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(३७० ) नसीहत-उल-आम,
१३-जबकिसीके घर गमीहोजाती है चाहे-वो-अपना दुश्मनभी क्यौ-न-हो ! उसवख्त उसके घर जरुरजाना चाहिये, जिंदगीका कोइभरुसा नही-जो-कामधर्मका करलिया वही बहेत्तरहै. जोलोग कहते है हम दीक्षा लेनेका इरादा-नो-करने है मगर क्याकरे ! पढे लिखेनही, कोडकहते है हम नीयोंकी जियारत जाना वेशक ! चाहते है मगर फुरसत नही, ये-सब उनके बहानेहै, सचेदिलसे जोशख्श दीक्षा इख्तियारकरना-या-तीयों को जानाचाहे उसको कौनरोक सकताहै, ? दुनिया में तकदीर बस्ने मालाहै तदबीर मुकाबिले उसकेकोइचीज नही, तदवीर चुकनासकती तकदीर नहीं चुकती, समझोकि वगेरतदवीरकेभी राज्य मिलसकता है जब नकदीर सीधी हो,-आमलोग फायदेहीकेलिये तिजारतकरले है मगर जबतक नकदीर यावर-न-होशिवायनुकशानके कोइबात हासिल नही होती,
शेयर यावरी ताले करे-तो-किमिया क्या मालहै, ! शंगरेजा हाथमें-लोगे तो जर होजायगा, १,
एकशख्श पेस्तर गरीबी हालतमेधा, बाद चंदरौजके किसीएकआला दर्जेके ओहदेपर पहुचा, और दौलतमंद होगया, अगली हालत जाननेवाला एक दोस्त उसका इसइरादेसे उसके पासगया कि-में-कुछ-इससे फायदाहासिल करं, इधर-वह-दौलतमंद अपने ओहदेके घमंडमें इसकदा चकचूरथा कि-अपने दोस्नको जानताहुवाभी मुलगया, और पुनेलगा-तुं ! कोनहै ! ! और क्यौं ! आया ! ! कदीम दोस्त ने कहा, ठीक है वह दिन भुलगया जो मुजसे उधारलेकर अपनागुलर करताबा, आज बडीवातें बनाताहै, इसबातको मुनकर ओहदेदार शर्मीदा होगया और घमंड उसका उतर
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