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________________ ( ४ ) गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद, शंसयपडिया गुरुने पुछे-प्रतिमा केम उवेखीरे, आज०८ उत्तर न मिला जब गुरुजीने-ज्ञानकला घट जागीरे, मुमतासखी घट आन वसी जब-हुंढपंथ दिया त्यागीरे, आ० ९ धर्मशिरोमणि देसमनोहर-गूर्जरभूमि रसालीरे, जहां आवी सुविहितगुरुपासे-मनशंका सहु टालीरे, आ० १० परमकर्यो उपकार तुमे बहु-श्रीगुरु आतमरायारे, जयवंता वर्तो आभरते-दिनदिन तेज सवायारे, आ० ११ दुषमकालसमे गुरुजी तुमे-वचनदीवडा दीधारे, शांतिविजय कहे जेथी हमारा-विषमकाम पण सिधारे आ० १२ आ०१ (गट्टली चतुर्थी.) ( इसमेंभी उक्तमहाराजका जीवनचरित-शेष है.) आजनगरमें सुगुरु पधार्या-रत्नत्रयीना धारीरे, ज्ञान अपूरवदान दइने-जडता दूर निवारीरे, संवत ओगणीसे बत्तीसे-राजनगर मोझाररे, संयमलिया सुविहितगुरुपासे-सोलह शिष्य परिवाररे, आ० २ चरणकरण गुणधार अनुपम-श्रीगुरु आतमरामरे, जिनशासन शिंगार महामुनि-तत्वरमणनां धामरे, आ० ३ नयगम भंग प्रमाण करीने-जीवादिकनुं स्वरुपरे, ध्रुव उत्पात नाशथी गुरुने-जाण्यु निखिल अनुपरे, आ०४ जाण्या द्रव्यगुणपर्याय-धर्माधर्म आकाशरे, पुदगलकाल अने वली चेतन-नित्यानित्य प्रकाशरे, आ०५ परम कर्यो उपकार तुमे गुरु-दुर्मत दुर नसायारे, जयजयकार थयो जिनशासन-आनंद अधिक सवायारे, आ०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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