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गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद.
( ५ )
आ०७
जो न होत आ वखत तुमारा-वचन दीवडा रुडारे, तो दुषम अंधारी राते-लेत अमे मत कुडारे, विद्यानी वधती करवामां-जेहना विविध विचाररे, ये गुरुना उपकार कहो किम-भूले आ संसाररे, देस बहु विचरो गुरुराया-क्रोडकरो शुभ कामरे, . अंतरघटमां शांतिविजय-पण राखेछे दृढहामरे,
आ०८
आ०९
[ गहली-पांचवी, ]
( भवीतुमे अष्टमीतिथि सेवोरे-इसचालपर.)
रहोगुरु राजनगर चोमासुरे-गुणनिधि गुण तुमारा गास्युं-रहोगुरु, तुमे रागथी नही रंगायारे-नही द्वेषरिपुथी बंधायारे, महामोहयी नाही रंगाया-रहोगुरु. धनमाल अने राजधानीर-महासंकट आकर जानीरे, तुमे छोडी दुनिया दिवानी-रहोगुरु. पांच इंद्री सुभटयी सुरारे-आलसविकथाथी दुरारे, चार चौर किया चकचुरा-रहोगुरु. शानदोरीथी मनकपि बांध्युरे-तीर तत्व रमणतामां साध्युरे, जेथी समाकित अदभूत लाव्यु-रहोगुरु. गुरु विद्यावेलडीये विटायारे-जेनी कल्पतरुसम कायारे, एतो समता जलथी सिंचाया-रहोगुरु, तुमे शास्त्रसुधारस पिधोरे-महामोहरिपु वश किधोरे, तुमे अनुभव पालो पिधो-रहोगुरु. तुमे ज्ञानरतनमंडाररे-करवा हमपर उपकाररे,
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