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(१६८) तवारिख-तीर्थ-फलोदी. यागया, भीतरके रंगमंडपमें जो-दाहनीतर्फ-तीनमूर्तिये जायेनशीनहै बडीमूर्त्तिके नीचे संवत् (१६५३) में यहतामीर किइगइ लिखाहै. तपगछाचार्य हीरविजयमूरि और उनके चेलोकनाम-भी-लिखेहै, बायीतर्फ जो तीनमूर्तिये है उनमें एक मूर्त्तिके नीचे संवत् ( १६५३ ) वैशाखसुदी ( ४ ) बुधवारके रौज-तीर्थकर शीतल. नाथजीकी मूर्ति तामीर किइगइ लिखाहै, और तपगछाचार्य विजयसेनमूरि-और-विनयसुंदर गणिके नामभी मौजूदहै, एक शामरंगमूर्ति-मुंडियाल गांवसें लाइहुइ नयी है, तीसरीमूर्ति-तीर्थकर अरनाथजीकी उसीसंवत् (१६५३) और वही तपगछाचार्य विजयसेनसूरि-और-विनयसुंदर गणिके-नाम इसपर मौजूदहै, रंगमंडपबहारका-बहुतपायदार बनाहुवा-जिसमें (५००) आदमी बखूबी बेठसकते है, - एकतर्फके कौनेमें तीर्थअष्टापदजीका नकशा-संगमरमर पथर पर-उकेराहुवा इसमें जैसी मुश्शवरी और मुनहरीकाम बनाहुवा जो दुसरी जगह नहीं दिखाइदेता.-श्रीयुत-वरधीचंदजी सचेतीनेतीन नकशे तामीर करवायेथे. जिनमेसे एक-शत्रुजयतीर्थपर विमल वशीटोंकमें चक्रेश्वरी देवीके मंदिरसे आगे-हाथीपोलसे उरेदाहने हाथतर्फ उनहीके तामीरकरवाये हुवे मंदिरकी दिवारमें लगाहै, दुसरा लशकर गवालियरके मंदिरमें-और तीसरा यहां फलौदी पार्श्वनाथजीके मंदिरमें-कुल्ल (३) हुवे. इसमें क्या !! उमदाछोटीछोटी मूर्तिये पनरासों तापसोंकी बनीहुइ-जोकि-गणघर गौतमस्वामीके चेले होगयेथे,-एकतर्फ रावण-और-मंदोदरीकीमूर्ति-नृत्यकर रही है. बीचमें [२४] तीर्थंकरोकी मूर्तिये
और-अस्मानसे उतरते हुवे देवतोंके विमान इसकदर खूबसुरति फेसाथ बनेहुवेहै जिसकी तारीफ जबानसे बहारहै, इसको देखकर
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