________________
सवाने-उमरी.
( ५३ ) आये, और संवत् (१९५०) की वारीश वहांपर गुजारी; व्याख्यान हमेशांकरतेथे और सुननेवालेलोग कसरतसें जमाहोतेथे, संगीतकला इल्म इनदिनोभी हासिल करतेरहे, धर्मचर्चाकलिये कइशख्श आतेजातेथे. और माकुल जवाबपाकर खुशहोतेथे.-लशकरके श्रावकोने महाराजकी बहुतकदर-व-इज्जतकिइ, धर्मकेबारेमें जोजोबात महाराज फरमातेथे फौरन ! उसपर अमलकरतेथे,-इस चौमासेमें सम्मतितर्कग्रंथ तीनहिस्सा वांचा एकहिस्सा बाकीरहा, एकरौज व्याख्यान जगत्कर्ता के बारेमेदिया,
[व्याख्यान-जगत्क के बारेमे, ] अगर लीलाकरके दुनियाको इश्वरने-बनाइ मानेतो-सोचो ! लीलाकाहोना रागवानकों होताहै, और इश्वर रागद्वेषसें निहायत पाकहै, अगरकहाजाय रहमदिलहोकर दुनिया बनाइहै-तो-एकको आराम और तकलीफ क्यौं, ? अगरकहाजाय आराम तकलीफ अपनी अपनी तकदीरके ताल्लुकहै-तो-फिर कहनाचाहिये तकदीरही सबसेतेजरही. अगर इश्वरने अपनीशक्तिसें दुनिया बनाइहै ऐसा माने-तो-सोचो ! जीवोंकों पेस्तर निर्मलबनायेथे-या मलीन ? अगर निर्मलबनायेथे--तो-फिर धर्मशास्त्र किसको निर्मलकरनेकेलिये बनायेगये ? अगर मलीनबनायेथे-तो क्यासबबहै उनकों पापरुप मलीनता दिइगइ, ? असल में दुनिया अनादिहै. एकजन्मसे दुसरेजन्ममें जाना उसकानाम मृत्युहै, जोकुछ सुखदुख यहां मिलाहै पूर्वकृतकर्मके उदयानुसारहै, और आगेकों जोकुछ मिलेगा यहांके कियेहुवे कर्मानुसार मिलेगा. अगर ऐसा-न-मानेतो एक मुखी-और-एकदुखी क्यौं ?
जीव-जब-दुसरे जन्ममे जाताहै उसकेशाथ पुन्यपाप-औरतैजस-कार्मण सूक्ष्म शरीरशाथ जाताहै, बिनावीज वृक्ष नही और
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com