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तवारिख-तीर्थ-केशरीया. (१६५ ) गांवके सब-लोग-और-आसपासके आयेहुवे देहातीलोग-भीलवगेरा-दोतीन हजार आदमी-शाथ-चलतेहै,-और-बडाजलसा होताहै, जिसकी अछीतकदीरहो जैसे मोकेपर जियारत करे इस मेलेमें कभीकभी दसपनरां हजार आदमीतक जमाहोतेहै, कोई यात्री मणभर केशरतक केशरीयाजीकी मूर्तिपर चढाताहै, छत्रीपर जहांकि-सवारी लाइजातीहै उमदाछत्री-वगीचा-और-तीनवावडी मीठे जलकी भरीहुइ मौजूदहै, वागमें-गुलाव-चंपा-चमेली-जाइजुइ-डमरा-मरूआ-वगेराफुलोंके पेंड-खडे है, छत्रीमें केशरीयाजी महाराजके कदम-जायेनशीनहै, और उसकेसामने पहाडकी दामनमें आमखास-नशीस्तगाह बनीहुइ-उसपर-मेलेके रौजमूर्ति तख्तनशीन करके उसका पूजन कियाजाताहै, आमलोगके लिये बेठनेकी जगह चुनागचीकी बनी है जिसपरपांचहजार आदमी बखूबीबेठ सकतेहै, मेंलेके रोज यहांपर गीतगान-नाच मुजरा कियाजाताहै, महाराजकी सवारी मंदिरसे दिनके (२) बजे रवाना होकर शामके (६) बजे मंदिरमें वापिस आजाती है, तीर्थकेशरीयाजीकी जियारत करकेयात्री उसी खुश्कीरास्ते वापिस उदयपुर आवे, और रैलमें सवारहोकर चितोडगढ जाय, चितोडगढसें नीमच-मंदसोर-रतलाम-उज्जेनहोती हुइ मकसीजी तीर्थकोंभी रैलगइहै. और इंदोर-खंडवाहोकर भुसावलकोंभी गइहै. मगरतुमकों चितोडगढसे अजमेर-फुलेरा होतेहुवे फलोदी तीर्थकों जानाचाहिये. इसलिये चितोडगढसें रैलमें सवार होकर वापिस अजमेर आना रैलकिराया पेस्तर बतलाचुके है, अजमेरसें रैलमें सवारहोकर-मदार-लाडुपुरा-आखरी-किशनगढ-तिलोनिया-साली-सखुन-नरायणा-होते फुलेराजंकशन जाना, रैलकिराया आठआने लगते है, फुलेरा उतरकर मेरटारोड़ जानेवाली रैलमें सवारहोना,
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