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(६८) सवाने-उमरी. वख्त अमरलाचारी है, हां! अगर विनासबब ऐसाकरेतो बेशक ! मनाहै, इश्कबाजी-चोरी-और-कुव्यसनकेलिये बिल्कुल मना है. किसीको समझो शराबपीनेकी कसमहै, और दुसरेन उसको पकडकर जोराजोरी शराब पीलादिइ, उसका इरादा नहीथा-तोउसकों कसम तोडनेका पाप नहीं, इसतरह और चीजोकेलियेभी समझना. वगेरा बहुतसा वयान कियागयाथा, यहां थोडे में लिखा है, कइ महाशय मजहबीबहेसको आतेथे और मजहबकेबारेमें बहेस करतेथे, व्यवहारसूत्र-पंचकल्पमूत्र-और दशाश्रुतस्कंधशास्त्र महाराजने यहांपर बाचे
(संवत् १९५: का-चौमासा शहर मंदसोर,) बादवारीशके-मगसीर-और-पोपतक कलकत्तेहीमें कयामकिया, और माघसुदीमे रवानाहोकर वर्द्धमान-आसनसोल-मधुपुर-और गिरिडी होतेहुवे तीर्थ समेतशिखरकों तीसरीमरतबागये, जियारत किइ, और पहाडपर दसमीटोंककी संवत् ( १९५८ ) माघसुदी (१०) मीके रौज प्रतिष्टा किइ जोकि-बसबव-विजली गिरजानेके तीवारा मरम्मत किइगइथी, चंदरौज मधुवनमें कयामकिया, और वहांसे रवानाहोकर वापिस गिरिडी टेशन आये, गिरिडीसे रैलमें सवारहोकर आसनसोल-चक्रधरपुर-रायपुर-विलासपुरहोते शहर नागपुर-आये, जो मध्यप्रदेशका सदरमुकाम और गुलजारशहरहै, पेठ-आदितवारमे कयाम-किया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशा देतेये, और सुननेवालेलोग कसरतसें जमा होतेथे, चैत वैशाख जेठतक वहां कयामकिया, अषाढवदीमें शहर-मंदसोरके श्रावकोका तार आयाकि-आप यहां बरायेमहेरवानी कदमरंजा फरमाये, और वारीशका मुकाम करे, महाराजने उनकी अर्ज कुबुलकिइ और ना. गपुरसे रवानाहोकर भुसावल-खंडवा-और इंदोर टेशनपर होते
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