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________________ तवारिख - तीर्थ - मिथिला. ( २६५ ) पैसेका दूध लेकर खीर बनाताथा और पेटभरकर खाताथा. अब - भी ये चीजे यहां किसीकदर कम नही, बडे बडे दौलतमंद यहांपर होचुके जिनके घर हाथी बंधतेथे, संस्कृतविद्याकी यहां इतनी तरक्कीथी कि किसानलोगभी-संस्कृत जवानमें बातचीत करतेथे, आजकल संस्कृत इल्मकी उतनी तरक्की नही रही, मुल्क निहायत उमदा - और - लोग खुशमिजाज है. पेस्तर यहां तीर्थकर मल्लिनाथ - और - नमिनाथके मंदिर बने हुवेथे, आजकल -न-कोई जैन श्वेतांवर मंदिर है-न - जैन श्वेतांवर श्रा वक है, मुज्जफरपुर यहांसे करीब (१५) कोसके फासलेपर वाके है. जबतक उसमें जैन श्वेतांवर श्रावकोकी आवादी रही, इसतीर्थकी देखरेख करते रहे, वादअजां कुछ नहीरही, और तीर्थ विरान होगया, तीर्थकर मल्लिनाथ - और - नमिनाथजीके चरन - जो - यहां छत्रीयो में कायम रहगयेथे - उठाकर भागलपुर में लाये है, और सामने टेशन के रायबहादुर धनपतसिंहजी की धर्मशाला के मंदिरमें कायम किये है, सीतामढी इसवख्त जनकपुररोडसे (१६) मील के फासले करीब दसहजार आदमीकी वस्तीका कस्वा रहगया, बाजार-नबहुत बडा - न - छोटा - मगर सब किसमकी चीजे यहां पर मिल सकेगी स्कुल - अस्पताल - कचहरी वगेरा मकानात अच्छे बनेहुवे है, चावल - और नयपालकी पैदावारीकी चीजे यहां बीकती है, लखनदेइ नदीपर लकडीका पुल बना हुवा है और चैतकी रामनवमीके रौज य| हॉपर मैला भरता है. उसमें हाथी - बेल- पितल के बर्तन और कपडे | बगेराकी तिजारत अछी होती है, यात्री - यहां पूरव - उत्तरकी तर्फ |संहकरके तीर्थंकर मल्लिनाथ और नमिनाथकी इबादत करे, और दिलमें समझेकि - तीर्थमिथिलाकी जियारतकामयाब हुई. अगर कोह खुशनसीब - इस तीर्थकों फिरसें तरक्की देना चाहे मंदिर - धर्मशाला -da Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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