमारे बेंतके कोनेके सामने एक गधा बेठा है, लड़का फौरन ! बोल उठा बेंतके दो तर्फ कोने होते है आप किस तर्फके कोनेका जिक्र करते है ? उस्तादने उसका कान पकडकर तुरत मदर्सेसे निकाल दिया,
६२ - [ एक - बेवफा - लडका, ]
एक लड़का जुआरीयों के शाथ जुआ खेल रहाथा, घरपर उसका वालिद इंतकाल हो गया, किसी रिस्तेदार ने आनकर उस लडकों कहा, तेरे वालिदका इंतकाल हो गया है, घर चल, ! लडकेने कहा, आप चलकर तयारी करे, में आता हूं, थोडी देरके बाद फिर उस शख्शने आनकर कहा, भैया! तयारी हो चुकी है, सिर्फ ! तेरे आनेकी देरी है, लडकेने कहा, अछी बात है, ले जानेका रास्तात इधरही है, आप ले आइये ! में भी यहांसे शाथ हो लुंगा, देखिये ! यह किस किसमकी गुस्ताखी है, ऐसे नामाकुल लडको के - होनेसे -न- होना बहेत्तर, एक मिसराभी इसपर बना हुवा है. नाखलफ ओलाके होनेसे - ना - होना भला,
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( ४१६.) गुलदस्ते-जराफत.
.६३-[ सांप और चूहेकी नकल, ] .. शितः केन करंडकेपि भुजगः क्षुत्पीडितोनासकत् , . रात्रौ खादिम कांक्षयाशु विवरं कृत्वोंदुर स्तन्मुखे,
भाग्यादेव तदास्वयं निपतितस्तन्मांस तृप्तो भव घातस्तेन पथा नरः स्थिरतरो भोगीव भाग्ये भवेत्. १ किसी शख्शने एक सांपको एक लकडेके डब्बेमें बंद करके रखाथा. तीन रौज तक सांप उसमेसें निकल-न-सका, भुखा
और प्यासा उसीमें तकलीफ पाता रहा. इत्तिफाकन ! एक चूहा रातके वख्त डब्बेके पास आया, और उस डब्बेको काटने लगा. दो-इंचका-छेद बनाकर जब भीतर घुसा उधर सांप छेदके पास मुंह लगाये तयार बेठाथा. एकदम चूहेको खा गया. और उसी रास्तेसें बहारभी निकल आया. देखिये ! तदबीर किसने किड और काम किसका हुवा. ? इसीलिये कहा जाता हैकि-तदवीरसे तकदीर मुकद्दम है. बशर्ते कि-सांपने कूछ तदवीर नही किइ तोभी तकदीरसे उसको भक्ष्य आन मिला. सबुत हुवा तदवीरसे तकदीर बडी है,-.
६४-[ एक शेठके घर चौरोका आना, ] किसी शेठके घर चौर लोग रातके बख्त चोरी करनेके लिये आये, शेठानीने देखकर शेठकों कहा चौर आ रहे है, शेठने कहा में-जानता हूं. आने दो, कुछ देर बाद फिर शेठानीने कहा, देखो! घरमेंभी आगये, तवभी शेठने यही जवाव दिया जानता हुं. तीसरी दफे फिर शेठानीने कहा देखो! अब खजानेके कमरे में आ गये, और धन मालकी गठरीयांभी बांध लिइ, शेठने कहा जानता हं, जब धन माल लेकर चौर घरसे बाहर निकले, शेठानीने कहा
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गुलदस्ते-जराफत. (४१७ ) देखो ! चौर लोग घरसे बाहर निकले, शेठने कहा-में-सब जानता हुँ. शेठानीने मजबूर होकर एक दोहा कहा कि-जानु जानुं क्या करो-धन तो-ले गये दूर, शेठानी कहे शेठने-इस जानपनेमें धूर?
६५-[गुरुजीकी नसीहतपर चेलोंकी गुस्ताखी.]
एक-गुरु महाराज--पांच दस चेलोंकों हमरा लेकर मुल्कोकी सफर करते हुवे एक शहरमें पहूचे. और चंदरौज वहां कयाम किया. चेले भिक्षा लेनेकों शहरमें जाया करतेथे. एक रोज रास्तेमें नट लोग तमाशा कर रहेथे. देखने के लिये खडे हो गये. और बाद घडी देरके भिक्षा लेकर गुरुजीके पास आये. गुरुजीने पुछा इतनी देर कहां लगाइ ? जवावमें चेलोने पेस्तर तो-कइ-बहाने पेंश किये मगर जब गुरुजीने बहुत तंग किये कहने लगे. नटोंका तमाशा दे
खनेके लिये ठहर गयेथे. गुरुजीने कहा. आइंदा खयाल रखो. नटोंका तमाशा कभी नही देखना. जब दुनयबीकारोबार छोडकर साधु हो गये फिर तमाशा क्यों देखना ? चेलोने कूबुल किया आइंदेपर-न-देखेगें. मगर जब दुसरे रौज फिर भिक्षाकों गये, न. टनीका तमाशा देखनेकों खडे हो गये. और बाद बडी देरके गुरुजीके पास आये. गुरुजीने पुछा आज फिर इतनी देर कहां लगा. इ. ? जवाबमें कहा. आज नटनीका तमाशा हो रहाथा देखनेको ठहर गयेथे. गुरुजीने कहा. कल तुमकों मना कियाथा. ? चेलोने कहा. आपने नटोंका तमाशा मना कियाथा. नटनीका-तो-मना नहीं किया. गुरुजीने कहा जब नटोका-तमाशा मना किया तो नटनीका तो आपही मना हो गया. चेलोने कहा आपने खोलकर वात नही कही. दर असल आपहीकी भूल है.-देखिये ! चेलोकी किस कदर गुस्ताखी है-जो अपनी भूल-गुरुजीपर डालते है.
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( ४१८ ) गुलदस्ते-जराफत.
६६-[ भाइ और बहेनका किस्सा. किसी शहरमें एक शख्श निहायत गरीबी हालतमें आ गया था उसने खयाल किया मेरी बहेनके घर बहुतकुछ धनमालहै, बहे. त्तरहै उसक घर चले, वहां अछी तरह गुजरहोगा. गरज ! वोअपनी बहेनकेघर पहुचा, बहेनने जब इसको फटे पुराने कपडोसें गर्गबी हालतमें देखा, तो-अनजान-बनगइ, पडोसीयोने पुछा यह कौन आयाहै,? तो-कहने लगी-मेरे बापके घरका रसोइयाहै, भाइ इस बातको सुनकर दिलगिर हुवा और दिलमें कहनेलगा, देखो गरीबी हालतमें बहनभी मुजे रसोइया बतलाती है, खेर ! यहांभी रहना मुनासिब नही, वहां-न-ठहरा, और दुसरे मुल्कमें गया, जब उसकी तकदीरका सितारा तेजहुवा रोजगारमें बडीदौलत हासिल हुइ, एकरौज फिर उसकों यहबात यादआइकि-अब-अपनी बहनकेघर चलनाचहिये, देखे ! किसतरह मुलुक करती है, ? गरजकि उमदा कपडे और जवाहिरातके गहने पहनेहुवे अपनी बहेनकेघर गया, बहेन अपने भाइकों अमीरी हालतमें देखकर खुशहुइ, और कहनेलगी आओ ! भाइ ! ! बहुतदिनके बाद आयेहो, उमदा खान पानसे उसकी तवज्जों मुदारात किइ, भाइ अपने गहने कपड़ों कों कहनेलगा यह खाना तुमारेलियेहै, मेरेलिये नही, क्योंकि-जबमें-गरीबी हालतमें आयाथा, इसीवहेनने मुजे रसोइया कहाथा,
और अब यह खातिर-व-तवज्जो होरहीहै, ... ६७-[ एक उस्तादके साथ शागिर्दकी गुस्ताखी ] '.. एकउस्ताद अपने शागिर्दको हिदायत कियाकरतेथेकि-बातचीत-दुरुस्तगीके शाथ करनाचाहिये एकरौज चिलमसे आगकी चिनगारी उडकर पघडीपर जागिरी, शागिर्द ब-मुताबिक हुकम
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गुलदस्ते-जराफत (४१९ ) उस्तादके कहनेलगा, जनाब ! उस्तादना-मुख्तदना-किला-वकाबाअम-हुजुरकी दस्तार अस्मतआसारपर-एक-अखगरना हीनजार-शररवार-आतीशकदये-चिलमसें परवाजकरके-शौला-अफगनहै. इसलंबे चोडे फिकरेके कहनेतक-पघडी-आधी जलकर खाखहोगइ, बल्कि ! आग सिरकीभी खबर लेनेलगी, उस्ताद दोनोंहाथोसें सिरमलतेहुवे बोले, ए ! नावकार ! क्या ! यही मौका तैरी फसाहतबयानी और तुलकलामीकाथा, ? साफ नहीकहा गयाकि- आपकी पघडीमें आग लगीहै,-हरेक वातपर मौका देखना-या-लंबीचोडी बाते बनाना,-? शागिर्दने कहा आपका फरमानाथा-बातचीत-लियाकत और दुरुस्तगीके शाथ करना,
६८ [ एक हकीमसाहबका-नाडीदेखनेजाना,]
एकहकीमसाहब अपनेलडकेकों शाथलेकर बीमारकी नाडीदेखनेकों गये, जब बीमारके घरपहुचे बीमारकी चारपाइके पास एक छिलका नरंगीका दिखलाइदिया, बीमारकी नाडीदेखकर हकीमसाहब बोले, आज नाडीमें मालूमहोताहै, आपने कोइ खटीचीज खाइहै, बीमारने कहा, हां ! साहब ! आज मेने दो-फांके नरंगीकी खाइथी, हकीमसाहबने कहा, इसतरह बदपरहेजी मतकिजिये ! दवाका असर विगडजायगा, बीमारने कहा आइंदा ऐसा-न-करुंगा, दुसरेरौज जबफिर हकीमसाहब नाडीदेखनेकों गयेतो बीमारके घरके पास भीडीके दो-चार-टुकडे पडे हुवेदेखे, भीतर जाकर बीमारकी नाडी देखी और कहनेलगे आज कोइ आपने सकीलचीज खाइ है, बीमारने कहा, बेशक ! आज मेने भीडीका साग खायाथा, हकीमसाहब बोले, ऐसी बदपरहेजी तो-न-किजिये ! दवा कार आमदन- होगी. हकीमसाहब जब घरपहुचे लडकेनेपुछा, आप नाडीदेखकर कैसे जानजातेहोकि-नरंगी-या-भीडी-खाइहै, ? हकीमसाहबने
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(४२० ) गुलदस्ते-जराफत. कहा, क्या ! इतनाभी तुजे खयालनहीकि-कुछ अंदाजसें भी बात कहीजाती है, बीमारके घर-या-इर्दगिर्द किसीचीजका छिलका-या टुकडा पडाहो-तो-जानना यहचीज वीमारनेभी खाइहोगी, लडकेने कहा अछा ! कल-में-नाडीदेखनेजाऊंगा, और जैसा आपकहते है मेंभी-कहुंगा, गरजकि-दुसरेरौज बीमारकेघर नाडीदेखनेकेलिये लडका गया, बीमारके घरकेपास एक-चूहा-मराहुवापडाथा, भीतरजाकर नाडीदेखी और कहनेलमाकि-आपने आज चूहेका गोस्त खायाहै, बीमार सुनकर हसा, और कहनेलगा अछी हकीमीपढेहो, क्या ! आदमीभी कहीं चूहा खाताहै, आप तशरीफ लेजाइये और अपने वालिदकों भेजिये, लडका घरआया और सब केफियत वालिदको कहसुनाइ, वालिदने कहा, अवे ! नामाकुल ! ! तुजे इतनाभी मालूमनहीकि-कोइवातकहना तो सोचसमझकर कहना, तेने बीमारके घरपर मराचूहा देखातो क्या! आदमीभी कहीं चूहा खाते है, हकीमसाहब फिर बीमारके घरगये, और कहनेलगे लडका अभी-इल्महै, इसीसे ऐसाआपकों कहगया, लाइये ! में-नाडीदेखताहुं, ऐसाकहकर नाडीदेखी और कहनेलगे, आजआपकी नाडी दुरुस्तहै, थोडेरौजमें आप अछेहोजाओगे,
६९-[चार पंडितोंका-लतिका, ] किसी शहरमें चारपंडित रहतेथे, एक हकीम-दुसरा नजुमीतीसरा व्याकरण पाठी-और-चोथा-तर्कवादी-ये-चारों आलादर्जेके पंडितथे, मगर तजरुबाकार विल्कुल नहीथे, इत्तिफाकन ! ये चारों कहींदुसरे शहरजानेपर आमादा हुवे, किसीसे गाडी अमानतमांगली, और किसीसे दो-बलभी-मांगलाये, गाडी बांधबंधाकर तीनों उसपर बेठगये, और एक हांकनेवाला बना, गरज शुभहके चले हुवे बारां बजेतक मंजिल तयकिइ और एक जंगलमें छायादार
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गुलदस्ते-जराफत. (४२१) दरख्तके निचे जाकर मुकाम किया, गाडीके बेल खोलदिये, और चारोंने आपसमें तजवीज किइकि-हरेक आदमी एक एक काम बांटलो, नजुमीने कहा-में-बेलोंकों जंगलमें चराकर लाता हुं, ऐसा कहकर बेलोंको जंगलकी तर्फ लेचला, हकीमने कहा-में-साकपात फलफलारी लाता हुं. ऐसाकहकर शहरकीतर्फ चला, तीसरा व्याकरणपाठी बोला में-शहरमें जाकर किसीसे खीचडीका सामान पैदा कर लाताई, और चौथा तर्कवादी बोला-में-घी लेकर आताहुँ, ऐसा कहकर चारों वहांसे रवाना होगये, नजुमीने जंगलकी तर्फ बेल लेजाकर छोडदिये और आप एक दरख्तके नीचे सोगया, बाद तीन घंटेके जब नींद खुली और देखातो बॅलोंका पता नही, उसीवख्त जमीनपर एक लग्नकुंडली खींची, और उसमें देखातो मालूम हुवा बेल गुम्म होगये है, अब मिलनेवाले नही, ऐसा समझकर बेंलोंकी तलाशीकों-न-जाकर वापिस ठिकानेपर आया, उधरसें व्याकरपाठी खीचडीका सामान लेकर आया, और चुलेपर चढादिइ, जब पकनेपर आइ उसमेस खचपचकी अवाज होने लगी, व्याकरपाठी सामने बेठा हुवाथा, बोला ! अशुद्धंकि जल्पसि, ? व्याकरणके कायदेसें खिलाफ खचपचकी-अवाज कयौं करती है, ? चुपकर ! वह चुप कयौंकर होसकतीथी, ? व्याकरणपाठीने सौचा. कि-जुठेके मुंहपर धूल डालना चाहिये, ऐसा कहकर खीचडीपर धूळ डाल दिइ, जब अवाज बंदहुइ तो कहने लगा, जुठोंका यहीउपावहै, अब कयौं चुप होगइ, इतनेमें हकीमसाहब नींवके पत्ते लेकर ठिकानेपर आये, और बेठ गये, इधर तर्कवादी जो-बी-लेने गयेथे, सेरभर घी लेकर वापिस आते रास्तेमें सोचने लगेकि-(पात्राधारंघृतं-घृताधारं पात्रं वा, ) वर्तनने घीकों संभालाहै-या-धीने वर्तनकों, इसखयालसे वर्तनकों उल्ा कर देखातो, सब-धी-जमी.
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( ४२२ )
गुलदस्ते-जराफत.
नपर गिर पडा, जब चारों पंडित इकठे हुवे सबने अपना अपना माजरा कहसुनाया, उसवख्त एक मुसाफिरभी वहां-आया हुवाथा इसमाजरेको सुना, और कहनेलगा लानतहै तुमारे इल्म पढनेपर तुम पुरेकम अकल हो, कयौकि-एकने बेंलोकों गमाया, दुसरेने खीचडीमें धूल डाली, तीसरेने शागभाजीके लिये नीमका पत्ता लाया, और चौथेने-घी-ऊंधा करदिया, क्या ! इल्म पढे हुवे पंडितोंका यही तरीका होता है. ? तुमसेतो हमही बहेत्तर जो हरेककामकों सौचकर किया करते है, मुनासिब है अब आगे मतबढो,
और अपने बतनको वापिस हो जाओ, अगर आगे बढोगेतो क्या क्या करदिखाओगे, ऐसा कहकर मुसाफिरने अपना रास्ता लिया, और पंडितभी अपने वतनकों बिनावेंलकी गाडी खीचते हुवे वापिस चले आये, इसकिस्सेका मतलब यह हैकि-इल्म पठकर तजरुबा हासिल करना चाहिये,
___ ७०-[ उंटके कानपर मछरकी अवाज. ]
एक-मछर-ऊंठकेकानपर बेठकर जोरसे अवाज करनेलगा, इसइरादेसेकि-मेरी-अवाजसे ऊंठ डरे, इधर ऊंठने इसअवाजको मुनकर मछरसे कहा, तुं ! तेरीअवाज किसको सुनारहाहै, ? मछरने कहा तेरेको डरानेकेलिये, ऊंठनेकहा, मेरीपीठपर बडेबडे नकारे
और डंके वजचुके इसपख्तभी-में-न-डरातो तेरीछोटीसी अवाजसे क्याडरुंगा, ? जा ! अपनारास्ता ले
mitra
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जिनगुण स्तवन-और-उपदेशिकपद. ( ४२३ ) [बयान छ-राग-और-छतीस रागिनी,] .. (एक कविके बनायेहुवे दोहे-कवित्त और-छप्पय,)
(दुहा,) १-भैरव २ मालवकोसको-३ दीपराग ४ हिंडोल, ५-मेघराग ६ श्रीरागफुन-ये खटराग कलोल, १
(कवित्त,) मोरहुकी बानीसे सुधारकर खर्ज बांधी- ... चातककी बोलहुसे रिषभ स्वर धरी है, . अजाहुकी बोलसे गंधारकी विचार लेतकुंजकी कलापहुते मध्यम स्वर वरी है, कोकीलाकी कुंकहुते पंचम वनाय बांधीधैवतको धार सुरदादुरकी हरी है, . माते गजराजहुकी गुंजसें निषादलीनएते नर वार वार सप्त स्वर धरी है, . १ .
[छप्पय,] भैरव १ घटिका चार रात रहियांसे होवे, ललित २ द्वेघडी रह्यां प्रात विभासही ३ मोहे, सुरउद्योत विलाउल ४ गुजरी ५ दोयघडी दिन, देवगिरि ६ फुन चार घडी गाव नीके मन, द्वेहै मलार ७ वर्षासमें रामगिरि ८ द्वेषष्टहै, टोडी ९ आस १० धनासिरि ?? जैसिरि १२ द्वेअष्टहै, ? रुतुवसंत १३ हिंडोल, १.४, प्रहर दो मारंग १५ गावे, तापिछे नट १६ वेदघडी सोहैं मुस पाचे,
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( ४२४ ) जिनगुण स्तवन-और-उपदेशिकपद.
सिंधु १७ फुन संग्राम मारवो १८ देवे जानो, गौडी १९ उघडी रह्यो युगलमील श्रीह २० वखानो, सांजसमय दीपक २१ सुखद दोयघडी कल्यानहै, मुवो २३ चार कनडो २४ वसु प्रहर केदारो २५ गानहै, २ पंचम २६ प्रहरसवाह दोढ अडाणो २७ कहिये, तेरे घडी बिहाग २८ अर्द्ध खमायच २९ लहिये, दोयमहर दोयघडी सोरठी ३० मारु ३१ चारही, काफी ३२ फुन एरोड ३३ मालकोसी ३४ वसुधारही, कालिंगडो ३५ दसघडी रहे तापीछे जंगलो ३६ गीनो, आठ प्रहर खट तीस स्वर लेइवख्त प्रभुगुन तनो, ३
तीर्थकर रिषभदेव महाराजका स्तवन,
(कालिंगडा,) पूजुमें आज रिषभचरनं, अरचुमें, एटेर. नवन प्रमार्जनमज्जन करके-विमलशिशभर आभरनं, पूजु, १ फलजल विविधकुसुमवरभेदे-करधरथालकनकवरनं, पूजुमे, २ द्रव्यभाव पूजन करी विघसे-करनकहेशिवसुखवरनं, पूजुमें, ३ तीर्थकर पार्श्वनाथ महाराजका स्तवन,
(कालिंगडा) मंगलमूरत पारसकी-जियामंगल, एटेर, सेवत इंद्रचंद्र मुनिसुरवर-चाहतहै निजजासकी, जिआमंगल, १ धारन पंक सकल दुखहारी-दायकहै मुखरासकी, जियामंगल, २ निरखत नेनसफलभइआशा-करनचरनके दासकी, नियामंगल,३
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जिनगुण स्तवन और उपदेशिकपद ( ४२५ )
[ जिनगुण स्तवन - कालिंगडा, ] प्रभुतेरे चरनोकी सरन ग्रहुँ, जिनतेरे, एटेर, हृदयकमलमें ध्यानधरु नित- सिरपर आनवहूं. प्रभुतेरे, तुजसम खोल्यो देव खलकमे - पायो नाही कहुं, प्रभुतेर, मनकी बातां तुं सबजाने - क्यामुख बहुत कहुं, प्रभुतेरे, कविजश कहे है ! साहब - ज्यंभव दुखनासहुँ, प्रभुतेरे, [ उपदेशिकपद - कालिंगडा, - ]
१
सुनमन होनहार -न-टरे, सुनमन ! एटेर, चितकछु औरविचारत है नर - औरही औरबने, सुनमन. उपरबाज पारधिनीचे - चीडिया कैसे बचे, सुनमन. होनहार वस डस्यो पारधि - शरसिंचाणो मरे, सुनमन. होतपदारथ भाविभैया ! -क्यौ ! जगसौच करे, सुनमन. उदयकर्मगत देख जगतकी - जिनवर क्यौं न भजे, सुनमन. ५
४
१
[ जिनगुण स्तवन- रागिनी भैरवी तीनताल, ]
( दरवजा ठाडीरहुँ, पिया के आवनकी भइवीरियां, -ए चाल . ) नवरीयां मेरी कौन उतारे पार, -नवरीया मेरी, एटेर,
या संसारसमुद्र गभीरा, - किसविध उतरूं-में- पार, नवरीयांमेरी. १ रागद्वेष दोनुं नदीयां वहत है - भमरपडतगतिचार, नवरीयांमेरी. २ रिखवदासकों तार्यो चाहिये - ये विनतिअवधार, नवरीयांमेरी ३
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[ तीर्थकर महावीरस्वामीका स्तवन - रागिनी भैरवी. ] माइमेरो मनतेरो नंदहरे, माइमेरो, एटेर,
कंचन बरन कमलदललोचन - देखत नयन ठरे, माइ मेरो, १ धन त्रिशला भाग्य तिहारो -तुं तिहुँभुवनसिरे, माइ मेरो,
२
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. ( ४२६ ) जिनगुण स्तवन -और-उपदेशिकपद.
३
तीन लोकके स्वामी तेरे अंगन में बिचरे, माइ मेरो, श्रीवर्द्धमान जिनंदकी मूरत देखे बिन ना सरे, माइ मेरो, ४ दासचुनी प्रभु चरन सरन ग्रही - भवभ्रम व्याध टरे, माइ मेरो, ५
[ उपदेशिक पद-भैरवी - या -कालिंगडा, ]
कौन किसीका मित- जगतमे-कौन किसीका मित, ए टेर, माततात तिरिया सुत बंधव - कोइ न रहत निचित, जगतमे १ सबही अपने स्वारथके है- परमारथ नही प्रीत,
स्वारथ विनसे सगो नही होवे - मिता मनमे चिंत, जगतमे, २ उठ चलेगो आप अकेलो - तुंही - तुं मुविहित,
को- नही तेरा - तुं-नही किसका-येही अनादि रीत, जगतमे, ३ ताते एक भगवान भजनकी - राखो मनमें नीत, ज्ञानसार प्रभु राग भैरवी गायो आतम गीत, जगतमें,
[ जिनगुण स्तवन- रागिनी भैरवी, ]
मिथ्या नींद-में- खोइ, आज प्रभु तेरे चरने लागा, मिथ्या, एं टेर, दर्शन कर परसन मन मेरो,-आनंद चित अब होइ, आज प्रभु, १ तुम बिना और न कोई मेरा - देखा त्रिभुवन जोइ, आज प्रभु, २ दास तुमारो करत विनती - तुम प्रभु भवभव होइ, आज प्रभु, ३
[ उपदेशिक पद- रागिनी भैरवी, ]
समझ मन ! कोई नही अपना, समजमन, ए टेर.
दौलत दुनिया माल खजाना - सुखसंपत सुपना, समजमन. मातपिता सुत कुटुंब कावेला - मुखसंपत सुपना, डोलत क्यों जगदेख दिवाने - सुखसंपत सुपना,
समजमन.
समजमन.
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१
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जिनगुण स्तवन-और-उपदेशिकपद. ( ४२७ ) [ उपदेशिकपद-झींझोंटीकी ठुमरी, तीनताल. ! जलभरन जात जमुनाके घाट-बडे ठाठसे आवत कामनियां, इसचाल. कुमतप्रीतके सताये हुवेहै-विषयभोग धोखेमें आये हुवेहै, कुमत, एटेर. शुद्धहै-न-तनकी-न-बतनकीखबरहै,-फिरेजाओतनकोउठायेहुवेहे,
कुमत. १ कभी नर्कमें हम कभी स्वर्गमें हम-अरहटकी तरहसे घुमाये हुवे है,
कुमत. २ यही हालत होगइ मगर दिल-चा-दिलकी-दोवारा विषयको बढ़ा
ये हुवेहै, कुमत. ३ कभीतो कभी हम मिलेगे सुमतसे-यही-लो-प्रभुसें लगाये हुवे है,
कुमत. ४ पिता पुत्र भाइसे जाहिर जुदे है-हजारों दफे अजमाये हुवे है,
कुमत. ५ अब-तुं-सौच करे मत कुंदन-किसी दिन मतलब बनाये हुवे है,
कुमत. ६ [ उपदेशिक पद-झिंझोटीकी ठुमरी, तीनताल. ] गफलतमें सारी उमर गइ-कारजकी सिद्धि कछुनाजो भइ, गफलतमें
ए टेर. काल अनादि सुख दुखमें खोया-मोह निद्रामें शुद्ध ना जो रही,
गफलतमें. १ ज्ञान दयासिंधुने अपने कारन हितकी बात कही, गफलतमें. २ गइ सो गइ अब हाथ न आवे-अवसर देख विचारोसही, गफ. ३ तज प्रमाद अपमत होय के-मुगतपुरीकी राह ग्रही, गफलतमें. ४ दास चुनी सदगुरु सच्चेकी-आज्ञा सिरपर धारलही, गफलतमें. ५
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(४२८)
जिनगुण स्तवन-और-उपदेशिकपद.
[गजल,-]
ध्यानमें जिनके सदा लयलीन होना चाहिये, ए टेर, ज्ञानगुन ज्ञानीसें ले परवीन होना चाहिये, ध्यानमें. राह संयमकी पकर-कल्यानकी सुरत मिले, कालगफलतमें हे सजन-नाहक ! न खोना चाहिये, ध्यानमे, २ धर्म खेती कियां चहे-तो जमीको साफ रख, बीज़ समकीतका हृदयमें-सुखसे बोना चाहिये, ध्यानमें, ३ कामना मनकी सफल-आनंदसे पूरन भइ, अवतो सुमता सेन उपर-सुखसें सोना चाहिये, ध्यानमें, ४ दास चुनी अपने घर-आंगनमें फुलेगा कल्प, भवस्थिति पकनेसे-मुक्ति फल सलोना चाहिये, ध्यानमे,
[उपदेशिक पद-दादरा,] उठरे मुसाफिर प्यारे, मुसाफिर प्यारे, तुजे जाना बडी दूर-उठरे मुसाफिर प्यारे, ए टेर; तुजे छाइ अनादि निदियां-अनादि निदियां, छाया आंखोंमें सरुर-उठरे, तुजे पांचो ठगोने घेरा-ठगोने घेरा, कैसा हुवा बेशहर, उठरें, . यहां नहीं है संघाती तेरा-संघाती तेरा, किसपर करत गरुर, उठरे, कहे छज्जु सफर है तेरा-सफर है तेरा, तुजे जाना बडी दूर, उठरे, .............
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जिनगुणस्तवन-और-उपदेशिक पद (४२९) (तीर्थकर नेमनाथजीका स्तवन,)
[ठुमरी,] डोलेरे योबन मदमाती गुजरीयां, डोलेरे, इस चालपर,निठुर नेम पिया गये गिरनारीरे. निठुर, ए टेर, अष्टभवंतर प्रीतपुरानी-नवमें भव पिया तुमने निवारीरे, निठुर, १ मुज अबलाकों दूर करीने-पशुवनपर तुम करुना विचारीरे, नि. २ सहसा बन जइ संयम लीनो-पंच महाव्रत भये तपधारीरे, निठुर. ३ नेम राजुल दोय मोक्ष सिधारे-पहेली नेमपिया निज तारीरे, नि.४ नेम राजुल दोय मुक्ति महलमें-पदमोदयकों हरख हजारीरे, नि. ५
[उपदेशिक पद-कमाच.] दिननीके बीते जाते है, दिन, ए टेर, समरन करलो प्रभुके नामका-और विषयका तजो काम, तेरे संग-न-चलेगा एक दाम-जो देते है सो पाते है, दिननीके, १ कौन किसीका पुत्र पवारा-तुम किसके और कौन तुमारा, किसके बल ये नाम विसारा-सब देखतहीके नाते है, दिननीके २ लाखचौरासी करके आया-बडे भाग्य मानव भव पाया, तापरभी कुछ करी-न-कमाइ-फिर पीछे पस्ताते है, दिननीके, ३ जैसे पानी बीच पतासा-मूरख फसा मौजकी आशा, क्या देखे श्वाशोकी आशा-गये हाथ नहीं आते है, दिननीके, ४
[उपदेशिक पद-सोरठ,] नही ऐसो जनम वारंवार, ए टेर, आरज देश उदार नरभव-उतम कुल अवतार, दीर्घायु शरीर सुंदर-सुखसंपत दातार, नही ऐसो, १ . वीतरागसो देव पायो-गुरु गिरुखो अनगार,
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(४३०)
जिनगुणस्तवन-और-उपदेशिक पद,
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जैनधर्म सुसाधु संगत-महामंत्र नवकार, नही ऐसो, २ सदा सूत्र सिद्धांत मुनवो-करो तत्व विचार, तप जप संयम दान पुजा-जीवदया उपकार, नही ऐसो. ३ कहां ऐसो ज्ञान निर्मल-कहां ऐसो आचार, कहां ऐसी धर्म करनी-अवर जन्म मझार, नही ऐसो. ४ फेर ऐसो कहां अवसर-पायवो संसार, हर्षचंद कहे चेत चेतन-जिम पामो भवपार, नही ऐसो. ५
[सद्गुरुस्तुतिपद-सोरठ,] बरसत वचन झरी-मुगुरु मेरे वरसत वचन झरी, श्रीश्रुत ज्ञान गगन ते उलटी-ज्ञानघटा गहरी, सुगुरु मेरे. १ स्याद्वादनय विजरी चमकत-देखत कुमति डरी, अरथ बिचार गुहर ध्वनि गरजत-रहत-न-एक धरी; सुगुरु मेरे, २ सरधा नदी चढी अति जोरे-शुद्ध स्वभाव धरी, सुभर भर्यो समतारस सागर-समकीतभूमि हरी, सुगुरु मेरे. ३ प्रकटे पुन्य अंकुरे चिहु दिश-पापजवास जरी, चातक मोर पपैया भविजन-बोलत भक्तिभरी, सुगुरु मेरे. ४ दान दया व्रत संयम खेती-भविक किसान करी, हरखचंद सुरनर शिव मुखकी-सहज स्वभाव खरी, सुगुरु मेरे. ५ - [उपदेशिकपद-काफी, ताल दीपचंदी.] कोई काल-न-जीता-काले सकल जग जीता, अकस्मात यम आन फिरेगो-जैसे मृगपर चीतारे, कोइ. १ शूरवीरभर महाबल योद्धा-ते-सब वश करलिता, ताको डर राखत नही कबही-या देखी विपरीता रे, कोइ. २ जूठी मायासे लोभाया-मान रहा अपनीता, देइ चपेट घर छोड चलेगो,-हाथ झुलावत रीतारे, कोइ. ३
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जिनगुण स्तवन-और-उपदेशिकपद. ( ४३१ ) इनसेती जीते नरदेही-भये मुक्तिका मीता, बार बार विनवे कर जोडी-नवल प्रेमरस पीतारे, कोइ. ४
[तीर्थंकर नेमिनाथजीका स्तवन-ठुमरी.] . मूरत निरखी शामरी-नींद उचटगइ सघरी मोहकी, मुरत. ए टेर. नेमीश्वरके पदफरसतही-पायो-में विसरामरी, नींद उचट गइ. १ ध्यानारुढ निहार छबीकों-छुटत भव दुखधामरी, नींद उचटगइ. २ मुनिजन याको ध्यान धरत नित-पावत आतमरामरी, नींद. ४
[उपदेशिक पद-ठमरी, ] समज परी मोहे समज परी-जग माया अब जुटी मोहे समज परी,कालकाल-तुं-क्या करे मूरख-नाही भरुसा पल एक घरी, जगमाया? गाफिल छिनभर नाही रहो तुम-शिरपर घूमे तेरे काल अरि, जगमायार चिदानंद यह बात हमारी-जानो तुम चितमाही खरी, जगमाया, ३
[उपदेशिक पद-भैरवी,] मूढ मन मानत नाहीरे,-भयो परम धरमसे बैंमुख बेशरम, मन, परद्रव्यनको डोले रोता,-फिरे गांठकी संपत खोता, डूब रसातल मारे गोता-सुख चाहे और करे कुकर्म, मन, ? चीर अभ्यास कियो जिनशासन- बेठो मारमारके आसन, तदपि न भयो ज्ञानप्रकाशन-मूढ भयो लखतनको चरम, मन. २ अरे नेनसुख ! हियेके अंधे-अबतो त्याग जग्तके धंदे, मतकर नामयतिनके गंदे-तजके जतनकर यतन धरम, मन. ३
[ उपदेशिक पद-भैरवीकी ठुमरी-कहरवा,]. अब हम लीनो आत्मज्ञान-भेद विज्ञान जन्यो घटमांही, अब. १
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( ४३२ ) जिनगुण स्तवन -और- उपदेशिकपद.
अब हम. २
एकतो यह जङ अथीर विनाशी - दुजे रुप सरुपी जान, अब हम. तीने शुद्ध अशुद्ध प्रदेशी में हुं शुद्ध बोध परमान, अमल अनादि अरुपी अखंडित - में हुं निराबाध परमान, अवहम. ३ चिदानंद चेतन निज आतम - मेरो पद सिद्ध समान, अब हम. ४ [ गुरुभक्तिपर पद - भैरवी, ]
परमगुरु. १
श्री विजयदेवसूरींदा - परमगुरु- श्री विजयदेव, ए टेर. aur inी अधिक विराजे - गुरु सेवे होत आनंदा, गुरु उपदेशी गुरु विद्याधर - गुरु दर्शनयी आनंदा, रामविजय कहे तहांलग प्रतिभा - सातसागर रविचंदा, परमगुरु, ३
परमगुरु, २
[ उपदेशिक पद-गजल, ]
अनुकर्म. १
( इश्कके जख्म लगे - उसका सिलाना मुश्किल ) इस चालपर, अट कर्म संग लगे-उनका छोडना मुश्किल, लाख चौरासी नर - देहका पाना मुश्किल, मोह ममताकी जडी-बेडीयां पगके अंदर, सीख सदगुरुकी बिना - उनका तोडाना मुश्किल, गुरुका उपदेश नसीबेसें हाथ आता है, धर्म में मीतलगा-ध्यान जमाना मुश्किल, कहे मुनि शांतिविजय - धर्मका बगिचा देखो, ऐसा फिर तुमकों यहां- दुसरा पाना मुश्किल,
अष्टकर्म. २
अनुकर्म. ३
अष्टकर्म. ४
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जैनतीर्थगाइड के ग्राहकोका-लिष्ट.
( ४३३ )
[ जो जो महाशय जैनतीर्थगाइड के अवलसे ग्राहक हुवे है उनके नाम, ]
( शहर पुना- मुल्क दखन. ) नाम,
किताब,
५१ शाह, हाथीभाइ झवेरचंद सदाशिव पेठ, २१ शेठ, अमरचंदजी तलकचंदजी बंबइवाले, १५ शेठ, मोतीचंदजी भगवानदासजी जहोरी, ११ शाह नेमचंद हाथीभाइ
शाह छगनलाल नानचंद शाह बालुभाइ हरिचंद,
५ शाह मलुकचंदजी दौलतरामजी,
५ शाह गणपतजी अमोलकचंदजी.
५ श्रीमती गजरांबाई, शाह जीवराजजी किशोरदासजीकी औरत,
३ श्रीयुत रायसिंहजी प्रेमाजी गोटीवाला,
२ श्रीयुत पंनाजी मोतीजी,
२ श्रीयुत मोतीजी जेताजी होडा,
२ शाह मणिलालजी चुनीलालजी,
२ शाह झवेरमलजी रतनजी,
२ दोसी छगनलाल वखतचंद, २ शाह किशनदास प्रेमचंद,
२ शाह कंकुचंद रायचंद,
२ श्रीयुत जीवाजी आनंदाजी,
२ शाह हाथीभाइ बहेरदास, सिरदारपुरवाले, २ श्रीयुत कृनाजी वेलाजी,
१ शाह दीपचंदजी हुकमचंदजी,
५५
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________________ rrrrrrrrrrrrrrrammmmmmmmwwwmmmmm ( 434 ) जैनतीर्थगाइडके ग्राहकोका-लिष्ट. 1 शाह सखारामजी निहालचंदनी, 1 शाह मोतीचंदजी छगनलालजी, 1 शाह जयचंदजी कस्तुरचंदजी, 1 श्रीयुत भगवानजी खुमाजी, 1 श्रीयुत भुताजी लखमाजी, 1 शाह छगनलाल पुंजीरामजी, 1 श्रीयुत गोमाजी प्रेमाजी 1 श्रीयुत वालाजी भगवानजी, 1 श्रीयुत खुबाजी गोलिंबजी, 1 श्रीयुत हिंमतमलजी परतापमलजी, छावनी पुना, 1. श्रीयुत गमनाजी जेसाजी, 1 श्रीयुत दौलतरामजी मोतीजी, 1 श्रीमती गंगाबाइ, वैतालपेठ, 1 श्रीमती हेमकुंवरबाइ, शाह पीतांबरदास रामचंदीकी औरत, लोहगांम, डिस्टीकट पुना, 1 श्रीमती जीवीबाइ, कस्वाठ, 1 शाह नानचंदजी मानचंदजी, गांव कलबुरगा, डिस्टीकट सोलापुर, . 2 श्रीयुत पांचाजी नवलाजी, 2 शेठ वीरचंदजी कृश्नाजी, 2 मोदी पानाचंदजी दलछारामजी, 2 शेठ मोतीचंदजी हेमचंदजी, . 1 शेठ बेहचरदासजी सीरचंदजी, 1 शेठ लखमीचंदजी नेमचंदजी जुन्नेरवाले, 1 शेठ मगनलालजी लखमीचंदजी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com