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तवारिख-चितोडगढ. (१५७ ) उमदामंदिर बनवायेथे और अब उनकाहालदेखोतो बिल्कुलविरान पडे है, रंगमंडपमें और थंभोमें जोजो नक्शकारी किइहै देखनेवालेही इसकावयानकरसकते है, दोनोंमंदिर गिरेगिरायेहै मगरजब अंदरजाकरदेखोगे वहारआनेको-जी-नहीचाहता, चितोडके जैनश्वेतांबरमंदिरमें जोजोप्राचीनपुस्तकथे-न-मालूम अव-वे कहां है ? एकदिन-वो-जमानाथाकि-बडेबडेआलिमफाजिल जैनश्वेतांबरा. चार्य यहां कदमरखतेथे, आज बिल्कुल उनकाअभावहै, ___गौमुखकुंडकेपास जो सुकोशलमुनिकी गुफामशहूरहै, उसमें एक पथरपर मुकोशलमुनिकी-और-एकसिंहनीकी मूर्ति बनीहुइहै, जैनशास्त्रोमें कीर्तिधरमुनिकी-और सुकोशलमुनिकीहिकायत इस तरहबयानकिइहैकि --जब-वे-दुनियादारीकी हालतमें थे-बापवेटथे, वालिदने दुनियाछोडकर अवलदीक्षा इख्तियारकिइथीऔर बेटने पीछेसे, गरजकि-महर्षि-कीर्तिधरजी गुरुथे-और मुनि सुकोशलजी उनकेचेलेथे, सुकोशलजीकी वाल्दा-जबकि-सुकोशलजीने दीक्षा इख्तियारकिइथी नाराजहोकर बुरेध्यानसे मरकर सिंहनी होगइथी और इसचितोडगढकी पहाडीयोंमें आनकररहतीथी, एक रौजकी वातहै जबकि-महर्षि-कीर्तिधरजी-और-मुनिमुकोशलजी-मुल्कोंकी सफरकरतेहुवे चितोडगढके पहाडोमें आयेतब सिंहनी उनकेसामनेआइ, इधर कीर्तिधरमहर्षि-सुकोशलमुनिसे कहनेलगे उपद्रव आयाहै मुजे आगेको होनेदो, सुकोशलमुनिने कहा-में आगेहोउगा. क्षत्रीयका धर्म पीछेपांवकरनेकानही, उधरसे सिंहनी उछलकर मुकोशलमुनिपर झपटी, और उनकेशरीरकों तोडकर खागइ. बादमें गुरुजीने उससिंहनीकों धर्मका उपदेश दिया, अरे ! बेरहम ! ! तेने अपने बेटकोही खाडाला, गुरुजीकों अपनेज्ञानसे मालमथाकि-यह सिंहनी पेस्तरकेभवमें सुकोशलमु
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