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________________ ( १५८ ) तवारिख-चितोडगढ. निकी माताथी, और बुरेध्यानसे मरकर सिंहनीहुइहै, सिंहनीकों कीर्तिधरमहर्षिके धर्मोपदेशसे जातिस्मर्णज्ञानहुवा, दिलमें रंजकिया और उसरोजसे जीवोंकामारना कतइछोडदिया. पेस्तरकेजमानेमें जानवरोंकोंभी जातिस्मर्णझान होजाताथा जिससे पीछलेभवकी बात उसको यादआजातीथी,-आजकल-वैसाज्ञान नहीरहा. धर्मशास्त्रकी रुसेमालूमहोताहै पेस्तर ऐसाज्ञान-होताथा.___ एक मंदिर शो-कीर्तिस्थंभके पास खालीपडाहै दिवारमें एक छोटा शिलालेख लगाहै उसमें चौलुक्य वंशके मूलराज-सिद्धराज और-कुमारपाल वगेरा राजाओके नामहै. मगर अपशोषहैकिवीचमेसे तोडागया जिससे असली मतलब नही खुलता, कीर्तिस्थंभ अंदाज (१००) हाथ ऊंचा-और-उसपर चढनेकी सीढी. यां करीव (१२१ ) वनीहुइहै, नवमी मंजीलपर-धारशिलालेख लगेहुवेथे जिनमेसें अबसीर्फ (२ ) बाकीहै, सोभी कहींकहीं तोडेगयेहैअछी तरहपढे नहीजाते, बीचमें हमीर भुपाल वगेरा राजा ओके नाम लिखेहुवेहै, इसमंजीलपर चढकर अगर चारोतर्फ नजर किजायतो मालूमहोताहै आस्मानकी सैर कररहेहै, गांवनगर-बाग-बगीचे-द्रख्तोके झुंड-सडक-और नदीवगेरा इसखूबसुरतीसे दिखाइ देते है-जिसको देखकर तबीयत खुशहोजातीहै, हिंदमें बहुतसे किलेहै मगर चितोडगढका किलाभी एकनामी ग्रामीहै, तमामपहाड जडीबूटीयोंसे भराहुवा-जावजा-तालाव-कुंडवावडी-कुवे-और-चिश्मेआव-तर-ब-तरहै, श्रीयुत-रत्नसिंहजीका महेल जोकि-तेरहमीसदीका बनाहुवाहै-काबिल देखनेकेहै, स्त्रसिंछजीकी रानी-पदमनीथी-उसका महेल और सरोवर अबभी वहां वनेहुवेहै. चितोडगढके किलेपर बडेबडेजंगहुवे, और कइबहादूरोने आपनी बहादुरी बतलाइहै, चितोडगढके बहादूर योद्धेसमरसिंह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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