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तवारिख-तीर्थ-फलोदी. (१६७ ) नकों लेआये.-और-अलायधा एक मकान बनाकर पूजाकरना शुरूकिड. ज्यूं ज्यूं यात्री आते रहे तीर्थकी तरक्की. होतीगइ.
और बडा आलिशान मंदिर बनाकर मूर्ति उसमें तख्तनशीन किइगइ. जो-मंदिर अब मौजूदहै उसी वख्तका बना हुवाहै,इसकी प्रतिष्टा जैनश्वेतांबराचार्य धर्मघोषमूरिजीने किइ, फलौदी गांवमें मूर्ति जाहिरहोनेसें इसकानाम फलौदीपार्श्वनाथ रखागया. दिनपरदिन तीर्थकी तरक्की होनेलगी, पेस्तर जब यहां रैलनहीथी यात्री-बजरीयेलगाडी-या-पांवपैदल जातेथे. आजकल रैलहो नेकीवजहसें बहुतसेंयात्री आतेजातेहै. टेशनके उतरतेही सामने बडाआलिशान-शिखरबंदमंदिर-और-धर्मशाला नजरआती है. यात्री वहांजाकर मुकामकरे. धर्मशालामें चालीशकोठरीये-औरएकबडासहेन बनाहुवा-गर्मीकेदिनोमें बडाआराम देताहै, अगरएकहजारयात्री-एकशाथ आजाय-इसधर्मशालामें ब-खुबी कयाम करसकते है,-बीच धर्मशालाके मंदिरफलौदी पार्श्वनाथजीका निहायतउमदाशिखरवंद-बनाहुवा-और इसमें-तीर्थकरपार्श्वनाथभगवानकी शामरंगमूर्ति-करीब अढाइहाथवडी-तख्तनशीनहै. दर्शन करके दिलखुशहोगा,
गर्भद्वारके दरवजेकेनीचे दाहनी-और-बायीतर्फ संस्कृतजबानमें लिखाहै संवत् (१२२१) मृगशीर्षसुदी (६) के-रोजफलवर्द्विकायां (यानी) फलौदीगांवमें तीर्थकरपार्श्वनाथजीकामंदिर-तामीरकियागया,-कुछहर्फ घीसगयये है बराबरखुलतेनही, बायीतर्फ लिखाहै-चैत्येन-नरतरे-येन, श्रीमल्लक्ष्मटकारिते-मंडपो मंडनं लक्ष्म्याः , आगे फिरकुछहर्फ घीसजानेकी वजहसे खुलतेनही तीसरे श्लोकके तीसरे चरणमें-लिखाहै-उत्तानपढें-श्रीपार्श्वचैत्यं( यानी ) बडेपट्टवाला-तीर्थंकर पार्श्वनाथजीका मंदिर तामीरकि
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