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तवारिख - तीर्थ - फलौदी.
( १६९ ) मालूम होता है - सर-व-सर- तीर्थ अष्टापद नजरके सामने मौजूद है, दूसरी तर्फके कौनेमें- नंदीश्वरद्वीपका नकशा उसीतरह - शंगमर्मर पथरपर बना हुवा दिवारमें लगा है. द्वीप - समुंदर - और - तरहतरहकी निहायत खूबसुरत मूर्त्तियें दिलको इसकदर असर करती है किगोया ! अभीमुंहसें बातें करेगी. - मेरूपर्वत - युगलीक मनुष्यो के क्षेत्रऔर उदयाचल वगेरा पहाड इसकदर कारीगरीसें बने है कि - देखने वालेही उसकी खूबी बयान करसकते है, वाणव्यंतरदेवता - और देवांगना इसकदर बने है कि - मानो ! - वे सचमुच - यहां आगये हो, -
दुसरा मंदिर कोट बहार जो थोडी दूरपर बना हुवा है इसमें मूलनायक - चौमुख महाराजकी चार मूर्त्तिये तख्तनशीन है, उनमें एक मूर्त्तिपर संवत् (१८९१ ) - और - एकपर संवत् ( १८९६ ) लिखाहुवा है, चारोंकोंनोंमें चार-छोटीछोटी छत्रीये एकमे-चौदह स्वम - एक में जन्मकल्याणिक-और- एकमें दीक्षाकल्याणिकका आariantarter राहुवा मौजूद है, अतराफ मंदिरके कोट खीचाहुवा और सबका संगीन है कारखाना फलौदी तीर्थकाभीतर धर्मशाला एकतर्फ बना हुवा - मुनीम - गुमास्ते-नोकरचाकर- चपरासी - सबकाम शाहाना है, - यात्रीकों खानपानकी मामुली चीजें यहां दस्तयाब होसकती है, टेशनपर हलवाइयोंकी दुकानेभी मौजूद है, मिठाइवगेरा वहांसेमिल सकेगी. हरसाल आसोजमुदी दशमीकों यहां यात्रीयोंका मैलाजुडता है, करीब उसवख्त दशहजार आदमी जमा होते है, - तीर्थकर फलौदी पार्श्वनाथजी के सोनेके बने हुवे जेवरात उसरौज मेरटेसें यहांलाये जाते है और मूर्त्तिपर चढायेजातेहै. चांदीका सामान - नकारखाना - निशान - और - तरहतरहके बाजेभी शहर मेरटेसें आते है और बडेजुलुशकेशाथ - तीर्थकरफलौदी पार्श्वनाथजी की - सवारी - मंदिरकीचारों तर्फ फिराकर बहारतालाव
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