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________________ ( ६ ) गुरुभक्तिपर - गहूली - पद-और-छंद. याजो नोधाराना आधार - रहो गुरु. तुम आणा सदा शिर धरस्युंरे-तपनियमविशेषे करस्युंरे, कहे शांतिविजय अनुसरस्युं - रहो गुरु. ( गुरुभक्तिपर - पद - झीझोंटीकी ठुमरी, ) विद्यासागर - न्यायरत्नश्री - शांतिविजय महाराज मुनि है, वि, मिथ्यामतज्वर दूर करनकों - बानी अमृतरसमधुर ध्वनि है, वि, १ भविजनके हितकारक तारक- तुम कीर्त्ति विख्यात सुनिहै वि, २ दशपुरनगरमध्य चौमासो - भाग्य भलो और शुभकरनी है, वि, ३ नरनारी मिल चरनकमलयुग - सेवो ये गुरु ज्ञानगुनी है, वि, ४ सोभाचंदवंदित प्रमुदितचित - मेरे तो अब आप धनी है, वि, ५ ( तीर्थंकर महावीरस्वामी के जन्महोनेपर - ) ( सिद्धार्थराजाकेघर खुशीकी निशानी, ) [ हरिगीत छंद. ] श्रीवर्द्धमान जिनेंद्र जन्में - हर्षवाढों अतिमही, सिद्धार्थराजाके भुवनमें-न्यात सब भेली भइ, परिवार के सब पुरुषनारी - मुदितमन तहां आइयां, सिद्धार्थराजा स्वतः उनकों - थाल भरभर लाइयां, सब न्यात मिल भोजन करे - आनंदभर धन ते घडी, बहु कुलवधुमिल धवलमंगल - गीतगान करे खडी, शुभ नालियरकी गिरी केला- दाख नारंगी भली, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १, www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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