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________________ तनारिख-ओशियानगरी. (१५३) देखकर अंदाजकियाजाताहै बडेवडेमोतबीर और मालदारशख्श यहांरहतेथे, सलतनतके रदवदलमें कइमंदिर बरवादहुवे,-औरकइतोडेगये, मगर यह-तीर्थकरमहावीस्वामीका मंदिर ऐसीघडीमें बनायाथाकि-टुटनेपरभी वैसाही बनारहा, और मरम्मतहोनेपर सुधरगया, इसवख्त ओशियानगरीमें कोइजैनश्वेतांबर श्रावकनही, खानपानकी चीजें यहां सब मिलसकती है छोटासा बाजार और पचाससाठ दुकाने आबाद है, जोचाहोसो चीज दस्तयाबहोगी, अलबते ! शहर जैसी चीजतो कहांसेमीलेगी मगर मामुलीचीजे खानपानकी सबहाजिरहै, देवीजीकेमंदिरकी पीछाडी एकउपाश्रय जैनश्वेतांबर मुनियोंके ठहरनेका विरानपडाहै, उसके एक थंभेपर शिलालेखहैकि-संवत् ( १२४५ ) फाल्गुणशुक्ल (५) अद्यश्रीमहावीर रथशाला निमितं पाल्हियाधित देवचंद्रवधूयशोधरभार्यया-संपूर्ण भाविकया-श्रेयोर्थगृहं दत्तं, मतलब इसका यहहुवाकि-तीर्थकर महावीर स्वामीकी रथशालाके लिये देवचंद्रनीकी औरत-यशोधरा श्राविकाने-यहघर-धर्मार्थदिया, . ओशियानगरीकी पूर्वतर्फ आधामीलके फासले एक छोटी पहाडीपर जमीनमें आधागडाहुवा एकभाहै उसपर एकचरणपादुका और शिलालेख मौजूदहै, उसमें लिखाहै संवत् ( १२४.) माघ कृश्न ( १४ ) शनिवासरे श्रीमज्जिनभद्रोपाध्यायशिष्यैः-श्रीकनकप्रभमहर्भिः कायोत्सर्गः कृतः-( यानी ) संवत् ( १२४५ ) माघवदी (१४) शनिवारके रौज श्रीमान्-जिनभद्र-उपाध्यायकेचेलेश्रीकनकप्रभमहर्षिने यहांपर अपने देहका त्यागकिया, तीर्थ ओशिया नगरीकी देखरेख पोकरन फलौदीके जैनश्वेतांबर लौग रखतेहै, मंदिरकेपास कारखाना वनाहुवाहै, जिसमें मुनिम-गुमास्ते-नोकर चाकर-पूजारी हमेशांकलिये तैनातहै, कोइयात्री यहांसाधारणखा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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