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________________ ( २७८ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. श्रीपार्श्वनाथ जिनबिंब-दुगड-ज्येष्ठमल्लभार्या-फत्तीनाम्न्या-वाचकचारित्रनंदनगणि--उपदेशात्-कारितं-प्रतिठितं-च, बायेपासे जो सफेदरंग-मूर्ति-शीतलनाथजीकी करीब (२) फुटबडी मौजूदहै उसपर लिखाहै, संबत् (१८८८) माघशुक्लपंचम्या-सोमवासरे-श्रीशीतलनाथबिंब-कारितं-ओशवंश-दुगड गोत्रप्रतापसिंहेन-प्रतिष्टितंच-श्रीजिनचंद्र सूरिभिः-इसमंदिरकोंजग्तशेठ-साकीन-मुर्शिदाबादने बनवाया.-तीर्थोमें-यहकदीमी-रवाज होता चला आयाकि-एकमंदिर पुराना होकर गिरगया, उसजगह दूसरा किसीखुशनसीवने फिर तयारकरवाया, इसमंदिरके खासदरवजेकी दोनोतर्फ दिवारमेंशत्रुजय-गिरनारके नकशे-शंगमरमरपथरपर उकेरे हुवे निहायत उमदा बनेहै, रंगमंडप बहुतवडा और इसमें वेठकर इबादत तीर्थकरदेवोकी किइजातीहै, हारमोनियम-सारंगी-तबले-और-सितारवगेरासें गायन होताहै, और अछेअछेगवैये यहां अपनाइल्मवतलातेहै ___ शामलियापारसनाथजीके मंदिरकी बायीतर्फ-दुसरामंदिर पावनाथजीका इसमें तीर्थंकरपार्श्वनाथजीकी-मूर्ति-करीब एकहाथव. डी-जायेनशीन है, और उसपर लिखाहुवाहै कि-संवत् (१८७७) वैशाखशुक्ल पौर्णिमायां-श्रीपार्श्वबिंबं-प्रतीष्टितं-श्रीजिनहर्षसरिणा-गोलवछा-मेहताबोजानि-मूलचंद्र धर्मचंद्रेण -कारितं.-और यहमंदिर-एक-खुशनसीवश्राविका-साकीन-मुर्शिदाबादने तामीरकरवाया, तीसरा मंदिर चंदाप्रभुजीका-तामीरकियाहुवा-बावुनशरुपजी -हरखचंदजी-नवलखा-साकीन मुर्शिदावादका-इसमें मूर्ति चंदाप्रभुजीकीकरीव एकहाथवडी जायेनशीनहै, और उसकेनीचे लिखाहुवाहैकि-संवत् (१८८८) माघशुक्लपंचम्यां-चंद्रवासरे श्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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