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सवाने-उमरी. विना वृक्ष बीज नही, अगर कहाजाय जड-चेतनरुप-मसाला पेस्तरसेथा, तो-सवाल पैदा होता है कि वह--मसाला किसने बनायाथा ? वगेरा बहुतसी दलीलें दिइगइथी, यहां थोडेमें लिखा है,
(संवत् १९५१ का चौमासा शहर लशकर गवालियर.)
बादवारीशके लशकरसे रवानाहोकर गवालियरकों गये, गवालियरसे छावनी-मुरार गये, और वहांपर मोशम शर्दीका खतम किया. व्याख्यान हमेशां बांचतेथे. फाल्गुनमहिनेमें वहांसें विहार करनेकी तयारीकिड लशकरके श्रावकलोग वहां आये, और एक चौमासा औरभी लशकरमें ठहरनेकी अर्जकिइ, महाराजने देखाकि वास्तेधर्मके-ये-लोग इतनी अर्जकरते है-तो-मुनासिबहै अबका चौमासा फिर लशकरमें करे, छावनी-मुरारसे-फिर लशकर आये.
और संवत् ( १९५१ ) की-वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यानमें प्रज्ञापनासूत्र और आचारदिनकर ग्रंथ बाचा, सम्मतितर्कका चोया हिसा इस चौमासेमें पुरा किया, हिसा इस चामासम पुरा किया,
अंगं स्वप्नःस्वरश्चैव-भौमं व्यंजन लक्षणे, उत्पातमंतरिक्षंच-निमित्तं स्मृतमष्टधा ॥१॥
अष्टांगनिमित्तका इल्म इनदिनोमें हासिलकिया, नंदीसूत्र-दशाश्रुतस्कंध-व्यवहारसूत्र-और-निशीथसूत्र-इनदिनोमें बांचे, संगीतकलाका इल्मभी इसअर्सेमें हासिल करतेरहे, क्योंकि-यहशहरभी इसहुनरकेलिये मशहूरहै, कइदफे बडी बडी सभा हुइ. एकरौज पृथवी फिरती है-या-चांदसूर्य, ? इसपर व्याख्यानदिया,
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