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(५२) सवाने-उमरी. न्ममें रोटीयोसे मोहताजहोकर मांगताफिरेगा, जोशख्श तीर्थभूमिम दंगाफिसाद करताहै, देवद्रव्यको बरवाद करताहै, और मंदिरम्र्तियोंके सामने अनाचार सेवनकरताहै-उसकी अगलेजन्ममें अछी गति नहींहोती, जोशख्श धर्मशास्त्र पहानही और दुसरोके सामने कहताहै-में-बहुतशास्त्र पढाई-बह-अगले जन्ममें विद्याहीन होताहै, जोशख्श आप बदकाम करताहै और दुसरेके माथे तोहमत चढाता है-वह-अगलेजन्ममें अछीगति नहीपाता, जोशख्श तीर्थकर-गणधर-आचार्य-उपाध्याय-और साधुमहाराजके अवर्णवाद बोलताहै महामोहकर्म बांधताहै जिसने पूर्वभवमें गुप्तदानदियाहै वह अगले जन्ममें दुसरेके घर गोद आताहै और दौलत पाताहै. ___ अगर धर्मशास्त्रकी राहपरचलो तो हरेकजीवपर रहेमकरो, आइंदे सुमारा भलाहोगा. धर्मशास्त्र फरमाते है-जो-शख्श-जैसा कर्म करेगा-वैसाफल पायगा, यह एकसिधीसडकहै.
(कर्मपर व्याख्यान-ग्वतमहुवा,-)
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[संवत् १९५० का-चौमासा शहर लशकर गवालियर,]
बादवारीशके लशकरसे रवानाहोकर महाराज छावनी-मुरारको-गये, और शीतरुतुमें वहां कयामकिया, व्याख्यानमें रायपसेणी-जीवाभिगम-और-पाडवचरित बाचा, छावनी मुरारसें रवानाहोकर गवालियर गये, और फिरजब जहाँसीतर्फ जानेका इरादाकिया, लशकरके श्रावकलोग वहांआये और अर्जकरने लगेकि-आप-जहांजायगे फायदाधर्मका पहुचायगे, बराये महेरवानी हमारेही शहरमें इससाल और कयामकिजिये, और हमकों धर्म सुनाइये,-महाराजने उनकी अर्ज कुबुलकिइ, गवालियरसे लशकर
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