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(१६६ ) तवारिख-तीर्थ-फलोदी.
और-सांभर-गुढा-कचामनरोड-नारायणपुरा-मकराना-बोरावरगछीपुरा-देगाना-और-रैन-होतेहुवे मेरटारोड टेशन उतरना. इसीकानाम फलोदी तीर्थहै,-फुलेरासें मेरटारोडतक रैलकिराया पनरा आना-तीनपाइ लगते है,
( तवारिख-तीर्थफलोदी. ) _ फलौदी पार्श्वनाथजीका-यहां-पुराना जैनतीर्थ है, इसकी तवारिख बुजुर्ग लोग इसतरहसें बयान करतेहै, संवत् (११८१ ) में यहां एक-श्रीश्रीमाल-धुंधलकुमार-जैनश्वेतांवर श्रावक रहताथा उसके वहां बहुतसी गायेंथी. जिनमेसें एक गौका-यहहालथाकिजब-जंगलसें चरकर-शामको घर वापिसआती-तो-रास्तेमें एक बेंरीकेनीचे उसका दूध-खुद-ब-खुदझर जाताथा, कुछ-दिनकेबाद धुंधलकुमारने गोवालियेसे ताकीदकिईकि-हमारीगौका दूध-कौन दोहताहै, ? उसनेकहा ! आप मेरेसाथ जंगलमें चले, और-वचश्म-खुद इसबातकों अजमावे, दुसरेरौज धुंधलकुमार खुद जंगलकोंगया, और गौके पीछेपीछे वापिस घरकों आया, तो सस्तेमें एक-अजुवा-देखाकि उसबेरीके द्रख्तीचे गायका दूध खुद-चखुद झरनेलगा यहहाल देखकर वह हैरानहुवा और दिलमें सौचनेलगा क्या माजराहै, ? जरूर यहांपर कुछ सबबहै घरआनकर जब सबकासोसे फारीकहुवा और आरामसें सोगया, रातके वख्त उसको एकख्वाबहुवाकि-उसमुकामपर देवाधिदेव-पार्वनाथ भगवानकी मूर्ति जमीनमें बौजूदहै, तुं ! उसको निकालले !! - सने दुसरेरौज यह माजरा अपने दोस्त एक-शिवंकर नामकेश्राव ककोंकहा, और दोनों मिलकरजंगलकों गये, और उसबेरीके द्रख्त नीचे जमीनको खोदा-तो-एक-निहायत उमदा-मूर्ति-शामरंगतीर्थकर पार्श्वनाथ भगवानकीउनकों मीली.-और-वे-अपने क्का
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